विज्ञान अधूरा है ?
विज्ञानपंथी विचारधारा के नाम पर कुछ लोग धर्म कर्म आत्मा परमात्मा लोकपरलोक जैसी बातों को धार्मिककर्मकांडों को श्राद्ध आदि शास्त्रीय परंपराओं को पाखंड मानते हैं |वेदों और पुराणों में वर्णितविज्ञान को ज्योतिष तंत्र योग आदि वैज्ञानिक विषयों को अंधविश्वास बताते हैं |भाग्य की बात करने वालों का उपहास उड़ाते हैं इसका मुख्य कारण ये है कि उनके मन में कुछ ऐसे प्रश्न होते हैं जिनके उन्हें उत्तर नहीं मिल पाते हैं इसलिए उन्हें ऐसा लगता है कि शायद ये विषय पूरी तरह काल्पनिक ही हैं |
इसलिए उनके प्रश्नों का उत्तर खोजा जाना बहुत आवश्यक होता है और वो उत्तर ऐसा होना चाहिए जो तर्कसंगत हो विश्वसनीय हो और उसमें वैज्ञानिकता झलकनी भी चाहिए |
पूर्वज कहा करते थे कि कोई कितना भी प्रयास क्यों न कर ले किंतु 'भाग्य' से ज्यादा और 'समय' से पहले और किसी को कुछ मिलता नहीं है |ऐसा अनुभव भी बहुतों के द्वारा अक्सर किया जाता रहा है |
प्रायः देखा जाता है कि कुछ लोग आजीवन बहुत परिश्रम करते रहते हैं इसके बाद भी वे सफल नहीं हो पाते हैं इसके विपरीत कुछ लोग शिक्षा भी अच्छी नहीं ले पाते हैं परिश्रम भी अधिक नहीं करते हैं इसके बाद भी सफल होते देखे जाते हैं | यदि भाग्य की भावना को न माना जाए तो ऐसी बातों को विज्ञान के दृष्टिकोण से कैसे परिभाषित किया जाएगा ?
इसी प्रकार कुछ लोग बहुत सुंदर होते हैं किंतु उन्हें जीवन साथी कुरूप मिल जाता है या खुद कुरूप हो किंतु जीवन साथी अच्छा मिल जाता है ये भी उसके पूर्व जन्म में किए गए अच्छे या बुरे कर्मों का परिणाम माना जाता है |
कई बार लोग खुद बहुत पढ़े लिखे विद्वान् सदाचारी आदि होते हैं या फिर अनपढ़ दुराचारी आदि होते हैं किंतु उन्हें संतान उनके विल्कुल विपरीत स्वभाव वाली अच्छी या बुरी मिल जाती है ये उनके पूर्व जन्म के अच्छे या बुरे कर्मों का फल होता है |
कई बार कोई बच्चा बहुत छोटी सी उम्र में ही ऐसे उच्चकोटि के गुण योग्यता आदि से संपन्न हो जाता है जैसा कि अन्य बच्चों में नहीं देखा जाता है |
कई बार लोग किसी ऐसे संकट या दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं जिससे उनका बच पाना बिल्कुल कठिन ही नहीं अपितु असंभव सा माना जाता है इसके बाद भी देखा जाता है कि उन्हें कोई चोट क्या खरोंच तक नहीं लग पाती है और वे बाल बाल बच जाते हैं | इसके विपरीत कई बार लोग बिल्कुल सुरक्षित रहने पर भी मार दिए जाते हैं कई बार किसी ने गोली किसी दूसरे को मारी होती है और वो लगती किसी दूसरे को है उसकी मौत हो जाती है !ऐसी परिस्थिति में मरने वाले और मारने वाले दोनों को एक क्षण पहले तक यह पता ही नहीं था कि इसकी मौत हो जाएगी किंतु हो जाती है इसे पूर्वज लोग पुराने जन्मों से संबंधित अच्छे बुरे कर्मों का फल या इसे ही अच्छा या बुरा 'भाग्य' मान या करते थे |
किसी हॉस्पिटल में भर्ती एक जैसे रोग से ग्रस्त कुछ सौ लोगों की चिकित्सा एक ही चिकित्सक एक ही चिकित्सा पद्धति से करता है तो उसमें कुछ रोगी स्वस्थ होते हैं और कुछ अस्वस्थ बने रहते हैं और कुछ मर जाते हैं !ऐसी परिस्थिति में यदि भाग्य की कोई भूमिका न मानी जाए तो परिणामों में इतना बड़ा अंतर होने का और दूसरा कारण क्या हो सकता है | ऐसी परिस्थिति में जो रोगी मर जाते हैं उनके लिए कुदरत को दोषी ठहरा दिया जाता है तो जो लोग स्वस्थ हो गए उसका श्रेय भी कुदरत दिया जाना चाहिए यदि ऐसा मान भी लिया जाए तो चिकित्सा शास्त्र की भूमिका कितनी मानी जाएगी ?
आधुनिक विज्ञान के जानकार वैज्ञानिकों का एक वर्ग ये मानता है कि पुराने जन्मों के कर्मों का फल इस जन्म में मिलता है ये सच नहीं है | दूसरी बात भाग्य जैसी कोई चीज है ही नहीं जिसका प्रभाव इस जन्म में होता हो |
यदि वैज्ञानिकों की इस बात पर विश्वास कर भी लिया जाए तो उन प्रश्नों का उत्तर भी तो मिलना चाहिए कि ऐसी परिस्थितियाँ पैदा क्यों होती हैं |
समय से पहले कुछ नहीं मिलता है !
मौसमपूर्वानुमान और वैदिकविज्ञान के विषय में
विज्ञानपंथी विचारधारा के नाम पर कुछ लोग धर्म कर्म आत्मा परमात्मा लोकपरलोक जैसी बातों को धार्मिककर्मकांडों को श्राद्ध आदि शास्त्रीय परंपराओं को पाखंड मानते हैं |वेदों और पुराणों में वर्णितविज्ञान को ज्योतिष तंत्र योग आदि वैज्ञानिक विषयों को अंधविश्वास बताते हैं |भाग्य की बात करने वालों का उपहास उड़ाते हैं इसका मुख्य कारण ये है कि उनके मन में कुछ ऐसे प्रश्न होते हैं जिनके उन्हें उत्तर नहीं मिल पाते हैं इसलिए उन्हें ऐसा लगता है कि शायद ये विषय पूरी तरह काल्पनिक ही हैं |
इसलिए उनके प्रश्नों का उत्तर खोजा जाना बहुत आवश्यक होता है और वो उत्तर ऐसा होना चाहिए जो तर्कसंगत हो विश्वसनीय हो और उसमें वैज्ञानिकता झलकनी भी चाहिए |
पूर्वज कहा करते थे कि कोई कितना भी प्रयास क्यों न कर ले किंतु 'भाग्य' से ज्यादा और 'समय' से पहले और किसी को कुछ मिलता नहीं है |ऐसा अनुभव भी बहुतों के द्वारा अक्सर किया जाता रहा है |
प्रायः देखा जाता है कि कुछ लोग आजीवन बहुत परिश्रम करते रहते हैं इसके बाद भी वे सफल नहीं हो पाते हैं इसके विपरीत कुछ लोग शिक्षा भी अच्छी नहीं ले पाते हैं परिश्रम भी अधिक नहीं करते हैं इसके बाद भी सफल होते देखे जाते हैं | यदि भाग्य की भावना को न माना जाए तो ऐसी बातों को विज्ञान के दृष्टिकोण से कैसे परिभाषित किया जाएगा ?
इसी प्रकार कुछ लोग बहुत सुंदर होते हैं किंतु उन्हें जीवन साथी कुरूप मिल जाता है या खुद कुरूप हो किंतु जीवन साथी अच्छा मिल जाता है ये भी उसके पूर्व जन्म में किए गए अच्छे या बुरे कर्मों का परिणाम माना जाता है |
कई बार लोग खुद बहुत पढ़े लिखे विद्वान् सदाचारी आदि होते हैं या फिर अनपढ़ दुराचारी आदि होते हैं किंतु उन्हें संतान उनके विल्कुल विपरीत स्वभाव वाली अच्छी या बुरी मिल जाती है ये उनके पूर्व जन्म के अच्छे या बुरे कर्मों का फल होता है |
कई बार कोई बच्चा बहुत छोटी सी उम्र में ही ऐसे उच्चकोटि के गुण योग्यता आदि से संपन्न हो जाता है जैसा कि अन्य बच्चों में नहीं देखा जाता है |
कई बार लोग किसी ऐसे संकट या दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं जिससे उनका बच पाना बिल्कुल कठिन ही नहीं अपितु असंभव सा माना जाता है इसके बाद भी देखा जाता है कि उन्हें कोई चोट क्या खरोंच तक नहीं लग पाती है और वे बाल बाल बच जाते हैं | इसके विपरीत कई बार लोग बिल्कुल सुरक्षित रहने पर भी मार दिए जाते हैं कई बार किसी ने गोली किसी दूसरे को मारी होती है और वो लगती किसी दूसरे को है उसकी मौत हो जाती है !ऐसी परिस्थिति में मरने वाले और मारने वाले दोनों को एक क्षण पहले तक यह पता ही नहीं था कि इसकी मौत हो जाएगी किंतु हो जाती है इसे पूर्वज लोग पुराने जन्मों से संबंधित अच्छे बुरे कर्मों का फल या इसे ही अच्छा या बुरा 'भाग्य' मान या करते थे |
किसी हॉस्पिटल में भर्ती एक जैसे रोग से ग्रस्त कुछ सौ लोगों की चिकित्सा एक ही चिकित्सक एक ही चिकित्सा पद्धति से करता है तो उसमें कुछ रोगी स्वस्थ होते हैं और कुछ अस्वस्थ बने रहते हैं और कुछ मर जाते हैं !ऐसी परिस्थिति में यदि भाग्य की कोई भूमिका न मानी जाए तो परिणामों में इतना बड़ा अंतर होने का और दूसरा कारण क्या हो सकता है | ऐसी परिस्थिति में जो रोगी मर जाते हैं उनके लिए कुदरत को दोषी ठहरा दिया जाता है तो जो लोग स्वस्थ हो गए उसका श्रेय भी कुदरत दिया जाना चाहिए यदि ऐसा मान भी लिया जाए तो चिकित्सा शास्त्र की भूमिका कितनी मानी जाएगी ?
आधुनिक विज्ञान के जानकार वैज्ञानिकों का एक वर्ग ये मानता है कि पुराने जन्मों के कर्मों का फल इस जन्म में मिलता है ये सच नहीं है | दूसरी बात भाग्य जैसी कोई चीज है ही नहीं जिसका प्रभाव इस जन्म में होता हो |
यदि वैज्ञानिकों की इस बात पर विश्वास कर भी लिया जाए तो उन प्रश्नों का उत्तर भी तो मिलना चाहिए कि ऐसी परिस्थितियाँ पैदा क्यों होती हैं |
समय से पहले कुछ नहीं मिलता है !
मौसमपूर्वानुमान और वैदिकविज्ञान के विषय में
किसी रोगी के रोग को समझने के लिए जिस प्रकार से रोग क्यों हुआ उसके
कारण खोजे जाते हैं उसी प्रकार से वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि घटनाओं के
घटित होने के भी कारण होते हैं जिनके प्रभाव से ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं
|उन कारणों का पता लग जाने पर प्राकृतिक घटनाओं के विषय में काफी पहले
पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |
मौसम संबंधी घटनाओं का निर्माण करने वाली शक्तियों के स्वभाव से यदि
हम सुपरिचित होंगे तभी उनके विषय में पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है
|उनके स्वभाव को समझे बिना यदि हम केवल अंदाजा लगाकर किसी भी तीर तुक्के के
आधार पर कोई भविष्यवाणी कर देते हैं तो वो सही या गलत दोनों हो सकती है
क्योंकि यह एक तुक्का है भविष्यवाणी नहीं |
कई बार ऐसे तुक्के भी सही हो जाने पर उसे पूर्वानुमान बताकर उसका श्रेय तो ले
लिया जाता है किंतु यदि वही तुक्का गलत हो जाता है तो हमें उस गलती को स्वीकार करने में लज्जा लगती है | इसलिए
शर्मिंदा न होना पड़े इसके लिये हम जलवायुपरिवर्तन
,ग्लोबलवार्मिंग,अलनीनो-लानीना जैसी न जाने कितनी कहानियाँ गढ़ लेते हैं |
वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने पर यदि जलवायुपरिवर्तन ,ग्लोबलवार्मिंग,अलनीनो-लानीना जैसी घटनाओं की भी भूमिका है तो इन घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाए बिना मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान
कैसे लगाया जा सकता है |इसलिए सबसे पहले ऐसी घटनाओं के विषय में
पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए !इसके बिना लगाया गया किसी भी प्रकार का
प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमान आधार विहीन, अधूरा एवं अविश्वसनीय
होता है क्योंकि ऐसे काल्पनिक कारणों का उपयोग तो किसी भी भविष्यवाणी के गलत होने पर अपनी सुविधानुसार कर लिया जाता है |
मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक कोई प्रमाणित वैज्ञानिक
तकनीक नहीं है यही कारण है कि प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित भविष्यवाणियाँ
तो गलत होती ही रहती हैं पर इस सच को स्वीकार करने के बजाए मौसमी घटनाओं को ही दोषी सिद्ध कर दिया जाता है |
मानसून समय से नहीं आया ,मानसून समय से गया नहीं,मानसून चकमा दे गया
,मानसून ने निराश किया आदि बातें क्यों ?सीधी सी बात है कि मानसून आने के
विषय में हमने जो भविष्यवाणी की यदि वह गलत हो गई तो मानसून का दोष क्या है
गलत हमारी भविष्यवाणी हुई है ?
ऐसे ही सन 2018 अगस्त में सामान्य वर्षा की भविष्यवाणी की गई किंतु उसी समय केरल
में भीषण वर्षा होने लगी भयंकर बाढ़ आ गई | सच्चाई ये है कि पूर्वानुमान
लगाने में चूक हुई है किंतु बाढ़ आने का कारण हम जलवायुपरिवर्तन को बता रहे होते हैं |
सन
2018 के मई जून में बार बार आए हिंसक आँधी तूफ़ानों के विषय में कोई
भविष्यवाणी नहीं की जा सकी थी तथा 7 और 8 मई को आँधी तूफ़ान आने के लिए
भविष्यवाणी की गई तो वो पूरी तरह गलत हो गई | ऐसा इसीलिए हुआ क्योंकि आँधी तूफ़ानों के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए अपने पास कोई प्रक्रिया है ही नहीं ! | इसलिए पूर्वानुमान लगाने वालों से चूक
हुई किंतु दोष तूफानों का दिया जाने लगा
कहा गया कि -'चुपके से आते हैं चक्रवात' या ग्लोबलवार्मिंग के कारण आते हैं तूफ़ान |
कुलमिलाकर ऐसी असफल भविष्यवाणियों की सूची काफी लंबी भी हो सकती है
जिसके विषय में हम केवल इतना ही कहना चाहते हैं कि मौसम संबंधी प्राकृतिक
घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक कोई तकनीक विकसित ही
नहीं हो पाई है |
वर्तमान समय में मौसम संबंधी पूर्वानुमान अनुसंधानों के नाम पर एक ऐसे
ताले को खोलने का प्रयास किया जा रहा है जिसकी अपनी चाभी खो गई है दूसरी
चाभियों से उसे खोलने का प्रयास किया जा रहा है किंतु ताला खुल नहीं पा रहा
है | जिसको खोलने में असफल रहने के कारण लोग ताले को ही खराब बताने लगे हैं | किसी का ध्यान इस ओर नहीं आ रहा है कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि हम
ताला खोलने के लिए जिस चाभी का प्रयोग कर रहे हैं वो चाभी ही गलत हो |
यही स्थिति हमारे मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने की है मौसम निर्माण करने वाली शक्तियों का अनुसंधान करने के बजाए जलवायुपरिवर्तन
,ग्लोबलवार्मिंग,अलनीनो-लानीना जैसी निरर्थक कल्पनाएँ की जा रही हैं
| वर्षा बाढ़ और आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं के विषय में लगाया जाने वाला
पूर्वानुमान निरंतर गलत होता जा रहा है |
बादलों या आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं को उपग्रहों रडारों आदि के माध्यम से
देखकर उनकी गति और दिशा के हिसाब से अंदाजा लगाकर कि ये किस दिन किस देश
प्रदेश या शहर आदि में पहुँच सकते हैं उसके आधार पर मौसम संबंधी भविष्यवाणी
कर दी जाती हैं इसी बीच हवाएँ यदि बदल गईं तो वो अंदाजा भी गलत हो जाता है
| ऐसा अंदाजा लगाने में विज्ञान कहाँ है |
मौसमविज्ञान और समय !
वैदिकविज्ञान की दृष्टि से प्रकृति में घटित होने वाली सभी प्रकार की
घटनाओं का समय निश्चित है इसलिए सभी घटनाएँ अपने अपने समय पर घटित होती
जाती हैं हमेंशा से ही ऐसा होता चला आ रहा है | मौसमसंबंधी घटनाएँ भी समय
के आधार पर ही घटित होती हैं कब सूखा पड़ना है, कब बादल आना है, कब वर्षा
होनी है, कब अधिक वर्षा होनी है कब आँधी आनी है कब तूफ़ान आना है कब चक्रवात
आना है सबका अपना अपना समय सुनिश्चित होता है |भूकंप आने का भी समय
निश्चित है !यहाँ तक कि वायु प्रदूषण बढ़ने घटने का भी समय निश्चित है |
मौसम पूर्वानुमान लगाने के लिए केवल उन उन घटनाओं से संबंधित समय को
खोजना होता है जो जिस प्रकार की प्राकृतिक घटना के लिए निश्चित होता है |उस
समय की खोज सिद्धांतगणित की प्रक्रिया के अनुशार करनी होती है |
जिस प्रकार से समुद्र में ऊँची ऊँची लहरें कब उठेंगी यदि इस बात का
पूर्वानुमान लगाना हो तो इसके लिए वैदिक विज्ञान की दृष्टि से अमावस्या
पूर्णिमा आदि तिथियों का समय निश्चित है !इसके बाद गणित के द्वारा इस बात
का पूर्वानुमान लगाना होता है कि अमावस्या और पूर्णिमा आएगी किस तारीख को
?ऐसा निश्चित होने के बाद कह दिया जाता है कि उस तारीख को समुद्र में ऊँची
ऊँची लहरें उठेंगी !
इस प्रकार से समुद्र के जल का स्पर्श किए
बिना समुद्र के पास जाए बिना समुद्र या समुद्र जल का परीक्षण किए बिना ही
केवल गणित के द्वारा उस तारीख को खोज लिया जाता है जिस दिन समुद्र में सबसे
ऊँची लहरें उठनी होती हैं |
इसी प्रकार से सूर्य या चंद्र
का ग्रहण कब पड़ेगा इस प्राकृतिक घटना का पूर्वानुमान लगाने के लिए पहले यह
जानना होता है कि सूर्य और चंद्र ग्रहण पड़ते किस किस तिथि को हैं जब पता
लगा कि सूर्य ग्रहण अमावस्या को और चंद्र ग्रहण पूर्णिमा को लगता है |
इसके बाद सूर्यग्रहण किस अमावस्या को पड़ेगा और चंद्र ग्रहण किस पूर्णिमा को
पड़ेगा आदि तारीख पता लगने के बाद उसका समय क्या होगा कितनी देर पड़ेगा
!भविष्य में कब कब पड़ेगा आदि बातों का पूर्वानुमान सिद्धांतगणित की
प्रक्रिया के अनुशार लगा लिया जाता है | इसके लिए
किसी उपग्रह या रडार आदि से सूर्य चंद्र के चित्र नहीं लेने या देखने होते
हैं और न ही इनके किसी प्रकार के परीक्षण की ही आवश्यकता होती है यहाँ तक
कि सूर्य चंद्र और आकाश आदि तक को देखे बिना ही केवल गणित के आधार पर उस
समय का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है जिसमें इस प्रकार की घटना घटित होती
है|लाखों वर्ष बीतने के बाद भी ग्रहणों के विषय में लगाए गए पूर्वानुमान
बिलकुल सही एवं सटीक निकलते हैं कोई भविष्यवाणी कभी गलत नहीं हुई इसीलिए
वेदवैज्ञानिकों को जलवायुपरिवर्तन , ग्लोबलवार्मिंग , अलनीनो-लानीना जैसी कभी कोई काल्पनिक कहानी नहीं गढ़नी पड़ी !
गणित के द्वारा लगाए जाने वाले पूर्वानुमानों में केवल उस समय की खोज करनी
होती है समय के आधार पर ही प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं !
मानसून की तारीखें बदलते रहने का कारण भी समय ही है इसीलिए आजतक किसी एक
निश्चित तारीख को न मानसून आया है और न भविष्य में ही कभी आएगा !
इसका कारण मानसून तिथियों के अनुशार आता है तारीखों के अनुशार नहीं
!क्योंकि तिथियों का निर्माण सूर्य और चंद्र के संयोग से होता है और वर्षा
बाढ़ आंधी तूफानों आदि प्राकृतिक घटनाओं का निर्माण भी सूर्य चंद्र आदि
ग्रहों के वायु मंडल में पड़ने वाले प्रभाव से होता है |इसलिए मानसून के आने
जाने में तिथियों का महत्त्व होता है |
'समय' का साथ लिए बिना मौसमविज्ञान अधूरा है !
प्रकृति
में सभी घटनाएँ समय के अनुशार घटित हो ती है किसी भी काल खंड में समय
हमेंशा एक जैसा नहीं रहता है |समय ही संसार में घटित होने वाली सभी प्रकार
की घटनाओं का निर्माण और समापन करता है |
संसार में केवल 'समय'' ही स्वतंत्र है जीवन हो या प्रकृति सबको समय के
अनुशार ही चलना होता है हमारे द्वारा किए जाने वाले जो प्रयास समय के
अनुशार नहीं किए जाते हैं उनके सफल होने में अक्सर चंद्रयान 2 की तरह
कठिनाई होती ही है |समय की उपेक्षा करके किसी भी कार्य के लिए हम प्रयास तो
कर सकते हैं किंतु उसके परिणाम पर अधिकार 'समय' का होता है परिणाम कैसा होगा इस बात
का पूर्वानुमान उस कालखंड में चल रहे समय के अनुसार ही लगाया जा सकता है |समय की
उपेक्षा करने के कारण छोटे बड़े अनेकों प्रयास असफल होते रहते हैं कई
वैज्ञानिक अनुसंधान भी इसी की भेंट चढ़ गए !
समय हमेंशा अपनी गति से चला करता है और जीवन में हो या प्रकृति में सभी घटनाएँ घटित होते चली जाती हैं | समय स्वतंत्र
तो है किंतु स्वच्छंद नहीं है अपितु नियमबद्ध है इसीलिए उसका क्रम और समय
अंतराल लगभग एक जैसा ही हमेंशा बना रहता है |हमारे कहने का अभिप्राय
संपूर्ण प्रकृति ही समय के अनुशार संचालित होती देखी जा रही है |
प्रतिदिन के सूर्योदय तथा सूर्य के अस्त होने का समय निश्चित है
प्रतिवर्ष सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं का समय निश्चित है उनका क्रम
निश्चित है|समय का पालन संपूर्ण प्रकृति करती है !संपूर्ण संसार में सब कुछ
एक जैसा रहता है केवल समय के बदलने से सबकुछ बदलता जाता है |
सर्दी का समय आते ही भयंकर सर्दी पड़ने लगती है और गर्मी का समय आते ही
भीषण गर्मी पड़ने लगती है नदियाँ कुएँ तालाब आदि सब सूख जाते हैं | वर्षा का
समय आते ही वर्षा होने लगती है सूखे हुए नदियाँ कुएँ तालाब आदि फिर भर जाते हैं | जाने कहाँ कहाँ से आकर कितने बादल सारे
आकाश मंडल को घेर लेते हैं इन्हें कोई निमंत्रण देने तो नहीं जाता !आकाश
बादलों से भर जाता है !समय बीतते ही सारे बादल न जाने कहाँ चले जाते हैं
आकाश फिर साफ हो जाता है |
कुल मिलाकर प्रकृति में होने वाले ऐसे सभी प्रकार के परिवर्तनों में
केवल समय बदलता जा रहा होता है उसके साथ साथ प्रकृति में बदलाव होता जाता
है |
इस प्रकार से जिस प्रकृति पर समय का इतना बड़ा प्रभाव देखा जाता है
वर्षा आँधी तूफ़ान आदि प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए यदि
उसी समय सिद्धांत का अनुपालन करते हुए गणितीय प्रक्रिया के द्वारा मौसम
संबंधी पूर्वानुमान लगाया जाए तो अधिक सही एवं सटीक होने की संभावना होती
है |
गणितीय प्रक्रिया से मौसम पूर्वानुमान लगाने का प्रकार -
प्रकृति जब सूर्य से अधिक प्रभावित होती है तब हवा तो चलती है किंतु वर्षा नहीं होती है ऐसे समय धूप अधिक निकलती है गर्मी बढ़ती है आँधी तूफ़ान की घटनाएँ घटित होती हैं वायु प्रदूषण बढ़ने लगता है |ऐसे समय में आकाश में या तो बादल नहीं रहते हैं यदि बादल होते भी हैं तो वे भूरे रंग के होते हैं ऐसे बादल तीव्र गति से किसी एक दिशा की ओर उड़ रहे होते हैं |
इसी प्रकार से जब केवल चंद्र का ही प्रभाव बढ़ता है तो आकाश
में घनघोर काले काले बादल तो छा जाते हैं किंतु वर्षा अत्यंत कम होती है
या नहीं भी होती है और कई बार बिना बरसे ही निकल जाते हैं | ये किसी एक ही
दिशा की ओर जा रहे होते हैं |
कई बार सूर्य और चंद्र दोनों का प्रभाव समान रूप से पड़ रहा होता है ऐसे
समय में सूर्य और चंद्र के बादल एक दूसरे से विपरीत दिशा में गमन कर रहे
होते हैं कई बार ऐसा भी होता है कि कुछ बादल स्थिर होते हैं तो दूसरी ओर
से आने वाले बादल उन्हें लाँघ रहे होते हैं |ऐसे समय में अच्छी बारिस होने
की संभावना होती है | ये प्रभाव जितना अधिक शक्तिशाली होता है वर्षा का
वेग भी उतना ही अधिक होता है |
कभी कभी सूर्य और चंद्र दोनों का प्रभाव अत्यंत अधिक बढ़ा हुआ होता है और
दोनों का
प्रभाव लगभग एक समान होता है ऐसे समय में बड़े बड़े आकार के घनघोर डरावने
बादल उठते हैं इनके प्रभाव से वर्षा आँधी तूफ़ान आदि घटनाएँ साथ
साथ ही घटित होते देखी जाती हैं |
ऐसे ही अन्य कुछ खगोलीय परिस्थितियाँ दूसरे ग्रहों की दूसरे ग्रहों के
साथ बनती हैं उनके प्रभाव से भी कुछ इसी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित
होती हैं |
जब कोई दो या दो से अधिक खगोलीय परिस्थितियाँ वर्षा करने वाली बन जाती
हैं उस समय अधिक वर्षा होने की संभावना बन जाती है | ऐसे ही आँधी तूफ़ान आदि
की घटनाएँ भी घटित होते देखी जाती हैं |
इस प्रकार से खगोलीय परिस्थितियाँ कब कैसी बन रही हैं या भविष्य में कब
कैसी बनेंगी इसका पूर्वानुमान गणितीय पद्धति से आगे से आगे लगा लिया जाता
है इसके साथ ही सूर्य और चंद्र का प्रभाव कब कैसा पड़ रहा है इसका
पूर्वानुमान भी बहुत पहले से लगा लिया जाता है और इसी के आधार पर वर्षा
बाढ़ या आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |
- विनम्र निवेदन -
मैं पिछले लगभग 25 वर्षों से वैदिक विज्ञान के आधार पर प्रकृति एवं जीवन
से संबंधित विषयों पर अनुसंधान करता चला आ रहा हूँ इसके आधार पर लगाए जाने
वाले पूर्वानुमान प्रकृति और जीवन दोनों ही क्षेत्रों के लिए अत्यंत
महत्वपूर्ण सही एवं सटीक होते हैं |
प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमान पिछले लगभग 7 वर्षों से मैं अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करता रहा हूँ |
बीते दो वर्षों से प्रत्येक महीना प्रारंभ होने से एक दो दिन पूर्व वर्षा
तूफ़ान वायुप्रदूषण आदि से संबंधित पूर्वानुमान लगाकर मैं प्रधानमन्त्री
जी के यहाँ ईमेल पर भेजता रहा हूँ ,इसके साथ ही मौसम विभाग तथा कुछ
प्रांतों के मुख्यमंत्रियों एवं कुछ पत्रकारों के ईमेल पर भेजता रहा हूँ
!वे मेल संदेश हमारे पास आज भी प्रमाण स्वरूप में संगृहीत हैं | आवश्यकता
पड़ने पर प्रस्तुत किए जा सकते हैं |
हमारे द्वारा गणितीय
प्रक्रिया से लगाए गए पूर्वानुमान कितने प्रतिशत सही हैं या जानने के लिए
मैंने अखवारों एवं समाचार पत्रों चैनलों आदि में प्रकाशित घटनाओं के विवरण
का संग्रह किया हुआ है |
ये प्रक्रिया अत्यंत सही एवं सटीक है फिर भी इन्हें और अधिक उत्तम बनाने के लिए इससे संबंधित अनुसंधान करने के लिए आवश्यक संसाधनों की आवश्यकता होती है | उससे पूर्वानुमान लगाने में और अधिक सटीकता लाई जा सकती है |
वेद विज्ञान
वेदविज्ञान का उपहार करने वाले लोगों ने वस्तुतः वेदशास्त्र आदि विषयों को पढ़ा नहीं होता है इसलिए उन्हें इन विषयों का ज्ञान नहीं होता है|अपनी व्यक्तिगत अज्ञानता के कारण वो ऐसे विषयों के साथ न्याय नहीं कर पाते हैं| उन्हें इस बात की पहचान ही नहीं होती है कौन व्यक्ति विद्वान है या नहीं या कौन व्यक्ति किस विषय का कितना बड़ा विद्वान है | ऐसे लोग विद्वानों या साधू संतों का वेष बनाए फिरने वाले प्रत्येक व्यक्ति को चारों वेदों पुराणों का विद्वान मानकर उनसे वैदिक विज्ञान से संबंधित प्रश्नकरने लगते हैं जबकि उन लोगों ने धन लोभ से ऐसा वेष बना रखा होता है इसलिए उसकी कोई जानकारी नहीं होती है वो जान बचाकर भाग रहा होता है ये समझ रहे होते हैं कि मैंने किसी वेदवैज्ञानिक को पराजित कर दिया है जबकि कि कई बार ऐसे काल्पनिक लोग भिखारियों ब्यभिचारियों अज्ञानियों अपराधियों से वेद विज्ञान पर बहस कर रहे होते हैं केवल इसलिए क्योंकि उन्होंने साधू संतों या ब्राह्मणों विद्वानों जैसा वेष बना रखा होता है |
वैसे भी असली चीज की अपेक्षा प्रत्येक नकली चीज अधिक चमकदार एवं आकर्षक लगती ही है इसलिए केवल वेष रचना के आधार पर आप यदि किसी की परख कर रहे होते हैं तो ये आप केवल अपने को धोखा दे रहे होते हैं |
विद्वान् तैयार करने का उद्देश्य से संस्कृत विश्वविद्यालयो की परिकल्पना की गई थी किंतु अन्य शिक्षण संस्थानों की तरह सं संस्कृत विश्व विद्यालय भी भ्रष्टाचार और घूस की भेंट चढ़ गए जब शिक्षक विद्वान शिक्षित एवं सदाचारी होंगे तभी छात्रों से ऐसी आशा रखी जानी चाहिए | सरकारों का निगरानी तंत्र इतना अधिक कमजोर होता है कि जो एक बार जिस पद के लिए नियुक्त होता है वो फिर उस पद पर लगभग रहता ही है | सोचने वाली बात है कि जो व्यक्ति जिस पद के लायक योग्यता नहीं रखता उसकी नियुक्ति पर पुनर्विचार क्यों नहीं किया जाना चाहिए |
वेद विज्ञान के नाम पर अनेकों संस्थाएँ खुली हैं काम भी कर रही हैं सरकारें उन्हें अनुदान भी दे रही हैं ऐसे लोग अनुसंधान के नाम पर सरकारी गोदामों में रद्दी जमा किया करते हैं जिसे बाद में कोई खोलकर देखता तक नहीं है और सोर्स एवं भ्रष्टाचार के बल पर सरकारी खजाने से पैसा उठाकर सुखसुविधाएँ भोगा करते हैं | सरकारी तंत्र में ऐसे विषयों पर कोई निगरानी नहीं होती है |
वेदविज्ञान के विषय में अनुसंधान के नाम पर सरकारें जिन लोगों को धन देती हैं उनसे ये भी तो पूछा जाना चाहिए कि जिन विषयों में अनुसंधान के लिए वे धन माँग रहे हैं उन विषयों में अनुसंधान की योग्यता यदि उनमें हैं तो आज तक उन्होंने किस विषय में क्या अनुसंधान किया है यह जाने बिना सरकार यदि ऐसे अनुसंधानों पर धन खर्च करती है तो ऐसे अनुसंधानों से वेदविज्ञान का उत्थान कैसे हो सकता है अपितु ऐसे अनुसंधानों के नाम पर जो कुछ किया जाता है यदि उससे हम कोई नए रहस्य उद्घाटित नहीं कर पाते हैं तो इससे वेद विज्ञान का उपहास होता है |
इसलिए वेदविज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए उतने ही प्रयास और निगरानी आवश्यक है जितनी की अन्य विषयों में न की जाती है ऐसा होने पर वैदिक विज्ञान महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकता है |
वेद विज्ञान
वेदविज्ञान का उपहार करने वाले लोगों ने वस्तुतः वेदशास्त्र आदि विषयों को पढ़ा नहीं होता है इसलिए उन्हें इन विषयों का ज्ञान नहीं होता है|अपनी व्यक्तिगत अज्ञानता के कारण वो ऐसे विषयों के साथ न्याय नहीं कर पाते हैं| उन्हें इस बात की पहचान ही नहीं होती है कौन व्यक्ति विद्वान है या नहीं या कौन व्यक्ति किस विषय का कितना बड़ा विद्वान है | ऐसे लोग विद्वानों या साधू संतों का वेष बनाए फिरने वाले प्रत्येक व्यक्ति को चारों वेदों पुराणों का विद्वान मानकर उनसे वैदिक विज्ञान से संबंधित प्रश्नकरने लगते हैं जबकि उन लोगों ने धन लोभ से ऐसा वेष बना रखा होता है इसलिए उसकी कोई जानकारी नहीं होती है वो जान बचाकर भाग रहा होता है ये समझ रहे होते हैं कि मैंने किसी वेदवैज्ञानिक को पराजित कर दिया है जबकि कि कई बार ऐसे काल्पनिक लोग भिखारियों ब्यभिचारियों अज्ञानियों अपराधियों से वेद विज्ञान पर बहस कर रहे होते हैं केवल इसलिए क्योंकि उन्होंने साधू संतों या ब्राह्मणों विद्वानों जैसा वेष बना रखा होता है |
वैसे भी असली चीज की अपेक्षा प्रत्येक नकली चीज अधिक चमकदार एवं आकर्षक लगती ही है इसलिए केवल वेष रचना के आधार पर आप यदि किसी की परख कर रहे होते हैं तो ये आप केवल अपने को धोखा दे रहे होते हैं |
विद्वान् तैयार करने का उद्देश्य से संस्कृत विश्वविद्यालयो की परिकल्पना की गई थी किंतु अन्य शिक्षण संस्थानों की तरह सं संस्कृत विश्व विद्यालय भी भ्रष्टाचार और घूस की भेंट चढ़ गए जब शिक्षक विद्वान शिक्षित एवं सदाचारी होंगे तभी छात्रों से ऐसी आशा रखी जानी चाहिए | सरकारों का निगरानी तंत्र इतना अधिक कमजोर होता है कि जो एक बार जिस पद के लिए नियुक्त होता है वो फिर उस पद पर लगभग रहता ही है | सोचने वाली बात है कि जो व्यक्ति जिस पद के लायक योग्यता नहीं रखता उसकी नियुक्ति पर पुनर्विचार क्यों नहीं किया जाना चाहिए |
वेद विज्ञान के नाम पर अनेकों संस्थाएँ खुली हैं काम भी कर रही हैं सरकारें उन्हें अनुदान भी दे रही हैं ऐसे लोग अनुसंधान के नाम पर सरकारी गोदामों में रद्दी जमा किया करते हैं जिसे बाद में कोई खोलकर देखता तक नहीं है और सोर्स एवं भ्रष्टाचार के बल पर सरकारी खजाने से पैसा उठाकर सुखसुविधाएँ भोगा करते हैं | सरकारी तंत्र में ऐसे विषयों पर कोई निगरानी नहीं होती है |
वेदविज्ञान के विषय में अनुसंधान के नाम पर सरकारें जिन लोगों को धन देती हैं उनसे ये भी तो पूछा जाना चाहिए कि जिन विषयों में अनुसंधान के लिए वे धन माँग रहे हैं उन विषयों में अनुसंधान की योग्यता यदि उनमें हैं तो आज तक उन्होंने किस विषय में क्या अनुसंधान किया है यह जाने बिना सरकार यदि ऐसे अनुसंधानों पर धन खर्च करती है तो ऐसे अनुसंधानों से वेदविज्ञान का उत्थान कैसे हो सकता है अपितु ऐसे अनुसंधानों के नाम पर जो कुछ किया जाता है यदि उससे हम कोई नए रहस्य उद्घाटित नहीं कर पाते हैं तो इससे वेद विज्ञान का उपहास होता है |
इसलिए वेदविज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए उतने ही प्रयास और निगरानी आवश्यक है जितनी की अन्य विषयों में न की जाती है ऐसा होने पर वैदिक विज्ञान महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकता है |
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