शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

एक अनाम फकीर को साईं और भगवान कहने के पीछे विधर्मियों की कोई चाल तो नहीं !

         साईं नाम का षड्यंत्र कहीं सनातन धर्म को छिन्न भिन्न करने की साजिश तो नहीं है ?

      एक अनाम फकीर को कोई नाम देना जरूरी था क्या ? फिर उस फकीर का झूठ मूठ का चरित लिखवाने की क्या जरूरत थी जब उसके बारे में किसी को कुछ पता ही नहीं था ,फिर उसकी मूर्तियाँ पुजवाने के पीछे राज क्या छिपा है आखिर क्यों बनाए जा रहे हैं उसके मंदिर !कहाँ से आता है इतना धन ?यदि यह बात सही है कि उन्होंने अपना सारा जीवन फकीरी में काटा था तो उन्हें मंदिरों में सोने चाँदी  के सिंहासनों पर सोने चाँदी के बहुमूल्य आभूषणों मुकुटादिकों से क्यों सुसज्जित किया जाता है साईं के कलर बदलने के पीछे का राज क्या है क्या कारण है जो भगवान को पूजने वाला फकीर था वो भगवानों की तरह पुजवाने वाला अमीर सेठ हो गया और मंदिरों में बैठकर स्वयं  पुजने लगा !   

     बंधुओ !साईं शब्द साईं का वास्तविक नाम नहीं है यह भी नक़ल करके लिया गया है ! जिन्हें साईं कहा जाता है वो साईं थे ही नहीं,साईं तो श्री राम हैं वही त्रिभुवन साईं हैं ।बनवास से आने के बाद जब श्री राम का राज्याभिषेक हुआ तो वो सोने चाँदी से बने हुए मणि जटित सिंहासन पर बैठाए गए इसी प्रकार से उनके मस्तक पर सोने चाँदी से बना हुआ मणि जटित मुकुट लगाया गया और उन्हें अनंतकोटि ब्रह्माण्ड नायक बताया गया ! श्री राम के चरित्र का वर्णन करने वाली श्री राम चरित मानस लिखी गई ! उन्होंने ऐसे ऐसे महान काम किए थे राक्षसों का संहार किया था अत्यंत बलवान रावण को मारकर समाज की रक्षा की थी इसलिए उनका ये सारा दस्तावेज लिखना बहुत जरूरी था इसलिए लिखा भी गया वही रामायण बन गई बाद में इसी का एक स्वरूप अत्यंत लोकप्रिय श्री राम चरित मानस के रूप में भी समाज के सामने भी आया । इसी श्री राम चरित मानस में श्री राम के राज्याभिषेक के समय एक चौपाई लिखी गई है -

 सिंहासन पर त्रिभुवन साईं ।देखि सुरन्ह दुंदुभी बजाई ॥

     इसी साईं शब्द की यहाँ से नक़ल मार कर एक अनाम फकीर को पहले साईं और फिर राजा और फिर भगवान बना दिया गया जिसके न तो माता पिता आदि परिवार का कोई अता पता था न उसकी  वास्तविकता के विषय में पता था न ही किसी को उसका वास्तविक नाम ही बताया गया फिर भी यह नक़ल करते हुए कि जैसे श्री राम तपस्या करके बन से आए थे तो उनका राज्याभिषेक हुआ था कुछ लोगों को लगा क्यों न इस  अनाम फकीर को भी राजा राम बना दिया जाए मर जाएंगे हिन्दू इसे पूजते पूजते !

    इस लिए बुड्ढे को राजा बनाने की तैयारी की जाने लगी किन्तु राज्य तो था नहीं इसलिए इसके लिए एक कल्पित  द्वारिका माई बनाई गई चूँकि साईं के भगत शास्त्र पुराण पढ़े लिखे तो होते नहीं हैं उन्हें यही नहीं पता था कि श्री राम की राजधानी अयोध्या में थी या द्वारका में ,उन्होंने सोचा कि भगवान  तो द्वारिका के ही  राजा  रहे होंगे तो उनके आवास को द्वारिका माई कहा जाने लगा अब सोने चाँदी के सिंहासन मुकुट खड़ाऊँ आदि सब श्री राम की तरह ही बनाए गए जैसे श्री राम की पूजा की जाती थी बिलकुल वैसे ही अर्थात उसी पूजा विधि और मन्त्रों के द्वारा बुड्ढा पूजा जाने लगा, लेकिन लोगों में इनके प्रति वो आकर्षण नहीं था इसलिए साईं के साथ राम भी जोड़ लिया गया।

    अब बात आई उनकी श्री रामचरित मानस है तो इन्होंने भी साईं चरित लिखवाया श्री राम ने तो जीवन में बहुत कुछ मानवता की रक्षा के काम किए थे असुरों का संहार किया था रावण को मारा था साईं ने ऐसा कभी कुछ तो किया नहीं था यहाँ तक कि आजादी की लड़ाई में भी मुख छिपाए बैठे रहे कुछ बश का होता तो करते इसलिए कुछ करा धरा था नहीं तो बिना सर पैर के झूठ के सारे किस्से कहानियाँ लिखकर एक बवंडर तैयार किया गया उसका नाम साईं चरित्र रखा गया !

     कुल मिलाकर एक अनाम बुड्ढे को श्री राम बनाकर स्थापित और प्रचारित करने की कोशिश ही क्यों की गई इसकी जरूरत क्या थी यदि मन में कोई पाप नहीं था तो ?आखिर संतों का सम्मान अपने देश में कम तो नहीं है !seemore...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_5398.html

    

       

कोई टिप्पणी नहीं: