गुरुवार, 5 नवंबर 2015

अपराधियों को दंड मिलने पर उनके निरपराध परिजनों को जीना पड़ता है अपराधियों से अधिक यातनापूर्ण जीवन !

  अपराधियों को दंड न दिया जाए तो किया क्या जाए !
   यदि दंड दिया जाए तो उनके परिवार वालों का आखिर दोष क्या है जिसकी यातना अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें भोगनी पड़ती है जिनका कोई दोष ही नहीं होता है !फिल्मों का आपराधिक असर फैशन के नाम पर विदेशी कुसंस्कारों का दुष्प्रभाव !सेक्स एजुकेशन जैसी अदूरदर्शी सरकारी नीतियाँ, युवाओं की स्वच्छंद जीवन शैली !उन्मुक्त आधुनिक सोच सेक्सुअल पागलपन आदि आज बिगड़ते सामाजिक वातावरण को घर वाले कैसे बदलें !बच्चे घर में कैद करके तो नहीं रखे जा सकते !आखिर क्या करें घर वाले जो बच्चे न बिगडें कैसे उन्हें दें संस्कार !बच्चे दिन भर घर से बाहर रहते हैं वहाँ उन्हें जो कुछ सीखने को मिलता है वह आधुनिकता और फैशन के नाम पर वो कुछ होता है जिसका संस्कारों से कोई लेना देना नहीं होता है ।थोड़ा बहुत समय जो मिलता है उसमें मातापिता जो सिखाते भी हैं उसे ये लोग दकियानूसी बताकर उपहास उड़ाने लगते हैं क्योंकि बाहर वैसा वातावरण नहीं मिल पा रहा है ।बच्चों को आखिर कैसे सुधार कर रखें माता पिता आदि परिजन !इसके लिए सरकार ही क्यों न कुछ करे !और अपराधी बच्चों के परिजनों के साथ भी हमदर्दी पूर्ण ढंग से बात व्यवहार करे कम से कम उपेक्षा तो न ही करे !
   इसलिए आपराधिक सोच पर लगाम लगाने के लिए सरकार कुछ करे !इस विषय में सरकार की ओर से क्या कुछ योजनाएँ चलाई जा रही हैं उनका पता समाज को भी तो लगे !  
      बंधुओ !प्रत्येक व्यक्ति अपराधी नहीं होता है जो अपराधी होता है उसकी भी भावना हमेंशा अपराध करने की नहीं होती है और जब जो अपराध कर रहा होता है कई बार ऐसी परिस्थितियों में भी अपराध टाले जा सकते हैं किंतु उचित गाइडेंश मिले !
      ये गाइडेंश कई प्रकार का होता है एक तो माता पिता शिक्षकों आदि बड़ों के द्वारा  बचपन में मिले हुए  संस्कार ! दूसरा साधू संतों या ज्ञानी गुणवानों आदि के प्रेरक बचनों से या सद्साहित्य आदि पढ़ने से प्राप्त हुई पवित्र प्रेरणा किसी भी व्यक्ति को अापराधिक पथ पर आगे बढ़ने से बचा लेती  है। 
     इसके अलावा Time Treatment Therapy है   इसके द्वारा किसी भी बच्चे का जन्म जिस समय होता है उस समय का अध्ययन करके ये पता लगा लिया जाता है ये व्यक्ति अपने जीवन को किस प्रकार से जीना चाहेगा ! साथ ही जीवन में कौन सा गुण या दुर्गुण कितनी मात्रा में होगा और यदि किसी दुर्गुण की सम्भावना है तो कितनी और उसका कितना असर किस उम्र में होगा दुर्गुण है तो कितना है साथ ही कोई दुर्गुण नहीं आएँगे और यदि हाँ तो किस उम्र में कितने दिन के लिए होंगे और उनसे बचने के लिए कैसे कैसे अग्रिम सुधार करने होंगे  ! 
   क्या पवित्रता अर्थात मानसिक स्वच्छता पर भी संस्कार सृजन जैसा भी कोई अभियान चलाया जाना चाहिए क्या ? आपसे मेरा निजी निवेदन है कि आज सौ सौ रूपए या छोटी छोटी बातों के लिए हत्याएँ एवं छोटी छोटी बच्चियों से बलात्कार हो रहे हैं ये कानून व्यवस्था की कमजोरी तो है ही किंतु कानून व्यवस्था अपराधों के सोचने पर लगाम कैसे लगा सकती है जबकि समस्या प्रारंभ वहीँ से होती है एक आदमी किसी अपराध के विषय में पहले सोचता है फिर उसे करने के लिए आवश्यक संसाधन जुटाता है या योजना बनाता है आवश्यक संसाधन जुटाता है या अपराध के अनुकूल परिस्थिति पैदा करता है या उसकी प्रतीक्षा करता है तब तक उसे रोकने वाला कोई नहीं होता है । जब वो अपराध को अंजाम दे देता है उसके बाद शुरू होता है कानून का काम ! किंतु कानून कार्यवाही न करे तो समाज या पीड़ित पक्ष परेशान और यदि कानून कार्यवाही करे तो अपराधी से संबंधित पक्ष या उसके परिजन परेशान ! जबकि नैतिकता ये कहती है कि दंड केवल उसे मिले जो अपराधी हो निर्दोष को सजा न मिले किंतु वर्तमान केवल कानूनव्यवस्था के परिपालन में सर्वाधिक सजा अपराधी के परिजनों को मिलती है जिनमें अक्सर उनका कोई दोष नहीं होता है कुछ आर्थिक अपराधों में भले वे थोड़ा बहुत सम्मिलित भी हों इसीप्रकार से कुछ रंजिश संबंधी हत्याओं में आंशिक भागीदारी हो सकती है उनकी यद्यपि ये आवश्यक भी नहीं है कि ऐसा हो ही किंतु बलात्कार जैसे अपराधों में तो वो बेचारे बिलकुल ही नहीं सम्मिलित होते हैं उन बेचारों की क्या रूचि ! बल्कि ऐसे अपराधों से अपराधियों के परिजन भी घृणा करते हैं वो उससे लड़ा करते हैं किंतु यदि वो नहीं मानता है तो वो बेचारे क्या करें ! किंतु कानूनी कार्यवाही शुरू होते ही अपराधी के उन्हीं परिवारी जनों को  ही सहनी  पड़ती हैं सारी यातनाएँ जिनका विरोध वो लोग करते रहे होते हैं। स्वजनों से मोह तो हर किसी को होता है बड़े बड़े विरक्त साधू संत भी भी कहाँ छोड़ पाते हैं मोह माया !वैसे भी स्वजनों से स्नेह करना अपराध तो नहीं है फिर अपराधों के परिजनों को भी भोगनी पड़ती है अघोषित सजा !हर हालत में सामाजिक अपमान जलालत बहिष्कार घृणा आदि तो सहनी ही पड़ती है साथ ही स्वजनों के स्वार्थ रुक रहे होते हैं वो पीड़ा ,आर्थिक परेशानी ऊपर से उस स्वजन का स्नेह वियोग भी तो सहना ही होता है, हो सकता है वो अपराधी अपने परिवार वालों के साथ अच्छा और आत्मीय  व्यवहार करता रहा हो ऐसी परिस्थिति में उसे छोड़ पाना या भूल पाना अत्यंत कठिन हो जाता है । कई बार तो फाँसी  जैसी कठोर सजा  होती है ऐसी परिस्थिति में परिजनों पर और जो बीतती है सो तो है ही साथ ही ऐसे अपराधियों के निरपराध परिजनों को अपराधियों से अधिक यातनाएँ झेलनी पड़ती हैं इनके परिजनों  के यहाँ कोई काम काज करने को तैयार नहीं होता है बहन बेटियों के विवाह होने मुश्किल हो जाते हैं इन्हें कोई नौकरी पर रखने को तैयार नहीं होता है ऐसे लोगों के यहाँ से सगे नाते रिस्तेदार भी शादी विवाह तक में आनाजाना बंद कर देते हैं !कितना एकाकी और बहिष्कृत जीवन हो जाता है अपराधियों के निरपराध परिजनों का !


     

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