गुरुवार, 26 जुलाई 2018

विज्ञान का मतलब !

                                              भूमिका -
     विज्ञान का मतलब है कि जो यथार्थ हो, जिसका परीक्षण और प्रयोग किया जा सके तथा जिसके बारे में भविष्यवाणी अर्थात सही पूर्वानुमान लगाना सम्भव हो।जिसके सिद्धान्त और नियम सार्वदेशिक और सार्वकालिक होते हैं तथा इनका विशद विवेचन सम्भव है।भौतिक जगत में कुछ भी घटित हो रहा है, उसका क्रमबद्ध अध्ययन ही विज्ञान है। जिसका  ज्ञान अपनी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा किया जा सके वही तो विज्ञान है !
   इस भौतिक जगत में कुछ ऐसी अत्यन्त सूक्ष्म क्रियाएँ हैं, जिनका ज्ञान हम सीधे अपनी इन्द्रियों से नहीं कर सकते। इसके हमें अत्यन्त सूक्ष्मग्राही यन्त्रों का उपयोग करना पड़ सकता है।आतंरिक या प्राकृतिक ऊर्जा संबंधी कई ऐसे अनसुलझे रहस्य अभी तक बने हुए हैं जिन्हें सुलझाना केवल आतंरिक अनुभवों से ही संभव है !
   प्राकृतिक घटनाओं का अध्ययन करना तथा उनमें आपस में सम्बन्ध ज्ञात करना विज्ञान का दायित्व है !आधुनिक विज्ञान से संबंधित बहुत बड़ा वर्ग आज ऐसे संकीर्ण विचारों का शिकार हो चुका है जो आतंरिक ऊर्जा एवं प्राकृतिक ऊर्जा से संबंधित अनुभवों के क्षेत्र में न खुद कुछ कर पा रहा है और न किसी दूसरे के अनुसंधानों से प्राप्त अनुभवों को सह पा  रहा है !केवल अपने ऊपर वैज्ञानिक होने का ठप्पा लगाकर विज्ञान के विकास की राह में रोड़ा बनकर ताला लगाए खड़ा हुआ है !न हम कुछ करेंगे न दूसरों को करने देंगे !थॉमस हॉब्स के अनुसार:- "आधुनिक वैज्ञानिकों को जो बातें समझ में नहीं आती हैं वो उन्हें सही नहीं मानते !" किंतु ये पद्धति ठीक नहीं है ऐसी भावना विज्ञान के विकास में अवरोध उत्पन्न करती है और भावी पीढ़ियों को प्राप्त हो सकने लायक विकसित विज्ञान के अधिकार से बंचित करती हैं !
      आत्मा मन इंद्रियों आदि से प्राप्त अदृश्य अनुभवों को विज्ञान की श्रेणी से बंचित किया जा रहा है !शरीर की आतंरिक ऊर्जा का ब्रह्मांड से सीधा संबंध हैं जो चीजें ब्रह्मांड में घटित हो रही होती हैं वही जीवों के आतंरिक जगत में घटित हो रही होती हैं !प्रकृति में भूकंप आने से पहले बहुत सारे जीवों के स्वभाव चिंतन आहार व्यवहार आदि बदल जाते हैं जिनका अनुभव बहुत लोगों ने किया है जो पर्याप्त नहीं हैं ये माना जा सकता है किंतु वो संपूर्ण रूप से गलत ही हैं ये भी तो बिना किसी अनुसंधान के नहीं कहा जा सकता है !सच्चाई ये है कि जीवों के व्यवहार से प्राप्त अनुभव यंत्रों की अपेक्षा अधिक सटीक होते हैं यंत्रों में तो विकार आने की या बनने बिगड़ने की संभावनाएँ बनी रहती हैं किंतु जीवों के व्यवहार में ऐसी संभावना ही नहीं है कोयल बसंत में कूकती है तो बसंत में ही कूकती हैं !ऐसे अनेकों पशु पक्षियों के अपने अपने अलग अलग विचार व्यवहार आदि हैं !
      इसी प्रकार से प्रकृति में घटित होने वाली अच्छी बुरी घटनाओं के चिन्ह प्राकृतिक वातावरण में उभरने लगते हैं सूर्योदय होने पर जैसे कमल खिलता है तैसे ही प्रकृति में और भी बहुत सारे प्रतीक हो सकते हैं जिनका अनुभव करके संभावित प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान किया जा सकता है !
      ऐसे ही प्राकृतिक प्रतीकों का अनुभव करके प्राचीन काल में ऋषियों ने शकुनशास्त्र का निर्माण किया था जिस पर आधुनिक परिप्रेक्ष्य में अनुसंधान की आवश्यकता थी किंतु अनुसंधान करने लिए कुछ करना पड़ता वैसे भी बिना कुछ किए काम बन जाए तो क्यों कुछ किया जाए !इस सिद्धांत के आधार पर प्राचीन वैज्ञानिक मान्यताओं या शकुन शास्त्र जैसी गंभीर विद्याओं को ही गलत अंधविश्वास बता दिया गया न रहेगा बाँस और न बजेगी बाँसुरी !प्राचीन विज्ञान भावना के साथ इतना अन्याय क्यों ?  
       कृषि क्षेत्र में वर्षा की विशेष आवश्यकता होती है कब कौन फसल बोना है किस वर्ष खाली जमीन में क्या बोना है और ऊँची जमीन में क्या बोना है !वर्षा की संभावनाओं के अनुसार ही अग्रिम फसल के अनुशार योजना बनाकर किसान अपनी फसल और पशुओं के चारे को संरक्षित करते हैं !उसके लिए उन्हें वर्षा से संबंधित दीर्घावधि के अनुमानों की आवश्यकता होती है !पहले किसान शकुन शास्त्र के द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर लिया करते थे इसीलिए तब उन्हें आत्म हत्याएँ नहीं करनी पड़ती थीं !आधुनिक वैज्ञानिक विचारों में  शकुन शास्त्र को अंधविश्वास  बता दिया गया और उन्हें गलत सिद्ध करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी गई !किसान भी उनके बहकावे में आ गए अब वो प्राचीन पद्धतियों को भुला बैठे और आधुनिक मौसम विज्ञान उनकी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पा रहा है अब उन्हें आत्महत्या करनी पड़ रही है !जिन्होंने शकुनशास्त्र को गलत बताया उनकी ये भी तो जिम्मेदारी थी कि वे किसानों की अपेक्षाओं पर खरा उतरते !यदि प्रतिवर्ष क्रमिक सुधार ही हो रहा होता तो भी ठीक था ये तो मौसम पूर्वानुमानों की दृष्टि से झूठ बोलने की आदत सी पड़ती जा रही है जो तीर तुक्के सही फिट हो जाते हैं उसे तो भविष्यवाणी सिद्ध कर दी जाती है और जितने गलत हो जाते हैं उन्हें ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के मत्थे मढ़कर खुद को बचा लिया जाता है !गई है जो

 आवश्यकता है और वो बातें सही दिशा में  ये भी तो नहीं कहा जा सकता है आवश्यकता है

बातें करने वालों को




    

बहुत सारी समय के आधीन होती है सूर्य और चंद्र की गति युति आदि तथा  सूर्य और चंद्र की गति युति आदि के आधीन चलता रहता है मौसम !वैसे तो ये सब कुछ अपने अपने निश्चित सिद्धांत और निर्धारित नियमों के आधार पर जब तक चलता है तब तक सारा मौसम अच्छा चला करता है !इनकी गति युति आदि में समय समय पर स्वाभाविक बदलाव भी होते रहते हैं कुछ अच्छे तो कुछ बुरे भी होते हैं!अच्छे तो अच्छे होते ही हैं जबकि प्रकृति में जो बुरे बदलाव होते हैं उनसे प्रकृति पर बुरा असर पड़ने लगता है उसी से आँधी तूफान बाढ़ भूकंप  आदि समस्त प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ घटित होते दिखाई जाती है !इस प्रकार से प्राकृतिक आपदाओं का कारण सूर्य और चंद्र ही तो हैं !सूर्य और चंद्र का संचार कब कैसा रहेगा उसका पूर्वानुमान ग्रह गणित के द्वारा लगाया जा सकता है !
इसीलिए प्रकृति में घटित होने वाली सभी  घटनाओं का समय निश्चित होता है!हैं से घटित होंगी ये अनुशार प्रत्येक वर्ष अलग अलग निर्धारित होता है वैसा ही होते चला जाता है ये सब गणित के आधीन है !इस रहस्य समझने वाले आधुनिक मौसम एवं भूकंपविजान  के मालिक मसीहा लोग पूर्वानुमानों के नाम पर पहले तो निराधार ऊटपटाँग मनगढंत भविष्यवाणियाँ किया करते हैं !उनमें अल्पावधि वाले कुछ तीर तुक्के सही भी लग जाते हैं जबकि अधिकाँश गलत निकल जाते हैं !ऐसी परिस्थिति में अपना आस्तित्व बचाए रखने के लिए प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानुमान कथन से कमाई करने वाले लोग सही तीर तुक्कों को भविष्यवाणी के रूप में प्रचारित प्रसारित करते हैं और गलत निकल जाने वालों को ग्लोबलवार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन के मत्थे मढ़ कर मनगढंत मौसमी पूर्वानुमानों के आस्तित्व को बचाए रखते हैं जबकि सृष्टि से आज तक न जल बदला न वायु तो जलवायु परिवर्तन कैसा !फिर भी इस धंधे से जुड़े लोगों की रोजी रोटी इसीप्रकार से बिना किसी विशेष प्रयास के ही चला करती है !जबकि प्राचीन प्रकृति विज्ञान की दृष्टि में तो ये सबकुछ कल्पना प्रसूत है !इन विषयों को मैंने अपनी 'प्रकृतिविज्ञान'  ग्रंथ में लिखा है !
     व्यक्तिगत जीवन तीन बातों पर आश्रित होता है समय शब्द और संसाधन !समय जब अच्छा और अपने अनुकूल होता है तब जीवन में सब कुछ अच्छा अच्छा होता चला जाता है और समय ही जब प्रतिकूल होता है तब सब कुछ बिगड़ता चला जाता है इसलिए जीवन में समय का बहुत महत्त्व है !जब तक जिसका समय ख़राब रहता है तब तक वो अस्वस्थ रहता है एवं अनेकों प्रकार की शारीरिक मानसिक आदि समस्याओं से जूझना पड़ता है तब तक ऐसे रोगियों पर चिकित्सा और औषधि प्रयोग का भी कोई विशेष असर नहीं होता है और समय ठीक होते ही सब कुछ स्वतः सुधरने लगता है !

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