गुरुवार, 12 जुलाई 2018

do shabd !

                                              भूमिका -
       संबंध विश्वास से चलते हैं और वर्तमान समाज में विश्वास का संकट दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है परिवार बिखर रहे हैं समाज टूट रहा है मित्रों साझीदारों सहकर्मियों पड़ोसियों पर से विश्वास उठता जा रहा है स्त्री-पुरुषों में असहनशीलता इतनी अधिक बढ़ती जा रही है कि पति -पत्नी,माँ - बेटा,भाई - बहन ,भाई - भाई जैसे अत्यंत निकटता के संबंध भी टूटते चले जा रहे हैं !इतनी असहनशीलता से तो पशु भी परस्पर व्यवहार नहीं करते हैं वर्तमान समय में व्यक्ति का मानसिक जगत बिल्कुल अकेला पड़ता जा रहा है ! इसीलिए हत्या या आत्महत्या जैसे कठोरतम कदम लोग खेल खेल में उठा ले रहे हैं लोग!विवाह से तलाक तक की कहानी साझेदारी के व्यापार जैसी हो गई है निभे तो निभे अन्यथा तलाक !ये कैसे संबंध जिन्हें केवल परिस्थितियों के आधीन बनाकर छोड़ दिया जाए !स्थिति यदि ऐसी ही  रही तो वैज्ञानिक अनुसंधान अत्यंत विकसित होकर भी क्या कर लेंगे और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत संपन्न होने के बाद भी मानसिक दृष्टि से खोखले होते अवसाद सम्पन्न समाज की सुरक्षा के विषय में कौन सोचेगा !इसके लिए अतिशीघ्र प्रयास किए जाने आवश्यक हैं इससे अधिक विलंब समाज के लिए अत्यंत घातक होगा !
      वस्तुतः विज्ञान की धारा तो हमेंशा से बहती चली आ रही है और वैज्ञानिक हमेंशा होते रहे हैं उन्होंने वास्तव में बहुत बड़े बड़े अनुसंधान भी किए हैं !अत्याधुनिक मनोवैज्ञानिक से अभिप्राय  आत्मा मन शरीर इंद्रियों आदि के आस्तित्व को अंग्रेजी भाषा में नकार देने वाली प्रजाति से है जो आतंरिकविज्ञान के विषय में न जानने के कारण उसे न मानने का दंभ भरने वाले आधारविहीन अज्ञानी लोगों की मनोविज्ञान से संबंधित मनगढंत किस्से कहानियों के द्वारा असहनशीलता एवं अवसाद को नियंत्रित कर पाना काफी कठिन होगा ! छोटी छोटी बीमारियों का इलाज करने से पूर्व एक्सरे अल्ट्रासाउंड एवं अन्य जाँच रिपोर्टें देखे बिना चिकित्सा न प्रारंभ कर पाने वाले लोगों मनोचिकित्सा का मतलब क्या है ये तो वही बता सकते होंगे !मन की न जाँच के साधन और न ही कोई औषधी और न कोई चिकित्सा प्रक्रिया ही फिर कैसे संभव है मनोचिकित्सा !
     ऐसी परिस्थितियों में मानसिक तनावों से बचाने की दृष्टि से 'समयविज्ञान' और 'वर्णविज्ञान' दोनों अत्यंत प्रभावकारी पद्धतियाँ हैं जिनमें 'वर्णविज्ञान'  हमारी ये किताब है एवं 'समयविज्ञान' नाम से हमारी दूसरी किताब भी है !इनके द्वारा अनुसंधान पूर्वक विश्वास को बचाया और बढ़ाया जा सकता है !संबंधों को न केवल बिगड़ने से रोका जा सकता है अपितु बिगड़े हुए संबंधों को सुधारने के मार्ग खोजे जा सकते हैं और कौन संबंध किसके साथ किस प्रकार का बात व्यवहार करने से बन या बिगड़ सकते हैं इसके लिए भी उन्हें सावधान किया जा सकता है !
    वस्तुतः संबंधों का संकट बहुत तेजी से उभरा हुआ है !परिवार से दो मित्रों या सम्बन्धियों में किसी एक का समय बहुत अच्छा चल रहा हो और दूसरे का बहुत  बुरा तो उनकी शारीरिक मानसिक आर्थिक सामाजिक आदि परिस्थितियाँ एक दूसरे से लगभग विपरीत होती चली जा रही होती हैं !अच्छे समय वाले के साथ अच्छे सहयोगी सक्षम एवं सहृदय लोग मदद देने की भावना से जुड़ते हैं !जबकि बुरे समय से पीड़ित व्यक्ति के साथ सब कुछ उल्टा ही हो रहा होता है यहाँ तक कि उसके अपने मन में जो बिचार आते हैं वे भी अपने विरुद्ध ही होते हैं!घर परिवार के लोग मित्र नाते रिस्तेदार आदि अत्यंत पुराने सहयोगी रहे लोग भी अपने समय के प्रभाव से अपने प्रति बुरे बिचार पाल कर बुरा व्यवहार करने लगते हैं या फिर अपने को अलग कर लेते हैं !समय का प्रवाह इतना विकराल होता है कि यदि उनमें से कुछ लोग अच्छी भावना से यदि मदद भी करना चाहेंगे तो वे खुद ऐसी समस्याओं में उलझते चले जाएँगे कि उनके लिए की जाने वाली मदद का लाभ उस बुरे समय से पीड़ित व्यक्ति को नहीं मिल पाएगा ! जैसे श्री राम जी का समय बुरा आया तो उन्हें बनवास मिला सीता जी उनकी मदद करने गईं तो सीता हरण हो गया उनकी मदद करने जटायु आया तो जटायु मरण हो गया किंतु इन सभी बातों से श्री राम का संकट घटा नहीं अपितु बढ़ता चला गया ये लोग मदद करने न आए होते तो श्री राम शांति पूर्वक  अपना समय बिता लेते ये युद्ध आदि न लड़ने पड़ते !इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि अच्छे समय वाले लोगों के साथ अच्छे समय वाले लोग खड़े होते हैं और बुरे समय वाले लोगों की मदद में खड़े ही बुरे समय से पीड़ित लोग होते हैं वो फँसते तो अपने समय के कारण हैं किंतु दोष किसी दूसरे का दिखाई दे रहा होता है !
       इसी प्रकार से किसी व्यक्ति के नाम का पहला अक्षर यदि अत्यंत कमजोर प्रजाति का होता है उसका भी जब तक अपना समय अच्छा चल रहा होता है तब तक वो भी नाम प्रभाव के विरुद्ध बड़े बड़े सुदृढ़ निर्णय लेते और उनमें सफल होते देखा जाता है इसीप्रकार से विपरीत परिस्थितियों में विपरीत भी होते देखा जाता है !जबकि सामान्य परिस्थितियों में नामाक्षर का प्रभाव विशेष अधिक होते देखा जाता है !
      जीवन में तीन प्रकार की परिस्थितियाँ मुख्यरूप से पैदा होती हैं !पहला हम जीवन में कब क्या कुछ कितना कर पाएँगे और हमारी परिस्थितियाँ कब किस प्रकार से कितनी बनेंगी या बिगड़ेंगी !ये सब हमारे अपने समय के आधीन है !इसकी विस्तृत चर्चा मैंने अपने 'समयविज्ञान' नामक ग्रंथ में की है !जीवन में हमारे साथ किस मित्र नाते रिस्तेदार ,परिवार या व्यापार  आदि से जुड़े लोगों में से किसका संबंध कब तक किस प्रकार निभाया जा सकेगा !इसका पूर्वानुमान शब्द अर्थात हमारे और उसके नाम के पहले अक्षर से लगता है !समय और शब्दों के अलावा संसाधन भी बहुत सहायक होते हैं !
     1.  समय -
      जीवन में समय की सबसे बड़ी भूमिका होती है जिस समय जिसका जन्म होता है उसे समयविज्ञान की भाषा में क्षणबिंदु कहते हैं !इस क्षणबिंदु में उस व्यक्ति के जीवन में घटित होने वाली अच्छी बुरी सभी प्रकार की बड़ी घटनाएँ सूक्ष्म  रूप में विद्यमान होती हैं इसलिए किसी के क्षण विन्दु का अनुसंधान करके उसके जीवन से संबंधित सभी क्षेत्रों के ह्रास और विस्तार का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !किसी के जीवन के किस वर्ष में क्या घटित होगा इसका पूर्वानुमान बहुत पहले लगाया जा सकता है !अपनी पुस्तक 'समयविज्ञान' में मैंने इसे विस्तार पूर्वक लिखा है !
  2. शब्द - वर्णों का सार्थकसमूह ही तो शब्द कहलाता है ! शब्दों में प्रयुक्त पहला अक्षर उस शब्द का स्वभाव निश्चित करता है !शब्द तो बहुत प्रकार के होते हैं किंतु किसी नाम विशेष में प्रयुक्त होने वाले शब्द अपने पहले अक्षर के आधार पर उस नाम के स्वभाव को निश्चित करते हैं और वो नाम उस व्यक्ति के स्वभाव को निश्चित करता है !इस प्रकार से वो नाम उस व्यक्ति का समस्त व्यक्तित्व स्वभाव आदि सबकुछ होता है उस नामाग्र वर्ण के स्वभाव के आधार पर ही किसी व्यक्ति के जीवन में लोगों का मिलना बिछुड़ना लगा रहता है !क्योंकि लोगों को न अपने नाम का स्वभाव पता होता है और न ही दूसरे का !इसलिए जानकारी के अभाव में हर किसी को किसी का मित्र या रिस्तेदार बनाने के लिए उससे मिलकर बात व्यवहार करना ही पड़ता है जिसका व्यवहार अच्छा लगा वो सही जिसका वर्ताव अच्छा नहीं लगा उसे हम गलत मानकर उससे संबंध बिगाड़ लेते हैं !संबंध बनाकर चलना तो मनुष्य की मज़बूरी है किंतु किससे संबंध निभ पाएँगे और किससे नहीं निभ पाएँगे इसकी जाँच करने का एकमात्र रास्ता है उसके साथ बात व्यवहार करके उसके स्वभाव का परीक्षण करना किंतु इससे एक नुकसान होता है कि यदि निभ गया तो ठीक और यदि नहीं निभा तो हमारा एक विरोधी तैयार हो जाता है !जबकि वर्ण विज्ञान की दृष्टि से किन्हीं दो या दो से अधिक नाम वाले व्यक्तियों के विषय में बिना किसी परीक्षण या बात व्यवहार किए हुए भी इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है कि इससे हमारे संबंध निभ पाएँगे या नहीं !
   3. संसाधन-
     संपत्ति सामाजिक बात व्यवहार ,पैतृक व्यापार पुराने संपर्क आदि विपरीत परिस्थितियों में बहुत मददगार होते हैं !कई बार समय साथ न दे रहा हो और अपनों का साथ छूटता जा रहा हो ऐसे में संसाधनों के सहारे विपरीत समय बिताने में बड़ी मदद मिल जाती है !
    अतएव समय और शब्द दोनों विषयों पर हमारे द्वारा किए गए अनुसंधान लाभप्रद हैं जिसमें वर्णविज्ञान किसी के साथ हमारे संबंध कैसे चल सकते हैं इसका पूर्वानुमान लगाने में हमारी बड़ी मदद करता है !

                                                                                                                   - डॉ.शेष नारायण वाजपेयी  

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