मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017



करना की जानी चाहिए और खोले जाने चाहिए इनके भी रहस्य ! किसी रोगी का समय अच्छा है या बुरा इसके अध्ययन के लिए प्राचीन काल में ज्योतिषशास्त्र का सहयोग लिया जाता रहा है आयुर्वेद के चरक संहिता ,सुश्रुत संहिता आदि ग्रंथों में औषधियों के निर्माण रोग निदान एवं रोगों के पूर्वानुमान और चिकित्सा में सहयोगी ज्योतिष शास्त्र के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन मिलता है इसीलिए प्राचीन काल में आयुर्वेद के विद्वान लोग ज्योतिष शास्त्र के भी न केवल विद्वान हुआ करते थे अपितु ज्योतिष शास्त्र का आयुर्वेदोक्त चिकित्सा प्रक्रिया में भरपूर उपयोग किया करते थे इसीलिए चिकित्सा के परिणाम कम खर्चीले होने के साथ साथ अधिक प्रभावी भी हुआ करते थे !  वर्तमान समय में सरकारी संस्कृत विश्वविद्यालयों में काशी हिन्दू विश्व विद्यालय जैसे संस्थानों में ज्योतिष शास्त्र की पाठ्यक्रम पूर्वक पढ़ाई होती है कक्षाएँ लगती हैं परीक्षाएँ होती हैं डिग्री प्रमाण पत्र दिए जाते हैं हैं Ph.D. करवाई जाती है करने का एक मात्र विषय है

 ज्योतिष
यदि ने वाले एक समय सीमा के बाद स्वस्थ होने लगते हैं चूँकि उस समय भी चिकित्सा चल ही रही होती है इसलिए उस स्वास्थ्य लाभ का श्रेय(क्रेडिट) हम चिकित्सा को देने लगते हैं किंतु ध्यान देने योग्य विषय यह है कि किसी के  स्वस्थ होने का संपूर्ण श्रेय यदि चिकित्सा को ही दे दिया जाए तो जिन रोगियों को अच्छी से अच्छी चिकित्सा से भी बिलकुल लाभ नहीं होता है और स्थिति दिनोंदिन बिगड़ती जाती है की जा रही चिकित्सा की उद्देश्य से बिल्कुल विरुद्ध परिणाम आते देखे जाते हैं और असर एक समय सीमा के बाद औषधियों का असर होने लगता है।  या इसकी एक समय सीमा होती है तब तक नहीं होता है और वो सीमा बीतते ही होने लगता है कई बार तो बाद में भी नहीं होता है कई बार तो रोग ऐसे भी होते हैं गी ऐसे भी होते हैं जिनपर औषधियों का असर अधिक नहीं होता कई बीमारियां ऐसी भी होती हैं बड़े  रोगों के विषय में प्रायः आम धारणा है जब जिसका समय ख़राब होता है तब उसे रोग होते हैं जब तक समय ख़राब रहता है तब तक रोगी को प्रायः कोई औषधि लाभ नहीं करती है यहाँ तक कि अच्छे चिकित्सक की देख रेख में अच्छी औषधि सेवन करते हुए भी कई बार रोगी की मृत्यु होते देखी जाती है ।
        इसे क्या माना जाए कि औषधि ने अपने स्वभाव के विरुद्ध असर किया और औषधि के  दुष्प्रभाव से ही मृत्यु हुई या फिर ऐसा मान लिया जाए कि किसी रोगी के स्वस्थ या अस्वस्थ होने में औषधि के साथ साथ बड़ा कारण रोगी का अपना समय भी होता है रोगी के अपने समय के अनुशार ही औषधियों का असर होता है अच्छा समय है तो अच्छा असर और बुरा समय है तो बुरा असर !यही कारण है कि अच्छी से अच्छी औषधि देकर भी अच्छे से अच्छे डॉक्टर लोग बुरे समय से पीड़ित रोगी को न स्वस्थ कर पाते हैं और न ही जीवित बचा पाते हैं और समय अपना फैसला सुना देता है रोगी मरते देखे जाते हैं !ऐसे परिस्थिति में कुशल से कुशल चिकित्सक भगय कुदरत और समय को दोष देकर खुद पीछे हट जाते हैं जबकि वो रोगी ठीक हो जाता तो अपनी पीठ थपथपाते !
      कुल मिलाकर जब समय ही सबसे अधिक बलवान है और चिकित्सा विधा में भी किसी रोगी के रोग और आयु के विषय में केवल समय की ही चलती है बाकी सारी विधाएँ बेबश होकर पीछे रह जाती हैं तो ऐसे महान बलवान समय के बारे में किसी अनुसंधान की आवश्यकता है क्या ?आखिर इसका पता कैसे लगाया जाए कि किसका कौन सा समय अच्छा और कौन सा समय बुरा है चिकित्सा प्रक्रिया में उसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए !
   किसी रोगी का समय अच्छा है या बुरा इसके अध्ययन के लिए प्राचीन काल में ज्योतिषशास्त्र का सहयोग लिया जाता रहा है आयुर्वेद के चरक संहिता ,सुश्रुत संहिता आदि ग्रंथों में औषधियों के निर्माण रोग निदान एवं रोगों के पूर्वानुमान और चिकित्सा में सहयोगी ज्योतिष शास्त्र के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन मिलता है इसीलिए प्राचीन काल में आयुर्वेद के विद्वान लोग ज्योतिष शास्त्र के भी न केवल विद्वान हुआ करते थे अपितु ज्योतिष शास्त्र का आयुर्वेदोक्त चिकित्सा प्रक्रिया में भरपूर उपयोग किया करते थे इसीलिए चिकित्सा के परिणाम कम खर्चीले होने के साथ साथ अधिक प्रभावी भी हुआ करते थे !
  वर्तमान समय में सरकारी संस्कृत विश्वविद्यालयों में काशी हिन्दू विश्व विद्यालय जैसे संस्थानों में ज्योतिष शास्त्र की पाठ्यक्रम पूर्वक पढ़ाई होती है कक्षाएँ लगती हैं परीक्षाएँ होती हैं डिग्री प्रमाण पत्र दिए जाते हैं हैं Ph.D. करवाई जाती है इस सारी प्रक्रिया में जिस ज्योतिष के पठन पाठन पर सरकार भारी भरकम धनराशि खर्च करती है उस ज्योतिष का प्रयोग सरकार चिकित्सा को सरकार यदि खुद किंतु    ने का उद्देश्य क्या है ?और उस उद्देश्य की पूर्ति कैसे हो रही है ?

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