किसने क्या किया वो तो छोड़िए भाजपा क्या करेगी सो साफ साफ बताइए !
कौन पार्टी कितनी चोर भ्रष्टाचारी या घोटाले बाज है यह जनता को भी पता है उसे बार बार बताना क्यों ?
चुनाव बहुत नजदीक हैं सारा समय दूसरों के दोष गिनाने में ही बीत रहा है किन्तु भाजपा समाज को यह कब बताएगी कि यदि उसकी सरकार बनती है तो वो किस क्षेत्र में कितना सुधार किस प्रकार से करेगी और अभी तक के भ्रष्टाचारियों पर क्या कानूनी कार्यवाही की जाएगी ?
रही बात चुनाव प्रचार की अभी तक तो इतना ही माना जा सकता है कि देश में काँग्रेस विरोधी लहर है किन्तु इसका मतलब यह कतई नहीं निकाला जाना चाहिए कि भाजपा के पक्ष में लहर है आखिर दिल्ली में भी तो काँग्रेस विरोधी लहर थी जिसमें काँग्रेस का जनाधार लगभग ध्वस्त हो गया था किन्तु उसका लाभ उतना भाजपा को नहीं मिल पाया जितना उसने हो हल्ला मचाया था या जितनी उसको आशा थी इसीलिए सरकार नहीं बन पाई !
इसका सीधा सा अर्थ यह है कि पंद्रह वर्षों से सत्ता में रही काँग्रेस सत्ता विरोधी आक्रोश का शिकार हुई यह तो बात समझ में आती है किन्तु पंद्रह वर्षों में भाजपा ने जनता के विश्वास को जीतने के लिए क्या तैयारी की या कहाँ चूक हुई जो वो जनता की विश्वास पात्र नहीं बन सकी जबकि काँग्रेस विरोधी लहर का लाभ चन्द्र दिनों की आम आदमी पार्टी ले गई ।
(इस लेख को जरूर पढ़ें -'मोदी की लहर' किन्तु लहरों का क्या आस्तित्व !वे तो आपसी कलह की चट्टानों से टकराकर लौट जाएँगी !http://snvajpayee.blogspot.in/2014/03/blog-post_23.html)
इसलिए यदि जनता आपकी या किसी की ऐसी बातें मान भी ले तो क्या होगा यदि आप या कोई और सरकार में आ भी गया तो भी उन घोटालों की जाँच तो होने से रही यदि हो भी गई तो उसके परिणाम सामने आने की आशा ही क्या !न तो वो परिणाम सामने आने हैं और न ही उनमें जिस धन का गमन हुआ है उसका ही पता लगना है ये हमेंशा से देखा जाता रहा है !इसलिए देश में महँगाई है तो है जनता उससे स्वयं जूझ रही है वह सब कुछ जानती है वह आपसे या किसी से जानना केवल यह चाहती है कि आप ऐसा क्या करेंगे जो हमारे जीवन की समस्याएँ दूर करके हमें सक्षमता की ओर ले जाएँ !
भाजपा के कथनानुसार दूसरी पार्टियाँ और उनके नेता तो भ्रष्टाचार में लिप्त हैं ये बात मान ली गई और यह भी मान लिया गया कि वे दल सरकार में रहने के बाद भी कुछ अच्छा करने में सफल नहीं हो सके हैं जहाँ तक राहुल और सोनियाँ गाँधी जी का प्रश्न है माना जा सकता है कि उन्हें सत्ता चलाने का अनुभव नहीं है सोनियाँ गाँधी जी विदेशी हैं यह भी सर्व विदित है! वो राजनीति करती हैं इसमें उनका दोष क्या है! अपने पति एवं पिता के काम को ही प्रायः सभी लोग जीवन का आधार बनाते हैं वही राहुल और सोनियाँ गाँधी जी ने किया है !वह बात और है कि जनता उनका साथ न देती तो हो सकता है कि वो लोग कुछ और धंधा चुनते !किन्तु जनता ने एक बार नहीं अपितु दो दो बार उन्हें सरकार बनाने में सहयोग दिया है! जहाँ तक बात मनमोहन सिंह जी की है पहली बार तो उन्हें अचानक ही प्रधान मंत्री बना दिया गया था किन्तु दूसरी बार तो उनका नाम घोषित करके ही चुनाव लड़ा गया था फिर भी जनता का सहयोग उन्हें मिला और वे प्रधानमंत्री बने !काँग्रेस या अन्य विरोधी पार्टियों में लाख कमियाँ रही हों किन्तु जनता का विश्वास जीतने में वे क्यों और कैसे कामयाब हुए इस बात पर गम्भीर चिंतन किया जाना चाहिए उसके अनुशार बनाई गई रणनीति ही भाजपा के लिए चुनावी विजय व्यवस्था में सहायक होगी !इस विषय में कई भाजपा समर्थक चिंतकों का मानना है कि चुनावी प्रचार अभियान में भाजपा अपने विरोधियों की आलोचना करने एवं उनकी कमियाँ ढूँढने में जो ताकत एवं समय बिताती है उसका उपयोग यदि देश वासियों को अपनी नीतियाँ समझाने एवं उन्हें अपनी कही हुई बातों पर भरोसा दिलाने में करे तो शायद इसका लाभ अधिक उठाया जा सकता है । अब दिल्ली चुनावों में ही लें यहाँ जहाँ जहाँ निगम में भाजपा है वहाँ तो भ्रष्टाचार कम होना चाहिए वहाँ तो निगम स्कूलों में पढ़ाई होनी चाहिए निगम औषधालयों में तो चिकित्सा सुविधा मिलनी चाहिए किन्तु ऐसा नहीं हो रहा है कोई सुनने वाला नहीं है निगम ने पैसे ले लेकर अवैध मोबाईल टावर लगा रखे हैं कुछ तो जिन मकानों पर लगे हैं उन मकान वालों को नहीं पता है कि दिल्ली नगर निगम ने हमारी छत पर टावर क्यों लगवाया है इसका किराया कौन और क्यों खा रहा है हमारी सुरक्षा खतरे में क्यों डाली गई है किन्तु भ्रष्टाचार जो न करावे सो थोड़ा है !आप भी पढ़ें यह लेख -
पूर्वीदिल्ली में अवैध मोबाईल टावरों के शिकार परिवार ऐसे कैसे बनावें भाजपा सरकार ! भाजपाई एम.सी.डी. से सताए हुए लोग भाजपाइयों के शिर पर नहीं चढ़ने दे रहे हैं मुख्यमंत्री पद का मौर !http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/03/mcd.html
इसलिए अब भाजपा को समझना होगा कि अपने को अच्छा सिद्ध करने के लिए दूसरे को गलत सिद्ध करना ही जरूरी नहीं होता है और न ही यही एक मात्र उपाय है अपितु अपने को अच्छा सिद्ध करने के लिए अपने जन हितकारी कार्यक्रम जनता के सामने परोसे जाएँ उन पर जनता का भरोसा जीतना जरूरी है ! क्योंकि भाजपा अपनी बारी की प्रतीक्षा करते करते पिछले कई चुनावों से जनता की अदालत में अनुपस्थित सी होती रही है बिना विशेष तैयारी के भाजपा चुनाव लड़ने की केवल खाना पूर्ति मात्र करती रही है।
एक चुनाव से दूसरे चुनाव के बीच के अंतराल में भाजपा की ओर से किसी को मुख्यमंत्री और किसी को प्रधान मंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में फूल मालाएँ पहना पहना कर किसी को प्रधान मंत्री और किसी को दिल्ली का मुख्य मंत्री घोषित कर दिया जाता है रैलियों की जगह पैसे के बल पर बड़े बड़े रैले किए जाते हैं उन्हीं कल्पित मुख्यमंत्री और प्रधान मंत्री के नेतृत्व में खूब धूम धड़ाक स्वागत समारोह होते रहे हैं उन्हीं की स्तुतियाँ अति भर गाई जाती रही हैं खूब होता रहा है उनका भजन पूजन!और अतिभर कोसा जाता रहा है विरोधियों को!विरोधियों पर भ्रष्टाचार के आरोप भी खूब लगाए जाते रहे हैं।विशाल विशाल रैलियों में लगाए जाते रहे हैं जनांबार !
उन्हीं के नेतृत्व में फिर ऊँचे ऊँचे मंचों से अपनी अपनी बहादुरी के भारी भरकम भाषण दिए जाते रहे हैं खूब धिक्कारा ,ललकारा,शंखनादा जाता रहा है कहीं कहीं तो विजय संकल्पा भी होता रहा है !किन्तु कभी प्यार रैली, परिवार रैली, पुचकार रैली, मनुहार रैली जैसे संस्कार प्रिय ,लोकप्रिय एवं कर्णप्रिय शब्दों वाली और जनता से सीधे संवाद कायम करने वाली रैलियाँ भाजपा के कार्यक्रमों शब्दों संस्कारों में दिखती ही नहीं हैं !जनता ने भी समझा कि आखिर हमें क्यों धिक्कारा या ललकारा जा रहा है इसलिए जनता उस चुनौती को स्वीकार करती रही और राहुल सोनियाँ मनमोहन सिंह जी जैसे राजनैतिक अनुभव विहीन लोगों को यह जानते हुए भी कि ये न कुछ कर सकते हैं और न ही कुछ करेंगे किन्तु हमें ललकारेंगे नहीं यह सोच कर उन्हें चुनावी समर्थन देती रही है !
उत्तर प्रदेश के पार्टी कार्यकर्ताओं में भी दिल्ली की तरह ही प्रदर्शनात्मक समर्पण नुक्सान पहुँचा रहा है आज भी कार्यकर्ता आम समाज के दुःख दर्द को कम करने की जिम्मेदारी स्वयं लें इसकी अपेक्षा वो बताते घूम रहे हैं कि अबकी बार मोदी जी की सरकार बन रही है भाजपा को 272 से अधिक सीटें मिल रही हैं! जिनके वोट से सीटें मिलनी हैं उन्हें ही सूचना दी जा रही है ऐसे प्राणहीन प्रचार का औचित्य क्या है !
इसी प्रकार से मोदी जी के नाम का जिस प्रकार से पूजन भजन चल रहा है फेस बुक रँगी जा रही है इससे क्या जनता का भरोसा भाजपा पर बढ़ जाएगा ! सच्चाई यह है कि लगभग सभी दलों से निराश हताश जनता अब उस दल को खोज रही है जिसके कार्यकर्ता बिना किसी बहाने बाजी के जनता की बात सुनें और उचित सहयोग करें क्योंकि यदि मोदी जी प्रधान मंत्री बन भी जाते हैं तो भी आम जनता उन तक अपनी बात कैसे पहुँचाएगी इसलिए अब उसी दल की आवश्यकता है जो अपने कार्यकर्ता और वोटर के लिए स्वयं मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के दायित्व का निर्वाह करें अर्थात उनका विश्वास जीतने की जिम्मेदारी का स्वयं निर्वाह करें !
आज अरविन्द केजरीवाल को ही लिया जाए आखिर उन्होंने जनता को क्या दे दिया है केवल इतना ही न कि जनता के सामने अपनी बात हाथ जोड़ कर रखते हैं ये जनता को बहुत पसंद है दूसरी बात उनकी भाषण शैली से कभी नहीं लगता है कि वो इसलिए ललकार रहे हैं कि उनके शब्द आकाश में गुंजायमान होते रहें, अपितु वो जनता को अपनी इच्छाएँ योजनाएँ शंकाएँ समस्याएँ जितने अपनेपन से बताते या जनता के सामने रखते हैं एवं अपनी हर योजना में जनता को सम्मिलित करने की कोशिश करते दिखाई देते हैं वह सब दुनियाँ को ड्रामा लगे तो लगता रहे किन्तु उन्हें जो मैसेज देना होता है वो देने में फिर हाल सफल होते हैं अबकी दिल्ली में पुलिस के विरुद्ध धरना दिया गया जिससे उन्होंने मैसेज दिया कि यदि हम केंद्रीय सत्ता में आए तो पुलिस के विभाग का न केवल भ्रष्टाचार रोकेंगे अपितु जनता के प्रति जो पुलिस का अप्रिय व्यवहार है उसके प्रकार भी उन्होंने अपने मुख से ही कहे अर्थात जनता जान ले कि उसकी पीड़ा उन्हें पता है और वो उस समस्या के समाधान के लिए लड़ना चाहते हैं और लड़ रहे हैं !यह कहते हुए उन्होंने धरना दिया जिसमें जनता ने उनका बढ़ चढ़ कर साथ दिया मीडिया भी वहीँ डटा रहा। दूसरी ओर उनके इस कार्यक्रम को ड्रामा बताते हुए विपक्षी पार्टी ने आंदोलन किया उसमें जनता की सहभागिता बिलकुल नहीं रही उसका प्रमुख कारण था कि आपका धरना जनता के लिए न होकर अपने एवं अपनी पार्टी के लिए था इसलिए ऐसे कार्यक्रमों से जनता क्यों जुड़े !जिनसे जन हित का मैसेज न जाता हो !
कई बार जनहित के मुद्दे भी बे मन से उठाए जाते हैं उसमें अपनी सोच एवं सहृदयता सम्मिलित नहीं की जाती है तो उन मुद्दों से भी जनता नहीं जुड़ पाती है उसका प्रमुख कारण होता है कि ऐसे भाषणों को सुनकर लगने लगता है कि जैसे ये लिखकर दिए गए हों और सामने वाला पढ़ता चला जा रहा हो जैसे उत्तर प्रदेश में उठाया जाने वाला गन्ना किसानों का मुद्दा !और पार्टी नेताओं द्वारा उन मुद्दों पर टिके बिना ही दूसरे तीसरे राज्यों के उदाहरण देने लगने से यह सन्देश जरूर जाता है कि आपको यहाँ की कोई जानकारी नहीं है इसी लिए आप बात बात में अपने गृह प्रदेश में प्रवेश कर जाते हैं आखिर आपकी पार्टी की और भी लोकप्रिय प्रांतीय सरकारें हैं केंद्र में भी आपकी पार्टी की जनप्रिय सरकार ने सफलता पूर्वक समाज को सुशासन दिया है ऐसी सभी सफलताओं का भी जिक्र प्रचुरता पूर्वक किया जाना चाहिए !जिसका परिपालन उतना नहीं हो पाता है जितना होना चाहिए !
भाजपा का पार्टी प्रमुख पद जबसे रिक्त रहने लगा है तब से सभी पार्टियों की तरह ही भाजपा में भी चलने वाली अंतर चर्चाएँ अन्य पार्टियों की तरह छिपी नहीं रह पाती हैं लोग अपने अपने नगाड़े लेकर मीडिया के सामने बजाने शुरू कर देते हैं जिससे उबरने में पार्टी को काफी समय लग जाता है दूसरा अन्यपार्टियों को आलोचना करने का मुद्दा मिल जाता है पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरता है एवं पार्टी में भ्रम की स्थिति बनती है !पार्टी प्रमुख का पद रिक्त रहने के कारण ही किसी को किसी का भय नहीं रहता है हर कार्यकर्ता ये सोचने लगा है कि यहाँ तो अध्यक्ष से लेकर मुख्यमंत्री प्रत्याशी प्रधानमंत्री प्रत्याशी तक सब कुछ उसके न चाहते हुए भी बदल सकता है उसका कोई भी तमगा कभी भी उससे छीना जा सकता है!इसलिए कभी भी किसी के पक्ष या विपक्ष में लॉबिंग की जा सकती है और उसे रखा या हटाया जा सकता है फिर भय किसका ?केवल उसी का न जो निराकार आदेश बिगबॉस की बलवती वाणी की तरह परदे के पीछे से आता है उस नेपथ्यगिरा के स्वागत सम्मान में सबको दंडवत करना होता है जो इसमें सफल है वो स्वच्छ पवित्र एवं ईमानदार छवि वाला माना जाता है वो फिर जनता को ललकारे धिक्कारे आदि आदि कुछ भी करे एक चुनाव के लिए उसे पार्टी में पूज्य स्थान प्राप्त हो ही जाता है उसमें उसे जितनी कलाएँ करनी हों कर ले पूरी पार्टी उसका साथ देती रहेगी!
अपनी हिन्दू परंपरा के अनुशार चुनावी महोत्सव के बाद उसका विसर्जन कर दिया जाता है फिर नए चुनावी महोत्सव के लिए भाजपा में एक नए प्रकार की देवमूर्ति स्थापित की जाती है फिर उसका पूजन भजन होता है जबकि विसर्जित हो चुकी पुरानी तेजहीन निष्प्राण मूर्ति की तरह ही अतीत में रह चुके वह कल्पित सी. एम. या पी. एम. चाहे अनचाहे उपेक्षा के शिकार हो ही जाते हैं जिसका जिक्र अबकी दिल्ली विधान सभा में बहुमत सिद्ध करने वाले दिन एक काँग्रेसी नेता ने किया भी था!ऐसी चर्चाएँ श्रोता कार्यकर्ताओं के मनोबल को तोड़ती हैं!सम्भव हो तो इनका भी कोई सम्मान जनक हल निकाला जाना चाहिए !
इस पार्टी की केंद्रीय पीठ की कमान तो दिल्ली में होती है किन्तु उसका 'हाई' किसी स्टेट से इम्पोर्ट करना पड़ता है उस 'हाई'की शार्टेज दिल्ली में होती क्यों है यह चिंता एवं चिंतन का विषय होना चाहिए और यदि शार्टेज फिर भी होती ही है तो वो हाई कमान किस बात की ?जब वहाँ होना ही क्लेरिकल जाब है!
अतः हर स्टेट के लोग भी अपने को 'हाई'समझने लगे हैं और सोचने लगे हैं कि न जाने मेरा नंबर कब 'हाई'में आ जाए !इन सब बातों का असर भी पार्टी की अनुशासनात्मक प्रणाली पर पड़ने लगा है इसका दुष्परिणाम यह हुआ है कि न जाने कब किस पिलर को कौन सा ग्रुप मिल जुलकर हिलाने लगे !इस प्रवृत्ति पर भी नियंत्रण होना चाहिए !
इसीलिए अतीत में पार्टी की छवि दिनोंदिन धूमिल होती चली गई किन्तु अब इसी भाव से जनता की अदालत में सेवा भावना से भाजपा को भी अपनी हाजिरी लगानी ही होगी!जिसका प्रयास परिश्रम पूर्वक अब भाजपा कर भी रही है इसके अच्छे परिणाम भी दिखेंगे ऐसी आशा रखनी भी चाहिए इसलिए अब भाजपा को किसी की शर्त के सामने घुटने नहीं टेकने चाहिए!केवलअपने कार्यकर्ताओं के समर्पण बल पर चुनाव लड़ना चाहिए।
बाबा बैरागी या फिल्मी अभिनेताओं की गुड़बिल के पीछे खड़े होकर चुनावों में जीत जाने पर भी पार्टी के स्वाभिमान या आत्म सम्मान के तौर पर न जाने क्यों भाजपा हार ही जाती है इसीलिए उसकी अपनी छवि में निखार नहीं आ पाता है। इससे पार्टी पर वो लोग हमेंशा अपनी धौंस चलाना चाहते हैं जिन्होंने भाजपा को जिताने का मिथ्या बहम पाल रखा होता है।वैसे भी पार्टी अपने कार्यकर्ताओं के कठोर परिश्रम से ही जीतती है किन्तु जब पार्टी से असम्बद्ध लोग भाजपा की नीतियों को हाइजेक करके भाजपा के ही माथे पर उसी की नीतियाँ अपने नाम से मढ़ने लगते हैं जिसे सुन कर भी मौन रह जाता है पार्टी का शीर्ष नेतृत्व !अभी कुछ ही दिन हुए जब एक बाबा जी ने एक समारोह में भाजपा के कुछ बड़े नेताओं के मुख में बार बार माइक लगाकर यह कहलाना चाहा कि विदेश से कालाधन लाने का मुद्दा एवं टैक्स का मुद्दा जो आपका है आप उठा भी रहे हैं मैं आपकी इच्छा पूर्ति के लिए वह काम जरूर पूरा करूँगा!बात और है कि उन लोगों ने अपनी पार्टी मर्यादा में रहकर ही अत्यंत संयत शब्दों में अपनी बात कही किन्तु प्रश्न यह उठता है कि किसी राष्ट्रीय पार्टी के आत्म सम्मान से जुड़े मुद्दों को जिन्हें पार्टी पिछले कई वर्षों से उठाती भी रही है उन्हें कोई हथियाना चाहता है तो उससे बचा जाना चाहिए और ऐसी बातों के लिए उसे बाध्य ही क्यों किया जाए ?
समय समय पर आए ऐसे आगन्तुज स्वयंभू व्यवस्थापकों की गतिविधियों से पार्टी के प्रति दशकों से समर्पित कार्यकर्ता अपने को अपमानित महसूस करने लगते हैं इसलिए किसी आगन्तुक सैलिब्रेटी का सहयोग लेने में कोई बुराई नहीं है किन्तु उसके समर्थक थोड़े से वोटों के लालच में उसी के हवाले पार्टी करने की अपेक्षा उचित होगा कि बड़े मुद्दों पर भाजपा के अपने कार्यकर्ताओं की भी रायसुमारी हो !इस प्रकार की विनम्र भाजपा यदि समाज में जाएगी तो आम आदमी पार्टी का औचित्य ही क्या रह जाएगा !
कुछ हो न हो किन्तु भाजपा को एक बात तो समाज के सामने स्पष्ट कर ही देनी चाहिए कि उसे आम समाज के सहारे चलना है या साधू या सैलिब्रेटी समाज के ? जो चरित्रवान विरक्त तपस्वी एवं शास्त्रीय स्वाध्यायी संत हैं उनके धर्म एवं वैदुष्य में सेवा भावना से सहायक होकर विनम्रता से साधुओं का आशीर्वाद लेना एवं उनकी समाज सुधार की शास्त्रीय बातों विचारों के समर्थन में सहयोग देना ये और बात है! सच्चे साधू संत भी अपने धर्म कर्म में सहयोगी दलों नेताओं व्यक्तियों कार्यक्रमों में साथ देते ही हैं किन्तु उसके लिए कोई शर्त रखे और वो मानी जाए ये परंपरा किसी भी राजनैतिक दल के लिए ठीक नहीं है !
विदेश से कालाधन लाने जैसी भ्रष्टाचार निरोधक लोकप्रिय योजनाओं के लिए भाजपा को स्वयं अपने कार्यक्रम न केवल बनाने अपितु घोषित भी करने चाहिए ताकि ऐसी योजनाओं का श्रेय केवल भाजपा और उसके लिए दिन रात कार्य करने वाले उसके परिश्रमी कार्यकर्ताओं को मिले।वो भाजपा की पहचान में सम्मिलित हो जिन्हें लेकर दुबारा समाज में जाने लायक कार्यकर्ता बनें उनका मनोबल बढ़े !अन्यथा कुछ योजनाओं का श्रेय नाम देव ले जाएँगे कुछ का कामदेव और कुछ का वामदेव! भाजपा के पास अपने लिए एवं अपने कार्यकर्ताओं के लिए बचेगा क्या ? ऐसे तो दस लोग और मिल जाएँगे वो भी अपने अपने दो दो मुद्दे भाजपा को पकड़ा कर चले जाएँगे भाजपा उन्हें ढोती फिरे श्रेय वो लोग लेते रहें ।
इसलिए भाजपा को मुद्दे अपने बनाने चाहिए उनके आधार पर समर्थन माँगना चाहिए । अब यह समाज ढुलममुल भाजपा का साथ छोड़कर अपितु सशक्त भाजपा का ही साथ देना चाहता है।
इसके अलावा जो ऐसी शर्तें रखते हैं ऐसे लोगों के अपने समर्थक कितने हैं और वो उनका कितना साथ देते हैं यह उनके आन्दोलनों में देखा जा चुका है किसी ने पुलिस के विरोध में एक दिन धरना प्रदर्शन भी नहीं किया था सब भाग गए थे ।
दूसरी बात संदिग्ध साधुओं की विरक्तता पर अब सवाल उठने लगे हैं अब लोग किसी बाबा की अविरक्तता सहने को तैयार नहीं हैं किसी भी व्यापारी या ब्याभिचारी बाबा से अधिक संपर्क इस समय लोग नहीं बना रहे हैं सम्भवतः इसीलिए कथा कीर्तन भी दिनोदिन घटते जा रहे हैं ।
इसलिए भाजपा समर्थकों का भाजपा से निवेदन है कि वो अपने मुद्दों पर ही समाज से समर्थन माँगे तो बेहतर होगा !
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