भाग्य से ज्यादा और समय से पहले किसी को न सफलता मिलती है और न ही सुख !
विवाह, विद्या ,मकान, दुकान ,व्यापार, परिवार, पद, प्रतिष्ठा,संतान आदि का सुख हर कोई अच्छा से अच्छा चाहता है किंतु मिलता उसे उतना ही है जितना उसके भाग्य में होता है और तभी मिलता है जब जो सुख मिलने का समय आता है अन्यथा कितना भी प्रयास करे सफलता नहीं मिलती है ! ऋतुएँ भी समय से ही फल देती हैं इसलिए अपने भाग्य और समय की सही जानकारी प्रत्येक व्यक्ति को रखनी चाहिए |एक बार अवश्य देखिए -http://www.drsnvajpayee.com/
महामारियाँ पैदा होने या संक्रमण बढ़ने घटने के लिए मौसमसंबंधी प्राकृतिक घटनाओं को जिम्मेदार बता तो दिया गया, किंतु जब महामारी को समझने के लिए मौसम संबंधी अनुसंधानों की आवश्यकता पड़ी तो पता लगा कि मौसम को समझने के लिए कोई विज्ञान ही नहीं है | विज्ञान के बिना अनुसंधान कैसे किए जा सकते हैं |
मौसमविज्ञान में विज्ञान क्या है ये स्वयं में शोध का बिषय है | बार बार बादल फट रहे हैं |कहीं कहीं बहुत अधिक वर्षा हो रही है |बज्रपात हो रहा है |भीषण बाढ़ आ रही है | गाँव के गाँव बहते देखे जा रहे हैं | ऐसी घटनाओं को रोका जाना भले न संभव हो किंतु यदि मौसमविज्ञान होता तो ऐसी घटनाओं के बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान तो लगाए ही जा सकते थे |
ऐसे ही भूकंप वैज्ञानिक होते हैं | भूकंपों के बिषय में अनुसंधान भी होते हैं किंतु भूकंपविज्ञान में विज्ञान क्या है | जिससे ये पता लगाया जाना संभव हो कि भूकंपों के आने का कारण क्या होता है !इनके बिषय में पूर्वानुमान कैसे पता लगाया जाए |
ऐसे ही महामारी संबंधी अनुसंधान होते ही रहते हैं |अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिक भी होते हैं किंतु महामारीविज्ञान में विज्ञान क्या है |ये कैसे पता लगे ! कोरोनामहामारी में ऐसे अनुसंधानों की वैज्ञानिकों की विज्ञान की क्या भूमिका रही है | इनसे कैसे कितनी और किस प्रकार की मदद मिलती है|ऐसे अनुसंधान यदि न किए जा रहे होते तो क्या इससे भी अधिक जनधन की हानि हो सकती थी |
कुल मिलाकर सभीप्रकार की प्राकृतिकघटनाओं के बिषय में किए जा रहे अनुसंधानों की वैज्ञानिकों की एवं विज्ञान की भूमिका पर उदारता पूर्वक बिचार किया जाना चाहिए कि प्राकृतिक संकटों के समय मनुष्यों के जीवन को सुरक्षित बचाए रखने में ऐसे अनुसंधानों से क्या और कितनी मदद मिल पाती है |
ऐसे ही किसी प्राकृतिकघटना के बिषय में सही अनुमान या पूर्वानुमान लगाने के लिए यह आवश्यक होता है कि उस घटना के घटित होने का सही कारण पता हो | उन्हीं कारणों के आधार पर प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जाते हैं | सही कारणों का चयन होने पर ये सही निकलते हैं और गलत कारणों का चयन होने पर ये गलत निकल जाते हैं |
जिन प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित अनुमानों पूर्वानुमानों के गलत निकलने के लिए जलवायुपरिवर्तन या स्वरूप परिवर्तन को जिम्मेदार मान लिया जाता है जबकि ऐसा नहीं होता है |उन अनुमानों पूर्वानुमानों के गलत निकलने के लिए वे कारण जिम्मेदार होते हैं | जिनका उन घटनाओं से कोई संबंध ही नहीं होता है |
भूमिका
ज्ञाततथ्यों के आधार पर अज्ञात के बारे में तर्क-वितर्क पूर्वक निष्कर्ष निकाल लेने को अनुमान कहते हैं।अनेकों साधनों से मनुष्य जितने प्रकार के ज्ञान प्राप्त करता है | उन्हें प्रत्यक्ष और परोक्ष ज्ञान के रूप में दो भागों में बाँटा जा सकता है | संसार की वस्तुओं को देखकर ,आवाज सुनकर ,गंध सूँघकर अथवा स्वाद लेकर ,या यंत्रों आदि के माध्यम से जो ज्ञान का प्राप्त किया जाता है | वो प्रत्यक्ष विज्ञान होता है | मनुष्य के प्रत्यक्ष ज्ञान की परिधि इतनी छोटी है कि उससे न तो मनुष्यों के उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है और न ही संकटों को पहले से पहचाना जा सकता है और न ही उनके समाधान निकाले जा सकते हैं |
इसी प्रत्यक्ष ज्ञान को आधार बनाकर कोरोना महामारी को पहचानने से लेकर चिकित्सा तक के बिषय में जितने भी प्रकार के अनुमान पूर्वानुमान आदि विश्व वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए जाते रहे वे शतप्रतिशत गलत निकल जाते रहे | ऐसे ही भूकंप आँधी तूफान चक्रवात बज्रपात वर्षा बाढ़ आदि घटनाओं के बिषय में प्रत्यक्ष ज्ञान के द्वारा अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जाना संभव ही नहीं है | सही पूर्वानुमान लगाया जाना यदि संभव होता तो अब तक लगा लिया जाता !
इसीलिए ऐसी हिंसक प्राकृतिक घटनाएँ बिल्कुल न घटित हों या बहुत अधिक घटित होने लगें | थोड़े समय के लिए आवें या महीनों वर्षों तक घटित होती रहें !महामारी बिल्कुल न आवे या बहुत बिकराल रूप धारण कर ले | ऐसी घटनाओं में कितनी भी बड़ी जनधन हानि हो जाए तो बड़े से बड़ा प्रकृति वैज्ञानिक या मौसमवैज्ञानिक या भूकंप वैज्ञानिक होकर भी कोई क्या कर लेगा !
किसी घटना के बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जाना तभी संभव है जब उस घटना की निर्माण प्रक्रिया से परिचित हों |यदि दाल पकने के लिए रखी जाए तो वो कितनी देर में पक पाएगी | इसका पूर्वानुमान वही लगा पाएगा जो दाल पकने की प्रक्रिया से परिचित हो | ऐसे ही भूकंप आँधी तूफान चक्रवात बज्रपात वर्षा बाढ़ या महामारी जैसी घटनाओं की निर्माण प्रक्रिया समझे बिना इनके बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जाना कैसे संभव है | इसीलिए ऐसी घटनाओं के बिषय में लगाए जा रहे पूर्वानुमान बार बार गलत निकलते देखे जा रहे हैं |
कुल मिलाकर प्रत्यक्ष ज्ञान के आधार पर केवल उन्हीं घटनाओं बिषय में सही पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | जिनकी निर्माण प्रक्रिया को देखकर ,आवाज सुनकर ,गंध सूँघकर ,स्वाद लेकर ,या यंत्रों आदि के मदद से प्रत्यक्ष देखा या अनुभव किया जा सकता है |
इस प्रकार से ज्ञान को प्रत्यक्ष ज्ञान तक ही सीमित रखा जाए तो मनुष्य के ज्ञान की परिधि बहुत छोटी हो जाएगी। भूकंप आँधी तूफान चक्रवात बज्रपात वर्षा बाढ़ या महामारी जैसी घटनाओं की निर्माण प्रक्रिया प्रत्यक्ष दिखाई ही नहीं पड़ती है | इसलिए इनके बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जाना कभी संभव ही नहीं है |
हमारे ज्ञान का एक बहुत बड़ा भाग परोक्ष विज्ञान का होता है। प्राकृतिक घटनाओं की अप्रत्यक्ष निर्माण प्रक्रिया को समझने एवं अनुभव करने के लिए उसी परोक्षविज्ञान की आवश्यकता होती है | सूर्य चंद्र ग्रहणों के बिषय में सैकड़ों वर्ष पहले लगा लिया जाने वाला सही अनुमान पूर्वानुमान आदि उस परोक्ष विज्ञान की मदद से ही संभव हो पाता है |भूकंप आँधी तूफान चक्रवात बज्रपात वर्षा बाढ़ या महामारी जैसी घटनाओं के बिषय में सही पूर्वानुमान लगाने के लिए उसी परोक्ष विज्ञान संबंधी अनुसंधानों को बढ़ाया जाना चाहिए |
व्यवहार विज्ञान के बिषय में विनम्र निवेदन
इसमें जिसप्रकार की घटनाओं का जैसा जैसा व्यवहार बार बार देखा जाता है| उसे ही नियम मानकर उसीप्रकार की भविष्यवाणियाँ करनी शुरू कर दी जाती हैं | चूँकि ऐसा होता रहा है इसलिए आगे भी ऐसा होता रहेगा | ऐसे ही अंदाजा लगाया जाता है | लगाया हुआ अंदाजा सही निकला तब तो उसे भविष्यवाणी मान लिया जाता है और यदि गलत निकल जाता है तो जलवायुपरिवर्तन मान लिया जाता है | महामारी के बिषय में की गई भविष्यवाणियों के गलत निकल जाने पर इसे स्वरूप परिवर्तन मान लिया जाता है |
इस प्रक्रिया में बादलों या आँधी तूफानों को प्रत्यक्ष देखे बिना किसी भी प्रकार का अनुमान या पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं होता है |इसीलिए मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा बताई गई मानसून के आने जाने की तारीखें या दीर्घावधि पूर्वानुमान प्रायः गलत निकलता रहता है | कभी कदाचित सही निकल भी जाए तो वो एक तुक्का मात्र होता है |जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता है |
व्यवहार विज्ञान का मतलब जिस किसी क्षेत्र में जब बादल आ जाते हैं तो वर्षा होने की भविष्यवाणी कर दी जाती है | दो दिन बरसते रहने के बाद भी जब वर्षा होना बंद नहीं होता है तो 72 घंटे और वर्षा होते रहने की भविष्यवाणी कर दी जाती है | लोग समझते हैं कि इसके बाद वर्षा बंद हो जाएगी किंतु उसके बाद फिर दो दिन और वर्षा होने की भविष्यवाणी कर दी जाती है,तब तक वहाँ बाढ़ आ चुकी होती है |लोग ऐसी खंडित भविष्यवाणियों कारण बाढ़ में फँस जाते हैं और अपनी आवश्यकता का सामान भी इकठ्ठा नहीं कर पाते हैं | यदि उन्हें एक साथ पता लग जाता कि कुल कितने दिन बरसेगा तो वे उस हिसाब की तैयारी कर लेते | यदि ऐसी खंडित भविष्यवाणियाँ की ही न गई होतीं तो अपने हिसाब से तैयारी करते या न करते वे स्वतंत्र तो होते |
कुल मिलाकर व्यवहार विज्ञान का मतलब यही है कि जब जैसा होता प्रत्यक्ष दिखने लगता है तब उसी में कुछ जोड़ घटाकर वैसा ही बोल दिया जाता है | सुदूर आकाश में उठे आँधी तूफानों चक्रवातों को उपग्रहों रडारों से प्रत्यक्ष देख लिया जाता है कि किस दिशा में कितनी गति से आगे बढ़ रहा है | उसी के अनुसार अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये कब कहाँ पहुँचेगा !
व्यवहार विज्ञान के अनुसार जिन प्राकृतिक घटनाओं के निर्मित होने के लिए जिन कारणों की कल्पना की जाती है | उन घटनाओं और उनके कारणों का मिलान किया जाना संभव ही नहीं हो पाता है | ऋतुक्रम एवं स्वभाव प्रभाव से अलग हटकर कुछ प्राकृतिक घटनाएँ ऐसी घटित होने लगती हैं|जो हमेंशा या प्रतिवर्ष घटित होते नहीं दिखाई देती हैं | ऐसी घटनाओं का अंदाजा व्यवहारविज्ञान से लगाना संभव नहीं होता है |ऐसी घटनाओं के घटित होने एवं उनके बिषय में पूर्वानुमान न लगा पाने के लिए जिस जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार कारण मान लिया जाता है | वो जलवायु परिवर्तन क्या है ! कैसे होता है ! उसके होने के कारण क्या हैं | वो प्राकृतिक है या मनुष्यकृत आदि प्रश्नों के उत्तर व्यवहार विज्ञान से नहीं खोजे जा सकते हैं |
इसी प्रकार से जलवायुपरिवर्तन के प्रभाव के बिषय में बताया जाता है कि आज के सौ दो सौ वर्ष बाद भीषण सूखा पड़ेगा | चरम मौसम (लू बाढ़, तूफान), ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्र के स्तर में वृद्धि, और महासागरों के अम्लीकरणशामिल हैं.इससे मानव स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है, जल स्रोतों में कमी आती है, भोजन की कमी होती है | वर्षा का क्रम बिगड़ जाता है| पौधों और जानवरों की प्रजातियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है,
जिससे कई प्रजातियाँ विलुप्त हो सकती
हैं.आदि आदि |भविष्यवाणियाँ की जाती हैं | प्रश्न उठता है कि जिस व्यवहार विज्ञान से एक सप्ताह पहले का सही मौसमपूर्वानुमान बताया जाना संभव नहीं है | उसके आधार पर आज के सौ दो सौ वर्ष बाद क्या होगा | इसका पूर्वानुमान लगाया जाना कैसे संभव है |
व्यवहार विज्ञान में इसे ध्यान देने की आवश्यकता है कि जलवायुपरिवर्तन या स्वरूपपरिवर्तन के नाम पर कुछ ऐसे गंभीर अनुसंधानों की आवश्यकता वाले बिषय अधूरे के अधूरे बीच में ही छोड़ देने पड़ते हैं | कुल मिलाकर व्यवहार विज्ञान से प्रकृति के स्वभाव को समझना संभव नहीं है |ऐसी स्थिति में महामारियों पर मौसमसंबंधी घटनाओं का,या वायुप्रदूषण का,तापमान बढ़ने घटने का प्रभाव पड़ता है या नहीं | ये पता नहीं लगाया जा सका | इस बात को बीच में ही छोड़ देना पड़ा |
कुल मिलाकर महामारी पैदा होने के लिए और भी जिन जिन कारणों को पहले जिम्मेदार बताया गया | उनके कारणों को समझने का विज्ञान ही नहीं था | इसलिए उन अनुसंधानों को अधूरा ही छोड़ दिया गया |
ऐसे ही महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए जिन औषधियों को पहले प्रभावी बताया गया | महामारी और उन औषधियों टीकों थेरेपियों आदि के संयुक्त अध्ययन के लिए कोई विज्ञान नहीं था | इसलिए उन्हें चिकित्सा से अलग कर दिया गया |
हमारे परोक्षवैज्ञानिक अनुसंधान
महामारी के जन्म होने का कारण प्राकृतिक
परिस्थितियाँ ही रही होंगी | संक्रमण घटने बढ़ने का कारण भी
प्राकृतिक ही रहा होगा | इसलिए महामारी संपूर्ण
रूप से समाप्त भी प्राकृतिक प्रक्रिया से ही होगी | महामारी को समझने के लिए प्राकृतिक प्रक्रिया ही अपनानी पड़ेगी | इससे
संबंधित अनुसंधान भी प्राकृतिक प्रक्रिया से ही करने होंगे | अनुसंधान
की दृष्टि से हमें सोचना होगा कि महामारी हमेंशा क्यों नहीं आती है और सन
2019 में आने का कारण क्या था | प्रकृति या जीवन में ऐसा
क्या विशेष घटित हुआ था | जिसके परिणाम स्वरूप महामारी जैसी घटना घटित होनी
प्रारंभ हुई | इसी
उद्देश्य से मैंने वैदिकविज्ञान संबंधी अनुसंधानों को चुना है |
प्रकृति बिषयक गणितीय अनुसंधान मैं पिछले 35 वर्षों से निरंतर करता आ रहा
हूँ | इसके द्वारा प्राकृतिक परिवर्तनों घटनाओं आपदाओं महामारियों आदि को समझने एवं उनके बिषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि
लगाने के लिए निरंतर प्रयत्न करता आ रहा हूँ | भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात
वर्षा बाढ़ आदि मौसम संबंधी घटनाएँ हों या महामारियाँ यहाँ तक कि जलवायु
परिवर्तन या महामारी का स्वरूप परिवर्तन ही क्यों न हो | इनके रहस्य को समझना ही हमारे अनुसंधानों का उद्देश्य है |
इसी उद्देश्य से मैं अपने अनुसंधानों
को सफलता के साथ आगे बढ़ाते आ रहा हूँ | अब तो ऐसा अभ्यास सा हो गया है कि
प्रकृति या जीवन में घटित होने वाली ऐसी प्रत्येक घटना पर दृष्टि रहती है | जब कोई ऐसी घटना घटित होते देखता हूँ| जो प्रकृतिक्रम
एवं परंपरा से कुछ अलग घटित हो रही होती है | उनका ढंग क्रम वेग आवृत्तियों
आदि में
पहले की अपेक्षा भिन्नता होती है |ऐसी घटनाओं के कारणों को मैं प्रत्यक्ष की
अपेक्षा परोक्ष प्रक्रिया से खोजने का प्रयत्न करता हूँ | इस प्रयत्न से
बहुत सारे प्राकृतिक रहस्य सुलझने लगे हैं |
इसी दृष्टि से मैं उन प्राकृतिक घटनाओं को भी देखता रहा हूँ, जो महामारी
आने के लगभग 12 वर्ष पहले से घटित होनी प्रारंभ हो गई थीं | ऐसी घटनाएँ
दिनोंदिन बढ़ती देखी जा रही थीं | महामारी आने के कुछ वर्ष पहले से तो ये
पूरी तरह स्पष्ट होता जा रहा था कि प्रकृति का संतुलन बिगड़ता जा रहा है | ये
असंतुलन समयसंचार में उसप्रकार के परिवर्तन का परिणाम है| इसके संकेत उस
समय बार बार घटित हो रही विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ दे रही थीं
|यह प्राकृतिक असंतुलन मुझे किसी रोग या महारोग की ओर बढ़ता दिख रहा था
|इसकी सूचना सर्वप्रथम मैंने 20 अक्टूबर 2018
को पीएमओ की मेल पर भेजी थी |
वैदिकविज्ञान की दृष्टि में महामारी
महामारी और विज्ञान !
महामारी के रहस्य को सुलझाया नहीं जा सका है | विज्ञान के बिना प्रकृति के परिवर्तनक्रम को न तो समझा जा सकता है और न ही प्राकृतिक घटनाओं, आपदाओं या
महामारियों के स्वभाव को समझा जा सकता है और न ही इनके बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान ही लगाया जा सकता है | इसीलिए ऐसी घटनाओं, आपदाओं या
महामारियों के बिषय में जो तीर तुक्के लगाए भी जाते हैं | उनके गलत निकलने का कारण विज्ञान का अभाव एवं वैज्ञानिक अनुसंधानों की कमजोरी होता है , किंतु इसका कारण जलवायुपरिवर्तन या उस घटना का स्वरूपपरिवर्तन बता दिया जाता है |
जिसप्रकार से चिकित्साविज्ञान की जानकारी के बिना चिकित्सा किया जाना संभव नहीं है,फिर भी कोई चिकित्सा करे किंतु रोगी को उससे लाभ न हो तो इसके लिए रोगी या रोग को जिम्मेदार मानना उचित नहीं होगा | ऐसे निराधार अनुसंधानों से आज के हजारों वर्ष बाद भी प्राकृतिक घटनाओं, आपदाओं या
महामारियों को न तो समझा जा सकता है और न ही ऐसी घटनाओं के बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान ही लगाए जा सकते हैं | विज्ञान के बिना ऐसा किया जाना कैसे संभव है |
मौसमविज्ञान में विज्ञान क्या है ?भूकंपविज्ञान में विज्ञान क्या है? महामारी विज्ञान में विज्ञान क्या है ? ऐसी घटनाओं में विज्ञान का उपयोग क्या होता है ? उससे प्राप्त होने वाले परिणाम कितने मददगार होते हैं| कोरोना महामारीपीड़ितों की ऐसे अनुसंधानों से क्या और कितनी मदद की जा सकी | इसकी समीक्षा होनी चाहिए |
सन 1864 में आए चक्रवात के कारण कलकत्ता में हुई क्षति के कारण 1875 में भारत मौसम विज्ञान विभाग
की स्थापना हुई। उससमय से लगभग डेढ़ सौ वर्ष बीत चुके | सन
2018 के अप्रैल मई में भारत के पूर्वोत्तर में बार बार तूफ़ान आते रहे
सैकड़ों लोग मृत्यु को प्राप्त हुए | किसी एक तूफ़ान के बिषय में भी सही पूर्वानुमान
नहीं लगाया जा सका था | सभी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में किए जा रहे अनुसंधानों की यही स्थिति है |
भूकंप अक्सर आते रहते हैं,बादल बार बार फट रहे हैं | बज्रपात से बहुत
लोग मारे जा रहे हैं | भीषण बाढ़ की घटनाएँ गाँव के गाँव बहाकर लिए जा रही
हैं | आँधी तूफानों चक्रवातों से लोग मारे जा रहे हैं | इतनी भयंकर महामारी आई !उसकी लहरें बार बार आती जाती रहीं | ऐसी सभी घटनाओं के बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं हो पा रहा है |
जिस मौसम तथा महामारी को समझने के लिए कोई विज्ञान ही नहीं है तो जलवायुपरिवर्तन होने या महामारी के स्वरूप परिवर्तन होने का पता कैसे लगाया गया !जिस अनुसंधान प्रक्रिया से चार दिन पहले का मौसम पूर्वानुमान नहीं पता लग पाता है | दीर्घावधि वाले मौसम पूर्वानुमान सही नहीं निकल पाते हैं | अनुसंधान की उसी प्रक्रिया के द्वारा यह कैसे पता लगा लिया जाता है कि आज के दो सौ वर्ष बाद जलवायुपरिवर्तन के कारण किस किस प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ घटित होंगी |
अनुसंधानों के द्वारा यदि यह पता लगाया जा सकता है कि किसी देश विशेष की लैब से निकले वायरस के कारण महामारी पैदा हुई थी तो यह भी पता लगाया जाए कि लैब से तो एक ही बार वायरस निकला होगा ! इसलिए एक बार ही संक्रमण को जितना बढ़ना था बढ़ जाता और जब शांत होने लगा था तो पूरी तरह से शांत हो जाता ! लहरों के बार बार आने और जाने का कारण क्या था ! विशेषज्ञों को ऐसा होने का कारण यदि पता था तो महामारी और उसकी लहरों के बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि न लगाए जा पाने का कारण क्या था |
महामारी की भयानकता और वैदिकविज्ञान !
कोरोना महामारी में इतनी अधिक संख्या में लोग मृत्यु को प्राप्त हुए | उन मौतों के लिए जिम्मेदार किसे माना जाए ! इसके लिए दिनों दिन बढ़ती जा रही महामारी स्वयं जिम्मेदार थी या सुरक्षा
की तैयारियों का अभाव था !लोगों के शरीरों में प्रतिरोधक क्षमता की
कमी थी या कोविड नियमों का पालन ठीक से नहीं किया गया या फिर इन सबसे अलग ही कोई ऐसा कारण था | जो इन सभी मौतों के लिए जिम्मेदार था |
ऐसे आवश्यक प्रश्नों का उत्तर खोजे बिना भविष्य में संभावित महामारियों से सुरक्षा के लिए भी कुछ किया जाना संभव नहीं हो पाएगा | कोरोना महामारी के बिषय में अभी तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा जा सका है | ऐसा किया जाना यदि अभी भी संभव न हो तो इसके लिए प्राचीन वैदिकविज्ञान संबंधी अनुसंधानों की भी मदद ली जानी चाहिए | जिस किसी भी तरह से संभव है | इस रहस्य का उद्घाटन ही जाना चाहिए |
वैदिकविज्ञान की मदद से प्राचीन काल में भी तो पूर्वानुमान लगाया जाता रहा था | उसी विधा से सूर्यचंद्र ग्रहणों के पूर्वानुमान अभी भी सैकड़ों वर्ष पहले लगा लिए जाते हैं | भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात चक्रवात या बादल फटने जैसी घटनाएँ तो प्राचीनकाल में भी घटित होती रही होंगी |ऐसी घटनाओं के बिषय में उस समय जिस प्रकार से पूर्वानुमान लागली जाते थे | उन्हीं अनुसंधानों को अपनाकर प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान लगाकर प्रजाजनों की सुरक्षा की जानी चाहिए |
आधुनिक विज्ञान का जब कहीं नाम निशान ही नहीं था | महामारियाँ तो तब भी पैदा होती थीं | उस समय जिन वैदिकअनुसंधानों के बल पर प्रजाजनों की सुरक्षा कर ली जाती थी | उसी वैदिकविज्ञान के आधार पर यदि अनुसंधान किए गए होते तो महामारी पैदा होने से पहले ही उसके बिषय में पता लगाया जा सकता था | उसी समय उसके स्वभाव को समझा जा सकता था | उसके आधार पर न केवल प्रजाजनों को पहले से सतर्क किया जा सकता था, प्रत्युत महामारी पैदा होने से पहले महामारी से मुक्ति दिलाने की औषधियाँ तैयार करके रखी जा सकती थीं |
इसप्रकार की मजबूत तैयारियाँ कर लेने से लोगों को संक्रमित होने से बचाया जा सकता था ! फिर भी कुछ लोग यदि संक्रमित हो भी जाते तो उन औषधियों से उन्हें रोगमुक्ति दिलाई जा सकती थी |इसके बाद भी महामारी यदि और अधिक रौद्ररूप धारण करते देखी जाती तो दूसरी लहर की तरह ही वैदिकउपचारों से नियंत्रित कर लिया जाता !जिससे महामारी को तुरंत अपना विस्तार समेटते हुए समस्त विश्व को रोगमुक्त करना ही पड़ता | ऐसा हुआ भी है | मेरे द्वारा भी गया है |
अनुसंधानों की उपयोगिता
महामारी के बिषय में समय समय पर दिए गए विश्व वैज्ञानिकों के वक्तव्यों की समीक्षा
की जाए | उन वक्तव्यों में महामारी बिषयक जो भी अनुमान या पूर्वानुमान बताए गए हैं | उनमें जितने मीडिया माध्यमों में प्रकाशित या प्रदर्शित हैं | उनका यदि महामारी या उसकी लहरों के साथ मिलान करके देखा जाए तो मेरी जानकारी के अनुसार विश्व के किसी भी वैज्ञानिक के
द्वारा महामारी के बिषय में बताया गया कोई भी अनुमान पूर्वानुमान आदि सच नहीं
निकला है | ऐसे अनुमान पूर्वानुमान अनुसंधान आदि प्रजाजनों के हित में उपयोगी कैसे कहे जा सकते हैं |
इसीप्रकार से वैदिकविज्ञान संबंधी महामारी बिषयक अनुसंधानों के आधार पर महामारी या उसकी लहरों के बिषय में मैं जो अनुमान पूर्वानुमान आदि पीएमओ की मेलपर
भेजता रहा हूँ | उनका भी महामारी के साथ मिलान करते हुए परीक्षण किया या कराया जाए | मुझे विश्वास है कि वैदिकविज्ञान से संबंधित अनुमान पूर्वानुमान आदि जनहित की दृष्टि से सहायक सिद्ध होंगे |
इससे स्पष्ट हो जाता है कि मैं महामारी के स्वभाव को
समझने में सफल हुआ हूँ | महामारी की लहरों के बिषय में मेरे द्वारा लगाए
जाते रहे अनुमान पूर्वानुमान आदि सच निकलते रहे हैं |इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि महामारी के बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने में मैं सफल हुआ हूँ | दूसरी लहर में महामारी का वेग रोकने के लिए मैंने जो प्रयत्न किए थे | उसका भी मेल पीएमओ की मेल पर भेजा था | उस प्रयत्न के परिणाम स्वरूप जिस तारीख़ मैंने संक्रमण घटने की बात लिखकर भेजी थी उसी तारीख संक्रमण घटना प्रारंभ हो गया था | ये वैदिक विज्ञान की महत्ता है | इस बिषय से संबंधित अनुसंधानों के अभाव में मेरे अतिरिक्त विश्व के किसी अन्य वैज्ञानिक के द्वारा न तो ऐसे अनुमान पूर्वानुमान लगाना संभव हो पाया है और न ही महामारी संबंधी संक्रमण को नियंत्रित करने का ही कोई प्रयोग सफल होते सुना गया है |
इसप्रकार का वैदिक विज्ञान का प्रभाव है |इस बिषय में मैं केवल वही कह
रहा हूँ | जिसे बीते 35 वर्षों में अनुसंधान पूर्वक मैं अनुभव करता आ रहा
हूँ |वर्तमान समय में भी ऐसा किया जा सकता है | यह सुनने में अविश्वसनीय
लग सकता है | इसीलिए मैंने उन प्रमाणों को सुरक्षित बचाकर रखा है | जो
प्रमाणित रूप से मेरी बातों को प्रमाणित सिद्ध करने में सहायक हो सकते हैं | मैं ऐसा करने में सफल हुआ हूँ
| इसके लिए मेरे द्वारा भेजी गई इसकी अग्रिम सूचनाएँ भारत सरकार के पीएमओ की मेल पर
अभी भी सुरक्षित पड़ी हुई हैं | उन्हें देखा जा सकता है |
कुलमिलाकर प्रकृति
के स्वभाव एवं समय के संचार को समझने की क्षमता के अभाव में महामारी एवं
मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं को समझना एवं उनके बिषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं हो पा रहा है | जिसका
मूल्य प्रजाजनों को अपने प्राणों पर खेलकर चुकाना पड़ रहा है |प्राकृतिक घटनाओं एवं महामारियों को
समझने के बिषय में भारत का प्राचीन वैदिकविज्ञान इस आधुनिकविज्ञान की
अपेक्षा अधिक समृद्ध था |
संसार में अपने आप से जो जो कुछ हो रहा है | वो सब समय के साथ होने
वाले परिवर्तन होते हैं | महामारी अपने आप से आती है और अपने आप से चली
जाती है |इसका मतलब महामारी का समय संचार के साथ पैदा होना घटना बढ़ना एवं
समाप्त होना है |
ऐसा मानकर महामारी
को समझने के लिए वेदवैज्ञानिक समयसंबंधी प्रक्रिया से मैंने जो अनुसंधान
किए हैं | उनसे महामारी का संक्रमण घटने और बढ़ने की प्रक्रिया प्राकृतिक
रूप से घटित होना प्रमाणित होता है |
कोरोना महामारी प्राकृतिक ही थी !
कोरोना महामारी से बचाव के लिए अनेकों उपाय औषधि टीके आदि तरह तरह के उपाय अपनाए जाते रहे |उस समय यदि संक्रमितों को संक्रमण से मुक्ति मिलने लगी तो ये समझ लिया जाता रहा कि इन्हीं उपायों औषधियों टीकों आदि के प्रभाव से संक्रमण से मुक्ति मिली होगी |
पहली लहर में ऐसे उपायों औषधियों टीकों आदि का प्रयोग नहीं था | उस असमंजस की स्थिति में चिकित्सा के बिषय में कुछ निर्णय निश्चय आदि हो पाता उससे पहले ही संक्रमण घटने लगा था |2020 की मई जून जुलाई में लोगों का संक्रमित होना बहुत कम हो गया था | इसलिए संक्रमण दिनोंदिन कमजोर पड़ता जा रहा था |
इस समय तक महामारी को न तो समझा जा सका था और न ही टीका औषधि या चिकित्सा की ऐसी कोई अन्य प्रक्रिया
ही खोजी जा सकी थी | जो महामारी से
मुक्ति दिलाने में सक्षम होती | यदि ऐसा कुछ था ही नहीं तो लोग स्वस्थ कैसे
होते जा रहे थे | ये स्वयं में शोध का बिषय है |
इसीप्रकार से 9 अगस्त 2020 से संक्रमण दिनोंदिन बढ़ते जा रहा था | 19 सितंबर 2020 को अचानक ऐसा क्या हो गया कि बिना किसी टीका औषधि चिकित्सा आदि के ही 19 सितंबर 2020 से संक्रमण अचानक घटने लगा | फरवरी 2021 तक दिनों दिन घटता हुआ संक्रमण प्रायः समाप्त हो गया था |
6 मई 2020 के बाद हो या फिर 19 सितंबर 2020 के बाद उस समय अचानक संक्रमण कम होने का कारण क्या था | ऐसे समयों में चिकित्सा की कोई व्यवस्था थी ही नहीं | यदि इससमय बिना किसी औषधि टीके आदि मनुष्यकृत प्रयास के बढ़ा हुआ संक्रमण समाप्त हो सकता है तो इसे प्राकृतिक रूप से स्वयं ही समाप्त हुआ माना जाएगा |
प्राकृतिक रूप से संक्रमण यदि कम हो सकता है तो इसके पैदा होने और बढ़ने का कारण भी प्राकृतिक ही होगा | इसमें गंभीरता से यह भी सोचा जाना चाहिए कि महामारी से सुरक्षा के लिए या संक्रमण से मुक्ति के लिए तो उपायों के नाम पर अनेकों प्रकार के उपाय किए जाते रहे | संक्रमण से मुक्ति मिलने के बाद उन्हीं उपायों को स्वस्थ होने का श्रेय दे दिया जाता रहा है,किंतु महामारी पैदा होने या संक्रमण बढ़ने के लिए तो किसी ने कोई प्रयत्न नहीं किए फिर भी महामारी पैदा हुई और संक्रमण समय समय पर स्वयं ही बढ़ता रहा था |
ऐसी परिस्थिति में जिस प्राकृतिक प्रक्रिया का अनुपालन करते हुए महामारी बिना किसी प्रयत्न के पैदा हो सकती है और उसका संक्रमण बढ़ सकता है |उसी प्राकृतिक प्रक्रिया से महामारीजनित संक्रमण कम भी हो महामारी समाप्त भी हो सकती है |
19 सितंबर 2020 से फरवरी 2021 तक संक्रमण दिनों दिन घटता जा रहा था | 2020 के अक्टूबर नवंबर दिसंबर महीनों में में वायुप्रदूषण बहुत बढ़ गया था ,किंतु कोरोना संक्रमण घटते घटते समाप्त सा होता जा रहा था | ऐसे ही अक्टूबर नवंबर 2020 में बिहार विधान सभा चुनाव की रैलियों में उमड़ती भारी भीड़ में कोविड नियमों का पालन न करने के बाद भी संक्रमण दिनों दिन घटता ही जा रहा था | इस घटने के लिए मनुष्यकृत किस प्रयत्न अथवा कारण को जिम्मेदार माना जा सकता है |ऐसा कोई कारण खोजा जाना यदि संभव नहीं हो पाता है तो फिर इसे प्राकृतिक मानने के अतिरिक्त कोई विकल्प बचता ही नहीं है |
महामारी आने के लिए मनुष्यकृत कार्य कितने जिम्मेदार !
कोरोना महामारी पैदा होने के लिए किसी देश विशेष की लैब से लीक हुए वायरस बढ़ने का कारण को कारण माना गया था |उससे सारे विश्व में कोरोना फैल गया | ऐसा बताया जाता रहा है ,किंतु यदि इसे सच मान भी लिया जाए तो वो वायरस एक बार लीक हुआ होगा | इसलिए उसके प्रभाव से जितना भी बढ़ना था उतना एक बार में ही बढ़ लेता और जितने दिन महीने वर्ष तक रहना होता उतना रह लेता किंतु एक बार घटने के बाद बढ़ना संभव न था | महामारी संबंधी संक्रमण बार बार बढ़ने घटने के लिए उसे जिम्मेदार माना जाना उचित नहीं होगा |
आग लगने की प्रक्रिया में आग और ईंधन दोनों की आवश्यकता होती है | दो में से किसी एक के होने से कहीं आग नहीं लग सकती है |ऐसे ही वायरस के लैब से लीक होने मात्र से महामारी इतना विशाल रूप नहीं ले सकती है |
माचिस की तीली जलाकर जिस स्थान पर फ़ेंकी जाती है |वह वहीं अपना प्रभाव छोड़ सकती है | उस आग को इधर उधर जाने के लिए उस आग को ज्वलनशील ईंधन का साथ चाहिए होगा | ईंधन के बिना आग स्वतः शांत हो जाएगी | इसलिए माचिस की तीली जला कर फ़ेंक देने मात्र से ईंधन के बिना आग विकराल रूप नहीं ले सकती है |
जलती हुई माचिस की तीली की तरह ही किसी देश की लैब से निकला हुआ वायरस उतने लोगों को ही संक्रमित कर सकता है |जो उसकी पहुँच में होंगे | इसके बाद वह स्वतः शांत हो जाएगा | इसके अतिरिक्त कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग जितने मिलते जाएँगे उन्हें संक्रमित करता जाएगा |
कोरोना महामारी यदि संपूर्ण विश्व में फैली है तो यह सोचना पड़ेगा कि वायरस किसी देश की लैब से निकल तो किंतु संपूर्ण विश्व में फैल नहीं सकता है | विश्व भर में फैलने के लिए उसे उस प्रसार के सहायक प्रसार माध्यम की आवश्यकता होती है | वह मनुष्यकृत प्रसार माध्यम क्या रहा होगा |
कहीं पेट्रोल गिर जाए और उसमें आग लग जाए तो जितना जलना होगा उतना एक बार में ही जलेगा | ऐसे ही किसी गाड़ी को धक्का देकर छोड़ दिया जाए तो वो एक ही बार में ही जितनी दूर तक जा सकती होगी जाएगी किंतु एक बार धीमी होने के बाद उसकी गति दोबारा अपने आप से नहीं बढ़ेगी |
ऐसा होना तभी संभव है जब गाड़ी के चलने रुकने एवं उसकी गति घटने बढ़ने का सिस्टम उसके अंदर ही लगा हो !तभी वो रुकने के बाद भी चल सकती है और उसकी गति धीमी होने के बाद भी तेज हो सकती है |
इसी प्रकार से महामारी के पैदा होने या उसका संक्रमण बढ़ने और घटने की प्रक्रिया में मनुष्यकृत यदि मानी जाए तो संक्रमण केकरोड़ों लोगों की जाचें होती हैं घटने बढ़ने के लिए किस मनुष्यकृत कारण को जिम्मेदार माना जाएगा |
महामारी उस लैब से निकले वायरस से पैदा हुई हो सकती है किंतु ऐसा ही हुआ होगा | विश्वास पूर्वक यह अभी तक नहीं कहा जा सका है | ऐसे कोई प्रमाण नहीं प्रस्तुत किए जा सके हैं | अभी तक यह एकआशंका मात्र है |जिसे प्रत्यक्ष को प्रमाण मानाने वाला विज्ञान कैसे स्वीकार कर सकता है |
काल्पनिक रूप से यदि इस बात को मान भी लिया जाए तो भी लैब से निकला वायरस प्रकृति का सहयोग मिले बिना संपूर्ण विश्व में फैल नहीं सकता है |दूसरी बात लोगों की कमजोर प्रतिरोधक क्षमता के बिना ये इतनी बड़ी संख्या में लोगों को संक्रमित नहीं कर सकता है |
अनुसंधान पूर्वक यह भी पता लगाया जाना चाहिए कि वर्तमान उन्नत विज्ञान के युग में जब छोटे छोटे रोगों में भी बहुत सारी जाँचे करवा ली जाती हैं | प्रतिदिन करोड़ों लोगों की स्वास्थ्य जाँचें हुआ करती हैं | उनमें प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के संकेत भी तो मिलने चाहिए थे कि
इतनी बड़ी संख्या में लोगों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती जा रही है |
इसी समय ऐसा क्यों हो रहा है | ऐसा होने से रोकने के लिए पहले से प्रयत्न प्रारंभ किए जाने चाहिए थे |
किसी नाव के असंतुलित होते ही संभावित परिस्थितियों का अनुमान नाविक लगा लेता है | विश्व में महामारी जैसी इतनी बड़ी घटना घटित होने जा रही थी |महामारी जैसे बिषयों पर निरंतर अनुसंधान करते रहने वाले लोगों को इसकी भनक तक न लग पाने का कारण क्या था | इसका पता भी लगाया जाना आवश्यक है ,क्योंकि समाज को ऐसे ही अनुसंधानों के बल पर निश्चिंत रहने का आश्वासन दिया जाता है |
इसलिए वायरस संपूर्ण विश्व में फैला कैसे !उसका प्रसार का माध्यम क्या रहा होगा !ये खोजा जाना आवश्यक है | ऐसे ही यह भी खोजा जाना चाहिए कि इसी समय इतनी बड़ी संख्या में लोगों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने का कारण क्या था | ये दोनों जिज्ञासाएँ यदि शांत कर ली जाती हैं तो इसे मनुष्यकृत महामारी माना जा सकता है अन्यथा इसे प्राकृतिक महामारी मानने के अतिरिक्त कोई और दूसरा विकल्प नहीं बचता है |
महामारी और मनुष्यकृत प्रयत्न !
महामारीसंबंधी संक्रमण बढ़ने के लिए यदि मनुष्यों के द्वारा कोविड नियमों का पालन न करने को जिम्मेदार माना जाता है तो महामारी पैदा होने के
लिए मनुष्यों के किन कार्यों को जिम्मेदार मानना चाहिए | ऐसे कार्य मनुष्यों ने जो पहले न किए हों | महामारी प्रारंभ होने के समय ही अचानक करने लगे हों | जिनके दुष्प्रभाव से महामारी पैदा हो गई |
इसी प्रकार से महामारी पैदा होने का कारण यदि प्राकृतिक परिवर्तन को माना जाए तो महामारी पैदा होने से पूर्व ऐसे कौन कौन से परिवर्तन कब कब हुए | जिनके परिणाम स्वरूप 2019 में महामारी पैदा हुई | संक्रमण बढ़ने घटने के समय भी प्रकृति में उसप्रकार के ऐसे कौन कौन परिवर्तन देखे जाते रहे हैं |
मौसम एवं महामारी को समझने के लिए किसी ऐसे विज्ञान एवं अनुसंधानों की आवश्यकता
है | जिनके होने या न होने के लक्षण पता लगें उनका अंतर या अंतर होने का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़े | इस कसौटी पर न तो जलवायुपरिवर्तन की कहानी उतरती है और न ही महामारी के स्वरूपपरिवर्तन की
विशेष बात यह है कि जलवायुपरिवर्तन एवं महामारी के स्वरूपपरिवर्तन जैसी काल्पनिक घटनाओं के न तो वैज्ञानिक प्रमाण होते हैं और न ही अनुसंधानजनित कोई स्पष्टता होती है | किसी बिषय में लगाया गया अंदाजा जब बार बार गलत निकलता जाता है और उस गलत होने का कारण खोजना भी संभव नहीं हो पाता है | उस समय जलवायुपरिवर्तन या महामारी के स्वरूपपरिवर्तन जैसे शब्दों का सहारा लिया जाता है |
वैदिकविज्ञान के आधार पर प्रकृति का रहस्य समझते ही प्राकृतिक घटनाओं का रहस्य स्वयं ही
उद्घाटित हो जाता है | इसलिए वैदिकवैज्ञानिक जलवायुपरिवर्तन या महामारी के स्वरूपपरिवर्तन जैसे शब्दों पर भरोसा नहीं करते हैं | प्रकृति का रहस्य समझते ही प्राकृतिक घटनाओं महामारियों आदि के बिषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना आसान हो जाता है |
प्राकृतिक परिवर्तनों के होने का कारण कोई मनुष्य आदि प्राणी नहीं होता है |ऐसे सभी परिवर्तन समय के प्रभाव से हो रहे होते हैं| भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात वर्षा बाढ़ जैसी घटनाओं के घटित होने या न होने में मनुष्यों की कोई भूमिका नहीं होती है | मनुष्य ऐसी घटनाओं को प्राकृतिक रूप से न तो पैदा कर सकते हैं और न ही रोक सकते हैं | इनके घटित होने का कारण समय होता है |
ऐसे ही जीवन में अनेकों प्रकार की ऐसी घटनाएँ घटित होती रहती हैं | जिनके घटित होने का कारण न तो वो व्यक्ति स्वयं होता है और न ही कोई दूसरा होता है,फिर भी उसप्रकार की घटनाएँ घटित हो रही होती हैं | उनके घटित होने का कारण समय होता है | बहुत स्वस्थ लोगों की आकस्मिक मृत्यु होते देखी जाती है | जिसका प्रत्यक्ष कारण न तो वह व्यक्ति स्वयं होता है और न ही कोई दूसरा होता है | ये समय के प्रभाव से घटित होने वाली घटना है |
ऐसे ही महामारी पैदा होने का कारण मनुष्यकृत प्रयत्नों का प्रभाव नहीं है | वो अपने आपसे पैदा होती है | इसका मतलब समय के प्रभाव से पैदा होती है | ऐसे ही किसी मनुष्य के संक्रमित होने में न तो उसका अपना प्रयत्न कारण होता है और न ही किसी दूसरे के प्रयत्न के प्रभाव से वो संक्रमित हो रहा होता है | जिन परिस्थितियों में रहने से कोई एक व्यक्ति संक्रमित होता है | उन्हीं परिस्थितियों में रहने वाले दूसरे बहुत लोग पूरी तरह स्वस्थ बने रहते हैं | एक जैसी परिस्थिति में बिना किसी प्रयत्न के कुछ लोगों का संक्रमित होना एवं कुछ लोगों का स्वस्थ बना रहना | ये उन अलग अलग लोगों पर पड़ रहे अलग अलग समय के प्रभाव का परिणाम होता है |
समय के प्रभाव से महामारी पैदा होती है और समय के प्रभाव से ही लोग संक्रमित होते हैं | जिसके संक्रमित होने का जब तक समय नहीं आता है तब तक संक्रमितों के बीच रहकर भी वो प्रायः संक्रमित नहीं होता है |बुरा समय आने पर महामारियाँ पैदा होती हैं | उनमें संक्रमित वही होते हैं जिनका अपना बुरा समय चल रहा होता है | संक्रमण बढ़ने घटने का कारण भी समय ही होता है | ऐसे ही महामारी समाप्त तब होती है जब अच्छा समय चलना प्रारंभ होता है |महामारी से संक्रमित लोग समय प्रभाव से ही स्वस्थ होते हैं |
कुल मिलाकर समय के प्रभाव से प्रकृति और जीवन यदि इतना अधिक प्रभावित होता है तो प्रकृति और जीवन को समय के आधार क्यों न समझा जाए | इसके लिए जो भी आवश्यक अनुसंधान करने पड़ें उन्हें भी किया या करवाया जाना चाहिए |
कुलमिलाकर प्रकृति और जीवन में होने वाले ऐसे सभी परिवर्तनों के होने का कारण समय होता है |जिनका कोई परिवर्तक नहीं होता है | इसलिए मौसम एवं महामारी जैसे घटनाओं को समय के आधार पर समझा जा सकता है | इनके बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया
जाना भी समय अथवा प्राकृतिक लक्षणों के आधार पर संभव है |
महामारी का संक्रमण एक बार बढ़ जाने के बाद बचाव के लिए प्रयास करने
के लिए देर हो चुकी होती है इसलिए संक्रमण कब बढ़ने वाला है उसके बिषय में
पूर्वानुमान यदि पहले से पता हो जिसके आधार पर पहले से सावधानी बरती जाए तब
तो प्रयास पूर्वक अपना बचाव करते हुए संक्रमण विस्तार को नियंत्रित किया
जा सकता है किंतु पहले से पूर्वानुमान पता न होने पर तो जब लोग बड़ी संख्या
में संक्रमित हो जाते हैं तब उपाय शुरू किए जाते हैं | तब तक बड़ा नुक्सान हो चुका
होता है | इस उद्देश्य से अपने अनुसंधान के आधार पर संक्रमण बढ़ने से पूर्व
पीएमओ की मेल पर संक्रमण बढ़ने के बिषय में मैं आगे से आगे पूर्वानुमान
भेजता रहा हूँ !सरकार ने यदि हमारे पूर्वानुमानों पर विश्वास किया होता तो भारत को कोरोना का भयावह स्वरूप कभी नहीं देखना पड़ता |
वस्तुतः प्रकृति में घटित होने वाली प्रत्येक घटना पूर्व निर्धारित होती है | समय के आधार पर देखा जाए तो प्रत्येक घटना का घटित होना बहुत पहले निश्चित हो चुका होता है | किस घटना का निर्माण कब होगा और उसे घटित कब होना है | यह भी निश्चित होता है | प्रत्येक घटना का निर्माण उसका समय आने पर होता है | समय के साथ साथ वह घटना निर्मित होकर अपने समय से ही घटित हो जाती है |
महामारी को समझने के लिए समयविज्ञान सबसे अच्छा विकल्प है |
इसके लिए कुशल समय वैज्ञानिक की आवश्यकता होती है | वही प्रकृति एवं
महामारी के रहस्य को समझने में सफल हो सकता है | इसके अतिरिक्त विश्व के
किसी अन्य विज्ञान एवं वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा महामारी के बिषय
में अनुमान पूर्वानुमान
आदि लगाना तो दूर महामारी के छोटे से छोटे अंश को भी समझ पाना संभव नहीं
है | ऐसा किया जाना यदि संभव होता तो कोरोना महामारी या मौसम संबंधी घटनाओं
के रहस्य को पहले ही उद्घाटित कर लिया गया होता | ये गंभीर चिंता की बात है कि इतनी बड़ी महामारी निर्मित होकर लोगों पर सीधा आक्रमण कर देती है | लोग संक्रमित होने एवं मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं | उस समय पता लगता है कि महामारी आ गई है | उस समय तो सभी को पता लग गया फिर इससे संबंधित उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधानों से ऐसा क्या लाभ हुआ |
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समय प्राकृतिक घटनाएँ और गणितविज्ञान !
मैं
पिछले 35 वर्षों से समय के आधार पर प्राकृतिक घटनाओं एवं रोगों महारोगों
के पैदा होने समाप्त होने की प्रक्रिया को समझने के लिए अनुसंधान करता आ
रहा हूँ | इसके साथ ही साथ मौसम एवं महामारी जैसी घटनाओं का वेग बढ़ने घटने का कारण खोजने के लिए निरंतर प्रयत्न करता आ रहा हूँ | ऐसे अनुसंधानों से प्राप्त अनुभवों के आधार पर मैं इस निष्कर्ष पर
पहुँचा हूँ कि भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात
वर्षा बाढ़ एवं महामारियाँ आदि जितने भी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ होती
हैं | वस्तुतः वे प्राकृतिकपरिवर्तन हैं | जो प्रकृति और जीवन में प्रतिपल
होते रहते हैं | इनमें कुछ छोटे तो कुछ बड़े परिवर्तन होते हैं | कुछ जो
अत्यंत सूक्ष्म परिवर्तन होते हैं | वे दिखाई नहीं देते हैं | कुछ जो
दिखाई देते हैं |उनका महत्त्व पता न होने के कारण उधर किसी का ध्यान नहीं
जाता है | ऐसे ही कुछ बड़े परिवर्तन होते हैं जिन्हें भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात
वर्षा बाढ़ एवं महामारियों के रूप में जाना जाता है | कुछ इससे भी बड़े
परिवर्तन होते हैं | जो हिंसक प्राकृतिक घटनाओं के रूप में घटित होते दिखाई
देते हैं | प्रकृति में होने वाले ऐसे सभी परिवर्तनों के घटित होने का कारण समय होता है| समय हमेंशा बदलता रहता है | समय के प्रभाव से प्रकृति भी बदलती रहती है |इसीलिए भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात वर्षा बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं के पैदा एवं समाप्त होने का कारण भी समय ही होता है |
प्रकृति में होने वाला प्रत्येक परिवर्तन अचानक नहीं होता है और न ही
किसी भी समय होने लगता है |सभी परिवर्तनों का समय सुनिश्चित होता है|
इसीलिए सूर्य चंद्र आदि ग्रहों के उदय या अस्त होने का जो समय निश्चित होता
है | उन्हें उसी समय पर उदय या अस्त होते
देखा जाता है | संपूर्ण ग्रहसंचार उस समय के अनुसार ही घटित होता रहता है
|सभी ऋतुओं का आना जाना समय के अनुसार ही निर्धारित होता है | प्रकृति में
जिसप्रकार का परिवर्तन जिससमय होना होता है | उस समय को खोज लिया जाए तो
उस घटना के घटित होने के समय को भी खोजा सा सकता है | जो उस समय में घटित
होने वाली होती है |
प्रकृति की भाषा गणित है | इसलिए प्रकृति संबंधी परिवर्तनों को गणित से
ही समझा जा सकता है | जिस गणितविज्ञान के आधार पर सूर्य चंद्र ग्रहणों के
बिषय में सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | सूर्य चंद्र ग्रहणों की तरह ही भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात वर्षा बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं का घटित होना भी उन्हीं प्राकृतिक परिवर्तनों का ही हिस्सा हैं | इसलिए उसी गणित विज्ञान के आधार पर भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात वर्षा बाढ़ एवं महामारियों आदि के बिषय में भी अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगाया जाना संभव है|
समय संचार संबंधी इन्हीं अनुभवों के आधार पर मैं लगभग सभी प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में अनुसंधान करता रहता हूँ | उसी क्रम में बार बार ऐसा ऐसा प्रतीत होता रहा कि ऐसा कोई महारोग पैदा होने का समय आ रहा है |
गणितविज्ञान व्यवहारविज्ञान और महामारी
गणितविज्ञान के आधार पर तो महामारी (कोरोना ) जैसे किसी बड़े रोग की संभावनाएँ काफी पहले पता लग जाती हैं ,किंतु इनसे संबंधित लक्षणों का प्रत्यक्ष परीक्षण किए बिना किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचना कठिन होता है |
इसलिए किसी भी प्राकृतिकघटना के बिषय में गणित के द्वारा जो बहुत पहले पता लग चुका हो,उसके पूर्व लक्षण प्रत्यक्ष व्यवहार में भी दिखाई देने चाहिए |प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों प्रकार के अनुसंधानों के आधार पर परीक्षण होने के बाद ही किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है |
किसी घटना के बिषय में गणित के द्वारा जो पता लग पाता है | वो तो संपूर्ण विश्व से संबंधित जानकारी होती है |गणित के आधार पर बहुत अधिक तो उसकी दिशा के बिषय में अनुमान लगाया जा सकता है कि ऐसी घटना पृथ्वी के मेरु भाग से किस दिशा में घटित हो सकती है |
किसी भी घटना के घटित होने का निश्चित स्थान पता लगाने के लिए उस घटना के घटित होने से पहले वहाँ के प्राकृतिक वातावरण में प्रकट हो रहे प्राकृतिक लक्षणों प्रभावों आदि के चिन्हों की पहचान करनी होती है| उस घटना से संबंधित चिन्ह जिस क्षेत्र में दिखाई पड़ने लगते हैं | उस घटना के उसी क्षेत्र में घटित होने की अधिक संभावना होती है | ये प्रत्यक्ष लक्षणों की पहचान ही व्यवहार विज्ञान है |
कुलमिलाकर गणितविज्ञान के द्वारा घटनाओं के निर्मित होने के समय और प्रक्रिया का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है ,किंतु उसके घटित होने का निश्चित स्थान प्रभाव आदि का अनुमान पूर्वानुमान आदि व्यवहार विज्ञान से ही समझा जा सकता है |
किसी भी अनुसंधान के लिए आवश्यक होता है कि किसी घटना के बिषय में एक बार जो अनुभव हुए हों |उसी प्रकार की दूसरी घटनाओं पर उनका पुनः परीक्षण किया जाए ! किंतु महामारियों का आपसी अंतराल काफी अधिक होता है | इसलिए इनका परीक्षण इस प्रकार से किया जाना संभव नहीं होता है | इसलिए लक्षणों के आधार पर इन्हें पहचानना कठिन होता है |
व्यवहारविज्ञान से अभिप्राय प्रत्यक्ष लक्षणों के आधार पर महामारी को पहचानना होता है | जिस प्रकार से कोई स्त्री जब किसी बच्चे को गर्भ में धारण करती है तो उसके शरीर में कुछ ऐसे परिवर्तन होने लगते हैं | जो हमेंशा होते नहीं देखे जाते हैं | गर्भ के होने के समय की निश्चित जानकारी न होने के बाद भी अनुभवी माताएँ उन विभिन्न प्रकार के लक्षणों को देखकर गर्भ होने का अनुमान लगा लिया करती हैं |
इसीप्रकार से प्रकृति के गर्भ में जब कोई घटना पैदा होकर पलना बढ़ना प्रारंभ होती है तो उसके गर्भ लक्षण भी प्राकृतिक वातावरण में प्रकट होने लगते हैं | अनुभवी लोग उन लक्षणों के आधार पर ऐसी घटनाओं को आगे से आगे पहचान लिया करते हैं |
जिसप्रकार से गर्भिणी स्त्री की भूख प्यास रहन सहन सोने जागने उठने बैठने सोचने समझने आदि व्यवहारों में कुछ ऐसे परिवर्तन होते देखे जाते हैं |जो केवल गर्भकाल में ही प्रकट होते हैं | गर्भ प्रसव के बाद ये सब स्वतः शांत हो जाते हैं |
इसीप्रकार से प्रकृति भी स्त्री की तरह ही है और समय ही पुरुष है | विविधप्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ ही उनकी संतानें हैं | प्रकृति और समय के संयोग से अनेकों प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं का गर्भ स्थापन होता है | जिस प्रकार की घटना को प्रकृति जब गर्भ में धारण करती है | जितने समय तक वह घटना गर्भ में रहती है | उतने समय तक प्रकृति में उसी प्रकार के गर्भ लक्षण प्रकट होते रहते हैं | ऐसा प्राकृतिक गर्भ होने पर प्रकृति में कुछ उसप्रकार के बदलाव होने लगते हैं | जो उससे संबंधित घटना के घटित होने के बाद स्वतः समाप्त हो जाते हैं | ये गर्भजनित उपद्रव होते हैं |
महामारी जब प्रारंभ होनी होती है| उसके कुछ पहले से ऋतुएँ अपनी समय सीमा लाँघने लगती हैं | वे कभी कभी अपने स्वभाव के विरुद्ध व्यवहार करने लगती हैं | अतिवर्षा या सूखा, बार बार भूकंप, बज्रपात, तूफ़ान एवं तापमान का असीमित रूप से घटना बढ़ना आदि | महामारी गर्भित प्रकृति के लक्षण प्रकट होने लगते हैं | इन्हें समझकर ही भावी रोगों महारोगों को समझा जाना संभव है | इनके बिषय में सूक्ष्म अध्ययन करके भावी महामारी या कुछ अन्य प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है |
किस प्रकार के प्राकृतिक लक्षण किसप्रकार की प्राकृतिक घटना के बिषय में सूचना दे रहे होते हैं | इसे समझकर घटनाओं के बिषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जाता है | ऐसे ही प्रायः सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगाने की आवश्यकता होती है | कोरोना महामारी के आने के लगभग 12 वर्ष पहले से प्रकृति में कुछ उस प्रकार के प्राकृतिक लक्षण प्रकट होने लगे थे |जो प्रकृति में कुछ विशेष घटित होने के संकेत देने लगे थे | सन 2016 के बाद यह स्पष्ट होने लगा था कि प्रकृति का झुकाव प्राकृतिक तत्वों में असंतुलन पैदा करता जा रहा है | ये प्राणियों के स्वास्थ्य के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं | इस प्रकार के लक्षण बढ़ते देखकर मैंने सर्व प्रथम 20 अक्टूबर 2018 को भारत के पीएमओ को मेल भेजी थी |
20 अक्टूबर 2018 को पीएमओ को भेजी गई मेल में लिखित स्वास्थ्य संबंधी विशेष अंश !
" 10 अक्टूबर 2018 से लेकर 30 नवंबर 2018 तक लगभग 50 दिन का समय सारे विश्व के लिए ही अच्छा नहीं है !ये समय जैसे जैसे आगे बढ़ता जाएगा वैसे ही वैसे इस समय का दुष्प्रभाव उत्तरोत्तर क्रमशः और अधिक बढ़ता जाएगा !इसमें प्राकृतिक आपदाएँ हों या मनुष्यकृत लापरवाही उत्तेजना उन्माद आदि का अशुभ असर इस समय विशेष अधिक होगा ! वायु प्रदूषण सीमा से काफी अधिक बढ़ जाएगा !स्वाँस,सूखी खाँसी की समस्याएँ काफी अधिक बढ़ जाएँगी !घबड़ाहट बेचैनी कमजोरी चक्कर आने जैसे रोगों से भय फैलेगा !इस समय थोड़ा सा विवाद भी बहुत बड़े संघर्ष का स्वरूप धारण कर सकता है !यद्यपि ऐसी घटनाएँ इस समय में सारे विश्व में घटित होंगी !"
ये महामारी का पूर्व रूप ही था | जो सन 2018 में थोड़े समय के लिए आया था | इस समय संक्रमण काल कम होने के कारण इसका सामान्य प्रभाव कुछ देशों प्रदेशों में ही दिखाई पड़ा था |
मैंने अपने समयसंबंधी अनुसंधान के द्वारा महामारी के बिषय में शुरू से
समाप्ति तक वो सबकुछ पता लगाने का प्रयत्न किया है | जो जो महामारी को
समझने के लिए आवश्यक था | महामारी संबंधी प्रत्येक लहर की जानकारी एवं
अनुमान पूर्वानुमान आदि मेल के माध्यम से भारत के पीएमओ की
मेलपर आगे से आगे भेजता रहा हूँ |
इसी क्रम में19
मार्च 2020 को पीएमओ को भेजी गई मेल में मैंने महामारी के स्वभाव प्रभाव विस्तार प्रसार
माध्यम अंतर्गम्यता अनुमान पूर्वानुमान आदि के बिषय में जो जो लिखा है | वो सब सही घटित हुआ है |इनकी गणना मैंने समयविज्ञान के अनुसार ही की थी |
19
मार्च 2020 की मेल का महामारी पर समय का प्रभाव पड़ने से संबंधित अंश -"
" किसी भी
महामारी की शुरुआत समय के बिगड़ने से होती है और समय के सुधरने पर ही
महामारी की समाप्ति होती है | समय से पहले इस पर नियंत्रण करने के लिए
अपनाए जाने वाले प्रयास उतने अधिक प्रभावी नहीं होते हैं |"
19
मार्च 2020 की मेल का महामारी पैदा होने की प्रक्रिया से संबंधित अंश -"
" कोई भी महामारी तीन
चरणों में फैलती है और तीन चरणों में ही समाप्त होती है | महामारी फैलते
समय सबसे बड़ी भूमिका समय की होती है | सबसे पहले समय की गति बिगड़ती है |
ऋतुएँ समय के आधीन हैं इसलिए अच्छे या बुरे समय का प्रभाव सबसे पहले ऋतुओं
पर पड़ता है ऋतुओं का प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है उसका प्रभाव वृक्षों
बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ता है
वायु और जल पर भी पड़ता है इससे वहाँ के कुओं नदियों तालाबों आदि का जल
प्रदूषित हो जाता है | इन परिस्थितियों का प्रभाव जीवन पर पड़ता है | इसलिए
शरीर ऐसे रोगों से पीड़ित होने लगते हैं जिनमें चिकित्सा का प्रभाव बहुत कम
पड़ पाता है |"
19
मार्च 2020 की मेल का महामारी से मुक्ति मिलने की प्रक्रिया से संबंधित अंश -"
" पहले समय की गति सँभलती है उस प्रभाव से
ऋतुविकार नष्ट होते हैं उससे पर्यावरण सँभलता है |उसका प्रभाव वृक्षों
बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की
वस्तुओं पर पड़ता है वायु और जल पर पड़ता है |कुओं नदियों तालाबों आदि का
जल प्रदूषण मुक्त होकर जीवन के लिए हितकारी होने लग जाता है | "
19
मार्च 2020 की मेल का निदान एवं चिकित्सा न हो पाने से संबंधित अंश -
"इसमें
चिकित्सकीय प्रयासों
का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा | क्योंकि महामारियों में होने वाले रोगों
का न कोई लक्षण होता है न निदान और न ही कोई औषधि होती है |" अर्थात इस
महारोग के लक्षणों को न तो पहचाना जा सकेगा और न ही चिकित्सा के द्वारा इस महारोग से मुक्ति दिलाई जा सकेगी |
19
मार्च 2020 की मेल का व्यक्तिगत तौर पर संक्रमण से मुक्ति पाने के उपाय से संबंधितअंश -
" ऐसी महामारियों
को सदाचरण स्वच्छता उचित आहार विहार आदि धर्म कर्म ,ईश्वर आराधन एवं
ब्रह्मचर्य आदि के अनुपालन से जीता जा सकता है |" अर्थात ऐसा संयमवरत कर अपने को रोगमुक्त किया जा सकता है |
19
मार्च 2020 की मेल में महामारी प्रथम लहर के पूर्वानुमान संबंधी अंश -
"महामारी बढ़ने का यह समय 24 मार्च 2020 तक चलेगा | उसके बाद इस महामारी का समाप्त होना
प्रारंभ हो जाएगा जो क्रमशः 6 मई तक चलेगा | |उसके बाद समय में
पूरी तरह सुधार हो जाने के कारण संपूर्ण विश्व अतिशीघ्र इस महामारी से
मुक्ति पा सकेगा |"
विशेष बात :
19
मई 2020 को पीएमओ की मेल में मैंने पहले ही लिख दिया था कि 6 मई के बाद
संक्रमण दिनों दिन कम होता चला जाएगा | ये हमें वेदविज्ञान संबंधी
अनुसंधानों के आधार पर पहले से ही पता था कि 6 मई के बाद समय बदलेगा |उस
बदलाव के कारण लोग संक्रमण से मुक्त होते चले जाएँगे | जून जुलाई आदि महीनों में संक्रमण दिनोंदिन घटते जाने का कारण यदि
समय नहीं था तो दूसरा और क्या हो सकता है | उस समय तो कोई औषधि या चिकित्सा प्रक्रिया भी नहीं थी |
दो संयुक्त लहरों के बिषय में विशेष बात :
वैदिकविज्ञान की दृष्टि से देखा
जाए तो महामारी की पहली लहर 6 मई 2020 को समाप्त हो गई थी |उसके बाद
दूसरी लहर 8 अगस्त 2020 से प्रारंभ होकर 18 सितंबर 2020 तक शिखर पर
पहुँची थी | उसके बाद संक्रमण कम होना प्रारंभ हो गया था जो 13 नवंबर 2020
में समाप्त हुआ था | इसमें विशेष बात यह है कि 6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 के
बीच के समय में संक्रमण बहुत कमजोर पड़ जाने पर भी पहले संक्रमित होते रहे
लोगों की जाँच रिपोर्टें इस समय में आती रही थीं | इसलिए महामारी जब कमजोर होती जा रही थी ,तब भी लोग संक्रमित पाए जा रहे
थे | इसलिए इन दोनों लहरों को मिलाकर एक करके देखा जाता रहा है |
19
मार्च 2020 को पीएमओ को भेजी गई मेल का चित्र |
16 जून 2020 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश ! (9 अगस्त से 16 नवंबर 2020 तक रहेगी )
"इसके बाद यह
महामारी 9 अगस्त से दोबारा प्रारंभ होनी शुरू हो जाएगी जो 24 सितंबर तक
रहेगी !उसके बाद यह संक्रमण स्थायी रूप से समाप्त होने लगेगा और
16 नवंबर के बाद यह स्थायी रूप से समाप्त हो जाएगा !"
इस बिषय में वैदिकविज्ञान की प्रामाणिकता :
16 जून 2020 को जब संक्रमण दिनोंदिन घटता जा रहा था | इसके बढ़ने के आसार दूर दूर तक नहीं दिखाई दे रहे थे | उसी 16 जून को वैदिकअनुसंधानों के आधार पर पूर्वानुमान लगाकर मैंने यह सूचना पीएमओ की मेल पर भेजी थी कि महामारी की अगली लहर 9
अगस्त से दोबारा प्रारंभ होनी शुरू हो जाएगी जो 24 सितंबर तक
रहेगी !उसके बाद समाप्त होना शुरू होगा जो क्रमशः 16 नवंबर 2020 तक जाएगा |
समय संचार में हुए परिवर्तनों के आधार पर मैंने यह पूर्वानुमान लगाया था
|
4 अगस्त 2020 को संयुक्त राष्ट्र संघ को भेजी गई मेल का अंश !(9 अगस्त से 16 नवंबर 2020 तक रहेगी )
"8 अगस्त के बाद कोरोना संक्रमण एक बार फिर बढ़ने लगेगा और यह कहीं भी समाज के बड़े हिस्से को संक्रमित कर सकता है।अगले 50 दिनों में यह संक्रमण इतना बढ़ सकता है कि यह एक बार फिर अपने पुराने स्वरूप में पहुँच सकता है।रिकवरी दर बहुत कम होने लग सकती है।अनुमान है कि 24 सितंबर तक संक्रमण तेज़ी से बढ़ सकता है।इसलिए, सावधानी बरतना बेहद ज़रूरी है।इसलिए, हमें यह आकलन करने के लिए लगभग 50 दिन और इंतज़ार करना चाहिए कि यह महामारी स्थायी रूप से समाप्त होने लगी है या नहीं।"
23 दिस॰ 2020को पीएमओ में भेजी गई मेल के वैक्सीन निषेध संबंधी कुछ अंश !
प्रधानमंत्री जी ! "आपसे मेरा विनम्र
निवेदन है कि अच्छी प्रकार परीक्षण करवाकर ही कोरोना वैक्सीन लोगों को
लगाने की अनुमति दी जानी चाहिए |वेद वैज्ञानिक दृष्टि में मैं संपूर्ण
विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि ब्रिटेन में फैल रहा कोरोना वायरस का नया
स्वरूप लोगों को लगाए जा रहे कोरोना वायरस के दुष्प्रभाव हो सकते हैं |"
"महामारी से संक्रमितों की संख्या बिना किसी दवा या
वैक्सीन के स्वयं ही दिनोंदिन तेजी से कम होती जा रही है |केवल श्रेय लेने
की होड़ में सम्मिलित लोगों के द्वारा वैक्सीन के रूप में एक नई समस्या को
जन्म दिया जा सकता है |"
"यदि कोरोना महामारी भारत वर्ष में लगभग
समाप्त हो ही चुकी है तो किसी वैक्सीन के रूप में एक नए प्रकार की समस्या मोल लेने की आवश्यकता ही आखिर क्या है ?"
"किसी भी रोग से मुक्ति दिलाने अथवा उसकी दवा या वैक्सीन
बनाने के लिए सबसे पहले चिकित्सा के सिद्धांत के अनुशार उस रोग का स्वभाव
लक्षण संक्रामकता वेग विस्तार आदि समझना आवश्यक होता है अन्यथा उस रोग की
चिकित्सा किस आधार पर की जा सकती है और उसकी दवा या वैक्सीन कैसे बनाई जा
सकती है? "
"मान्यवर !वेदवैज्ञानिक होने के नाते आपसे मैं केवल इतना ही निवेदन करना
चाहता हूँ कि बिना वैक्सीन लाए ही भारतवर्ष में कोरोना लगभग समाप्त हो ही
चुका है जो रहा बचा है वह भी अतिशीघ्र समाप्त हो जाएगा (इसका पूर्वानुमान
मैं 16 जून को ही आपको भेज चुका हूँ |)"
" ऐसी परिस्थिति में यदि वैक्सीन नहीं लगाई जाती है तब तो कोरोना
अतिशीघ्र समाप्त हो ही जाएगा क्योंकि वातावरण में अब कोरोना वायरस के
उत्पन्न होने की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है और भारत समेत समस्त विश्व को
कोरोना के इस नए स्वरूप से अब डरने की आवश्यकता बिल्कुल ही नहीं है | यदि
वैक्सीन लगाई जाती है तो ब्रिटेन की तरह ही उसके द्वारा फैलने
वाले संक्रमण विस्तार का अनुमान मुझे नहीं है |मेरे अनुसंधान के अनुसार
कोरोना जैसी महामारी से मुक्ति दिलाने वाली वैक्सीन निर्माण वाले दावे बहुत
विश्वसनीय नहीं हैं | "
23 दिस॰ 2020की मेल पर विनम्र निवेदन !
वैक्सीन को न लगाने के लिए कहने का मेरा उद्देश्य वैक्सीन के गुण दोष देखना नहीं था !ऐसा
मैं कर भी नहीं सकता था !क्योंकि मेरा वो बिषय भी नहीं है | मुझे इतना पता था कि इस समय यदि ऐसा कोई वैक्सीन लगाने जैसा प्रयत्न किया जाएगा तो उसके दुष्प्रभाव अधिक होंगे | यह काफी कठिन समय था | वैक्सीन लगेगी तो संक्रमण बढ़ेगा ही और जैसे जैसे वैक्सीन लगती जाएगी वैसे वैसे संक्रमण बढ़ता जाएगा | वैक्सीन कब कितनी लगेगी या नहीं भी लगेगी इसका मुझे अनुमान नहीं
था |इसलिए इसके बाद वाली लहर कब आएगी कितनी भीषण होगी !इसके बिषय में मैंने पहले से कोई पूर्वानुमान
पीएमओ को नहीं भेजा था ,क्योंकि यह लहर वैक्सीन लगाने या न लगाने पर निर्भर थी | इसलिए जैसे जैसे वैक्सीन लगती गई वैसे वैसे संक्रमण बढ़ते चला गया |समय और वैक्सीन के प्रभाव से वो बढ़ना ही था | संक्रमण जब अधिक बढ़ गया तो सरकारों में सम्मिलित मेरे कुछ मित्रों ने व्यक्तिगत तौर पर किसी ऐसे यज्ञ को करने के लिए मुझसे कहा कहा जिससे महामारी को रोका जा सके | ये 19 अप्रैल 2021 की बात है | इसे से प्रेरित होकर मैंने 19 अप्रैल 2021को ही रात्रि 11. 57 पर पीएमओ को मेल भेजी थी |
19 अप्रैल 2021को पीएमओ को भेजी गई मेल के "यज्ञ के द्वारा महामारी नियंत्रण करने संबंधी कुछ अंश ! "
"महोदय ! ऐसी परिस्थिति में जनता की ब्यथा से ब्यथित होकर व्यक्तिगत रूप
से मैं एक बड़ा निर्णय लेने जा रहा हूँ |अपने अत्यंत सीमित संसाधनों से कल
अर्थात 20 अप्रैल 2021 से
"श्रीविपरीतप्रत्यंगिरामहायज्ञ" अपने ही निवास पर गुप्त रूप से प्रारंभ
करने
जा रहा हूँ | यह कम से कम 11 दिन चलेगा ! इसयज्ञ रूपी 'ईश्वरीयन्यायालय'
में विश्व की समस्त भयभीत मानव जाति की ओर से व्यक्तिगत रूप से पेश होकर
क्षमा माँगने का मैंने निश्चय किया है |मुझे विश्वास है कि ईश्वर क्षमा
करके विश्व को महामारी से मुक्ति प्रदान कर देगा | यज्ञ प्रभाव के विषय में मेरा अनुमान है कि ईश्वरीय कृपा से 20
अप्रैल 2021 से ही महामारी पर अंकुश लगना प्रारंभ हो जाएगा ! 23 अप्रैल के
बाद महामारी जनित संक्रमण कम होता दिखाई भी पड़ेगा !और 2 मई के बाद से
पूरी तरह से संक्रमण समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा | "
18 दिस॰ 2021 को पीएमओ को भेजी गई मेल का तीसरी लहर के बिषय में पूर्वानुमान बिषयक अंश ! "
"वर्तमान समय में जिस वायरस की चर्चा की जा रही है वह महामारी से संबंधित
नहीं है वह ऋतु जनित सामान्य विकार है इससे महामारी की तरह डरने या डराने
की आवश्यकता नहीं है |वर्तमान समय में जो संक्रमितों की संख्या बढ़ती दिख
रही है वह महामारी संक्रमितों की न होकर अपितु सामान्य रोगियों की है | यह
सामान्य संक्रमण भी 20 जनवरी 2022 से पूरी तरह समाप्त होकर समाज संपूर्ण
रूप से महामारी की छाया से मुक्त हो सकेगा |"
20 फ़र॰ 2022 को आगामी लहर के बिषय में पीएमओ को भेजी गई मेल का पूर्वानुमान बिषयक अंश ! "कोरोना महामारी की चौथी लहर
27 फरवरी 2022 से प्रारंभ होगी और 8 अप्रैल 2022 तक क्रमशः बढ़ती चली जाएगी |इसके बाद 9 अप्रैल 2022 से भगवती दुर्गा जी की कृपा से महामारी की चौथी लहर समाप्त होनी प्रारंभ हो जाएगी और धीरे धीरे समाप्त होती चली जाएगी | "
29 अप्रैल 2022 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
"कोरोना महामारी की पाँचवीं लहर 3 जुलाई 2022 से प्रारंभ
होने जा रही है जो 15 अगस्त 2022 तक संपूर्ण वायु मंडल में व्याप्त रहेगी |
उसके संपर्क वाले लोग संक्रमित होते जाएँगे | इसके बाद महामारी की
पाँचवीं लहर नियंत्रित होनी प्रारंभ होगी ,जो प्रत्यक्ष रूप से 21 अगस्त
2022 से समाप्त होते देखी जाएगी |"
21 अक्टू॰ 2022को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
"24 अक्टूबर 2022 से महामारी जनित संक्रमण फिर से बढ़ना प्रारंभ होगा जो 18
नवंबर 2022 तक रहेगा | इस समय में संक्रमितों की संख्या क्रमशःबढ़ती जाएगी
!इसमें भी 14 से 18 नवंबर 2022 के बीच के समय में संक्रमितों की संख्या इस
बार की परिस्थिति के अनुसार सबसे अधिक रहेगी |"
29 दिस॰ 2022को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
" कोरोना महामारी की अगली लहर 10 जनवरी 2023 से प्रारंभ होगी !14 जनवरी
2023 से बढ़नी प्रारंभ होगी और 22 जनवरी 2023
से
महामारी जनित संक्रमण काफी
तेजी से बढ़ना प्रारंभ हो जाएगा | 14 फरवरी 2023 से 20 फरवरी 2023 तक
संक्रमितों की संख्या कुछ कम होनी शुरू होगी ! 21 फरवरी 2023 से संक्रमितों की संख्या फिर बढ़नी शुरू होगी जो 16 मार्च
2023 तक बढ़ेगी उसके बाद समाप्त
होनी शुरू होगी जिसमें करीब 30 दिन का समय लगेगा ! विशेष बात यह है कि संक्रमण बहुत अधिक नहीं बढ़ेगा फिर भी तीसरी लहर से कम भी नहीं रहेगा ! बहुत अधिक
बढ़ने या हिंसक होने से रोकने के लिए आवश्यक सावधानी
बरतना श्रेयस्कर रहेगा | "
6 जुल॰ 2023 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
"2-10-2023 से वातावरण में महामारी संबंधी विषाणुओं का बढ़ना एक बार फिर शुरू होगा | इसी समय से लोग संक्रमित होने शुरू हो जाएँगे |इसके बाद 20-10-2023 से संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़नी शुरू हो जाएगी | संक्रमितों की संख्या बढ़ने
का यह क्रम 2-11 -2023 तक यूँ ही चलता रहेगा |इसके बाद धीरे धीरे संक्रमण
रुकना शुरू होगा,किंतु संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण में विद्यमान होने के
कारण इससे मुक्ति मिलने की प्रक्रिया में लगभग 33 दिन और लग जाएँगे |लगभग
5-12-2023 तक के आस पास महामारी की इस लहर से मुक्ति मिलनी संभव हो पाएगी
|मेरा ऐसा अनुमान है | "
23 मई 2024को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
" 29 जून 2024 से प्राकृतिक वातावरण दिनोंदिन प्रदूषित होते देखा जा सकता है
|इसी बीच कुछ देशों में महामारी जनित संक्रमण के बढने की प्रक्रिया
प्रारंभ हो सकती है |यद्यपि इसकी गति धीमी होगी फिर भी 14 नवंबर 2024 के पहले पहले महामारी का एक झटका लग सकता है | इसे प्राकृतिक शक्तियों के द्वारा किया जाने वाला महामारी का ट्रायल कहा जा सकता है | 5 अप्रैल 2025 से महामारीजनित संक्रमण अत्यंत तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई
देगा | संभव है कि ये कोरोना महामारी की दूसरी लहर की तरह ही विशेष डरावना
स्वरूप धारण करे | जिसमें विश्व का बड़ा भाग संक्रमित हो जाए | वैश्विक
दृष्टि से देखा जाए तो भिन्न भिन्न देशों में महामारी का यह तांडव 2025 के अप्रैल
मई दोनों महीनों में देखने को मिल सकता है | यद्यपि इसके बिल्कुल स्पष्ट
लक्षण सितंबर 2024 तक प्रकट हो जाएँगे | जिन्हें परोक्ष विज्ञान के द्वारा
देखा जा सकेगा |आवश्यकता पड़ी तो उस समय इस पूर्वानुमान की तारीखों में 10
प्रतिशत तक परिवर्तन करना पड़ सकता है |"
19 अग॰ 2024 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
20 अगस्त 2024 से महामारी जैसे महारोगों के बढ़ने का समय शुरू
हो रहा है | इससमय से प्राकृतिक वातावरण तेजी से बिषैला होना प्रारंभ हो
जाएगा | इससे वायु मंडल के साथ साथ खाने पीने की वस्तुएँ संक्रमित होने
लगेंगी |बिषैले वातावरण में साँस लेने से एवं संक्रमित वस्तुओं के खानपान
से लोग स्वतः संक्रमित होते चले जाएँगे | समय प्रभाव से औषधियों के भी
संक्रमित हो जाने के कारण संक्रमितों को औषधियों के सेवन या चिकित्सा आदि
से भी कोई लाभ नहीं होगा | 22 सितंबर 2024 से संक्रमितों की संख्या तेजी से
बढ़ने लगेगी | 11 से 18 अक्टूबर के बीच में यह लहर सबसे ऊँचे स्तर पर पहुँच
जाएगी | 20 अक्टूबर 2024 से संक्रमितों की संख्या धीरे धीरे कम होनी
प्रारंभ हो जाएगी | इसी क्रम में ये लहर यहीं से समाप्त होनी शुरू हो
जाएगी |
4 मार्च 2024 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
" 1 मई 2025 से महामारीजनित संक्रमण अत्यंत तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई
देगा | संभव है कि ये कोरोना महामारी की तरह ही डरावना
स्वरूप धारण करे | जिसमें विश्व के बहुत लोग संक्रमित होते देखे जाएँ|यद्यपि 19 मई 2025 तक महामारी का यह स्वरूप समाज को संक्रमित करता रहेगा | उसके बाद स्वास्थ्य लाभ होना प्रारंभ हो जाएगा | "
16 मई 2025 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
"25 सितंबर 2025 से
कोरोनामहामारी की आगामी लहर प्रारंभ होगी | यह क्रमशः बढ़ती चली जाएगी |
इससे लोग तेजी से संक्रमित होते चले जाएँगे | ये कई महीनों तक चलेगी |
महामारी की यह लहर 31जनवरी 2026 तक संपूर्ण वायुमंडल को बिषैला करती रहेगी
| उसके बाद विराम लगने लगेगा | 12 फरवरी 2026 के बाद समाज को भी यह भरोसा
होने लगेगा | अब महामारी से मुक्ति मिल जाएगी | "
6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 के बीच जो ट्रायल सफल हुए वही दूसरी लहर में असफल क्यों ?
बिचारणीय बिषय यह है कि 6
मई 2020 से 8 अगस्त 2020 के बीच जिन औषधियों टीकों आदि को कोरोना संक्रमण
से मुक्ति दिलाने में सक्षम माना गया था | अप्रैल मई 2021 पहुँचते पहुँचते
उन्हीं औषधियों टीकों आदि के बिषय में यह कहा जाने लगा कि उनमें संक्रमण से मुक्ति दिलाने की क्षमता नहीं है |
जिन औषधियों टीकों आदि के प्रभाव को महामारी से मुक्ति दिलाने पहले सक्षम माना गया| उन्हीं औषधियों टीकों आदि के बिषय में अप्रैल 2021 के बाद में कहा जाने लगा कि उनमें महामारी से मुक्ति दिलाने की उस प्रकार की क्षमता नहीं है |
विज्ञान एकप्रकार का, वैज्ञानिक एक प्रकार के और अनुसंधान एक प्रकार के उनसे प्राप्त जानकारी में इतना अंतर कैसे आया | इस
बिषय में रिसर्च करने के लिए क्या ऐसा कोई सक्षम विज्ञान ही नहीं था |
कहीं ऐसा तो नहीं था कि किसी सक्षम विज्ञान के अभाव में जब जिसप्रकार की
घटना घटित होने लगती थी, तब उसप्रकार की घटना घटित होने की संभावना व्यक्त
कर दी जाती थी |
इससे अलग यदि कोई वास्तविक विज्ञान भी था वैज्ञानिक भी थे और अनुसंधान भी होते थे,तब तो ये यह पता लगा ही लिया जाना चाहिए था कि 6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 के बीच दिनोंदिन संक्रमण कमजोर होते जाने का कारण क्या था ? उससमय तो संक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए यदि कोई औषधि इंजेक्शन थैरेपी आदि भी उपलब्ध नहीं थी |
इसका कारण यदि ये माना जाए कि एलोपैथ रेमडेसिविर जैसे इंजेक्शनों और प्लाज्मा थैरेपी जैसी चिकित्सा प्रक्रियाओं तथा होम्योपैथ की आर्सेनिक एल्बम-30 एवं पतंजलि की कोरोनिल जैसी औषधियों के प्रभाव से 6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 के बीच दिनोंदिन संक्रमण कमजोर पड़ता जा रहा था तो कोरोना की दूसरी लहर अर्थात अप्रैल मई 2021 में इन्हीं औषधियों इंजेक्शनों थेरेपियों के द्वारा लोगों की महामारी से सुरक्षा क्यों नहीं की जा सकी | संक्रमितों को संक्रमण से मुक्ति क्यों नहीं दिलाई जा सकी ?
6 मई 2020 के बाद 8 अगस्त 2020 बीच संक्रमण घटने का कारण समय था !
इस समय संक्रमण घटने का कारण समय ही था | समय के आधार पर ही अनुसंधान करके 19 अप्रैल 2020
को ही मैंने पीएमओ में मेल भेज दी थी कि 6 मई 2020 के बाद समय के प्रभाव से संक्रमण कमजोर होने लगेगा |
इसके बाद 16 जून 2020
को पीएमओ में दूसरा मेल भेज दिया था कि समय प्रभाव से 8 अगस्त 2020 से संक्रमितों की संख्या फिर बढ़ने लगेगी |जो 24 सितंबर 2020 तक बढ़ती चली जाएगी |उसके बाद संक्रमण कम होना प्रारंभ होगा | संक्रमण धीरे धीरे 13 नवंबर 2020 तक स्वयं ही घटता जाएगा ! ऐसा ही हुआ |
महामारी एवं उसकी लहरों के आने और जाने का कारण समय था | समय
परिवर्तन शील होता है | उसमें अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के परिवर्तन होते
हैं | समय में जब अच्छे परिवर्तन होते हैं तब महामारी का वेग घटने लगता था
और समय में जब बुरे परिवर्तन होते थे तब महामारी का वेग बढ़ने लगता था |
अच्छा समय मनुष्यों के लिए हितकर होता है | इसलिए अच्छे समय के प्रभाव से
मनुष्यों को स्वस्थ होना ही होता है | इसलिए ऐसे समय मनुष्यों को स्वस्थ
करने के लिए जितने भी प्रयत्न किए जाते हैं | उन्हें इसलिए सफल मान लिया
जाता है क्योंकि लोग स्वस्थ हो रहे होते हैं | ऐसे समय कुछ लोग स्वस्थ होने
का प्रयत्न कर रहे होते हैं | उन्हें ये भ्रम हो जाता है कि लोगों के
स्वस्थ होने का कारण उनके द्वारा किए जा रहे प्रयत्न ही हैं |
ऐसे समय जिन जिन औषधियों इंजेक्सनों पैथियों या अन्य चिकित्सा पद्धतियों
का जहाँ कहीं परीक्षण(ट्रायल) आदि किया जा रहा होता है | समयप्रभाव से
सुधार हो ही रहा होता है | उस सुधार को आधार मानकर उन परीक्षणों को भी सफल
मान लिया जाता है |
ऐसे सुधार समय के कारण हो रहे थे या कि परीक्षण के लिए प्रयोग की जा
रही औषधियों आदिके प्रभाव से संक्रमितों को संक्रमण से मुक्ति मिल रही है |
इस रहस्य का उद्घाटन तब होता है ,जब उसके बाद समय बदलता है और बुरा समय
प्रारंभ होता है | उसके प्रभाव से कोई दूसरी लहर आती है ,तब उन्हीं औषधियों इंजेक्सनों पैथियों या अन्य चिकित्सा पद्धतियों से मनुष्यों की सुरक्षा किया जाना संभव नहीं हो पाता है | संक्रमण दिनोंदिन बढ़ता चला जाता है | ऐसी परिस्थिति में अंतर स्पष्ट हो जाता है कि यदि औषधियों
इंजेक्सनों पैथियों या अन्य चिकित्सापद्धतियों से लाभ हुआ होता तब तो
उसके लहर में भी उनके प्रभाव से लोगों को संक्रमित नहीं होने दिया जाता |
जो संक्रमित हुए भी थे | उन्हें उन्हीं चिकित्सापद्धतियों के प्रभाव से स्वस्थ
कर लिया जाता ,किंतु ऐसा नहीं हो सका | इससे ये सिद्ध हुआ कि बुरे समय के
प्रभाव से लोग संक्रमित हो रहे थे और अच्छे समय के प्रभाव से स्वस्थ हो
रहे थे | इसके अतिरिक्त किसी अन्य पद्धति की कोई भूमिका ही नहीं सिद्ध हो
रही थी |
संक्रमण घटने और बढ़ने का समय कब कब था !
6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 तक संक्रमण कमजोर होने का समय था | इसके बाद 8 अगस्त 2020 से 24 सितंबर 2020 तक संक्रमण बढ़ने का समय था | 24 सितंबर 2020 से 13 नवंबर 2020 तक फिर संक्रमण कमजोर होते जाने का समय था |
6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 तक एवं 24 सितंबर 2020 से 13
नवंबर 2020 तक संक्रमण से मुक्ति पाने का समय था | इसलिए ऐसे समय किसी ने
कोई औषधि इंजेक्शन चिकित्सा आदि ली या नहीं ली फिर भी अच्छे समय के प्रभाव
से संक्रमित लोग स्वस्थ होते चले गए |
इसीप्रकार से 8 अगस्त 2020 से 24 सितंबर 2020 तक एवं मार्च अप्रैल 2020 तक संक्रमण बढ़ने का समय था | संक्रमण बढ़ने के समय कोई औषधि चिकित्सा आदि ली गई या नहीं ली गई | इस समय संक्रमण
बढ़ना ही था | इसलिए संक्रमण बढ़ता चला गया | पहली लहर में जिन औषधियों
इंजेक्शनों आदि को मनुष्यों की सुरक्षा की दृष्टि से सक्षम माना गया था |
संक्रमितों पर उनका प्रयोग करने के बाद भी संक्रमण बढ़ता चला जा रहा था |
समयसंबंधी मेरे पूर्वानुमानों के आधार पर 6 मई 2020 से 8
अगस्त 2020 तक कोरोना संक्रमण कम होने का समय था | इसलिए इस समय संक्रमण
कम होना ही था |संक्रमण कम करने के लिए जो लोग प्रयत्न कर रहे थे उन्हें भी
लगा कि उनके प्रयत्न सफल हो गए | इस समय में किए गए ट्रायल भी सफल होने ही
थे | जिसने जिस प्रकार के ट्रायल किए वे सब सफल हुए |
इसीसमय कुछ लोगों ने टीकों का परीक्षण किया तो कुछ लोगों ने औषधियों
का कुछ लोगों ने अन्य विभिन्न थेरेपियों का परीक्षण किया | कुछ लोगों ने और
तरह तरह के तीर तुक्के आजमाए सबको लगा कि उन्हीं के प्रयास से कोरोना
संक्रमण कम हो रहा है |कुछ लोग जादू टोना झाड़ फूँक आदि का सहारा ले रहे थे|
समय सुधारा तो उनके स्वास्थ्य में भी सुधार हुआ | उन्हें लगा कि उन्हें जादू टोना झाड़ फूँक आदि के प्रभाव से स्वास्थ्यलाभ हुआ है | कुल मिलाकर सभी के स्वास्थ्य में सुधार के लिए उपाय अलग अलग थे किंतु समय 6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 तक का ही था | यहाँ तक कि वैक्सीनों के ट्रायल भी इसी समय में सफल माने गए |
रेम्डेसिविर : 2 मई 2020 - "कोरोना वायरस के इलाज के लिए लगातार चिकित्सकीय परीक्षण जारी हैं. इसी बीच
एक दवा रेम्डेसिविर को लेकर साकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं. Remdesivir
के इस्तेमाल से COVID-19 के रोगियों में तेजी से रिकवरी देखने को मिल रही
है. अमेरिकी नेतृत्व वाले परीक्षण में यह दवा बीमारी के खिलाफ प्रमाणित
फायदे देने वाली पहली दवा बन गई है |- NDTV
कोरोनिल :23 जून 2020 — आज
पतंजलि ने दो दवाएं लॉन्च की हैं जिनके बारे में कंपनी ने दावा किया है कि
ये कोविड-19 की बीमारी का आयुर्वेदिक इलाज हैं |- बीबीसी
प्लाज्मा थैरेपी : 2 जुलाई 2020 दिल्ली में शुरू हुआ देश का पहला प्लाज्मा बैंक, कोरोना मरीजों के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी काफी कारगर साबित हो रही है | -आजतक
आर्सेनिक एल्बम-30: 23 -8-2020 होमियोपैथिक मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रामजी सिंह के
अध्ययन में यह साबित भी हो रहा है। पटना के 15 हजार लोगों को वे यह दवा दे
चुके हैं। 21 दिन बाद जब दवा का प्रभाव जानने के लिए फोन किया गया तो
परिणाम उत्साहजनक थे। जिन पांच सौ लोगों का अबतक फीडबैक लिया गया है वे सभी
कोरोना से सुरक्षित हैं। - दैनिक जागरण
वैक्सीन निर्माण की विभिन्न घोषणाएँ भी इसी समय की गईं !
5
मई 2020 से 11
अगस्त 2020 तक
5
मई 2020 :इजरायल के रक्षामंत्री नैफ्टली बेन्नेट ने अपने एक बयान में
कहा कि इजरायल के डिफेंस बायोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ने कोविड-19 का टीका बना
लिया है। उन्होंने कहा कि हमारी टीम ने कोरोना वायरस को खत्म करने के टीके
के विकास को पूरा कर लिया है।
8
मई 2020 :अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि उनके देश
में कोरोना महामारी की वैक्सीन खोज ली गई है। अमेरिका ने 20 लाख वैक्सीन
बना ली है | अमेरिकी फार्मास्यूटिकल कंपनी ने कोरोना वायरस को खत्म करने
वाली दवा बना ली है। अमेरिका के कैलीफोर्निया में स्थित
बायोफार्मास्यूटिकल कंपनी गिलियड साइंसेस ने कोरोना वायरस का उपचार करने
वाली एंटीवायरल मेडिसिन बना ली है। इसे वेकलरी नाम दिया गया है।खास बात ये
है कि इस दवा को अमेरिका के बाद जापान ने भी मंजूरी दे दी है। जापान में
गंभीर हालत वाले मरीजों पर इस दवा का इस्तेमाल किया जाएगा।
2 जुलाई 2020-भारत
की एक कंपनी ‘भारत बायोटेक’ने इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रीसर्च और नेशनल
इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरॉलोजी, पुणे के साथ मिल कर वैक्सीन बनाने की दिशा में
एक बड़ी कामयाबी हासिल की है. इस वैक्सीन को नाम दिया गया है
‘कोवैक्सिन’इसका वैक्सीन का प्री-क्लीनिकल ट्रायल कामयाब रहा है और ड्रग
कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया की तरफ़ से इस वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायलकी
मंज़ूरी भी मिल गई है. हैदराबाद की जीनोम वैली के बायो-सेफ़्टी लेवल 3 में
तैयार हुई इस वैक्सीन का अब जल्द ही पहले और दूसरे चरण का ह्यूमन ट्रायल
शुरू हो जाएगा |
13 जुलाई 2020 - रूस ने दावा किया है कि 'उनके वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस कीपहली वैक्सीन बना ली है !
20 जुलाई 2020-वैक्सीन बनाने की दिशा में चल रहे प्रयासों की बात करें, तो दुनियाभर में कोरोना वायरस की 23 वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल हो रहे हैं.कुछ देशों में वैक्सीन्स के ह्यूमन ट्रायल पहले और दूसरे चरण में सफल रहे हैं और अब भारत में भी कोवैक्सीन नाम की वैक्सीन का ट्रायल दिल्ली स्थित ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ (एम्स) में 20 जुलाई से ही यह ट्रायल शुरू हो जाएगा.शुरू होने जा रहा है |
11
अगस्त 2020-रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन घोषणा की कि कोरोना की
वैक्सीन तैयार कर ली गई है. रूस का कहना है कि वैक्सीन को देश में बड़े
पैमाने पर इस्तेमाल के लिए नियामक मंजूरी मिल गई है |
24 सितंबर 2020 से वैक्सीन लगना शुरू होने तक संक्रमण घटने का समय था !
इस समय संक्रमण से लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए जो जो प्रयत्न किए
गए वे सभी सही निकले क्योंकि समय ही संक्रमण घटने का था | इसलिए लोग
प्रयत्न करते जा रहे थे सुधार का समय होने के कारण उनके सुधार संबंधी
प्रयत्नों में सफलता मिलती जा रही थी |
22 नवंबर 2020 -चीन ने कोरोना की एक सुपर वैक्सीन बनाने का दावा किया है।
23
नवंबर 2020 - भारत के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, हम अपने स्वदेशी टीके को विकसित
करने कीप्रक्रिया के अंतिम चरण में हैं. हम अगले एक-दो महीनों में तीसरे
चरण के परीक्षण को पूरा करने की प्रक्रिया में है|
8 दिसंबर 2020 को ब्रिटेन में फ़ाइज़र ने टीकाकरण शुरू किया है |
अमेरिका
ने फ़ाइज़र-बायोएनटेक कोविड वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की मंज़ूरी दे
दी है इसी दिसंबर में फ़ाइज़र वैक्सीन को ब्रिटेन, कनाडा बहरीन और सऊदी अरब
ने पहले ही मंज़ूरी दे दी है.|
30 दिसंबर 2020 ब्रिटेन
ने सबसे पहले फाइजर की कोरोना वैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत दी
थी. अब तक करीब सात लाख से अधिक लोगों को फाइजर वैक्सीन की पहली डोज दी जा ब्रिटेन
ने सबसे पहले फाइजर की कोरोना वैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत दी
थी. अब तक करीब सात लाख से अधिक लोगों को फाइजर वैक्सीन की पहली डोज दी जा चुकी
है. इस बीच ऑक्सफोर्ड की कोरोना वैक्सीन को भी ब्रिटेन ने मंजूरी दे दी
है. इसका मतलब है कि यह टीका सुरक्षित और प्रभावी दोनों है |
25 जनवरी 2021-भारत
बायोटेक को कोरोना की नेजल स्प्रे वैक्सीन BBV154 के ट्रायल की इजाजत मिली
है. जबकि और भी कई देशों में ट्रायल हो रहे हैं और अच्छे नतीजे देखने को
मिल रहे हैं |
कोरोना की सबसे भयानक दूसरी लहर
इसके बाद समय में ऐसा बदलाव हुआ 23 दिस॰ 2020 को पीएमओ में मेल भेज भेज कर मैंने सूचित किया
था कि "यदि वैक्सीन नहीं लगाई जाती है तब तो कोरोना अतिशीघ्र समाप्त हो ही
जाएगा और यदि वैक्सीन लगाई जाती है तो ब्रिटेन की तरह ही उसके द्वारा फैलने
वाले संक्रमण विस्तार का अनुमान मुझे नहीं है |मेरे अनुसंधान के अनुसार
कोरोना जैसी महामारी से मुक्ति दिलाने वाली वैक्सीन निर्माण वाले दावे बहुत
विश्वसनीय नहीं हैं |" इससे हमारा अनुमान स्पष्ट था कि यदि
वैक्सीन नहीं लगाई जाएगी तो समाज संक्रमण मुक्त हो जाएगा और यदि वैक्सीन
लगाई जाती है तो संक्रमण का विस्तार होगा | इस प्रकार से जैसे जैसे संक्रमण
वैक्सीन लगता चला गया वैसे वैसे संक्रमण बढ़ता चला गया | इसके बाद
जब संक्रमण काफी बढ़ गया था चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था | उससमय 19 अप्रैल
2020 को पीएमओ को मेल भेजकर मैंने सूचित किया था कि 2 मई 2021 से कोरोना
संक्रमण समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा |
19 अप्रैल 2021 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !( 20 अप्रैल 2021 से 2 मई 2021 तक )
" मेरा अनुमान है कि ईश्वरीय कृपा से 20 अप्रैल 2021 से ही महामारी पर
अंकुश लगना प्रारंभ हो जाएगा ! 23 अप्रैल के बाद महामारी जनित संक्रमण कम
होता दिखाई भी पड़ेगा !और 2 मई के बाद से पूरी तरह से संक्रमण समाप्त
होना प्रारंभ हो जाएगा |"
18 दिसंबर 2021 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
"वर्तमान समय में जिस वायरस की चर्चा की जा रही है वह महामारी से संबंधित
नहीं है वह ऋतु जनित सामान्य विकार है इससे महामारी की तरह डरने या डराने
की आवश्यकता नहीं है |वर्तमान समय में जो संक्रमितों की संख्या बढ़ती दिख
रही है वह महामारी संक्रमितों की न होकर अपितु सामान्य रोगियों की है | यह
सामान्य संक्रमण भी 20 जनवरी 2022 से पूरी तरह समाप्त होकर समाज संपूर्ण
रूप से महामारी की छाया से मुक्त हो सकेगा |"
20 फ़र॰ 2022को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
"कोरोना महामारी की चौथी लहर
27 फरवरी 2022 से प्रारंभ होगी और 8 अप्रैल 2022 तक क्रमशः बढ़ती चली जाएगी |इसके बाद 9 अप्रैल 2022 से भगवती दुर्गा जी की कृपा से महामारी की चौथी लहर समाप्त होनी प्रारंभ हो जाएगी और धीरे धीरे समाप्त होती चली जाएगी |"
29 अप्रैल 2022 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
"कोरोना महामारी की पाँचवीं लहर 3 जुलाई 2022 से प्रारंभ
होने जा रही है जो 15 अगस्त 2022 तक संपूर्ण वायु मंडल में व्याप्त रहेगी |
उसके संपर्क वाले लोग संक्रमित होते जाएँगे | इसके बाद महामारी की
पाँचवीं लहर नियंत्रित होनी प्रारंभ होगी ,जो प्रत्यक्ष रूप से 21 अगस्त
2022 से समाप्त होते देखी जाएगी |"
21 अक्टू॰ 2022को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
"24 अक्टूबर 2022 से महामारी जनित संक्रमण फिर से बढ़ना प्रारंभ होगा जो 18
नवंबर 2022 तक रहेगा | इस समय में संक्रमितों की संख्या क्रमशःबढ़ती जाएगी
!इसमें भी 14 से 18 नवंबर 2022 के बीच के समय में संक्रमितों की संख्या इस
बार की परिस्थिति के अनुसार सबसे अधिक रहेगी |"
29 दिस॰ 2022को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
" कोरोना महामारी की अगली लहर 10 जनवरी 2023 से प्रारंभ होगी !14 जनवरी
2023 से बढ़नी प्रारंभ होगी और 22 जनवरी 2023
से
महामारी जनित संक्रमण काफी
तेजी से बढ़ना प्रारंभ हो जाएगा | 14 फरवरी 2023 से 20 फरवरी 2023 तक
संक्रमितों की संख्या कुछ कम होनी शुरू होगी ! 21 फरवरी 2023 से संक्रमितों की संख्या फिर बढ़नी शुरू होगी जो 16 मार्च
2023 तक बढ़ेगी उसके बाद समाप्त
होनी शुरू होगी जिसमें करीब 30 दिन का समय लगेगा ! विशेष बात यह है कि संक्रमण बहुत अधिक नहीं बढ़ेगा फिर भी तीसरी लहर से कम भी नहीं रहेगा ! बहुत अधिक
बढ़ने या हिंसक होने से रोकने के लिए आवश्यक सावधानी
बरतना श्रेयस्कर रहेगा | "
6 जुल॰ 2023 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
"2-10-2023 से वातावरण में महामारी संबंधी विषाणुओं का बढ़ना एक बार फिर शुरू होगा | इसी समय से लोग संक्रमित होने शुरू हो जाएँगे |इसके बाद 20-10-2023 से संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़नी शुरू हो जाएगी | संक्रमितों की संख्या बढ़ने
का यह क्रम 2-11 -2023 तक यूँ ही चलता रहेगा |इसके बाद धीरे धीरे संक्रमण
रुकना शुरू होगा,किंतु संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण में विद्यमान होने के
कारण इससे मुक्ति मिलने की प्रक्रिया में लगभग 33 दिन और लग जाएँगे |लगभग
5-12-2023 तक के आस पास महामारी की इस लहर से मुक्ति मिलनी संभव हो पाएगी
|मेरा ऐसा अनुमान है | "
23 मई 2024को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
" 29 जून 2024 से प्राकृतिक वातावरण दिनोंदिन प्रदूषित होते देखा जा सकता है
|इसी बीच कुछ देशों में महामारी जनित संक्रमण के बढने की प्रक्रिया
प्रारंभ हो सकती है |यद्यपि इसकी गति धीमी होगी फिर भी 14 नवंबर 2024 के पहले पहले महामारी का एक झटका लग सकता है | इसे प्राकृतिक शक्तियों के द्वारा किया जाने वाला महामारी का ट्रायल कहा जा सकता है | 5 अप्रैल 2025 से महामारीजनित संक्रमण अत्यंत तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई
देगा | संभव है कि ये कोरोना महामारी की दूसरी लहर की तरह ही विशेष डरावना
स्वरूप धारण करे | जिसमें विश्व का बड़ा भाग संक्रमित हो जाए | वैश्विक
दृष्टि से देखा जाए तो भिन्न भिन्न देशों में महामारी का यह तांडव 2025 के अप्रैल
मई दोनों महीनों में देखने को मिल सकता है | यद्यपि इसके बिल्कुल स्पष्ट
लक्षण सितंबर 2024 तक प्रकट हो जाएँगे | जिन्हें परोक्ष विज्ञान के द्वारा
देखा जा सकेगा |आवश्यकता पड़ी तो उस समय इस पूर्वानुमान की तारीखों में 10
प्रतिशत तक परिवर्तन करना पड़ सकता है |"
19 अग॰ 2024 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
20 अगस्त 2024 से महामारी जैसे महारोगों के बढ़ने का समय शुरू
हो रहा है | इससमय से प्राकृतिक वातावरण तेजी से बिषैला होना प्रारंभ हो
जाएगा | इससे वायु मंडल के साथ साथ खाने पीने की वस्तुएँ संक्रमित होने
लगेंगी |बिषैले वातावरण में साँस लेने से एवं संक्रमित वस्तुओं के खानपान
से लोग स्वतः संक्रमित होते चले जाएँगे | समय प्रभाव से औषधियों के भी
संक्रमित हो जाने के कारण संक्रमितों को औषधियों के सेवन या चिकित्सा आदि
से भी कोई लाभ नहीं होगा | 22 सितंबर 2024 से संक्रमितों की संख्या तेजी से
बढ़ने लगेगी | 11 से 18 अक्टूबर के बीच में यह लहर सबसे ऊँचे स्तर पर पहुँच
जाएगी | 20 अक्टूबर 2024 से संक्रमितों की संख्या धीरे धीरे कम होनी
प्रारंभ हो जाएगी | इसी क्रम में ये लहर यहीं से समाप्त होनी शुरू हो
जाएगी |
4 मार्च 2024 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
" 1 मई 2025 से महामारीजनित संक्रमण अत्यंत तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई
देगा | संभव है कि ये कोरोना महामारी की तरह ही डरावना
स्वरूप धारण करे | जिसमें विश्व के बहुत लोग संक्रमित होते देखे जाएँ|यद्यपि 19 मई 2025 तक महामारी का यह स्वरूप समाज को संक्रमित करता रहेगा | उसके बाद स्वास्थ्य लाभ होना प्रारंभ हो जाएगा | "
16 मई 2025 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
"25 सितंबर 2025 से
कोरोनामहामारी की आगामी लहर प्रारंभ होगी | यह क्रमशः बढ़ती चली जाएगी |
इससे लोग तेजी से संक्रमित होते चले जाएँगे | ये कई महीनों तक चलेगी |
महामारी की यह लहर 31जनवरी 2026 तक संपूर्ण वायुमंडल को बिषैला करती रहेगी
| उसके बाद विराम लगने लगेगा | 12 फरवरी 2026 के बाद समाज को भी यह भरोसा
होने लगेगा | अब महामारी से मुक्ति मिल जाएगी | "
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महामारी से सुरक्षा की तैयारी नहीं थी या तैयारी काम नहीं आई !
वैज्ञानिक अनुसंधानों से प्रजाजनों को विकास के साथ साथ सुख सुविधा के संसाधनों की अपेक्षा तो होती ही है | इसके साथ ही उन्हें उस विकास को देखने एवं सुख सुविधा के संसाधनों का सुख भोगने का भाव भी होता है | यदि जीवन ही नहीं बचेगा तो वो विकास या सुख सुविधा के संसाधन समाज के किस काम के !
इसलिए किसी प्राकृतिक संकट या महामारी आने पर अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित प्रजाजन सबसे पहले अपने अनुसंधानों की ओर देखते हैं | वैज्ञानिकों के द्वारा कही गई एक एक बात का बड़ी निष्ठा से पालन करते हैं | इसके बाद भी उन्हें जनधन का नुक्सान उठाना पड़ता है | उसके बाद यदि पता लगे कि हमें जो जो सावधानियाँ बरतने के लिए कहा गया था या जिसे चिकित्सा के रूप प्रस्तुत किया गया था | उनका उस आपदा या महामारी से बचाव का कोई संबंध ही नहीं था तो निराशा होनी स्वाभाविक ही है |
प्राकृतिक घटनाओं महामारियों के अनुसंधानों में लगे विद्वान वैज्ञानिकों के वक्तव्यों में इतनी दृढ़ता तो होनी ही चाहिए कि जलवायुपरिवर्तन हो या महामारी का स्वरूप परिवर्तन फिर भी उनके द्वारा लगाए गए अनुमानों पूर्वानुमानों को सच निकलना ही चाहिए | इसी विशेषता के कारण तो वो आम लोगों से अलग हैं |यदि ऐसा नहीं होता है तो आम लोगों के वक्तव्यों और वैज्ञानिक वक्तव्यों में कोई अंतर नहीं रह जाएगा |
इसी दृष्टि से बिचार किया जाना चाहिए कि महामारी के बिषय में जितने भी अनुमान पूर्वानुमान लगाए जाते रहे क्या उनमें से कुछ सच भी निकले हैं | अपनी जिम्मेदारी के प्रति गंभीर वैज्ञानिकों शासकों आदि को इसकी समीक्षा भी करनी चाहिए | प्रजाजनों पर पड़ी महामारी जैसी इतनी बड़ी विपदा को और अधिक गंभीरता से लिए जाने की आवश्यकता है |
प्राकृतिक संकटों का सामना करते समय प्रजाजनों को उन अनुसंधानों से कितनी मदद मिल पाती है |ये बिचारणीय इसलिए भी है क्योंकि भारत को पड़ोसी देशों के साथ तीन युद्ध लड़ने पड़े हैं |उनमें जितने लोग मृत्यु को प्राप्त हुए हैं | उनसे कई गुणा अधिक लोग जिस कोरोना महामारी में ही मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं |इसलिए उन युद्धों से बचाव की तैयारियाँ तो की ही जानी चाहिए किंतु महामारी को उन युद्धों से भी अधिक गंभीरता से लेने की आवश्यकता है |
इसलिए ऐसी घटनाओं का प्राकृतिक वातावरण में निर्माण होना जब प्रारंभ हो
! उसीसमय उसके बिषय में पूर्वानुमान लगाने की आवश्यकता होती है | घटना
घटित होनी यदि प्रारंभ हो ही जाती है ,तो वैज्ञानिकअनुसंधानों की भूमिका ही समाप्त हो जाती है | बाढ़ आ जाने के बाद जो बहना था वो तो बह गया उसके बाद अनुसंधान कैसे सहायक हों सकेंगे |भूकंप आने पर ,बज्रपात होने पर, बादल फट जाने पर या महामारी आ
जाने पर जितना नुक्सान होना होता है,वह तो हो ही जाता है |इसके बाद प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा की दृष्टि से वैज्ञानिक अनुसंधानों की सार्थकता ही क्या बचती है |यही सोचकर मैंने
महामारी के बिषय में समय समय पर वैज्ञानिकों के द्वारा दिए गए वक्तव्य
संग्रहीत किए और उन्हें महामारी के साथ जोड़कर अध्ययन प्रारंभ किया तो
महामारी के साथ उन वक्तव्यों का प्रत्यक्ष संबंध ही सिद्ध नहीं होता है |
महामारी से सुरक्षा की अग्रिम तैयारियाँ कितनी प्रभावी थीं !
महामारी से जूझते समाज को अपने एवं अपनों का
जीवन धार पर लगाकर जिस महामारी को सहना पड़ा है | उसमें वैज्ञानिक
अनुसंधानों की भूमिका क्या रही |ऐसा विज्ञान न होता और उसके इतने
बड़े बड़े वैज्ञानिक न होते एवं उनके द्वारा इतने बड़े बड़े अनुसंधान न किए जा रहे होते तो क्या महामारी इससे भी भयानक रूप धारण कर सकती थी | समाज को अभी जितना नुक्सान हुआ है क्या उससे भी अधिक हो सकता था |अनुसंधानों को इस कसौटी पर कसा जाना चाहिए | वर्तमानसमय में इतना उन्नत विज्ञान है | इतने बड़े बड़े वैज्ञानिक हैं | इतने बड़े बड़े
अनुसंधान होते हैं |इसके बाद भी महामारी जैसी आपदाओं से
जूझते समय प्रजाजनों के जीवन की सुरक्षा क्यों नहीं सुनिश्चित हो पाती है |
महामारी आने से पहले उसकी पहचान की जानी चाहिए थी जो नहीं की जा सकी थी| उसके बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान
आदि लगाए जाने चाहिए थे | जो नहीं लगाए जा सके थे |महामारी
के आने से पहले उससे सुरक्षा के लिए अग्रिम तैयारियाँ करके नहीं रखी जा सकीं |महामारी आने के
इतने वर्ष बीतने के बाद भी सुरक्षा के उपाय करना तो दूर महामारी के बिषय
में कुछ भी निश्चित तौर पर कहा जाना संभव नहीं हो पाया है |कोरोना महामारी के बिषय में अभी तक जो अनुमान या पूर्वानुमान
लगाए गए हैं | वे सही नहीं निकले हैं |
महामारी आए इतने वर्ष बीत चुके किंतु महामारी
का सच अभी तक सामने नहीं लाया जा सका है | महामारी प्राकृतिक थी या
मनुष्यकृत ! महामारी की लहरों के आने और जाने का कारण क्या था | महामारी का
प्रसार माध्यम क्या था !महामारी का विस्तार कितना था !महामारी में
अंतर्गम्यता थी या नहीं !महामारी पर मौसम का प्रभाव पड़ता था या नहीं !
तापमान घटने बढ़ने का प्रभाव पड़ता था या नहीं ! वायुप्रदूषण बढ़ने घटने का
प्रभाव पड़ता था या नहीं !संक्रमितों को छूने या न छूने का प्रभाव पड़ता था
या नहीं ! आदि प्रश्नों के उत्तर अभी तक नहीं खोजे जा सके हैं | चिकित्सा का
सिद्धांत है कि किसी रोग को समझे बिना न तो उसकी चिकित्सा की जा सकती है और
न ही ऐसे रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए किसी औषधि का
निर्माण ही किया जा सकता है |
प्राकृतिक आपदाएँ या घटनाएँ हमेंशा से बिना बताए या बिना बुलाए ही आती
रही हैं |इसमें सोचने लायक नया कुछ भी नहीं है |महामारी जैसे संकटों से जन धन की सुरक्षा करने में ऐसे अनुसंधानों से कितनी मदद
मिल सकी है | प्राकृतिक आपदाओं से मदद तभी मिल पाती है,जब आपदाओं के घटित
होने से पहले सुरक्षा के उपाय कर लिए जाएँ | इसके बिना जन
धन की सुरक्षा कैसे की जा सकती है |
अनुसंधानों के द्वारा अभी तक यह भी पता नहीं लगाया जा सका कि महामारी से
मुक्ति मिलने की प्रक्रिया प्राकृतिक रूप से प्रारंभ होगी या
इसके लिए मनुष्यों को कुछ प्रयत्न करने होंगे !यदि बिना किसी औषधीय चिकित्सा के समय प्रभाव से ही महामारी से मुक्ति मिलनी है तो ये प्रक्रिया
कब प्रारंभ होगी | ऐसे ही महामारी से मुक्ति पाने के लिए यदि मनुष्यों को
ही प्रयत्न करने होंगे तो उन्हें ऐसा क्या कुछ करना पड़ेगा !जिनके प्रभाव से महामारी से मुक्ति मिलनी प्रारंभ होगी |
किसी भी अनुसंधान से महामारी को रोका जाना यदि संभव नहीं है तो भी अनुसंधानों से
इतनी अपेक्षा तो रखी ही जा सकती है कि महामारी जैसे संकटों से पीड़ितों को अनुसंधानों से कुछ तो मदद मिले | इसलिए अब महामारियों या प्राकृतिक संकटों को और अधिक गंभीरता से लिए जाने की आवश्यकता है |
मनुष्यकृत प्रयास या समय प्रभाव
महामारी
की कोई लहर जब अपने आपसे कमजोर पड़ने लगती थी | लोग संक्रमण मुक्त होने लगते थे | महामारी संबंधी संक्रमण अचानक घटने के लिए जिन कारणों को जिम्मेदार बताया जा रहा होता था | उनका महामारी से कोई संबंध भी है | यह प्रमाणित नहीं हो पाता था |
कुछ विशेषज्ञ संक्रमण अचानक कम होने के लिए वायुप्रदूषण के घटने को जिम्मेदार मानते थे ,तो कुछ दूसरे लोग लॉकडाउन लगाए जाने को संक्रमण घटने का कारण मानते थे | कुछ विशेषज्ञ लोग कोविडनियमों के पालन को संक्रमण घटने का कारण मानते थे | कुछ चिकित्सावैज्ञानिक चिकित्सासंबंधी उन विभिन्न प्रयत्नों को संक्रमण घटने का कारण मानते थे | जो महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए पहले से किए जा रहे होते थे
|
महामारीजनित संक्रमण बढ़ने या घटने का संबंध वायुप्रदूषण बढ़ने घटने से था भी या नहीं | इसे तर्कसंगत दृष्टि से देखा जाए तो सन 2020 के अक्टूबर नवंबर महीनों में वायुप्रदूषण दिनों दिन बढ़ता जा रहा था और संक्रमण दिनोंदिन
घटता जा रहा था | ऐसे ही 2021 के मार्च अप्रैल महीनों में वायुप्रदूषण घटने के कारण
आकाश इतना स्वच्छ हो गया था कि अमृतशर एवं बिहार के कुछ शहरों से हिमालय की चोटियाँ दिखाई पड़ने लगी थीं | ऐसे समय संक्रमण स्वतः समाप्त
होते जाना चाहिए था ,किंतु इसी समय भारत में सबसे भयंकर दूसरी लहर आई थी
|इसका मतलब संक्रमण बढ़ने घटने का कारण वायुप्रदूषण का बढ़ना या घटना नहीं था |
इसी प्रकार से कोविड नियमों के न पालन से यदि संक्रमण बढ़ता होता तो महामारी आने के पहले भी सभी लोग सभी को छूते ही थे और महामारी बीतने के
बाद भी सभी लोग सभी
को छूने ही लगेंगे ,किंतु न तो महामारी पहले बनी रहती थी और न ही बाद में
बनी रहेगी |इसका मतलब संक्रमण बढ़ने का कारण एक दूसरे को छूना नहीं है |
ऐसी परिस्थिति में ये किस आधार पर कहा जा सकता है कि वायुप्रदूषण
बढ़ने से संक्रमण बढ़ता था और घटने से संक्रमण घटता था | ऐसे ही कोविड
नियमों के न पालन करने से संक्रमण बढ़ता था और पालन करने से संक्रमण घटता था
|चिकित्सकीय प्रयासों का महामारीजनित संक्रमण
पर प्रभाव पड़ता था या नहीं ये किस आधार पर कहा जा सकता था | ऐसा कुछ कहने
का कोई प्रमाणित तर्कसंगत वैज्ञानिक आधार ही नहीं है |इसलिए महामारीजनित
संक्रमण घटने या बढ़ने में मनुष्यकृत किसी प्रयत्न की परिकल्पना ही निराधार होती है | कोई भूमिका प्रमाणित नहीं होती है |
विज्ञानवैज्ञानिक और पूर्वानुमान !
इसके लिए किसी ऐसे
भविष्यविज्ञान की आवश्यकता होती है| जिसके द्वारा भविष्य में झाँककर या
वैज्ञानिकअनुभवपूर्वक भविष्य में घटित होने वाली संभावित घटनाओं के बिषय
में सही अनुमान या पूर्वानुमान आदि लगाया जा सके |
इसके लिए आवश्यक है | ऐसी घटनाओं की निर्माण प्रक्रिया पहले से पहचानी जाए | प्राकृतिक घटनाएँ हों या आपदाएँ अथवा महामारियाँ ही क्यों न हों | इनके
निर्माण होने की प्रक्रिया प्रत्यक्षरूप से न तो दिखाई पड़ती है और न ही
कभी दिखाई पड़ेगी |चूँकि ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण समय होता है | समय
दिखाई नहीं पड़ता है |
जिस प्रकार से हवा दिखाई नहीं पड़ती है इसलिए उसके साथ उड़ रहे तिनके धूल आदि देखकर हवा के चलने का पता लगाया जाता है | इसी प्रकार से समय दिखाई नहीं पड़ता है | इसलिए प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली छोटी बड़ी घटनाओं को देखकर अच्छे बुरे समय के बिषय में पूर्वानुमान लगाना होता है |
प्रकृति या जीवन में जो घटना एक बार बन चुकी होती है | वो घटित तो होती ही है | कोई घटना जब
घटित होने लगती है उस समय उससे बचाव के लिए कोई सार्थक प्रयत्न किया जाना
संभव नहीं हो पाता है ,तुरंत की तैयारियों के बलपर इतनी बड़ी आपदाओं से बचाव किया
जाना संभव ही नहीं है| प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों से
मनुष्यों की सुरक्षा में विज्ञान
या वैज्ञानिक अनुसंधानों की भूमिका क्या है ये अभी तक स्पष्ट नहीं है |
मौसम या महामारी संबंधी किसी
घटना के बिषय में अभी तक ऐसे पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सके हैं | जिनके
बिषय में यह कहा जा सके कि ऐसा ही होगा या इस भविष्यवाणी के सच निकलने की
संभावना 70 प्रतिशत से अधिक संभावना है |
प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगाने का कोई विज्ञान ही नहीं है | इसीलिए ऐसी घटनाओं के बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव ही नहीं हो पा रहा है |मुझे छोड़कर विश्व के किसी भी वैज्ञानिक में ये प्राकृतिक घटनाओं या महामारियों के बिषय में पूर्वानुमान लगाने की क्षमता नहीं है !इसीकारण तो महामारी या उसकी लहरों के बिषय में विश्व वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए जाते रहे अनुमान पूर्वानुमान आदि कभी सही नहीं निकल पाए | विश्व के किसी भी वैज्ञानिक को यदि ऐसा लगता है कि महामारी या उसकी लहरों के बिषय में लगाए जाते रहे पूर्वानुमान सही निकलते रहे हैं |उन्होंने महामारी के बिषय में अभी तक जो जो सही पूर्वानुमान लगाए हों वे प्रमाण के साथ किसी वैश्विक मंच पर सार्वजानिक करें |
इसी कसौटी पर मेरे द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान भी कसे जाएँ | मैं उस अग्निपरीक्षा का सामना करने के लिए तैयार हूँ |अभीतक के अनुभवों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि मेरे अतिरिक्त विश्व का कोई दूसरा वैज्ञानिक महामारी या उसकी लहरों के बिषय में पूर्वानुमान लगाने में अभी तक समर्थ नहीं हुआ है |
संक्रमण बढ़ने और घटने का कारण है समय !
वेदवैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो संसार की सभी प्राकृतिक घटनाओं का घटित होना समय पर आश्रित होता है | प्राकृतिक घटनाएँ आदिकाल में ही निर्मित हो चुकी हैं| उनके घटित होने का जब समय आता है तब वे घटित होने लगती हैं |समय ही महामारी जैसी घटनाओं के पैदा और समाप्त होने का कारण है | संक्रमण बढ़ने का समय आने पर संक्रमण बढ़ता एवं घटने का समय आने पर संक्रमण घटता है | समय के इस रहस्य को न समझने के कारण महामारी या मौसम संबंधी घटनाओं को समझना या उनके बिषय में अनुमान पूर्वानुमान लगाना आदि संभव नहीं हो पाता है |
कोरोना महामारी के समय भी केवल समय के प्रभाव से ही संक्रमण बढ़ता और घटता था |महामारी की किसी लहर का संक्रमण जब घटने का समय आता है | उससमय मनुष्यकृत लापरवाहियाँ होने पर भी दिनोंदिन संक्रमण घटता ही जाता है और संक्रमण बढ़ने का समय जब आता है | उस समय संक्रमण बढ़ने से रोकने के लिए कितने भी प्रयत्न किए जाते हैं फिर भी संक्रमण बढ़ता ही है |ऐसा कोरोनाकाल में भी देखा गया है |
समय जब संक्रमण घटने का चल रहा होता था | उस समय संक्रमण घटता ही था |दिल्ली सूरत मुंबई से पलायित श्रमिक आपस में एक दूसरे को छूते रहे | हरिद्वार कुंभ में साधू संत भक्त आदि सभी आपस में सभी को छूते रहे !दिल्ली के किसान आंदोलन में यही हुआ |बिहार बंगाल की चुनावी रैलियों में भारी भीड़ उमड़ी,यहाँ तक कि अक्टूबर नवंबर 2020 में वायु प्रदूषण बहुत बढ़ते चला गया सभी लोग लोग आपस में एक दूसरे को छूते भी रहे फिर भी जनवरी फरवरी 2021 तक संक्रमण घटते चला गया क्योंकि संक्रमण घटने का समय चल रहा था |
विशेष बात यह है कि संक्रमण घटने का समय आने पर सभी रोगी स्वाभाविक रूप से स्वस्थ होते चले जा रहे होते थे| ऐसे समय संक्रमितों पर जिन जिन औषधियों टीकों थैरेपियों जादू टोनों एवं झाड़ फूँक आदि का प्रयोगपूर्वक परीक्षण किया जा रहा होता था | वे सभी औषधियाँ टीके थैरेपियाँ आदि परीक्षण में सफल मान लिए जाते थे | उसका कारण समय प्रभाव से रोगियों के स्वस्थ होने को चिकित्सकीय प्रयत्नों का परिणाम मान लिया जाता था |
इसी प्रकार से जब संक्रमण बढ़ने का समय आता था | उस समय कितना भी लॉकडाउन लगाया गया या कोविड नियमों का पालन किया गया फिर भी संक्रमण बढ़ता चला जाता था | उस समय उन्हीं औषधियों टीकों थैरेपियों जादू टोनों एवं झाड़ फूँक आदि उपायों का लोगों पर फिर से प्रयोग किया जा रहा होता था ,फिर भी संक्रमण दिनोंदिन बढ़ता जा रहा होता था ,जबकि इन्हीं उपायों को पहले वाली लहर में परीक्षण पूर्वक सफल बताया गया होता था |यहाँ तक कि वैक्सीन आदि की दो दो डोज लगवा चुकने के बाद भी बड़ी संख्या में लोगों को संक्रमित होते देखा जा रहा होता था |
इससे यही प्रमाणित होता है कि संक्रमण के बढ़ने का समय जब आता है | उस समय कितने भी प्रत्यक्ष उपाय कर लिए जाएँ फिर भी समय के प्रभाव से संक्रमण बढ़ता ही है | ऐसे ही संक्रमण घटने का समय जब आता है | उस समय कोविड नियमों का पालन न करने वाले भी संक्रमण मुक्त होते जाते हैं | इसलिए संक्रमण बढ़ने का कारण यदि लोगों की लापरवाही होती तो ऐसे समय संक्रमण बढ़ जाता |
ऐसे ही संक्रमण घटने का कारण यदि औषधियों टीकों थैरेपियों जादू टोनों एवं झाड़ फूँक आदि उपायों को माना जाए तो दूसरी लहर में संक्रमण बढ़ते समय ऐसे उपायों से उसे नियंत्रित कर लिया जाता, किंतु समय के प्रभाव से बढ़ते जा रहे संक्रमण को उपायों से नियंत्रित नहीं किया जा सका |इसका कारण समय दिखाई नहीं पड़ता है इसलिए उन उपायों को ही स्वस्थ होने का कारण मान लिया जाता है|महामारी को समझने के लिए समय के संचार को समझा जाना अत्यंत आवश्यक है | इसके बिना प्रकृति और प्राकृतिक घटनाओं को समझा जाना संभव नहीं है |
महामारी की वाग्डोर समय के हाथ में थी !
समयविज्ञान और महामारी
संसार में अपने आप से जो जो कुछ हो रहा है | वो सब समय के साथ होने
वाले परिवर्तन होते हैं | महामारी अपने आप से आती है और अपने आप से चली
जाती है |इसका मतलब महामारी का समय संचार के साथ पैदा होना घटना बढ़ना एवं
समाप्त होना है |
ऐसा मानकर महामारी
को समझने के लिए वेदवैज्ञानिक समयसंबंधी प्रक्रिया से मैंने जो अनुसंधान
किए हैं | उनसे महामारी का संक्रमण घटने और बढ़ने की प्रक्रिया प्राकृतिक
रूप से घटित होना प्रमाणित होता है |
महामारी हमेंशा क्यों नहीं आती है और सन 2019 में में प्रकृति या जीवन में ऐसा
क्या विशेष घटित हुआ जिसके परिणाम स्वरूप महामारी जैसी घटना घटित हुई | इसके
लिए यदि मनुष्यकृत कार्यों को दोषी माना जाए तो वे कार्य कौन से थे जो
मनुष्यों ने हमेंशा नहीं किए थे और सन 2019 में अचानक करने शुरू कर दिए | जिनके दुष्प्रभाव से महामारी पैदा हो गई | इसका कारण यदि प्राकृतिक परिवर्तनों को माना जाए तो प्रकृति में किस प्रकार के परिवर्तन कब हुए जिसके परिणाम स्वरूप 2019 में महामारी पैदा हुई और संक्रमण बढ़ने घटने के समय भी उसप्रकार का प्रभाव देखा जाता रहा है |
मौसम एवं महामारी को समझने के लिए किसी ऐसे विज्ञान एवं अनुसंधानों की आवश्यकता है | जिनके होने या न होने का अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई पड़े | इसी उद्देश्य से मैंने वैदिकविज्ञान संबंधी अनुसंधानों को चुना है | ऐसे प्रकृति बिषयक गणितीय अनुसंधान मैं पिछले 35 वर्षों से निरंतर करता आ रहा हूँ |इसके द्वारा प्रकृति के स्वभाव को समझने के साथ साथ
उन समस्त परिवर्तनों को समझने एवं उनके बिषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि
लगाने के लिए निरंतर प्रयत्न करता आ रहा हूँ |भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात
वर्षा बाढ़ आदि मौसम संबंधी घटनाएँ हो या महामारियाँ यहाँ तक कि जलवायु
परिवर्तन या महामारी का स्वरूप परिवर्तन ही क्यों न हो | ये सभी प्राकृतिक
परिवर्तन ही तो हैं | प्राकृतिक परिवर्तनों को समझना ही अनुसंधानों का उद्देश्य है |
प्रकृति के रहस्य को समझते ही प्राकृतिक घटनाओं का रहस्य स्वयं ही उद्घाटित हो जाएगा | उस समय उनके बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि
लगाना आसान हो जाएगा |इसी उद्देश्य से मैं अपने अनुसंधानों
को सफलता के साथ आगे बढ़ाते आ रहा हूँ | अब तो ऐसा अभ्यास सा हो गया है कि
प्रकृति या जीवन में जब कोई ऐसी घटना घटित होते देखता हूँ| जो प्रकृतिक्रम एवं परंपरा से कुछ अलग घटित हो रही हो | उनका ढंग क्रम वेग आवृत्तियों आदि में
पहले की अपेक्षा भिन्नता हो |ऐसी घटनाओं के कारणों को मैं प्रत्यक्ष की
अपेक्षा परोक्ष प्रक्रिया से खोजने का प्रयत्न करता हूँ | इस प्रयत्न से बहुत सारे प्राकृतिक रहस्य सुलझने भी लगे हैं |
इसी दृष्टि से मैं उन प्राकृतिक घटनाओं को भी देखता रहा हूँ, जो महामारी
आने के लगभग 12 वर्ष पहले से घटित होनी प्रारंभ हो गई थीं | ऐसी घटनाएँ
दिनोंदिन बढ़ती देखी जा रही थीं | महामारी आने के कुछ वर्ष पहले से तो ये
पूरी तरह स्पष्ट होता जा रहा था कि प्रकृति का संतुलन बिगड़ता जा रहा है | ये
असंतुलन समयसंचार में उसप्रकार के परिवर्तन का परिणाम है| इसके संकेत उस
समय बार बार घटित हो रही विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ दे रही थीं |यह प्राकृतिक असंतुलन मुझे किसी रोग या महारोग की ओर बढ़ता दिख रहा था |इसकी सूचना सर्वप्रथम मैंने 20 अक्टूबर 2018
को पीएमओ की मेल पर भेजी थी |
20 अक्टूबर 2018 को पीएमओ को भेजी गई मेल में लिखित स्वास्थ्य संबंधी विशेष अंश !
" 10 अक्टूबर 2018 से लेकर 30 नवंबर 2018 तक लगभग 50 दिन का समय सारे विश्व के लिए ही अच्छा नहीं है !ये समय जैसे जैसे आगे बढ़ता जाएगा वैसे ही वैसे इस समय का दुष्प्रभाव उत्तरोत्तर क्रमशः और अधिक बढ़ता जाएगा !इसमें प्राकृतिक आपदाएँ हों या मनुष्यकृत लापरवाही उत्तेजना उन्माद आदि का अशुभ असर इस समय विशेष अधिक होगा ! वायु प्रदूषण सीमा से काफी अधिक बढ़ जाएगा !स्वाँस,सूखी खाँसी की समस्याएँ काफी अधिक बढ़ जाएँगी !घबड़ाहट बेचैनी कमजोरी चक्कर आने जैसे रोगों से भय फैलेगा !इस समय थोड़ा सा विवाद भी बहुत बड़े संघर्ष का स्वरूप धारण कर सकता है !यद्यपि ऐसी घटनाएँ इस समय में सारे विश्व में घटित होंगी !"
ये महामारी का पूर्व रूप ही था | संक्रमण काल कम होने के कारण इसका सामान्य प्रभाव कुछ देशों प्रदेशों में ही पड़ा था |
मैंने अपने समयसंबंधी अनुसंधान के द्वारा महामारी के बिषय में शुरू से
समाप्ति तक वो सबकुछ पता लगाने का प्रयत्न किया है | जो जो महामारी को समझने के लिए आवश्यक था | महामारी संबंधी प्रत्येक लहर की जानकारी एवं अनुमान पूर्वानुमान आदि मेल के माध्यम से भारत के पीएमओ की
मेलपर आगे से आगे भेजता रहा हूँ |
इसी क्रम में19
मार्च 2020 को पीएमओ को भेजी गई मेल में मैंने महामारी के स्वभाव प्रभाव विस्तार प्रसार
माध्यम अंतर्गम्यता अनुमान पूर्वानुमान आदि के बिषय में जो जो लिखा है | वो सब सही घटित हुआ है |इनकी गणना मैंने समयविज्ञान के अनुसार ही की थी |
19
मार्च 2020 की मेल का महामारी पर समय का प्रभाव पड़ने से संबंधित अंश -"
" किसी भी
महामारी की शुरुआत समय के बिगड़ने से होती है और समय के सुधरने पर ही
महामारी की समाप्ति होती है | समय से पहले इस पर नियंत्रण करने के लिए
अपनाए जाने वाले प्रयास उतने अधिक प्रभावी नहीं होते हैं |"
19
मार्च 2020 की मेल का महामारी पैदा होने की प्रक्रिया से संबंधित अंश -"
" कोई भी महामारी तीन
चरणों में फैलती है और तीन चरणों में ही समाप्त होती है | महामारी फैलते
समय सबसे बड़ी भूमिका समय की होती है | सबसे पहले समय की गति बिगड़ती है |
ऋतुएँ समय के आधीन हैं इसलिए अच्छे या बुरे समय का प्रभाव सबसे पहले ऋतुओं
पर पड़ता है ऋतुओं का प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है उसका प्रभाव वृक्षों
बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ता है
वायु और जल पर भी पड़ता है इससे वहाँ के कुओं नदियों तालाबों आदि का जल
प्रदूषित हो जाता है | इन परिस्थितियों का प्रभाव जीवन पर पड़ता है | इसलिए
शरीर ऐसे रोगों से पीड़ित होने लगते हैं जिनमें चिकित्सा का प्रभाव बहुत कम
पड़ पाता है |"
19
मार्च 2020 की मेल का महामारी से मुक्ति मिलने की प्रक्रिया से संबंधित अंश -"
" पहले समय की गति सँभलती है उस प्रभाव से
ऋतुविकार नष्ट होते हैं उससे पर्यावरण सँभलता है |उसका प्रभाव वृक्षों
बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की
वस्तुओं पर पड़ता है वायु और जल पर पड़ता है |कुओं नदियों तालाबों आदि का
जल प्रदूषण मुक्त होकर जीवन के लिए हितकारी होने लग जाता है | "
19
मार्च 2020 की मेल का निदान एवं चिकित्सा न हो पाने से संबंधित अंश -
"इसमें
चिकित्सकीय प्रयासों
का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा | क्योंकि महामारियों में होने वाले रोगों
का न कोई लक्षण होता है न निदान और न ही कोई औषधि होती है |" अर्थात इस
महारोग के लक्षणों को न तो पहचाना जा सकेगा और न ही चिकित्सा के द्वारा इस महारोग से मुक्ति दिलाई जा सकेगी |
19
मार्च 2020 की मेल का व्यक्तिगत तौर पर संक्रमण से मुक्ति पाने के उपाय से संबंधितअंश -
" ऐसी महामारियों
को सदाचरण स्वच्छता उचित आहार विहार आदि धर्म कर्म ,ईश्वर आराधन एवं
ब्रह्मचर्य आदि के अनुपालन से जीता जा सकता है |" अर्थात ऐसा संयमवरत कर अपने को रोगमुक्त किया जा सकता है |
कोरोना महामारी संबंधी अलग अलग लहरों के पूर्वानुमान !
19
मार्च 2020 की मेल में महामारी प्रथम लहर के पूर्वानुमान संबंधी अंश -
महामारी बढ़ने का यह समय 24 मार्च 2020 तक चलेगा | उसके बाद इस महामारी का समाप्त होना
प्रारंभ हो जाएगा जो क्रमशः 6 मई तक चलेगा | |उसके बाद समय में
पूरी तरह सुधार हो जाने के कारण संपूर्ण विश्व अतिशीघ्र इस महामारी से
मुक्ति पा सकेगा |"
विशेष बात : 2020 की मई जून जुलाई में नए लोग संक्रमित नहीं हो रहे थे |इसलिए संक्रमण दिनोंदिन घटता जा रहा था | इस समय तक कोई टीका औषधि या कोई अन्य ऐसी चिकित्सा प्रक्रिया नहीं थी | जो महामारी से मुक्ति दिलाने में सक्षम होती | यदि ऐसा कुछ था ही नहीं तो लोग स्वस्थ कैसे होते जा रहे थे | स्वस्थ होने का कारण क्या था |
इस बिषय में वैदिकविज्ञान की प्रामाणिकता :
19 मई 2020 को पीएमओ की मेल में मैंने पहले ही लिख दिया था कि 6 मई के बाद संक्रमण दिनों दिन कम होता चला जाएगा | ये हमें वेदविज्ञान संबंधी अनुसंधानों के आधार पर पहले से ही पता था कि 6 मई के बाद समय बदलेगा |उस बदलाव के कारण लोग संक्रमण से मुक्त होते चले जाएँगे जिससे समय प्रभाव से जून जुलाई आदि महीनों में संक्रमण दिनोंदिन घटते जाने का कारण यदि
समय नहीं था तो दूसरा और क्या हो सकता है |
16 जून 2020 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश ! (9 अगस्त से 16 नवंबर 2020 तक रहेगी )
"इसके बाद यह
महामारी 9 अगस्त से दोबारा प्रारंभ होनी शुरू हो जाएगी जो 24 सितंबर तक
रहेगी !उसके बाद यह संक्रमण स्थायी रूप से समाप्त होने लगेगा और
16 नवंबर के बाद यह स्थायी रूप से समाप्त हो जाएगा !"
दो संयुक्त लहरों के बिषय में विशेष बात :
वैज्ञानिक गणना में 6 मई 2020 को समाप्त हुई एवं 9 अगस्त 2020 को प्रारंभ होने वाली इन दोनों लहरों को एक ही माना गया है | इसका कारण लोग संक्रमित तो 6 मई 2020 के पहले ही हुए थे | उसके बाद नए लोग तो संक्रमित नहीं हुए किंतु 6 मई 2020 के पहले भी जो संक्रमित हुए थे | उनमें से जिन संक्रमितों की जाँच रिपोर्ट जिस महीने की जिस तारीख को आती थी |वे उसी तारीख से संक्रमित माने जाते थे |ऐसी परिस्थिति में 2020 की जून जुलाई आदि में नए लोग संक्रमित भले न हुए हों,किंतु इन महीनों में पुराने संक्रमितों की रिपोर्टें तो आती ही रही हैं | उनसे दोनों लहरों के बीच का समय भर गया और दोनों लहरों को एक करके देखा जाने लगा |
इस बिषय में वैदिकविज्ञान की प्रामाणिकता :
16 जून 2020 को जब संक्रमण दिनोंदिन घटता जा रहा था | इसके बढ़ने के आसार दूर दूर तक नहीं दिखाई दे रहे थे | उसी 16 जून को वैदिकअनुसंधानों के आधार पर पूर्वानुमान लगाकर मैंने यह सूचना पीएमओ की मेल पर भेजी थी कि महामारी की अगली लहर 9 अगस्त से दोबारा प्रारंभ होनी शुरू हो जाएगी जो 24 सितंबर तक
रहेगी !उसके बाद समाप्त होना शुरू होगा जो क्रमशः 16 नवंबर 2020 तक जाएगा | समय संचार में हुए परिवर्तनों के आधार पर मैंने यह पूर्वानुमान लगाया था |
4 अगस्त 2020 को संयुक्त राष्ट्र संघ को भेजी गई मेल का अंश !(9 अगस्त से 16 नवंबर 2020 तक रहेगी )
"8 अगस्त के बाद कोरोना संक्रमण एक बार फिर बढ़ने लगेगा और यह कहीं भी समाज के बड़े हिस्से को संक्रमित कर सकता है।अगले 50 दिनों में यह संक्रमण इतना बढ़ सकता है कि यह एक बार फिर अपने पुराने स्वरूप में पहुँच सकता है।रिकवरी दर बहुत कम होने लग सकती है।अनुमान है कि 24 सितंबर तक संक्रमण तेज़ी से बढ़ सकता है।इसलिए, सावधानी बरतना बेहद ज़रूरी है।इसलिए, हमें यह आकलन करने के लिए लगभग 50 दिन और इंतज़ार करना चाहिए कि यह महामारी स्थायी रूप से समाप्त होने लगी है या नहीं।"
23 दिस॰ 2020को पीएमओ में भेजी गई मेल के वैक्सीन निषेध संबंधी कुछ अंश !
प्रधानमंत्री जी ! "आपसे मेरा विनम्र
निवेदन है कि अच्छी प्रकार परीक्षण करवाकर ही कोरोना वैक्सीन लोगों को
लगाने की अनुमति दी जानी चाहिए |वेद वैज्ञानिक दृष्टि में मैं संपूर्ण
विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि ब्रिटेन में फैल रहा कोरोना वायरस का नया
स्वरूप लोगों को लगाए जा रहे कोरोना वायरस के दुष्प्रभाव हो सकते हैं |"
"महामारी से संक्रमितों की संख्या बिना किसी दवा या
वैक्सीन के स्वयं ही दिनोंदिन तेजी से कम होती जा रही है |केवल श्रेय लेने
की होड़ में सम्मिलित लोगों के द्वारा वैक्सीन के रूप में एक नई समस्या को
जन्म दिया जा सकता है |"
"यदि कोरोना महामारी भारत वर्ष में लगभग
समाप्त हो ही चुकी है तो किसी वैक्सीन के रूप में एक नए प्रकार की समस्या मोल लेने की आवश्यकता ही आखिर क्या है ?"
"किसी भी रोग से मुक्ति दिलाने अथवा उसकी दवा या वैक्सीन
बनाने के लिए सबसे पहले चिकित्सा के सिद्धांत के अनुशार उस रोग का स्वभाव
लक्षण संक्रामकता वेग विस्तार आदि समझना आवश्यक होता है अन्यथा उस रोग की
चिकित्सा किस आधार पर की जा सकती है और उसकी दवा या वैक्सीन कैसे बनाई जा
सकती है? "
"मान्यवर !वेदवैज्ञानिक होने के नाते आपसे मैं केवल इतना ही निवेदन करना
चाहता हूँ कि बिना वैक्सीन लाए ही भारतवर्ष में कोरोना लगभग समाप्त हो ही
चुका है जो रहा बचा है वह भी अतिशीघ्र समाप्त हो जाएगा (इसका पूर्वानुमान
मैं 16 जून को ही आपको भेज चुका हूँ |)"
" ऐसी परिस्थिति में यदि वैक्सीन नहीं लगाई जाती है तब तो कोरोना
अतिशीघ्र समाप्त हो ही जाएगा क्योंकि वातावरण में अब कोरोना वायरस के
उत्पन्न होने की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है और भारत समेत समस्त विश्व को
कोरोना के इस नए स्वरूप से अब डरने की आवश्यकता बिल्कुल ही नहीं है | यदि
वैक्सीन लगाई जाती है तो ब्रिटेन की तरह ही उसके द्वारा फैलने
वाले संक्रमण विस्तार का अनुमान मुझे नहीं है |मेरे अनुसंधान के अनुसार
कोरोना जैसी महामारी से मुक्ति दिलाने वाली वैक्सीन निर्माण वाले दावे बहुत
विश्वसनीय नहीं हैं | "
23 दिस॰ 2020को पीएमओ में भेजी गई मेल तथा वैक्सीन और समय ! यह लिखने के पीछे मेरा उद्देश्य वैक्सीन के गुण दोष देखना नहीं था !ऐसा मैं कर भी नहीं सकता था किंतु मुझे इतना पता था कि इस समय यदि ऐसा कोई वैक्सीन जैसा प्रयत्न किया जाएगा तो उसके दुष्प्रभाव अधिक होंगे | यह काफी कठिन समय था | वैक्सीन लगेगी तो संक्रमण बढ़ेगा ही और जैसे जैसे वैक्सीन लगेगी वैसे वैसे बढ़ता जाएगा | वैक्सीन कब कितनी लगेगी इसका मुझे अनुमान नहीं था | इसलिए इसके बाद वाली लहर के बिषय में मैंने पहले से कोई पूर्वानुमान पीएमओ को नहीं भेजा था |
6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 के बीच जो ट्रायल सफल हुए वही दूसरी लहर में असफल क्यों ?
बिचारणीय बिषय यह है कि 6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 के बीच जिन औषधियों टीकों आदि को कोरोना संक्रमण से मुक्ति दिलाने में सक्षम माना गया था | अप्रैल मई 2021 पहुँचते पहुँचते उन्हीं औषधियों टीकों आदि के बिषय में यह कहा जाने लगा कि उनमें संक्रमण से मुक्ति दिलाने की क्षमता नहीं है |
जिन औषधियों टीकों आदि के प्रभाव को महामारी से मुक्ति दिलाने पहले सक्षम माना गया| उन्हीं औषधियों टीकों आदि के बिषय में अप्रैल 2021 के बाद में कहा जाने लगा कि उनमें महामारी से मुक्ति दिलाने की उस प्रकार की क्षमता नहीं है |
विज्ञान एकप्रकार का, वैज्ञानिक एक प्रकार के और अनुसंधान एक प्रकार के उनसे प्राप्त जानकारी में इतना अंतर कैसे आया | इस बिषय में रिसर्च करने के लिए क्या ऐसा कोई सक्षम विज्ञान ही नहीं था | कहीं ऐसा तो नहीं था कि किसी सक्षम विज्ञान के अभाव में जब जिसप्रकार की घटना घटित होने लगती थी, तब उसप्रकार की घटना घटित होने की संभावना व्यक्त कर दी जाती थी |
इससे अलग यदि कोई वास्तविक विज्ञान भी था वैज्ञानिक भी थे और अनुसंधान भी होते थे,तब तो ये यह पता लगा ही लिया जाना चाहिए था कि 6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 के बीच दिनोंदिन संक्रमण कमजोर होते जाने का कारण क्या था ? उससमय तो संक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए यदि कोई औषधि इंजेक्शन थैरेपी आदि भी उपलब्ध नहीं थी |
इसका कारण यदि ये माना जाए कि एलोपैथ रेमडेसिविर जैसे इंजेक्शनों और प्लाज्मा थैरेपी जैसी चिकित्सा प्रक्रियाओं तथा होम्योपैथ की आर्सेनिक एल्बम-30 एवं पतंजलि की कोरोनिल जैसी औषधियों के प्रभाव से 6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 के बीच दिनोंदिन संक्रमण कमजोर पड़ता जा रहा था तो कोरोना की दूसरी लहर अर्थात अप्रैल मई 2021 में इन्हीं औषधियों इंजेक्शनों थेरेपियों के द्वारा लोगों की महामारी से सुरक्षा क्यों नहीं की जा सकी | संक्रमितों को संक्रमण से मुक्ति क्यों नहीं दिलाई जा सकी ?
6 मई 2020 के बाद 8 अगस्त 2020 बीच संक्रमण घटने का कारण समय था !
इस समय संक्रमण घटने का कारण समय ही था | समय के आधार पर ही अनुसंधान करके 19 अप्रैल 2020
को ही मैंने पीएमओ में मेल भेज दी थी कि 6 मई 2020 के बाद समय के प्रभाव से संक्रमण कमजोर होने लगेगा |
इसके बाद 16 जून 2020
को पीएमओ में दूसरा मेल भेज दिया था कि समय प्रभाव से 8 अगस्त 2020 से संक्रमितों की संख्या फिर बढ़ने लगेगी |जो 24 सितंबर 2020 तक बढ़ती चली जाएगी |उसके बाद संक्रमण कम होना प्रारंभ होगा | संक्रमण धीरे धीरे 13 नवंबर 2020 तक स्वयं ही घटता जाएगा ! ऐसा ही हुआ |
महामारी एवं उसकी लहरों के आने और जाने का कारण समय था | समय परिवर्तन शील होता है | उसमें अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के परिवर्तन होते हैं | समय में जब अच्छे परिवर्तन होते हैं तब महामारी का वेग घटने लगता था और समय में जब बुरे परिवर्तन होते थे तब महामारी का वेग बढ़ने लगता था | अच्छा समय मनुष्यों के लिए हितकर होता है | इसलिए अच्छे समय के प्रभाव से मनुष्यों को स्वस्थ होना ही होता है | इसलिए ऐसे समय मनुष्यों को स्वस्थ करने के लिए जितने भी प्रयत्न किए जाते हैं | उन्हें इसलिए सफल मान लिया जाता है क्योंकि लोग स्वस्थ हो रहे होते हैं | ऐसे समय कुछ लोग स्वस्थ होने का प्रयत्न कर रहे होते हैं | उन्हें ये भ्रम हो जाता है कि लोगों के स्वस्थ होने का कारण उनके द्वारा किए जा रहे प्रयत्न ही हैं |
ऐसे समय जिन जिन औषधियों इंजेक्सनों पैथियों या अन्य चिकित्सा पद्धतियों का जहाँ कहीं परीक्षण(ट्रायल) आदि किया जा रहा होता है | समयप्रभाव से सुधार हो ही रहा होता है | उस सुधार को आधार मानकर उन परीक्षणों को भी सफल मान लिया जाता है |
ऐसे सुधार समय के कारण हो रहे थे या कि परीक्षण के लिए प्रयोग की जा रही औषधियों आदिके प्रभाव से संक्रमितों को संक्रमण से मुक्ति मिल रही है | इस रहस्य का उद्घाटन तब होता है ,जब उसके बाद समय बदलता है और बुरा समय प्रारंभ होता है | उसके प्रभाव से कोई दूसरी लहर आती है ,तब उन्हीं औषधियों इंजेक्सनों पैथियों या अन्य चिकित्सा पद्धतियों से मनुष्यों की सुरक्षा किया जाना संभव नहीं हो पाता है | संक्रमण दिनोंदिन बढ़ता चला जाता है | ऐसी परिस्थिति में अंतर स्पष्ट हो जाता है कि यदि औषधियों इंजेक्सनों पैथियों या अन्य चिकित्सापद्धतियों से लाभ हुआ होता तब तो उसके लहर में भी उनके प्रभाव से लोगों को संक्रमित नहीं होने दिया जाता | जो संक्रमित हुए भी थे | उन्हें उन्हीं चिकित्सापद्धतियों के प्रभाव से स्वस्थ कर लिया जाता ,किंतु ऐसा नहीं हो सका | इससे ये सिद्ध हुआ कि बुरे समय के प्रभाव से लोग संक्रमित हो रहे थे और अच्छे समय के प्रभाव से स्वस्थ हो रहे थे | इसके अतिरिक्त किसी अन्य पद्धति की कोई भूमिका ही नहीं सिद्ध हो रही थी |
संक्रमण घटने और बढ़ने का समय कब कब था !
6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 तक संक्रमण कमजोर होने का समय था | इसके बाद 8 अगस्त 2020 से 24 सितंबर 2020 तक संक्रमण बढ़ने का समय था | 24 सितंबर 2020 से 13 नवंबर 2020 तक फिर संक्रमण कमजोर होते जाने का समय था |
6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 तक एवं 24 सितंबर 2020 से 13 नवंबर 2020 तक संक्रमण से मुक्ति पाने का समय था | इसलिए ऐसे समय किसी ने कोई औषधि इंजेक्शन चिकित्सा आदि ली या नहीं ली फिर भी अच्छे समय के प्रभाव से संक्रमित लोग स्वस्थ होते चले गए |
इसीप्रकार से 8 अगस्त 2020 से 24 सितंबर 2020 तक एवं मार्च अप्रैल 2020 तक संक्रमण बढ़ने का समय था | संक्रमण बढ़ने के समय कोई औषधि चिकित्सा आदि ली गई या नहीं ली गई | इस समय संक्रमण बढ़ना ही था | इसलिए संक्रमण बढ़ता चला गया | पहली लहर में जिन औषधियों इंजेक्शनों आदि को मनुष्यों की सुरक्षा की दृष्टि से सक्षम माना गया था | संक्रमितों पर उनका प्रयोग करने के बाद भी संक्रमण बढ़ता चला जा रहा था |
समयसंबंधी मेरे पूर्वानुमानों के आधार पर 6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 तक कोरोना संक्रमण कम होने का समय था | इसलिए इस समय संक्रमण कम होना ही था |संक्रमण कम करने के लिए जो लोग प्रयत्न कर रहे थे उन्हें भी लगा कि उनके प्रयत्न सफल हो गए | इस समय में किए गए ट्रायल भी सफल होने ही थे | जिसने जिस प्रकार के ट्रायल किए वे सब सफल हुए |
इसीसमय कुछ लोगों ने टीकों का परीक्षण किया तो कुछ लोगों ने औषधियों का कुछ लोगों ने अन्य विभिन्न थेरेपियों का परीक्षण किया | कुछ लोगों ने और तरह तरह के तीर तुक्के आजमाए सबको लगा कि उन्हीं के प्रयास से कोरोना संक्रमण कम हो रहा है |कुछ लोग जादू टोना झाड़ फूँक आदि का सहारा ले रहे थे| समय सुधारा तो उनके स्वास्थ्य में भी सुधार हुआ | उन्हें लगा कि उन्हें जादू टोना झाड़ फूँक आदि के प्रभाव से स्वास्थ्यलाभ हुआ है | कुल मिलाकर सभी के स्वास्थ्य में सुधार के लिए उपाय अलग अलग थे किंतु समय 6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 तक का ही था | यहाँ तक कि वैक्सीनों के ट्रायल भी इसी समय में सफल माने गए |
रेम्डेसिविर : 2 मई 2020 - "कोरोना वायरस के इलाज के लिए लगातार चिकित्सकीय परीक्षण जारी हैं. इसी बीच
एक दवा रेम्डेसिविर को लेकर साकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं. Remdesivir
के इस्तेमाल से COVID-19 के रोगियों में तेजी से रिकवरी देखने को मिल रही
है. अमेरिकी नेतृत्व वाले परीक्षण में यह दवा बीमारी के खिलाफ प्रमाणित
फायदे देने वाली पहली दवा बन गई है |- NDTV
कोरोनिल :23 जून 2020 — आज
पतंजलि ने दो दवाएं लॉन्च की हैं जिनके बारे में कंपनी ने दावा किया है कि
ये कोविड-19 की बीमारी का आयुर्वेदिक इलाज हैं |- बीबीसी
प्लाज्मा थैरेपी : 2 जुलाई 2020 दिल्ली में शुरू हुआ देश का पहला प्लाज्मा बैंक, कोरोना मरीजों के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी काफी कारगर साबित हो रही है | -आजतक
आर्सेनिक एल्बम-30: 23 -8-2020 होमियोपैथिक मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रामजी सिंह के
अध्ययन में यह साबित भी हो रहा है। पटना के 15 हजार लोगों को वे यह दवा दे
चुके हैं। 21 दिन बाद जब दवा का प्रभाव जानने के लिए फोन किया गया तो
परिणाम उत्साहजनक थे। जिन पांच सौ लोगों का अबतक फीडबैक लिया गया है वे सभी
कोरोना से सुरक्षित हैं। - दैनिक जागरण
वैक्सीन निर्माण की विभिन्न घोषणाएँ भी इसी समय की गईं !
5
मई 2020 से 11
अगस्त 2020 तक
5
मई 2020 :इजरायल के रक्षामंत्री नैफ्टली बेन्नेट ने अपने एक बयान में
कहा कि इजरायल के डिफेंस बायोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ने कोविड-19 का टीका बना
लिया है। उन्होंने कहा कि हमारी टीम ने कोरोना वायरस को खत्म करने के टीके
के विकास को पूरा कर लिया है।
8
मई 2020 :अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि उनके देश
में कोरोना महामारी की वैक्सीन खोज ली गई है। अमेरिका ने 20 लाख वैक्सीन
बना ली है | अमेरिकी फार्मास्यूटिकल कंपनी ने कोरोना वायरस को खत्म करने
वाली दवा बना ली है। अमेरिका के कैलीफोर्निया में स्थित
बायोफार्मास्यूटिकल कंपनी गिलियड साइंसेस ने कोरोना वायरस का उपचार करने
वाली एंटीवायरल मेडिसिन बना ली है। इसे वेकलरी नाम दिया गया है।खास बात ये
है कि इस दवा को अमेरिका के बाद जापान ने भी मंजूरी दे दी है। जापान में
गंभीर हालत वाले मरीजों पर इस दवा का इस्तेमाल किया जाएगा।
2 जुलाई 2020-भारत
की एक कंपनी ‘भारत बायोटेक’ने इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रीसर्च और नेशनल
इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरॉलोजी, पुणे के साथ मिल कर वैक्सीन बनाने की दिशा में
एक बड़ी कामयाबी हासिल की है. इस वैक्सीन को नाम दिया गया है
‘कोवैक्सिन’इसका वैक्सीन का प्री-क्लीनिकल ट्रायल कामयाब रहा है और ड्रग
कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया की तरफ़ से इस वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायलकी
मंज़ूरी भी मिल गई है. हैदराबाद की जीनोम वैली के बायो-सेफ़्टी लेवल 3 में
तैयार हुई इस वैक्सीन का अब जल्द ही पहले और दूसरे चरण का ह्यूमन ट्रायल
शुरू हो जाएगा |
13 जुलाई 2020 - रूस ने दावा किया है कि 'उनके वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस कीपहली वैक्सीन बना ली है !
20 जुलाई 2020-वैक्सीन बनाने की दिशा में चल रहे प्रयासों की बात करें, तो दुनियाभर में कोरोना वायरस की 23 वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल हो रहे हैं.कुछ देशों में वैक्सीन्स के ह्यूमन ट्रायल पहले और दूसरे चरण में सफल रहे हैं और अब भारत में भी कोवैक्सीन नाम की वैक्सीन का ट्रायल दिल्ली स्थित ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ (एम्स) में 20 जुलाई से ही यह ट्रायल शुरू हो जाएगा.शुरू होने जा रहा है |
11
अगस्त 2020-रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन घोषणा की कि कोरोना की
वैक्सीन तैयार कर ली गई है. रूस का कहना है कि वैक्सीन को देश में बड़े
पैमाने पर इस्तेमाल के लिए नियामक मंजूरी मिल गई है |
24 सितंबर 2020 से वैक्सीन लगना शुरू होने तक संक्रमण घटने का समय था !
इस समय संक्रमण से लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए जो जो प्रयत्न किए गए वे सभी सही निकले क्योंकि समय ही संक्रमण घटने का था | इसलिए लोग प्रयत्न करते जा रहे थे सुधार का समय होने के कारण उनके सुधार संबंधी प्रयत्नों में सफलता मिलती जा रही थी |
22 नवंबर 2020 -चीन ने कोरोना की एक सुपर वैक्सीन बनाने का दावा किया है।
23
नवंबर 2020 - भारत के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, हम अपने स्वदेशी टीके को विकसित
करने कीप्रक्रिया के अंतिम चरण में हैं. हम अगले एक-दो महीनों में तीसरे
चरण के परीक्षण को पूरा करने की प्रक्रिया में है|
8 दिसंबर 2020 को ब्रिटेन में फ़ाइज़र ने टीकाकरण शुरू किया है |
अमेरिका
ने फ़ाइज़र-बायोएनटेक कोविड वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की मंज़ूरी दे
दी है इसी दिसंबर में फ़ाइज़र वैक्सीन को ब्रिटेन, कनाडा बहरीन और सऊदी अरब
ने पहले ही मंज़ूरी दे दी है.|
30 दिसंबर 2020 ब्रिटेन
ने सबसे पहले फाइजर की कोरोना वैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत दी
थी. अब तक करीब सात लाख से अधिक लोगों को फाइजर वैक्सीन की पहली डोज दी जा ब्रिटेन
ने सबसे पहले फाइजर की कोरोना वैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत दी
थी. अब तक करीब सात लाख से अधिक लोगों को फाइजर वैक्सीन की पहली डोज दी जा चुकी
है. इस बीच ऑक्सफोर्ड की कोरोना वैक्सीन को भी ब्रिटेन ने मंजूरी दे दी
है. इसका मतलब है कि यह टीका सुरक्षित और प्रभावी दोनों है |
25 जनवरी 2021-भारत
बायोटेक को कोरोना की नेजल स्प्रे वैक्सीन BBV154 के ट्रायल की इजाजत मिली
है. जबकि और भी कई देशों में ट्रायल हो रहे हैं और अच्छे नतीजे देखने को
मिल रहे हैं |
कोरोना की सबसे भयानक दूसरी लहर
इसके बाद समय में ऐसा बदलाव हुआ 23 दिस॰ 2020 को पीएमओ में मेल भेज भेज कर मैंने सूचित किया
था कि "यदि वैक्सीन नहीं लगाई जाती है तब तो कोरोना अतिशीघ्र समाप्त हो ही
जाएगा और यदि वैक्सीन लगाई जाती है तो ब्रिटेन की तरह ही उसके द्वारा फैलने
वाले संक्रमण विस्तार का अनुमान मुझे नहीं है |मेरे अनुसंधान के अनुसार
कोरोना जैसी महामारी से मुक्ति दिलाने वाली वैक्सीन निर्माण वाले दावे बहुत
विश्वसनीय नहीं हैं |" इससे हमारा अनुमान स्पष्ट था कि यदि
वैक्सीन नहीं लगाई जाएगी तो समाज संक्रमण मुक्त हो जाएगा और यदि वैक्सीन
लगाई जाती है तो संक्रमण का विस्तार होगा | इस प्रकार से जैसे जैसे संक्रमण
वैक्सीन लगता चला गया वैसे वैसे संक्रमण बढ़ता चला गया | इसके बाद
जब संक्रमण काफी बढ़ गया था चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था | उससमय 19 अप्रैल
2020 को पीएमओ को मेल भेजकर मैंने सूचित किया था कि 2 मई 2021 से कोरोना
संक्रमण समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा |
19 अप्रैल 2021 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !( 20 अप्रैल 2021 से 2 मई 2021 तक )
" मेरा अनुमान है कि ईश्वरीय कृपा से 20 अप्रैल 2021 से ही महामारी पर
अंकुश लगना प्रारंभ हो जाएगा ! 23 अप्रैल के बाद महामारी जनित संक्रमण कम
होता दिखाई भी पड़ेगा !और 2 मई के बाद से पूरी तरह से संक्रमण समाप्त
होना प्रारंभ हो जाएगा |"
(अनुसंधानों की अग्नि परीक्षा )
वैदिकविज्ञान और आधुनिकविज्ञान के आकलन में अंतर
वैदिकविज्ञान के आधार पर संक्रमण बढ़ने और घटने का पूर्वानुमान लगा लिया
जाता था | जिस समय लोग संक्रमित होने प्रारंभ होते थे|उस समय लक्षण अत्यंत
सामान्य होते थे | वैदिक विज्ञान के आधार पर वहीं से महामारी का प्रारंभ
होना मान लिया जाता था|
आधुनिक वैज्ञानिक आकलन की दृष्टि से जब कोई व्यक्ति संक्रमित होना शुरू
होता था | उस समय लक्षण अत्यंत सामान्य होने के कारण उन्हें गंभीरता से
नहीं लिया जाता था |उसे साधारण सर्दी जुकाम माना जाता था | रोग जब बढ़ता
चला जाता था और औषधियों से कोई लाभ नहीं हो रहा होता था |उस समय कोरोना
संबंधी जाँच करवाई जाती थी | उसमें यदि वो संक्रमित निकलता था तो उसका
संक्रमित होना माना जाता था जबकि वो लगभग 10 दिन पहले संक्रमित हो चुका
होता था | इसलिए वैदिक विज्ञान 10 दिन पहले से उसे संक्रमित मानता था और
आधुनिक विज्ञान 10 दिन संक्रमित मानना प्रारंभ करता था | बहुत लोग ऐसे भी
थे जो संक्रमित हुए किंतु जाँच नहीं करवाई |वैदिक विज्ञान उन्हें भी
संक्रमित मानकर चलता है जबकि आधुनिक विज्ञान की दृष्टि में जिन्होंने जाँच
नहीं करवाई वे संक्रमित ही नहीं हुए |दोनों में ये अंतर देखा गया है |
जिसप्रकार से खरबूजे के खेत में बहुत सारे खरबूजे पके पड़े हों किंतु
व्यवस्था के अभाव में उन सभी खरबूजों को एक साथ खेत से उठाना न संभव हो पा
रहा हो | खेत में पड़े उन पके खरबूजों में से जितने खरबूजे उठाए जा पा रहे
हों केवल उतने ही खरबूजे पके हैं | ऐसा आधुनिक विज्ञान का मत रहा है ,जबकि
वैदिक विज्ञान के आधार पर खेत में पके पड़े सभी खरबूजों पका मानने की
परंपरा देखी जाती रही है |
इसीप्रकार से महामारी एक बार आकर बहुत सारे लोगों को संक्रमित कर जाती
रही है | उसके बाद उनमें से जो लोग जब जाँच करवाते थे उस जाँच रिपोर्ट में
यदि वे संक्रमित पाए जाते थे तब इनकी संक्रमितों में गणना की जाती थी |
ऐसी परिस्थिति में संक्रमित होने में और संक्रमितों की संख्या में
सम्मिलित होने में लगभग 10 से 15 दिनों का अंतराल हो जाता था | इस कारण से
महामारी की कौन लहर कब प्रारंभ हुई कब पीक पर पहुँची और कब समाप्त हुई
|ऐसा होने में और इसका आकलन करने में दस पंद्रह दिनों का अंतर हो जाता था |
इसलिए वैदिक विज्ञान के बिना केवल जाँच के आधार पर किसी लहर के आने जाने
या शिखर पर पहुँचने के निश्चित समय का पता लगाना संभव न था |
महामारी की पहली लहर जब आई तो एक साथ बहुत लोगों को संक्रमित करके 6 मई
2020 को पूरी हो गई,किंतु संक्रमितों की जाँच बहुत बाद तक होती रही| इसलिए
बाद तक ये भ्रम बना रहा कि लोग अभी भी संक्रमित हो रहे हैं | कुछ लोग
संक्रमित तो 6 मई 2020 से पहले हुए किंतु उनकी जाँच 18 मई 2020 को हुई |
उसमें उनके संक्रमित होने की पुष्टि हुई |
इस प्रकार से 6 मई 2020 से पहले संक्रमित हो चुके लोग चिकित्सा और जाँच
के अभाव में उसके काफी बाद तक अपनी जाँच नहीं करवा पाए | उन्हें जाँच का
जब अवसर मिला उसके बाद जाँच रिपोर्ट मिली उसके आधार पर उस समय उन्हें
संक्रमित माना गया |
किसी के संक्रमित होने और संक्रमितों की संख्या में सम्मिलित होने
में इसी अंतर के कारण 6 मई 2020को समाप्त हो चुकी लहर में संक्रमित हुए
लोगों को जाँच बाद में हुई तो वे बाद तक संक्रमितों की श्रेणी में बने रहे |
इस समय नए लोगों का संक्रमित होना प्रायः समाप्त हो चुका था | इसके बाद 8
अगस्त 2020 से अगली लहर प्रारंभ हुई थी | जिससे 6
मई 2020 को समाप्त होने वाली एवं 8 अगस्त 2020 को प्रारंभ होने वाली
दोनों लहरों को भ्रमवश एक में मिलाकर उन दोनों को एक ही लहर मान लिया गया
|
वैदिक विज्ञान के आधार पर हमने उसका शिखर 24 सितंबर 2020 को होगा ऐसी
भविष्य वाणी की थी | जबकि वैज्ञानिकों ने बाद में इसका शिखर 18 सितंबर
2020 को माना था |
क्या था महामारी और उसकी लहरों के पैदा होने का कारण !
जिसप्रकार से महामारी के आने और जाने का समय पूर्वनिर्धारित होता है |
उसी प्रकार से उसकी लहरों के आने और जाने का समय अनादिकाल से निश्चित होता
है |
जिसप्रकार से महामारी के आने का कारण लोगों की आपसी छुआछूत नहीं होती
है | उसीप्रकार से महामारी की लहरों के आने का कारण आपसी छुआछूत नहीं
होती है |इसका कारण यदि छुआछूत होती होती तब तो महामारी बहुत पहले से होती
क्योंकि लोग तो आपस में एक दूसरे को छूते ही हैं | महामारी समाप्त होते समय
भी एक दूसरे को छूते ही रहेंगे |
महामारी या उसकी लहरों के पैदा होने का कारण यदि आपसी छुआछूत को माना जाएगा तब तो महामारी कभी समाप्त ही नहीं होगी |आपसी छुआछूत तो हमेंशा ही चलती रहती है | बहुत लोग तो संक्रमितों के बीच रहकर भी संक्रमित नहीं हुए उन्हें क्या कहा जाए | बिहार
बंगाल की चुनावी रैलियाँ हों ,हरिद्वार का कुंभ मेला हो,दिल्ली का किसान
आंदोलन हो,दिल्ली सूरत मुंबई जैसे महानगरों से श्रमिकों का पलायन हो ,घनी
बस्तियों या सामूहिक रहन सहन में रहने वाले लोग हों !महानगरों में भोजन के लिए दिन दिन भर लाइनों में खड़े छोटे बच्चे आदि ऐसी जगहें थीं | जहाँ एक दूसरे को छुए बिना रहना संभव ही न था |
इसलिए महामारी की किसी भी लहर के आने का कारण आपसी छुआछूत न होकर प्रत्युत
वह समय ही होता है | जो महामारीजनित संक्रमण पैदा होने या बढ़ने के लिए
अनादि काल से निर्धारित था | कोई भी महामारी या उसकी लहर अपने पूर्व
निर्धारित समय पर ही आती है |
इसी प्रकार से वायु प्रदूषण महामारीजनित संक्रमण बढ़ने का कारण नहीं
होता है | यदि ऐसा होता तब तो महामारी बहुत पहले ही आ जाती क्योंकि
वायुप्रदूषण तो कई वर्ष पहले से ही बढ़ता चला आ रहा था | सन 2020 के
अक्टूबर नवंबर में वायुप्रदूषण बहुत अधिक बढ़ा हुआ था किंतु महामारीजनित
संक्रमण दिनोंदिन कम होता जा रहा था |वायुप्रदूषण बढ़ने से यदि संक्रमण
बढ़ता होता तो उस समय संक्रमण बढ़ना चाहिए था,किंतु फरवरी 2021 तक संक्रमण
घटता ही चला गया | 2021 के मार्च अप्रैल में जब इतना वायुप्रदूषण मुक्त
आकाश था कि अमृतशर और बिहार से हिमालय के दर्शन हो रहे थे | वायुप्रदूषण
बढ़ने से यदि संक्रमण बढ़ता होता तो वायुप्रदूषण घटने से संक्रमण घटना भी
चाहिए था !किंतु 2021 के मार्च अप्रैल में जब वायुप्रदूषण बिल्कुल नहीं था |उसी समय भारत में सबसे भयंकर दूसरी लहर आई थी | इससे वायु प्रदूषण बढ़ने के कारण संक्रमण
बढ़ताहै | ये बात प्रमाणित नहीं हुई | इसका मतलब कोरोना की कोई भी लहर
वायुप्रदूषण बढ़ने से नहीं प्रत्युत अपने पूर्व निर्धारित समय पर ही आती रही
है |
इसी प्रकार से तापमान कम होने पर महमारीजनित संक्रमण बढ़ेगा !ऐसा कहा गया था, किंतु पहली दूसरी और चौथी लहर तब आई जब वायुप्रदूषण बढ़ा
होता था | केवल तीसरी लहर ही जनवरी में आई थी जब तापमान कम था | ऐसी
स्थिति में तापमान बढ़ने और कम होने से संक्रमण का कोई संबंध सिद्ध नहीं हुआ
|
इसलिए यह मानने के अतिरिक्त कोई दूसरा विकल्प नहीं बचता है कि महामारी
या उसकी लहरों के आने और जाने का कारण इनके लिए पूर्व निर्धारित समय ही था |
निश्चित होता है महामारी की लहरों के आने जाने का समय !
भूकंप आदि जिन घटनाओं के बिषय में हमें पहले से पता नहीं होता है | वे घटित अपने पूर्व निर्धारित समय से ही घटित होती हैं किंतु हमें उनकी पूर्व सूचना न होने से वे अचानक घटित हुई सी लगती हैं | ऐसे ही महामारी संबंधी संक्रमण जो कभी
अचानक बढ़ते और कभी अचानक घटते दिखाई पड़ता है | उसमें अचानक कुछ भी नहीं
होता था |संक्रमण अपने समय पर बढ़ता और समय पर ही घटता था | उसके बढ़ने घटने का समय पहले से पता न होने के कारण उसके अचानक घटने बढ़ने का भ्रम होता है |
इस सच्चाई को न स्वीकार करके इसे यदि घड़ी में होने वाला जलवायुपरिवर्तन एवं महामारी में होने वाला स्वरूपपरिवर्तनजैसा कुछ मानकर इस अनसुलझे रहस्य को उसी आधी अधूरी अवस्था में छोड़ दे |ऐसा हमेंशा किया जाने लगे तो ये सच्चाई कभी सामने नहीं आ पाएगी |
किसी घड़ी में समय विशेष का अलार्म पहले से लगाया जा चुका हो,उसके बजने का समय निश्चित होता है | इसलिए वो अपने समय पर ही बजेगा ! ये रहस्य जिसे न पता हो वो उस घड़ी को बजाने के उद्देश्य से अपनी अँगुली से घड़ी को धीरे धीरे थपकी देने लगे उसी बीच अलार्म बजने लगे तो उसे ये भ्रम स्वाभाविक है कि अलार्म उसके थपकी देने से बजा है जबकि वो अपने समय से बजा है | इस भ्रम का निराकरण तब होता है जब दूसरी बार थपकी देने के बाद में भी नहीं बजता है | इस रहस्य को न समझकर इस स्थिति को यदि वो
प्राकृतिक रोगों या महारोगों में चिकित्सा की भी यही स्थिति होती है | कोरोना की पहली लहर में संक्रमण जैसे जैसे कम होता जा रहा था |उस समय जो जो कुछ खा रहा था या संक्रमण से मुक्त होने के लिए जो जो प्रयत्न कर रहा था | उसके प्रभाव से ही वह स्वस्थ हुआ है ऐसा मानते जा रहा था |
महामारी संबंधी संक्रमण किस तारीख से बढ़ने लगेगा और किस तारीख़ तक बढ़ेगा
!उसके बाद किस तारीख़ से घटना शुरू होगा और किस तारीख तक घटेगा ये यह बहुत
पहले से निश्चित होता है | महामारी के रहस्य को समझने वाले वैदिक
वैज्ञानिक इसका अनुमान पूर्वानुमान आदि पहले से पता लगा लेते हैं | उन्हें
ऐसी घटनाएँ अचानकघटित हुई सी नहीं लगती हैं |उन्हें ये पूर्व निर्धारित
प्रकृति क्रम लगता है |
महामारी संबंधी संक्रमण के बढ़ने और घटने के पूर्व निर्धारित समय को जो
नहीं समझ पाते हैं | वे उसके घटने बढ़ने के लिए मनुष्यकृत प्रयत्नों को
जिम्मेदार मानने लगते हैं|
इसीलिए महामारी संबंधी संक्रमण जब बढ़ने का समय आता था तब संक्रमण स्वयं ही बढ़ने लगता था | यद्यपि उसके बढ़ने का कारण उसका पूर्वनिर्धारित समय था ,किंतु अज्ञानवश संक्रमण बढ़ने के लिए कोविड नियमों का पालन न करने को जिम्मेदार मानलिया जाता है |
इसी प्रकार से महामारी संबंधी संक्रमण जब घटने का समय आता था तब संक्रमण स्वयं ही घटने लगता था | उसके घटने का कारण यद्यपि उसका पूर्वनिर्धारित समय होता था ,किंतु अज्ञानवश संक्रमण बढ़ने के लिए कोविड नियमों का पालन करने,लॉकडाउन लगाने तथा और भी औषधियों टीकों आदि को जिम्मेदार मानलिया जाता है |जो महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए किए या कराए जा रहे होते हैं |
कुलमिलाकर संक्रमण से मुक्ति पाने के लिए लोग चिकित्सा औषधि तरह तरह के
इंजेक्शन काढ़े झाड़ फूँक जादू टोना आदि सैकड़ों प्रकार के उपायों का परीक्षण
कर रहे होते हैं | उनके ऐसा करते समय यदि संक्रमण घटने लगता था तो वे अपने
तीर तुक्कों को ही संक्रमण घटने का कारण मान लेते हैं | जो जिसप्रकार के
उपायों का प्रयोग या परीक्षण रहा होता है| संक्रमण घटने के लिए वो उन्हीं अपने उपायों को जिम्मेदार मान लेता है | यद्यपि समय आने पर संक्रमण अपने आपसे घटता ही है | संपूर्ण कोरोनाकाल में ऐसा बार बार होता रहा है |
उदाहरण :
पूर्वनिर्धारित समय के प्रभाव से 6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 के बीच संक्रमण कम होने का समय चल रहा था | ऐसे रोगमुक्ति दिलाने वाले समय के आ जाने से बिना चिकित्सा या बिना किसी
उपाय के ही कोरोना से संक्रमित सभी रोगी दिनोंदिन स्वतः स्वस्थ होते जा
रहे थे |इसलिए चिकित्सा या उपाय की आवश्यकता न होने पर भी कुछ लोग चिकित्सा
के नाम पर संक्रमितों पर तरह तरह के प्रयोग करते देखे जा रहे थे |जिनका
कोरोना महामारी या संक्रमितों से दूर दूर तक कोई लेना देना ही नहीं था
,फिर भी समय प्रभाव से संक्रमण से मुक्ति मिलने का श्रेय भी उस प्रकार के
लोग अपने अपने उपायों को देते जा रहे थे |
महामारी एवं उसकी लहरों के पैदा और समाप्त होने का पूर्वानुमान !
20 अक्टूबर 2018 को पीएमओ को भेजी गई मेल का स्वास्थ्य बिषयक अंश !
" 10 अक्टूबर 2018 से लेकर 30 नवंबर 2018 तक लगभग 50 दिन का समय सारे विश्व के लिए ही अच्छा नहीं है !ये समय जैसे जैसे आगे बढ़ता जाएगा वैसे ही वैसे इस समय का दुष्प्रभाव उत्तरोत्तर क्रमशः और अधिक बढ़ता जाएगा ! इस समय वायु प्रदूषण सीमा से काफी अधिक बढ़ जाएगा !स्वाँस,सूखी खाँसी की समस्याएँ काफी अधिक बढ़ जाएँगी !घबड़ाहट बेचैनी कमजोरी चक्कर आने जैसे रोगों से भय फैलेगा !इस समय थोड़ा सा विवाद भी बहुत बड़े संघर्ष का स्वरूप धारण कर सकता है !यद्यपि ऐसी घटनाएँ इस समय में सारे विश्व में घटित होंगी !"