जलवायुपरिवर्तन और समय
वैदिकविज्ञान की पद्धति में सभीप्रकार के अनुसंधान में समय को अवश्य सम्मिलित किया जाता है !क्योंकि परिवर्तन समय का स्वभाव है और सभी जगह सभी प्रकार के परिवर्तन समय के कारण और समय के साथ साथ होते हैं जब जैसा समय होता है तब तैसे बदलाव होते देखे जाते हैं !
इसलिए वैज्ञानिकों के द्वारा बताई जाने वाली 'जलवायुपरिवर्तन' जैसी कोई घटना यदि किसी स्तर पर भी घटित हो भी रही होगी तो उसका कारण भी समय ही होगा क्योंकि सभी प्रकार के परिवर्तन समय के कारण ही होते हैं इसलिए 'जलवायुपरिवर्तन' के अध्ययन के लिए भी समय का अध्ययन ही करना होगा !ऐसा किए बिना जलवायुपरिवर्तन के विषय में कस भी प्रकार का अनुसंधान कर पाना संभव ही नहीं हो सकता है !
वैदिकविज्ञान की पद्धति में सभीप्रकार के अनुसंधान में समय को अवश्य सम्मिलित किया जाता है !क्योंकि परिवर्तन समय का स्वभाव है और सभी जगह सभी प्रकार के परिवर्तन समय के कारण और समय के साथ साथ होते हैं जब जैसा समय होता है तब तैसे बदलाव होते देखे जाते हैं !
इसलिए वैज्ञानिकों के द्वारा बताई जाने वाली 'जलवायुपरिवर्तन' जैसी कोई घटना यदि किसी स्तर पर भी घटित हो भी रही होगी तो उसका कारण भी समय ही होगा क्योंकि सभी प्रकार के परिवर्तन समय के कारण ही होते हैं इसलिए 'जलवायुपरिवर्तन' के अध्ययन के लिए भी समय का अध्ययन ही करना होगा !ऐसा किए बिना जलवायुपरिवर्तन के विषय में कस भी प्रकार का अनुसंधान कर पाना संभव ही नहीं हो सकता है !
विशेष बात यह है कि समय एक जैसा कभी नहीं रहता है समय हमेंशा गतिशील रहने के कारण परिवर्तित होता रहता है !इसीलिए समय के साथ साथ प्रकृति में बदलाव होते रहते हैं सर्दी गर्मी वर्षात आदि ऋतुओं का निर्माण भी समय के परिवर्तन के कारण ही होता है यह भी समय के परिवर्तन का ही एक स्वरूप है!इसी क्रम में ऋतुएँ परिवर्तित होती रहती हैं सर्दी की ऋतु में किसी वर्ष सर्दी कम होती है किसी वर्ष अधिक होती है किसी वर्ष सर्दी अपने समय से कुछ पहले से प्रारंभ हो जाती है कई बार अपने निर्धारित समय के कुछ बाद तक चला करती है !यही स्थिति गर्मी और वर्षा आदि ऋतुओं की है !उसमें भी ऐसे बदलाव प्रत्येक वर्ष होते देखे जाते हैं !ये क्रम आदिकाल से चला आ रहा है और हमेंशा चलता रहेगा !परिवर्तन के इसी क्रम में आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ सूखा आदि सभी घटनाएँ एवं प्रकृति में परिवर्तनशील अन्य चिन्ह भी बदलते हुए समय के प्रत्यक्ष लक्षण हैं!जो कुछ घंटे दिन महीने वर्ष पहले जैसा था अब वैसा नहीं रहा इससे यह सिद्ध हो जाता है कि समय अपने क्रम के अनुशार बदलता हुआ बीत रहा है !
दूसरी बात और ध्यान देने की है कि किसी का समय एक जैसा कभी नहीं रहता है उसमें भी परिवर्तन होते रहते हैं बचपन युवा और वृद्धापन आदि समयकृत परिवर्तन ही तो हैं !व्यक्ति का स्वस्थ रहना अस्वस्थ हो जाना तथा जन्म और मृत्यु होना आदि समयकृत परिवर्तन ही तो हैं !किसी का कभी प्रसन्न होना कभी दुखी होना ये समय कृत बदलाव हैं !किसी संबंध का बनना और उन्हीं परिस्थितियों में बिगड़ जाना ये समय कृत बदलाव ही तो हैं !समय के कारण जो कभी धनसंपन्न थे उन्हें कंगाल होते देखा जाता है इसी प्रकार से कंगालों को धनवान एवं मूर्खों को विद्वान होते देखा जाता है !समय के कारण जिन दो लोगों का आपस में बहुत अच्छा स्नेह हुआ करता था समय बदलते ही वही दोनों एक दूसरे के शत्रु बन बैठते हैं !बड़े बड़े वीरों को पराजित होते देखा जाता है !इस प्रकार से जीवन में होने वाले सभी प्रकार के परिवर्तन समय के आधीन ही तो होते हैं !
कुलमिलाकर प्रकृति हो या जीवन समय का असर सभी पर पड़ रहा है इसीलिए सभी जगह सभी वस्तुओं में और सभी जीवों में प्रतिपल परिवर्तन होते देखे जाते हैं !गंगा यमुना आदि नदियों के प्रवाह की तरह ही समय का भी प्रवाह होता है उसकी भी अपनी धारा है !जिसप्रकार से नदियों की धारा कभी कम कभी अधिक होती है उनका जल कभी स्वच्छ तो कभी अस्वच्छ रहता हैं इस प्रकार के परिवर्तन सभी जगह दिखाई पड़ रहे होते हैं !ऐसी परिस्थिति में जलवायुपरिवर्तन पर आश्चर्य क्यों हो रहा है वो भी इसी प्रकृति का एक हिस्सा है इसलिए परिवर्तन समय जनित होने के कारण समय के साथ साथ प्रकृति और जीवन दोनों में ही परिवर्तन होता रहता है !जिसे मनुष्यकृत किसी भी प्रक्रिया के द्वारा रोककर नहीं रखा जा सकता है !
समय के साथ साथ परिवर्तन होते रहते हैं !
प्रत्येक दिन महीना वर्ष आदि कभी एक जैसा नहीं होता है सबमें कुछ न कुछ अंतर अवश्य बना रहता है ये समय के परिवर्तन के कारण घटित होता है !सभीप्रकार के परिवर्तनों के लिए मनुष्य को ही जिम्मेदार ठहराया जाना उचित नहीं है क्योंकि मनुष्य जहाँ या जिनके लिए कुछ कर ही नहीं सकता है परिवर्तन तो वहाँ भी हो रहे हैं सुदूर आकाश में, सूर्यादि ग्रहों नक्षत्रों में, धरती की गहराई में ,समुद्र की गहराई में उन जंगलों में जहाँ मनुष्य की पहुँच नहीं है परिवर्तन तो वहाँ भी हो रहे हैं !जलवायुपरिवर्तन के लिए जिम्मेदार परिस्थितियाँ पैदा करने में मनुष्य यदि सक्षम मान भी लिया जाए तो वो अपने आस पास का वातावरण ही अपने अनुकूल बना लेता जिसके लिए सारा समाज परेशान है किसी रोगी को स्वस्थ करने के लिए चिकित्सक लोग उसमें परिवर्तन का प्रयास करते हैं किंतु रोगी के शरीर में होने वाले रोगजन्य परिवर्तनों में चिकित्सकों का कितना योगदान है ये तो अनुसंधान का विषय है किंतु इतना तो निश्चित है उनके द्वारा रोगी के शरीर में वे जिस प्रकार के परिवर्तन लाने के लिए प्रयास कर रहे होते हैं कई बार परिणाम उन प्रयासों और उद्देश्यों के विपरीत जाते दिखाई पड़ते हैं !यह स्थिति प्रकृति या जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में घटित हो रही है !भ्रम की स्थिति का निर्माण तब होता है जब कोई व्यक्ति जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए जो प्रयास करता है उसके बाद वह कार्य हो जाता है !उस कार्य के होने या उद्देश्य की पूर्ति से भले ही भले ही उसके प्रयास का दूर दूर तक संबंध न हो किंतु वह व्यक्ति उस इच्छा की पूर्ति होने का श्रेय अपने द्वारा किए गए प्रयास को देने लगता है किंतु उसी प्रयास के परिणाम जब उसके उद्देश्य से विपरीत दिशा में जाते दिखते हैं तो उसकी जिम्मेदारी लेने के लिए प्रयासकर्ता नहीं तैयार होता है !उसके लिए वह समय भाग्य लाक कुदरत आदि अनेकों स्थितियों को जिम्मेदार मान लेता है !ऐसी परिस्थिति में सभी प्रकार की परिस्थितियों में पैदा होने वाले परिवर्तनों को मनुष्यकृत की अपेक्षा समय जनित मानना अधिक तर्क संगत लगता है !
इसलिए जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग जैसी परिस्थितियाँ पैदा होने के लिए मनुष्य कृत प्रयासों की अपेक्षा समय के स्वाभाविक संचारजन्य परिवर्तन के क्रम को ही इसका भी कारण माना जाना चाहिए !
समयजन्य परिवर्तन तो हमेंशा ही होते रहे हैं !
जलवायुपरिवर्तन हो रहा है तो प्रश्न उठता है कि कब से हो रहा है जब से सृष्टि निर्मित हुई तभी से ये क्रमिक रूप से होता रहा है! यदि यह हजारों लाखों वर्ष पहले से चले आ रहे सृष्टिक्रम के अनुशार अपने प्रवाह में ही जलवायुपरिवर्तन होता चला आ रहा है तो ये तो होता ही रहेगा इसे रोककर रखना संभव नहीं है !यदि बीच में मनुष्यकृत कोई प्रक्रिया घटित हुई जिससे यह जलवायुपरिवर्तन होने लगा है तब तो इस बात को देखना पड़ेगा कि मनुष्यकृत प्रयासों में से क्या प्रकृति के प्रवाह को परवर्तित किया जा सकता है यदि हाँ तो उसकी सीमाएँ क्या हैं और उनका प्रभाव कितना और कैसे पड़ सकता है साथ ही उससे क्या क्या कितना बदल सकता है ?इसके साथ ही जलवायुपरिवर्तन होने के कारण आजतक क्या क्या और कितना बदला है उन बदलाओं के अनुशार ही उसी अनुपात में ही आगे की परिकल्पना की जा सकती है !
जीवन में भी तो अच्छाई के लिए परिवर्तन किए जाते हैं !
प्रकृति में हों या जीवन में बदलाव तो अच्छाई के लिए ही किए जाते हैं !प्रत्येक मनुष्य सारा जीवन बदलाव ही तो किया करता है !घर आफिस शरीर के वस्त्र श्रृंगार आदि सब कुछ अक्सर देखा जाता है कि सुंदर लगने के लिए लोग अपनी अपनी इच्छानुसार सुंदर बनाने के लिए आजीवन बदलाव किया करते हैं ! कपड़े गहने आदि बदल बदल कर पहनते हैं अच्छा लगने लिए ही तो लोग गाड़ियाँ घड़ी चस्मा जूते चप्पल आदि बदल बदल कर पहनते हैं !इसका मतलब ये नहीं कि पहले वाले ख़राब थे वो भी अच्छे थे !
यहाँ विशेष बात यह है कि बदलाव चाहें जितने किए जाते हैं किंतु उन सभी परिवर्तनों का रंग रूप आकार प्रकार आदि बदल सकता है किंतु उनका मूल स्वभाव गुण लक्षण आदि कभी नहीं बदलते हैं ! जूते कपड़े आदि कितने भी बदल बदल कर क्यों न पहने जाएँ किंतु शरीर की दृष्टि से उनका उपयोग वही रहेगा जो पहले से चला आ रहा है उसमें बदलाव नहीं होगा !यदि जूते के उदाहरण को ही लें तो बदले कितने भी जाएँ उसमें तो स्वतंत्रता है किंत जूते जिन पैरों के बदले जाने हैं और जो अभी तक पहने जा रहे थे उन दोनों की नाप लगभग एक समान ही रहेगी और पहने पैर में ही जाएँगे काम वही करेंगे जो पहले वाले जूते कर रहे थे ! इसी प्रकार से नींबू ,इमली,कच्चाआम जैसी चीजों का आकार प्रकार रंग रूप आदि में यदि कुछ बदलाव आ भी जाए तो उससे ऐसीकल्पना नहीं कर ली जानी चाहिए कि ऐसे फलों का खट्टापन भी समाप्त हो जाएगा !
कुलमिलाकर परिवर्तनों की भी सीमा है परिवर्तनों से प्रभावित होकर किसी वस्तु के अपने गुण कुछ कम या अधिक हो सकते हैं किंतु वह द्रव्य अपने स्वभाव को कभी नहीं छोड़ सकता है तथा अपने से विपरीत गुणों को तो वो कभी भी नहीं ग्रहण कर सकता है!मिर्च विकारवान होकर अपना कडुआपन तो छोड़ सकता है किंतु ईख (गन्ने) की तरह मीठा नहीं हो सकता है!इसी प्रकार से हो सकता है कि ईख(गन्ना) किसी कारण से अपनी मधुरता खो दे किंतु उसमें मिर्च जैसा कडुआपन तो कभी भी नहीं आ सकता है !ऐसे ही जल के अभाव में नदी का प्रवाह कम हो सकता है रुक सकता है किंतु विपरीत दिशा में कभी नहीं बह सकता है!
इस प्रकार से किसी भी वस्तु में परिवर्तन केवल उतने हो सकते हैं कि उसके अपने गुणों में कुछ कमी आ जाए या कुछ बढ़ोत्तरी हो जाए किंतु कोई द्रव्य अपने गुण को अपने से विपरीत स्वभाव के गुण को कोई द्रव्य कभी स्वीकार नहीं कर सकता है !अग्नि तो बर्फ के ढेर में रहकर भी ठंडी नहीं हो सकती है !समुद्र की अथाह जलराशि में रहकर भी ज्वालामुखी आज भी धधक रहे हैं !ऐसे ही आग का स्वभाव उष्णता और उसकी लव का ऊपर की ओर जाना है तो आग को कैसे भी रखा जाए फिर भी गर्मी उसमें रहेगी ही और उसकी लव ऊपर की ओर जाएगी ही जिसे कभी बदला नहीं जा सकता है !
कुलमिलाकर जो परिवर्तन होते भी हैं उनकी भी सीमाएँ निश्चित हैं !प्रत्येक सर्दी की ऋतु में गर्म कपड़े ही पहने जाएँगे यह तो निश्चित है उनका गुण धर्म वही होगा जो पहले पहने जा रहे थे उनका था उद्देश्य भी वही होगा कि ऐसे कपड़े पहने जाएँ जिनसे सर्दी कम लगे किंतु उनके रंग रूप में बदलाव किया जा सकता है ! जिस प्रकार से कोई मनुष्य अपने को अच्छा लगने के लिए अपने आसपास की वस्तुओं को बदलता रहता है उसी प्रकार से प्रकृति में भी होता है मनुष्य ने सबकुछ प्रकृति से ही तो सीखा है !बसंत ऋतु में प्रतिवर्ष पेड़ों में पतझड़ होता है जिसे देखकर यह नहीं कहा जाएगा कि जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसा हो रहा है !अब ये पेड़ सूख जाएँगे आदि !क्योंकि जो जानते हैं उन्हें पता होता है कि यह परिवर्तन अच्छाई के लिए हो रहा है अब इसमें नए नए पत्ते आएँगे कुछ समय बाद ये पेड़ फिर हरे भरे हो जाएँगे !एक वर्ष बाद वे पत्ते फिर वैसे ही हो जाते हैं जिस प्रकार के पत्ते पिछले वर्ष झड़े थे फिर पेड़ों की कोपलें फूटती हैं फिर नए पत्ते आते हैं ये प्रकृति का क्रम है जो प्रकृति एक वर्ष के समय में प्रति वर्ष पूरा करती है इसके लिए उन पेड़ों को विभिन्न अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है जो कई बार एक दूसरे से विपरीत भी होती हैं कई बार ऐसी अवस्थाएँ एक साथ देखने को मिलती हैं ऐसी परिस्थिति में उस पेड़ के समय चक्र को समझे बिना पेड़ की किसी एक अवस्था को पकड़कर बैठ जाए और उसे जीवन एवं समाज के लिए घातक सिद्ध करने लगे यह उचित नहीं है !कई बार तो जिस पेड़ में एक ओर पतझड़ हो रहा होता है उसी में दूसरी ओर कोपलें फूट रही होती हैं !ऐसी परिस्थितियाँ घटित होने का कारण जलवायु परिवर्तन को कहने लगना तो ठीक नहीं होगा !
जिस प्रकार से जीवन के विषय में किसी से कभी कोई ये अपेक्षा नहीं करता है कि अमुक व्यक्ति ने पिछले वर्ष के इस महीने की इतनी तारीख को इस प्रकार के कपड़े पहने थे या ऐसा श्रृंगार किया था या इस प्रकार की गाड़ी पर बैठा था !इसलिए इसवर्ष के इस महीने की इस तारीख को भी उसे वही सब कुछ करना चाहिए और यदि वैसा करे या कर पावे तो इसे जीवन संबंधी जलवायु परिवर्तन कहना तो ठीक नहीं होगा !ऐसी परिस्थिति में प्रकृति के बारे में ऐसा आग्रह क्यों कि अभी तक जैसा जिस महीने या तारीख को होता रहा है वैसा ही आगे भी होते रहना चाहिए अन्यथा जलवायु परिवर्तन मान लिया जाएगा !ये कैसी जबर्दस्ती ?
कुलमिलाकर हमारे कहने का अभिप्राय मात्र इतना है जीवन में जो परिवर्तन हम लोगों के द्वारा किए जाते हैं उसके बाद भी उनके गुण और धर्म में कोई विशेष अंतर नहीं आता है अपितु आशा ये की जाती है कि ये पहले वाले से अधिक सुखदायी होंगे और होते भी हैं !पिंड से ब्रह्मांड तक के गुणधर्म में बहुत बड़ा अंतर नहीं होता है !इसलिए जलवायु परिवर्तन जैसी कल्पनाएँ यदि सही भी हों तो भी उनसे प्रकृति और जीवन को कोई हानि होगी ऐसी परिकल्पना नहीं की जानी चाहिए !
जलवायुपरिवर्तन का परीक्षण कैसे किया जाए ?
जलवायु में जल और वायु दो शब्द हैं दोनों का स्वभाव गुण उपयोग आदि जो आदिकाल में था वही आज है !ऐसी परिस्थिति में जलवायुपरिवर्तन की बातों को तर्क की कसौटी पर कैसे कसा जाए !
जल का स्वभाव नीचे की ओर बहना है उसमें तरलता होती है उसका स्पर्श शीतल होता है इसके गुणों में परिवर्तन करने के लिए कोई कितना भी प्रयास क्यों न कर ले किंतु वह स्थायी नहीं होता है !जल का बहना रोकने के लिए कोई मनुष्य प्रयास पूर्वक बर्फ जमा सकता है किंतु प्रयास का असर समाप्त होते ही वह वर्फ पिघलकर जल ही बन जाती है !इसी प्रकार से नीचे की ओर बहने वाले जल के स्वभाव को बदलने के लिए कोई कोई मोटर आदि से जल कितने भी ऊपर क्यों न चढ़ा दे किंतु उसका प्रभाव समाप्त होते ही जल नीचे की ओर ही बहने लगता है !इसीप्रकार से जल की शीतलता को समाप्त करने के लिए जल को कितना भी गर्म क्यों न कर दिया जाए किंतु अग्नि से अलग करते ही वह ठंडा होने लगेगा !ये जल का अपना स्वभाव है इसलिए उसमें कभी स्थायी बदलाव नहीं होते हैं !ऐसी परिस्थिति में जलवायुपरिवर्तन की दृष्टि से यदि देखा जाए तो जल में किसी भी प्रकार का परिवर्तन होना संभव ही नहीं है इसीलिए हजारों लाखों वर्ष बीतने के बाद भी जल के स्वभाव में कुछ भी तो बदलाव नहीं हुआ है !
इसी प्रकार से अब बात वायु के विषय में है !वायु का कोई स्वरूप नहीं होता है इसके बाद भी उसमें स्पर्श का गुण तो होता ही है वो रूप रहित होकर भी सबका स्पर्श करती रहती है और ब्रह्मांड में जहाँ जो कुछ भी गति शील है उसमें वायु का ही योगदान है!आँधीतूफ़ान समुद्र में उठनेवाला ज्वारभाटा आकाश में ग्रहनक्षत्रों का संचार,वर्षा की संभावनाएँ बनाना बिगाड़ना, बादलों का गर्जन,बिजली का चमकना,ओले गिरना,कंकणों, मछलियों मेढकों या रक्त की वर्षा होना यहाँ तक कि भूकंप और सुनामी जैसी घटनाओं का घटित होना भी वायु के आधीन है मनुष्य समेत सभी जीव जंतुओं का जीवन तो वायु के आधीन होता ही है !
वायु कभी स्थिर नहीं होता है इसलिए उसमें परिवर्तन तो प्रत्येक क्षण होते हैं किंतु वह उसके संचार का ही अंग है !इसलिए उसमें होने वाले परिवर्तनों को हानि कारक नहीं माना जाना चाहिए !समाज के सदाचरण विहीन होने के कारण वायु में कुछ समय के लिए परिवर्तन आते हैं वे कारण समाप्त होते ही फिर सबकुछ सामान्य हो जाता है !इसमें दीर्घकालीन किसी परिवर्तन की परिकल्पना नहीं की जानी चाहिए !
इसलिए जल और वायु के स्वभाव में यदि प्रयास पूर्वक भी परिवर्तन नहीं लाया जा सकता है तो जलवायु परिवर्तन होना संभव कैसे होगा और यदि उसमें कोई सामान्य या सूक्ष्म परिवर्तन होते दिखें भी तो कभी यह नहीं सोच लेना चाहिए कि जल और वायु के स्वभाव में गुणों में कोई बदलाव आ जाएगा !क्योंकि स्वभाव और गुणों में बदलाव आते ही जल और वायु दोनों ही प्रकृति और जीवन के लिए ये अनुपयोगी हो जाएँगे !जो सृष्टि के लिए बिनाशकारी सिद्ध होगा !अतएव यह कभी नहीं सोचा जाना चाहिए कि जलवायुपरिवर्तन से प्रकृति और जीवन को किसी प्रकार का कोई आघात पहुँचेगा !ऐसी कल्पना भी नहीं की जानी चाहिए !
समय के कारण होता है जीवन और प्रकृति में बदलाव -
इसलिए जलवायु परिवर्तन को समझने के लिए भी समय को ही पहले समझना पड़ेगा ! समय जब जैसा समय बदलता जाता है तब तैसी घटनाएँ प्रकृति और जीवन में घटित होती चली जाती हैं!यही कारण है कि प्राचीन काल में प्रकृति या शरीर में कोई घटना घटित हो रही होती थी या होने की संभावना होती थी तो उसके विषय में जानकारी जुटाने के लिए लोग समय को ही माध्यम बनाया करते थे !क्योंकि प्रकृति या जीवन में घटित हो रही कोई घटना वर्तमान में जितनी और जैसी दिखाई पड़ रही होती है उतनी तो सब देख ही रहे होते हैं !जानना यह आवश्यक होता है कि भविष्य में ये घटना अभी और बढ़ेगी यदि बढ़ेगी तो कितनी ?और इसके घटने या समाप्त होने की संभावना है क्या ?
कई बार देखा जाता है कि किसी बहुत बड़े रोग की शुरुआत छोटी सी फुंसी से हो रही होती है और आगे चलकर वही फुंसी उस व्यक्ति की मृत्यु का कारण बन जाती है !ऐसी परिस्थिति में प्रारंभिक काल में उसके वर्तमान स्वरूप(छोटी सी फुंसी) को देखकर उसकी ऐसी भयानकता का अंदाजा किसी चिकित्सक के द्वारा कैसे लगाया जा सकता था !केवल समय के द्वारा ही इसका अंदाजा लगा पाना संभव होता है !
इसी प्रकार से मौसम के विषय में समुद्र में उठे बादलों को देखकर ये अनुमान लगाया जा सकता है कि बादल हैं तो बरसने के लिए ही आए होंगे !वे बादल जिस दिशा में जितनी गति से चल रहे होते हैं उसी हिसाब से गुणागणित लगाकर ये बताया जा सकता है ये किस समय किस देश प्रदेश या शहर आदि में पहुँच सकते हैं !किंतु ये बरसेंगे या नहीं बरसेंगे और बरसेंगे तो कितना पानी बरसेंगे !कितने दिनों सप्ताहों तक लगातार बरसेंगे इसके विषय में उपग्रहों और रडारों से प्राप्त चित्रों के द्वारा कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता है वे तो केवल जितने बादल प्रत्यक्ष तौर पर दिखाई पड़ रहे होते हैं तमाम सुपर कंप्यूटरों के द्वारा उन्हीं के विषय में गुणा गणित कर सकते हैं उसके बाद में अभी कितने बादल और आएँगे वे कितने भयानक होंगे कितने दिन तक चलेंगे इसका अनुमान केवल समय के माध्यम से ही लगाया जा सकता है !क्योंकि समय के कारण ही ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं !
यदि ऐसा न होता तो 29 अक्टूबर 2015 को तमिलनाडु में जब बादलों की घटाएँ घिरी थीं और 30 अक्टूबर को वर्षा प्रारंभ हुई थी तब बादलों को देखकर मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा अपनी सबसे पहली भविष्यवाणी में केवल दो दिन तक पानी बरसने की भविष्यवाणी की गई थी !जब दो दिन बाद भी पानी बरसता रहा तब उसके बाद तीन दिन और फिर दो दिन इस प्रकार से जैसे जैसे पानी बरसता गया वैसे वैसे मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा भी पानी बरसने की तारीखें बढ़ाई जाती रहीं !इस प्रकार 15 से 20 दिन तक पानी बरसता रहा और मद्रास भीषण बाढ़ की चपेट में आ गया !7 अगस्त 2018 से केरल में जो बाद प्रारंभ हुई थी उसमें भी यही हुआ था !यहाँ तक कि 3 अगस्त 2018 को सरकारी मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा जो भविष्यवाणी की गई थी उसमें अगस्त सितंबर में सामान्यवर्षा होने की भविष्यवाणी की गई थी उसके तीन दिन बाद ही भीषण बाढ़ से केरल डूबने लगा था !बाद में केरल के मुख्यमन्त्री ने कहा मुझे ऐसी वर्षा के पूर्वानुमानों से नहीं अवगत कराया गया था ! भविष्यवक्ताओं के प्रमुख ने एक टेलीविजन चैनल के इंटरव्यू कहा कि अप्रत्याशित बारिश हुई है !इसका कारण जलवायुपरिवर्तन था !
ऐसी घटनाओं से इस बात अंदाजा लगाया जा सकता है कि उपग्रहों रडारों सुपरकंप्यूटरों के माध्यम से मौसम संबंधी जो पूर्वानुमान लगाया जाता है वो कितना कमजोर आधारविहीन और अविश्वसनीय होता है और जलवायुपरिवर्तन शब्द का किन परिस्थितियों में तथा कैसी मजबूरी में प्रयोग किया जाता है !
समय विज्ञान के द्वारा दक्षिण भारत की बाढ़ की भविष्यवाणी पहले का दी गई थी !ऐसी परिस्थिति में समय ही एकमात्र वो मजबूत माध्यम है जिसके आधार पर जीवन और प्रकृति संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान बहुत पहले ही लगाए जा सकते हैं ! समय बदलता है तो प्रकृति में और जीवन में घटनाएँ घटित होती हैं इसीलिए समय में कब किस प्रकार का बदलाव होगा या हो रहा है इसका पता होना चाहिए इसके बिना किसी भी प्रकार के पूर्वानुमान की आशा नहीं की जानी चाहिए !
जलवायुपरिवर्तन का परीक्षण कैसे किया जाए ?
हमारी उम्मींद से अधिक वर्षा ,सर्दी या गर्मी हो तो जलवायुपरिवर्तन और कम हो तो जलवायुपरिवर्तन !ऐसा आग्रह ठीक नहीं है !ऐसा होना न होना तो समय के आधीन है !समय के संचार को समझना कुछ लोग भले ही आवश्यक न मान रहे हों किंतु समय को न समझने या न मानने के कारण समय का आस्तित्व समाप्त तो नहीं हो जाता है !सच्चाई यह है कि संसार में दिखने या होने वाले अधिकाँश बदलाव समय के आधीन हैं या यूँ कह लिया जाए कि जो बदलाव करने में मनुष्य अपने को सक्षम नहीं समझता है वे भी यदि होते हैं उनके पीछे समय की ही शक्ति कार्य कर रही होती है ! समय के बदलने की सबसे अधिक पहचान प्रकृति और पशु पक्षियों एवं जीव जंतुवों को होती है !
खेतों में कई बीज पूरी बरसात भर पड़े पड़े भीगा करते हैं किंतु न सड़ते हैं और न ही अंकुरित होते हैं वर्षा बीतने के बाद जैसे ही उनकी अपनी ऋतु आती है तो वे अंकुरित होने लगते हैं !इसी प्रकार से किसी पेड़ में कितना भी खाद पानी क्यों न दिया जाए किंतु उसमें तब तक फूल या फल नहीं आते हैं जब तक उसकी अपनी ऋतु अर्थात समय नहीं आता है !प्रातःकाल होते ही कमल का पुष्प खिल जाता है और सायंकाल होते ही बंद हो जाता है !बसंतऋतु आते ही पेड़ों के पत्ते झड़ने लगते हैं और नई कोपलें खिलने लगती हैं और सुदूर दक्षिण दिशा में स्थित मलयाचल की ओर से सुखद हवाएँ चलने लगती हैं !वर्षाऋतु आते ही घनघोर घटाएँ घिरने लगती हैं उमड़ घुमड़ कर बादल बरसने लगते हैं नदी तालाब खेत खलिहानों आदि में सभी ओर जल ही जल दिखाई पड़ने लगता है !ऐसा अन्य ऋतुओं में होते तो नहीं देखा जाता है !प्रतिवर्ष ऐसा होता है !यदि जलवायुपरिवर्तन हुआ होता तो उसके कारण होने वाले कुछ बदलाव के चिन्ह तो प्रकृति में भी दिखाई पड़ते !
इसीप्रकार से समय की पहचान जीव जंतुओं को भी होती है इसीलिए तो भूकंप आने के समय मनुष्यादि समस्त जीव जंतुओं के शरीर मन और व्यवहार में बदलाव आने लगता है!ऐसे ही बसंतऋतु का समय आते ही कोयलें पहले भी कूकने लगती थीं आज भी कूकने लगती हैं !वर्षाऋतु आते ही मेढक बोलने लगते हैं !अधिक वर्षा होने से पहले चीटियाँ अपने अंडे बच्चे लेकर ऊपर की ओर चढ़ने लगती हैं !प्रातःकाल होते ही मुर्गे बोलने लगते हैं ! ऐसी परिस्थिति में बदलाव के कुछ चिन्ह तो इन जीवजंतुओं के व्यवहार पर भी दिखने चाहिए थे !
ग्रीष्मऋतु में इक्षुसागर की ओर से आने वाली मीठी हवाएँ आज भी अपनी मधुरता से अत्यंत खट्टे कच्चे आमों को पकाकर मीठा बना देती हैं खरभूजे तरबूज आदि इन इक्षु सागरीय हवाओं के मधुर स्पर्श से मीठे हो जाते हैं वे हवाएँ(लू) जितनी अधिक चलती हैं वातावरण में उतनी अधिक मधुरता बढ़ती है !यदि ये हवाएँ नहीं चलती हैं तो इनमें उस प्रकार की मधुरता नहीं आ पाती है !इसी प्रकार से ग्रीष्मऋतु में मीठी हवाएँ चलने लगती हैं उसी प्रकार से समय का भी स्वाद होता है !हेमंतऋतु का समय ही मीठा होता है इसीलिए हेमंतऋतु के आने से पहले स्वाद में फीकी लगने वाली ईख(गन्ना) हेमंतऋतु का समय आते ही मीठी हो जाती है ! ये सबकुछ पहले भी होता था अभी भी होता है!इन हवाओं में ये गुण तो हमेंशा से रहे हैं समय भी इसी क्रम में चलता चला आ रहा है और आगे भी ऐसा ही बना रहेगा !यह भी निश्चित है फिर कैसा जलवायुपरिवर्तन ?
इसीप्रकार से नींबू ,इमली,कच्चे आम जैसे फलों का स्वाद पहले भी खट्टा होता था आज भी खट्टा ही होता है!अन्य भी खाद्यपदार्थों में जिसके जैसे स्वाद होते थे वैसे ही आज भी होते हैं !उड़द मूँग मसूर गेहूँ तिल जौं चावल घी दूध आदि समस्त खाद्य पदार्थ आदि काल से विद्यमान हैं ये सभी तब जिस प्रकार के स्वाद और उपयोग के लिए जाने जाते थे आज भी वही परिस्थिति विद्यमान है ! जलवायु परिवर्तन के कारण इनमें भी कोई बदलाव तो नहीं हुआ है !
परिवर्तन के इस क्रम में हमें यह भी सोच कर चलना चाहिए कि अनेकों प्राकृतिक कारणों से सभी जीव जंतुओं वस्तुओं आदि के कुछ आकार प्रकार रंग रूप आदि में कुछ बदलाव हो सकता है किंतु ऐसे बदलावों से किसी को इस बात का भ्रम नहीं होना चाहिए कि इससे किसी द्रव्य (वस्तु)आदि के मूल स्वभाव में कभी कोई बदलाव हो सकता है !यदि ऐसा होना होता तो हजारों लाखों वर्ष की इस सृष्टि में अब तक तो बहुत कुछ बदल चुका होता है किंतु कुछ भी तो नहीं बदला है !हजारों वर्ष पहले जिस द्रव्य का जो गुण होता था आज भी तो वही है !ऐसी परिस्थिति में जलवायुपरिवर्तन जैसी इतनी बड़ी परिकल्पना को विश्वसनीय कैसे बनाया जाए !
कुलमिलाकर आदिकाल से जो जैसा जहाँ घटित होता चला आ रहा था आज भी सबकुछ वैसा ही होता चला आ रहा है!कहीं कोई तो बदलाव नहीं हुआ है !प्रकृति में समय के साथ अपने अपने स्वभाव के अनुशार समयक्रम से सारे बदलाव होते जा रहे हैं वही पहले हुआ करते थे जो आज हो रहे हैं ऐसा कुछ नया नहीं हुआ है जिसके लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया जा सके !
बताया जाता है कि भूकंप आने से पहले प्राकृतिक वातावरण में बदलाव आने लगता है पेड़ पौधों समेत समस्त प्रकृति में सूक्ष्म परिवर्तन हो जाते हैं ऐसे ही वहाँ के जीवजंतुओं के व्यवहार में सूक्ष्म परिवर्तन दिखने लगता है !
ऐसी परिस्थिति में जलवायुपरिवर्तन की अपेक्षा भूकंप तो छोटी घटना है भूकंप आने के समय यदि प्रकृति में जलवायुपरिवर्तन बदलाव जैसे इतने बड़े बदलाव की कल्पना की जा रही है इतनी बड़ी बड़ी बातें की जा रही हैं तो उसका असर भी प्रकृति पर कुछ तो अवश्य दिखाई पड़ता किंतु ऐसा कुछ होते तो नहीं देखा जा रहा है जो होने का दावा किया जा रहा जा रहा है वो प्रकृति के नित्यक्रम में सम्मिलित है वो आकस्मिक नहीं है !यदि वो जलवायुपरिवर्तन के कारण होता तो समयविज्ञान के द्वारा उसके विषय में लगाए जाने वाले पूर्वानुमान सच न होते !
जलवायुपरिवर्तन और प्राकृतिक घटनाएँ -
प्राकृतिक घटनाओं को अपने करके नहीं चला जा सकता है !वर्षा के जल की तुलना नल के जल से नहीं की जा सकती कि जब जितना चाहो उतना बरसाकर बंद कर दिया जाए !ऐसा ही सर्दी आदि के विषय में समझा जाना चाहिए !हमारी उम्मींद से अधिक वर्षा ,सर्दी या गर्मी हो तो जलवायुपरिवर्तन और कम हो तो जलवायुपरिवर्तन !ऐसा आग्रह ठीक नहीं है !समय चक्र में बदलाव न होने के बाद भी कई बार कुछ लोगों को ऐसा भ्रम होने लगता है कि ये सब जलवायुपरिवर्तन के कारण हो रहा है !
किसी भी ऋतु में ऋतु का प्रभाव कम या अधिक दिखना उस ऋतु का अपना विशेषाधिकार है !किसी ऋतुविशेष पर दूसरी ऋतुओं का पड़ने वाला असर है !हेमंत और बसंत ऋतु के प्रारंभ में यदि समय के प्रभाव से यदि वर्षा या वर्फबारी हो ठंडी ठंडी हवाएँ चलने लगें तो वर्षा या वर्फबारी आदि कारणों शीत का प्रभाव पहले से शुरू होकर कुछ समय बाद तक बना रह सकता है किंतु उसे शीतऋतु से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए !वर्षा या वर्फबारी होना या ठंडी ठंडी हवाएँ चलने लगना ये प्रकृति की स्वतंत्र घटनाएँ हैं !यह बात दूसरी है कि ऐसी सर्दी की ऋतु के आगे पीछे घटित होने लगी हैं और इनके कारण होने वाले प्रभाव का शीतऋतु के स्वभाव से मिलता जुलता असर है यदि ऐसा अन्य ऋतुओं के आगे पीछे होता तो संभवतः सर्दियों के आगे पीछे बढ़ने घटने का भ्रम न होता !
शिशिरऋतु में सर्दी का बहुत अधिक होना कम होना या सर्दी में ही गर्मी का अनुभव होने लगना!इसी प्रकार से ग्रीष्म ऋतु में गर्मी का बहुत अधिक होना ,गर्मी का कम होना या गर्मी के समय में सर्दी का अनुभव होने लगना !ऐसे वर्षाऋतु में वर्षा का बहुत अधिक होना ,वर्षा का कम होना या सूखा पड़ जाना !इसी प्रकार से हेमंत,बसंत और शरद आदि ऋतुएँ भी हीनयोग,अतियोग,और मिथ्या योग से विकारित होने लग जाती हैं !इस प्रकार से ऋतुओं के प्रभाव प्रकट करने के ये 18 अपने भेद होते हैं जिन्हें ऋतुव्यापत्तियों के नाम से जाना जाता है | ऋतुव्यापत्तियों के बढ़ने के कारण भी कुछ और ही हैं जलवायुपरिवर्तन के लिए जिन कारणों को जिम्मेदार बताया जा रहा है उनसे इनका कोई संबंध नहीं है!उन कारणों की चर्चा यहाँ करना ठीक नहीं होगा !
ऐसी परिस्थिति में इसे जलवायुपरिवर्तन जैसा कोई नया नाम दिया जाना ठीक नहीं है! ये तो ऋतुओं के स्वरूप हैं !
विशेष बात यह है कि यह सब कुछ तो आदिकाल से ही होता चला रहा है सूखा वर्षा बाढ़ आदि सारी घटनाएँ हर युग में घटित होती दिखाई देती हैं उनके प्रभाव में कमी या अधिकता तो हमेंशा से रहती चली आ है !ये प्रकृति का अपना स्वभाव है जिसे किसी एक परिस्थिति में बाँधकर न रखा जा सकता है और न ही प्रकृति से ऐसी अपेक्षा ही की जानी चाहिए,क्योंकि प्रकृति स्वतंत्र है उसकी अपनी लय है अपनी धारा है वह अपने सिद्धांतों नियमों से बँधी हुई है उसी के अनुशार चलती है उसी के अनुशार चलेगी भी उसे मनुष्यकृत किन्हीं प्रयासों से बदला नहीं जा सकता है प्रकृति के प्रत्येक परिवर्तन को स्वीकार करना सहना मनुष्य की विवशता है !प्रकृति से संबंधित परिवर्तनों को रोककर रखना मनुष्य के बश की बात नहीं है !
ऋतुविज्ञान (मौसम)-
प्रकृति के नियमानुसार वैसे तो 6 ऋतुएँ होती हैं उसमें भी सर्दी गर्मी वर्षा आदि तीन ऋतुएँ प्रमुख हैं !किसके बाद कौन सी ऋतु आएगी आदि ऋतुओं का क्रम भी निश्चित है! एक वर्ष में सर्दी गर्मी वर्षा आदि तीन प्रकार का प्राकृतिक वातावरण देखने को मिलता है कौन कितने महीने तक रहता है इसका समय भी निश्चत है किंतु कुछ प्राकृतिक घटनाओं के कारण इनका प्रभाव कभी कुछ दिन आगे पीछे घटित होते दिखाई पड़ता है! इसके अतिरिक्त मात्रा और स्थान अनिश्चित है कई बार ऋतुओं का प्रभाव कम तो कई बार अधिक घटित होता है !कई बार किसी स्थान पर कम तो कई बार किसी स्थान पर अधिक घटित होते दिखाई पड़ता है !
ऐसी परिस्थितियाँ पैदा होने का कारण एक ऋतुकाल में ही अन्य ऋतुखण्डों का आना जाना होता है!प्रत्येक ऋतु में उस ऋतु का जब अपना ऋतुखंड आता है तब उस ऋतु का अपना प्रभाव बहुत अधिक बढ़ते देखा जाता है और जब दूसरे प्रकार का ऋतुखंड आता है तब दोनों प्रकार का असर होते दिखाई पड़ता है !
इसीलिए केवल वर्षा ऋतु का समय आते ही वर्षा नहीं होने लगती है अपितु वर्षाऋतु के समय में भी जब वर्षासंबंधी ऋतुखंड आता है अधिकवर्षा तभी होती है!यह ऋतुखंड वर्षाऋतु के प्रारंभ होने के बाद जब पहली बार आता है तो इसे अति आधुनिक लोग इसे मानसून का आना मानते हैं !
प्रत्येक स्थिरऋतु में अंतर्ऋतुओं के ऋतुखंडों का प्रभाव भी कुछ कुछ दिनों के लिये देखा जाता है यह सभी ऋतुओं में आता जाता रहता है!तत्कालीन समय संचार के अनुशार लघुखण्डों अर्थात कुछ कुछ दिनों में बदलती रहती है !
इसीलिए वर्षाऋतु के लिए निर्धारित समय में भी सभी दिनों में वर्षा नहीं होती है अपितु अंतर्ऋतुओं के हिसाब से वर्षा के लिए उपयुक्त जो दिन आते हैं वर्षाऋतु होने पर भी केवल उन्हीं दिनों में वर्षा होती है या यूँ कह लें कि उन दिनों में अधिक वर्षा होती है !वर्षाऋतु के अतिरिक्त भी सर्दी गर्मी आदि जिस भी स्थिरऋतु में अंतर्ऋतुओं के हिसाब से वर्षासंबंधी समय आ जाता है तो उन दूसरी ऋतुओं में भी वर्षा होते देखी जाती है!इसमें अंतर केवल इतना पड़ते दिखाई पड़ता है कि वर्षासंबंधी समयखंड यदि वर्षा ऋतु में आ जाता है तो अधिक वर्षा हो जाती है अन्य ऋतुओं में अपेक्षा कृत कम वर्षा होती है !
ऐसे ही जिस वर्ष जितने समय के लिए ग्रीष्मऋतु में समयसंचार के अनुशार का ग्रीष्मऋतुखंड भी आ जाता है उतने समय के लिए गर्मी का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाता है !यही ग्रीष्मखंड वर्षा ऋतु में आता है तो उतने दिन वर्षा नहीं होती है और गर्मी अधिक पड़ने लगती है फिर भी वर्षाऋतु के समय में हवाएँ शीतल होने के कारण उस ग्रीष्मऋतुखंड का असर बहुत अधिक नहीं दिखाई पड़ता है!यह ग्रीष्मऋतुखंड यदि वर्षाऋतु के प्रारंभ में ही आ गया तो वर्षाऋतु पर भी ग्रीष्मऋतुखंड के प्रभाव से उतने दिनों या सप्ताह तक वर्षा नहीं होती है |ऐसी परिस्थिति में अत्याधुनिक मौसमभविष्यवक्ताओं को जलवायुपरिवर्तन की आशंका होने लगती है और मानसून के देर से आने की बातें की जाने लगती हैं !
ऐसे ही सर्दी की शिशिरऋतु में शीतऋतुखंड जब आता है तो उस समय सर्दी बहुत अधिक पड़ने लगती है इसी शिशिरऋतु में जब ग्रीष्मऋतुखंड आ जाता है तब सर्दी का प्रभाव बहुत कम हो जाता है!इसी शीतऋतुखंड में जब वर्षा का ऋतुखंड आ जाता है तब शिशिरऋतु में भी वर्षा होने लगती है !ऐसी परिस्थिति में शीतऋतुखंडन होने पर भी वर्षा होने के कारण तापमान घट जाता है और सर्दी बढ़ जाती है जिसका उस समय हुई वर्षा से तो संबंध होता है किंतु शिशिरऋतु से कोई संबंध नहीं होता है !ऐसा शिशिरऋतु के प्रारंभ होने समाप्त होने या बीच में कभी भी हो सकता है!ऐसा यदि शिशिरऋतुके मध्य में हुआ तब तो अत्याधुनिक मौसमभविष्यवक्ता लोगों के द्वारा कुछ वर्षों दशकों के सर्दी संबंधी रिकार्ड टूटने की बात की जाने लगती है !यदि शिशिरऋतु के प्रारंभ होने या समाप्त होने के समय पर वर्षा संबंधी ऋतुखंड आता है और अधिक वर्षा होने के कारण सर्दी का प्रभाव बढ़ जाता है !सिद्धांततःउसका शिशिरऋतु से कोई संबंध न होने पर भी वर्षा के कारण सर्दी का असर अधिक पर उसे अत्याधुनिक मौसमभविष्यवक्ताओं के द्वारा उसे शिशिरऋतु से ही जोड़कर देखा जाने लगता है और उसे शिशिरऋतु का ही अंग मानते हुए सर्दियों के आगे पीछे खिसक जाने की बातें की जाने लगती हैं बस इसी जगह अत्याधुनिक मौसमभविष्यवक्ताओं को जलवायुपरिवर्तन की आशंका होने लगती है !
इसीप्रकार से शिशिरऋतुखंड कई बार ग्रीष्मऋतु में भी आ जाता है तो उतने दिन के लिए हवाएँ बदलकर गर्मी के असर को कम कर देती हैं !जिस बार शीतऋतु जितने दिन के लिए शीतखंड भी आ जाता है उतने दिनों के लिए सर्दी बहुत अधिक पड़ने लगती है जिस वर्ष ऐसा नहीं होता है उस वर्ष ऐसा नहीं देखा जाता है कई बार तो कुछ वर्षों या दशकों तक कुछ अंतर के साथ समय खंड विचरण किया करते हैं इसलिए उतने वर्षों तक प्रकृति में प्रत्येक वर्ष एक जैसी परिस्थिति ही बनी रहती है !
वैदिक मौसम विज्ञान-
कुलमिलाकर प्रकृति हो या जीवन समय का असर सभी पर पड़ रहा है इसीलिए सभी जगह सभी वस्तुओं में और सभी जीवों में प्रतिपल परिवर्तन होते देखे जाते हैं !गंगा यमुना आदि नदियों के प्रवाह की तरह ही समय का भी प्रवाह होता है उसकी भी अपनी धारा है !जिसप्रकार से नदियों की धारा कभी कम कभी अधिक होती है उनका जल कभी स्वच्छ तो कभी अस्वच्छ रहता हैं इस प्रकार के परिवर्तन सभी जगह दिखाई पड़ रहे होते हैं !ऐसी परिस्थिति में जलवायुपरिवर्तन पर आश्चर्य क्यों हो रहा है वो भी इसी प्रकृति का एक हिस्सा है इसलिए परिवर्तन समय जनित होने के कारण समय के साथ साथ प्रकृति और जीवन दोनों में ही परिवर्तन होता रहता है !जिसे मनुष्यकृत किसी भी प्रक्रिया के द्वारा रोककर नहीं रखा जा सकता है !
समय के साथ साथ परिवर्तन होते रहते हैं !
प्रत्येक दिन महीना वर्ष आदि कभी एक जैसा नहीं होता है सबमें कुछ न कुछ अंतर अवश्य बना रहता है ये समय के परिवर्तन के कारण घटित होता है !सभीप्रकार के परिवर्तनों के लिए मनुष्य को ही जिम्मेदार ठहराया जाना उचित नहीं है क्योंकि मनुष्य जहाँ या जिनके लिए कुछ कर ही नहीं सकता है परिवर्तन तो वहाँ भी हो रहे हैं सुदूर आकाश में, सूर्यादि ग्रहों नक्षत्रों में, धरती की गहराई में ,समुद्र की गहराई में उन जंगलों में जहाँ मनुष्य की पहुँच नहीं है परिवर्तन तो वहाँ भी हो रहे हैं !जलवायुपरिवर्तन के लिए जिम्मेदार परिस्थितियाँ पैदा करने में मनुष्य यदि सक्षम मान भी लिया जाए तो वो अपने आस पास का वातावरण ही अपने अनुकूल बना लेता जिसके लिए सारा समाज परेशान है किसी रोगी को स्वस्थ करने के लिए चिकित्सक लोग उसमें परिवर्तन का प्रयास करते हैं किंतु रोगी के शरीर में होने वाले रोगजन्य परिवर्तनों में चिकित्सकों का कितना योगदान है ये तो अनुसंधान का विषय है किंतु इतना तो निश्चित है उनके द्वारा रोगी के शरीर में वे जिस प्रकार के परिवर्तन लाने के लिए प्रयास कर रहे होते हैं कई बार परिणाम उन प्रयासों और उद्देश्यों के विपरीत जाते दिखाई पड़ते हैं !यह स्थिति प्रकृति या जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में घटित हो रही है !भ्रम की स्थिति का निर्माण तब होता है जब कोई व्यक्ति जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए जो प्रयास करता है उसके बाद वह कार्य हो जाता है !उस कार्य के होने या उद्देश्य की पूर्ति से भले ही भले ही उसके प्रयास का दूर दूर तक संबंध न हो किंतु वह व्यक्ति उस इच्छा की पूर्ति होने का श्रेय अपने द्वारा किए गए प्रयास को देने लगता है किंतु उसी प्रयास के परिणाम जब उसके उद्देश्य से विपरीत दिशा में जाते दिखते हैं तो उसकी जिम्मेदारी लेने के लिए प्रयासकर्ता नहीं तैयार होता है !उसके लिए वह समय भाग्य लाक कुदरत आदि अनेकों स्थितियों को जिम्मेदार मान लेता है !ऐसी परिस्थिति में सभी प्रकार की परिस्थितियों में पैदा होने वाले परिवर्तनों को मनुष्यकृत की अपेक्षा समय जनित मानना अधिक तर्क संगत लगता है !
इसलिए जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग जैसी परिस्थितियाँ पैदा होने के लिए मनुष्य कृत प्रयासों की अपेक्षा समय के स्वाभाविक संचारजन्य परिवर्तन के क्रम को ही इसका भी कारण माना जाना चाहिए !
समयजन्य परिवर्तन तो हमेंशा ही होते रहे हैं !
जलवायुपरिवर्तन हो रहा है तो प्रश्न उठता है कि कब से हो रहा है जब से सृष्टि निर्मित हुई तभी से ये क्रमिक रूप से होता रहा है! यदि यह हजारों लाखों वर्ष पहले से चले आ रहे सृष्टिक्रम के अनुशार अपने प्रवाह में ही जलवायुपरिवर्तन होता चला आ रहा है तो ये तो होता ही रहेगा इसे रोककर रखना संभव नहीं है !यदि बीच में मनुष्यकृत कोई प्रक्रिया घटित हुई जिससे यह जलवायुपरिवर्तन होने लगा है तब तो इस बात को देखना पड़ेगा कि मनुष्यकृत प्रयासों में से क्या प्रकृति के प्रवाह को परवर्तित किया जा सकता है यदि हाँ तो उसकी सीमाएँ क्या हैं और उनका प्रभाव कितना और कैसे पड़ सकता है साथ ही उससे क्या क्या कितना बदल सकता है ?इसके साथ ही जलवायुपरिवर्तन होने के कारण आजतक क्या क्या और कितना बदला है उन बदलाओं के अनुशार ही उसी अनुपात में ही आगे की परिकल्पना की जा सकती है !
जीवन में भी तो अच्छाई के लिए परिवर्तन किए जाते हैं !
प्रकृति में हों या जीवन में बदलाव तो अच्छाई के लिए ही किए जाते हैं !प्रत्येक मनुष्य सारा जीवन बदलाव ही तो किया करता है !घर आफिस शरीर के वस्त्र श्रृंगार आदि सब कुछ अक्सर देखा जाता है कि सुंदर लगने के लिए लोग अपनी अपनी इच्छानुसार सुंदर बनाने के लिए आजीवन बदलाव किया करते हैं ! कपड़े गहने आदि बदल बदल कर पहनते हैं अच्छा लगने लिए ही तो लोग गाड़ियाँ घड़ी चस्मा जूते चप्पल आदि बदल बदल कर पहनते हैं !इसका मतलब ये नहीं कि पहले वाले ख़राब थे वो भी अच्छे थे !
यहाँ विशेष बात यह है कि बदलाव चाहें जितने किए जाते हैं किंतु उन सभी परिवर्तनों का रंग रूप आकार प्रकार आदि बदल सकता है किंतु उनका मूल स्वभाव गुण लक्षण आदि कभी नहीं बदलते हैं ! जूते कपड़े आदि कितने भी बदल बदल कर क्यों न पहने जाएँ किंतु शरीर की दृष्टि से उनका उपयोग वही रहेगा जो पहले से चला आ रहा है उसमें बदलाव नहीं होगा !यदि जूते के उदाहरण को ही लें तो बदले कितने भी जाएँ उसमें तो स्वतंत्रता है किंत जूते जिन पैरों के बदले जाने हैं और जो अभी तक पहने जा रहे थे उन दोनों की नाप लगभग एक समान ही रहेगी और पहने पैर में ही जाएँगे काम वही करेंगे जो पहले वाले जूते कर रहे थे ! इसी प्रकार से नींबू ,इमली,कच्चाआम जैसी चीजों का आकार प्रकार रंग रूप आदि में यदि कुछ बदलाव आ भी जाए तो उससे ऐसीकल्पना नहीं कर ली जानी चाहिए कि ऐसे फलों का खट्टापन भी समाप्त हो जाएगा !
कुलमिलाकर परिवर्तनों की भी सीमा है परिवर्तनों से प्रभावित होकर किसी वस्तु के अपने गुण कुछ कम या अधिक हो सकते हैं किंतु वह द्रव्य अपने स्वभाव को कभी नहीं छोड़ सकता है तथा अपने से विपरीत गुणों को तो वो कभी भी नहीं ग्रहण कर सकता है!मिर्च विकारवान होकर अपना कडुआपन तो छोड़ सकता है किंतु ईख (गन्ने) की तरह मीठा नहीं हो सकता है!इसी प्रकार से हो सकता है कि ईख(गन्ना) किसी कारण से अपनी मधुरता खो दे किंतु उसमें मिर्च जैसा कडुआपन तो कभी भी नहीं आ सकता है !ऐसे ही जल के अभाव में नदी का प्रवाह कम हो सकता है रुक सकता है किंतु विपरीत दिशा में कभी नहीं बह सकता है!
इस प्रकार से किसी भी वस्तु में परिवर्तन केवल उतने हो सकते हैं कि उसके अपने गुणों में कुछ कमी आ जाए या कुछ बढ़ोत्तरी हो जाए किंतु कोई द्रव्य अपने गुण को अपने से विपरीत स्वभाव के गुण को कोई द्रव्य कभी स्वीकार नहीं कर सकता है !अग्नि तो बर्फ के ढेर में रहकर भी ठंडी नहीं हो सकती है !समुद्र की अथाह जलराशि में रहकर भी ज्वालामुखी आज भी धधक रहे हैं !ऐसे ही आग का स्वभाव उष्णता और उसकी लव का ऊपर की ओर जाना है तो आग को कैसे भी रखा जाए फिर भी गर्मी उसमें रहेगी ही और उसकी लव ऊपर की ओर जाएगी ही जिसे कभी बदला नहीं जा सकता है !
कुलमिलाकर जो परिवर्तन होते भी हैं उनकी भी सीमाएँ निश्चित हैं !प्रत्येक सर्दी की ऋतु में गर्म कपड़े ही पहने जाएँगे यह तो निश्चित है उनका गुण धर्म वही होगा जो पहले पहने जा रहे थे उनका था उद्देश्य भी वही होगा कि ऐसे कपड़े पहने जाएँ जिनसे सर्दी कम लगे किंतु उनके रंग रूप में बदलाव किया जा सकता है ! जिस प्रकार से कोई मनुष्य अपने को अच्छा लगने के लिए अपने आसपास की वस्तुओं को बदलता रहता है उसी प्रकार से प्रकृति में भी होता है मनुष्य ने सबकुछ प्रकृति से ही तो सीखा है !बसंत ऋतु में प्रतिवर्ष पेड़ों में पतझड़ होता है जिसे देखकर यह नहीं कहा जाएगा कि जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसा हो रहा है !अब ये पेड़ सूख जाएँगे आदि !क्योंकि जो जानते हैं उन्हें पता होता है कि यह परिवर्तन अच्छाई के लिए हो रहा है अब इसमें नए नए पत्ते आएँगे कुछ समय बाद ये पेड़ फिर हरे भरे हो जाएँगे !एक वर्ष बाद वे पत्ते फिर वैसे ही हो जाते हैं जिस प्रकार के पत्ते पिछले वर्ष झड़े थे फिर पेड़ों की कोपलें फूटती हैं फिर नए पत्ते आते हैं ये प्रकृति का क्रम है जो प्रकृति एक वर्ष के समय में प्रति वर्ष पूरा करती है इसके लिए उन पेड़ों को विभिन्न अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है जो कई बार एक दूसरे से विपरीत भी होती हैं कई बार ऐसी अवस्थाएँ एक साथ देखने को मिलती हैं ऐसी परिस्थिति में उस पेड़ के समय चक्र को समझे बिना पेड़ की किसी एक अवस्था को पकड़कर बैठ जाए और उसे जीवन एवं समाज के लिए घातक सिद्ध करने लगे यह उचित नहीं है !कई बार तो जिस पेड़ में एक ओर पतझड़ हो रहा होता है उसी में दूसरी ओर कोपलें फूट रही होती हैं !ऐसी परिस्थितियाँ घटित होने का कारण जलवायु परिवर्तन को कहने लगना तो ठीक नहीं होगा !
जिस प्रकार से जीवन के विषय में किसी से कभी कोई ये अपेक्षा नहीं करता है कि अमुक व्यक्ति ने पिछले वर्ष के इस महीने की इतनी तारीख को इस प्रकार के कपड़े पहने थे या ऐसा श्रृंगार किया था या इस प्रकार की गाड़ी पर बैठा था !इसलिए इसवर्ष के इस महीने की इस तारीख को भी उसे वही सब कुछ करना चाहिए और यदि वैसा करे या कर पावे तो इसे जीवन संबंधी जलवायु परिवर्तन कहना तो ठीक नहीं होगा !ऐसी परिस्थिति में प्रकृति के बारे में ऐसा आग्रह क्यों कि अभी तक जैसा जिस महीने या तारीख को होता रहा है वैसा ही आगे भी होते रहना चाहिए अन्यथा जलवायु परिवर्तन मान लिया जाएगा !ये कैसी जबर्दस्ती ?
कुलमिलाकर हमारे कहने का अभिप्राय मात्र इतना है जीवन में जो परिवर्तन हम लोगों के द्वारा किए जाते हैं उसके बाद भी उनके गुण और धर्म में कोई विशेष अंतर नहीं आता है अपितु आशा ये की जाती है कि ये पहले वाले से अधिक सुखदायी होंगे और होते भी हैं !पिंड से ब्रह्मांड तक के गुणधर्म में बहुत बड़ा अंतर नहीं होता है !इसलिए जलवायु परिवर्तन जैसी कल्पनाएँ यदि सही भी हों तो भी उनसे प्रकृति और जीवन को कोई हानि होगी ऐसी परिकल्पना नहीं की जानी चाहिए !
जलवायुपरिवर्तन का परीक्षण कैसे किया जाए ?
जलवायु में जल और वायु दो शब्द हैं दोनों का स्वभाव गुण उपयोग आदि जो आदिकाल में था वही आज है !ऐसी परिस्थिति में जलवायुपरिवर्तन की बातों को तर्क की कसौटी पर कैसे कसा जाए !
जल का स्वभाव नीचे की ओर बहना है उसमें तरलता होती है उसका स्पर्श शीतल होता है इसके गुणों में परिवर्तन करने के लिए कोई कितना भी प्रयास क्यों न कर ले किंतु वह स्थायी नहीं होता है !जल का बहना रोकने के लिए कोई मनुष्य प्रयास पूर्वक बर्फ जमा सकता है किंतु प्रयास का असर समाप्त होते ही वह वर्फ पिघलकर जल ही बन जाती है !इसी प्रकार से नीचे की ओर बहने वाले जल के स्वभाव को बदलने के लिए कोई कोई मोटर आदि से जल कितने भी ऊपर क्यों न चढ़ा दे किंतु उसका प्रभाव समाप्त होते ही जल नीचे की ओर ही बहने लगता है !इसीप्रकार से जल की शीतलता को समाप्त करने के लिए जल को कितना भी गर्म क्यों न कर दिया जाए किंतु अग्नि से अलग करते ही वह ठंडा होने लगेगा !ये जल का अपना स्वभाव है इसलिए उसमें कभी स्थायी बदलाव नहीं होते हैं !ऐसी परिस्थिति में जलवायुपरिवर्तन की दृष्टि से यदि देखा जाए तो जल में किसी भी प्रकार का परिवर्तन होना संभव ही नहीं है इसीलिए हजारों लाखों वर्ष बीतने के बाद भी जल के स्वभाव में कुछ भी तो बदलाव नहीं हुआ है !
इसी प्रकार से अब बात वायु के विषय में है !वायु का कोई स्वरूप नहीं होता है इसके बाद भी उसमें स्पर्श का गुण तो होता ही है वो रूप रहित होकर भी सबका स्पर्श करती रहती है और ब्रह्मांड में जहाँ जो कुछ भी गति शील है उसमें वायु का ही योगदान है!आँधीतूफ़ान समुद्र में उठनेवाला ज्वारभाटा आकाश में ग्रहनक्षत्रों का संचार,वर्षा की संभावनाएँ बनाना बिगाड़ना, बादलों का गर्जन,बिजली का चमकना,ओले गिरना,कंकणों, मछलियों मेढकों या रक्त की वर्षा होना यहाँ तक कि भूकंप और सुनामी जैसी घटनाओं का घटित होना भी वायु के आधीन है मनुष्य समेत सभी जीव जंतुओं का जीवन तो वायु के आधीन होता ही है !
वायु कभी स्थिर नहीं होता है इसलिए उसमें परिवर्तन तो प्रत्येक क्षण होते हैं किंतु वह उसके संचार का ही अंग है !इसलिए उसमें होने वाले परिवर्तनों को हानि कारक नहीं माना जाना चाहिए !समाज के सदाचरण विहीन होने के कारण वायु में कुछ समय के लिए परिवर्तन आते हैं वे कारण समाप्त होते ही फिर सबकुछ सामान्य हो जाता है !इसमें दीर्घकालीन किसी परिवर्तन की परिकल्पना नहीं की जानी चाहिए !
इसलिए जल और वायु के स्वभाव में यदि प्रयास पूर्वक भी परिवर्तन नहीं लाया जा सकता है तो जलवायु परिवर्तन होना संभव कैसे होगा और यदि उसमें कोई सामान्य या सूक्ष्म परिवर्तन होते दिखें भी तो कभी यह नहीं सोच लेना चाहिए कि जल और वायु के स्वभाव में गुणों में कोई बदलाव आ जाएगा !क्योंकि स्वभाव और गुणों में बदलाव आते ही जल और वायु दोनों ही प्रकृति और जीवन के लिए ये अनुपयोगी हो जाएँगे !जो सृष्टि के लिए बिनाशकारी सिद्ध होगा !अतएव यह कभी नहीं सोचा जाना चाहिए कि जलवायुपरिवर्तन से प्रकृति और जीवन को किसी प्रकार का कोई आघात पहुँचेगा !ऐसी कल्पना भी नहीं की जानी चाहिए !
समय के कारण होता है जीवन और प्रकृति में बदलाव -
इसलिए जलवायु परिवर्तन को समझने के लिए भी समय को ही पहले समझना पड़ेगा ! समय जब जैसा समय बदलता जाता है तब तैसी घटनाएँ प्रकृति और जीवन में घटित होती चली जाती हैं!यही कारण है कि प्राचीन काल में प्रकृति या शरीर में कोई घटना घटित हो रही होती थी या होने की संभावना होती थी तो उसके विषय में जानकारी जुटाने के लिए लोग समय को ही माध्यम बनाया करते थे !क्योंकि प्रकृति या जीवन में घटित हो रही कोई घटना वर्तमान में जितनी और जैसी दिखाई पड़ रही होती है उतनी तो सब देख ही रहे होते हैं !जानना यह आवश्यक होता है कि भविष्य में ये घटना अभी और बढ़ेगी यदि बढ़ेगी तो कितनी ?और इसके घटने या समाप्त होने की संभावना है क्या ?
कई बार देखा जाता है कि किसी बहुत बड़े रोग की शुरुआत छोटी सी फुंसी से हो रही होती है और आगे चलकर वही फुंसी उस व्यक्ति की मृत्यु का कारण बन जाती है !ऐसी परिस्थिति में प्रारंभिक काल में उसके वर्तमान स्वरूप(छोटी सी फुंसी) को देखकर उसकी ऐसी भयानकता का अंदाजा किसी चिकित्सक के द्वारा कैसे लगाया जा सकता था !केवल समय के द्वारा ही इसका अंदाजा लगा पाना संभव होता है !
इसी प्रकार से मौसम के विषय में समुद्र में उठे बादलों को देखकर ये अनुमान लगाया जा सकता है कि बादल हैं तो बरसने के लिए ही आए होंगे !वे बादल जिस दिशा में जितनी गति से चल रहे होते हैं उसी हिसाब से गुणागणित लगाकर ये बताया जा सकता है ये किस समय किस देश प्रदेश या शहर आदि में पहुँच सकते हैं !किंतु ये बरसेंगे या नहीं बरसेंगे और बरसेंगे तो कितना पानी बरसेंगे !कितने दिनों सप्ताहों तक लगातार बरसेंगे इसके विषय में उपग्रहों और रडारों से प्राप्त चित्रों के द्वारा कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता है वे तो केवल जितने बादल प्रत्यक्ष तौर पर दिखाई पड़ रहे होते हैं तमाम सुपर कंप्यूटरों के द्वारा उन्हीं के विषय में गुणा गणित कर सकते हैं उसके बाद में अभी कितने बादल और आएँगे वे कितने भयानक होंगे कितने दिन तक चलेंगे इसका अनुमान केवल समय के माध्यम से ही लगाया जा सकता है !क्योंकि समय के कारण ही ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं !
यदि ऐसा न होता तो 29 अक्टूबर 2015 को तमिलनाडु में जब बादलों की घटाएँ घिरी थीं और 30 अक्टूबर को वर्षा प्रारंभ हुई थी तब बादलों को देखकर मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा अपनी सबसे पहली भविष्यवाणी में केवल दो दिन तक पानी बरसने की भविष्यवाणी की गई थी !जब दो दिन बाद भी पानी बरसता रहा तब उसके बाद तीन दिन और फिर दो दिन इस प्रकार से जैसे जैसे पानी बरसता गया वैसे वैसे मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा भी पानी बरसने की तारीखें बढ़ाई जाती रहीं !इस प्रकार 15 से 20 दिन तक पानी बरसता रहा और मद्रास भीषण बाढ़ की चपेट में आ गया !7 अगस्त 2018 से केरल में जो बाद प्रारंभ हुई थी उसमें भी यही हुआ था !यहाँ तक कि 3 अगस्त 2018 को सरकारी मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा जो भविष्यवाणी की गई थी उसमें अगस्त सितंबर में सामान्यवर्षा होने की भविष्यवाणी की गई थी उसके तीन दिन बाद ही भीषण बाढ़ से केरल डूबने लगा था !बाद में केरल के मुख्यमन्त्री ने कहा मुझे ऐसी वर्षा के पूर्वानुमानों से नहीं अवगत कराया गया था ! भविष्यवक्ताओं के प्रमुख ने एक टेलीविजन चैनल के इंटरव्यू कहा कि अप्रत्याशित बारिश हुई है !इसका कारण जलवायुपरिवर्तन था !
ऐसी घटनाओं से इस बात अंदाजा लगाया जा सकता है कि उपग्रहों रडारों सुपरकंप्यूटरों के माध्यम से मौसम संबंधी जो पूर्वानुमान लगाया जाता है वो कितना कमजोर आधारविहीन और अविश्वसनीय होता है और जलवायुपरिवर्तन शब्द का किन परिस्थितियों में तथा कैसी मजबूरी में प्रयोग किया जाता है !
समय विज्ञान के द्वारा दक्षिण भारत की बाढ़ की भविष्यवाणी पहले का दी गई थी !ऐसी परिस्थिति में समय ही एकमात्र वो मजबूत माध्यम है जिसके आधार पर जीवन और प्रकृति संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान बहुत पहले ही लगाए जा सकते हैं ! समय बदलता है तो प्रकृति में और जीवन में घटनाएँ घटित होती हैं इसीलिए समय में कब किस प्रकार का बदलाव होगा या हो रहा है इसका पता होना चाहिए इसके बिना किसी भी प्रकार के पूर्वानुमान की आशा नहीं की जानी चाहिए !
जलवायुपरिवर्तन का परीक्षण कैसे किया जाए ?
हमारी उम्मींद से अधिक वर्षा ,सर्दी या गर्मी हो तो जलवायुपरिवर्तन और कम हो तो जलवायुपरिवर्तन !ऐसा आग्रह ठीक नहीं है !ऐसा होना न होना तो समय के आधीन है !समय के संचार को समझना कुछ लोग भले ही आवश्यक न मान रहे हों किंतु समय को न समझने या न मानने के कारण समय का आस्तित्व समाप्त तो नहीं हो जाता है !सच्चाई यह है कि संसार में दिखने या होने वाले अधिकाँश बदलाव समय के आधीन हैं या यूँ कह लिया जाए कि जो बदलाव करने में मनुष्य अपने को सक्षम नहीं समझता है वे भी यदि होते हैं उनके पीछे समय की ही शक्ति कार्य कर रही होती है ! समय के बदलने की सबसे अधिक पहचान प्रकृति और पशु पक्षियों एवं जीव जंतुवों को होती है !
खेतों में कई बीज पूरी बरसात भर पड़े पड़े भीगा करते हैं किंतु न सड़ते हैं और न ही अंकुरित होते हैं वर्षा बीतने के बाद जैसे ही उनकी अपनी ऋतु आती है तो वे अंकुरित होने लगते हैं !इसी प्रकार से किसी पेड़ में कितना भी खाद पानी क्यों न दिया जाए किंतु उसमें तब तक फूल या फल नहीं आते हैं जब तक उसकी अपनी ऋतु अर्थात समय नहीं आता है !प्रातःकाल होते ही कमल का पुष्प खिल जाता है और सायंकाल होते ही बंद हो जाता है !बसंतऋतु आते ही पेड़ों के पत्ते झड़ने लगते हैं और नई कोपलें खिलने लगती हैं और सुदूर दक्षिण दिशा में स्थित मलयाचल की ओर से सुखद हवाएँ चलने लगती हैं !वर्षाऋतु आते ही घनघोर घटाएँ घिरने लगती हैं उमड़ घुमड़ कर बादल बरसने लगते हैं नदी तालाब खेत खलिहानों आदि में सभी ओर जल ही जल दिखाई पड़ने लगता है !ऐसा अन्य ऋतुओं में होते तो नहीं देखा जाता है !प्रतिवर्ष ऐसा होता है !यदि जलवायुपरिवर्तन हुआ होता तो उसके कारण होने वाले कुछ बदलाव के चिन्ह तो प्रकृति में भी दिखाई पड़ते !
इसीप्रकार से समय की पहचान जीव जंतुओं को भी होती है इसीलिए तो भूकंप आने के समय मनुष्यादि समस्त जीव जंतुओं के शरीर मन और व्यवहार में बदलाव आने लगता है!ऐसे ही बसंतऋतु का समय आते ही कोयलें पहले भी कूकने लगती थीं आज भी कूकने लगती हैं !वर्षाऋतु आते ही मेढक बोलने लगते हैं !अधिक वर्षा होने से पहले चीटियाँ अपने अंडे बच्चे लेकर ऊपर की ओर चढ़ने लगती हैं !प्रातःकाल होते ही मुर्गे बोलने लगते हैं ! ऐसी परिस्थिति में बदलाव के कुछ चिन्ह तो इन जीवजंतुओं के व्यवहार पर भी दिखने चाहिए थे !
ग्रीष्मऋतु में इक्षुसागर की ओर से आने वाली मीठी हवाएँ आज भी अपनी मधुरता से अत्यंत खट्टे कच्चे आमों को पकाकर मीठा बना देती हैं खरभूजे तरबूज आदि इन इक्षु सागरीय हवाओं के मधुर स्पर्श से मीठे हो जाते हैं वे हवाएँ(लू) जितनी अधिक चलती हैं वातावरण में उतनी अधिक मधुरता बढ़ती है !यदि ये हवाएँ नहीं चलती हैं तो इनमें उस प्रकार की मधुरता नहीं आ पाती है !इसी प्रकार से ग्रीष्मऋतु में मीठी हवाएँ चलने लगती हैं उसी प्रकार से समय का भी स्वाद होता है !हेमंतऋतु का समय ही मीठा होता है इसीलिए हेमंतऋतु के आने से पहले स्वाद में फीकी लगने वाली ईख(गन्ना) हेमंतऋतु का समय आते ही मीठी हो जाती है ! ये सबकुछ पहले भी होता था अभी भी होता है!इन हवाओं में ये गुण तो हमेंशा से रहे हैं समय भी इसी क्रम में चलता चला आ रहा है और आगे भी ऐसा ही बना रहेगा !यह भी निश्चित है फिर कैसा जलवायुपरिवर्तन ?
इसीप्रकार से नींबू ,इमली,कच्चे आम जैसे फलों का स्वाद पहले भी खट्टा होता था आज भी खट्टा ही होता है!अन्य भी खाद्यपदार्थों में जिसके जैसे स्वाद होते थे वैसे ही आज भी होते हैं !उड़द मूँग मसूर गेहूँ तिल जौं चावल घी दूध आदि समस्त खाद्य पदार्थ आदि काल से विद्यमान हैं ये सभी तब जिस प्रकार के स्वाद और उपयोग के लिए जाने जाते थे आज भी वही परिस्थिति विद्यमान है ! जलवायु परिवर्तन के कारण इनमें भी कोई बदलाव तो नहीं हुआ है !
परिवर्तन के इस क्रम में हमें यह भी सोच कर चलना चाहिए कि अनेकों प्राकृतिक कारणों से सभी जीव जंतुओं वस्तुओं आदि के कुछ आकार प्रकार रंग रूप आदि में कुछ बदलाव हो सकता है किंतु ऐसे बदलावों से किसी को इस बात का भ्रम नहीं होना चाहिए कि इससे किसी द्रव्य (वस्तु)आदि के मूल स्वभाव में कभी कोई बदलाव हो सकता है !यदि ऐसा होना होता तो हजारों लाखों वर्ष की इस सृष्टि में अब तक तो बहुत कुछ बदल चुका होता है किंतु कुछ भी तो नहीं बदला है !हजारों वर्ष पहले जिस द्रव्य का जो गुण होता था आज भी तो वही है !ऐसी परिस्थिति में जलवायुपरिवर्तन जैसी इतनी बड़ी परिकल्पना को विश्वसनीय कैसे बनाया जाए !
कुलमिलाकर आदिकाल से जो जैसा जहाँ घटित होता चला आ रहा था आज भी सबकुछ वैसा ही होता चला आ रहा है!कहीं कोई तो बदलाव नहीं हुआ है !प्रकृति में समय के साथ अपने अपने स्वभाव के अनुशार समयक्रम से सारे बदलाव होते जा रहे हैं वही पहले हुआ करते थे जो आज हो रहे हैं ऐसा कुछ नया नहीं हुआ है जिसके लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया जा सके !
बताया जाता है कि भूकंप आने से पहले प्राकृतिक वातावरण में बदलाव आने लगता है पेड़ पौधों समेत समस्त प्रकृति में सूक्ष्म परिवर्तन हो जाते हैं ऐसे ही वहाँ के जीवजंतुओं के व्यवहार में सूक्ष्म परिवर्तन दिखने लगता है !
ऐसी परिस्थिति में जलवायुपरिवर्तन की अपेक्षा भूकंप तो छोटी घटना है भूकंप आने के समय यदि प्रकृति में जलवायुपरिवर्तन बदलाव जैसे इतने बड़े बदलाव की कल्पना की जा रही है इतनी बड़ी बड़ी बातें की जा रही हैं तो उसका असर भी प्रकृति पर कुछ तो अवश्य दिखाई पड़ता किंतु ऐसा कुछ होते तो नहीं देखा जा रहा है जो होने का दावा किया जा रहा जा रहा है वो प्रकृति के नित्यक्रम में सम्मिलित है वो आकस्मिक नहीं है !यदि वो जलवायुपरिवर्तन के कारण होता तो समयविज्ञान के द्वारा उसके विषय में लगाए जाने वाले पूर्वानुमान सच न होते !
जलवायुपरिवर्तन और प्राकृतिक घटनाएँ -
प्राकृतिक घटनाओं को अपने करके नहीं चला जा सकता है !वर्षा के जल की तुलना नल के जल से नहीं की जा सकती कि जब जितना चाहो उतना बरसाकर बंद कर दिया जाए !ऐसा ही सर्दी आदि के विषय में समझा जाना चाहिए !हमारी उम्मींद से अधिक वर्षा ,सर्दी या गर्मी हो तो जलवायुपरिवर्तन और कम हो तो जलवायुपरिवर्तन !ऐसा आग्रह ठीक नहीं है !समय चक्र में बदलाव न होने के बाद भी कई बार कुछ लोगों को ऐसा भ्रम होने लगता है कि ये सब जलवायुपरिवर्तन के कारण हो रहा है !
किसी भी ऋतु में ऋतु का प्रभाव कम या अधिक दिखना उस ऋतु का अपना विशेषाधिकार है !किसी ऋतुविशेष पर दूसरी ऋतुओं का पड़ने वाला असर है !हेमंत और बसंत ऋतु के प्रारंभ में यदि समय के प्रभाव से यदि वर्षा या वर्फबारी हो ठंडी ठंडी हवाएँ चलने लगें तो वर्षा या वर्फबारी आदि कारणों शीत का प्रभाव पहले से शुरू होकर कुछ समय बाद तक बना रह सकता है किंतु उसे शीतऋतु से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए !वर्षा या वर्फबारी होना या ठंडी ठंडी हवाएँ चलने लगना ये प्रकृति की स्वतंत्र घटनाएँ हैं !यह बात दूसरी है कि ऐसी सर्दी की ऋतु के आगे पीछे घटित होने लगी हैं और इनके कारण होने वाले प्रभाव का शीतऋतु के स्वभाव से मिलता जुलता असर है यदि ऐसा अन्य ऋतुओं के आगे पीछे होता तो संभवतः सर्दियों के आगे पीछे बढ़ने घटने का भ्रम न होता !
शिशिरऋतु में सर्दी का बहुत अधिक होना कम होना या सर्दी में ही गर्मी का अनुभव होने लगना!इसी प्रकार से ग्रीष्म ऋतु में गर्मी का बहुत अधिक होना ,गर्मी का कम होना या गर्मी के समय में सर्दी का अनुभव होने लगना !ऐसे वर्षाऋतु में वर्षा का बहुत अधिक होना ,वर्षा का कम होना या सूखा पड़ जाना !इसी प्रकार से हेमंत,बसंत और शरद आदि ऋतुएँ भी हीनयोग,अतियोग,और मिथ्या योग से विकारित होने लग जाती हैं !इस प्रकार से ऋतुओं के प्रभाव प्रकट करने के ये 18 अपने भेद होते हैं जिन्हें ऋतुव्यापत्तियों के नाम से जाना जाता है | ऋतुव्यापत्तियों के बढ़ने के कारण भी कुछ और ही हैं जलवायुपरिवर्तन के लिए जिन कारणों को जिम्मेदार बताया जा रहा है उनसे इनका कोई संबंध नहीं है!उन कारणों की चर्चा यहाँ करना ठीक नहीं होगा !
ऐसी परिस्थिति में इसे जलवायुपरिवर्तन जैसा कोई नया नाम दिया जाना ठीक नहीं है! ये तो ऋतुओं के स्वरूप हैं !
विशेष बात यह है कि यह सब कुछ तो आदिकाल से ही होता चला रहा है सूखा वर्षा बाढ़ आदि सारी घटनाएँ हर युग में घटित होती दिखाई देती हैं उनके प्रभाव में कमी या अधिकता तो हमेंशा से रहती चली आ है !ये प्रकृति का अपना स्वभाव है जिसे किसी एक परिस्थिति में बाँधकर न रखा जा सकता है और न ही प्रकृति से ऐसी अपेक्षा ही की जानी चाहिए,क्योंकि प्रकृति स्वतंत्र है उसकी अपनी लय है अपनी धारा है वह अपने सिद्धांतों नियमों से बँधी हुई है उसी के अनुशार चलती है उसी के अनुशार चलेगी भी उसे मनुष्यकृत किन्हीं प्रयासों से बदला नहीं जा सकता है प्रकृति के प्रत्येक परिवर्तन को स्वीकार करना सहना मनुष्य की विवशता है !प्रकृति से संबंधित परिवर्तनों को रोककर रखना मनुष्य के बश की बात नहीं है !
ऋतुविज्ञान (मौसम)-
प्रकृति के नियमानुसार वैसे तो 6 ऋतुएँ होती हैं उसमें भी सर्दी गर्मी वर्षा आदि तीन ऋतुएँ प्रमुख हैं !किसके बाद कौन सी ऋतु आएगी आदि ऋतुओं का क्रम भी निश्चित है! एक वर्ष में सर्दी गर्मी वर्षा आदि तीन प्रकार का प्राकृतिक वातावरण देखने को मिलता है कौन कितने महीने तक रहता है इसका समय भी निश्चत है किंतु कुछ प्राकृतिक घटनाओं के कारण इनका प्रभाव कभी कुछ दिन आगे पीछे घटित होते दिखाई पड़ता है! इसके अतिरिक्त मात्रा और स्थान अनिश्चित है कई बार ऋतुओं का प्रभाव कम तो कई बार अधिक घटित होता है !कई बार किसी स्थान पर कम तो कई बार किसी स्थान पर अधिक घटित होते दिखाई पड़ता है !
ऐसी परिस्थितियाँ पैदा होने का कारण एक ऋतुकाल में ही अन्य ऋतुखण्डों का आना जाना होता है!प्रत्येक ऋतु में उस ऋतु का जब अपना ऋतुखंड आता है तब उस ऋतु का अपना प्रभाव बहुत अधिक बढ़ते देखा जाता है और जब दूसरे प्रकार का ऋतुखंड आता है तब दोनों प्रकार का असर होते दिखाई पड़ता है !
इसीलिए केवल वर्षा ऋतु का समय आते ही वर्षा नहीं होने लगती है अपितु वर्षाऋतु के समय में भी जब वर्षासंबंधी ऋतुखंड आता है अधिकवर्षा तभी होती है!यह ऋतुखंड वर्षाऋतु के प्रारंभ होने के बाद जब पहली बार आता है तो इसे अति आधुनिक लोग इसे मानसून का आना मानते हैं !
प्रत्येक स्थिरऋतु में अंतर्ऋतुओं के ऋतुखंडों का प्रभाव भी कुछ कुछ दिनों के लिये देखा जाता है यह सभी ऋतुओं में आता जाता रहता है!तत्कालीन समय संचार के अनुशार लघुखण्डों अर्थात कुछ कुछ दिनों में बदलती रहती है !
इसीलिए वर्षाऋतु के लिए निर्धारित समय में भी सभी दिनों में वर्षा नहीं होती है अपितु अंतर्ऋतुओं के हिसाब से वर्षा के लिए उपयुक्त जो दिन आते हैं वर्षाऋतु होने पर भी केवल उन्हीं दिनों में वर्षा होती है या यूँ कह लें कि उन दिनों में अधिक वर्षा होती है !वर्षाऋतु के अतिरिक्त भी सर्दी गर्मी आदि जिस भी स्थिरऋतु में अंतर्ऋतुओं के हिसाब से वर्षासंबंधी समय आ जाता है तो उन दूसरी ऋतुओं में भी वर्षा होते देखी जाती है!इसमें अंतर केवल इतना पड़ते दिखाई पड़ता है कि वर्षासंबंधी समयखंड यदि वर्षा ऋतु में आ जाता है तो अधिक वर्षा हो जाती है अन्य ऋतुओं में अपेक्षा कृत कम वर्षा होती है !
ऐसे ही जिस वर्ष जितने समय के लिए ग्रीष्मऋतु में समयसंचार के अनुशार का ग्रीष्मऋतुखंड भी आ जाता है उतने समय के लिए गर्मी का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाता है !यही ग्रीष्मखंड वर्षा ऋतु में आता है तो उतने दिन वर्षा नहीं होती है और गर्मी अधिक पड़ने लगती है फिर भी वर्षाऋतु के समय में हवाएँ शीतल होने के कारण उस ग्रीष्मऋतुखंड का असर बहुत अधिक नहीं दिखाई पड़ता है!यह ग्रीष्मऋतुखंड यदि वर्षाऋतु के प्रारंभ में ही आ गया तो वर्षाऋतु पर भी ग्रीष्मऋतुखंड के प्रभाव से उतने दिनों या सप्ताह तक वर्षा नहीं होती है |ऐसी परिस्थिति में अत्याधुनिक मौसमभविष्यवक्ताओं को जलवायुपरिवर्तन की आशंका होने लगती है और मानसून के देर से आने की बातें की जाने लगती हैं !
ऐसे ही सर्दी की शिशिरऋतु में शीतऋतुखंड जब आता है तो उस समय सर्दी बहुत अधिक पड़ने लगती है इसी शिशिरऋतु में जब ग्रीष्मऋतुखंड आ जाता है तब सर्दी का प्रभाव बहुत कम हो जाता है!इसी शीतऋतुखंड में जब वर्षा का ऋतुखंड आ जाता है तब शिशिरऋतु में भी वर्षा होने लगती है !ऐसी परिस्थिति में शीतऋतुखंडन होने पर भी वर्षा होने के कारण तापमान घट जाता है और सर्दी बढ़ जाती है जिसका उस समय हुई वर्षा से तो संबंध होता है किंतु शिशिरऋतु से कोई संबंध नहीं होता है !ऐसा शिशिरऋतु के प्रारंभ होने समाप्त होने या बीच में कभी भी हो सकता है!ऐसा यदि शिशिरऋतुके मध्य में हुआ तब तो अत्याधुनिक मौसमभविष्यवक्ता लोगों के द्वारा कुछ वर्षों दशकों के सर्दी संबंधी रिकार्ड टूटने की बात की जाने लगती है !यदि शिशिरऋतु के प्रारंभ होने या समाप्त होने के समय पर वर्षा संबंधी ऋतुखंड आता है और अधिक वर्षा होने के कारण सर्दी का प्रभाव बढ़ जाता है !सिद्धांततःउसका शिशिरऋतु से कोई संबंध न होने पर भी वर्षा के कारण सर्दी का असर अधिक पर उसे अत्याधुनिक मौसमभविष्यवक्ताओं के द्वारा उसे शिशिरऋतु से ही जोड़कर देखा जाने लगता है और उसे शिशिरऋतु का ही अंग मानते हुए सर्दियों के आगे पीछे खिसक जाने की बातें की जाने लगती हैं बस इसी जगह अत्याधुनिक मौसमभविष्यवक्ताओं को जलवायुपरिवर्तन की आशंका होने लगती है !
इसीप्रकार से शिशिरऋतुखंड कई बार ग्रीष्मऋतु में भी आ जाता है तो उतने दिन के लिए हवाएँ बदलकर गर्मी के असर को कम कर देती हैं !जिस बार शीतऋतु जितने दिन के लिए शीतखंड भी आ जाता है उतने दिनों के लिए सर्दी बहुत अधिक पड़ने लगती है जिस वर्ष ऐसा नहीं होता है उस वर्ष ऐसा नहीं देखा जाता है कई बार तो कुछ वर्षों या दशकों तक कुछ अंतर के साथ समय खंड विचरण किया करते हैं इसलिए उतने वर्षों तक प्रकृति में प्रत्येक वर्ष एक जैसी परिस्थिति ही बनी रहती है !
वैदिक मौसम विज्ञान-
ऋतुओं या ऋतुखंडों के विषय में इतनी स्पष्ट और सरल चर्चा वैदिकविज्ञान के अतिरिक्त और विज्ञान की किसी अन्य विधा में नहीं है भले वो आधुनिक विज्ञान ही क्यों न हो !क्योंकि ऋतुओं या ऋतुखंडों के विषय से संबंधित जानकारी उपग्रहों रडारों या सुपर कंप्यूटरों से नहीं जुटाई जा सकती है !अत्याधुनिक मौसमभविष्यवक्ताओं को जलवायुपरिवर्तन जैसी आशंकाएँ होने का यह भी एक बड़ा कारण है !
आधुनिक विज्ञान की पद्धति में एक से एक बड़े अनुसंधान हो रहे हैं इसमें कोई संदेह नहीं है किंतु मेरी जानकारी के अनुशार समय संबंधित विज्ञान के विषय में कोई किसी भी प्रकार के अनुसंधान की आवश्यकता नहीं समझी जा रही है जबकि प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली अधिकाँश घटनाएँ समय से संबंधित ही होती हैं जब जैसा समय होता है तब तैसी घटनाएँ घटित होती हैं इसी परिस्थिति में इनका रहस्य समझने के लिए या इससे संबंधित पूर्वानुमानों को जानने के लिए समय विज्ञान के अतिरिक्त कोई दूसरा और विकल्प नहीं होता है !
वस्तुतः प्रकृति में घटित होने वाली घटनाएँ समय से संबंधित होती हैं इनमें से कुछ स्थायी होती हैं तो कुछ अस्थायी होती हैं !जो अस्थायी होती हैं उनमें अधिकाँश घटनाएँ क्रिया की प्रतिक्रियारूप में पैदा होती हैं!कोई अपथ्य खाएगा तो उसका स्वास्थ्य खराब होगा ही उसे कैसे रोका जा सकता है !
अयन महीना अमावस्या पूर्णिमा आदि समय से संबंधित घटनाएँ हैं ऋतुएँ दिन रात प्रातः सायं आदि समय से सम्बंधित घटनाएँ हैं !ये सब केवल मानक ही नहीं हैं अपितु समय का प्रभाव इनके अनुशार प्रकृति एवं जीवन पर पड़ता है !शिशिर ऋतु में सर्दी पड़ती है ग्रीष्म ऋतु में गर्मी पड़ने लगती है और वर्षा ऋतु में बड़े बड़े बादल आकर वर्षा करने लगते हैं !यहाँ तक कि पूर्णिमा अमावस्या को संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण आंदोलित हो रहा होता है उसका असर समुद्र पर भी पड़ता है तो द्रवीभूत समुद्र लहरों के रूप में आंदोलित होने लगता है अर्थात ज्वारभाटा आने लगता है !यदि यह सही है कि ज्वार भाटा आने का कारण चंद्र और सूर्य आदि हैं तो इनका प्रभाव समुद्र की तरह ही प्रकृति के अन्य अंगों पर भी उसी प्रकार से पड़ रहा होता है !चंद्र के प्रभावरूपी क्रिया पर यदि समुद्र ज्वारभाटा के रूप में प्रतिक्रिया देता है तो प्रकृति के अन्य अंग भी तो चंद्र के प्रभाव को पाकर कुछ प्रतिक्रिया कर रहे होंगे उसका भी तो प्राकृतिक वातावरण पर कुछ न कुछ असर अवश्य पड़ता होगा !ऐसा प्रभाव केवल चंद्र का ही तो नहीं पड़ता होगा सभी ग्रहों का प्रभाव कुछ इसी प्रकार से संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण पर पड़ता होगा उसके आधार पर भी कुछ बदलाव होते होंगे कुछ प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती होंगी !आँधी तूफान वर्षा बाढ़ सूखा आदि घटनाएँ प्राकृतिक वातावरण पर सूर्यादि ग्रहों के प्रभाव की प्रतिक्रिया के स्वरूप में भी तो घटित हो सकती हैं !प्रकृति के वातावरण में यदि सूर्यादि ग्रहों का इतना अधिक हस्तक्षेप है तब तो सूर्य और चंद्र ग्रहण जैसी बड़ी खगोलीय घटनाओं का असर भी प्राकृतिक वातावरण पर पड़ रहा होता है उस क्रिया की प्रतिक्रिया में भी तो प्राकृतिक वातावरण परिवर्तित होता होगा !
आधुनिक विज्ञान की पद्धति में एक से एक बड़े अनुसंधान हो रहे हैं इसमें कोई संदेह नहीं है किंतु मेरी जानकारी के अनुशार समय संबंधित विज्ञान के विषय में कोई किसी भी प्रकार के अनुसंधान की आवश्यकता नहीं समझी जा रही है जबकि प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली अधिकाँश घटनाएँ समय से संबंधित ही होती हैं जब जैसा समय होता है तब तैसी घटनाएँ घटित होती हैं इसी परिस्थिति में इनका रहस्य समझने के लिए या इससे संबंधित पूर्वानुमानों को जानने के लिए समय विज्ञान के अतिरिक्त कोई दूसरा और विकल्प नहीं होता है !
वस्तुतः प्रकृति में घटित होने वाली घटनाएँ समय से संबंधित होती हैं इनमें से कुछ स्थायी होती हैं तो कुछ अस्थायी होती हैं !जो अस्थायी होती हैं उनमें अधिकाँश घटनाएँ क्रिया की प्रतिक्रियारूप में पैदा होती हैं!कोई अपथ्य खाएगा तो उसका स्वास्थ्य खराब होगा ही उसे कैसे रोका जा सकता है !
अयन महीना अमावस्या पूर्णिमा आदि समय से संबंधित घटनाएँ हैं ऋतुएँ दिन रात प्रातः सायं आदि समय से सम्बंधित घटनाएँ हैं !ये सब केवल मानक ही नहीं हैं अपितु समय का प्रभाव इनके अनुशार प्रकृति एवं जीवन पर पड़ता है !शिशिर ऋतु में सर्दी पड़ती है ग्रीष्म ऋतु में गर्मी पड़ने लगती है और वर्षा ऋतु में बड़े बड़े बादल आकर वर्षा करने लगते हैं !यहाँ तक कि पूर्णिमा अमावस्या को संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण आंदोलित हो रहा होता है उसका असर समुद्र पर भी पड़ता है तो द्रवीभूत समुद्र लहरों के रूप में आंदोलित होने लगता है अर्थात ज्वारभाटा आने लगता है !यदि यह सही है कि ज्वार भाटा आने का कारण चंद्र और सूर्य आदि हैं तो इनका प्रभाव समुद्र की तरह ही प्रकृति के अन्य अंगों पर भी उसी प्रकार से पड़ रहा होता है !चंद्र के प्रभावरूपी क्रिया पर यदि समुद्र ज्वारभाटा के रूप में प्रतिक्रिया देता है तो प्रकृति के अन्य अंग भी तो चंद्र के प्रभाव को पाकर कुछ प्रतिक्रिया कर रहे होंगे उसका भी तो प्राकृतिक वातावरण पर कुछ न कुछ असर अवश्य पड़ता होगा !ऐसा प्रभाव केवल चंद्र का ही तो नहीं पड़ता होगा सभी ग्रहों का प्रभाव कुछ इसी प्रकार से संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण पर पड़ता होगा उसके आधार पर भी कुछ बदलाव होते होंगे कुछ प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती होंगी !आँधी तूफान वर्षा बाढ़ सूखा आदि घटनाएँ प्राकृतिक वातावरण पर सूर्यादि ग्रहों के प्रभाव की प्रतिक्रिया के स्वरूप में भी तो घटित हो सकती हैं !प्रकृति के वातावरण में यदि सूर्यादि ग्रहों का इतना अधिक हस्तक्षेप है तब तो सूर्य और चंद्र ग्रहण जैसी बड़ी खगोलीय घटनाओं का असर भी प्राकृतिक वातावरण पर पड़ रहा होता है उस क्रिया की प्रतिक्रिया में भी तो प्राकृतिक वातावरण परिवर्तित होता होगा !
इसी प्रकार से आँधी तूफान वर्षा बाढ़ सूखा भूकंप आदि कुछ प्राकृतिक घटनाएँ
इसी प्रकार की कुछ घटनाओं की प्रतिक्रिया रूप में भी घटित होती हैं !कुछ
आँधी तूफ़ान आने के कारण वहाँ भूकंप आता है और भूकंप आने के कारण वहाँ का
प्राकृतिक वातावरण भी सभी प्रकार से आंदोलित होते अनुभव किया जाता है उस
आँधी तूफान के प्रभाव से भूकंप तो आता ही है इसके साथ ही उसी के प्रभाव से
कई प्रकार के रोग पैदा होते हैं लोगों का चिंतन प्रभावित होता है !नेपाल
में 21 अप्रैल 2015 में जो जगह उस तूफ़ान की केंद्र थी जिसमें बिहार और
नेपाल के सैकड़ों लोग मारे गए थे 24 अप्रैल 2015 को
वही जगह वहाँ घटित हुए भीषण भूकंप का केंद्र बनी थी ! उसी प्रभाव से भूकंप
आने के 47 दिन बाद तक भूकंप के झटके लगते रहे थे !उसी जगह उसी समय सूखी खाँसी
चक्कर आना एवं उलटी दस्त जैसी बीमारियाँ फैली थीं चिकित्सालयों में भीड़ बढ़नी शुरू हो गई थी !ऐसी सभी घटनाएँ उसी एक घटना से जुड़ी हुई थीं !जिनका वैदिक विज्ञान के आधार पर पूर्वानुमान लगाया जा सकता था !
जीवन और प्रकृति से संबंधित घटनाओं में समय का महत्त्व -
जीवन और प्रकृति से संबंधित घटनाओं में समय का महत्त्व -
सभी प्रकार की घटनाओं के विषय में अनुसंधान की दृष्टि से वैदिकविज्ञान समय को बहुत महत्त्व देता है प्रकृति या जीवन से संबंधित जो
घटनाएँ घटित होती हैं वे प्रायः दो प्रकार के असर छोड़ती हैं एक तो उस घटना
से प्रत्यक्ष रूप में लाभ या हानि होती है वो तो सबको दिखाई पड़ती है दूसरी
उस घटना के कारण कोई दूसरी घटना उसके बाद घटित होनी होती है!जो उस घटना के कुछ दिन
सप्ताह महीने बाद घटित होती है जिसका पूर्वानुमान उस घटना के घटित होने के
समय का अनुसंधान करके उसी के अनुशार लगा लिया जाता है !
जिस प्रकार से किसी को कोई चोट लगती है या रोग प्रारंभ होता है या सर्प
काटता है या किसी का आपरेशन होता है ऐसी घटनाएँ जिस समय घटित हो रही होती
हैं उस समय तो दिखाई पड़ ही रही होती हैं किंतु ऐसी घटनाओं का दूसरा पक्ष भी होता
है कि जो घटना अभी घटित हुई है उसका परिणाम भी कुछ होगा क्या यदि हाँ तो
किस प्रकार का ?
यह जो रोग हुआ है या चोट लगी है इससे रोगी को मुक्ति मिलेगी या नहीं यदि मुक्ति मिलेगी तो कितने दिनों सप्ताहों महीनों आदि में ?यह रोग इतने से ही शांत हो जाएगा या अभी और आगे बढ़ेगा आदि बातों के विषय में इस रोग से संबंधित भविष्य में घटित होने वाली संभावित घटनाओं का पूर्वानुमान जानना रोगी और चिकित्सक दोनों के लिए आवश्यक होता है!उसी हिसाब से चिकित्सा में सतर्कता वरती जाती है !
इसके बिना रोगी और रोग के विषय में पूर्वानुमान किसी को पता नहीं होता है !रोगी और चिकित्सक दोनों ही यह सोच कर चल रहे होते हैं कि अबतो इस रोग मुक्ति मिल ही जाएगी किंतु कई बार चिकित्सा करने के बाद भी या साथ साथ भी रोग बढ़ते देखा जाता है या इस रोग के पीछे कोई दूसरा बड़ा रोग छिपा होता है जो बाद में सामने आकर खड़ा हो जाता है और इस रोग को बहुत अधिक बढ़ा देता है !कुछ प्रकरण तो ऐसे भी होते हैं जिनमें रोगी की मृत्यु भी होते देखी जाती है!
यह जो रोग हुआ है या चोट लगी है इससे रोगी को मुक्ति मिलेगी या नहीं यदि मुक्ति मिलेगी तो कितने दिनों सप्ताहों महीनों आदि में ?यह रोग इतने से ही शांत हो जाएगा या अभी और आगे बढ़ेगा आदि बातों के विषय में इस रोग से संबंधित भविष्य में घटित होने वाली संभावित घटनाओं का पूर्वानुमान जानना रोगी और चिकित्सक दोनों के लिए आवश्यक होता है!उसी हिसाब से चिकित्सा में सतर्कता वरती जाती है !
इसके बिना रोगी और रोग के विषय में पूर्वानुमान किसी को पता नहीं होता है !रोगी और चिकित्सक दोनों ही यह सोच कर चल रहे होते हैं कि अबतो इस रोग मुक्ति मिल ही जाएगी किंतु कई बार चिकित्सा करने के बाद भी या साथ साथ भी रोग बढ़ते देखा जाता है या इस रोग के पीछे कोई दूसरा बड़ा रोग छिपा होता है जो बाद में सामने आकर खड़ा हो जाता है और इस रोग को बहुत अधिक बढ़ा देता है !कुछ प्रकरण तो ऐसे भी होते हैं जिनमें रोगी की मृत्यु भी होते देखी जाती है!
ऐसी परिस्थिति में किसी व्यक्ति आदि को चोट
लगना ,रोग प्रारंभ होना, सर्प काटना या किसी का आपरेशन होना किसी भी घटना
का एक पक्ष है जो दिखाई दे रहा वह होता है उसी के अनुशार लोग उससे संबंधित
कल्पनाएँ कर लिया करते हैं जबकि वैदिकविज्ञान के अनुशार ऐसी घटनाओं के भी
पूर्वानुमान लगाने की विधा होती है जिसमें संबंधित घटना जिस समय घटित
हुई होती है उस समय के अनुशार अनुसंधान पूर्वक यह अनुमान लगा लिया जाता है
कि इस रोगी को भविष्य में रोग से मुक्ति कब मिल पाएगी या क्या परिस्थिति
रहेगी ! क्योंकि ये उसी मूल घटना का ही तो दूसरा पक्ष होता है !
ऐसे ही आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ सूखा
भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाएँ भी होती हैं जिनका एक पक्ष तो दिखाई पड़ रहा
होता है क्योंकि वो तो प्रत्यक्ष होता ही है !इनका दूसरा पक्ष भी होता है
जिसमें एक घटना के कारण दूसरी घटना घटित होती है जो प्रकृति और जीवन किसी
से भी संबंधित हो सकती है !
इसी प्रकार से प्राकृतिक आपदाएँ हैं जो आपदा या घटना जिस समय पर घटित हो
रही होती है एक तो उसका तत्कालीन असर हो रहा होता है जो उस समय दिखाई पड़
रहा होता है दूसरा उस समय के अनुसार उस घटना का आगामी प्रभाव भी होता है
जो उस समय तो दिखाई नहीं पड़ रहा होता है किंतु भविष्य में किसी दूसरी
प्राकृतिक सामाजिक या स्वास्थ्य संबंधी घटना के रूप में भी दिखाई पड़ता है
!किसी क्षेत्र विशेष में फैलने वाली कुछ सामूहिक बीमारियाँ उस प्राकृतिक
घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप फ़ैल रही होती हैं !चूँकि ऐसी बीमारियाँ समय के
कारण घटित हो रही होती हैं इसलिए जब तक समय सीमा नहीं समाप्त होती है तब तक
उस तरह की बीमारियों से ग्रस्त रोगियों पर औषधियों का असर नहीं होता है !
सन
2015 में ऐसा समय आया उस समय के प्रभाव से भारत और पाकिस्तान का एक दूसरे
के प्रति विश्वास बढ़ने लगा था इसकी सूचना देने के लिए उन छै महीनों में
तीन भूकंप आये तीनों का केंद्र हिंदूकुश ही रहा !उसमें भी बड़ी बात यह थी
कि तीनों ही एक प्रकार के भूकंप थे ये तीनों इस बात की सूचना दे रहे थे कि
भारत और पकिस्तान दोनों ही ओर से यदि इस समय प्रयास किए जाएँ तो दोनों के
बीच आपसी संबंध मधुर हो सकते हैं !चूँकि ये तीनों भूकंप भारत और
पाकिस्तान के मध्य आपसी संबंधों को सुधारने की सूचना दे हे थे इस इस समय भारत और पाकिस्तान को आपस में मिलाने में
ये भूकंप भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे !
इसीलिए पहली बार 26 अक्टूबर 2015
को भूकंप आया उसी दिन गीता भारत आई !दूसरी बार 25 दिसंबर 2015 को भूकंप आया तो मोदी
जी पाकिस्तान गए !तीसरी बार 2 जनवरी 2016
भूकंप आया तो पाकिस्तान
से आतंकवादी भारत आए उन्होंने पठानकोट में हमला किया !इस तीसरे भूकंप का
स्पष्ट संकेत था कि इस घटना में सम्मिलित आतंकवादियों को पाक सरकार का
समर्थन सीधे तौर पर प्राप्त नहीं है !इसलिए इसके कारण भारत और पाक के आपसी
संबंधों को सामान्य करने के प्रयास रोके नहीं जाने चाहिए!
इसके बाद 26 अक्टूबर 2015 से 9 अप्रैल 2016 तक इन भूकंपों का पाक के साथ संबंधी प्रयासों के लिए उचित अवसर था! इसके बाद 10
अप्रैल 2016 को वही संयुक्त भूकंप आया जिसका मतलब था कि अब भारत को
पाकिस्तान पर भरोसा नहीं करना चाहिए !11 अप्रैल 2016 को भारतीय कृपाल सिंह
जो पकिस्तान में कैद थे उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी गई !इसके बाद भारत और
पाकिस्तान के बीच दिनोंदिन संबंध अत्यंत अधिक तनाव पूर्ण होते चले गए जिसकी
सूचना एक दिन पहले देने आया था भूकंप !
भूकंपों के द्वारा रोगों की सूचना -
10-9-2018 को दिल्ली में भूकंप आया था जिसका केंद्र मेरठ था !इस भूकंप से सूखी खाँसी साँस लेने की समस्या आदि बहुत अधिक बढ़ जानी थी !इसीलिए इस समय साँस लेने की समस्या से बहुत अधिक बच्चे रोगी हुए थे !इस गलाघोंटू रोग का प्रभाव उतने ही क्षेत्र में रहा था जितने में भूकंप के खटके लगे थे !
वैदिकविज्ञान की विशेषता
वैदिक विज्ञान अपने में संपूर्ण है यह इसकी बहुत बड़ी विशेषता है !इस विज्ञान की पद्धति से जिस विषय पर विचार किया जाता है उससे संबंधित सभी अंगों के विषय में अध्ययन और अनुसंधान किया जाता है जिसके द्वारा सभी विषयों में मानवता के लिए सुखद परिस्थितियों की खोज की जाती है और उनका अधिक से अधिक लाभ कैसे लिया जाए इसके लिए प्रेरणा मिलती है !इसके द्वारा जीवन और प्रकृति से संबंधित भविष्य में घटित होने वाली संभावित सभी प्रकार की परिस्थतियों की खोज की जाती है !उससे संबंधित पूर्वानुमान लगाकर उनके घटित होने का समय निश्चित किया जाता है इसके बाद उनसे बचाव के लिए यथा संभव उपायों को करने के लिए प्रेरणा मिलती है !प्रकृति और जीवन से संबंधित दोनों ही क्षेत्रों में ऐसा होते देखा जाता है !
वैदिकविज्ञान के द्वारा स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनुसंधान करते समय
इंद्रियाँ मन बुद्धि आत्मा शरीर
आयु आदि जीवन से संबंधित सभी विषयों का अध्ययन और अनुसंधान किया जाता है
इसके आधार पर संभावित परिस्थितियों का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है!यही
कारण है कि प्रकृति या जीवन में कोई घटना घटित क्यों हुई उसके कारणों के
अनुसंधान पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाता है !यही कारण है कि वेदवैज्ञानिक
पद्धति से उससे संबंधित सभी पक्षों का अनुसंधान करके रोग के मूल को ही नष्ट
कर दिया जाता था !
प्राचीन चिकित्सक लोग अपने पास रख कर जिस रोगी की चिकित्सा करते थे उसकी आयु का पूर्वानुमान पहले लगा लिया करते थे यही कारण है कि उस युग में चिकित्सकों के यहाँ शवगृह नहीं बनाए जाते थे वो जिसकी चिकित्सा कर रहे होते थे इसका मतलब होता था कि इसकी आयु अभी है इसलिए ये अभी जीवित रहेगा ही !वो कितना स्वस्थ और कितना अस्वस्थ होगा इसका भी पूर्वानुमान उन्हें पता होता था !प्रायः प्राचीन चिकित्सक लोग जिसकी आयु होती थी उसी की चिकित्सा उस रूप में किया करते थे बाकी रोगियों की पीड़ा कम करने के लिए औषधीय मदद कर दिया करते थे !क्योंकि चिकित्सकों या चिकित्सालयों का उद्देश्य स्वस्थ करना होता है शव तैयार करना नहीं !ऐसी परिस्थिति में चिकित्सालयों में बनाए जाने वाले शवगृह चिकित्सा धर्म के अनुरूप नहीं माने जा सकते हैं !जिस चिकित्सालय में एक ओर स्वास्थ्यलाभ कक्ष बना होता है तो दूसरी ओर शवगृह !ऐसी जगहों पर चिकित्सकों की दुविधा स्पष्ट रूप से झलक रही होती है !चिकित्सक लोग चिकित्सा तो प्रयासपूर्वक रोगी को स्वस्थ करने के उद्देश्य से ही कर रहे होते हैं किंतु उस चिकित्सा का परिणाम पता न होने के कारण उन्हें हमेंशा दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रहना पड़ता है रोगी स्वस्थ होता है तो इस कक्ष में और मृत्यु हो जाती है तो उस कक्ष में भेज दिया जाता है !ऐसी परिस्थिति में वैदिकविज्ञान एक सीमा तक अत्यंत सहयोगी सिद्ध होता रहा है !
वेदवैज्ञानिक पद्धति में चिकित्सा की सफलता का श्रेय उस प्रक्रिया को जाता है जिसमें रोग की वर्तमान अवस्था की अपेक्षा रोग का अतीत ,रोग का संभावित भविष्य,रोग के होने का कारण आदि के आधार पर रोगी के भविष्य और रोग की अवस्था का पूर्वानुमान लगा लिया जाता था !इस प्रकार की संपूर्ण जानकारी के अभाव में कई बार चिकित्साकाल में ही रोग भयानक रूप धारण कर लेता है !इसलिए रोग की केवल वर्तमान परिस्थिति देखकर उसी के आधार पर चिकित्सा करना उतना उपयोगी नहीं हो पाता है जितना कि उसके समग्र रूप को ध्यान में रखकर चिकित्सा प्रारंभ करना उत्तम होता है !
इसीप्रकार से आँधी तूफान वर्षा बाढ़ सूखा आदि की संभावनाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए उनके विषय में बादलों या आँधी तूफान की केवल वर्तमान अवस्था को देखकर ही पूर्वानुमान लगाना ठीक नहीं होता है कई बार हवाएँ बीच में अपना रुख बदल लेती हैं कई बार जो बादल दिखाई पड़ रहे होते हैं उनके पास बरसने के लिए जल ही नहीं होता है ऐसे परिस्थिति में वे घूम टहल कर लौट जाते हैं !
जिस प्रकार से किसी के शरीर में होने वाला कोई रोग जन्म लेने के बाद धीरे धीरे बढ़ता है और लंबे समय में एक आकार ग्रहण कर पाता है उसी प्रकार से प्रकृति से संबंधित कोई घटना जन्म लेने के बाद धीरे धीरे काफी समय में कोई आकार ग्रहण कर पाती है भले वो आँधी तूफ़ान ही क्यों न हो !
इसलिए उपग्रहों रडारों के द्वारा उसके वर्तमान स्वरूप को देखकर उनकी दिशा और गति के हिसाब से इतना अंदाजा तो लगाया जा सकता है कि यदि ये इसी गति से इसी दिशा में चलते रहे तो कब किस शहर में पहुँच सकते हैं !ऐसा भी तब होगा जब हवा बीच में अपना रुख न बदल ले अन्यथा इतना भी पता नहीं लगाया जा सकता है !ये तो निश्चित है कि उसकी वर्तमान अवस्था को देखकर उससे संबंधित विकरालता का अनुभव तो कैसे भी नहीं लगाया जा सकता है !
ऋतुओं के प्रभाव ,वातावरण एवं जीवन पर पड़ने वाले इसके असर का अनुसंधान किया जाता है !इसकी सबसे उत्तम व्यवस्था यह है कि जीवन एवं प्रकृति से संबंधित प्रत्येक परिस्थिति का अनुसंधान करने की प्रक्रिया में 'समय' को भी सम्मिलित किया जाता है !
तो उसके स्पष्ट लक्षण क्या हैं उसे पहचाना कैसे जा सकता है से क्या क्या नुक्सान हो सकते हैं
प्राचीन चिकित्सक लोग अपने पास रख कर जिस रोगी की चिकित्सा करते थे उसकी आयु का पूर्वानुमान पहले लगा लिया करते थे यही कारण है कि उस युग में चिकित्सकों के यहाँ शवगृह नहीं बनाए जाते थे वो जिसकी चिकित्सा कर रहे होते थे इसका मतलब होता था कि इसकी आयु अभी है इसलिए ये अभी जीवित रहेगा ही !वो कितना स्वस्थ और कितना अस्वस्थ होगा इसका भी पूर्वानुमान उन्हें पता होता था !प्रायः प्राचीन चिकित्सक लोग जिसकी आयु होती थी उसी की चिकित्सा उस रूप में किया करते थे बाकी रोगियों की पीड़ा कम करने के लिए औषधीय मदद कर दिया करते थे !क्योंकि चिकित्सकों या चिकित्सालयों का उद्देश्य स्वस्थ करना होता है शव तैयार करना नहीं !ऐसी परिस्थिति में चिकित्सालयों में बनाए जाने वाले शवगृह चिकित्सा धर्म के अनुरूप नहीं माने जा सकते हैं !जिस चिकित्सालय में एक ओर स्वास्थ्यलाभ कक्ष बना होता है तो दूसरी ओर शवगृह !ऐसी जगहों पर चिकित्सकों की दुविधा स्पष्ट रूप से झलक रही होती है !चिकित्सक लोग चिकित्सा तो प्रयासपूर्वक रोगी को स्वस्थ करने के उद्देश्य से ही कर रहे होते हैं किंतु उस चिकित्सा का परिणाम पता न होने के कारण उन्हें हमेंशा दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रहना पड़ता है रोगी स्वस्थ होता है तो इस कक्ष में और मृत्यु हो जाती है तो उस कक्ष में भेज दिया जाता है !ऐसी परिस्थिति में वैदिकविज्ञान एक सीमा तक अत्यंत सहयोगी सिद्ध होता रहा है !
वेदवैज्ञानिक पद्धति में चिकित्सा की सफलता का श्रेय उस प्रक्रिया को जाता है जिसमें रोग की वर्तमान अवस्था की अपेक्षा रोग का अतीत ,रोग का संभावित भविष्य,रोग के होने का कारण आदि के आधार पर रोगी के भविष्य और रोग की अवस्था का पूर्वानुमान लगा लिया जाता था !इस प्रकार की संपूर्ण जानकारी के अभाव में कई बार चिकित्साकाल में ही रोग भयानक रूप धारण कर लेता है !इसलिए रोग की केवल वर्तमान परिस्थिति देखकर उसी के आधार पर चिकित्सा करना उतना उपयोगी नहीं हो पाता है जितना कि उसके समग्र रूप को ध्यान में रखकर चिकित्सा प्रारंभ करना उत्तम होता है !
इसीप्रकार से आँधी तूफान वर्षा बाढ़ सूखा आदि की संभावनाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए उनके विषय में बादलों या आँधी तूफान की केवल वर्तमान अवस्था को देखकर ही पूर्वानुमान लगाना ठीक नहीं होता है कई बार हवाएँ बीच में अपना रुख बदल लेती हैं कई बार जो बादल दिखाई पड़ रहे होते हैं उनके पास बरसने के लिए जल ही नहीं होता है ऐसे परिस्थिति में वे घूम टहल कर लौट जाते हैं !
जिस प्रकार से किसी के शरीर में होने वाला कोई रोग जन्म लेने के बाद धीरे धीरे बढ़ता है और लंबे समय में एक आकार ग्रहण कर पाता है उसी प्रकार से प्रकृति से संबंधित कोई घटना जन्म लेने के बाद धीरे धीरे काफी समय में कोई आकार ग्रहण कर पाती है भले वो आँधी तूफ़ान ही क्यों न हो !
इसलिए उपग्रहों रडारों के द्वारा उसके वर्तमान स्वरूप को देखकर उनकी दिशा और गति के हिसाब से इतना अंदाजा तो लगाया जा सकता है कि यदि ये इसी गति से इसी दिशा में चलते रहे तो कब किस शहर में पहुँच सकते हैं !ऐसा भी तब होगा जब हवा बीच में अपना रुख न बदल ले अन्यथा इतना भी पता नहीं लगाया जा सकता है !ये तो निश्चित है कि उसकी वर्तमान अवस्था को देखकर उससे संबंधित विकरालता का अनुभव तो कैसे भी नहीं लगाया जा सकता है !
ऋतुओं के प्रभाव ,वातावरण एवं जीवन पर पड़ने वाले इसके असर का अनुसंधान किया जाता है !इसकी सबसे उत्तम व्यवस्था यह है कि जीवन एवं प्रकृति से संबंधित प्रत्येक परिस्थिति का अनुसंधान करने की प्रक्रिया में 'समय' को भी सम्मिलित किया जाता है !
तो उसके स्पष्ट लक्षण क्या हैं उसे पहचाना कैसे जा सकता है से क्या क्या नुक्सान हो सकते हैं
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