मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

बढ़ते बलात्कारों के लिए जिम्मेदार केवल आशाराम हैं क्या ?

                     आशाराम और मीडिया !

    इस समय आशाराम पर मीडिया आखिर इतना कुपित क्यों है?इसका कारण यदि बलात्कार का आरोप माना जाए तो बलात्कार और जगहों पर भी हो रहे हैं एक से एक भयंकर हो रहे हैं किंतु मीडिया सोते जागते बस आशाराम जी के नाम को ही जप रहा है भूलता नहीं है जिसमें इस बिषय को लेकर कुछ चैनल तो इतना अधिक परेशान हैं कि जैसे उनका कुछ निजी हित अनहित प्रभावित हो रहा है।जब कभी आशाराम जी को जवानत मिलने की बात होती है तो उन चैनलीय चेहरों पर घबड़ाहट साफ दिखने लगती है इसलिए कुछ न कुछ तो ऐसा ज़रूर लगता है जो अभी नहीं तो कभी सही सामने जरूर आएगा!मीडिया के प्यारे राम आशाराम! आशाराम !!

     निजी तौर पर मैं न तो आशाराम जी का अनुयायी हूँ और न ही विरोधी!शास्त्रीय धार्मिक पक्षों से जुड़ा एक सनातन धर्मी हूँ।आशाराम जी के प्रवचनों में सत्संग जैसी कभी कोई चीज मुझे लगी ही नहीं वो हमेशा अपने जीवन से जुड़ी घटनाएँ अपने अनुयायियों को बताते रहते हैं और गुरु एवं गुरु की बातों पर विश्वास रखना सिखाते रहते हैं किंतु उनका अपना समझदार गिरोह उन्हें संत और अपने को सत्संगी मानता रहा, इसका कारण अपना अपना बौद्धिक स्तर और विश्वास ही रहा है। इसी कारण जहाँ जिस स्त्री पुरुष लड़के लड़की बेटा बहू को जब कभी वो बुलाना चाहते रहे वहाँ लोग जाते और भेजते रहे!इस प्रकार से आशाराम जी जो कुछ कहते या करते रहे लोग सुनते और सहते रहे ये उनका गुरू के प्रति प्रेम या भय जो भी रहा हो अत्यधिक श्रृद्धालु शिष्य तो मानते रहे कि यह उनके ऊपर होने वाली गुरुकृपा है!अन्यथा हर किसी में इतनी हिम्मत कहाँ है कि किसी के कहने पर अपनी युवा बेटी को एकांत बंद कमरे में वो भी किसी बाबा के साथ भेज दे वहाँ कुछ हो न हो भेजना ही अपने में सबसे बड़ी भूल है सामने वाला उसके साथ कुछ अच्छा करे या बुरा यह तो सामने वाले का संयम और सदाचार जाने किंतु एक अभिभावक के नाते भेजने वाले के द्वारा भी जो सतर्कता बरती जानी चाहिए थी वो नहीं बरती गई जिसकी चर्चा मीडिया के किसी चैनल पर नहीं की जा रही है!खैर मीडिया जाने आशाराम जी जानें वो बेटी जाने या फिर ईश्वर जाने इस प्रकरण में अब कानून अपना काम कर रहा है फैसला आएगा तब का तब देखा जाएगा !

    वैसे कोई भी व्यक्ति एक घर एक पत्नी और बच्चे आदि सारे प्रपंच छोड़कर जब भजन करने निकलता है फिर बड़े बड़े इतने आश्रम बनाना, धन संग्रह करना यह कैसा वैराग्य? यह तो धोखा है जो केवल आशाराम जी ही नहीं बहुत सारे बाबा लोग कर रहे हैं क्यों नहीं किया जाता है ऐसे सभी लोगों का सामूहिक बहिष्कार?

      रही बात आशाराम जी की तो अपने भाषणों में लप्फाजी का सहारा लेना, धन एवं मीडिया के बल से बात बात में अपने को आत्मज्ञानी ब्रह्मज्ञानी जैसे शब्दों से महिमा मंडित करना मुझ समेत किसी भी सनातन धर्मी को हमेशा चोट पहुँचाता रहा है! इसीप्रकार उनके लड़के का भाषण मैं एक दिन किसी चैनल पर सुन रहा था उसने कहा कि बापू जी की ओरा की जाँच की गई है जो कुछ किलोमीटर तक फैली रहती है उस सीमा में प्रवेश करते ही लोग उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते हैं ऐसी उपहासास्पद बातें आखिर क्यों की गईं क्यों बोला गया यह सफेद झूठ? आज उनके साथ साथ उनके अनुयायियों समेत सभी धार्मिक लोगों को परेशान कर रही हैं ये ऊल जुलूल बातें! आखिर अब कहाँ गई वो ओरा और कहाँ गया वह आत्मज्ञान और ब्रह्मज्ञान?

   हिंदू धर्म एवं धर्मगुरू के रूप में प्रचारित आशाराम जी ने अपनी धन और आश्रमों की भूख को,अपने रहन सहन को एवं अपनी भाषा तथा छिल्लड़ता को यदि नियंत्रित रखा होता तो विश्व स्तर पर आज क्यों हो रही होती सनातन हिन्दू धर्म एवं उससे जुड़े लोगों की छीछालेदर ? 

     शास्त्रीय धार्मिक जगत ऐसे सभी स्वयम्भू बाबाओं को न तो कभी मुख लगाता है  और न ही इनकी उन्नति या अवनति में ही शामिल होता है।चाहें कोई कामदेव बाबा भोग पीठ बनाए या कोई मलमल बाबा गोलगप्पे खिलाकर किसी के पास अपनी शक्तियाँ भेजने का ड्रामा करे!एक बुड्ढा बाबा तो लुटे पिटे अभिनेताओं को बुला कर उनको माध्यम बनाकर पहले भाड़े की भीड़ इकट्ठी करता है फिर उन्हें बीज मंतर बाँटता है किंतु बेचारा मन्त्र को मंतर ही कहता है मंत्र नहीं कह पाता है!

     चूँकि ऐसे सभी बाबाओं में धार्मिक एवं शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान सहित उन तमाम संस्कारों का अभाव होता है जो शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान की पावन परंपराओं  से सुलभ होते हैं।ऐसे सभी बाबाओं से न तो शास्त्रीय साधू संत जुड़ते हैं और न अलग ही होते हैं न प्रेम करते हैं और न ही द्वेष वो पवित्र आत्मा लोग सोचते हैं कि हमें इन प्रपंचों से क्या लेना देना हमें तो भजन करना है हम तो भजन ही करेंगे।

    इसीलिए पिछली बार जब एक भोगी बाबा पर कार्यवाही हुई थी शास्त्रीय साधू संत समुदाय की न तब कोई प्रतिक्रिया आई थी और न ही अब आई है! वैसे भी मूर्ति पूजा का खंडन करने वालों से लेकर भोग भगवान रजनीश आदि  इसी प्रचार तंत्र की उपज थे इनसे आगे पीछे और जितने भी प्रचार प्रधान बाबा हुए हैं सब की दुर्दशा उनके अपनों ने ही की है। ऐसे लोगों के शिष्य रूपी सदस्य ही इन्हें उठाते हैं वही गिरा देते हैं आशाराम जी भी आज उसी के शिकार हैं!

    ऐसे सभी महत्त्वाकांक्षी धर्म गुरुओं,योग गुरुओं को अपनी सुविधानुशार मीडिया पैदा करता है प्रचारित करता है और नष्ट कर देता है जो आज आशाराम जी के साथ हो रहा है!

    मेरा प्रश्न मीडिया से भी है कि आशाराम जी को धर्मगुरु या संत की उपाधि एवं दूसरे बड़बोले बाबा को योगगुरु जैसी उपाधि किस शास्त्रीय संत सभा में दी गई थी ? ऐसे बाबाओं को धर्मगुरु योगगुरु जैसे नामों से क्यों प्रचारित करते हैं आप !ऐसे तो जिस किसी को होता है सनातन धर्मियों का गुरू बनाकर खड़ा कर देता है मीडिया ! फिर करता है उसकी छीछालेदर, बारे मीडिया!अरे,कभी किसी शास्त्रीय साधू संत से पूछ भी तो लेते कि ऐसे बाबाओं को हम धर्मगुरु योगगुरु जैसे नामों से प्रचारित कर सकते हैं क्या?

   ये उसी तरह की बात है कि किसी व्यक्ति के शिर पर मीडिया पहले तो मुकुट पहनाता है इसके बाद उस मुकुट पर गोबर लगाता है जब वह पूछता है भाई यह क्या कर रहे हो तो जवाब देता है मुकुट तो मेरा है कुछ भी करूँ! इसी तरह आशाराम जी को पहले तो धर्मगुरु बनाया फिर कर रहा है छीछालेदर!ऐसे ही बहुत सारे अनपढ़ों को ज्योतिषाचार्य,वास्तु शास्त्री,तांत्रिक ,वैद्य आदि बहुत कुछ बना रहा है मीडिया!गलती उनकी है जो बिना किसी डिग्री या शिक्षा के टी.वी.चैनलों पर बैठ बैठ कर बकवास कर रहे हैं आज तो मजा आ रही है कल मीडिया इनकी भी दुर्दशा करेगा तब धर्म और धर्म शास्त्रों एवं हिन्दू धर्म के साथ हो रहे अत्याचार गिनाएँगे!सच है कि ये फोकट की प्रचार भूख व्यक्ति को कहाँ से कहाँ पहुँचा देती है !

डॉ.शेषनारायणवाजपेयी

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