शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

अग्निवेश यदि भगवान को न माने तो अग्निवेश को कोई क्यों माने इंसान !

 नक्सलियों और माओबादियों  का सम्बन्ध अग्निवेश से और अग्निवेश का साईंयों से, दूसरी बात साईंयों और अग्निवेश के द्वारा शंकराचार्य जी की निंदा एक ही समय किया जाना ,दोनों के ही द्वारा शंकराचार्य जी से माफी की माँग किया जाना और इसी बीच साईंयों के चंदे (चढ़ावे) की रकम का अचानक बढ़ जाना ! इस सब का आपस में कहीं कोई सम्बन्ध तो नहीं है ?

  अग्निवेश जी  की भटकती आत्मा भगवान को माने या न माने फिर भी ईश्वर उन्हें शांति दे !

 भगवान की प्राण प्रतिष्ठित मूर्तियों पर उनका  विश्वास नहीं है क्योंकि अग्निवेश ने उनकी कभी पूजा नहीं की है!

बर्फानी बाबा अमरनाथ पर उनका विश्वास नहीं है क्योंकि वहाँ कभी श्रद्धा से गए नहीं  अग्निवेश !

धर्म में मन नहीं लगता क्योंकि जो धर्म है उसे अग्निवेश जब जानते ही नहीं तो मानने का सवाल ही कहाँ उठता है ?

भगवान की भक्ति में अग्निवेश का मन नहीं लगता आँख बंद करते ही अपने पाप याद  आने लगते  हैं !

चेला चेली अग्निवेश को  मिलते नहीं हैं क्योंकि कुसंग कोई करना नहीं चाहता है । 

लाल कपड़े पहनने से अग्निवेश के मौखिक कर्मों का फल देने में समाज कुछ लिहाज कर जाता है किन्तु जब ओवर बोल जाते हैं तो समाज फिर होश में लाने के लिए ओवर उपाय भी करने लगता है !

राजनेता अग्निवेश के छिछोरेपन के कारण उन पर भरोसा करते नहीं हैं ।

अन्ना हजारे ने अग्निवेश पर भरोसा किया तो भोगा ऐसी चीजें भरोसा करने लायक होती भी नहीं हैं ये आदमी इधर उधर चुगली चपाटी  करके अन्ना जी का सारा आंदोलन चौपट करके चला आया !

पत्रकार जरूर कभी कभी अग्निवेश को आन कर देते हैं जब कभी उन्हें किसी ऐसे आदमी की जरूरत होती है कि उसने वेष तो साधुओं का सा बनाया हो और गालियाँ  भी धर्माचरण  को ही देता हो !

        जहाँ तक बात शंकराचार्य जी के शास्त्रीय बचनों के प्रति सम्मान की है जो शास्त्र ही न मानता हो ,सनातन धर्म के मंदिरों को न मानता है वो श्रद्धेय शंकराचार्य जी को कैसे मानेगा उसे पता है कि शंकराचार्य जी के शास्त्रीय बचनों को मानने से संस्कार सुधर जाएँगे चुगली चपाटी आदि पाप कर्म करने की आदत छूट जाएगी वो पाप पागल थोड़े हैं जो इतनी मुश्किल से अपने अनुकूल बना पाए अग्निवेश जैसे आदमी को इतनी आसानी से छोड़ देंगे क्या ?

        बनारस में अस्सी घाट  पर शर्दी के जनवरी फरवरी महीने में सुबह सुबह गंगा नहाने जाना होता था तो बड़ी शर्दी लगती थी  किन्तु शर्दी के कारण हिम्मत कहाँ पड़ती थी नहाने की किन्तु हिम्मत बाँधकर एक डुबकी लगा लो तो शर्दी भाग जाती थी !कई विद्यार्थी नहाने के लिए कपड़े उतारकर तैयार होकर जाते थे किन्तु शर्दी से डर  कर  बिना नहाए ही भाग आते थे हास्टल मेँ आकर नहाते थे तो गुरु जी लोग कहते थे कि जब कोई गंगा जी नहाने जाता है तो उसके द्वारा किए गए पाप दुखी होकर परेशान होते हैं उन्हें पता होता है कि ये गंगा नहाएगा तो हम छूट जाएंगे इसलिए वो शर्दी आदि का स्वरूप धारण करके गंगा स्नान में बिघ्न बनते हैं किन्तु नहाने के बाद पापों का साथ छूट जाने से सब कुछ ठीक हो जाता है !

        ठीक उसी प्रकार से अग्निवेश भी धर्म कर्म करने वाले भजनानंदियों की तरह लाल कपड़े पहने तैयार तो घूम रहे हैं भजन करने के लिए भक्तों की वेश भूषा बनाए किन्तु उनके  प्रबल पाप उनके साधू वेष बना  लेने पर भी उनकी बुद्धि भ्रष्ट किए हुए हैं अगर वो सनातन हिन्दू धर्म शास्त्रों पर भरोसा करें मंदिरों में जाकर भगवान जी की पूजा आरती करें संतों का संग करें तो संस्कार सुधरें किन्तु इसमें उनका मन नहीं लगता है नक्सली और माओबादियों को भजते हैं जैसे वो हैं वैसे ये हैं आखिर कुछ तो गुण मिलते ही होंगें तब तो बात होती है !

  खैर,सरकार को ऐसी चीजें अपनी देख रेख में रखनी चाहिए !समाज में खुले तौर पर नहीं छोड़नी चाहिए !

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