शनिवार, 31 अगस्त 2013

आशाराम की चंचलता ही उन्हें ले बही !

           आशाराम और शास्त्रीय धर्माचार्य 

       साधना करने के लिए जिसके गुरु ने जिसका नाम आशा राम रखा होगा किंतु प्रवचनों के नाम पर नटों की तरह वो जिस प्रकार का तमाशा दिखाते रहे इससे प्रभावित होकर लोग उन्हें तमाशा राम कहने लगे, जब बलात्कार से आरोपित होने पर वो बार बार अपने बयान बदलने लगे इससे प्रभावित होकर लोग उन्हें झाँसा राम कहने लगे, इसके बाद जब किसी पार्टी का कोई नेता प्रत्यक्ष रूप से मदद के लिए आगे नहीं आया सबसे निराश होने के कारण इनका नाम निराशाराम पड़ा, इसके बाद जब उनके बेटे ने समाज को बताया की उनकी तबियत नरम गरम है वहीं थोड़ी देर बाद एयर पोर्ट पर दौड़ते देखे गए तो लोग उन्हें प्रेम पूर्वक हताशा राम कहने लगे, इसके  बाद जब वो पुलिस से बताशे की तरह भयभीत होकर छिपने भागने लगे तब उनका नाम बताशा राम पड़ा ऐसे कलर फुल फर्जी हिन्दू धर्माचार्य के विषय में  शास्त्रीय साधू संत सुनाएँ पहले अपना फैसला कि सनातनी हिन्दू समाज को इनके प्रति क्या रुख अपनाना चाहिए?

     धर्मवान हिन्दू समाज आज  दिग्भ्रमित है क्या करे! कहाँ जाए! किससे पूछे कि उसे क्या करना चाहिए ब्यभिचार आरोपित बाबाओं  का हिन्दू धर्म के नाम पर पक्ष ले या उसे ब्यभिचारी मानकर उस का  विरोध करे!अब तटस्थ रहने से तो बात नहीं बनेगी !

      अब समय आ गया है जब शास्त्रीय साधू संत एवं साधकों को चाहिए कि वे फर्जी साधुओं से धर्म को बचाने के लिए न केवल समाज के सामने आएँ अपितु वर्तमान समय में दिग्भ्रमित हो रही आस्थावती सनातनी हिन्दू समाज का मार्ग दर्शन करें!

    स्वयंभू धर्म गुरु तमाशा राम की चपलता से आज धार्मिक जगत में हाहाकार मचा हुआ है हिल गया है धार्मिक समुदाय! उसमें भी मीडिया कर्मियों के धार्मिकों पर समयोचित व्यंग बाण!वैसे भी ऐसी कोई घटना घटने पर कोई साधू संत यह कैसे कहे कि मैं वैसा नहीं हूँ और यदि कहे भी तो भला कोई क्यों करे विश्वास ?

     मीडिया को भी चाहिए चूँकि ये हिन्दू धर्म के प्रति आस्था का मामला है इसलिए इसमें ऊलूलजुलूल बयानबाजी से बचा जाना चाहिए!कानून अपना काम कर रहा है उसमें किसी को ब्यवधान नहीं डालना चाहिए!मीडिया के द्वारा हमारे सनातनी शास्त्रीय धर्माचार्य और धर्म गुरुओं को पहले विश्वास में लिया जाना चाहिए और उनकी सर्व मान्य धार्मिक सभाओं के माध्यम से शास्त्रीय संबिधान के आधार पर उनसे आशाराम के बिषय निर्णय कराया जाना चाहिए!इसीप्रकार आशाराम के विषय में सभी सम्प्रदायों के श्रेष्ठ संतों का संयुक्त निर्णय उन्हीं के कहे गए शब्दों में प्रचारित किया जाना चाहिए!इसप्रकार से शास्त्रीय साधू संतों  एवं साधकों के सामने आते ही वर्तमान में धर्मवान दिग्भ्रमित हिन्दू समाज को उनका सहारा मिलेगा इसके द्वारा उन्हें भी शास्त्रीय सच्चाई समझने में मदद मिलेगी!इससे न केवल तमाशा राम का जन समर्थन घटेगा अपितु देश विदेश का धार्मिक जन मानस स्थिरता का अनुभव करेगा   इसका असर पड़ते ही प्रशासन की मुश्किलें  घटेंगी तब निरवरोध कानूनी कार्यवाही करना भी संभव हो पाएगा!और हिन्दू समाज में इसका संदेश भी ठीक जाएगा !

    शास्त्रीय साधू संत समाज कहने का मेरा उद्देश्य हमारी सनातन परम्पराओं से जुड़े शास्त्रीय संतों से है अन्यथा मीडिया के लोग धर्मशास्त्र सम्बंधित बिषयों पर अपने अपने पिट्ठुओं को चैनलों पर बैठाकर कराने लगते हैं हर शास्त्रीय बिषय का निर्णय!अनपढ़ पिट्ठू धर्मशास्त्रियों को लाल पीले कपड़े पहनाकर चैनलों पर  कराने लगें इसके निर्णय!और अपनी बात को प्रमाणित मानते हुए सुना दें अपना फैसला !

   हमारे कहने का अभिप्राय है  कि आशाराम संत हों न हों भारत के नागरिक तो हैं बयोवृद्ध भी हैं करोड़ों अनुयायियों के श्रद्धा केंद्र भी हैं उन पर लगाए गए आरोपों की सच्चाई या तो उस लड़की को पता होगी या आशाराम जी को, ईश्वर तो सर्वग्य है ही!आशाराम आरोपी हैं यदि हमें उनकी कही हुई बातों पर भरोसा नहीं करना चाहिए तो उस लड़की को ही समाज या मीडिया कितना जानता है आखिर उसी की बातों पर भरोसा समाज किस आधार पर करे ?हमें धैर्य पूर्वक क़ानूनी जाँच के परिणाम की प्रतीक्षा करनी चाहिए उसके बाद जो संवैधानिक  व्यवस्था हो वो की जानी चाहिए तब तक के लिए हमें अपने शास्त्रीय धर्माचार्यों के बचनों को प्रमाण मान कर यह ध्यान रखना चाहिए कि यदि आशाराम दोषी हों तभी उन्हें दंड मिले! वैसे तो उन्होंने लुक छिप कर जितना अपना गौरव गिरा लिया है उसकी भरपाई अब कोई नहीं कर सकता बाकी सच्चाई तो  ईश्वर ही जानता है !

    आज की  स्थिति में  फर्जी बाबाओं के पास ही प्रभुता है पैसा है,मीडिया है प्रशासन में पकड़ है जन समर्थन है समाज में नाम है चेहरे पर चमक है आश्रम नाम के फार्म हॉउस हैं घर भी हैं घरैतिनें  भी हैं लड़के बच्चों से भरे पुरे परिवार भी उसी आश्रम नुमा घरों  में रहते हैं ऐसे बाबाओं के मरने के बाद नंबर एक के दुर्गुणी उनके बच्चे सम्हालते हैं उनकी मल्कियत ! इतना सब होने के बाद भी  वे विरक्त भी हैं संत भी हैं और मीडिया के पिट्ठू भी हैं !ऐसे संत न तो पढ़े लिखे होते हैं और न ही भक्त !इन्हें टी.वी.चैनल पैदा करते हैं और वही समाप्त कर देते हैं !आशाराम जी का भी शायद वह समय समीप आ गया है!खैर ईश्वर सबकी रक्षा करे और आशाराम जी की भी साथ ही भगवान उन्हें सदबुद्धि भी देने की कृपा करे !

                                         निवेदक -

                      राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान  


कोई टिप्पणी नहीं: