बुधवार, 17 अप्रैल 2024

2-4-2024

साधू लोग जिस घर से और घर वालों से  डर कर बाबा बने उन्हें घर में कैसे रहा जाए इसके  गुर सिखा रहे हैं | 
जो नेता अपनी रोजी रोटी अपने बलपर नहीं चला सके वे दूसरों को रोटी कपड़ा मकान देने दुहाई दे रहे हैं |  
                                                         
                                                        प्रथम अध्याय 
 
                                                 महामारी  की आग !
     
                          स्वयं लगी या लगाई गई ! 
                                              स्वयं बुझी या बुझाई गई !!
 
                       लड़खड़ाते अनुसंधानों  को  सहारा देता परंपराविज्ञान !
 
                         महामारी पीड़ितों को विज्ञान से  कितनी पहुँचाई जा सकी मदद !
                           विज्ञान न होता तो क्या हो सकता था इससे भी अधिक नुक्सान !

                                                              दो शब्द 

       चिंता होनी स्वाभाविक ही है कि भारत को पड़ोसी देशों के साथ तीन युद्ध लड़ने पड़े हैं | उनमें काफी लोगों की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हुई थी | देश के लिए अपने प्रत्येक देशवासी का जीवन बहुमूल्य है |ऐसे दुलारे देशवासियों पर प्राण न्योछावर करने के लिए तैयार रहने वाला भारत तब तक शांत नहीं बैठा जबतक दुश्मनों को कुचलकर अपने लोगों की सुरक्षा के लिए मजबूत तैयारियाँ करके रख नहीं लीं |इसलिए रक्षा के क्षेत्र में देश ने बहुत अग्रिम तैयारियाँ करके रखी हैं |उन्हीं के बल पर आज कोई भी दुश्मन देश भारत की ओर कुदृष्टि डालने का साहस नहीं कर सकता है |ये भारत के द्वारा अपने देश एवं देशवासियों की सुरक्षा के लिए करके रखी गई उन तैयारियों का ही परिणाम है |

      विशेष बिचार करने योग्य बात यह है कि पड़ोसी दुश्मन देशों के साथ हुए तीनों  युद्धों में मिलाकर भारतवर्ष को अपने जितने नागरिकों का बहुमूल्य जीवन खोना पड़ा था,उससे कई गुणा अधिक लोग केवल कोरोनामहामारी में ही मृत्यु को प्राप्त हुए हैं |महामारियों से सुरक्षा के लिए भी वैसे ही मजबूत संकल्प के साथ भविष्य के लिए प्रभावी तैयारियाँ करके रखे जाने की आवश्यकता है |  जिससे भविष्य में आने वाली महामारियों में प्रत्येक नागरिक के बहुमूल्य जीवन की सुरक्षा की जा सके !

   भविष्य में भी ऐसी महामारियाँ तो आती और जाती रहेंगी ! उस समय के लिया क्या कुछ ऐसी तैयारी अभी से करके रखी जा सकती है| जिससे महामारी को आने से रोका भले न जा सके किंतु महामारियों में अपने नागरिकों के बहुमूल्य जीवन न खोने पड़ें उतनी तैयारी तो करके तो रख ही लेनी चाहिए | 

    महामारी आती और जाती रहती हैं | उसमें जनधन हानि होती रहती है! यह तो निश्चय है कि अनुसंधान महामारी को रोकने के लिए नहीं होते हैं | अनुसंधानों का उद्देश्य महामारी में होने वाली जनधन हानि को रोकने के लिए सार्थक प्रयत्न करना है | कोरोना महामारी के समय जनधन हानि को घटाने के लिए प्रयत्नों के नाम पर कुछ न कुछ किया जाता रहा है किंतु उनकी सार्थकता कितनी रही है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन प्रयत्नों के परिणाम स्वरूप जब जब जो जो कुछ होने के लिए कहा गया वैसा कुछ  भी होते नहीं दिखा |महामारी के विषय में जो अनुमान किए गए या जो पूर्वानुमान लगाए गए जिन कारणों से संक्रमण के बढ़ने या घटने की बात कही गई|जिन औषधियों का प्रयोग जो बोलकर किया गया उनमें से किसी में वैसा कुछ होते नहीं दिखा !जिससे महामारी की समझ पर संशय होना स्वाभाविक ही है| इससे लगता है कि महामारी के विषय में कुछ भी पता नहीं लगाया जा सका है | जिन अनुसंधानों के परिणाम स्वरूप अभी ही खाली हाथ हैं | उनसे ऐसे किन अनुभवों की अपेक्षा की जाए जिन्हें भविष्य की महामारियों के लिए सहायक समझा जाए |       

     कोरोना महामारी का सामना करने में यदि अनुसंधानजनित कुछ अनुभव संचित किए जा सके होते तो वे भविष्य की महामारियों से बचाव के लिए नींव के पत्थर सिद्ध होते| उसी के आधार पर भावी महामारियों से बचाव के लिए ऐसा कोई 'महामारीकवच' तैयार किया जाता,जिसके द्वारा भविष्य की किसी महामारी से देशवासियों  की सुरक्षा कर ली जाती | 

                                                                   भूमिका  

                               हमारा महामारी मुक्त समाज संरचना का संकल्प !

      महामारियाँ जब आती हैं तो बड़े वेग से आती हैं ! आते ही बड़ी संख्या में लोगों को संक्रमित करने लगती हैं | जिससे लोग मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं | ये सब देखसुन कर पता लग पाता है कि महामारी आ गई है | इतने कम समय में न तो रोग को पहचानना संभव होता है और न ही उसकी प्रकृति का पता लगाना | इसके बिना चिकित्सा का निर्णय लिया जाना संभव नहीं होता है | इतने बड़े पैमाने पर औषधीय द्रव्यों का संग्रह करना  तथा औषधि निर्माण करना ये सब बहुत कठिन होता है | 

      ऐसे कठिन समय में लोग एक ओर तो महामारी से परेशान होते हैं तो दूसरी ओर लॉकडाउन एवं अन्य कठोर कोविडनियमों के कारण कहीं आना जाना एवं रोजी रोजगार  संचालन काफी  कठिन हो जाता है |भविष्य में महामारी से ऐसे न जूझना पड़े एवं कठोर कोविडनियमों के पालन के लिए इतना विवश न होना पड़े |रोजीरोजगार न गँवाना पड़े |समाज अपनी अबाध गति से निरंतर आगे बढ़ता रहे |इसके लिए परंपरा विज्ञान का क्या योगदान हो सकता है | इस विषय में मेरा चिंतन निरंतर जारी रहा | 

      महामारी शुरू हो जाने पर महारोग की प्रकृति को समझने के लिए समय ही नहीं होता है | रोग की प्रकृति को समझे बिना उससे बचाव के लिए चिकित्सा किया जाना संभव नहीं होता है | ऐसी स्थिति में महामारी के आ चुकने के बाद बचाव के लिए कितने भी प्रयत्न क्यों न कर लिए जाएँ,किंतु उनसे बचाव हो नहीं पाता है |समय इतना कम होता है इसलिए पहले से करके रखी गई तैयारियाँ ही महामारी से बचाव की दृष्टि से तुरंत काम आ पाती हैं | ऐसा किया जाना तभी संभव है जब पहले से पता हो कि भविष्य में ऐसी कोई  महामारी आने की संभावना है |

     मेरी जानकारी के अनुशार अभी तक ऐसा कोई विज्ञान प्रकाश में नहीं आया है, जिसकी मदद से भविष्य में झाँका जा सके |ऐसे सक्षम विज्ञान के बिना भविष्य में घटित होने वाली संभावित घटनाओं को न तो देखा जा सकता है और न ही उनके विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि ही लगाया जा सकता है| इसके बिना ऐसी महामारियों से बचाव के लिए इतनी बड़ी मात्रा में अग्रिम तैयारियाँ करके कैसे रखी जा सकती हैं | महामारियों से बचाव के लिए ऐसी घटनाओं के विषय में सही पूर्वानुमान लगाया जाना सबसे पहले आवश्यक है |

      इसके लिए जब सृष्टि का निर्माण हुआ था उस आदिकाल में जाना होगा | पृथ्वी पर मनुष्य का पदार्पण होने के पहले से महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती आ रही हैं | भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात चक्रवात जैसी घटनाएँ भी तभी से घटित होती आ रही हैं |

   ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि ऐसी घटनाओं के घटित होने के जो कारण अभी हैं वही तब भी विद्यमान थे |वैसे भी ऐसी घटनाएँ मनुष्य द्वारा निर्मित नहीं हैं | यदि प्राकृतिक हैं तो प्रकृति के साथ ही निर्मित हुई होंगी ! ऐसा विश्वास किया जाना चाहिए | प्राचीन काल में प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि भी प्राकृतिक रूप से ही लगाए जाते थे | प्राचीन साहित्य में ऐसे वर्णन मिलते हैं | 

    महामारी से बचाव के लिए प्रयत्न

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                                              'महामारीकवच' तैयार करने की प्रतिज्ञा !

      भारत के उसी प्राचीन परंपराविज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो प्रत्येक बड़ी प्राकृतिक घटना के घटित होने से पहले भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात चक्रवात जैसी छोटी बड़ी कुछ दूसरी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं | उन्हीं घटनाओं के आधार पर अनुसंधान पूर्वक यह पता लगाया जा सकता है कि निकट भविष्य में प्राकृतिक वातावरण में किस प्रकार के परिवर्तन होने वाले हैं |उन परिवर्तनों के फल स्वरूप किस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित हो सकती हैं | उनका पूर्वानुमान यदि प्राचीन काल में लगा लिया जाता था तो अब क्यों नहीं लगाया जा सकता है |  

       इसी लक्ष्य को लेकर मैंने आज के लगभग पैंतीस वर्ष पहले भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात चक्रवात एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में अनुसंधान करना प्रारंभ किया था |जिसमें कुछ ऐसे अनुभव प्राप्त हुए कि मौसमसंबंधी प्राकृतिक घटनाओं को अच्छी के प्रकार से समझे बिना उनके विषय में लगाए गए पूर्वानुमान सही निकले बिना महामारी को न तो समझा जाना संभव है और न ही उसके या उसकी लहरों के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना ही संभव है | इसके बिना महामारी से बचाव के लिए किया गया प्रायः प्रत्येक प्रयत्न निरर्थक है |

    ऐसा निश्चय कर लेने के बाद मैंने मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में अनुसंधान प्रारंभ किए और वर्षा बाढ़ भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात जैसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने लगा | जो कभी सही कभी गलत निकलते रहे धीरे धीरे काफी सही होते दिखाई देने लगे |उन्हीं के आधार पर मैं प्रकृति को समझने का प्रयत्न लगातार करता आ रहा हूँ ! 

  अनुसंधान की इस प्रक्रिया में पहले घटित हो चुकी एवं वर्तमान समय में घटित हो रही प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर भविष्य में घटित होने वाली संभावित घटनाओं के विषय में न केवल सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने में एक सीमा तक सफलता मिलने लगी है ,प्रत्युत उन भावी घटनाओं की प्रकृति और पहचान समझने में भी सुविधा होती है |

     अपने अनुसंधानों से प्राप्त अनुभवों के अनुशार मुझे लगभग 2010 से महामारी जैसे किसी बड़े प्राकृतिक रोग महारोग आदि शुरू होने के विषय में आशंका होने लगी थी | गणितविज्ञान की मदद से ऐसे अनुसंधानों को और अधिक प्रभावी एवं दूरगामी बनाया जा सकता है | 

   अलनीनो लानिना जैसी परिकल्पनाएँ  इसी पद्धति का आरंभिक अनुकरण है,किंतु समुद्र में ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण क्या है ?इनका मौसम संबंधी घटनाओं से संबंध कैसे जोड़ा जाता है ? इनके परिणाम स्वरूप घटित होने वाली घटनाओं का निश्चित स्वरूप क्या है ?इसके आधार पर लगाए गए पूर्वानुमान अक्सर सही न निकलने का कारण क्या है ?इन आवश्यक प्रश्नों के अनुसंधानजनित उत्तर खोजे जाने चाहिए | 

     जलवायुपरिवर्तन भी हो सकता है कि ऐसा ही कोई परिवर्तन हो,किंतु जलवायु परिवर्तन का वर्तमान स्वरूप क्या है ?ऐसा परिवर्तन होने का कारण क्या है ? इसके परिणाम कितने समय में किस रूप दिखाई देंगे ? इन प्रश्नों का अनुसंधानजनित तर्कसंगत  वैज्ञानिक आधार खोजा जाना चाहिए !

     कुलमिलाकर  प्रकृति के कण कण में छोटे बड़े परिवर्तन प्रतिपल होते रहते हैं |उन परिवर्तनों के होने के कुछ प्राकृतिक कारण होते हैं और वे परिवर्तन भविष्य में होने वाले कुछ परिवर्तनों (घटनाओं) के कारण होते हैं | जिस प्रकार से किसी वर्ष गर्मी अधिक क्यों पड़ रही है |इसका ऐसा का कुछ कारण होगा !जिससे यह पता लगे कि इस वर्ष ऐसा विशेष क्या हुआ है जिसके परिणाम स्वरूप इतनी अधिक गर्मी पड़ रही है|ये कारण खोजा जाना चाहिए |   अधिक गर्मी पड़ने के परिणाम स्वरूप इस वर्ष अधिक वर्षा हो सकती है | ऐसा परिणाम होगा |

     इसीप्रकार से सभी प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित परिवर्तनों के कारण खोजने होते हैं | इनके परिणाम स्वरूप जो घटनाएँ घटित होने वाली होती हैं| उनके विषय में पूर्वानुमान लगाना होता है | इससे ये हमेंशा ये पता लगते रहता है कि निकट भविष्य में प्रकृति में किस प्रकार के बदलाव होने जा रहे हैं |      

      ऐसा अभ्यास निरंतर करते रहने से प्रत्येक प्राकृतिक आपदा तथा महामारी घटित होने से काफी पहले से पता लग जाती है | कुछ विशेष घटनाओं के विषय में यदि बहुत पहले से पूर्वानुमान लगाना आवश्यक हो तो महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाने से पहले उन भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात चक्रवात जैसी ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना आवश्यक समझा जाता है ,जो महामारी से पहले घटित होती हैं | उन्हीं  पूर्वानुमानों के आधार पर महामारी एवं उसकी लहरों के आने के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |  

     इतने पहले से एवं सही  पूर्वानुमान लगाने के लिए गणितविज्ञान ही एक मात्र विकल्प है |ये वही गणित विज्ञान है जिसके द्वारा सैकड़ों वर्ष पहले सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में पूर्वानुमान लगाने की  सशक्त परंपरा रही है | ऐसे ग्रहणों के विषय में सैकड़ों हजारों वर्ष पहले लगाया गया पूर्वानुमान आज भी पूरी तरह सही निकलता है |जिस गणित विज्ञान के आधार पर सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में इतना सही पूर्वानुमान इतने पहले लगाया जा सकता है |उसी गणितविज्ञान के द्वारा यदि भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात चक्रवात एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में भी पूर्वानुमान लगाना संभव हो जाए तो मानवता की बहुत बड़ी मदद हो सकती है | भारत के प्राचीन परंपरा विज्ञान के द्वारा यदि प्राचीन काल में ऐसा किया जाना संभव था तो अब क्यों नहीं हो सकता है !

                                                  परंपराविज्ञान और पूर्वानुमान

       प्राचीन काल में पूर्वानुमान लगाने के लिए जो अनुसंधान किए जाते थे उनकी दो प्रमुख विधाए हैं | एक प्रत्यक्ष साक्ष्य आधारित अनुसंधान और दूसरे समय आधारित अनुसंधान !इनमें साक्ष्य आधारित अनुसंधानों में अपनी आँखों से प्रत्यक्ष या किसी यंत्र की सहायता से देखकर,या किसी संबंधित व्यक्ति से पूछताछ करके जो जानकारी जुटाई गई होती है और समय आधारित अनुसंधानों में सभी परोक्ष जानकारियाँ जुटानी होती हैं | उसका प्रत्यक्ष से मिलान करते जाना होता है | 

     जिस प्रकार से कुछ खगोलीय कारणों से आकाश में अष्टमी को चंद्र का आधा मंडल दिखाई देता है | ये प्रत्यक्ष दिखा पड़ रहा होता है किंतु उसके बाद नवमी दशमी आदि तिथियों में चंद्र मंडल बढ़ेगा या घटेगा उसका पूर्वानुमान लगाना है तो इस विषय में ऐसा कुछ भी प्रत्यक्ष नहीं दिखाई पड़ रहा है जिसके आधार पर यह पता लगाया जा सके |

      वर्तमान पद्धति से इसके विषय में  यदि रिसर्च किया जाए तो चंद्रमा को प्रत्यक्ष रूप से पहले जैसा कभी देखा गया होगा वैसा ही पूर्वानुमान लगा लिया जाएगा | पहले नवमी दशमी आदि तिथियों में चंद्र मंडल को बढ़ते घटते दोनों देखा गया है किंतु प्रत्यक्ष के आधार पर ये कैसे पता लगे कि अबकी बार नवमी दशमी आदि तिथियों में चंद्र मंडल बढ़ेगा या घटेगा | 

    इस विषय में प्रत्यक्ष के आधार पर जो भी अनुमान लगाया जाएगा वो सही या गलत दोनों निकल सकता है क्योंकि नवमी दशमी आदि तिथियों में चंद्र मंडल को बढ़ते घटते दोनों देखा देखा जाता है | प्रत्यक्ष के आधार पर दिक्कत तब होती है ,जब नवमी दशमी आदि तिथियों में चंद्रमंडल के बढ़ने की भविष्यवाणी कर दी गई हो किंतु उन्हीं तिथियों में चंद्रमंडल प्रत्यक्ष रूप से घटने लगा हो | ऐसे ही घटने की भविष्यवाणी कर दी गई हो किंतु उन्हीं तिथियों में चंद्रमंडल प्रत्यक्ष रूप से बढ़ने लगा हो |इसमें यह कहना उचित नहीं होगा कि हर बार बढ़ने या घटने लगता था इसलिए मैंने बढ़ने या घटने को बोल दिया | अब ये वैसा न होकर प्रत्युत  उसके विरुद्ध हो रहा है | इसका कारण जलवायुपरिवर्तन है |ऐसे ही मौसम संबंधी  भविष्यवाणियों के गलत निकलने पर अपनी गलती स्वीकार करने के बजाय अनावश्यक रूप से जलवायुपरिवर्तन को घसीटा जाता है | 

      ऐसी भविष्यवाणियों के गलत निकलने का कारण उस परोक्षविज्ञान का पता न होना है जिसके आधार पर ऐसी सही भविष्यवाणियाँ की जा सकती हैं| परोक्षविज्ञान  संबंधी अनुसंधानों के द्वारा यदि इसकी समयसारिणी खोजी गई होती तो ये पता लगाया जा सकता था कि शुक्लपक्ष की अष्टमी के बाद चंद्रमा बढ़ता है और कृष्णपक्ष की अष्टमी के बाद घटता है | अबकी बार किस पक्ष की अष्टमी है यह भी पता लगा लिया जाता !इसके बाद चंद्रमंडल बढ़ेगा या घटेगा वह भी पता लगा लिया जाता | इसके आधार पर जो भविष्यवाणी की जाती वो बिल्कुल सही निकलती | 

     वस्तुतः शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष  दो अलग अलग समयखंडों  के नाम है| इन्हें और इनके प्रभाव को समय आधारित अनुसंधानों से ही समझा जा सकता है | इसके अतिरिक्त ऐसा कोई दूसरा विज्ञान नहीं है जिसके आधार पर  उपग्रहों रडारों आदि से चंद्रमा या आकाशीय वर्तमान परिस्थितियों को प्रत्यक्ष रूप में देखकर यह पता लगाया जा सकता हो कि आगामी नवमी दशमी के बाद चंद्रमंडल बढ़ेगा या घटेगा |         
     कुल मिलाकर समयआधारित अनुसंधानों  में ये मानकर चलना होता है कि प्रत्येक प्राकृतिक  घटना के घटित होने की  अपनी प्राकृतिक समयसारिणी होती है|जिसमें प्रत्येक घटना के घटित होने  का निश्चित समय दिया होता है ,कि किस घटना को कब घटित होना है | ऐसी सभी घटनाएँ उसी समयसारिणी के अनुशार घटित हुआ करती हैं | वो समय सारिणी यदि एकबार  खोज ली जाए तो उससे संबंधित सही जानकारी आगे से आगे मिलती चली जाएगी कि किस वर्ष के किस महीने के किस दिन आदि में कौन सी घटना घटित होनी है |

     सूर्यचंद्र ग्रहणों के विषय में जो समय सारिणी प्राचीनकाल में खोजी गई थी | उसी समय सारिणी के आधार पर ग्रहणों के विषय में सैकड़ों हजारों वर्ष पहले लगाया गया पूर्वानुमान आज भी पूरी तरह सही निकलता है |वही समय सारिणी यदि भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात चक्रवात एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में भी खोज ली जाए तो इनमें से किस घटना को किस वर्ष के किस महीने के किस दिन में कितने समय पर घटित होना है | इसकी सही जानकारी सैकड़ों हजारों वर्ष पहले लगाई जा सकती है |इससे मानवता की बहुत बड़ी मदद हो सकती है |इससे संबंधित अनुसंधान प्रत्येक घटना से संबंधित समय सारिणी को खोजने के लिए ही किए जाते हैं |


 ये दोनों विधाएँ एक दूसरे से बिल्कुल अलग अलग होती हैं ,किंतु पूर्वानुमान लगाने के लिए इन दोनों विधाओं का संयुक्त अनुसंधान किया जाए तो अधिक सटीक होता है |

 

    उदाहरण : किसी ट्रेन के विषय में पता करना हो कि वो किस दिन कितने बजे किस स्टेशन से चलकर चलेगी | कितने कितने बजे किन किन स्टेशनों पर पहुँचेगी ! 

 इसका पूर्वानुमान यदि समय आधारित अनुसंधानों के अनुशार लगाया जाए तो रेलवे द्वारा पूर्वनिर्द्धारित समयसारिणी देखकर कर ट्रेनों  को देखे बिना भी उनके  विषय में संपूर्ण जानकारी जुटा ली जाएगी |भविष्य में उनका संचालन किस दिन किस प्रकार का होगा उसके विषय में भी जानकारी मिल जाएगी जो बिल्कुल सही होगी | यही पूर्वानुमान है | 

   इसी घटनाओं को यदि साक्ष्य आधारित अनुसंधानों की दृष्टि से देखा जाए तो ट्रेन को जाते हुए देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये ट्रेन इतनी गति से इस दिशा में जा रही है इसलिए इतने समय अमुक स्टेशन पर पहुँच सकती है | बादलों या आँधी तूफानों की तरह ही उपग्रहों रडारों से यदि ट्रेनों को भी दूर से देखने की सुविधा हो तो उन ट्रेनों को कुछ पहले से देखकर कुछ बाद तक देखे रहा जा सकता है |जिससे कुछ अधिक अनुभव मिल सकते हैं और कुछ अन्य स्टेशनों पर भी ट्रेन को देखा जा सकता है उसके आधार पर कुछ आगे की स्टेशनों के विषय में भी अंदाजा लगाया जा सकता है | ये संपूर्ण प्रक्रिया लगभग उसी प्रकार की है  जिस प्रकार से उपग्रहों रडारों की मदद से बादलों या आँधी तूफानों को देखकर उनकी गति और दिशा के अनुशार उनके विषय में अंदाजा लगा  लिया जाता है ,कि यदि ये इसी दिशा में इतनी ही गति से आगे बढ़ते रहे तो इतने दिनों में वहाँ पहुँच सकते हैं | उसके आधार पर अंदाजा लगाकर भविष्यवाणी कर दी जाती है | यदि इनकी गति और दिशा में  बदलाव हुआ तो भविष्यवाणी बदल जाती है या गलत निकल जाती है | 

      इस प्रक्रिया में पूर्वानुमान लगाने के नाम पर केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है | जिनके सच निकलने की संभावना जितने प्रतिशत होती है उतने ही प्रतिशत गलत निकलने की भी संभावना होती है | इसमें सच्चाई कितने प्रतिशत होगी कहा जाना कठिन है |

       इस विधा में आज का ट्रेन संचालन देखकर उसी के अनुशार कल परसों आदि के विषय में अंदाजा लगा लिया जाता है |कुछ ट्रेनों में ऐसा अंदाजा सही भी घटित होता है | कुछ ट्रेनों का एक सप्ताह में तीन तीन दिनों के लिए रोड बदल जाता है | उस समय ऐसे अंदाजे गलत निकल  जाते हैं |जिनके लिए हम ट्रेन के रूटपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहराने लगते हैं | यदि ऐसा न होता तो हम अंदाजा गलत न होता !पहले इसी रूट से  बजे इतनी ही गति से ट्रेन आती थी|आज इस रूट से ट्रेन नहीं आई इसलिए अंदाजा गलत निकल गया|मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के गलत होने पर अक्सर ऐसी बातें सुनी जाती हैं | पहले ऐसा होता था अब वैसा नहीं हुआ| इसलिए हमारी मौसम संबंधी भविष्यवाणी गलत निकल गई | इस बात को कहा इसी प्रकार से जाता है किंतु प्रदर्शित यह किया जाता है कि गलती हमारे पूर्वानुमान लगाने की नहीं अपितु उस घटना की है जो उस प्रकार से नहीं घटित हुई जैसा सोचकर हमने अंदाजा लगाया था|प्राकृतिक घटनाओं के विषय में प्रकृति को अपने अनुशार नहीं चलाया जा सकता है, प्रत्युत प्रकृति के अनुशार चलकर ही हमें प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुसंधान करना होगा | 

     इस घटना को समयविज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो यदि  ऐसी घटनाओं की समयसारिणी पता होती तो ट्रेन को प्रत्यक्ष देखे बिना भी यह पता होता कि ट्रेन सप्ताह के किन दिनों में किस रूट से जाएगी | यह सही जानकारी मिल सकती थी | मौसम के क्षेत्र में भी यदि समयसारिणी खोज ली जाए तो ये पहले से पता होता कि पिछले वर्ष इस महीने के इस सप्ताह में इस स्थान पर इतनी बारिश हुई थी अबकी बार उसकी अपेक्षा कब या अधिक बारिश होने की संभावना क्यों है और उसका कारण क्या है | 

     ऐसे पूर्वानुमानों के गलत निकलने का कारण उन घटनाओं से संबंधित समयसारिणी के विषय में जानकारी न होना  होता है ,जबकि अनुसंधान संबंधी ऐसी अपनी गलतियों का दोष उन प्राकृतिक घटनाओं के मत्थे मढ़ा जाता है | ट्रेन संबंधी समय सारिणी पता न होने के कारण हम उसके रूट परिवर्तन को नहीं समझ सके और गलत अंदाजा लगा बैठे वैसा घटित नहीं हुआ तो अपनी कमी न स्वीकार करते हुए इसके लिए ट्रेन के रूटपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है | मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में लगाए गए अंदाजे गलत निकल जाने पर जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है | महामारी के विषय में ऐसे अंदाजे गलत निकल जाने पर उसके लिए महामारी के स्वरूप परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है | 

    ऐसी घटनाओं में परिवर्तनों का कोई दोष नहीं होता है परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है ! हमारे  साक्ष्य आधारित अनुसंधानों में वो क्षमता ही नहीं है जिसके आधार पर इसप्रकार के परिवर्तनों को आगे से आगे समझा जा सके और उनके विषय में सही पूर्वानुमान लगाया जा सके | 

     समयआधारित अनुसंधानों के द्वारा ऐसा किया जा सकता है | समयविज्ञान के द्वारा सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में सैकड़ों हजारों वर्ष पहले लगाए हुए पूर्वानुमान जिसप्रकार से अभी भी सही निकलते हैं|उसीप्रकार  से  उसी समयविज्ञान के द्वारा यदि मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में,महामारी के विषय में अनुसंधान पूर्वक यदि वह समयसारिणी खोज ली जाती है ,जिसके आधार पर ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं,तो ऐसी घटनाओं के विषय में न केवल सही सही पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं,अपितु उनके घटित होने के आधारभूत कारण भी खोजने में सफलता मिल सकती है |     

                       समयविज्ञान के द्वारा खोजे जा सकते हैं कुछ शंकाओं के समाधान ! 

    भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी घटनाएँ प्राकृतिक हैं या मनुष्यकृत! ये पता किया जाना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि ऐसी घटनाएँ जब बार बार घटित होने लगती हैं तो उसके लिए ग्लोबलवार्मिंग या जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया जाता है| यदि ये सही है तो ऐसी घटनाओं को समझने के लिए  ग्लोबलवार्मिंग या जलवायुपरिवर्तन  होने का कारण खोजना पड़ेगा |इसके लिए   औद्योगीकरण है, जंगलों की कटाई , पेट्रोलियमपदार्थों का धुआँ,फ़्रिज, एयरकंडीशनर आदि मनुष्यकृत कार्यों को जिम्मेदार बताया जाता है |

     ऐसी बातों पर यदि विश्वास करके उन कार्यों को करना यदि बंद कर दिया जाए तो तो इस बात की कितनी संभावना है कि इसके कारण घटित होने वाली ग्लोबलवार्मिंग और जलवायुपरिवर्तन जैसी घटनाओं पर अंकुश लग जाएगा !ऐसा होते ही क्या भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी घटनाओं का प्रकोप काफी हद तक कम हो जाएगा | यदि इसप्रकार के परिणामों के निकलने की संभावना है तो भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी घटनाओं के प्रकोप को कम करने के लिए समाज ऐसा आत्मसंयम वरत कर सकता है |बशर्ते ! उसे यह भरोसा दिलाया जा सके कि इतना आत्मसंयम वरत लेने से ऐसी प्राकृतिक आपदाओं महामारियों पर एक सीमा तक अंकुश लग ही जाएगा |

     समाज को इसबात का भरोसा दिलाने के लिए कुछ विश्वसनीय ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने होंगे !जो प्राकृतिक घटनाओं के विषय में  वैज्ञानिकों के द्वारा कहा गया हो वो बाद में सही घटित भी हुआ हो|महामारी एवं मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा कही गई ऐसी अनेकों बातें व्यवहार में सही नहीं निकल पाई हैं |

    वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जितने भी कारण बताए गए वे व्यवहार में सही नहीं घटित हुए !एक कारण बताया गया उसके बीतने के बाद भी जब वायु प्रदूषण कम नहीं हुआ तो दूसरे कारण बताए गए ऐसे ही तीसरे चौथे पाँचवें आदि कारण बताए जाते रहे  किंतु उन कारणों के कमजोर पड़ने पर भी वायुप्रदूषण कमजोर नहीं पड़ा |जिसे लेकर ये प्रश्न उठता है कि वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जिन कारणों को जिम्मेदार माना गया, उन कारणों के समाप्त होने के बाद भी वायुप्रदूषण कम न होने का कारण क्या है ? 

     ऐसे ही महामारी की लहरें बार बार आने के लिए जो कारण जिम्मेदार बताए जाते हैं | उन कारणों के समाप्त हो जाने के बाद तो ऐसा नहीं होना चाहिए लेकिन इसके बाद भी वैसा होता है | उसका कारण क्या है ?

     ऐसी परिस्थिति में प्राकृतिक घटनाओं के विषय में समयविज्ञान के द्वारा कुछ सही भविष्यवाणियाँ करके समाज के विश्वास को जीता जाना अति आवश्यक है | समयविज्ञान के द्वारा ऐसी प्राकृतिकघटनाओं  की समयसारिणी खोजने की प्राचीनकाल से ही परंपरा रही है|जिसके आधार पर ऐसी घटनाओं की समयसारिणी खोजने के लिए अनुसंधान किया जाता है|यदि वह खोजने में सफलता मिल जाती है तब तो सूर्य चंद्र ग्रहणों की तरह ही भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि पूरी तरह से सही निकल सकते हैं | सही समयसारिणी जब तक नहीं मिल पाती है तब तक यूं तो ऐसे ही अंदाजे लगाए जा सकते हैं जो कभी सही कभी गलत निकलते रह सकते हैं |

   इसके अतिरिक्त भी  परंपराविज्ञान में पूर्वानुमान लगाने के लिए एक और रास्ता भी है जो उतना सही तो नहीं है किंतु कई बार पूर्वानुमान सही निकलते देखे जाते हैं|इसमें कुछ प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के समय के आधार पर कुछ दूसरी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जाता है |यह विधा बिल्कुल उसीप्रकार की होती है |जिसप्रकार से किसी ट्रेन के जाने के समय का अनुमान उसके पहले गई ट्रेन के समय के आधार पर लगाया जाता है,अथवा अब सिग्नल हो गया है इसका मतलब इतनी देर बाद ट्रेन जाएगी | ऐसे और भी छोटे छोटे संकेत होते हैं | जिनके आधार पर समय सारिणी के बिना भी ट्रेनों  के आवागमन के विषय में अंदाजा लगा लिया जाता है | 

    इसीप्रकार से प्राकृतिक वातवरण में घटित हो रही कुछ प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर कुछ दूसरी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | वह भी प्रायः सही निकलते देखा जाता है |इतना अवश्य है कि इसके आधार पर लगाए गए पूर्वानुमानों के समय में कुछ अंतर निकलते देखा जाता है |  

    परंपराविज्ञान का मानना है कि प्रत्येक प्राकृतिक घटना स्वयं तो घटित हो ही रही होती है |इसके साथ ही साथ कुछ दूसरी घटनाओं के घटित होने के विषय में कुछ प्रत्यक्ष तो कुछ अप्रत्यक्ष सूचनाएँ दे रही होती है |उन्हें यदि समय से समझ लिया जाए तो कुछ भावी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि समय से लगाया जा सकता है |   

महामारी अनुसंधान और परंपरा विज्ञान 

     सूर्यग्रहण के विषय में पूर्वानुमान पता करना हो तो सूर्य  चंद्र और पृथ्वी के विषय में जानकारी पूरी जुटानी पड़ती है | इसी प्रकार से यदि चंद्रग्रहण के विषय में पूर्वानुमान लगाना हो तो भी ग्रहण की गणना करते समय सूर्य  चंद्र और पृथ्वी तीनों के विषय में जानकारी पूरी रखनी होती है | 

     ऐसे ही जिस भी प्राकृतिक घटना के विषय में अनुसंधान करना होता है उसके सभी पक्षों के विषय में जानकारी पूरी जुटानी होती है | कोरोना महामारी के विषय में ही यदि सोचा जाए तो ये कहानी केवल इतनी ही नहीं रहेगी कि महामारी आई और महामारी के प्रभाव से लोग रोगी होने लगे | ऐसा करने से अनुसंधान केवल महामारी पर ही केंद्रित होकर रह जाते हैं | जिससे महामारी की वास्तविकता तक पहुँचना संभव नहीं होता है | 

    जिस प्रकार से किसी सैनिक पर शत्रु के द्वारा जानघातक प्रहार कर देने मात्र से उसकी मृत्यु नहीं हो जाती है अपितु उस प्रहार का प्रभाव उसके  शरीर पर कैसा पड़ता है | यह निर्णायक होता है | जिसने गोली चलाई हो उसका निशाना चूक भी सकता है | बीच में कोई दूसरा ऐसा अवरोध भी उत्पन्न हो सकता है|  जिससे उस पर प्रहार तो हो किंतु उसका प्रभाव ही न पड़े | उसने कोई ऐसा सुरक्षा कवच पहन रखा हो, जिस पर गोली असर ही न करती हो | ऐसे सभी कारण उसकी सुरक्षा के पक्ष में होते हैं | जिससे उसका बचाव हो सकता है | इसलिए उस पर जानघातक प्रहार कर दिए जाने के बाद भी उसके परिणाम का आकलन तब तक नहीं किया जा सकता है जब तक उस व्यक्ति के विषय में प्रहार से बचाव की वास्तविक क्षमता का पता न लगा लिया जाए !जिस पर प्रहार किया गया होता है | ऐसे  महामारी या कोई  रोग उस व्यक्ति  स्वास्थ्य पर   प्रहार की तरह है | जिससे उसका बचाव उसकी अपनी स्वास्थ्य सुरक्षक क्षमता  के आधार पर होता  है | इसलिए किसी के रोगी होने के लिए जितना कोई रोग जिम्मेदार होता है उतनी ही स्वास्थ्य संबंधी कमजोरी जिम्मेदार होती है | दोनों के विषय में ठीक ठीक आकलन करके ही इस बात का सही सही निर्णय लिया जा सकता है कि रोग बलवान है  या रोगी कमजोर है | रोगी होने का कारण आखिर क्या है ?  

    इसी प्रकार से महामारी को समझने के लिए सबसे पहले यह पता लगाना होता है कि महामारी मनुष्यकृत है या प्राकृतिक है |यदि मनुष्यकृत है तब तो उसका कारण प्रत्यक्ष दिखाई पड़ना चाहिए | जिसे तर्कों प्रमाणों की कसौटी पर कसा जा सकता है |जिनसे यह निश्चय होता हो कि महामारी मनुष्यकृत ही है | यदि महामारी  प्राकृतिक है तो उसके आगे पीछे घटित होने वाली कुछ अन्य प्राकृतिक घटनाओं की संगति महामारी के साथ बैठनी  चाहिए  ,क्योंकि कोई भी प्राकृतिक घटना कभी भी अकेली नहीं घटित होती है |ऐसी  प्रत्येक घटना का अपना समूह होता है | जिसमें उस मुख्यघटना की सहायक अनेकों प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ एक समूह में सम्मिलित होती हैं |   जिसकी कुछ घटनाएँ मुख्य घटना के घटित होने से कुछ पहले घटित हो चुकी होती हैं कुछ साथ में घटित हो रही होती हैं और कुछ उस मुख्य घटना के बाद में घटित होती हैं | ऐसी सभीप्रकार की घटनाओं के साथ यदि संगति बैठ जाती है ,तो उसे प्राकृतिक घटना माना जा सकता है | 

     जिसप्रकार से पूर्णिमा का चंद्र आकाश में निकलता है, किंतु लहरें  समुद्र  में उठती हैं पृथ्वी में नहीं उठती हैं जबकि चंद्रमा का उतना ही प्रभाव पृथ्वी पर भी पड़ रहा होता है |इसलिए लहरें उठने का कारण केवल चंद्रमा ही नहीं है प्रत्युत समुद्र भी है |दोनों के संयोग से लहरें घटित होती हैं |  

     इसी प्रकार से  महामारी का कारण केवल महामारी में ही न होकर अपितु उन लोगों के शरीरों में भी है जो संक्रमित होते हैं और उन लोगों  के शरीरों में भी है जो मृत्यु को प्राप्त होते हैं | महामारी का प्रभाव तो सभी पर एक समान पड़  रहा होता है !इसके बाद भी उसका परिणाम अलग अलग दिखते हैं |  कुछ लोग बिल्कुल स्वस्थ बने रहते हैं कुछ लोग संक्रमित हो जाते हैं जबकि कुछ लोग मृत्यु को प्राप्त होते हैं | इससे ये स्पष्ट होता है कि लोगों के संक्रमित होने या मृत्यु को प्राप्त होने के लिए केवल महामारी ही जिम्मेदार नहीं है | वस्तुतः इसके लिए महामारी जितनी जिम्मेदार है उतने ही जिम्मेदार संक्रमित होने और मृत्यु को प्राप्त होने वाले शरीर भी हैं | ऐसी स्थिति में महामारी पैदा होने के कारण उसके लक्षण प्रभाव प्रसारमाध्यम आदि पता लगाया जाना जितना आवश्यक है | उतना ही आवश्यक उन शरीरों के विषय में अनुसंधान किया जाना है | जो महामारी के समय भी संक्रमित नहीं हुए जो संक्रमित तो हुए किंतु बच गए और जो संक्रमित हुए तथा मृत्यु को प्राप्त हो गए | कुछ लोग ऐसे भी थे जो बिना संक्रमित हुए ही बिना किसी कारण के महीनों बाद तक मृत्यु को प्राप्त होते रहे | ऐसे लोग हँसते खेलते नाचते गाते पड़े बैठे अचानक मृत्यु को प्राप्त होते देखे गए | वे तो महामारी से संक्रमित भी नहीं हुए फिर भी मृत्यु को प्राप्त हो गए | इससे यह भी स्पष्ट हो गया कि लोगों के अस्वस्थ होने का कारण यदि महामारी को मान भी लिया जाए तो जो बिना अस्वस्थ हुए ही मृत्यु को प्राप्त हो गए उनकी मृत्यु का कारण क्या है |यह भी अनुसंधान पूर्वक खोजा जाना चाहिए !   

महामारी का पूर्वानुमान लगाया जाना संभव है !

     प्रत्येक ट्रेन को चलाने और रोकने की प्रक्रिया उसके अंदर ही विद्यमान होती है,उसी से उसे चलाया और रोका जाता है | ट्रेन जिस समय सारिणी के  अनुशार चलती और  रुकती  है |उस समय सारिणी को बनाने वाली शक्ति न ट्रेन के अंदर होती है और न ही उसके बाहर होती है | वह कहीं दूर होती है जिसने पहले कभी वह समय सारिणी बनाकर ट्रेन परिचालन विभाग को  सौंप दी है | उस पूर्वनिर्धारित  समय सारिणी के अनुशार ट्रेन चलती और रुकती आ रही है | 

     समयसारिणी बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि उस ट्रेन के आने से पहले और बाद में किस किस प्रकार  घटनाएँ घटित होंगी | उस के पहले किन किन दूसरी ट्रेनों का आना और जाना होगा |सिग्नल आदि कब कैसे रखे जाएँगे  और क्या क्या सावधानियाँ पहले और  पीछे बरतनी होंगी | ट्रेन आने से पहले घटित होने वाली उन छोटी बड़ी घटनाओं को देखकर यह अल्पावधिक  पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |कुछ दिन पहले या कुछ सप्ताह पहले ट्रेन के आवागमन के विषय में  दीर्घावधि पूर्वानुमान लगाने  के लिए उस समयसारिणी की आवश्यकता होती है |उसके बिना ऐसा किया जाना संभव ही नहीं है | 

     इसमें विशेष बात यह है कि ट्रेन  के आने से  कुछ पहले यदि अल्पावधि पूर्वानुमान  पता लगाने हैं तो यह  पहले दे  पता होना चाहिए कि  किस ट्रेन के आने से पहले किस किस प्रकार की घटनाएँ दिखाई देती हैं | इसी प्रकार से दीर्घावधि पूर्वानुमान लगाने  के लिए वह समयसारिणी पता होनी चाहिए | जिसके आधार पर ट्रेनों  परिचालन  होता है | 

      इसीप्रकार से  भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के अधिक घटित होने के विषय में अल्पावधि  पूर्वानुमान यदि पता करने हों तो उन प्रमुख घटनाओं से पहले घटित होने वाली घटनाओं के विषय में  सही सही जानकारी होनी चाहिए | जिन्हें देखकर यह अनुमान लगाया  जा सके कि किस घटना के कितने  समय बाद कौन सी घटना घटित होने वाली है |

      ऐसी ही भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय  में यदि दीर्घावधि पूर्वानुमान पता करने हों तो वह समयसारिणी पता होनी चाहिए |जिसमें निर्द्धारित समय के अनुशार भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाएँ अपने अपने  समय से घटित होती हैं |

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                           महामारी से सुरक्षा की तैयारियाँ हैं क्या और करनी क्या हैं ?

      महामारियों से सुरक्षा की दृष्टि से अभी तक जो भी प्रभावी तैयारियाँ की जा चुकी हैं ,उन्हें छोड़कर भविष्य के लिए बाक़ी तैयारियाँ करके अब इसलिए रख ली जानी चाहिए,क्योंकि कोरोना महामारी अभी हाल में ही आई है | महामारी से संबंधित जो अनुभव हैं,भावी महामारियों से संबंधित अध्ययनों अनुसंधानों में वे अनुभव काम आ  सकते हैं | ऐसे अनुभव संपन्न अनुसंधानों के द्वारा महामारियों से सुरक्षा हेतु भविष्य के लिए कोई मजबूत महामारी कवच खोजा जा सकता है | जिससे भविष्य में ऐसी कोई महामारी आने पर बचाव के उपाय तुरंत शुरू करके बहुत लोगों के बहुमूल्य जीवन को बचाया जा सकता है |

     इसलिए सबसे पहले यह बिचार किया जाना चाहिए कि महामारी पैदा होने का निश्चित कारण क्या है ? ये अभी तक पता नहीं लगाया जा सका है |महामारी मनुष्यकृत है या प्राकृतिक !यदि मनुष्यकृत है तो जिस किसी मनुष्यकृत प्रयास से महामारी पैदा हुई होगी वो प्रयास कब किसने कहाँ किया होगा | ये सब कुछ अभी तक आशंकाओं के रूप में ही सुना जाता रहा है |  वैसे भी ऐसा कोई मनुष्यकृत प्रयास एक ही बार किया गया होगा | इसके बाद सभी देश सतर्क हो ही गए थे !इसलिए दूसरी बार ऐसा किया जाना संभव नहीं रहा होगा | इसलिए संक्रमण भी एक बार ही बढ़ना चाहिए था |जितना भी बढ़ता उतना एक बार में ही बढ़ जाता और जब घटना शुरू होता तो फिर घटता ही चला जाता और धीरे धीरे समाप्त हो जाता ! 

      महामारीजनित संक्रमण केवल एक बार बढ़ा हो और फिर घटता चला गया हो ऐसा नहीं है | ये तो बार बार बढ़ता और घटता रहा है |इस बढ़ने घटने का कारण क्या रहा होगा ? संक्रमण बढ़ने को यदि मनुष्यकृत किसी प्रयत्न का परिणाम मान भी लिया जाए तो 18 सितंबर 2020 के बाद जब संक्रमितों की संख्या अचानक कम होने लगी थी | उस समय संक्रमण के कम होने का मनुष्यकृत कारण क्या रहा होगा | भारत में पहली लहर के समय तो कोई ऐसी प्रभावी औषधि ही नहीं थी |दूसरी लहर के समय में भी वैक्सीन कुछ लोगों तक ही पहुँचाई जा सकी थी ! यदि उसका प्रभाव होता तो उसके बाद उन लोगों को संक्रमित नहीं होना चाहिए था ,किंतु उन्हें भी संक्रमित होते देखा जा रहा था | 6 अप्रैल 2021 के बाद जब संक्रमितों की संख्या घटती जा रही थी लोग स्वतः स्वस्थ होते जा रहे थे | उनके स्वस्थ होते जाने का कारण क्या था ?

     महामारी प्राकृतिक थी यदि ऐसा माना जाए तो उसकी भी कुछ तो ऐसी प्रामाणिकता खोजनी ही होगी | जिसके आधार पर विश्वासपूर्वक तर्कों के साथ यह कहा जा सके कि महामारी के पैदा होने का कारण प्राकृतिक है | इस विषय में विश्वासपूर्वक कभी कुछ कहा नहीं जा सका है | 

    महामारी का  बढ़ता घटता संक्रमण जिसे लहरों का आना या जाना कहा जाता रहा है| ऐसा होने का प्राकृतिक कारण क्या रहा होगा ?इस विषय में ये कुछ कारण बताए जाते रहे हैं | 

      मौसम के बिगड़ने से क्या बढ़ती है महामारी ?

        कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि महामारी जनित संक्रमण बढ़ने और घटने का कारण मौसम संबंधी घटनाएँ होती हैं,जबकि कुछ वैज्ञानिक इस बात से सहमत नहीं हैं कि महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने घटने में मौसम का कोई प्रभाव पड़ता है|वैज्ञानिकों के ऐसे दोनों प्रकार के वक्तव्यों से किसी निष्कर्ष पर पहुँचना संभव नहीं है| इससे कोई निष्कर्ष निकला जाना तभी संभव है जब मौसम के आधार पर महामारी के घटने बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाए यदि वो सही निकलता है तो मान लिया जाए कि महामारी पर मौसम का प्रभाव पड़ता है अन्यथा नहीं पड़ता है | इसी उद्देश्य से कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी का वेग बढ़ने घटने के जो पूर्वानुमान व्यक्त किए भी गए वे सही नहीं घटित हुए ! वैसे भी कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा वर्षा होने पर संक्रमण कम होने की बात कही गई थी,किंतु पहली लहर का पीक 18 सितंबर 2020  को जब आया था उस समय वर्षा ऋतु ही चल रही थी और दूसरी लहर जब आई उस समय वर्षाऋतु न होने पर भी वर्षा निरंतर होते देखी जा रही थी | वर्षा के प्रभाव से यदि संक्रमण कम होना होता तब तो उस समय संक्रमण बढ़ना ही नहीं चाहिए था किंतु ऐसा नहीं हुआ |ऐसी स्थिति में महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने घटने पर मौसम संबंधी प्रभाव पड़ता है या नहीं | ये तर्कों एवं साक्ष्यों के आधार  पर कहा   जाना अभीतक संभव नहीं हो सका है |
  
वायुप्रदूषण बढ़ने से क्या बढ़ जाता है संक्रमण !
    महामारीजनित संक्रमण बढ़ने के लिए कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा वायुप्रदूषण बढ़ने को जिम्मेदार बताया  गया था | इसके आधार पर ऐसे कोई भी पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सके जिन्हें सही निकलते देखा गया हो | वैसे भी देखा गया कि 2020 के अक्टूबर नवंबर महीने में जब वायु प्रदूषण तो बहुत अधिक बढ़ा हुआ था किंतु महामारी जनित संक्रमण बहुत तेजी से कम होता चला जा रहा था | इसके बिपरीत मार्च अप्रैल 2021 में महामारी की सबसे भयानक दूसरी लहर जब कहर ढहा रही थी | उस समय इस सीमा तक वायुप्रदूषण मुक्त  आकाश हो गया था कि पंजाब के अमृतशर से एवं बिहार के सीतामढ़ी से हिमालय के दर्शन होने लगे थे |नेपाल में स्थित हिमालय पर्वतमाला के नूनथड़ पहाड़ के पीछे बर्फ से ढंका एवरेस्ट भी दिखने लगा था ।इसलिए महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने घटने पर वायु प्रदूषण बढ़ने का प्रभाव पढ़ता है या नहीं ये अनिश्चित ही है |

 तापमान बढ़ने से घटता है संक्रमण !

   कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा तापमान बढ़ने घटने का प्रभाव महामारी पर पड़ने की बात कही गई थी|जिसे मानकर कुछ लोगों ने अनावश्यक रूप से गर्म पानी से नहाना तथा गर्म पानी पीना अदि शुरू कर दिया | वैसे भी वैज्ञानिकों की ऐसी बातों का अभिप्राय यह था कि तापमान बढ़ने पर महामारी संक्रमण कम होगा और तापमान कम  महामारी संक्रमण बढ़ेगा |इस हिसाब से ग्रीष्म(गर्मी)की ऋतु में महामारी संबंधी संक्रमण कम होना चाहिए था और हेमंत एवं शिशिर जैसी सर्दी की ऋतुओं में  बढ़ना चाहिए था |यद्यपि ऐसा कुछ हुआ नहीं !पहली लहर का पीक 18 सितंबर 2020  को जब आया था उस समय वर्षा ऋतु होते हुए भी ग्रीष्मऋतु की तरह ही तापमान काफी बढ़ा हुआ था |सामान्य वर्षों में ऐसा होते कम देखा जाता है | उस समय इतनी अधिक गर्मी थी | दूसरी लहर मार्च अप्रैल 2021 में जब आई उस समय बसंत और ग्रीष्मऋतुओं की संधि थी | ये कालखंड तापमान बढ़ने के लिए जाना जाता है | उस समय तापमान बढ़ने के कारण संक्रमण कम होना चाहिए था जबकि संक्रमण बढ़ गया था |ऐसी स्थिति में महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने - घटने पर तापमान बढ़ने -घटने प्रभाव पड़ता है या नहीं | ये तर्कों एवं साक्ष्यों के आधार  पर कहा जाना अभीतक संभव नहीं हो सका है |

कोविडनियमों का पालन न करने से क्या बढ़ सकता है संक्रमण !

     दिल्ली मुंबई सूरत आदि से पलायित श्रमिकों के द्वारा मजबूरी में कोविड नियमों का पालन नहीं किया जा सका था !दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन में कोविड नियमों का पालन नहीं किया गया | बिहार और बंगाल की चुनावी रैलियों में उमड़ी भारी भीड़ में कोविड नियमों का पालन किया जाना संभव न था | हरिद्वार कुंभ में पहुँचे साधू संत हों या आम जनता हो भीड़ वहाँ भी उमड़ी थी किंतु कोविड नियमों का पालन वहाँ भी नहीं किया जा सका था | घनी बस्तियों में या बड़ी बड़ी फैक्ट्रियों में आवासीयसंस्थाओं आश्रमों एवं अनाथाश्रमों आदि में जहाँ कहीं भी सामूहिक रहन सहन खानपान सोना जागना आदि होता रहा !वहाँ  कोविड नियमों का पालन बिल्कुल नहीं किया जा सका | वैज्ञानिकों के द्वारा ऐसी आशंका व्यक्त की गई थी कि ऐसे स्थानों पर संक्रमितों की संख्या बहुत अधिक बढ़ जाएगी !किंतु ऐसा कुछ तो नहीं हुआ फिर भी सभी स्वस्थ बने रहे |महानगरों में गरीबों के बच्चे भोजन के लिए दर दर भटकते रहे !लाइनों में लगे रहे !जहाँ जिसने जो दिया वो खा या पहन लेते रहे किंतु वे संक्रमित नहीं हुए !शहरों में फल वाले सब्जी वाले कोविड नियमों की परवाह किए बिना पूरे समय फल सब्जी बेचते रहे !किंतु वे संक्रमित नहीं हुए !सामूहिक रहन सहन में ऐसा भी देखा गया कि उनमें से कुछ लोग संक्रमित हुए जबकि उन्हीं के साथ रहने सोने जागने खाने पीने वाले कुछ अन्य लोग संक्रमित नहीं हुए | बनारस और दक्षिण भारत की कुछ घटनाएँ ऐसी भी सुनी गईं जहाँ एक पति पत्नी समेत परिवार में किसी को कोरोना हुआ ही नहीं था ! उनका गर्भस्थ शिशु कोरोना संक्रमित था |

   संपन्न लोगों के यहाँ नौकरी करने वाले लोग न केवल फल सब्जी पहुँचाते रहे प्रत्युत उनके संक्रमित होने पर उन्हें लेकर अस्पताल जाते रहे उनके पहने हुए कपड़े लेकर घर आते रहे वे संक्रमित नहीं हुए और संपूर्ण रूप से कोविड नियमों का पालन करने वाले वे साधन संपन्न लोग संक्रमित होते रहे |इसलिए ऐसे कोई प्रामाणिक या अनुभवजनित साक्ष्य घोषित नहीं किए जा सकें हैं जिनके आधार पर यह कहा जाना संभव हो कि आधार नहीं है कि कोविड नियमों का पालन करने वाले महामारी जैसे संक्रमण से सुरक्षित हो जाते हैं |  

 महामारी का विस्तार कितना है ?

   ये केवल पृथ्वी पर ही है, या आकाश और पाताल भी महामारीजनित बिषैलेपन से प्रभावित हुए हैं |महामारी का विस्तारक्षेत्र अभी तक अघोषित है |कोरोना काल में पृथ्वी पर बिचारण करने वाले मनुष्य उन्मादित थे | पशुओं में ऐसा पागलपन  सवार था कि किसानों की फसलें बर्बाद किए डाल रहे थे | आकाश में  उड़ने वाले पक्षी भी बेचैन थे | टिड्डियाँ आकाश ढके ले रही थीं |संपूर्ण कोरोना काल में विभिन्न देशों प्रदेशों में अचानक बहुत बड़ी संख्या में पक्षियों की मृत्यु होते देखी जा रही थी | बार बार आँधी तूफानों चक्रवातों बज्रपातों की घटनाएँ घटित होते देखी जा रही थीं |वायु प्रदूषण विशेष बढ़ रहा था |  ऐसे ही संपूर्ण कोरोना काल में समूचे विश्व के समुद्रों नदियों तालाबों में अचानक बड़ी संख्या में मछलियों की मृत्यु होते देखी जा रही थी |कोरोना काल में धरती के अंदर रहने वाले चूहे इतने अधिक उन्मादित हो गए थे कि ब्रिटेन आस्ट्रेलिया जैसे अनेकों देशों प्रदेशों में चूहों के कारण लोगों का जीना मुश्किल हो रहा था |धरती में बार बार भूकंप आते देखे जा रहे थे | 

   ऐसे सभी उपद्रव विशेषकर कोरोना काल में ही अधिक घटित हुए थे | ऐसी स्थिति में जल थल आकाश पाताल  समेत संपूर्ण पृथ्वी जीवन जंतुओं के साथ साथ मनुष्यकृत उपद्रव घटित होते देखे जा रहे थे | कुछ देश एक दूसरे पर हमला करते देखे जा रहे थे | कुछ देशों में आतंरिक  कलह के कारण हिंसक आंदोलन होते देखे जा रहे थे | ऐसी  समस्त घटनाएँ कोरोना काल में अचानक घटित होने लगने का कारण कोरोना महामारी से संबंधित था या कुछ और ! महामारी को समझने के लिए इसे समझा जाना आवश्यक है |

 महामारी में अंतर्गम्यता कितनी है ?

     वैज्ञानिकों के द्वारा सलाह दी जाती रही है कि फलों और सब्जियों को अच्छी प्रकार से धोकर खाओ !इसलिए कुछ लोग गर्म पानी से धोकर खाते रहे हैं | ऐसी सलाह देने के पीछे संभवतः यह कारण रहा होगा कि गर्म पानी से धोकर खाने से उनकी बाह्य सतह पर संलिप्त बिषाणुओं का भय समाप्त हो जाएगा | ऐसी स्थिति में बिचार यह भी किया जाना चाहिए कि महामारी संबंधी बिषाणुओं का प्रभाव वस्तुओं के बाह्यभाग पर ही था या उन बिषाणुओं का उतना ही प्रभाव उन फूलों फलों आदि  खाद्य पदार्थों के अंदर भी था | ऐसे ही औषधियों बनस्पतियों के केवल बाह्य भाग पर ही है या उनका आंतरिक भाग भी महामारीजनित बिषाणुओं से संक्रमित हुआ है| ये रहस्य अभीतक अनुद्घाटित और  अप्रकाशित है |  

    तंजानियाँ जैसे देशों में पपीता आदि फलों के अंदर  महामारी संबंधी बिषाणुओं को पाया गया था | संशय होने पर फलों की जाँच वहाँ के राष्ट्रपति ने कुछ दूसरे देशों की कुछ दूसरी मशीनों से भी कराई |वहाँ भी उन फलों को संक्रमित पाया गया था | ऐसी स्थिति में यदि खाने पीने की वस्तुओं का आतंरिक भाग संक्रमित हुआ था या नहीं !इस विषय में कोई निश्चित उत्तर दिया जाना संभव नहीं हो पाया है |

  महामारी का प्रसार माध्यम क्या है ?

      महामारी संक्रमितों के स्पर्श से फैलती है या इसके फैलने का कारण कुछ और ही है |बहुत साधन संपन्न लोग ऐसे हैं जिन्होंने संपूर्ण रूप से कोविड नियमों का पालन किया इसके बाद भी संक्रमित हुए | उन तक कोरोना संक्रमण कैसे पहुँचा होगा |

    कुछ देशों में फूलों फलों आदि खाद्य पदार्थों की जाँच किए जाने पर उनके अंदर महामारी के बिषाणुओं को पाया गया है | कुछ देशों में नदियों नालों तालाबों आदि के जलों को संक्रमित पाया गया है | कुछ देशों में पशुओं को संक्रमित होते देखा गया है |कुछ देशों में  कौवों चमगादड़ों आदि को संक्रमित होते देखा गया है |यदि ऐसा है तब तो बहुत आसानी से प्रसार हो सकता है क्योंकि खाए पिए बिना तो कोई रहा नहीं होगा |

    ऐसे ही कुछ देशों में पशुओं को भी संक्रमित पाया गया था |जिन पशुओं के दुग्ध का सेवन किया जा रहा था वे पशु यदि संक्रमित रहे होंगे तो उनका दुग्ध भी तो संक्रमित हुआ होगा | दुग्ध और दुग्ध संबंधी चाय आदि पीने खाने की चीजों का उपयोग तो हमेंशा होता ही रहा है |ये भी संक्रमण प्रसार का एक माध्यम हो सकता है |ये संशय अभी तक बना हुआ है कि कोरोना के प्रसार का माध्यम क्या रहा होगा |

कोरोना संक्रमण पर कोविड नियमों का प्रभाव पड़ता था या नहीं !

      कोरोना संक्रमितों के स्पर्श से ही कोरोना फैलता होगा यदि इसे सच मान लिया  जाए तो उस पहले व्यक्ति में कोरोना कहाँ से आया होगा जो सबसे पहले संक्रमित हुआ था | दूसरी बात विश्व को यह तो पता चल ही गया था कि किसी देश विशेष में ऐसी किसी महामारी ने जन्म ले लिया है | उसका प्रसार प्रारंभ हो गया है |ऐसी स्थिति में चिकित्सा की दृष्टि से अत्यंत उन्नत साधनों से संपन्न अमेरिका जैसे देश उस देश विशेष से दूरी बनाकर अपने को सुरक्षित क्यों नहीं रख सखे | कुछ अन्य देश भी अपने संसाधन के बलपर अपने को सुरक्षित रख सकते थे, किंतु ऐसा क्यों नहीं किया जा सका !ये सब देखकर लगता है कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि कोरोना छूने से फैलता ही न  हो !जबकि विश्व इस भ्रम में बना रहा कि कोरोना एक दूसरे के संपर्कों से ही फैलता है |इसीलिए लॉकडाउन जैसे कोविड नियमों का कठोर पहरा बैठाकर लोगों को एक दूसरे के  संपर्क में आने से तो बचा लिया गया !उस समय तो संक्रमण रुक जाना चाहिए था किंतु उसके बाद भी लोग महामारी से संक्रमित होते देखे जाते रहे हैं |उसका कारण क्या था ये पता लगाया जाना आवश्यक है | 

    संक्रमण लोगों के अंदर ही तो नहीं पैदा होता था !

 कोविड नियमों का पालन करने बाद भी  लोगों के कोरोना संक्रमित होने का कारण छुआछूत जनित तो नहीं ही था !तो दूसरा फिर क्या हो सकता है ?कोई प्रत्यक्ष कारण दिखाई न देने पर ये आशंका होनी स्वाभाविक ही है कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि कोरोनासंक्रमण शरीरों के अंदर प्राकृतिक रूप से हुआ कोई परिवर्तन ही हो |शरीरों के आतंरिक कारणों से ही संक्रमण पैदा होता हो !

     तंजानियाँ जैसे कुछ देशों में फलों की जाँच किए जाने पर उनके आतंरिक भाग कोरोना संक्रमित पाए गए ! चारों ओर  से पूरी तरह बंद पपीता आदि फलों का आतंरिक भाग बाह्य कारणों से कैसे संक्रमित हो सकता है |उसमें तो बाहरी हवा या पानी का प्रवेश संभव ही नहीं था|इसके बाद भी कोरोना यदि फलों के अंदर पैदा हो सकता है तो मनुष्यों  के पेट में कोरोना के बिषाणुओं का जन्म क्यों नहीं हो सकता है | 

   24 मई 2021 को बीएचयू अस्पताल में भर्ती हुई महिला की कोरोना टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आई,उसने जिस बच्ची को जन्म दिया। उसका कोरोना टेस्ट कराया गया तो रिपोर्ट पॉजिटिव आई!जबकि पति पत्नी समेत परिवार के किसी सदस्य  को कोरोना कभी हुआ ही नहीं था,फिर भी उनका बच्चा कोरोना संक्रमित पैदा हुआ था |जिस प्रकार से किसी संक्रमित व्यक्ति के प्रत्यक्ष संपर्क में आए बिना गर्भस्थ शिशु यदि कोरोना संक्रमित हो सकता है ,तो मनुष्य आदि अन्य प्राणियों में कोरोना स्वयं ही पैदा क्यों नहीं हो सकता है |

         ऐसी स्थिति में यह पता लगाया जाना बहुत आवश्यक है कि मनुष्य शरीरों में कोरोना संक्रमण कहीं बाहर से आ रहा था या कि शरीरों के अंदर ही पैदा हो रहा था | इस रहस्य को सुलझाया जाना बहुत आवश्यक है |

  महामारी पीड़ितों पर नहीं पड़ रहा था औषधियों का प्रभाव ! 

     चिकित्सा में प्रयोग की जाने वाली औषधियाँ कितनी शुद्ध थीं|ऐसी शंका होनी इसलिए स्वाभाविक है | क्योंकि महामारीजनित संक्रमण यदि फलों के अंदर तक पहुँच सकता है तो उन बनस्पतियों ,औषधियों या निर्मित औषधियों के भी आतंरिक भाग में प्रविष्ट होकर उन औषधियों के चिर प्रतिष्ठित गुणों में भी बिकार उत्पन्न कर सकता है | इससे जिन रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए जो ओषधियाँ जानी जाती रही हैं | उन रोगों पर उन औषधियों का अब वैसा प्रभाव पड़ना संभव नहीं होगा जैसा पहले पड़ता रहा है|ऐसी स्थिति में जिन औषधियों का प्रयोग करके जिसप्रकार के रोगों से मुक्ति दिलाई जाती रही है |उन  औषधियों में बिकार आ जाने के कारण अब उस प्रकार का प्रभाव उनमें नहीं रहेगा जैसा पहले था |उस प्रकार के रोगियों पर जब उन औषधियों का प्रयोग किया जाएगा तो उनसे लाभ नहीं होगा ! ऐसी स्थिति में औषधियाँ देखने में वैसी ही लगती हैं | इसलिए उन पर तो संशय होता नहीं है,प्रत्युत रोग पर संशय होने लगता है कि यदि यह वही रोग होता तो उन औषधियों से लाभ मिलना चाहिए था !किंतु ऐसा न होने से लगता है कि महारोग का स्वरूप परिवर्तन हो गया है | इसलिए ऐसी औषधियों का  गुणपरिवर्तन एवं महामारी के स्वरूप परिवर्तन का संयुक्त अनुसंधान करके यह पता लगाया जाना चाहिए कि महामारी से संक्रमितों पर औषधियों का प्रभाव न पड़ने का कारण महामारी का स्वरूप परिवर्तन था या औषधियों का  गुणपरिवर्तन !

लोग महामारी के कारण रोगी हुए या प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के कारण !

      महामारी काल में संक्रमित होने का कारण प्रतिरोधक क्षमता की कमी को बताया जाता रहा है|इसका मतलब ये हुआ कि प्रतिरोधक क्षमता के मजबूत होने से संक्रमित होने का भय कम रह जाता है | इसीलिए जिनकी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत रही वे संक्रमित ही नहीं हुए ! इनसे भी अधिक मजबूत प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग संक्रमितों के बीच रहकर भी संक्रमित नहीं हुए !इन दोनों से अधिक मजबूत प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग संक्रमितों के साथ रहकर भी स्वस्थ बने रहे !उन्हें वैक्सीन आदि औषधियों की भी आवश्यकता नहीं पड़ी |इन तीनों से भी अधिक मजबूत प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों ने तो न कोविड नियमों का पालन किया और न वैक्सीन आदि औषधियों का ही सेवन किया !संक्रमितों के बीच भी निर्भीक घूमते रहे फिर भी वे बिल्कुल संक्रमित नहीं हुए |

    इसका मतलब क्या यह हुआ लोगों के संक्रमित होने का कारण महामारी न होकर प्रत्युत प्रतिरोधक क्षमता की कमजोरी थी |क्या ऐसा भी संभव है कि देशवासियों की प्रतिरोधक क्षमता यदि मजबूत होती तो देशवासियों  को कोरोना महामारी से कोई भय ही नहीं होता |प्रतिरोधक क्षमता के बलपर क्या देश और समाज को महामारी मुक्त बनाए रखा जा सकता है |इस विषय में अनुसंधान पूर्वक कोई निश्चित उत्तर खोजा जाना चाहिए ! जो भविष्य के लिए हितकर होगा |

प्रतिरोधकक्षमता से मृत्यु को टालना संभव है क्या ? 

    महामारीकाल में कुछ लोग स्वस्थ बने रहे !माना गया कि उनकी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत रही होगी |कुछ लोग संक्रमित होने बाद स्वस्थ हो गए ! माना गया कि इनकी प्रतिरोधक क्षमता पहले कमजोर रही होगी तब संक्रमित हुए बाद में मजबूत हो गई तो स्वस्थ हो गए | विशेष बात यह है कि जो लोग संक्रमित होने के बाद मृत्यु को प्राप्त हो गए !क्या ऐसी घटनाएँ भी प्रतिरोधक क्षमता की कमी के कारण घटित हुई हैं | प्रतिरोधक क्षमता यदि मजबूत होती तो क्या मृत्यु होने जैसी घटनाएँ टाली जा सकती थीं |दूसरी बात जो लोग संक्रमित हुए बिना ही हँसते खेलते नाचते गाते बात करते उठते बैठते खाते पीते पूजा पाठ करते समय अचानक मृत्यु को प्राप्त हो गए |ऐसे लोगों की मृत्यु तो हुई किंतु वे संक्रमित नहीं हुए | ऐसे लोगों की प्रतिरोधक क्षमता यदि कमजोर थी तो वे संक्रमित क्यों नहीं हुए और यदि प्रतिरोधक क्षमता मजबूत थी इसलिए संक्रमित नहीं हुए ! ऐसी स्थिति में प्रतिरोधक क्षमता यदि मजबूत ही थी तो उनकी मृत्यु होने का कारण क्या था ? अनुसंधान पूर्वक तर्क संगत ढंग से इस रहस्य को उद्घाटित किए जाने की आवश्यकता है | 

मृत्यु होने का कारण रोग होता है या दुर्घटनाएँ !

     महामारी में कुछ लोग संक्रमित हुए |उनमें से कुछ लोगों की मृत्यु हो गई | ऐसी मौतों के लिए महामारी से संक्रमित होने को जिम्मेदार मान लिया गया ! कुछ रोगियों को चिकित्सा के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया गया ! उन सभी की पूर्ण सतर्कता पूर्वक अच्छी से अच्छी चिकित्सा की गई ,फिर भी उनमें से कुछ  लोगों की मृत्यु हो गई जिसके लिए चिकित्सकीय लापरवाही को जिम्मेदार मान लिया गया | किसी स्थान पर कोई दुर्घटना घटित हुई | उसकी चपेट में आने पर भी कुछ लोगों को खरोंच भी नहीं आई !कुछ घायल हुए ! उनमें से कुछ घायलों की मृत्यु हो गई | ऐसी मौतों के लिए उस दुर्घटना के लिए जिम्मेदार मान लिया जाता है | 

     इसमें विशेष बात ये है कि संक्रमितों की मृत्यु का कारण यदि महामारी होती तो सभी संक्रमितों की मृत्यु होती !ऐसे ही चिकित्सकीय लापरवाही से मृत्यु होती तो उन सभी की होती जिनकी  एक जैसी चिकित्सा की गई थी | दुर्घटना से मृत्यु होती उन सभी की होती जो एक ही दुर्घटना के शिकार हुए थे !ऐसी स्थिति में महामारी के समय हुई इतनी अधिक मौतों का कारण क्या था ये इसलिए पता लगाया जाना आवश्यक है | महामारी के समय हुई इतनी अधिक मौतों के लिए क्या वास्तव में महामारी ही जिम्मेदार थी या कुछ और !यदि और तो वह और क्या था !उस और से बचाव किया जा सकता है क्या यदि हाँ तो कैसे ?

 मृत्यु होने का कोई कारण होना आवश्यक है क्या ?

    कोई रोग हुए बिना या किसीप्रकार की चोट लगे बिना भी कुछ लोग अचानक मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं | महामारी  के समय और उसके बाद में भी ऐसा हुआ |रोगी होने के बाद संभव है कि शरीर अधिक दुर्बल होकर प्राणों को धारण करने लायक न रहे |ऐसे ही किसी दुर्घटना का शिकार होने से संभव है कि शरीर प्राणों को धारण करने लायक ही न बचे | ऐसे मृत्यु होने पर कारण प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा होता है | इसलिए उन घटनाओं को मृत्यु का कारण माना जा सकता है,परंतु जो लोग संक्रमित हुए बिना ही हँसते खेलते नाचते गाते बात करते उठते बैठते खाते पीते पूजा पाठ करते समय अचानक मृत्यु को प्राप्त हो गए |उनकी मृत्यु का प्रत्यक्षकारण दिखाई न देने पर उनकी मृत्यु के लिए किसे जिम्मेदार माना जाना चाहिए | ऐसे लोगों की मृत्यु के लिए जो कारण जिम्मेदार हो सकता है | वही कारण रोगी एवं दुर्घटनाग्रस्त लोगों की मृत्यु के लिए जिम्मेदार क्यों नहीं हो सकता है |जो भी हो किंतु किसी की मृत्यु होने का वास्तविक कारण खोजे बिना इस बात को स्पष्ट किया जाना कैसे संभव है कि किसकी मृत्यु का कारण क्या है | मृत्यु के कारण को अच्छी प्रकार से समझे बिना महामारी के समय हुई मौतों के लिए महामारी को किस आधार पर जिम्मेदार ठहराया जा सकता है |जिस प्रकार से रोग का कारण समझे बिना चिकित्सा की जानी संभव नहीं है,उसी प्रकार से  मृत्यु का वास्तविक कारण पता लगाए बिना लोगों के जीवन को सुरक्षित बचाने के लिए प्रभावी प्रयत्न किया जाना कैसे संभव है |

 मृत्यु होने का कारण समय भी हो सकता है क्या ?

   भारत का प्राचीन परंपरा विज्ञान किसी की मृत्यु  होने का कारण उसका अपना समय मानता है | उसकी मान्यता यहाँ तक है कि कोई ऐसा रोग या कोई ऐसी दुर्घटना जिससे मृत्यु होनी होती है | इसकी चपेट में वही व्यक्ति आता है जिसकी अपनी आयु पूरी हो चुकी होती है | इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि कई बार अधिक संख्या में लोग अचानक रोगी होने लगते हैं |जिनकी मृत्यु का समय नहीं आया होता है | ऐसे रोगी  स्वस्थ हो जाते हैं | उन रोगियों में कुछ रोगी ऐसे भी होते हैं,जिनकी आयु उसी समय पूरी हुई होती है |इसलिए उनकी मृत्यु हो जाती है |मृत्यु आयु पूरी होने के कारण होती है किंतु आयु पूरी होना परंपरा विज्ञान में तो माना जाता है किंतु आयु पूरी होते प्रत्यक्ष दिखाई नहीं पड़ता है |इसलिए विज्ञान आयु पूरी होने को मृत्यु का कारण न मान कर उनके रोगी होने या दुर्घटनाग्रस्त होने जैसे प्रत्यक्षकारण को मृत्यु के लिए जिम्मेदार मान लिया जाता है |   

     कुछ रोगियों को चिकित्सा के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया जाता है ! उनमें से कुछ रोगियों की आयु पूरी हो चुकी होती है| इसलिए पूर्ण सतर्कता के साथ अच्छी से अच्छी चिकित्सा तो उन सभी रोगियों की गई होती है ,किंतु स्वस्थ वही होते हैं जिनकी आयु पूरी नहीं हुई होती है | जिनकी आयु पूरी हो गई होती है अच्छी से अच्छी चिकित्सा का लाभ लेकर भी वे स्वस्थ नहीं हो पाते हैं | उनकी मृत्यु हो ही जाती है | आयु पूरी होना प्रत्यक्ष दिखाई न पड़ने के कारण  चिकित्सा में लापरवाही को जिम्मेदार कारण मान लिया जाता है |

    ऐसे ही किसी स्थान पर जिस समय कोई दुर्घटना घटित हुई | वहाँ उपस्थित लोगों में से कुछ लोग उस दुर्घटना के शिकार हो गए हों | उन घायलों में से  कुछ की मृत्यु का समय भी तभी आ पहुँचा हो !इसलिए उन लोगों की मृत्यु तो समय के प्रभाव से उसी समय हो जाती है | समय का प्रभाव प्रत्यक्ष दिखाई नहीं पड़ता है | दुर्घटना प्रत्यक्ष दिखाई पड़ रही होती है | इसलिए ऐसी मौतों का प्रत्यक्ष कारण उस दुर्घटना को मान लिया जाता है |

  इसी प्रकार से जिस समय महामारी आई उसी समय कुछ लोगों की मृत्यु का समय आ पहुँचा होगा | जिनकी मृत्यु का समय आया | इसलिए उन  लोगों की मृत्यु तो समय प्रभाव से हुई होगी ,किंतु ऐसी मौतों के लिए महामारी को जिम्मेदार मान लिया जाता है ! 

    कुल मिलाकर मृत्यु होने का कारण यदि समय ही होता है तो महामारी के समय इतनी बड़ी संख्या में लोगों की आयु पूरी होने का कारण क्या था | ये अनुसंधानपूर्वक पता लगाया जाना चाहिए |

धर्म कर्म से जुड़े लोगों का भी होता रहा बचाव !

      किसान मजदूर गरीब ग्रामीण एवं रिक्साचालक, शहरों में फल सब्जी बेचने वाले आदि मजबूरीबश कोविड नियमों का पालन न करके भी साधन संपन्न वर्ग की अपेक्षा कम संक्रमित हुए हैं होते देखा गया | इसका कारण ये माना जा सकता है कि वे परिश्रम अधिक करते हैं | इसलिए उनके शरीर अधिक मजबूत हो चुके हैं |प्रश्न उठता है कि साधू संतों आदि धर्म कर्म से जुड़े लोगों को भी अपेक्षाकृत कम संक्रमित होते देखा गया है |माना जा सकता है कि वे अपने अपने आश्रमों में एकांतबास करते रहे | इसलिए कम संक्रमित हुए होंगे |यजमानों के यहाँ दुर्भाग्यवश किसी की मृत्यु होने पर महामारी काल में भी पंडितों पुजारियों ने घर घर जाकर श्राद्ध आदि कर्म करवाए हैं ,फिर भी औरों की अपेक्षा वे बहुत कम संख्या में संक्रमित हुए हैं |ऐसे ही श्मशानों में अंत क्रिया करवाने वाले पंडा लोग भी कम संक्रमित हुए हैं | ऐसे लोंगों  का संक्रमित होने से बचाव होने का वास्तविक कारण क्या हो सकता है | ये अनुसंधान पूर्वक पता लगाया जाना चाहिए |

 मृत्यु होने का कारण  केवल शरीर ही तो नहीं होता है !

    परंपरा विज्ञान की दृष्टि से तो किसी की मृत्यु होने या न होने में शरीर के साथ साथ प्राणों और आत्मा की भी भूमिका होती है| शरीर के साथ प्राण आत्मा आदि का संयोग जब तक रहता है तब तक जीवन रहता है और जैसे ही प्राण आत्मा आदि शरीर से निकल जाते हैं वैसे ही मृत्यु हो जाती है | यह सच है कि शरीर के नष्ट होते ही प्राण आत्मा आदि शरीर को छोड़ देते हैं किंतु शरीर के संपूर्ण रूप से सुरक्षित रहते हुए भी जिनकी मृत्यु अचानक हो जाती है |ऐसे स्वस्थ एवं सुरक्षित शरीरों को भी प्राण आत्मा आदि छोड़कर जाने का कारण क्या होता है | प्राण आत्मा आदि के छोड़कर  जाने की उनकी अपनी कोई परिस्थिति होती है ! जिसके कारण ऐसे शरीरों में उन्हें घुटन होने लगती है और ऐसे शरीरों में उनका रह पाना कठिन हो जाता है !उनके शरीरों में कोई बिकार आ जाता है या मन में कोई बिकार आ जाता है ! ऐसी भी संभावना हो सकती है क्या कि किसी अप्रत्यक्ष शक्ति के निर्देश के अनुशार ही उन्हें शरीरों में रहना या छोड़ना होता है |प्राण और आत्मा को किसी चिकित्सा के बलपर क्या किसी शरीर से बाँध कर रखा जाना संभव है यदि नहीं तो ये कैसे कहा जा सकता है ,कि अमुक व्यक्ति को यदि समय से चिकित्सा मिल जाती तो उसकी मृत्यु नहीं होती ! कुलमिलाकर  प्राण और आत्मा के संचार को ठीक ठीक समझे बिना ये कैसे कहा जा सकता है कि किसकी मृत्यु होने का कारण क्या है ?इसलिए अनुसंधानों के आधार पर मृत्यु के रहस्य को सुलझाया जाना चाहिए | जिससे यह पता लगाया जा सके कि किसकी मृत्यु महामारी से हुई है या किसकी मृत्यु का समय ही आ गया था |क्या लौकिक प्रतिरोधक क्षमता के बलपर वो अलौकिक क्षमता  विकसित की जा सकती है | जिससे मनुष्य के स्वस्थ रहने के साथ साथ प्राण रक्षा भी हो सके |

 प्रतिरोधक क्षमता कैसे बढ़ती है ?

      बताया जाता है कि स्वास्थ्य के अनुकूल पौष्टिक खाने पीने से,समय से टीके लगवाने से,टॉनिक पीने,बिटामिन  सेवन करने से, वातानुकूलित सुविधा पूर्ण शयन कक्षों में सुखद बिछौनों पर सोने आदि से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है| साधन संपन्न लोगों के यहाँ तो ये सारी सुविधाएँ होती ही हैं | वहाँ तो बच्चों का जन्म भी चिकित्सकों के हाथों में होता है|चिकित्सकों के द्वारा बताए गए टीके,टॉनिक,बिटामिन आदि का समय से सेवन किया जाता है|चिकित्सकों के द्वारा निर्द्धारित किए गए रहन सहन खानपान आदि का अनुपालन होता रहा है|इस वर्ग ने चिकित्सकों के द्वारा बताए गए कोरोना नियमों का पालन बड़ी कठोरता से किया है |ऐसा करने में इनकी कोई मजबूरी भी नहीं थी | ऐसे साधन संपन्न लोग बड़ी बड़ी कोठियों के एकांत कमरों में रहकर अपने पारिवारिक चिकित्सकों से सलाह लेते बने रहे | आवश्यक सामान  कर्मचारी लोग समय से पहुँचाते रहे |इन सबसे उस साधनसंपन्न वर्ग की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो जानी चाहिए थी,किंतु  यदि ऐसा हुआ होता तो साधन संपन्न वर्ग संक्रमित नहीं होता !किंतु यह वर्ग गरीबों की अपेक्षा अधिक संक्रमित हुआ है| इसका कारण खोजा जाना अत्यंत आवश्यक है |प्रतिरोधक क्षमता के द्वारा कोरोना महामारी से बचाव हो सकता या नहीं !यदि हो सकता है तो हुआ क्यों नहीं !दूसरी बात ऊपर कहे गए पौष्टिक खान पान आदि से प्रतिरोधक क्षमता  बढ़ती है या नहीं |यदि बढ़ती है तो ऐसे लोगों की बढ़ी क्यों नहीं और यदि नहीं बढ़ती है तो फिर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती कैसे है ?

महामारी से गरीबों और श्रमिकों की सुरक्षा होने का कारण क्या है ?

     साधन संपन्न वर्ग की अपेक्षा  किसानों मजदूरों श्रमिकों में कोरोना संक्रमण का प्रभाव कम पड़ा ! श्रमिकलोग अपने अपने गाँव जाने के लिए जब दिल्ली मुंबई सूरत आदि शहरों से निकले उस समय कोविड नियमों का पालन संभव न था ! उस समय विशेषज्ञों को यह कहते सुना गया था कि ये श्रमिक जहाँ जहाँ जाएँगे , वहाँ वहाँ बहुत तेजी से संक्रमण फैलेगा !किंतु वे सब अपने अपने गाँवों में सकुशल पहुँचे और सभी स्वस्थ बने रहे !बिहार बंगाल की चुनावी रैलियों के समय भी ऐसी आशंका जताई गई थी ! दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के समय भी ऐसा अनुमान किया गया था !हरिद्वार के कुंभ मेले के विषय में भी ऐसा कहा गया था | महानगरों में फल और सब्जी वालों के विषय में भी यही आशंका जताई जा रही थी !किंतु इसप्रकार की आशंका अंदाजे अनुमान आदि सही नहीं निकले और वे लोग स्वस्थ एवं सुरक्षित बने रहे !जबकि इसी आशंका के कारण कोविडनियमों को अनिवार्य बनाया गया था | बचाव के उद्देश्य से ही लॉकडाउन लगाया गया था | ऐसी आशंकाएँ कितनी उचित थीं !ये केवल अंदाजा ही था या ऐसे अनुमानों का कोई वैज्ञानिक आधार भी था और वो क्या था ! उस अनुमान के सच न निकलने का  अनुसंधान जनित कारण क्या था|भविष्य की सुरक्षा के लिए अनुसंधान पूर्वक इसका सच सामने लाया जाना चाहिए |     

 महामारी का स्वरूप ही नहीं पता तो  स्वरूप परिवर्तन कैसा !

     किसी भी रोगी की चिकित्सा करते समय सर्व प्रथम रोग और रोगी की प्रकृति पहचाननी होती है |उसका स्वरूप समझना होता है |उसी के अनुशार औषधि या चिकित्सा के विषय में निर्णय लिया जाता है |महामारी का वेग इतना अधिक होता है कि रोग और रोगी की प्रकृति पहचानने या स्वरूप समझने के लिए समय ही नहीं होता है |उस समय तो बचाव के लिए तुरंत प्रभावी प्रयत्न शुरू करने होते हैं |ऐसी स्थिति में जब रोग की प्रकृति और स्वरूप पता ही नहीं लगाया जा सका तो ये किस आधार पर कहा जा सकता है कि महामारी का स्वरूप परिवर्तन हो गया !ऐसा कहने के लिए महामारी के दोनों स्वरूपों को सामने रखना होगा कि पहले स्वरूप वैसा था किंतु अब ऐसा है | ऐसा किया नहीं जा सका ! 

     महामारी का वेग काफी अधिक होने के कारण उसकी प्रकृति और स्वरूप समझे बिना ही केवल लक्षणों के आधार पर रोगियों को  स्वस्थ करने के उद्देश्य से औषधियाँ देनी पड़ती हैं | रोग के विषय में कुछ भी पता न होने के कारण अंदाजे के आधार पर दी गई ऐसी औषधियों से रोगी को रोग मुक्ति मिलेगी या रोग और अधिक बढ़ जाएगा ! इस विषय में विश्वासपूर्वक कुछ भी कहा जाना संभव नहीं होता है| 

 महामारी के स्वरूपपरिवर्तन का  मतलब क्या !

    महामारी संबंधी संक्रमण प्राकृतिकरूप से कभी बढ़ने तथा कभी कम होने लगता है| संक्रमण बढ़ते समय बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होने लगते हैं और संक्रमण घटते समय अधिकांश संक्रमितों में सुधार तो प्राकृतिकरूप से होता है ,किंतु जो लोग कोई औषधि ले रहे होते हैं उन्हें लगता है कि उनके शरीरों में उसी औषधि के प्रभाव से सुधार हो रहा है | 

    ऐसे समय लोग स्वस्थ तो प्राकृतिक रूप से हो रहे होते हैं ,किंतु बहुत लोग स्वस्थ होने के लिए कोई न कोई उपाय भी कर रहे होते हैं | कुछ लोग औषधि ले रहे होते हैं !कुछ अपने अपने धार्मिक विश्वास के अनुशार कोई उपाय कर रहे होते हैं | वे सब अपने स्वस्थ होने का श्रेय अपने द्वारा किए जा रहे उपायों को देते हैं | चिकित्सालयों में भर्ती कुछ लोग चिकित्सा का लाभ ले रहे होते हैं | ऐसे समय उन्हें चिकित्सकों के द्वारा जो औषधियाँ दी जा रही होती हैं |उनके स्वस्थ होने का न केवल न केवल श्रेय उन औषधियों को दिया जाता है ,प्रत्युत उसी औषधि   को महामारी की प्रभावी औषधि  मानलिया जाता है |ऐसा भ्रम तब तक बना रहता है जब तक महामारी की दूसरी लहर नहीं आती है | 

    महामारी की दूसरी लहर आने पर जब संक्रमितों की संख्या अचानक तेजी से बढ़ने लगती है | ऐसे रोगियों पर तब उसी औषधि का प्रयोग किया जाता है जिसे पिछली बार महामारी से मुक्ति दिलाने वाली प्रभावी औषधि माना गया था | दूसरी लहर में जब उस औषधि से किसी रोगी को जब कोई लाभ नहीं होता है ,प्रत्युत संक्रमण तेजी से बढ़ता चला जा रहा होता है ,तब यह भ्रम टूट जाता है और सच्चाई सामने आ जाती है कि पहली लहर में प्राकृतिक रूप से स्वस्थ हुए लोगों को इस औषधि के प्रभाव से स्वस्थ हुआ गलती से मान लिया गया था | प्रत्यक्ष रूप से यह गलती स्वीकार किया जाना काफी कठिन होता है | इसलिए इस औषधि के विषय में हमारा अनुमान गलत निकला ऐसा न कहकर यह कह दिया जाता है कि महामारी का स्वरूप परिवर्तन हो जाने के कारण उस प्रभावी औषधि का इन संक्रमितों पर प्रभाव नहीं पड़ रहा है | सच्चाई ये है कि महामारी संक्रमितों पर उस औषधि का प्रभाव न उस समय पड़ा होता है और न ही अबकी बार पड़ा है | प्राकृतिक रोगों में ऐसा भ्रम होते हमेंशा  से देखा जाता रहा है |वैसे भी जब महारोग और रोगी की प्रकृति एवं स्वरूप पहचाना ही न जा सका हो तो उसकी चिकित्सा के  विषय में विश्वास पूर्वक कुछ कैसे कहा जा सकता है| 

   ऐसी स्थिति में यह पता लगाया जाना आवश्यक है कि उन औषधियों से पहली बार कोई लाभ हुआ था या नहीं !यदि हुआ था तो दूसरी बार उनसे लाभ न होने का कारण महामारी का स्वरूप परिवर्तन था या कुछ और !यदि स्वरूप परिवर्तन था तो पहले क्या स्वरूप था और बाद में उसमें किस प्रकार का ऐसा क्या बदलाव आया जिससे उन औषधियों से कोई लाभ नहीं हुआ ?                                   

                                       प्राकृतिक रोगों की चिकित्सा और भ्रम !

      ऐसी परिस्थिति में रोग और रोगी के विषय में वास्तविक जानकारी न होने पर चिकित्सा से लाभ होगा या फिर नहीं होगा बात केवल इतनी ही नहीं है ,प्रत्युत कई औषधियों के भयंकर दुष्प्रभाव भी होते देखे जाते हैं | ऐसी स्थिति में महामारी जनित बड़ी बड़ी समस्याएँ जहाँ एक ओर डरा रही होती हैं | वहीं आधी अधूरी कच्ची पक्की जानकारी के आधार पर की गई चिकित्सा के दुष्प्रभाव भी कई बार भुगतने पड़ते हैं | महारोग से पीड़ितों के शरीर दुर्बल वैसे भी होते हैं | ऐसे दुष्प्रभावों को सह पाना उनके लिए न केवल कठिन होता प्रत्युत कई बार असंभव भी होता है | जिसके बड़े दुष्प्रभाव भी देखने को मिलते हैं | 

      इसलिए सही तथ्यों के बिना किसी ऐसी औषधि को रोगविशेष की औषधि मान लेना उचित  नहीं है जो उस रोग की औषधि ही न हो | कोरोना महामारी के समय में प्लाज्मा थैरेपी इसी का उदाहरण है |जिसे पहले औषधि माना गया बाद में चिकित्सा प्रक्रिया से अलग कर दिया गया | ऐसी स्थिति के पैदा होने का कारण यह है कि जिन लोगों को पहले प्लाज्मा दी गई थी |उसके बाद कुछ लोग स्वस्थ होते देखे गए थे | वे प्लाज्मा लेने के बाद स्वस्थ हुए थे, किंतु प्लाज्मा के प्रभाव से स्वस्थ नहीं हुए थे |वे स्वस्थ प्राकृतिक रूप से ही हुए थे |जिसे भ्रमवश प्लाज्मा का प्रभाव समझकर प्लाज्माप्रयोग को संक्रमितों की चिकित्सा के लिए  उचित माना गया था |  

      ऐसी स्थिति में जिन वैज्ञानिक परीक्षणों के आधार पर जिस औषधि को  पहले महामारी से मुक्ति दिलाने वाली औषधि माना गया था | दूसरी लहर के समय महामारी में ऐसा क्या बदलाव दिखा जिसके कारण उन औषधियों से दूसरी लहर में लाभ नहीं हुआ | स्वास्थ्य लाभ क्यों नहीं हुआ यह खोजने के बजाए इस लाभ न होने का कारण महामारी का स्वरूप परिवर्तन मान लिया गया | ऐसा मानने  के पीछे अनुसंधान जनित कुछ साक्ष्य भी हैं | 

 


महामारी से मुक्ति मिलने में वैक्सीन का योगदान ?

 koronil-https://www.jansatta.com/health-news-hindi/covid-19-baba-ramdev-launched-corona-drug-coronil-price-rs-545-know-when-and-where-to-get-this-medicine/1446539/

 

https://www.indiatv.in/india/good-news-before-patanjali-coronil-these-three-corona-drug-available-in-india-cipremi-covifor-fabi-flu-720570

 

पतंजलि का नया दावा: बच्चों को कोरोना की तीसरी लहर से बचाने में सक्षम है कोरोनिल see...https://www.amarujala.com/india-news/patanjali-ayurved-chairman-balkrishna-claims-coronil-tablets-are-effective-for-children-to-fight-coronavirus-and-boost-immunity


      मौसम के बिगड़ने से क्या बढ़ती है महामारी ?

        कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि इस विषय में वैज्ञानिकों के वक्तव्य दोनों प्रकार

   किसी गाड़ी को पीछे से धक्का देकर यदि छोड़ दिया जाता है तो उसकी गति धीरे धीरे धीमी होती जाती है और रुक जाती है | उसे दुबारा चलाने के लिए दोबारा धक्का ही देना पड़ता है! गाड़ी यदि बिना किसी धक्के के अपने आप से तेज और धीमी होने लगे तो ये किसी के धक्का लगाने से संभव नहीं होता है | ऐसा तभी हो सकता है जब गाड़ी उसके अपने इंजन से चल रही हो अपनी धक्के  

 

महामारी की प्रकृति पता लगे केवल लक्षणों के आधार पर कुछ संक्रमितों पर कुछ औषधियों का प्रयोग किया जाता रहा ! संपूर्ण महामारी काल में ज्वारभाटे की तरह संक्रमण को बार बार बढ़ते और घटते देखा जाता रहा है | जब महामारी का ज्वार आता उस समय चिकित्सा की दृष्टि से किए गए सभी प्रयास निष्फल होते थे और जब भाटा आता उस समय चिकित्सा की दृष्टि से किए गए सभी प्रयास  लिए जाते थे |
 

 इसप्रकार का प्रभाव प्रायः सभी रोगियों पर पड़ता है | जिससे अधिकाँश रोगियों के स्वास्थ्य में  सुधार होने लगता है कुछ रोगी धीरे धीरे स्वस्थ होने लगते हैं ! उनमें से कुछ रोगियों ने अपने स्वस्थ होने के लिए कोई न कोई औषधि ली होती है जिन रोगियों ने स्वस्थ होने से पहले