सोमवार, 28 अक्तूबर 2013

दिवाली बाँटने के नाम पर दिवाली बर्बाद करना ठीक नहीं !

गिफ्ट लेने और देने की प्रक्रिया में गंदगी ही गंदगी है

  मैंने बहुत सोचा कि इस परंपरा में भी आखिर कुछ तो अच्छाई होगी किंतु मैं निराश हूँ ।मेरा बश  चले तो इसे कल बंद कर दें किंतु हिंदुस्तान भेड़िया धसान हर कोई अंत हीन तर्कहीन यात्रा पर देखादूनी भाग रहा है।बाजारों की महँगाई के लिए अकेले सरकार दोषी नहीं है सामाजिक रहन सहन एवं बात व्यवहार रीति रिवाज आदि बराबर के दोषी हैं

     यद्यपि उपहार देने लेने की हमारी अत्यंत प्रचीन परंपरा रही है किंतु वह लेने देने दोनों में ही प्रसन्नता होती थी और दिखावा बिल्कुल नहीं था उस समय आत्मा मन बुद्धि और हृदय आदि सब के साथ उपहार

देने वाले में विनम्र दान की भावना एवं लेने वाले में उसके स्नेह पर कृतज्ञता देखते ही बनती थी।वहॉं सामान लेन देन की प्रमुखता नहीं होती थी क्या है, कितना महॅंगा है, यह भावना तो थी ही नहीं । केवल इस पर गर्व होता था कि हमारे अपनों ने हमें याद तो किया। लोग बातचीत में एक दूसरे की सराहना करते हुए कहा करते थे बेचारे इसी बहाने मिलने तो आए।कोई किसी को क्या देता लेता है कोई किसी के यहाँ क्या खाने जाता है अमुक आदमी हमारे यहाँ  आए ये बहुत बड़ी बात है।इन्हीं धार्मिक बातों के बहाने गरीब अमीर हर आदमी एक दूसरे से मिलजुलकर जी लिया करता था।इसी बहाने मन की बातें एक दूसरे से कर लेते थे लोग।वहाँ संपन्नता और गिफ्ट की कीमत आँकने की परंपरा ही नहीं थी।केवल मिलकर ही दोनों प्रसन्न हो जाया  करते थे।
     कहाँ गईं भारत की अपने पन की वे पावन परंपराएँ ?कहाँ गए वे पवित्र लोग?कहाँ गया वह मिलन सारिता का सहज स्वभाव?कहाँ गए जीवित बिचारों वाले वे सजीव लोग?हर कोई बँधा बँधा सा महसूस कर रहा है। हर किसी को एक दूसरे से अपने मन की बात कहने में भय लग रहा है। लगता है कि अब इस समाज के हर व्यक्ति को अकेला ही रहकर घुट घुट कर मरना पड़ेगा।
      पहले लोग गिफ्ट देने के बहाने मिलने जाते थे अब अधिकांश  लोग मिलने के बहाने गिफ्ट देने जाते हैं,क्योंकि हर आदमी अब अपने से बड़ों से ही व्यवहार रखना चाहता है। वह भी ऐसे लोगों से जो उसे देहाती भाषा  में कुत्ता समझकर अपने घर में घुसने ही नहीं देना चाहते उनके यहाँ वो डिब्बा देने के बहाने एक बार घुसकर केवल अपना चेहरा दिखाकर धन्य हो जाता है।वो वर्ष  भर उन्हीं यादों चर्चाओं अगले साल की योजनाओं में खोया रहता है।
     दूसरे तरह के गिफ्ट दानी वे होते हैं जो अपने गिफ्ट पैकिट अपने बराबर वालों के मुखपर जूते की तरह मारते घूम रहे होते हैं मानों कह रहे हों, ले दरिद्र कहीं के देख! तेरे से अच्छा है हमारा डिब्बा।सामने वाला मिलना या हाथ मिलाना या हृदय मिलना चाहे, एक ग्लास पानी को पूछकर अपने आतिथ्य धर्म का भी निर्वाह करना चाहे  तो वो अपनी तीन मजबूरियॉं गिनाते हैं पहला बहुत खाया है पेट भरा है।दूसरा अभी बहुत जगह जाना है।तीसरा स्वास्थ्य भी कुछ ढीला है पेट खराब है । उसको कौन पूछे कि जब तू इतनी आपत्तियों बिपत्तियों का मारा है तो क्यों आया हमारे यहाँ  ये भीख देने?
     तीसरे तरह के वे गिफ्टदानी होते हैं जो अपने से छोटे उन लोगों से जुड़ते हैं जिनसे अक्सर ऐसे काम पड़ा   करते हैं जो होते तो छोटे हैं किंतु उनका महत्व बहुत होता है। जिसके वो लोग गर्ज समझ कर अक्सर काम फॅंसा होने पर बहुत ज्यादा पैसे चार्ज कर लेते हैं जैसेबिजलीआदिकेमैकेनिक,कारपेंटर,राजमिस्त्री,पोस्ट

मैन,डॉक्टर,ज्योतिषी,पंडित,पुजारी आदि अपने को सम्मानित समझने वाले और भी बहुत सारे लोग,जिनके प्रति सम्मान न होने पर भी उनकी चमचागिरी दिखाने के लिए फोकट में दाँत निकालकर हँसना पड़ता है।जो काम पड़ने पर ज्यादा पैसे न माँगने लगें या मौके पर धोखा न दे दें।ऐसे लोगों को अपने यहाँ लोगों के द्वारा दिए गए गिफ्ट के वे डिब्बे जो खोलकर देखे जा चुके होते हैं जो अपने लायक नहीं होते हैं किंतु औरों की अपेक्षा कुछ अच्छे होते हैं, इन्हें ही दुबारा पैक करके बनावटी मुस्कान के साथ उन घमंडियों को हँसकर चेंप दिए जाते हैं।इनका मतलब साफ होता है कि अब तुझे साल भर हमारे काम के लिए हमारी अँगुली पर नाचना होगा। प्रायः इन्हें कोई ऐसी चीज गिफ्ट में दी जाती है। जिसे न उपयोग कर सकें न फेंक सकें न किसी को दे सकें नजर बचाने के लिए टॉंगे जाने वाले जूते की तरह हमेंशा या अक्सर सामने दिखती रहे।  जैसे ऐसी प्लेटें दे दे जिस लायक वो कप खरीदने के लिए तरसता रहे।इसी प्रकार और भी बहुत सारी चीजें।
    चौथे प्रकार में गिफ्टदानी अपने नौकरों या सभीप्रकार के कर्म चारियों को  चुनता है इनके लिए गिफ्ट आइटम और कुछ पैसे इनके तय होते हैं जो इन्हें हर साल भुगतने ही पड़ते हैं।जिन्हें डिब्बे की कीमत पहले ही किसी न किसी  बहाने से बताई जा चुकी होती है ये देते समय महँगाई का घिसा पिटा रोना हर साल रोना होता है।ये वो गिफ्ट आइटम होता है जिसका आसरा उस कर्मचारी के बीबी बच्चों ने सालभर से लगाया होता है मालिक के दिमाग में उस आदमी की क्या औकाद है?ये यही गिफ्ट आइटम निश्चित करता है।बाबू जी की दयालुता उदारता आदि उस घर में उसी गिफ्ट आइटम से ही आँकी जाती है।
     पाँचवें प्रकार में झाड़ू पोछा करने वाले या इसी तरह के अन्य लोग होते हैं इन्हें जो जो चीजें जल्दी खराब होने लायक दिखती हैं वो इस हिदायत के साथ पकड़ा दी जाती हैं कि जल्दी खा लेना ये अच्छी मिठाइयाँ  हैं इस लिए जल्दी खराब हो जाती हैं।
      छठे प्रकार में गिफ्टदानी उन सफेद पोस लोगों को चुनता है जो इस दुनियाँ में साफ कपड़े पहनकर केवल जी रहे होते हैं।ये किसी का कुछ बना बिगाड़ नहीं सकते,अपने परिवार पर बोझ तो होते ही हैं। इनका काम चौराहे, गली, मोहल्लों में पान खाकर खड़े होकर हर आते जाते से राम राम, नमस्ते आदि करके हालचाल पूछना होता है,कभी कदा जागरण, कीर्तन आदि के लिए चंदा माँगने चले जाते हैं।इनको रोज टोकने की मजबूरी में कुछ देना पड़ता है क्योंकि यही फोकट की प्रशंसा करके आम लोगों को काल्पनिक रईस बनाया करते हैं। अरे बाबू जी! आप न होते तो दुनियाँ  में सब कुछ बिगड़ जाता आप ही हमारे सब कुछ हैं अबकी आपको चुनाव जरूर लड़वाना है आदि आदि।इस तरह के लोगों को संतुष्ट  करने के लिए गिफ्टदानी उन डिब्बों का उपयोग करता है।जो महीनों पहले पैक किए गए होते हैं और गिफ्ट के नाम पर मार्केट में टहलाए जा रहे होते हैं। इनमें लेवल किसी अच्छी दुकान का लगा होता है ऐसे गिफ्ट डिब्बे इन्हें चेंप दिए जाते हैं जिन्हें खराब निकलने पर उनकी कंपनियों की दुहाई दे रहे होते हैं।अर्थात इतनी अच्छी दुकान का है फिर भी.....!
    इसके बाद गिफ्ट दानी को एक सबसे बड़ी समस्या का सामना करना पड़ता है  कि कहीं से आए जो अच्छे समझकर घर रखे गए डिब्बे होते हैं अब शुरू होती है उनके सड़ने की बारी जो जैसा सड़ता जाता है वो वैसा कर्मचारियों या अन्य सामान्यवर्ग में बाँटे या फेंके जाते हैं। 
     बाजारों पर गंदा प्रभाव  गिफ्ट बाँटने के नाम पर जिसके दो डिब्बे का खर्च है वो भीख बाँटने  के नाम पर सौ डिब्बे खरीद कर गिफ्ट में बाँट देते हैं लेकिन उन्होंने जिन बड़े आदमियों को अच्छी अच्छी मिठाइयाँ दी हैं उन्हें मीठा खाने के लिए या तो डाक्टरों ने रोक रखा है या उन्होंने स्वयं संयम बनाया हुआ है ऐसे में उनके यहाँ  उस मीठे का कोई उपयोग नहीं होता है जो उनके यहाँ  आने जाने वाले हैं उनका भी यही हाल होता है वो भी नहीं खाते मीठे का नाम सुनकर नाक भौं सिकोड़ रहे होते हैं। ऐसे में आर्थिक  अहंकार के द्वारा मार्केट से अच्छा मीठा गायब कर देना।बड़े घरों में देकर सड़ा देना। ये कहाँ का न्याय है? जिसे दो डिब्बे चाहिए वो सौ डिब्बे ले रहा होता है वो लगभग उन्हें ही दे रहा होता है जो उसे देते हैं इसलिए सौ के यहाँ  यदि आप दोगे जो सौ आपको भी देंगे इस प्रकार जिसके यहाँ  दो डिब्बे की खपत होती है वो सौ डिब्बे सड़ा रहा होता है।यही मार्केट में सार्टेज होती है जिससे महँगाई बढ़ती है मार्केट में माल न होने पर सिंथेटिक मिठाइयाँ  खोया आदि बेचने वाले राज कर रहे होते हैं गरीब लोग अपने बच्चों के लिए ब्रांडेड मिठाइयाँ  ले नहीं पाते तो यही सिंथेटिक खाकर बीमार हो रहे होते हैं जिनकी खबरें चलाकर फोटो दिखकर मीडिया खबरें बना रहा होता है।ये गरीबों का सबसे बडा़ शोषण है।

      अब देखिए बिडंबना यह है कि जिसे खाना है उसे सिंथेटिक,सड़ी गली या खराब मिठाइयाँ मिलती हैं जिसे नहीं खानी हैं वो पैसे के बलपर मार्केट से सारा माल उठा उठा कर अपने या अपनों के घरों में सड़ा रहा होता है।ये इस संसार की खुबसूरती के साथ कितना बड़ा अन्याय है?    
     पहले जब जनसंख्या कम थी तो बीघे में चार मन गेहूँ पैदा होता था अब जनसंख्या बढ़ी तो वही चार मन बीघा बाला गेहूँ चालीस मन बीघा होने लगा भूखों कोई कभी नहीं मरा है बसर्ते कोई चीज यदि बरबाद न की जाए।आज सिंथेटिक मिठाइयों का प्रचलन बढ़ा क्यों?प्रकृति ने आवश्यकता अनुशार सब सामान दिया है। गिफ्ट में नष्ट होने वाला सामान ही सिंथेटिक कारोबारियों के लिए बरदान बन जाता है।
      सरकार को चाहिए  गिफ्ट बाँटने वालों के विरूद्ध कठोर कार्यवाही करे।आयकर वालों को चाहिए ऐसे लोगों के गिफ्ट पर छापेमारकर उसकी जाँच करावे और उनसे कई गुना अतिरिक्त आयकर वसूला जाए।
      आवश्यक वस्तु पूर्ति अधिनियम में बाधक मानकर इन गिफ्टदानियों को कठोर कार्यवाही की परिधि में लाया जाना चाहिए। सिंथेटिक बेचने वालों से अधिक कठोर कार्यवाही उन लोगों पर होनी चाहिए जो पैसे के बलपर इसे बरबाद कर देते हैं।इसे भी एक प्रकार का क्राइम मानकर उन धाराओं के तहत कड़ी कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए।  
    ऐसे गिफ्टदानियों  के विरूद्ध मीडिया को जनहित में जनजागरण अभियान चलाना चाहिए।स्वयं सेवी संस्थाओं को भी ऐसे मधुर अपराधों के विरूद्ध अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए।


राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 

   यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु ज्योतिष वास्तु आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।

     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 

       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है। 

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