आखिर ठीक से रहने की सारी जिम्मेदारी बाबाओं पर ही क्यों है?
आशाराम तो कैद हो गए,आगे कानून अपना काम करेगा!अब सवाल यह कि उस लड़की के माँ बाप से भी कोई गलती हुई है क्या ?जब पता लग गया था कि हमारी बेटी की तबियत ख़राब है तो बेटी के मिलने पर उससे पूछा जाना चाहिए था कि उसे क्या तकलीफ है ?और पता लगने पर उसे अस्पताल ले जाया जाना चाहिए था!यदि आश्रम ले भी गए थे तो आशाराम की इस बात को नहीं स्वीकार किया जाना चाहिए था कि उसे हमारे पास अकेला छोड़ दो !वैसे भी कोई भी साधक संत ऐसी भाषा का प्रयोग ही नहीं करता और यदि उसमें साधना शक्ति होती तो सामने पहुँचते या स्पर्श पाते ही ठीक हो जाती उसके लिए अनुष्ठान नहीं करना पड़ता !किन्तु आशाराम पर अत्यधिक विश्वास करने एवं साधना शक्ति की अज्ञानता के कारण बेटी को अकेला बाबा जी के पास छोड़ना गलत था !
हमारा उद्देश्य कहीं से किसी आशाराम को निर्दोष सिद्ध करना नहीं अपितु ब्यर्थ का हो हल्ला मचाने की अपेक्षा समस्या का समाधान खोजना है!क्या यह सच नहीं है कि कई हाईटेक बाबा सत्संग के नाम पर सेक्ससंग में पकड़े गए किंतु थोड़े दिन शोर मचता है फिर सब कुछ शान्त हो जाता है। इसका एक नुकसान यह जरूर होता है कि पहले जो उसके मन में थोड़ा बहुत संकोच ,शर्म होती भी है ऐसे प्रकरणों में पकड़े जाने के बाद उससे भी मुक्त हो जाते हैं जैसे मटुक नाथ पकड़े जाने के बाद लव गुरू बना दिए गए किंतु परिणाम क्या निकला?
काशी हिन्दू बिश्व विद्यालय की मालवीय भवन लाइब्रेरी में एक दिन कुछ लोग बैठे थे मैं भी था उसमें एक कारोबारी ज्योतिषी भी थे जिनका स्वरूप सुन्दर था पूर्वी भारत के ब्यवसायियों के यहाँ उनका आना जाना था! लोग वहाँ उनके ज्योतिष ज्ञान पर प्रश्नोत्तर करने लगे वो बेचारे अधिक पढ़े लिखे थे भी नहीं उन्होंने साफ साफ कहा कि जहाँ हम लोग काम करते हैं वहाँ पढ़ा लिखा हो न हो सुंदर होना जरूरी है। लोगों ने जानना चाहा क्यों? तो उन्होंने एक घटना बताई जिससे उन्हें बिना पढ़े लिखे भी ज्योतिष के धंधे में कूदना पड़ा ।
एक अनपढ़ पंडित जी पूर्वी भारत के किसी नगर के एक मंदिर में पुजारी थे उस शहर से बाहर किसी बाबा का आश्रम था उस आश्रम से जुड़ा एक धनी परिवार उनके संपर्क में आया!
उस आश्रम में बाबा जी का आना जाना बिलकुल न के बराबर था इसलिए वहाँ उपासना का बातावरण तो बन नहीं पाया किंतु बासना अर्थात सेक्स का आयोजन नित्य होता था।वहाँ सुरा सुंदरी का पूरा इंतजाम शाम ढलते ढलते होने लगता था, सेठ जी का भी शाम को आश्रम जाना लगभग निश्चित था कहने सुनने में भी अच्छा लगता था!
वहाँ से वो पूर्ण संतुष्ट होकर नौकरों के द्वारा घर ले जाए जाते थे।नशे की अधिकता से नींद आ जाना स्वाभाविक ही था !एक दिन वे लड़खड़ा कर गिर गए उनको चोट लग गई!खैर दवा की गई वो ठीक हुए ।उनकी युवा पत्नी अपनी उपेक्षा से परेशान थी ही ऊपर से उन्हें चोट लग गई जिससे घबराकर वो पास के मन्दिर में पंडित जी से ग्रह दशा पूछने गई पंडित जी सुंदर थे ही हँस मुख भी थे!उनका झुकाव पंडित जी की ओर होने लगा और उन्होंने अपनी एवं अपने घर की निजी बातें भी बता डालीं साथ ही पंडित जी को घर आने के लिए आमंत्रित किया। खुद घर वापस लौट आईं ।
सेठ जी के घर आने पर उन्होंने उस पंडित का चमत्कारी प्रभाव सेठ जी के सामने रखा और उसे घर बुलाने की जिद करने लगीं, सेठ जी भी तनावग्रस्त पत्नी की परेशानी से परेशान थे ही उन्होंने पंडित जी को घर बुलाकर अपनी ग्रह दशा पूछी तो पत्नी के द्वारा पहले ही सब कुछ सुन चुके पंडित जी ज्योतिषियों की तरह सब कुछ साफ साफ बताने लगे यह सब सुनकर सेठ जी भी प्रभावित हो गए और पंडित जी से उपाय पूछा तो पंडित जी ने 41 दिन की पूजा बताई, सेठ जी राजी हो गए, पंडित जी रोज पूजा के बहाने घर आने लगे और घर में चलने लगा वह खेल जो सेठ जी आश्रम में खेलते थे । चूँकि वर्षों की तनाव ग्रस्त पत्नी दिनोदिन प्रसन्न रहने लगीं इससे सेठ जी को भी पंडित जी की योग्यता पर कोई संदेह नहीं रहा उन्होंने कई और परिवार जोड़ दिए पंडित जी की ग्राहकी बढ़ने लगी फिर तो अक्सर कोई न कोई पूजा चलने लगी पंडित जी को अच्छे अच्छे कपड़े लाए जाने लगे खूब पैसे दिए जाने लगे पैसा पास होते ही वे बड़े पंडित जी कहे जाने लगे !
पंडित जी सुन्दर और हँसमुख थे ही अब उनकी मंडली की महिलाओं ने उन्हें भागवत कथा कहने की सलाह दी पंडित जी ने कहा कि भागवत बहुत कठिन ग्रंथ है और हमने तो पढ़ा नहीं है संस्कृत हमें आती नहीं है तो हम भागवत कैसे कह सकते हैं!
मंडली की महिलाओं ने उन्हें सलाह दी कि हम लोग तुम्हें गुरू जी कहेंगे तुम हिंदी में भागवत की कथाएँ करना हम लोग बीच बीच में भजन गाएँगे नाचेंगे कृष्ण जन्म एवं लीलाओं की झाँकी बनाएँगे नंदोत्सव मनाएँगे कोई कथा सुनने आवे या न आवे ये सब तमाशा देखने तो लोग आएँगे ही! भीड़ भाड़ होगी अपनी भागवत चल निकलेगी !इस प्रकार शुरू हुआ भागवत नाम का नाच गाना सहित सम्पूर्ण तमाशा !
इसके पहले कभी नहीं हुई थी भागवत जैसे भक्ति ग्रन्थ की इतनी छीछालेदर!इसप्रकार से हर नाचने गाने मुख मटकाने वाला कमर हिलाने वाले भागवत न जानने वाले सारे छिछोरे भागवत वक्ता बन गए!धीरे धीरे सनातन हिन्दू समाज भागवत मुक्त होता चला गया।भागवत की वैराग्य एवं सदाचरण की लगाम जैसे जैसे छूटते चली गई सनातनी समाज वैसे वैसे स्वच्छंद और स्वेच्छाचारी होता चला गया, ऐसी परिस्थिति में सभी प्रकार के अपराध ब्यभिचार आदि दिनोंदिन बढ़ने लगे करोड़ों लोगों की आस्था के केंद्र आशाराम जैसे लोगों पर भी ब्यभिचार के आरोप लगने लगे !
फिल्मी समाज ने देखा कि उनका नाचना गाना नचैया गवैया भागवती वीरों छीन लिया है तो उन्होंने अपने फिल्मी पात्रों को नंगा करना शुरू कर दिया पहले की फिल्मों में ऐसा नहीं देखा जाता था किन्तु भागवती नपुंसकों ने उन्हें ऐसा करने पर मजबूर कर दिया आखिर दाल रोटी तो उन्हें भी चलानी है वो कहाँ जाएँ !फिल्मों के नाम पर फ़िल्म निर्माता रामलीलाएँ तो करेंगे नहीं ऐसी उनसे अपेक्षा भी नहीं की जानी चाहिए ।
फिल्मी एवं धार्मिक लोगों के गिरते सदाचरण से समाज दूषित हुआ है अपराध बढ़ा है भ्रष्टाचार बढ़ा है ब्यभिचार बढ़ा है कामचोरी घूस खोरी बढ़ी है चूँकि समाज धार्मिक एवं सामाजिक नियंत्रण से मुक्त हो गया है अपने देश की पावन परम्पराएँ आधुनिकता और फैशन के नाम पर वो खो देना चाहता है!जवान लड़के लड़कियाँ प्यार के नाम पर ब्यभिचार ब्यभिचार खेल रहे हैं लड़कियों को मारने जलाने तेजाब डालने जैसी जघन्य तम घटनाएँ घटती देखी जा रही हैं!इन्हें रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं किन्तु इनका अभी तक समाज पर कोई खास असर होता नहीं दिख रहा है। जब कोई घटना घट जाती है तो हर नेता सामाजिक कार्यकर्त्ता महिला आयोग आदि सब के सब कठोर से कठोर कानून और शक्त से शक्त कार्यवाही करने की बात दोहरा देते है किंतु हर प्रकार के अपराध अपनी गति से जारी हैं बलात्कार बंद करने की बात तो जोर शोर से उठाई जा रही है किन्तु ये हो क्यों रहे हैं इस बात पर मतैक्य नहीं है ।हमारा तो बिचार ये है कि सुधरना महिलाओं समेत हम सबको पड़ेगा किसी और पर जिम्मेदारी डालने पर हमें तो बात बनते नहीं दिखाई देती है !
महिलाएँ या लड़कियाँ बाबाओं के आस पास या सान्निध्य में
विशेष रहती हैं वो यह क्यों नहीं समझती हैं कि ब्रह्मचर्य का पालन करना
सबसे कठिन होता है गिने चुने चरित्रवान तपस्वियों की अलग बात है भीख माँग
माँग कर आश्रम पर आश्रम बनाने वाले भिखमंगे बाजारू बाबाओं के बश का कहाँ
है ब्रह्मचर्य !ये इतने छिछले लोग हैं कि बिना किसी चरित्र और तपस्या के ही
अपने को आत्मज्ञानी, ब्रह्मज्ञानी ,सिद्ध साधक आदि सब कुछ कहने लगते हैं-
दो. सकल भोग भोगत फिरहिं प्रवचन में वैराग। जिनके ये चेला गुरू तिनके परम अभाग ॥ - श्री हनुमत सुंदर कांड
ब्रह्मचर्य का पालन जो लोग करना चाहते हैं या करते हैं उनका रहन सहन चाल
चलन खान पान आदि बिलकुल अलग होता है वे लोग जंगलों में या एकांत में रहना
रूखा सूखा खाना आदि पसंद करते हैं!फिर भी बासनात्मक चित्रों तक से परहेज
करते हैं!इनके शरीरों में तपस्या का तेज तो होता है किन्तु शौक शान श्रंगार
नहीं होता है। अक्सर इनके शरीर देखने में अत्यंत सामान्य एवं अंदर से
मजबूत होते हैं । हमें हर किसी से ब्रह्मचर्य की आशा भी नहीं करनी चाहिए
उसका एक और कारण है ,आयुर्वेद में मनुष्य शरीर के तीन उपस्तंभ बताए गए हैं
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१.आहारअर्थात भोजन
२. निद्रा अर्थात सोना
३. मैथुन अर्थात सेक्स
उपस्तंभ अर्थात एक प्रकार के पिलर, बिल्डिंग बनाने में जो महत्त्व पिलर्स
का होता है वही महत्त्व शरीर सुरक्षा में इन तीन उपस्तम्भों का होता है ।
इसलिए आहार,निद्रा और मैथुन तीनों के घटने से भी स्वास्थ्य ख़राब होता है और
बढ़ने से भी स्वास्थ्य ख़राब होता है!फिर आश्रम, योगपीठ, प्रवचन दवा ब्यापार
आदि दुनियाँ के झूठ साँच झमेले पालने वाले संयम बिहीन लोग मैथुन अर्थात
सेक्स के बिना कैसे स्वस्थ और प्रसन्न रह सकते हैं यह बिलकुल असंभव बात है
!जो धन कमाने की ईच्छा पर नियंत्रण नहीं रख सका वो धन भोगने की ईच्छा पर
नियंत्रण क्यों रखेगा !यदि दवा दारू ही बनाना बेचना या और प्रकार के धंधे
ही फैलाने हों तो बाबा बनने की जरूरत ही क्या थी ?
इतना अवश्य है कि जो ऐसे कलियुगी ब्रह्मचारियों का शिकार बनने से बच
गया उसके लिए तो कैसे भी बाबा जी हों ब्रह्मचारी ही हैं इसलिए संयम शील
स्त्रियों या लड़कियों को इन संदिग्ध गृहस्थी बाबाओं से मध्यम दूरी बनाकर
तो चलना ही चाहिए!
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