आंदोलन, हड़ताल आदि के ये ढंग ठीक हैं क्या ?
धरना, प्रदर्शन, आंदोलन या हड़ताल आदि करने वाले लोग अक्सर इस प्रकार का उपद्रव उठाते हैं कि कई बार लगने लगता है कि यहाँ कोई बड़ा विद्रोह न भड़क जाए ।अपनी माँगें मनवाने या किसी बात का विरोध करने के लिए लोग एक दम संयम खो बैठते हैं कुछ भी तोड़ दें किसी को भी मार दें कहीं भी आग लगा दें पुलिस टीम पर हमला बोल दें सरकारी मंत्रियों पर जूते फ़ेंक दें गाली गलौच कर दें चाँटा मार दें ,पुलिस पर हमला कर दें। बाहर से बहुत बड़ी भीड़ ले जाकर किसी शहर में इकट्ठी कर दें!कितना आश्चर्य होता है यह देखकर !
अब आशाराम को ही लें सुना जाता है कि उनके अनुयायी चार करोड़ लोग हैं इसी प्रकार से कई बड़े नेता हैं जिनके अनुयायी करोड़ों में हैं ऐसे लोग सरकार को अपनी बात मनवाने के लिए जब चाहें तब जो शहर चाहें सो भारी भरकम भीड़ ले जाकर जाम कर दें उस शहर के सञ्चालन का भट्ठा बैठ जाएगा वहाँ खाने के समय खाना नहीं मिलेगा पीने को पानी नहीं मिलेगा बाथ रूम और लेट्रिन जैसी व्यवस्थाएँ बिलकुल चरमरा चुकी होंगी !उनके दवा दारू की व्यवस्था कौन करेगा ?इसके साथ ही उस शहर का जीवन बिलकुल ठप हो चुका होगा वहाँ दवा दूध भोजन पानी आना जाना काम काज सब कुछ रुक जाएगा कोई मरे जिए किसी को किसी से क्या लेना देना!और यह स्थिति यदि किसी भी शहर में हो तो घातक हो सकती है और यही स्थिति यदि दिल्ली जैसे शहर की हो जिसे लगभग प्रतिदिन किसी न किसी रूप में इसी प्रकार की परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है!आखिर क्यों नहीं सोचा जाना चाहिए कि दिल्ली भी एक शहर है यहाँ भी लोग रहते हैं उनकी भी अपनी आवश्यकताएँ हैं आखिर वो अपना एवं अपने बच्चों का उदर पोषण कैसे करें कैसे चलावें अपनी जिंदगी ?दिल्ली या और किसी प्रांतीय राजधानी में इस प्रकार से भीड़ इकठ्ठा करने का मतलब क्या है क्या ऐसे लोग इन शहरों को शहर न मानकर जंगल मानते हैं ?कोई पाँच हजार कोई पचास हजार तो कोई पाँच लाख या करोड़ लोग लेकर घुस जाए दिल्ली या और किसी प्रांतीय राजधानी में आखिर क्यों ?क्या इसके लिए किन्हीं निश्चित नियमों का पालन नहीं होना या किया जाना चाहिए कितनी संख्या आएगी किस रास्ते से आएगी कहाँ और कब तक बैठेगी !दूसरी बात सरकार को भी ध्यान देना चाहिए कि उन लोगों की बात सुनकर उन माँगों पर अविलम्ब विचार किया जाना चाहिए अन्यथा यदि कुछ समय लगने लायक हो तो वह अवधि बता दी जानी चाहिए और उसका पालन किया जाना चाहिए।उनकी माँगों के समर्थन में जितना कुछ किया जा सकता हो उससे उन्हें अवगत करा दिया जाना चाहिए और जो नहीं किया जा सकता हो वह भी बता दिया जाए तो क्या आपत्ति !साथ ही सम्मान सहित यह भी बता देना चाहिए कि यदि इसके बाद भी आप लोग सरकार का साथ नहीं देंगे तो कानूनी तौर पर आपसे निपटने के लिए सरकार के पास कौन कौन से विकल्प हैं।जिसमें यदि ऐसे आंदोलन करने वाले यदि सरकारी कर्मचारी हों तो उन्हें बिलकुल नहीं मनाना चाहिए चूँकि सरकारी कर्मचारी होने के नाते वे सरकार के ही सहयोगी अंग होते हैं इसलिए उनसे ज्ञापन पत्र लेकर एक अवधि देकर उन्हें वापस कर दिया जाना चाहिए उस अवधि पर उनके प्रतिनिधियों को सूचित कर दिया जाना चाहिए कि आपकी माँगें कितनी हद तक मानी जा सकती हैं और कितनी नहीं! ऐसी परिस्थितियों में जिसे नौकरी करनी हो वो करे जिसे लगता हो कि उसकी योग्यता के अनुरूप उसका बेतन नहीं है अर्थात कम है मैं बाहर इससे अधिक कमा सकता हूँ तो उसे धरना प्रदर्शन करने की आवश्यकता ही क्या है वो जनहित में अपनी नौकरी से त्याग पत्र देकर जा सकते हैं इससे जरूरतवंत योग्य लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे उनका भला होगा आखिर सरकार से उन आंदोलन कारियों की लड़ाई ही क्या है क्यों आवश्यकता पड़ती है उन्हें धरना प्रदर्शन करने की ?अगर उन्हें समझ में आता है तो नौकरी करें अन्यथा छोड़कर जाएँ !किन्तु यह ठीक नहीं है कि इतनी मोटी मोटी सैलरी लेकर फिर अनावश्यक रूप से अपनी माँगें सृजित करने के लिए मीटिंगें करते रहें फिर उन्हें मनवाने के लिए और योजनाएँ बनाने के लिए मीटिंगें करते रहें फिर धरना प्रदर्शन करने के लिए मीटिंगें करते रहें फिर धरना प्रदर्शन करके सरकार के लिए समस्या खड़ी करने के लिए ध्यान और समय लगावें तो आखिर वो काम कब करते हैं सारा समय तो इसी में बीत जाता है!इसका अर्थ क्या ये नहीं हुआ कि अपने कर्तव्य का पालन न करते हुए भी सरकार से अपनी माँगें मनवाने के लिए सरकार के विरुद्ध जो आंदोलन खड़ा करते हैं उसकी सैलरी भी सरकार से लेते हैं!फिर भी सरकार उन्हें मना मना कर रखती न जाने क्यों हैं कई बार ऐसे लोगों से अधिक पढ़े लिखे परिश्रमी लोग उन नौकरियों के लिए ललचा रहे होते हैं आखिर उन्हें क्यों न दिया जाए यह अवसर ?आखिर वो भी तो इसी देश के नागरिक हैं उनका पालन पोषण भी तो इसी सरकार के आधीन है उनकी परिस्थिति पर विचार क्यों न किया जाए!
ऐसी परिस्थिति में असंतुष्ट प्रदर्शनकारी कर्मचारी तो काम करेंगे नहीं सैलरी लेंगे ही ऐसी परिस्थिति में क्यों नहीं करेंगे भ्रष्टाचार! क्योंकि वो सरकारी सैलरी से संतुष्ट ही नहीं हैं!ऐसे असन्तुष्ट लोगों से सरकार को राम राम कर लेना चाहिए, ताकि नए लोग आकर काम तो करें जब तक वो संतुष्टि पूर्वक काम करते रहें तब तक तो ठीक है और जब उनका भी मन न लगने लगे तो उनसे भी राम राम करके औरों को अवसर दिया जाना चाहिए !इससे हड़ताल जैसी स्थितियों से मुक्ति मिलेगी दूसरा औरों को काम मिलेगा ।
हड़ताल के नाम पर तोड़फोड़ या अन्य उपद्रव करने वालों पर गम्भीर केस लगाए जाने चाहिए।हाँ,उनकी माँगें सुनने के लिए सरकार को हर जिले में,प्रदेश में साथ ही देश की राजधानी में एक स्थान निश्चित करना चाहिए जहाँ आकर लोग शांति पूर्ण ढंग से अपना रोष प्रकट कर सकें और वहाँ सरकार के प्रतिनिधि जाकर उनकी माँगें सुनें और उन्हें विश्वास में लेकर काम करने का प्रयास करें तो रोडों पर जाम नहीं लगेगा उपद्रव नहीं होगा और शांति पूर्ण ढंग से लोगों के काम भी होने लगेंगे!
आपको याद होगा कि पहले भी तो राजा लोग कोपभवन बनवाया करते थे उनमें जाकर बैठने मात्र से ये इशारा हो जाता था कि ये लोग विरोध करने आए हैं राजा का कोई प्रतिनिधि उनसे बात कर लेता था जरूरी नहीं कि वहाँ जाकर गाली गलौच करें पुतला फूंकें पुलिस से दो दो हाथ करें अपने देश की पुलिस को परेशान करने के लिए इतना ड्रामा करने की जरूरत क्या?फिर भी यदि बात न मानी जाए तो आगामी चुनावों में अपनी शर्तों के साथ अपना प्रत्याशी चुनाव में उतारें वो उनकी बात रखेगा !
पुलिस ने धरना प्रदर्शन के लिए जो स्थान निश्चित किया है मैं उससे सहमत हूँ इसी प्रकार से समय और प्रकार को भी निश्चित किया जाना चाहिए उससे और अधिक सहयोग मिलेगा !आज की हालत यह है कि धरना प्रदर्शन में भाग लेने जाने वाले लोग केवल टी.वी.पर दिखने के चक्कर में उपद्रव करते या पुलिस से भिड़ते हुए दिखाई देते हैं यह शरारत है उपद्रव है इससे कभी भी किसी की जान जाने का खतरा हो सकता है दूसरा धरना प्रदर्शन की तरह धरना प्रदर्शन नहीं कर रहे होते हैं अपितु पुलिस के साथ दुश्मनों की तरह युद्ध कर रहे होते हैं !मेरा तो सरकार से निवेदन है कि ऐसे विद्रोही लोगों की माँगों पर कतई विचार नहीं किया जाना चाहिए अपितु प्रदर्शकों पर कार्यवाही होनी चाहिए !
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