मंगलवार, 23 जून 2015

योग है या उद्योग ! जो हिल डुल लेता है सो योगी ! जो हाथ पैर हिलाना डुलाना सिखा रहे हैं वे योग गुरु !

  योग के नाम पर कलियुगी पतंजलियों ने धंंधे फैला  रखे हैं !काश !समाज की योग जिज्ञासा शांत की जा पाती न की जा पाती कम से कम योग का अर्थ तो सही सही बताया जाता ! 
   कसरत व्यायाम जैसी चीजों को योग बताकर बड़े बड़े व्यापारियों ने अपने को योग गुरु कहना शुरू कर दिया !ऐसे तो मेहनत मजदूरी करने वाले या किसान आदि परिश्रमी लोग योगी हो गए !नाचने वाले भी योगी हो गए !बंधुओ ! विश्व में हमारे योग की पोल खुले उससे पहले हमें सुधर जाना चाहिए !
 यदि हाथ पैर मोड़ना मरोड़ना और शरीर को लचीला बनाना ही योग है तो फिर इन भाइयों को योग का विश्वगुरु मान लेना चाहिए क्या !
     बंधुओ !नेट से उठाए गए इन सभी  चित्रों की सत्यता के हमारे पास कोई प्रमाण नहीं हैं हमने तो उदाहरण  के रूप में ये उद्धृत किए हैं कि क्या योग वास्तव में इतना आसान होता है कि जिस योगबल की शास्त्रों में अमित महिमा समझाई  गई है वो यही योग है क्या या कुछ और !

योगगुरु गजानन देव जी महाराज          योगगुरु श्वानदेव जी  महाराज          योगगुरु स्वामीकपीश्वरदेव जी 
महाराज
     हमें व्यायाम को व्यायाम कहने में शर्म क्यों आती है और योग के लिए योग सिद्ध साधकों की खोज क्यों न की जाए !आखिर योग के नाम पर कब तक बिकेगा डालडा !और इस व्यायामी योग में ऐसा क्या है जो स्कूलों में भी इसे पढ़ाया जाएगा ! सुना है कि इसके लिए अलग से शिक्षक भी रखे जाएँगे , कक्षाएँ भी चलेंगी !सरकारी स्कूलों के बच्चों और उनके माता पिता को इस योग की जरूरत कभी नहीं पड़ेगी वो मेहनत मजदूरी करने वाले परिश्रम के पसीने से पवित्र लोग  ऐसे योगकर्ताओं की ओर देखेंगे भी क्यों उनके हिसाब से ये योग नहीं अपितु रईसत के चोचले हैं खेतों में काम करने वाले परिश्रम के पसीने से पवित्र किसानों का क्या भला करेगा यह योग ! और जिस  दिन किसान मजदूर भी ऐसा शारीरिक योग करने लायक हो जाएँगे उस दिन उनके बच्चे भी सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ेंगे अपितु प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने लगेंगे !इसलिए ऐसा योग कृपा करके प्राइवेट स्कूलों में ही लागू किया जाता तो अच्छा होता ! 
      वैसे तो छोटे बच्चों को बचपन में खेलने का स्वतंत्र अवसर मिले तो उन्हें शारीरिक योग की आवश्यकता कभी नहीं पड़ेगी और मानसिक शुद्धि के लिए ऐसे  योगों में कुछ होता नहीं है  इसलिए विश्व में हमारे योग की पोल खुले उससे पहले हमें सुधर जाना चाहिए !भलाई इसी में हैं बाकि अपनी अपनी इच्छा !
    असली योगियों की शार्टेज हो रही है इसलिए योगियों की आपूर्ति के लिए कसरती योगियों ने कसी है कमर ! क्या यही चलाएँगे अब व्यायामी योग का कारोबार ! योग उद्योग से जुड़े कसरत वैज्ञानिकों की ही खोज है ' व्यायामयोग ' !

             योग विद्यापीठ के योगसिद्ध  साधक
   योग के उद्योगपतियों ने कसरतों और व्यायामों को ही बता दिया है योग ! व्यायाम को वो क्या मानते होंगे ये तो वही जानें या उनकी माया ही जाने! बंधुओ!कसरत और व्यायाम यदि योग हैं तो 'जिमसेंटर' 'योगपीठ' हैं क्या?  और 'सर्कस' करने वाले योगसिद्ध ऋषिमुनि माने जाएँगे क्या ?
  बंधुओ ! अपने प्राचीन ऋषि मुनियों पर हम भारतीयों की आस्था है उनके लिखे हुए ग्रंथों पर हमें विश्वास है अभी भी साधू संतों के वेष पर हमारी श्रद्धा है अपनी प्राचीन विद्याओं पर हमारा भरोसा है यही कारण है कि आज योग ज्योतिष और तंत्र मंत्र जैसे  प्राचीन विषयों के नाम पर टीवी चैनलों में दिन भर बोला जा रहा झूठ प्रबुद्ध भारतीय लोग सुन और सह रहे हैं इसका मतलब ये कतई नहीं है कि वे मूर्ख हैं इसलिए कुछ समझते नहीं हैं  अपितु इसका मतलब है कि जैसे जिसे रामायण से लगाव है और श्री राम की लीलाओं पर भरोसा है इसलिए उनके द्वारा रामायण का नाटक खेलने वाले कलाकारों का भी सम्मान किया जाता है इसी विश्वास के साथ आधुनिक योग शिविरों में भी जनता उमड़ रही है कि योगी नहीं तो योग कलाकार तो होंगे ही किंतु योग कलाकारों ने तो आज योग का नाटक भी करना बंद कर दिया है अपितु ये तो इतने चतुर हैं हर आचरण महर्षि पतंजलि की चित्त वृत्ति निरोध की भावना के विरुद्ध कर रहे हैं पतंजलि के योग का उद्देश्य तो मन की वृत्तियों को नियंत्रित करके मन को शुद्ध करना था किंतु कलियुगी योगी तो लोगों को 'मन' तक पहुँचने  ही नहीं दे रहे हैं बल्कि ये तो लोगों को शरीरों में ही फँसाए बैठे हैं इस आसन से गैस पास होगी, इससे कब्ज  हटेगा, इससे जुकाम ठीक होगा इस आसन से सुंदरता बढ़ेगी इससे सेक्सपावर बढ़ेगा आदि आदि !कुल मिलाकर आज का सारा योग गैस एसिडिटी शुगर ब्लडप्रेसर आदि को रोकने का लालच देकर बेचा जा रहा है किंतु कोई शारीरिक श्रम किसी भी प्रकार से करे उससे भी तो ये सब हो सकता है अन्यथा फ्री की कमाई अधिक हो तो काम न करके अपितु बेकाम का काम अर्थात 'व्यायाम' करके शरीर को शुद्ध कर ले ! उसी से नष्ट हो जाएँगे सारे रोग दोष !किंतु समस्या ये है कि योग उद्योग से जुड़े लोग फिर क्या करेंगे !
    बंधुओ !महत्वपूर्ण बात ये है कि अभी तक तो बात घर की घर में थी अब विश्वयोगदिवस के नाम से जब से आधिकारिक घोषणा हुई है इससे भारतीय संस्कृति का गौरव बढ़ा है जिसका श्रेय प्रधानमंत्री जी को जाता है !किन्तु भारतीय संस्कृति से जुड़े जिम्मेदार लोगों का अब दायित्व भी बढ़ा है कि हम लोग इस गौरव को बचाकर रख पाएँ !इसलिए व्यायाम को योग के बीच घुसाना ठीक नहीं होगा इस तथाकथित योग को व्यायाम ही बना रहने दिया जाए और बहुत शीघ्र प्रारंभ किया जाए योग आंदोलन जिसमें वो चीजें सम्मिलित की जाएं जो वास्तव में भारतीय संस्कृति की ही उपज हों और जो भारतीय शास्त्र मान्यता के अनुशार योग कहलाने के वास्तविक अधिकारी हैं ,अन्यथा ये हाथ पर हिलाने वाला व्यायामी योग तो सभी देशों में अधिकांश लोग एक्सरसाईज के नाम पर करते ही आ रहे हैं फिर इसे योग कह लेने मात्र से बात बन जाएगी क्या ?और यदि बन भी जाए तो हम लोग योग को अपना समझ का स्वीकार कर लेंगे किन्तु वे क्यों स्वीकार करेंगे जिनका इस संस्कृति से कोई सम्बन्ध नहीं होगा !
  इसलिए प्राचीन विद्याओं के नाम पर अब झूठ साँच के व्यापार को हमें रोकना होगा योगदिवस के गौरव की रक्षा के लिए भारतीयों को कुछ ऐसा करके दिखाना होगा जो विश्व को लगे कि भारतीय ऋषि मुनियों ने वास्तव में कोई खोज की है ! हमें याद रखना  होगा कि साधू संतों जैसी वेषभूषा वाले लोग प्राचीन खोज का अपना गौरव हमें विश्व में हमारे योग की पोल खुले उससे पहले हमें सुधर जाना चाहिए !योग है क्या ? कसरत व्यायाम यदि योग है तो व्यायाम क्या है इसका उत्तर खोजना होगा ?
 यदि हाथ पैर मोड़ना मरोड़ना और शरीर को लचीला बनाना ही योग है तो फिर इन भाइयों को योग का विश्वगुरु मान लेना चाहिए क्या !
          हमें व्यायाम को व्यायाम कहने में शर्म क्यों आती है और योग के लिए योग सिद्ध साधकों की खोज क्यों न की जाए !आखिर योग के नाम पर कब तक बिकेगा डालडा !और इस व्यायामी योग में ऐसा क्या है जो स्कूलों में भी इसे पढ़ाया जाएगा ! सुना है कि इसके लिए अलग से शिक्षक भी रखे जाएँगे , कक्षाएँ भी चलेंगी !सरकारी स्कूलों के बच्चों और उनके माता पिता को इस योग की जरूरत कभी नहीं पड़ेगी वो मेहनत मजदूरी करने वाले परिश्रम के पसीने से पवित्र लोग  ऐसे योगकर्ताओं की ओर देखेंगे भी क्यों उनके हिसाब से ये योग नहीं अपितु रईसत के चोचले हैं खेतों में काम करने वाले परिश्रम के पसीने से पवित्र किसानों का क्या भला करेगा यह योग ! और जिस  दिन किसान मजदूर भी ऐसा शारीरिक योग करने लायक हो जाएँगे उस दिन उनके बच्चे भी सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ेंगे अपितु प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने लगेंगे !इसलिए ऐसा योग कृपा करके प्राइवेट स्कूलों में ही लागू किया जाता तो अच्छा होता ! 
      वैसे तो छोटे बच्चों को बचपन में खेलने का स्वतंत्र अवसर मिले तो उन्हें शारीरिक योग की आवश्यकता कभी नहीं पड़ेगी और मानसिक शुद्धि के लिए ऐसे  योगों में कुछ होता नहीं है  इसलिए विश्व में हमारे योग की पोल खुले उससे पहले हमें सुधर जाना चाहिए !भलाई इसी में हैं बाकि अपनी अपनी इच्छा !            

   बंधुओ !महर्षि पतंजलि से पूछा गया कि योग के लिए आसन कैसा होना चाहिए तो उन्होंने कहा  ' स्थिर सुखमासनम् ' उन्होंने बैठने का तरीका तो साधक की इच्छा पर छोड़ दिया !किंतु आज योग के कलाकारों ने आसन समझाने  के नाम पर शरीर को जैसे तैसे मोड़ना मरोड़ना सिखाना शुरू कर दिया है कि योग आज ध्यान धारणा समाधि की ओर भले ही प्रेरित न कर पा रहा हो किंतु  कसरत सिखाने वालों ने जब से व्यायाम को योग कहना शुरू किया है तब से और कुछ हुआ हो या न हुआ हो किन्तु उद्योग बन गया है योग !
     यदि शरीर को मोड़ना मरोड़ना ही योग है तो नट नर्तकों को भी मान
योग साधक की सीख
लिया जाए योगगुरु !वे क्या बुरे हैं ? योग कला नहीं है और न ही है व्यायाम !इसलिए योग को योग रहने दिया जाए और व्यायाम को व्यायाम !योग को क्यों किया जाए बदनाम ?
      बंधुओ ! मेहनत मजदूरी करके परिश्रम पूर्वक कमाने खाने वालों के कहाँ निकलते हैं पेट ! ये हाथ पैर हिलाने वाले योग तो पैसे वालों के चोचले हैं जो  नौकरों चाकरों पर आश्रित जिंदगी जीने वाले आराम पसंद दुनियाँ के कुछ स्वयंभू बादशाहों के पेट पिचकाने के लिए कसरतों व्यायामों को योग बता दिया गया !जब  व्यायाम को योग कहना शुरू कर ही दिया गया है तो शहरों में जगह जगह खुले जिमों  को क्या योगपीठ मान लिया जाए !         कुछ लोगों ने योग को कला समझा तो ऐसे कलाकारों ने बड़ी सफाई से  कलाकारी पूर्वक अपने शरीर और अंगों को मोड़ा मरोड़ा पेट फुलाया पिचकाया शरीर को विभिन्न अंगों पर संतुलित किया इस प्रकार से कसरत व्यायाम आदि के निरंतर अभ्यास से शरीर को लचीला बनाया और समाज के सामने योग के नाम से परोस दिया ! तो क्या इन्हें योग गुरू  मान लिया जाए बंधुओ ! क्या आपको याद है कि अखाड़े में लड़ने वाले पहलवान भी तो अपने शरीरों को ऐसे ही सुगठित बनाते हैं तो क्या अब उन पहलवानों को योगी कहने लगा जाएगा ! और उन अखाड़ों को योगाश्रम मान लिया जाएगा!see more... https://www.youtube.com/watch?v=---ebbk38z4
     फिल्म या नाटक के कलाकार अपने शरीरों को अपने रोल के हिसाब से पतला मोटा सुगठित सुन्दर आकर्षक आदि बना लेते हैं तो फिल्मी कलाकरों को क्या योगी कहा जाने लगेगा ? 
     नृत्य कला में प्रवीण लोग अपने शरीर का एक एक अंग मोड़ मरोड़ लेते हैं शरीर को समेटने फैलाने की अद्भुत कला होती है उनमें !किंतु ऐसे नर्तक नर्तकियों को क्या योगी कहा जाने लगेगा ?और नृत्यांगणों को योगमंच !
   सर्कस में काम करने वाले कलाकार कैसे कैसे करतब दिखाते हैं शरीरों पर कितना अद्भुत नियंत्रण होता है उनका ,गेंद की तरह उछाल देते हैं अपने शरीर किंतु उनकी इस शारीरिक कुशलता को देखकर उन्हें योगी कह दिया जाना कहाँ तक ठीक है ?see more .... https://www.youtube.com/watch?v=Llx-m0FBZ8U 
   नट - शरीर के अंग-प्रत्यंग को लचीला बनाकर भिन्न मुद्राओं में प्रदर्शित करते हुए जनता का मनोरंजन करना ही
इनका मुख्य पेशा है। इनकी स्त्रियाँ खूबसूरत होने के साथ साथ हाव-भाव प्रदर्शन करके नृत्य व गायन में काफी प्रवीण होती हैं तो क्या ये लोग योगी हो गए ! see more ..... https://www.youtube.com/watch?v=XH0OoEsWKAg

 इसलिए व्यायाम केवल व्यायाम है और कला केवल कला है पहलवानी और जिम अलगबात  है इनसे योग जैसी दिव्य साधनात्मिका विद्या की तुलना कैसे की जा सकती है !
           योग और व्यायाम में पर्याप्त अंतर है योग शरीर का नहीं अपितु मन का व्यायाम है योग चौराहों और शिविरों में नहीं हो सकता वो तो एकांत और निर्जन या शांत स्थान में किया जाता है योग सामान्य क्रिया नहीं अपितु विशिष्ट साधना है योग का सबंध तन  से नहीं अपितु मन से है इसीलिए योग  मन को स्वच्छ और स्वस्थ करता है योग मानसिक क्रियाओं का  विशिष्ट अभ्यास है योग मन को नियंत्रित करने का महान विज्ञान है !योग को शारीरिक उठा पटक के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए !
गीता के अध्याय 6 में भगवान श्री कृष्ण ने बताया है कि योग कैसे करना चाहिए आप स्वयं देखिए -
तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः। उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये ॥ अध्याय 6 \१२
     भावार्थ : योग के अभ्यास के लिये मनुष्य को एकान्त स्थान में पवित्र भूमि में न तो बहुत ऊँचा और न ही बहुत नीचा, कुशा के आसन पर मुलायम वस्त्र या मृगछाला बिछाकर, उस पर दृड़ता-पूर्वक बैठकर, मन को एक बिन्दु पर स्थित करके, चित्त(मन) और इन्द्रिओं की क्रियाओं को वश में रखते हुए अन्तःकरण की शुद्धि के लिए योग का अभ्यास करना चाहिये। (१२)
       बंधुओ ! भगवान श्रीकृष्ण ने योग के विषय में साफ साफ कहा है कि अन्तःकरण की शुद्धि के लिए योग का अभ्यास करना चाहिए !उन्होंने आगे समझाया कि योग करना कैसे चाहिए -
समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः ।सम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन्‌ ॥ (१३)
प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थितः ।मनः संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः ॥ (१४) भावार्थ : योग के अभ्यास के लिये मनुष्य को अपने शरीर, गर्दन तथा सिर को अचल और स्थिर रखकर, नासिका(नाक)के आगे के सिरे पर दृष्टि स्थित करके, इधर-उधर अन्य दिशाओं को न देखता हुआ, बिना किसी भय से, इन्द्रिय विषयों से मुक्त ब्रह्मचर्य व्रत में स्थित, मन को भली-भाँति शांत करके, मुझे अपना लक्ष्य बनाकर और मेरे ही आश्रय होकर, अपने मन को मुझमें स्थिर करके, मनुष्य को अपने हृदय में मेरा ही चिन्तन करना चाहिये। (१३,१४)
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