रविवार, 10 सितंबर 2017

बलात्कारी बाबाओं और नेताओं की साँठ गाँठ से होते हैं सभी प्रकार के अपराध बलात्कार घपले घोटाले आदि !!

    बलात्कारों में पकड़े जाने वाले बाबाओं को नेताओं के सामने अक्सर दुम हिलाते देखा जाता है !चूँकि उन्हें अपने पापों का परिणाम पता होता है कि नेता जी के साथ साँठ गाँठ रखने से उनके गंदे कामों को भी प्रशासन नजरंदाज करता रहेगाअन्यथा न जाने कब छापा डाल दे !चरित्रवान साधू संत किसी नेता की परवाह नहीं करते उन्हें अपने चरित्र और उसके परिणाम पर भरोसा होता है |इसीलिए तो संत लोग भ्रष्टनेताओं को मुख नहीं लगाते और चरित्रवान नेताओं को वहीँ बैठे बैठे आशीर्वाद दे दिया करते  हैं !
  बलात्कारी बाबा लोग राजनेताओं से और ऐसे नेतालोग अपने जैसे बाबाओं से सम्बन्ध बनाकर चलते हैं दोनों को अपनी कर्मकुंडली पता होती है इसलिए  दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे होते हैं !नेताओं के साथ उठ बैठ रखने से बाबा लोग सोर्सफुल मान लिए जाते हैं  और बाबाओं के संपर्क से नेता लोग चरित्रवान ईमानदार आदि मान लिए जाते हैं !जो बाबा और नेता वास्तव में चरित्रवान और ईमानदार होते हैं उन्हें एक दूसरे की जरूरत ही नहीं होती !
     नेता लोग चरित्रवान संतों के पास प्रायः नहीं जाते हैं उन्हें पता होता है कि अच्छे बुरे कामों की निंदा करेंगे बाबाओं के गिरते चरित्र से नेता परिचित होते हैं इसीलिए तो नेता लोग कहते सुने जाते  हैं कि बलात्कार भ्रष्टाचार जैसे अपराधों के आरोप सिद्ध होते ही वे संन्यास ले लेंगे !क्योंकि नेताओं को पता होता है कि नेताओं के सामने दुम हिलाने वाले बाबाओं का चरित्र कैसा होता है !    
    आशाराम राम रहीम जैसे लोग अपने आप बिगड़ गए क्या ?बाबा भक्त महिलाओं और इन्हें धन देने वाले ऐय्यास पुरुषों का बहुत बड़ा योगदान है इनकी ऐय्यासी में !ऐसे बाबाओं की टेलीफोन डायरियाँ खंगाली जाएँ और इनसे संपर्क रखने वाले स्त्री पुरुषों के नाम सार्वजनिक किए जाएँ !आखिर समाज भी तो समझे कि इनकी ऐय्याशियों में सम्मिलित कौन कौन था !
       साधू संतों में साधक चरित्रवान लोग ही होते हैं ये सच है वो आज भी हैं और हमेंशा रहेंगे जिसदिन वे नहीं होगें उस दिन धरती नहीं रहेगी !चरित्रवान स्त्रीपुरुष ही धरती को धारण करते हैं ऐसे लोगों का सदैव सम्मान रहा है और हमेंशा रहेगा ! 
    समस्या दूसरी जगह है जहाँ इस सम्मान का उपयोग सेक्सुअल सुख सुविधाओं उद्योग धंधों आदि के लिए बाबा बनकर किया जाने लगा !इसी साधू संतों के प्रति होने वाले सम्मान को देखकर इसका उपयोग ऐय्यासी करने के लिए किया जाने लगा !समाज का एक मक्कार काम चोर अवारा ऐय्यासों का एक वर्ग बिना कमाए सारे सुख सुविधाओं को भोगने की चाहत से बाबा बनने लगा !ये बाबावर्ग न धर्म कर्म को न जानता है न मानता है और न पालन करता है और न ही कुछ त्याग तपस्या चरित्र आदि से उनका कोई दूर दूर तक लेना देना होता है ये साधू संतों जैसी वेष भूषा तो बना लेता है और खान पान संबंधी बड़े बड़े कठोर नियम संयम की बातें करता है किंतु सम्पत्तिवान लोगों और सुंदरी स्त्रियों को खुश करने के लिए ये एक एक नियम छोड़ता चला जाता है उन सुंदरियों को लगता है कि देखो हम और हमारा घर इन्हें कितना पसंद है हमारे लिए इन्होंने सारे नियम धर्म छोड़ दिए तो मुझे भी इनके लिए कुछ तो कुर्बानी करनी चाहिए और वो परिवार बाबाओं के लिए बिल्कुल अपने हो जाते हैं उनकी बीबी बच्चे भी फिप्टी फिप्टी हो जाते हैं बाबाओं के साथ ! आखिर अपनी सारी आवश्यकता पूर्ति के लिए उन्होंने छोड़े होते हैं नियम संयम और जब मानते वो केवल आपको हैं और खाते केवल आपके यहाँ हैं तो अपनी स्त्री विषयक बासनात्मक इच्छाओं की पूर्ति भी तो अपनों से ही अर्थात आपके यहाँ ही करेंगे फिर हो हल्ला क्यों ? 
     ऐसे लोग ये कहने में फूले नहीं समाते हैं  कि बाबा जी कहीं नहीं जाते हैं केवल हमारे घर आते हैं और किसी का छुआ नहीं खाते हैं केवल हमारा छुआ खाते हैं !
     अरे जिसने किसी के घर न जाने का या किसी का छुआ न खाने का पवित्र व्रत लिया होगा वो आपके घर आने खाने के लिए अपना व्रत क्यों तोड़ देगा !कहीं नहीं जाएगा वो आपके यहाँ क्यों आएगा और खाएगा क्यों ?
    चरित्रवानव्रती संत अपने जैसा आपको भी बनाएगा अपने संस्कार आपको देगा या अपने छोड़कर आपसे कुछ सीखने आएगा ?जैसा आप चाहते हैं वैसा वो बनता क्यों चला जाएगा !किन्तु अपने जैसा बनता देखकर कामी  स्त्रियों पुरुषों का आकर्षण उस पाखंडी की ओर बढ़ता चला जाता है और जहाँ उसका शरीर साथ नहीं देने लायक रहता है तब उसे बलात्कारी सिद्ध कर दिया जाता है !
   चरित्रवान साधूसंतों के नियम धर्म साधना संयम तपस्या छुआछूत पवित्रता एवं एकांतवास से तंग समाज का संपन्न एक वर्ग अपने जैसे साधू संत चाहता था जो उनके घरों में भी घुसें और घरवालों को भी गले लगाएँ सबसे घुलमिल कर रहें !
   ऐसे नियमधर्म विहीन नाचने कूदने वाले बाबा हों या कथा बाचक अपने जिस सेक्सुअल स्वभाव रहन सहन मेल मिलाप के बल पर करोड़ों अरबों पति हो जाते हैं सारी सुख सुविधाएं भोगते हैं उसे छोड़ कैसे सकते हैं!यदि वे अपनी सेक्सुअल हरकतें छोड़ देंगे तो उन्हें पसंद कौन करेगा शिक्षा होती नहीं तपस्या होती नहीं चरित्र होता नहीं त्याग वैराग्य कुछ भी तो नहीं होता है आखिर लोग क्यों जुड़ेंगे ऐसे निखट्टुओं से | इनके कारण तो कुंभ मेले में कंडोम घट जाने लगे !
     भागवत कहने वाले पहले बड़े त्याग वैराग्य से रहा करते थे बड़े विद्वान हुआ करते थे बड़ा साधनात्मक जीवन होता था उनका किन्तु जब से सेक्सुअल जिगोलो लोगों की गन्दी निगाह पड़ी भागवत जैसे पवित्र ग्रन्थ पर तो "विद्यावतां भागवते परीक्षा" का सिद्धांत कहाँ चला गया पता ही नहीं चला अपने को वक्त कहने वाले भागवती जिगोलो केवल अपनी सेक्सुअल हरकतों के कारण ही पसंद किए जा रहे हैं उन्हें वो छोड़ें तो धंधा चौपट हो जाएगा !ऐसे लोगों में जब तक जवानी रहती है तब तक भोगे जाते हैं जैसे ही उम्र ढलने लगती है तो बलात्कार का आरोप लगाकर बंद करवा दिए जाए हैं अन्यथा ये अपनी भी पोल खोल देंगे !जो मन जिस बना से जुडी होती है वो नहीं चाहती है कि उसके बच्चे उन संबंधों के विषय में जानें किंतु ऐय्यास बाबा जब बहु बेटियों पर भी हाथ फेरना शुरू कर देते हैं तब लगाए जाते हैं उन पर बलात्कार के आरोप !वो भी चरित्र भय से नहीं अपितु पोल खुलने के भय से ! 
     हाईटेक आश्रमों के सेक्सुअल वातावरण से आकर्षित स्त्रीपुरुष ऐसे आश्रमों एवं आश्रमों से जुड़े लोगों के प्रति तन मन धन से समर्पित होने लगते हैं और भोगने लगते हैं उन्हीं बाबाओं के साथ मिल जल कर वही ऐय्यासी की सुख सुविधाएँ !अपने पति पत्नियों से असंतुष्ट स्त्री पुरुषों का दूसरों के साथ जोड़ा बनाया करते हैं बड़े बड़े हाईटेक आश्रमों वाले हाईटेक बाबा लोग !इसी सेकुअल कमाई से करोड़ों अरबों का टर्नओवर करने लगते हैं बड़े बड़े हाईटेक बाबा लोग !अन्यथा कमाई करने में यदि इतने ही होशिआर होते तो बाबा बनने की जरूरत क्या थी वैसे ही लगा लेते बड़े बड़े उद्योग व्यापार किसने रोका था उन्हें !किन्तु सेक्सुअल उद्योगके लिए बाबा बनना जरूरी होता है इसमें थोड़ी सेफ्टी बनी रहती है ग्राहक भी सारी सेक्सुअल सुख सुविधाएँ भोगते भी हैं किन्तु उन्हें कोई गिरी निगाह से नहीं देखता !ऐसे क्लाइंट लोग ही ऐसे बाबाओं हाईटेक आश्रमों पर लुटाया करते हैं धन दौलत !बढ़ती जाती हैं अकूत संपत्तियाँ !व्यापारी हतप्रभ होते हैं कि हम तो दिन रात खट्टे हैं हमारी नहीं बढाती हैं इनकी कैसे बढ़ती चली जाती हैं किन्तु सच्चाई ता तभी पता लगाती है जब कोई ईमानदार सरकार निष्ठां पूर्वक अपने कर्तव्य का निर्वाह करती है और न्याय पालिका अपने नाम के अर्थ को साकार करती है तब पता लगता है कि कैसे कैसे गुल खिलाए जाते रहे हैं ऐसे आश्रमों में !जब तक न पकड़े जाएं तब तक बाबा और उनके चेला चली मिलकर मनाते हैं सेक्सुअल महोत्सव !साल माल चलते हैं आयोजन योग शिविर सत्संग शिविर !ऐसे पवित्र नाम पर भीड़ इकट्ठी करने से समाज के मन में ब्यभिचार की भावना नहीं आती है !
     ऐसे बाबा गृहस्थों के घरों में बिल्कुल गृहस्थों की तरह ही मस्ती मारते हैं !लोग भी सोचते है कि इससे हमारी साधू सेवा भी पूरी हो जाएगी  और घर वालों का मन भी लगा रहेगा  |इस  वर्ग की बढ़ती डिमांड ने ही बाबाओं को बर्बाद होने पर मजबूर कर दिया ! इसकी आपूर्ति करने के लिए तैयार होने लगे मजनूँ टाइप के ऐय्यास बाबा लोग !  ऐसी बाबा प्रजाति के लोग   जिन्हें खाने को सबकुछ चाहिए भोगने को सारे सुख चाहिए !गृहस्थियों के घरों में घुस कर अपने बच्चे भी पैदा करते हैं कई बार तो पति पत्नी में फूट डलवाकर अपने आश्रमों में रख लिया करते हैं मौका पड़ता है तो उनके सलवार पहन कर नाच भी लेते हैं |
    महिलाओं को इतना तो पता होना ही चाहिए कि घर गृहस्थी की जिम्मेदारी न उठा पाने के कारण ही घरों से खदेड़े गए भगोड़े लोग बाबा बन रहे हैं फिर उनका पीछा करने की क्या जरूरत !आखिर चरित्रवती महिलाएँ उनसे चिपकने जाती क्यों हैं ऐसे हाईटेक आश्रमों की ऐय्यासी में यदि वे सम्मिलित नहीं हैं तो उनसे जुड़कर इतने दिन बिताए कैसे ? 
      
साधू संन्यासियों के शास्त्रीय नियम धर्म Dr.S.N.Vajpayee
शास्त्रीय साधू संन्यासियों के लिए धन संग्रह एवं सामाजिक प्रपंच अशास्त्रीय हैं जानिए कैसे ?
संन्यासियों या किसी भी प्रकार के महात्माओं को काम क्रोध लोभ मोह मद मात्सर्य आदि विकारों पर नियंत्रण तो रखना ही चाहिए यदि पूर्ण नियंत्रण न रख सके तब भी प्रयास तो पूरा होना ही चाहिए।वैराग्य की दृढ़ता दिखाने के लिए कहा गया कि स्त्री यदि लकड़ी की भी बनी हो तो भी वैराग्य व्रती उसका स्पर्श न करे!see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2013/09/drsnvajpayee.html


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