मंगलवार, 11 मार्च 2014

भाजपा का भाग्य ही ऐसा है कि हर चुनाव से पहले कर लेती है कलह और भोगती है दंड - ज्योतिष

समय का प्रभाव है कि सिद्धांतों और मूल्यों  के लिए समर्पित भाजपा चुनावों के समय अचानक बदलने लगती है ?

(भारतवर्ष में भाजपा और ज्योतिष एवं दिल्ली में भाजपा और ज्योतिष !

भाजपा का ज्योतिषीय सुधार अति शीघ्र अत्यंत आवश्यक है अन्यथा वर्त्तमान परिस्थिति के अनुशार लोकसभा चुनाव 2014 भी भाजपा के लिए कोरे कोरे फीलगुड से ज्यादा और कुछ भी नहीं होगा) )snvajpayee.blogspot.in/2013/11/blog-post_5237.html 

   भाजपा मूल्यों और सिद्धांतों की पार्टी है, कार्यकर्ताओं की पार्टी है मेरी जानकारी के अनुशार अटल अडवानी जी ने अपनी जाति और अपने क्षेत्र या अपने प्रदेश की प्रशंसा  इस रूप में कभी नहीं की जितना अब हो रहा है क्या भाजपा में यही बदलाव हुआ है? वो लोग तो देश के जिस कोने में गए या जिससे मिले उसी बयार में बह गए इससे हर जाति समुदाय क्षेत्र आदि के लोगों में झलकता है  अपनापन ! उन्होंने अपनी बाणी से अपने को महिमामंडित नहीं किया उनके चुनावी  भाषणों में पार्टी के सिद्धांतों का प्रचार सुनाई पड़ता रहा कार्यक्रम दिखाई पड़ते रहे कि यदि भाजपा विजयी हुई तो देश वासियों को क्या लाभ होगा !इसीप्रकार से देश के प्रत्येक नागरिक का जीवन स्तर सुधारने की बातें होती रहीं ! यहाँ तक कि काँग्रेस अध्यक्षा ने एक चुनावी सभा में एक बार कह दिया था कि मैं विधवा हूँ आदि आदि निजी जीवन से जुड़ी कुछ बातें! ऐसी ही बातों पर आदरणीय अटल जी ने अपने एक भाषण में कहा था कि हमारा मन भेद किसी से नहीं है मत भेद हो सकता है किन्तु वोट मांगने के लिए ये ढंग ठीक नहीं है वोट तो अपनी पार्टी के कार्यक्रमों पर माँगे जाने चाहिए न कि भावुकता पर !इसका मतलब यह तो नहीं हैं कि मुझे इस लिए वोट चाहिए कि मैं अविवाहित हूँ ! 
    इसलिए बार बार गुजरात, मोदी अगला दशक दलितों और पिछड़ों के नाम या ब्राह्मण और बनियों के नाम होगा आखिर क्यों ?सबके होकर जीने में कोई कठिनाई आ रही है क्या ?भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के मुख से तो ऐसा पहले कभी नहीं सुना गया उन लोगों ने अपने भाषणों में ऐसी संकीर्ण सोच को पनपने ही नहीं दिया ! पार्टी को गंगा जमुना की तरह बहने  दिया जिसमें  कभी कोई गोता लगा ले !उनकी उसी विश्वसनीयता का प्रतिफल है कि समाज आज भी भाजपा से ईमानदारी पूर्ण अपने पन की ही आशा करती है इस देश में हर पार्टी किसी न किसी जाति समुदाय संप्रदाय क्षेत्र आदि का प्रतिनिधित्व करती है यहाँ तक की काँग्रेस भी सारी  योजनाएँ जाति  क्षेत्र वाद आदि से प्रभावित होकर ही बनाती है जहाँ जिस जाति समुदाय संप्रदाय आदि का जैसा वोट वहाँ उसके अनुकूल योजनाएँ किन्तु भाजपा की गोद सबके लिए समान रूप से खुली रही अर्थात यहाँ सबके लिए समान अवसर उपलब्ध थे , उचित भी वही था किसी उदात्त प्रशासक में संकीर्णता होनी भी नहीं चाहिए !

     इतनी बड़ी बड़ी रैलियों का उपयोग केवल यह बताने के लिए करना कहाँ तक उचित है कि काँग्रेस और उसके नेता गलत हैं और ये सरकार भ्रष्ट है इसमें बड़े बड़े घोटाले हो रहे हैं ऐसी बातों को बताने या चिल्लाने से क्या ?जिनके विषय में सबको पता है कि यदि भाजपा की सरकार भी बन जाए तो भी न तो कोई जाँच होगी और न ही कोई जेल भेजा जाएगा तो फिर जनता इन बातों को सच कैसे और क्यों मानें ? आखिरकार ऐसी ही बातों के कारण तो केजरीवाल को सरकार छोड़कर भागना पड़ा था !इसलिए हमें ऐसे मुद्दे उठाने की जरूरत ही आखिर क्या है जिन्हें प्रमाणित न किया जा सके ! जब जनता खुद महँगाई से जूझ रही है तो अनुमान तो जनता भी लगा ही  रही है कि ये सरकार फेल हो गई है।  काँग्रेसी नेताओं को भी तो अनुमान हो ही गया है कि जनता धक्का मारने जा रही है इसलिए बड़े बड़े नेताओं के चेहरे से चमक गायब है हड़कम्प मचा हुआ है आज प्रधान मंत्री बनने के नाम पर हर कोई पहले पहले आप वाले शिष्टाचार का ही पालन करता दिख रहा है!सबको पता है कि जनता ने चोरी पकड़ ली है इसीलिए अब उसका मोह  सरकार से भंग हो चुका है किन्तु इससे यह तो नहीं सिद्ध हो जाता है कि जनता का झुकाव भाजपा की और होता जा रहा है ।आखिर दिल्ली के चुनावों में भी तो जनता का मोह सरकार से भंग हो चुका था जिसका परिणाम हुआ कि काँग्रेस बड़ी बुरी तरह से हारी आखिर इससे ज्यादा और क्या हारती किन्तु भाजपा का यह फार्मूला काम नहीं आया कि काँग्रेस  हारी तो हमारी बारी । दिल्ली में ऐसा न हो पाया इसलिए अपने कार्यक्रम का विस्तृत विवरण जनता के सामने अति शीघ्र रखना बहुत जरूरी है !जहाँ तक बलात्कार भ्रष्टाचार घपले घोटाले आदि की बात है ये सब  तो जनता स्वयं ही भोग  रही है फिर उसे बताना उतना जरूरी नहीं है जितना कि इस त्रासदी से बचाना !इसलिए कहाँ है भाजपा का इतने दिनों का होमवर्क ! जिससे समाज को समझाया जा सके कि यदि भाजपा की सरकार आई तो किस क्षेत्र में किस प्रकार से कितना विकास किया जाएगा इससे आगे का काम जनता का है ! जनता प्रबुद्ध है !

    इस तरह की भ्रामक बातों के बारे में भी स्पष्ट किया जाना चाहिए कि आखिर अब मोदी जी को क्यों लग रहा है कि भाजपा ब्राह्मण उर बनियों की पार्टी नहीं रही क्या अभी तक वास्तव में ऐसा ही था और यदि हाँ तो अब क्या क्या बदलेगा और कब तक ऐसे ही बदलता रहेगा वो भी जनता के सामने भाजपा को स्पष्ट कर देना चाहिए ! यदि मोदी जी की दृष्टि में वास्तव में अगला दशक केवल दलितों और पिछड़ों का है तो ब्राह्मण और बनियों को भी भाजपा से मोह भंग करना चाहिए क्या ?
      हमारी दृष्टि में तो मोदी जी को पी. एम.प्रत्याशी बनाए जान का कारण उनका पिछड़ी जाति का होना न होकर अपितु उनके और बहुत सारे गुण हैं जैसे कि वो ईमानदार हैं कर्मठ हैं सारी  समाज को जोड़ कर चलना चाहते हैं सबका विकास करते हैं झूठे आश्वासन नहीं देते हैं वो भ्रष्टाचारी नहीं हैं ,काँग्रेस की केंद्र सरकार समेत बहुत सारे दलों ने अपनी औकात लगा दी किन्तु मोदी जी के व्यक्तित्व पर खरोंच नहीं लगा सके।पूरी पार्टी को मोदी जी के सुशासन से शिर ऊँचा करने का सौभाग्य मिला है इसलिए मोदी जी पी.एम.प्रत्याशी बनाए गए हैं न कि जाति  के कारण !.इसमें जातियों की चर्चा कहाँ से आ गई ?
      वैसे भी पार्टी को चाहिए कि दलित पिछड़े अल्पसंख्यक या सवर्ण  आदि कोई भी हों सभी देश वासियों के लिए समान रूप से आगे बढ़ने के लिए उनकी योग्यता ईमानदारी आदि को आधार बनाया जाए तो देश से भ्रष्टाचार मिटाया जा सकता हैअन्यथा  कोई ईमानदारी पूर्वक सेवा करता रहे और जब तरक्की का समय आवे तो उसे जाति क्षेत्र संप्रदाय आदि के आधार पर अयोग्य सिद्ध कर दिया जाए !ये कहाँ का न्याय है !न जाने क्यों आज भाजपा के  पी.एम.प्रत्याशी जी भी केवल दलितों और पिछड़ों की बात करने लगे हैं जो पार्टी की सेहत के लिए ठीक नहीं है सम्भवतः इसीलिए इस समय भारी मात्रा में सवर्ण वर्ग जातीय सम्मलेनों की तैयारी करने लगा है कुछ सूचनाएं मेरे पास भी आई हैं !इसलिए भाजपा के इसीतरह के अदूर दर्शी बयानों ने भाजपा को हमेंशा ही हानि पहुँचाई है ऐसा समझ कर
क्या इसमें सुधार  नहीं किया जाना चाहिए......

      दूसरी बात भाजपा का प्रशंसा पुराण है जो कि समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा है सारी भाजपा केवल मोदी जी के पूजन भजन में लगी है आखिर क्यों क्या पार्टी की विचारधारा और सिद्धांतों का कोई योगदान नहीं है क्या पार्टी के अन्य नेताओं का भी कोई योगदान नहीं है अन्य लोकप्रिय मुख्यमंत्रियों का भी नहीं ! भाजपा के पूर्व प्रधानमंत्री और उप प्रधान मन्त्री का भी नहीं उनके सुशासन का भी नहीं !बस केवल मोदी जी और गुजरात जी के बीच ही इन चुनावों में सिमटी रहेगी भाजपा क्या ?क्या अब भाजपा ब्राह्मणों और बनियों की पार्टी नहीं रही ये वाक्य पार लगा पाएँगे भाजपा की नैया ? भाजपा की इतनी बड़ी बड़ी रैलियाँ हो रही हैं कहाँ हैं आपके कनिष्ठ बरिष्ठ सभी लोकप्रिय नेता गण यदि वो अभी नहीं तो कब आखिर किस काम आएँगे पार्टी के !लोगों में जिज्ञासा है कि सब कुछ अकेले अकेले क्यों किया जा रहा है ?आखिर क्या कारण है कि सारी  भाजपा ही मोदी जी और गुजरात के बीच समिट कर रह गई है वास्तव में यदि मोदी जी इतने ही बहुमूल्य हैं तो अभी तक भाजपा ने अपने इस रत्नराज को परखने में भूल क्यों की है इसका मतलब है कि भाजपा में रत्नों की कमी नहीं है प्रत्युत योग्य जौहरियों का अभाव जरूर माना जा सकता है!जो सही समय पर सही आदमी की परख नहीं कर पाते हैं 

      आज हालत यह है कि मोदी जी के तो  घरेलू सदस्यों तक की फ़ोटो एवं उनके बचपन की फ़ोटो भी जहाँ तहाँ देखने को मिल रही हैं इतना ही नहीं मोदी जी स्वयं  जहाँ चुनाव प्रचार करने के लिए भी जा रहे हैं वहाँ अपनी प्रशंसा अपने प्रशासन की प्रशंसा अपने गुजरात की प्रशंसा गुजरात के विकास की प्रशंसा जिस प्रदेश में जाएँ वहाँ से गुजरात का सम्बन्ध जोड़कर उस सम्बन्ध की प्रशंसा ,अपने पिछड़ी जाति के होने की प्रशंसा, अपने चाय बेचने की प्रशंसा,अपने  56 इंच के सीने की प्रशंसा आदि आदि और भी जो कुछ अपना हो उस सबकी प्रशंसा से वो अभी तक बाहर निकल ही नहीं पा रहे हैं! बाकी राहुल सोनियाँ की निंदा बस इतने ही  कार्यक्रम के बल पर भारत की सत्ता पर काबिज होना चाहती है भाजपा क्या  !

    आखिर राहुल सोनियाँ की निंदा भी क्यों ?किसी भी महिला का पति जो व्यापार कर रहा होता है उसके न रहने के बाद वो हर सम्भव कोशिश करती है कि उसी व्यापार को आगे बढ़ाया जाए इसीप्रकार से कोई पुत्र भी अपने पिता के व्यापार को ही आगे बढ़ाता है हाँ,यदि वो व्यापार आगे नहीं बढ़ पाता  है तो बंद कर देता  है या और कुछ करता  है ये उसकी मर्जी !यही तो भारतीय आम समाज में भी होता चला आ रहा है जो वो कर रहे हैं इनका व्यापार तो इतना अच्छा चल रहा है कि पाँच साल में एक बार  खेती बोनी पड़ती है सो बो देते हैं और उठा देते हैं अधियाँ बटाई पर और पांच वर्षों के लिए फ्री हो जाते हैं !ठेके के मंत्री कमा  कमाकर देते रहते हैं !

        विशेष बात तो यह है कि केवल मोदी जी ही अपनी प्रशंसा नहीं करते हैं प्रत्युत उनके अलावा भी सारी भाजपा तो बस मोदी जी की प्रशंसा के आस पास ही घूम रही होती है।इसी को चाहें भाजपा का चुनावी प्रचार समझा जाए या कुछ और ?

    जहाँ तक बात भाजपा के कार्यकर्ताओं की है उनमें अधिकाँश लोग मतदाताओं के पास चुनौती सी देने जाते हैं उनका कहना होता है कि देख लेना अबकी बार मोदी जी की ही सरकार बनेगी।  ऐसे  ही अपनी ब्लेक मनी बचाने एवं राजनीति में दखल बनाने के लिए कुछ बाबा लोग भी और कुछ करें न करें किन्तु समाज को बताते घूम रहे हैं कि मोदी जी को तीन सौ सीटें मिल रही हैं !इतना ही नहीं भाजपा के प्रचार के नाम पर बस मोदी जी के नारे हैं उन्हीं की चालीसाएँ लिखी और बनाई जा रही हैं उन्हीं के नाम के नारे बनाए और गाए जा रहे हैं !इसी प्रकार से जो मध्यम वर्गीय  भाजपाई नेता हैं उन्होंने तो मोदी जी के साथ खड़े होकर एक एक  फ़ोटो बनवा कर अपनी अपनी आफिसों में लगा रखी है और उसके आस पास कोई अच्छा सा नारा लिखवाकर टाँग दिया है बाकी सारा चिंतन यहाँ है कि अबकी  लोकसभा चुनावों के परिणाम के बाद हम कहाँ होंगे ?इसलिए सारा सारा दिन खबरें सुनते या अखवार पढ़ा करते हैं उन्हीं पर आलोचना प्रत्यालोचनाएँ चलाई जा रहीं होती हैं !कुछ जो नमस्तेचोर टाईप के नेता होते हैं अर्थात जिन्हें कोई नमस्ते करे तो जवाब देने में भी अपनी बेइज्जती समझते हैं ऐसे लोग अपनी आफिस में भी नहीं जाते हैं बस हाईकमानवालेउस नेता के सामने एक बार कपड़े पहनकर घूम जरूर आते हैं !इसी में बहुत व्यस्त होते  हैं !खैर!

                                                                                                                                              अब बारी आती है उन बड़े नेताओं की जिन पर  भाजपा को अपने कन्धों पर धारण करने का सबसे  कठिन काम है जो हेड आफिस में बैठकर ही पार्टी को धारण करते हैं कुछ लोग बाहर आते जाते रहते हैं बाहर आ जाकर अच्छे खासे समर्थक जुटा लेने वाले नेता बाकी लोगों पर हमेंशा भारी पड़ा करते  हैं !इस प्रकार की भाजपा की हाइकमान से न जाने कहाँ कब क्या भूल हुई है कि अबकी बार पी.एम.प्रत्याशी जी  हाइकमान से निकलने की  जगह किसी प्रदेश से आमंत्रित किए गए हैं जो अभी भी हाईकमान में सम्मिलित हों न हों किन्तु उन्होंने  हाईकमान वालों को फ्री जरूर कर दिया लगता है अर्थात पार्टी हाईकमान वालों में अब उनके लायक कोई काम दिखता नहीं है,हालात ऐसे हो गए हैं कि आज पार्टी में बड़े बड़े समझदार लोग,विद्वान लोग ,धुँवाधार वक्त देने वाले लोग बेरोजगार होते से  दिख रहे हैं पता नहीं क्यों ?अभी कुछ वर्षों पूर्व  तक आजकल के जैसे चुनावों के समय  वो समादरणीय नेता लोग बहुत व्यस्त चला करते थे कभी  वही कर्ता धर्ता हुआ करते थे जब भाजपा को खड़ी करने में उन्होंने बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी किन्तु  अब की बार माहौल बदला बदला सा लग रहा है अब वो बड़े बड़े नेता लोग पार्टी के चुनावी कार्यक्रमों  में सम्मिलित होते भी नहीं दिखते हैं और यदि दिखते भी हैं तो उनके चेहरे पर न कोई उत्साह दिखता है और न ही कुछ  कहने या करने की बात ! न जाने क्यों बस भाजपा नेतृत्व में वही वही बुझा बुझा सा माहौल दिखाई पड़ता है! ऐसा  लगता है कि जैसे मोदी जी के यहाँ कोई काम काज हो जिसकी सारी  जिम्मेदारी अध्यक्ष जी ने सँभाल  रखी हो बाक़ी भाजपा के सभी नेता लोग  उस निमंत्रण में सम्मिलित भर किए गए हों बस !

       हाँ , इतने लम्बे समय तक काँग्रेसी कुशासन से ऊभ चुका भारतीय जन मानस फिल हाल  अबकी बार काँग्रेस मुक्त शासन की ओर बढ़ता दिख रहा है जिसमें उसका किसी पार्टी विशेष की और कोई रुझान हमें तो नहीं ही दिख रहा है हाँ इतना  है जो जैसी पार्टी है उसे उसी हिसाब से लाभ होता दिख रहा है चूँकि भाजपा विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है इसलिए काँग्रेस से निराश समर्थकों का रुझान भाजपा की ओर अधिक होना स्वाभाविक ही है इसलिए इसका श्रेय भाजपा और उसके सिद्धांतों को तो  दिया जा सकता है किन्तु किसी एक व्यक्ति विशेष को इसका श्रेय देकर भाजपा अपनी पार्टी एवं पार्टी की पहचान बन चुके उन सभी सक्षम लोगों के व्यक्तित्व का लाभ नहीं ले पा रही है ऐसा कहा जा सकता है मेरा निजी तौर पर मानना है कि इतने लम्बे  अंतराल के बाद चिर प्रतीक्षित  अवसर जो आज भाजपा को मिलता दिख रहा है वह कहीं इस श्रेयापहरण जन्य अंतर्द्वन्द्व  में फँसकर दिल्ली के चुनावों की तरह खो न दे !

    आश्चर्य है कि जो पार्टी सिद्धांत वाद की मजबूत चट्टान पर स्थापित की गई हो वहाँ व्यक्तिवाद की स्थापना इतनी बुरी तरह से की जा रही है  जिससे पार्टी को कुछ मिलेगा या नहीं ये तो भविष्य के गर्त में है किन्तु नुक्सान अभी से होने लगा है इसमें संदेह नहीं है कि किसी भी पार्टी ,परिवार ,समाज या देश का विकास मिलजुल कर सामूहिक रूप से जितना अच्छा किया जा सकता है उतना अच्छा अकेले नहीं !इसीलिए आप अपनी पार्टी के ही किसी एक नेता को उठाने के लिए बाक़ी सारे सुप्रतिष्ठित नेताओं को अप्रत्यक्ष रूप से जाने अनजाने या तो बौना सिद्ध करते चले जा रहे हैं या  फिर उनके तथाकथित सम्मान सुरक्षा के लिए जो दावे किए जा रहे हैं वह निष्प्रभावी हैं इसमें की गई लीपा पोती लोग समझ जा रहे हैं । 

      इसमें  कोई संदेह नहीं है कि देश की सबसे बड़ी सैद्धांतिक पार्टी भाजपा के पी.एम. प्रत्याशी होने के नाते नरेंद्र मोदी जी से लोगों ने बड़ी बड़ी आशाएँ  लगा रखी हैं और अनुभवी ,ईमानदार एवं कुशल प्रशासक होने के नाते वो उन आशाओं पर खरा उतर सकते हैं इसमें संदेह की गुंजाइस नहीं है किन्तु देश की जनता भाजपा के चुनावी मंचों पर उन नेताओं की भी समान सहभागिता चाहती है जिनके चित्रों के माध्यम से भाजपा अपना  चरित्र चिन्हित करती रही है इसलिए भाग्यवशात् भाजपा का सामूहिक  नेतृत्व आगे आए तो न केवल अधिक अच्छा लगेगा अपितु अधिक प्रभावी भी होगा !

  भाजपा ने अपने शीर्ष नेता से उत्तराधिकार लिया है या उन्होंने दिया है !और यदि  अपनी इच्छा से दिया है तो उनकी आँखों में आँसू क्यों  छलकने लगे हैं ?

      इधर कुछ वर्षों महीनों से कई स्थलों पर देखा गया है कि अपनी प्रशंसा सुनते ही अडवाणी जी की आँखों में अक्सर आँसू आ ही  जाते हैं ! मैं ये बात उस महापुरुष के विषय में निवेदन कर रहा हूँ जिनका हृदय इतना कमजोर नहीं है यह भी सच है कि हमारे लौह पुरुष  विरोधियों से घिरने पर भी कभी भयभीत नहीं दिखे किन्तु अपनों से मिली ठेस न कही जा सकती है और न ही सही जा सकती है इस ठेस से धधकते हृदय आँसुओं से शीतलता का अनुभव करते हैं इसलिए आँसू अक्सर आ ही जाते हैं !कहें कैसे सहें कैसे वाली स्थिति है । 

        यह स्थिति उनकी है जिन्होंने अपनी पार्टी एवं पार्टी कार्यकर्ताओं को बहुमूल्य अपनापन दिया है सम्पूर्ण समर्पण के साथ अपनी पार्टी को खड़ा किया है मैंने चर्चाओं में सुना है कि श्रद्धेय अटल जी को प्रधान मंत्री पद के लिए न केवल उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया था अपितु उन्होंने ही उनके नाम को प्रस्तावित किया था !उस समय अडवाणी जी की लोकप्रियता कम नहीं थी यदि उनमें पद लोलुपता होती तो अटल जी को प्रधानमंत्री बनाकर वे प्रसन्न न हुए होते! अटल जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद कृतकार्यता का कितना उत्साह था उनके मुखमंडल पर !इस युग में कहाँ पाए जाते हैं ऐसे राजनेता ! जो किसी और को कुछ बनाकर प्रसन्न होते देखे जाते हों !उन्होंने अपने स्तर पर बंशवाद को भी बढ़ावा नहीं दिया है !वो आंदोलन से उपजे नेता हैं अपने त्याग तपस्या संयम साधना से देदीप्यमान व्यक्तित्व के स्वामी हैं सत्ता में रहकर भी उन पर भ्रष्टाचार सम्बन्धी किसी प्रकार कोई आरोप नहीं लगा सका, लाखों विरोधियों की कलम कुंद  हो गई किन्तु खोज नहीं पाए कोई दाग जिनका व्यक्तित्व ही इतना निर्मल है!विरोधी भी जिनकी प्रशंसा करते हों उस महापुरुष की आँखों के आँसू अकारण और निरर्थक नहीं कहे जा सकते हैं और न ही इन आँसुओं के पीछे उनका कोई निजी कारण लगता है यदि ऐसा होता तो  उनकी यह पीड़ा सार्वजनिक मंचों पर प्रकट नहीं होती जहाँ की पीड़ा है वहीँ प्रकट होगी स्वाभाविक है !अतएव इन आँसुओं की भाषा पढ़ा जाना भाजपा की भलाई के लिए बहुत जरूरी है अभी समय है अभी बहुत कुछ बिगड़ा नहीं है।निजी तौर पर मैं उनके तपस्वी जीवन एवं विराट व्यक्तित्व को नमन करता हूँ और आशा करता हूँ आज की युवा पीढ़ी अटल जी एवं अडवाणी जी जैसे राजनैतिक ऋषियों की पारदर्शी एवं कर्मठ जीवन शैली से पवित्र प्रेरणा ले !

      सच्चाई क्या है मुझे नहीं पता है किन्तु हम तो आम आदमी है हममें बुद्धि कितनी ! किन्तु भावना तो हम में भी है उसे प्रकट करने का अधिकार हमें भी होना चाहिए उसी के तहत मैं अपनी बात लिख रहा हूँ । बीते कुछ महीनों वर्षों में पार्टीजनों की गतिविधियों से समाज में ऐसा संदेश गया है कि पार्टी अपने वृद्ध जनों को सह नहीं पा रही है! हो सकता है कि वास्तविकता ऐसी न हो किन्तु यदि ऐसा है तो पार्टी के द्वारा शीघ्रातिशीघ्र प्रभावी  सन्देश दिया जाना चाहिए जिससे समाज का भ्रम भंजन हो सके जो वर्तमान परिस्थितियों में भाजपा के लिए संजीवनी सिद्ध हो सकता है! अन्यथा भाजपा के प्रति समाज में एक सोच पनप रही है कि  भाजपा को छोड़कर हर पार्टी में एक स्थिर मुखिया है ऐसा भाजपा में क्यों नहीं हो सकता ?आखिर लोग किसको देखकर दें भाजपा वोट ?जबकि समय समय पर हर कोई हिलने  लग जाता है !

      यद्यपि टी. वी. देखने का मुझे समय नहीं मिल पाता है फिर भी एक कोई कार्यक्रम टी. वी. पर मैंने देखा था जिसमें एक घर की परिकल्पना होती है उस घर वालों को बिग बॉस नाम के किसी प्राणी की अज्ञात आवाजों के इशारों के अनुशार चलना होता है अथवा यूँ कह लें कि उस कल्पित पूरे परिवार के हर छोटे बड़े सदस्य को उस सशक्त वाणी के सामने केवल दंडवत करना होता है जो ऐसा न करना चाहे उसे घर के बाहर जाना होता है क्या भाजपा भी अब बिग बॉस का घर बनती जा रही है !एक पार्टी के रूप में उसे भी तो अपने पार्टी परिवार के स्थाई मुखिया के पद को भी प्रतिष्ठित बनाकर रखना ही चाहिए !हर परिवार का कोई न कोई मुखिया तो होता  ही है इसलिए भाजपा का भी होना चाहिए !

       भाजपा कहते ही श्री अटल जी एवं  श्री अडवाणी जी का चित्र मानस पटल पर सहज ही उभर आता  है माना जा सकता है कि आज अटल जी का स्वास्थ्य अनुकूल नहीं है किन्तु ईश्वर कृपा से श्री अडवाणी जी भाजपा की द्वितीय पंक्ति के नेताओं की अपेक्षा कम सक्रिय नहीं हैं उन्होंने  भाजपा को आगे बढ़ाने के लिए श्रम भी कम नहीं किया है फिर भी यदि उन्हें उनके पदों या उनके योग्य प्रतिष्ठा  से हिलाया जाएगा तो उनका दुखी होना स्वाभाविक है दूसरी बात यदि ऐसा होता है तो भाजपा की पहचान किसके बल पर बनेगी ?वैसे भी घरों की तरह ही दलों में भी क्रमिक उत्तराधिकार की व्यवस्था है अच्छा होता कि उसका सम्मान पूर्वक क्रमिक अनुपालन होता रहता किन्तु मीडिया तक पहुँचने से अच्छा नहीं रहा !खैर ,जो भी हो किन्तु भाजपा के हाईकमान में ऐसे कितने सदस्य हैं जिनका निजी व्यक्तित्व जनाकर्षक हो !जबकि राजनैतिक दलों का विकास ही जनाकर्षण से जुड़ा होता है ऐसी परिस्थिति में लोका- कर्षक नेताओं का  यदि वजूद बरकार नहीं रखा जाएगा तो संगठन चलेगा किसके बल पर ?जिसमें माननीय अडवाणी जी तो निष्कलंक ,सदाचारी एवं स्पष्ट वक्ता हैं उन्हें अपनी कही हुई बातों की सफाई नहीं देनी पड़ती है उन्हें यह नहीं कहना पड़ता है कि हमारी बात को मीडिया ने गलत छाप दिया होगा वैसे भी वो अप्रमाणित बात नहीं बोलते शिथिल बात नहीं बोलते हैं सम्भवतः ऐसी ही तमाम उनकी अच्छाइयों के कारण उनका सामजिक राजनैतिक आदि गौरव सुरक्षित बना हुआ है कुछ दलों के कुछ छिछोरे नेताओं को छोड़कर बाकी लोग आज भी उनका नाम बड़े सम्मान पूर्वक ढंग से लेते वैसे भी यदि हम अटल जी का सम्मान करते हैं तो हमें यह भी याद रखना चाहिए कि अटल जी भी उनसे स्नेह करते हैं इसलिए उनकी लोकप्रिय अच्छाइयाँ स्पष्ट हैं न जाने क्यों उनका गौरव सुरक्षित रखने में जाने अनजाने बाहर की अपेक्षा अंदर से इस उम्र में उतना गम्भीर सहयोग नहीं मिल पा रहा है जितना मिलना चाहिए !

        भाजपा के वर्त्तमान केंद्रीय हाईकमान में शीर्ष पदों पर रह चुके लोग अपने गृह प्रदेश में इतने विश्वसनीय और लोकप्रिय नहीं हो सके कि अपने बल पर वहाँ पार्टी को चुनाव जीता सकें आखिर क्यों वहाँ भी मोदी जी का ही सहारा है आखिर उन्होंने उन प्रदेशों में वरिष्ठ पदों पर रहकर किया क्या है यदि मोदी जी ने अपना प्रदेश भी सम्भाला है और दूसरे प्रदेशों में भी अपनी लोकप्रियता बधाई है तो ऐसे ही कद्दावर पदों पर रह चुके अन्य लोगों ने ऐसा क्यों नहीं किया या कर नहीं पाए और यदि कर नहीं पाए तो हाई कमान किस बात के ?

  आखिर क्यों और कैसे बन जातीहै  काँग्रेस की सरकार बार बार! और क्यों देखती रह जाती है भाजपा ?

      कल मैंने किसी बड़े नेता के भाषण में  सुना कि सपा बसपा जैसी क्षेत्रीय पार्टियाँ काँग्रेस जैसी पार्टी की ही देन हैं !

       जहाँ तक काँग्रेस का हाईकमान तो विश्व विदित है । इस प्रकार से जनता हर पार्टी की हाईकमान एवं उसकी स्वाभाविक स्थिरता और विचारधारा पर भरोसा करके  उसका साथ देती है कि ये हारे चाहें जीते किन्तु ये समय कुसमय में हमारा साथ देगा!

    जैसे - मुलायम सिंह जी सपा में कभी भी कोई भी निर्णय ले सकते हैं वे स्वतंत्र हाईकमान हैं ,इसी प्रकार बसपा में मायावती,नीतीशकुमार जी जद यू में,लालू प्रसाद जी जनतादल में,तृणमूल काँग्रेस में ममता बनर्जी जी ,अकाली दल में प्रकाश सिंह जी बादल ,इसी प्रकार उद्धव ठाकरे जी,राज ठाकरे जी ,ओम प्रकाश चोटाला जी ,शरद पवार जी,करुणा निधि जी , जय ललिता  जी, नवीन पटनायक जी ,चन्द्र बाबू नायडू जी आदि और भी छोटे बड़े सभी दलों के हाईकमान अपनी अपनी पार्टी में सदैव सम्माननीय  एवं प्रभावी बने रहते हैं चुनावों में उनकी हार जीत कुछ भी हो तो होती रहे किन्तु इनके सम्मान एवं अधिकारों में कटौती नहीं होती है ये स्वतन्त्र रूप से निर्णय लेने में सक्षम बने रहते हैं उन्हें ही देखकर उनके स्वभाव को समझने वाली जनता यह समझकर वोट देती है कि ये हारें या जीतें किन्तु यदि हम इनका साथ देंगे तो ये हमारे साथ भी खड़े होंगे!इसी प्रकार से पार्टी कार्यकर्ता भी अपने हाईकमान को पहचानने लगते हैं कि ये जैसा कहेंगे इस पार्टी में रहने के लिए  हमें वैसा ही करना होगा किन्तु जिन पार्टियों में हाईकमान गुप्त है वहाँ कार्यकर्ता भी चुप रहता है और समर्थक तो चुप ही रहते  हैं। 

       भाजपा में ऐसा नहीं है यहाँ कब कौन किसका कब तक हाईकमान रहेगा फिर कब कौन किस कारण से कहाँ से हटाकर कहाँ फिट कर दिया जाएगा ये सब काम कौन क्यों कहाँ से किसकी प्रेरणा से कर रहा है या किसी अज्ञात शक्ति की प्रेरणा से होता रहता है आम जनता इसे जानने की हमेंशा इच्छुक रहती है किन्तु किसी को कुछ बताने कि जरूरत ही नहीं समझी  जाती है इतनी बड़ी राष्ट्रीय पार्टी में कब क्या उथल पुथल चल रहा होता है जनता में से किसी को कुछ पता नहीं होता है।यहाँ तक कि बड़े बड़े कार्यकर्त्ता तक अखवार पढ़ पढ़ कर समाज को समझा रहे होते हैं कि अंदर क्या कुछ चल रहा है ,जैसे आम परिवारों में माता पिता की लड़ाई में बच्चों की  स्थिति होती है न माता की बुराई कर सकते हैं और न ही  पिता की न सच्चाई ही किसी को बता सकते हैं केवल मौन रहना ही उचित समझते हैं ये स्थति भाजपा के आम कार्य कर्ता की होती है जब हाईकमान हिलता है ।

      मैं इस तर्क से सहमत नहीं हूँ क्योंकि जब ये बात में सोचता हूँ तो एक सच्चाई सामने आती है कि काँग्रेस हमेशा से गलतियाँ करती रही है पहले जब भाजपा का हाईकमान हिलता नहीं था अर्थात हिमालय की तरह सुस्थिर था तब तक काँग्रेस का विरोध करने की क्षमता भाजपा में थी इसीलिए भाजपा आगे बढती चली गई !

     किन्तु जब सर्व सम्मानित अटल जी  एवं अडवाणी जी को संन्यास लेने की सलाहें अंदर से ही आने लगीं। इस पर उस समाज को भयंकर ठेस लगी जिसके मन में भाजपा का नाम आते ही अटल जी  एवं अडवाणी जी सहसा कौंध जाया करते थे उसने सोचना शुरू किया कि यदि ये नहीं तो कौन?जनता को इसका उचित उपयुक्त एवं सुस्थिर जवाब अभी तक नहीं मिल सका है क्योंकि बार बार बनने बिगड़ने बदलने वाला निष्प्रभावी हाईकमान जनता को अभी तक मजबूत सन्देश देने में सफल नहीं हो सका है जो पार्टी में हार्दिक रूप से सर्वमान्य हो !

           भारत वर्ष में एक ऐसी भी बड़ी पार्टी है जिसका हाईकमान सरस्वती नदी की तरह अदृश्य रहता है आखिर क्यों ? इसकी  कीमत देश की जनता को बार बार चुकानी पड़ती है।इस पार्टी की कई वर्षों तक सरकार चलने के बाद भी भगवान् श्री राम के कार्य को भूल जाने के कारण लगता है कि उस पार्टी को शाप लगा है कि इसका हाइकमान  हमेशा चलता फिरता रहेगा !

         भाजपा के इस ऊहा पोह के दिशाभ्रम से बल मिलता है क्षेत्रीय पार्टियों को !ये  केंद्र सरकार के विरुद्ध उठे जनाक्रोश को काँग्रेस का विरोध करके पहले कैस करती हैं और फिर काँग्रेस को ही बेच लेती हैं इस प्रकार से फिर से बन जाती है काँग्रेस की सरकार !भाजपा काँग्रेस को कोसती  रह जाती है!


 


    

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