आप सभी भाई बहनों से चाहिए हमें भी ये सात बचन !
आप बड़े छोटे किसी भी पद पर हैं या बिना पद के हैं आप स्त्री पुरुष हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आदि कुछ भी हैं यदि आप वैचारी दृष्टि से अभी तक जीवित हैं और वे देश एवं समाज के हित में एक दूसरे से अनुभव लेने और देने के लिए निरभिमान भाव से तैयार हैं तो आप की मदद चाहिए हमें -
'मन की बात' कार्यक्रम में प्रधानमंत्री जी कई लोकोपयोगी विषय उठाते हैं इसके लिए उन्हें बहुत बहुत साधुवाद ! इन्हीं विषयों के साथ कुछ बातें मेरे मन की भी जो मैं आप से निवेदन करने जा रहा हूँ !
आप बड़े छोटे किसी भी पद पर हैं या बिना पद के हैं आप स्त्री पुरुष हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आदि कुछ भी हैं यदि आप वैचारी दृष्टि से अभी तक जीवित हैं और वे देश एवं समाज के हित में एक दूसरे से अनुभव लेने और देने के लिए निरभिमान भाव से तैयार हैं तो आप की मदद चाहिए हमें -
'मन की बात' कार्यक्रम में प्रधानमंत्री जी कई लोकोपयोगी विषय उठाते हैं इसके लिए उन्हें बहुत बहुत साधुवाद ! इन्हीं विषयों के साथ कुछ बातें मेरे मन की भी जो मैं आप से निवेदन करने जा रहा हूँ !
श्रीमान जी !स्वच्छता बहुत आवश्यक है होनी भी चाहिए स्वच्छता से मन प्रसन्न शरीर स्वस्थ और लक्ष्मी की कृपा रहती है । आपके पवित्र प्रयासों से समाज में स्वच्छता के संस्कार दिखाई देने लगें हैं और जहाँ ऐसा नहीं है वहाँ स्वच्छता विषयक चर्चा तो होने ही लगी है !जिसे सकारात्मक माना जाना चाहिए !
पहला बचन -
क्या पवित्रता अर्थात मानसिक स्वच्छता पर भी संस्कार सृजन जैसा भी कोई अभियान चलाया जाना चाहिए क्या ? आपसे मेरा निजी निवेदन है कि आज सौ सौ रूपए या छोटी छोटी बातों के लिए हत्याएँ एवं छोटी छोटी बच्चियों से बलात्कार हो रहे हैं ये कानून व्यवस्था की कमजोरी तो है ही किंतु कानून व्यवस्था अपराधों के सोचने पर लगाम कैसे लगा सकती है जबकि समस्या प्रारंभ वहीँ से होती है एक आदमी किसी अपराध के विषय में पहले सोचता है फिर उसे करने के लिए आवश्यक संसाधन जुटाता है या योजना बनाता है आवश्यक संसाधन जुटाता है या अपराध के अनुकूल परिस्थिति पैदा करता है या उसकी प्रतीक्षा करता है तब तक उसे रोकने वाला कोई नहीं होता है । जब वो अपराध को अंजाम दे देता है उसके बाद शुरू होता है कानून का काम ! किंतु कानून कार्यवाही न करे तो समाज या पीड़ित पक्ष परेशान और यदि कानून कार्यवाही करे तो अपराधी से संबंधित पक्ष या उसके परिजन परेशान ! जबकि नैतिकता ये कहती है कि दंड केवल उसे मिले जो अपराधी हो निर्दोष को सजा न मिले किंतु वर्तमान केवल कानूनव्यवस्था के परिपालन में सर्वाधिक सजा अपराधी के परिजनों को मिलती है जिनमें अक्सर उनका कोई दोष नहीं होता है कुछ आर्थिक अपराधों में भले वे थोड़ा बहुत सम्मिलित भी हों इसीप्रकार से कुछ रंजिश संबंधी हत्याओं में आंशिक भागीदारी हो सकती है उनकी यद्यपि ये आवश्यक भी नहीं है कि ऐसा हो ही किंतु बलात्कार जैसे अपराधों में तो वो बेचारे बिलकुल ही नहीं सम्मिलित होते हैं उन बेचारों की क्या रूचि ! बल्कि ऐसे अपराधों से अपराधियों के परिजन भी घृणा करते हैं वो उससे लड़ा करते हैं किंतु यदि वो नहीं मानता है तो वो बेचारे क्या करें ! किंतु कानूनी कार्यवाही शुरू होते ही अपराधी के उन्हीं परिवारी जनों को ही सहनी पड़ती हैं सारी यातनाएँ जिनका विरोध वो लोग करते रहे होते हैं। स्वजनों से स्नेह करना अपराध तो नहीं हैं ये मोह
सामाजिक आर्थिक ही लड़ाई किया करते हैं ध होते हैं जिन अपराधों से तो परिजनों का जो जिसका कानून की बदनामी और
सबसे अधिक कम कर दी जा रही हैं यदि समय रहते बढ़ती ऐसी असहिष्णुता को नियंत्रित नहीं किया गया तो इसके परिणाम और भी भयंकर हो सकते हैं इन पर अविलंब लगाम लगाए जाने की जरूरत है जो संस्कारों के माध्यम से ही संभव हैं आज अधिकाँश साधू संत ,कथावाचक और शिक्षकों का भी ध्यान संस्कारों के सृजन से भटक चुका है इसलिए समाज की इस आध्यात्मिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए सरकार की ओर से ही सही कुछ तो प्रयास होने चाहिए !
पहला बचन -
क्या पवित्रता अर्थात मानसिक स्वच्छता पर भी संस्कार सृजन जैसा भी कोई अभियान चलाया जाना चाहिए क्या ? आपसे मेरा निजी निवेदन है कि आज सौ सौ रूपए या छोटी छोटी बातों के लिए हत्याएँ एवं छोटी छोटी बच्चियों से बलात्कार हो रहे हैं ये कानून व्यवस्था की कमजोरी तो है ही किंतु कानून व्यवस्था अपराधों के सोचने पर लगाम कैसे लगा सकती है जबकि समस्या प्रारंभ वहीँ से होती है एक आदमी किसी अपराध के विषय में पहले सोचता है फिर उसे करने के लिए आवश्यक संसाधन जुटाता है या योजना बनाता है आवश्यक संसाधन जुटाता है या अपराध के अनुकूल परिस्थिति पैदा करता है या उसकी प्रतीक्षा करता है तब तक उसे रोकने वाला कोई नहीं होता है । जब वो अपराध को अंजाम दे देता है उसके बाद शुरू होता है कानून का काम ! किंतु कानून कार्यवाही न करे तो समाज या पीड़ित पक्ष परेशान और यदि कानून कार्यवाही करे तो अपराधी से संबंधित पक्ष या उसके परिजन परेशान ! जबकि नैतिकता ये कहती है कि दंड केवल उसे मिले जो अपराधी हो निर्दोष को सजा न मिले किंतु वर्तमान केवल कानूनव्यवस्था के परिपालन में सर्वाधिक सजा अपराधी के परिजनों को मिलती है जिनमें अक्सर उनका कोई दोष नहीं होता है कुछ आर्थिक अपराधों में भले वे थोड़ा बहुत सम्मिलित भी हों इसीप्रकार से कुछ रंजिश संबंधी हत्याओं में आंशिक भागीदारी हो सकती है उनकी यद्यपि ये आवश्यक भी नहीं है कि ऐसा हो ही किंतु बलात्कार जैसे अपराधों में तो वो बेचारे बिलकुल ही नहीं सम्मिलित होते हैं उन बेचारों की क्या रूचि ! बल्कि ऐसे अपराधों से अपराधियों के परिजन भी घृणा करते हैं वो उससे लड़ा करते हैं किंतु यदि वो नहीं मानता है तो वो बेचारे क्या करें ! किंतु कानूनी कार्यवाही शुरू होते ही अपराधी के उन्हीं परिवारी जनों को ही सहनी पड़ती हैं सारी यातनाएँ जिनका विरोध वो लोग करते रहे होते हैं। स्वजनों से स्नेह करना अपराध तो नहीं हैं ये मोह
सामाजिक आर्थिक ही लड़ाई किया करते हैं ध होते हैं जिन अपराधों से तो परिजनों का जो जिसका कानून की बदनामी और
सबसे अधिक कम कर दी जा रही हैं यदि समय रहते बढ़ती ऐसी असहिष्णुता को नियंत्रित नहीं किया गया तो इसके परिणाम और भी भयंकर हो सकते हैं इन पर अविलंब लगाम लगाए जाने की जरूरत है जो संस्कारों के माध्यम से ही संभव हैं आज अधिकाँश साधू संत ,कथावाचक और शिक्षकों का भी ध्यान संस्कारों के सृजन से भटक चुका है इसलिए समाज की इस आध्यात्मिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए सरकार की ओर से ही सही कुछ तो प्रयास होने चाहिए !
श्रीमान जी !दूसरी बात दीपावली से सम्बंधित है !महोदय !ये सर्व विदित है कि दूध और दूध से बनी वस्तुएँ मिठाइयाँ आदि लम्बे समय तक स्टोर करके नहीं रखी जा सकती हैं दूसरी बात प्रकृति की ओर से ये चीजें प्राणियों की आवश्यकता के अनुशार ही उपलब्ध होती हैं बहुत अधिक नहीं हो पाती हैं ।
दीपावली आदि त्योहारों पर उपहार बाँटने और मिठाई खाने खिलाने की अपनी पुरानी परम्परा है किंतु ये व्यवस्था दिनोंदिन विकराल रूप लेती जा रही है इधर कुछ दशकों वर्षों से दिनों दिन बड़े बड़े धनी लोग अपने समकक्ष या अपने से बड़े व्यापारियों अफसरों तथा और भी बड्डे बड़े लोगों को मिठाई बाँटते हैं जो एक एक आदमी दो सौ पाँच सौ हजार आदि डिब्बे बाँटने लगे हैं इन्हें स्वाभाविक है पैसे की चिंता नहीं होती है किसी भी भाव मिले अच्छा मिले इनकी बुकिंग पहले ही हो जाती है और जिसको जो देने जाएगा लगभग ऐसा सभी बड़े बड़े लोग करते हैं व्यापारी तो करते हैं ! इस प्रक्रिया से लगभग सभी बड़े लोगों के यहाँ सौ दो सौ पाँच सौ आदि डिब्बे इकट्ठा हो जाते हैं कुल मिलकर प्रकृति के द्वारा उपलब्ध कराया गया सारा उत्तम मीठा पैसे के बल पर बड़े लोग समेट कर बैठ जाते हैं । ऐसे अधिकांश लोगों को मीठा खाना डॉक्टरों ने रोक रखा होता है !कुल मिलाकर त्योहारी व्यस्तता में ये सर्वोत्तम मिठाई बड़े लोगों के घरों में कैद रहती है कुछ ख़राब हो चुकी होती है कुछ हो जाती है किंतु वो उन लोगों तक तो कम ही पहुँच पाती है जिन्हें वास्तव में आवश्यकता है या यूँ कह लें कि जिन्हें खाने के लिए डॉक्टरों ने मना नहीं किया है अर्थात वो खा सकते हैं किंतु जब वो माध्यम वर्गी या गरीब लोग बाजार में पहुँचते हैं तो साल माल मिठाई बेचने वाले दूकानदार त्योहारों पर सब्जी या कुछ और तो नहीं बेचने लगेंगे अच्छा मावा वाली मिठाइयों के महँगे महँगे आर्डर पूरे करते करते वो खाली हो चुके होते हैं अब त्योहारों पर अपनी पहचान बनाए और बचाए रखने के लिए उन्हें जो जुगाड़ करने होते हैं उनमें सिंथेटिक मावा जैसी नुक्सान देह चीजों का भरपूर उपयोग होते देखा जाता है कितनी भी जाँच हो किंतु सिंथेटिक मावा की बनी मिठाइयाँ पहुँचती घर घर हैं कहीं कुछ कम और कहीं कुछ ज्यादा !जिसे खाकर लोग उसी अनुपात में बीमार भी होते हैं । कुल मिलाकर जो वर्ग मीठा खा सकता है उसे अच्छा मीठा मिलने नहीं दिया जाता और जिन्हें मीठा खाना मना होता है उनके यहाँ प्रकृति के द्वारा उपलब्ध कराया गया सर्वोत्तम मीठा सड़ रहा होता है ।
धनी लोगों को ईश्वर सद्बुद्धि दे और वो दिवाली बाँटने के नाम पर दिवाली काली करना बंद करें साथ साथ गरीबों और माध्यम वर्गीय लोगों के हिस्से का मीठा उन तक पहुँचने दें अन्यथा खाद्य सामग्री का खिलवाड़ करने वालों से प्रकृति रुष्ट हो सकती है जिसके उन्हें भुगतने पड़ सकते हैं भयंकर परिणाम !हो न हो पिछले जन्मों में पैसों के बल पर मीठे की ऐसी ही छीछालेदर की गई हो इसी कारण इस जन्म में हुई है सुगर और खाने को बंद करना पड़ा है मीठा !
तीसरी बात :-सांसदों विधायकों एवं सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ने बढ़ाने की -देश की जनता को यदि जीवन नहीं दिया जा सकता तो जहर ही दे दिया जाए किंतु उन्हें जलील तो न किया जाए !see more....
चौथी बात -
सरकारी आफिसों से AC हटाओ ,बिजली बचाओ ,गाँव गरीबों के यहाँ भी तो बिजली पहुँचाओ !अरे नेताओ !आजादी अकेले मत भोगिए !!
सरकारी लोगों ! हमसे कहते हो कि " CFL जलाओ बिजली बचाओ !"हम उनसे कहते हैं कि सरकारी आफिसों से AC हटाओ और गाँव गरीबों के यहाँ भी बिजली पहुँचाओ !उनके यहाँ भी जलाओ बत्ती और चलाओ पंखा !अब देश की आजादी केवल मुट्ठी भर लोगों को नहीं भोगने दी जाएगी !
अरे देश के शासको ! सरकारी रोड लाइटें अक्सर दिन में भी जलती रहती हैं !सरकारी आफिसों में सबसे ज्यादा फुँकती है ब्यर्थ में बिजली !वो बचाने का प्रयास क्यों नहीं किया जा रहा है see more....http://sahjchintan.blogspot.in/2015/10/ac.html
पाँचवीं बात -
आज ज्योतिषी लोग भी भयंकर अन्धविश्वास फैला रहे हैं !रेप रोकने के लिए झोलाछाप ज्योतिषियों एवं जादूटोना वालों पर भी लगाया जाए कठोर अंकुश !जादू टोना करने वाले, अंध विश्वास फैलाने वाले एवं अशास्त्रीय ज्योतिषफलादेश और उपाय करने करवाने के नाम पर भी हो रहे हैं तरह तरह के गुप्त अपराध !उन्हें रोकने का भी उपाय सोचा जाए !see more... http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/2015/10/blog-post_25.html
छठवीं बात -
सरकारी लोगों ! हमसे कहते हो कि " CFL जलाओ बिजली बचाओ !"हम उनसे कहते हैं कि सरकारी आफिसों से AC हटाओ और गाँव गरीबों के यहाँ भी बिजली पहुँचाओ !उनके यहाँ भी जलाओ बत्ती और चलाओ पंखा !अब देश की आजादी केवल मुट्ठी भर लोगों को नहीं भोगने दी जाएगी !
अरे देश के शासको ! सरकारी रोड लाइटें अक्सर दिन में भी जलती रहती हैं !सरकारी आफिसों में सबसे ज्यादा फुँकती है ब्यर्थ में बिजली !वो बचाने का प्रयास क्यों नहीं किया जा रहा है see more....http://sahjchintan.blogspot.in/2015/10/ac.html
पाँचवीं बात -
आज ज्योतिषी लोग भी भयंकर अन्धविश्वास फैला रहे हैं !रेप रोकने के लिए झोलाछाप ज्योतिषियों एवं जादूटोना वालों पर भी लगाया जाए कठोर अंकुश !जादू टोना करने वाले, अंध विश्वास फैलाने वाले एवं अशास्त्रीय ज्योतिषफलादेश और उपाय करने करवाने के नाम पर भी हो रहे हैं तरह तरह के गुप्त अपराध !उन्हें रोकने का भी उपाय सोचा जाए !see more... http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/2015/10/blog-post_25.html
छठवीं बात -
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