सोमवार, 2 सितंबर 2013

भागवत कथाओं में भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार कैसे सुधरें संस्कार ?

          भागवत  में  नागवत लोट रहे नाग
      भागवत  कथा का शास्त्रों में बहुत बड़ा महत्व है    इससे न केवल प्रेतांशिक दोष छूट जाते हैं अपितु संतान सुखयोग बनता है।भगवान की भक्ति मिलती है मुक्ति तो मिलती ही है।ये सब भागवत  सुनने पढ़ने एवं भक्तिभाव से चिंतन करने से होता है।इसे कहने सुनने के भी इसके कुछ शास्त्रीय नियम होते हैं।

कथा कहने वाले के नियमः-

विरक्तो  वैष्णवो  विप्रो वेदशास्त्रविशुद्धिकृत ।
दृष्टटान्तकुशलोधीरोवक्ताकार्योतिनिःस्पृहः।। भागवते

अर्थः-वेद शास्त्र की स्पष्ट  व्याख्या करने वाला,अच्छे उदाहरणदेकर भागवत समझाने वाला, विवेकवान, निस्पृह,विरक्त,एवं विष्णुभक्त ब्राह्मण को बक्ता बनावे।
कथा वक्ता के दाढ़ी आदि के बाल बना लेने के नियमः- 

      वक्त्राक्षौरं प्रकर्तव्यं दिनादर्वाग्व्रताप्तये । भागवते

  अर्थः- कथा प्रारंभ करने के एक दिन पहले वक्ता को दाढ़ी आदि के बाल बना लेने चाहिए क्योंकि कथा प्रारंभ के बाद फिर सात दिन तक क्षौर नहीं करना होता है।

  ऐसे कथा कहने वाले से कथा न सुनेः-

  अनेकधर्म        भ्रान्ताः   स्त्रैणाः  पाखंडवादिनः। 

    शुकशास्त्र  कथोच्चारेत्याज्यास्ते यदि पंडिताः।।     

                                                               भागवते

   अनेकधर्म को मानने वाले ,एवं स्त्रियों को रिझाने के लिए तरह तरह की वेषभूषा  धारण करनेवाले,नाचने गाने वाले पाखंडी वक्ता से कथा न सुने।

 
 कथा कहने वाला धन का लोभी न होः-
   लोक वित्त धनागार पुत्र चिंतां व्युदस्य च।। भागवते
 
अर्थः-संसार संपत्ति धन घर पुत्रादि की चिंता छोड़कर केवल कथा में ध्यान दे।
कथा का समयः-

 आसूर्योदयमारभ्य   सार्धत्रिप्रहरान्तकम्।
वाचनीया कथा सम्यग्धीरकंठं सुधीमता।।

सूर्योदय से कथा आरंभ करके साढ़े तीन प्रहर अर्थात साढ़ेदस घंटे तक मध्यम स्वर से अच्छी तरह कथा बॉंचे।दोपहर में दो घटी अर्थात 48मिनट कथा बंद रखे उस समय लोगों को कथा के अनुशार ही संकीर्तन करना चाहिए।
   इसका अर्थ यह हुआ कि प्रतिदिन 9घंटे42मिनट कथा बॉंचने पर सात दिन में विद्वान वक्ता कथा पूरी कर सकता है किंतु आजकल तो न इतने घंटे कथा होती है और न ही कथा बॉंची जाती है आजकल तो कथा कहने का रिवाज है। यहॉं ध्यान देने की बात है कि कथा कहने में जो मन आएगा वो बोला जाएगा किंतु कथा बॉंचने में तो जो लिखा है उसी की सीमा में रह कर बोलना होता है।उदाहरण भी उसी सीमा में रहकर देने होते हैं यहॉंतक कि दोपहर का संकीर्तन भी कथा के अनुरूप ही करना होता है ताकि अवकाश  के उस समय में भी कोई इधरउधर की चर्चा न करे अर्थात कथा परिषर में व्यर्थ का संगीत नाचना,गाना,या अभागवत चर्चा न हो।

    आज कल पहली बात तो यह है कि लोग भागवत कथा बॉंचते ही नहीं हैं।सब जो मन आता है सो कहते हैं उसका भागवत की पोथी से कोई लेनादेना ही नहीं होता है। दूसरा प्रतिदिन 9घंटे42मिनट जैसा कोई नियम नहीं होता है।तीसरा सारा समय नाचने गाने में ही चला जाता है कथा कब होती है पता नहीं सारी कथाएँ  रगड़ कर केवल उन्हीं में समय दिया जाता है जिनमें झॉंकियॉं बना सजा कर समाज के सामने भीख मॉगने के लिए रोना धोना कर सकें।सब के सब कथा गायक एक ही झूठ बोलते हैं कि पाठशाला के नाम पर दे दो।कन्याओं के विवाह के नाम पर दे दो।चिकित्सालय के नाम पर दे दो।वृद्धाश्रम के नाम पर दे दो।रूक्मिणी विवाह के नाम पर दे दो।सुदामा की भीख के नाम पर दे दो। अरे भाई! भागवत कथा में इन भिखारियों का क्या काम?यहॉं नाचने गाने का क्या काम?पहले तो कभी भागवत कथाओं में संगीत का सहारा लिया नहीं गया।कहीं ये बिना पढ़े लिखे लोग ऐसा तो नहीं समझते हैं कि व्यास जी और शुकदेव जी के बश  का संगीत था ही नहीं। धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज,अखंडानंदजी महाराज,डोंगरेजी महाराज जैसे महापुरूषों  के द्वारा निभाई गईं प्राचीन परंपराओं का पालन भी हम नहीं कर सके हमें धिक्कार है।
    वक्ताओं के नाम पर मजनूँ बने फिरते नचैया गवैया भागवत वक्ताओं ने  इस परमहंसी संहिता को भिखारियों की भीख मॉंगने वाली किताब बना दिया।
इस आत्म रंजन की संहिता को मनोरंजन तक सीमित कर दिया।कैसे कर सकेगी यह लोगों का कल्यान?कैसे ज्ञान वैराग्य बढ़ेगा? कैसे घटेगा देश  का भ्रष्टचार?
    नचैया गवैया इन भागवती भिखारियों ने न केवल सनातनी संस्कृति की अपूरणीय क्षति की है अपितु चरित्रवान भागवत विद्वानों को खड़े होने लायक नहीं रखा है इतनी फिसलन पैदा की है।

राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 

   यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु  ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी नीतिगत  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।शास्त्रीय विषय में यदि किसी प्रकार के सामाजिक भ्रम के शिकार हों तो हमारा संस्थान आपके प्रश्नों का स्वागत करता है ।

     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या राजनैतिक जगत से धार्मिक अंध विश्वास हटाना चाहते हों तथा धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 

       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है।


1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

Does women sit on Vyas pith/gaddi? Yes, then does their menstruation cycle not impact during vyas pith/gaddi. No, then Why people not aware or any proof not sit on vyas pith