रविवार, 8 जुलाई 2018

varnaakshr

अँग्रेजी भाषा के शब्दों के संबोधनों से समाप्त हो रहे हैं पारिवारिक संबंध !
                    अम्मा चाचा चाची दादा दादी जैसे शब्दों का प्रचलन घटने से रिश्ते समाप्त हो गए !
       हमारे पूर्वजों ने संबंधों को नाम देने में कितना अनुसंधान किया होगा उन्हें छोड़कर उस भाषा के शब्दों से हमने अपने सगे सम्बन्धियों को पुकारना प्रारंभ कर दिया जो भाषा संबंधों की दृष्टि से अत्यंत गरीब और किसी को सम्मान देने की दृष्टि से बहुत दरिद्र है !हमें हमारी भाषा को महत्त्व देते हुए आज भी अपने बिगड़ते संबंधों को बचाने का प्रयास करना चाहिए और बिखरते परिवारों को समेटने का एवं टूटते रिश्तों को पिरोने का पुनः प्रयास करना चाहिए !यदि परिवार जुड़ जाएँगे तो देश और समाज सब जुड़ जाएँगे !
     दा,चा,भा,फ आदि अक्षर अत्यंत सम्मानित प्रजाति के हैं ये सम्मान की इच्छा रखते नहीं हैं फिर भी इन्हें सम्मान देने का मन करता है इस दृष्टि से ये सबसे ऊपर के अक्षर हैं इनसे बात व्यवहार करते समय सम्मान का विशेष ध्यान रखना होता है -
   भगवान,देवी- देवता, दद्दा, दद्दू ,दादा -दादी,चाचा-चाची, भाई ,भैया - भाभी ,चाई(दादी)दीदी 'फूफा' दामाद,आदि कहना छोड़ा तो ये संबंध बोझ बन गए !
      म अक्षर राजा प्रजाति का है ये सम्मान पाने के लिए बड़ा सजग होता है ये अपने अलावा सबको अपनी प्रजा समझता है!इसमें कोई बुरी बात भी नहीं है इसलिए माँ मैया मौसी मामा मामी आदि हम जिसे कहते हैं उनके सामने हमें छोटा बनकर रहने का भाव बना ही रहता है!ऐसी मानसिक स्वीकृति होती है !
        अ और न जैसे अक्षर  शासक प्रजाति के होते हैं !ये अपने कर्तव्य पालन के बल पर सबसे शासक होने जैसा सम्मान पा लेता है किंतु ऐसे लोग अपने सम्मान स्वाभिमान को बनाए व बचाए रखने के लिए वो सबकुछ करते हैं जितना कुछ वो कर सकते हैं ! इसलिए लोग ऐसे संबोधनों को देते समय उनके अनुशासन में रहना पसंद करते हैं !अम्मा नाना नानी जैसे संबोधनों को देते समय उनके अनुशासन में रहने का मन करता है !'ननद' को दीदी कहने से तो सम्मान बना रहता था किंतु फिल्मों ने ननद जी कहना सिखा दिया तो ऐसे संबंधों का न वो सम्मान रहा और न ही उतना स्नेह !क्योंकि इनका गौरव इनके दायित्व के हिसाब से उस तरह का नहीं होता है !
      ब और ता जैसे अक्षर कहीं भी राजनीति करके अपनी प्रासंगिकता बनाए रखते हैं !इसलिए लोगों को इनकी जरूरत हर समय पड़ा करती है इसलिए वे इन्हें महत्त्व और सम्मान देते ही हैं !
  बुआ बहन ताऊ ताई जैसे शब्द इसी परिधि में आते हैं!यहाँ संबंधों में दिखावा बहुत अधिक हो जाता है जब हम भैया या भाई जैसे सम्मानित शब्द को ब्रदर कहना प्रारंभ किया तो संबंधों में स्वार्थ और राजनीति दोनों आ गई !
   स और ज अक्षर अभिमान के साक्षात् स्वरूप होते हैं ये लोग हर परिस्थिति में अपने को सम्मानित सिद्ध करने के लिए तनाव खोज कर ही रहते हैं इन्हें छोटी छोटी बातें बुरी लग जाया करती हैं ये अच्छी बातों व्यवहारों से भी तनाव देने वाले प्रकरण चुनकर अपने को तनाव में डाल ही लेते हैं !इसीलिए जीजा सम्मान पाने के प्रति बहुत सतर्क रहते हैं !-साला,साली,जीजा आदि लोग !
    प,क,ह जैसे अक्षर बहुत सम्मान प्रिय नहीं होते ये बिना किसी दबाव के विनम्रता पूर्वक झुककर अपनी बालभावना से सबके साथ संबंध सुधार लेते हैं खुश रहना इन्हें आता है ऐसे लोग लगभग सभी परिस्थितियों में अपने को प्रसन्न रख ही लेते हैं !ये किसी भी उम्र में हमेंशा बच्चा भावना से ग्रस्त होते हैं !इसलिए किसी गंभीर या प्रशासकीय भूमिका में ये न सुशोभित होते हैं और न ही इनके द्वारा लिया गया कोई बड़ा निर्णय अत्यंत सुविचारित होता है !
पति पत्नी और तलाक -
    ये दोनों शब्द प अक्षर से प्रारंभ होते हैं! वस्तुतः पति और पत्नी में प अक्षर के प्रभाव से बराबरी के स्तर का ही प्रेम होता है !वैसे तो ये अक्षर सभी परिस्थितियों में प्रसन्नता प्रिय होते हैं !फिर यदि आमने सामने आ ही जाएँ और एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश ही करें तो इनके आपसी संबंधों के बिगड़ने की संभावना बनी रहती है ! किंतु बच्चा होने के बाद यही पति पत्नी माता पिता शब्दों से संबोधित किए जाने लगते हैं तो बच्चों के सम्बोधनों से पककर ये संबंध अत्यंत मजबूत हो जाते हैं !प्रेमी प्रेमिका के संबंध होते ही टूटने के लिए हैं क्योंकि इनमें बच्चे होते नहीं हैं इसलिए दोनों के प्रे अक्षर आपस में टकरा जाते हैं और  संबंध टूट  अर्थात बिखर जाते हैं !
   प अक्षर के प्रभाव से पिता जी अपने बच्चों के साथ मिलकर बच्चे भावना से जुड़कर अपने बचपन के आनंद का अनुभव दोबारा कर पाते हैं और  धीरे धीरे अम्मा के हाथ में घर की वागडोर आ जाती है !पहले पति पत्नी के संबंध भी इसी बाल बुद्धि के कारण मधुरिम बने रहते थे !दोनों और से गलतियाँ भी होती थीं और माफी भी होती थी किसी को बुरा भी नहीं लगता था किंतु पत्नी के 'वाइफ' बनते ही घरों में जीवन में निजी संबंधों में राजनीति फैलने लगी और संबंध बिगड़ने लगे !पति पत्नी अलग अलग होंगें इसकी तो कल्पना ही नहीं थी इसीलिए हिंदी और संस्कृत में इसके लिए कोई एक शब्द ही नहीं बनाया गया है !तलाक शब्द जिस भाषा का है जबसे उसे हम अपनाने लगे तब से तलाक होने लगे !ड अक्षर लड़कपन का प्रतीक है इसीलिए बच्चों ऐसी हाथ करने से डाइवोर्स हो जाते हैं !
 सास - वधू -
    व अक्षर राजनीति प्रिय होता है स अक्षर घमंडी अनुशासन का प्रतीक है!इसलिए घरों में वधू राजनीति किया करती है और सासें अनुशासन दिखाया करती हैं !यही विवाद के कारन बनते हैं !इसीलिए इन दोनों में एकमत हो पाना काफी कठिन होता है !बधू यदि मम्मी कहती है तो सास और बहू के संबंध आपसी शत्रुता में बदल जाते हैं किंतु यही वधू यदि अपनी सास को अम्मा कहती है तो सास का अनुशासन सहने में बधू को बुरा नहीं लगता है अपितु इन दोनों में अपनेपन के मधुर संबंध बन जाते हैं !बहुओं का जब से नाम लिया जाने लगा तब से भिन्न भिन्न नामों के अनुशार अलग अलग असर होने लगे !
    संबंधों का सम्मान -  
      जिन्हें हम चाचा मामा मौसा ताऊ जैसे शब्दों से बुलाते थे उन्हें हमने अंकल कहना शुरू कर दिया !ये अ अक्षर शासक प्रजाति का शब्द है अर्थात जिसे हम अ  अक्षर से पुकारते हैं उसका हमारे प्रति संघर्ष भी दिखना चाहिए किंतु चाचा मामा मौसा ताऊ जैसे लोगों का अपने प्रति सीधा संघर्ष बलिदान आदि प्रायः नहीं होता है !इसलिए ऐसे 'अंकली' संबंधों को मन स्वीकार नहीं कर पाता हैजबकि अम्मा का अपने लिए समर्पण बलिदान संघर्ष आदि सबकुछ होता है इसलिए उनका सम्मान बना रहा है !
     भाई बहन जैसे सम्मानित और स्नेह पूर्ण शब्दों को हमने 'कजन'  कहना प्रारंभ कर दिया !क बाल बुद्धि का शब्द होने से ऐसे संबंधों की गम्भीरता और इनका स्नेह समाप्त हो गया !
     'सर' और 'मैडम' जैसे शब्दों से समस्या -
   सर शब्द घमंडी प्रजाति का होता है आपने जिसे सर बोला उसका दिमाग तुरंत सातवें आसमान पर चढ़  जाता है स अक्षर सम्मान के लिए पागल हो उठने वाली प्रजाति का है ऐसे लोग अपने को महान सिद्ध करने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं इसीलिए ये आपके अच्छे काम में भी इतनी गलतियाँ  निकाल देते हैं और  आपकी कही हुई सही बातों को भी गलत सिद्ध करने का प्रयास करते रहते हैं !इसीलिए सर नाम का व्यक्ति अकेला सड़ा करता है उसके पास लोग मजबूरी में ही जाते हैं !दुर्भाग्य से स्कूलों में शिक्षकों को भी सर कहा जाने लगा तो वो अपने को महान सिद्ध करने के लिए छात्रों का मनोबल ही तोड़ा करते हैं!पुराने जो शिक्षक होते थे वे भी स से सम्बंधित थे किंतु बच्चे उन्हें शिक्षक कहकर नहीं बुलाते थे !इसी प्रकार से बहन को सिस्टर कह कर इस संबंध की भी मधुरता समाप्त कर दी गई !
       'मैडम' जैसे शब्दों का असर -
  ये राजा प्रजाति का वर्ण है अपने लिए मैडम शब्द का संबोधन सुनते ही इनमें राजभावना का आविर्भाव हो जाता है इसलिए ये सामने वाले को डाँटने डपटने या तरीके सिखाने लग जाती हैं !
     इसी प्रकार से हम जिसे मित्र बनाते थे म अक्षर होने के नाते उन्हें महत्त्व देना होता था तो लंबे समय तक संबंध चला करते थे किंतु जब से हम उन्हें फ्रैंड कहने लगा !
     इस सर और मैडमी सम्बोधनों ने बहन जी भाई साहब आदि सम्मान जनक स्नेह पूर्ण  संबोधनों की मधुरिमा छीन ली !सम्बोधन बिगड़ते ही समाज में एक दूसरे के प्रति कटुता बढ़ने लगी !  
अध्यक्ष - प्रेसीडेंट -
      अ अक्षर में प्रशासनिक क्षमता बहुत होती है सभी को अनुशासन में रखना इन्हें आता है !जब हमने अध्यक्ष को प्रेसिडेंट कहना शुरू कर दिया!प स्वयं में वर्णमाला का सबसे कमजोर और हल्का शब्द है इसमें गंभीरता नहीं होती जबकि अध्यक्ष में स्वाभाविक गंभीरता तो होनी ही चाहिए इसीलिए जो स्वाभाविक सम्मान अध्यक्ष का होता था अब वो प्रेसिडेंट को कहाँ मिल पाता है !
   राजा और किंग -
       राजा शब्द में राजनीति होती है वो अपनी बौद्धिक क्षमता के आधार पर सम्मान पा लेता है क कमजोर प्रजाति का शब्द है !अंग्रेजों ने राजाओं को किंग कहकर उनके रजवाड़े समाप्त कर दिए !
    देश और कंट्री -
     दे अत्यंत सम्मानित वर्ण है जबकि रा अपनी बौद्धिक क्षमता के आधार पर सम्मान पा लेता है और क अत्यंत कमजोर प्रजाति का वर्ण है ही !इसीलिए देश और राष्ट्र का तो महत्त्व स्वीकार्य था किंतु कंट्री का नहीं !हमने देश को कंट्री कहकर देश का सम्मान समाप्त कर दिया गया !
   संविधान और कांस्टीट्यूशन-
   स अक्षर आत्मसम्मान की भावना से भावित अनुशासन एवं अनुसंधान प्रिय एवं अत्यंत गंभीर वर्ण है इसीलिए संविधान शब्द इसका सम्मान सुरक्षित रखने में सक्षम था !जबकि  क वर्ण कमजोर प्रजाति का है ही इसीलिए  ,,संविधान को कांस्टीट्यूशन कहकर संविधान का गौरव गिरा दिया गया !
       न्यायाधीश और जज-
    ज अक्षर घमंड और असंतोष का प्रतीक है इसलिए जज जस्टिस जजमेंट और जुडिसिरी में अपनापन और संतोष नहीं बन पाता है जबकि न और य अक्षर प्रशासन के प्रतीक हैं  न्याय न्यायाधीश न्यायपालिका आदि के प्रति लोगों के मन में सहज और स्वाभाविक सम्मान बना रहता है !
   नियम और कानून -
        न अक्षर प्रशासन का प्रतीक है इसलिए नियमों के प्रति सबके मन में हृदय से सम्मान होता है जबकि क अक्षर अनुशासन के मामले में कमजोर होता है खेलकूद मनोरंजनादि के लिए अच्छा होता है इसलिए कानून को लोग खिलवाड़ बनाए रहते हैं !
     संसद और पार्लियामेंट -
        स अक्षर घमंड अनुशासन एवं गहन चिंतन का प्रतीक है जबकि प अक्षर क की प्रजाति अर्थात अनुशासन के मामले में कमजोर होता है खेलकूद मनोरंजनादि के लिए अच्छा होता है!रा और व  अक्षर बौद्धिक एवं वाद विवाद के प्रतीक हैं !ल अक्षर  अ अक्षर की प्रशासक प्रजाति का होने से अनुशासन प्रिय शासक होता है !लोक सभा ,राज्यसभा,विधानसभा आदि शब्द अपनी गरिमा बचा पाने में सफल होते हैं !
    सिपाही और पुलिस -
     स अक्षर घमंड अनुशासन एवं गहन चिंतन का प्रतीक है जबकि प अक्षर क की प्रजाति अर्थात अनुशासन के मामले में कमजोर होता है खेलकूद मनोरंजनादि के लिए अच्छा होता है! इसलिए जो अनुशासन सिद्धांत और न्याय प्रियता आदि सिपाही में होती है वो पुलिस में नहीं हो सकती है !प अक्षर को तो लोग खिलवाड़ समझते हैं !
आयुक्त - उपायुक्त - कमिश्नर -डिप्टीकमिश्नर या डीएम -
     अ अक्षर की प्रशासक प्रजाति का होने से अनुशासन प्रिय शासक होता है ! उ अक्षर बौद्धिकक्षमतावान सम्मान प्रिय सलाहकार होता है ! जबकि क और ड अक्षर प और ह की प्रजाति के होने के कारण अनुशासन के मामले में कमजोर होते हैं खेलकूद मनोरंजनादि के लिए अच्छा होते हैं इसलिए ऐसे नामों !नाम के अनुशार सबका सम्मान होता है ! 
    प्रधानमंत्री ,प्राइमिनिस्टर , प्रधानाचार्य, प्रिंसिपल और हेडमास्टर -
        ये नाम अनुशासन के मामले में कमजोर होते हैं खेलकूद मनोरंजनादि के लिए अच्छे  होते हैं !इसलिए इन पदों पर यदि कोई मजबूत अक्षर वाला व्यक्ति बैठता तब तो उसका कुछ महत्त्व बन भी जाता है अन्यथा ऐसे पदों की गरिमा बचाना पाना हमेंशा संदिग्ध रहता है!इसीलिए इन पदों पर बैठकर बहुत मजबूत नामाक्षर वाले नेता लोग ही अपना सम्मान सुरक्षित बनाए रखते हुए अपना कार्यकाल पूरा कर पाते हैं !
   अमेरिका - अँग्रेज - अंग्रजी और हिंदू - हिंदी -हिंदुस्तान -
   अ अक्षर में प्रशासनिक क्षमता बहुत होती है सभी को अनुशासन में रखना इन्हें आता है !इसीलिए अ अक्षर ने अपना सम्मान सँभाल रखा है !जबकि ह क प ड आदि वर्णमाला के सबसे कमजोर शब्द हैं!इसीलिए ह अक्षर वाले सम्मान पाने की जुगत भिड़ाया करते हैं !जबक अक्षर वाले स्वयं में सम्मानित हैं !
    क्षमा ,माफी और सॉरी -
       क अक्षर विनम्रता और बालकपन का प्रतीक है और क्षमा में क्ष अक्षर क् और ष दो वर्णों को मिलकर बनता है ! क अक्षर बालभावना विनम्रता दर्शाता है इसलिए क्षमा माँगने से मुख पर विनम्रता झलकती है !म अक्षर राजा प्रजाति का है ये सम्मान पाने के लिए बड़ा सजग होता है ये अपने अलावा सबको अपनी प्रजा समझता है!इसलिए माफी शब्द से अपने मन में विनम्रता पछतावा गलती होने की ग्लानि नहीं होती ये केवल खाना पूर्ति मात्र होती है !सॉरी में स अक्षर घमंडी एवं अनुशासन का प्रतीक है ये अपने बराबर किसी को समझता ही नहीं है इसीलिए सॉरी जैसे शब्दों के प्रयोग में विनम्रता का भाव हो ही नहीं सकता है वो तो सॉरी कम बोलते हैं उनके चेहरे पर अकड़ ज्यादा होती है !ये वर्ण प्रभाव है !
     वर्ण विज्ञान के अनुशार मिलता है देशों को सम्मान !
      जिस देश का शासक हमसे मिलने आता है या हम उससे मिलने जाते हैं तो हमें इस बात का पूर्वानुमान तो पता होना चाहिए कि उस देश के मन में हमारे देश की छवि कैसी है एवं उस देश का शासक हमारे देश के शासक के प्रति क्या सोच रखता है एवं उस  राष्ट्र के प्रतिनिधि मंडल में आने या मिलने वाले लोग हमारे देश ,हमारे शासक एवं हमारे प्रतिनिधि मंडल के सदस्यों के विषय में क्या सोच रखते हैं ! एक विशेष बात और है कि उस देश के प्रतिनिधि मंडल के किस नाम के सदस्य पर प्रभाव डालने के लिए अपने देश के प्रतिनिधि मंडल के किस नाम के सदस्य को  वार्ता के लिए नियुक्त किया जाए !
    देशों की श्रेणियाँ और वर्ण विज्ञान !
     वर्ण विज्ञान की दृष्टि से जो देश जिस श्रेणी के होते हैं उनके प्रति विश्व की भावना उसी प्रकार की बन जाती है !भारत जब आर्यावर्त के नाम से जाना जाता था तब सारे विश्व में भारत की प्रशासक जैसी छवि थी तब हम विश्वगुरु कहे जाते थे !अ अक्षर वाले अमेरिका की तरह प्रशासकीय भावनाएँ अपने भी मन में कौंधती थीं !इसके बाद हम भारत हो गए तब हमारी छवि प्रशासकीय नहीं रही किंतु हमें सभी देशों से सहज सम्मान प्राप्त था किंतु जब से हम हिंदुस्तान हुए हमारी छवि बच्चों जैसी हो गई !इसलिए भलाई इसी में है कि हमें फिर से होना तो आर्यावर्त चाहिए किंतु यदि ऐसा संभव नहीं है तो हमारी छवि सम्माननीय ही बनी रहे और हमें भारतवर्ष के रूप में ही अपने को प्रचारित प्रसारित करना चाहिए !-
सहजसम्मान पाने वाले देश -
   ऐसे देशों के प्रति अन्य देशों की अपेक्षा अधिक सम्मान की भावना रहती है जिस सम्मान को प्राप्त करने के लिए ऐसे सहज देश कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं करते हैं -
         भारत,चीन,भूटान,थाईलैंड,फिलीपींस,फ्रांस,चिली,फ्रेंच,फिजी,फिनलैंड !
अपने को राजा समझने वाले देश -
     ऐसे देश बिना किसी प्रयास के ही दूसरे देशों से सम्मान पाने की इच्छा रखते हैं -
      मैक्सिको,मोजाम्बिक,माली,मोरिशस,मोरक्को,मिस्र,मलेशिया,मंगोलिया,म्यांमार
प्रशासक भावना से भावित देश -
   ऐसे देश छोटे हों या बड़े प्रयास पूर्वक विश्व की बिरादरी में अपने को महत्त्व पूर्ण सिद्ध करने के लिए जी जान लगा देते हैं उसका प्रतिफल भी इन्हें मिलता है ये अपने स्तर के दूसरे देशों पर अपनी बात थोपने में सफल हो जाते हैं और उन्हें डरा धमकाकर अपने प्रभाव में ले लेने की इच्छा रखते हैं -!  अमेरिका,ऑस्ट्रेलिया,अर्जेंटीना,अलसल्वाडोर,आयरलैंड,ऑस्ट्रिया,यूक्रेन,नीदरलैंड,नॉर्वे,अल्जीरिया,युगांडा,
नाइजीरिया,लीबिया !लेबनान, श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल, अंगोला, नामीबिया, न्यूजीलैंड, आइसलैंड,चे क गणराज्य,
घमंडी,हठवादी और अनुसंधान प्रिय देश -
      ऐसे देश अपने द्वारा किए गए अच्छे बुरे सही गलत आदि सभी कार्यों को अच्छा और सही सिद्ध किया करते हैं ऐसे देश छोटी छोटी बातों को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर उन्हें सबक सिखाने की जुगत भिड़ाया करते हैं !ऐसे देशों को अपने व्यवहार से प्रसन्न कर पाना आसान नहीं होता है ! जापान,सामोआ,स्वीडन,स्विट्ज़रलैंड,जर्मनी,स्पेन,ग्रीस,जिम्बाब्वे,जाम्बिया,सेशेल्स,सोमलिया,जॉर्डन,सीरिया,
सिंगापुर,संयुक्त अरब अमीरात, सऊदीअरब, साइप्रस, स्लोवाकगणराज्य, जमैका, स्वीडन,  स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी,  स्पेन, सेशेल्स,सोमलिया,सूडान,जॉर्डन,  सीरिया,सिंगापुर,जापान,संयुक्त अरब अमीरात,सऊदी अरब, जॉर्जिया,  स्लोवाकगणराज्य, सेनेगल,गुयाना
राजनीतिप्रिय देश -
     ये दिमागी देश परदे के पीछे रहकर अपने अपने स्तर से वैश्विक राजनीति को अपने पक्ष में प्रभावित करने की जुगत भिड़ाया करते हैं !इसी बलपर ये देश विश्व के कई अन्य देशों को अंदर अंदर अपना बनाए रखते हैं जबकि उनके विरोधियों से भी अपने राजनैतिक मधुर संबंध बनाए रखते हैं ऐसे देश दूसरे देशों को मिलाने भिड़ाने में पूरा दिमाग लगाते हैं ये अपने समकक्ष देशों से राजनीति किए बिना रह ही नहीं सकते हैं !
ब्रिटेन,रूस,बांग्लादेश,नार्वे,वेनेजुएला,तंजानिया,बहरीन,उरुग्वे,ब्राजील,त्रिनिदाद एंड टोबैगो,वियतनाम, इटली, बारबाडोसरोमानिया ,वेटिकन सिटी,  बेल्जियम, तंजानिया, रवांडा, इथोपिया, इजरायल,  इंडोनेशिया,ताइवान,   ईरान, इराक,तुर्की,बोत्सवाना,बुर्किनाफासो,बुल्गारिया,तुर्कमेनिस्तान,नार्वे
  सहज स्वभाव वाला देश - 
                डेनमार्क,विश्व में सबसे अधिक खुश रहने वालों का देश है !
 बालबुद्धि वाले देश -
     छोटे बच्चों की तरह इनका स्वभाव होता है ये दूसरे समृद्ध देशों के पिठलग्गू बनकर चलने में अपना गौरव समझते हैं ऐसे देशों को लालच दे दे कर दूसरे देश इनका उपयोग या दुरुपयोग किया करते हैं !ये देश बचन के इतने कच्चे होते हैं ये अपने किसी बचन और सिद्धांत पर टिक कर नहीं रह पाते हैं ये अपने देशों  के आंतरिक मामलों की भी पंचायत अन्य देशों से करवाना पसंद करते हैं !
 हिंदुस्तान,पाकिस्तान,कम्बोडिया,कोरिया,हॉंगकांग,कुवैत,कजाकिस्तान,क़तर,कांगो,कीनिया,पुर्तगाल,पोलैंड,
हंगरी,कनाडा,क्यूबा,पनामा,हैती,कोलम्बिया,पराग्वे,पेरू आदि !
          विनम्र निवेदन -
       इस प्रकार से वर्ण विज्ञान के विषय में हमारा यह अनुसंधान पिछले कई दशकों से गतिशील है आशा है कि इसके प्रयोग से समाज में परिवारों में वैवाहिक आदि जीवन में शांति एवं सद्भाव का वातावरण बनेगा !

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