शनिवार, 28 सितंबर 2013

क्या संभव है भारत में भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति ?

           भ्रष्टाचार मुक्त देश बनेगा कैसे ?

  आज भ्रष्टाचार हत्याएँ बलात्कार  आदि सभी प्रकार के अपराध बढ़ रहे हैं इन्हें रोकने के लिए कानून पर कानून पर कानून बनाए जा रहे हैं किंतु ये रुकने का नाम ही नहीं ले रहे हैं।हमारी सेनाओं ने दुश्मनों के हमेंशा छक्के छुड़ाए हैं हमें इस बात का गर्व है किंतु दुख इस बात का है कि देश के अंदर होने वाले अपराध रोकने की जिनकी जिम्मेदारी है उनकी देश भक्ति  सैनिकों जैसी  नहीं हैं!
    इसी प्रकार गर्व करने लायक हमारे वैज्ञानिकों ने एक से एक आश्चर्यजनक खोजें की हैं बड़ी बड़ी मिसाइलें, परमाणु बम तो बना डाले किंतु देश के अंदर होने वाले अपराध रोकने में वे भी लाचार हैं ।
    हमारा सक्षम शिक्षित वर्ग अपनी योग्यता की पताका संपूर्ण विश्व में फैला रहा है किंतु देश के अंदर होने वाले अपराध रोकने में वे भी विवशहैं !    

    इसका कारण यह  है कि जिन्होंने वास्तव में परिश्रम पूर्वक शिक्षा ली है उन्हें आरक्षण के कारण उनके योग्य पद नहीं दिए गए इसलिए  वे विदेश भाग रहे हैं जिन्हें पद दिए गए वे कुछ करने लायक ही होते तो आरक्षण क्यों लेते! जो बिना आरक्षणी सुविधाओं के अपना घर नहीं चला सके उन पर देश चलाने की जिम्मेदारी!बलिहारी राजनीति की चूँकि  जिनके वोट ज्यादा हैं उन्हीं के हित में कानून बनेंगे!गरीबत दूर करने के लिए बनते तो सवर्णों में भी गरीब हैं!किंतु जब शासक पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हों  तो उनसे ईमानदार प्रशासन की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
     कई बार तब बहुत आश्चर्य होता है जब ये पता लगता है कि जो कानून पालन करने के लिए बने थे वो पालन करने के बजाए केवल बनाए और बेचे जा रहे हैं तो बड़ा कष्ट होता है!

     एक बार किसी ने गुंडई के स्वभाव से हमारे निजी लोगों को मारा उनके शिर में काफी चोट लगी थी मैं उन्हें लेकर थाने गया उनका खून बहता रहा किंतु दूसरा पक्ष तीन घंटे बाद थाने में आया तब तक उन्हें इलाज भी नहीं उपलब्ध कराया गया जब वो किसी नेता को लेकर आए तो दरोगा जी ने उनसे हाथ मिलाया बात की इसके बाद हमें बुलाकर समझौते का दबाव डाला जब हम नहीं माने तो दरोगा जी ने हमारे सामने तीन आप्सन रखे कि यदि मैं उन्हें थाने में बंद कराना चाहता हूँ तो हमें कितने पैसे देने पड़ेंगे,यदि मैं किसी उचित धारा में बंद कराना चाहता हूँ तो क्या देना पडे़गा,अन्यथा दोनों पक्षों को बंद कर देंगे। हमने कहा मैं पैसे तो नहीं दूँगा जो उचित हो सो कीजिए हमें कानून पर भरोसा है तो उन्होंने कहा कानून क्या करेगा और क्या कर लेगा जज?देखना उसे भी हमारी आँखों से ही  है वो लोग तो कहने के अधिकारी होते हैं बाकी होते तो सब हमारी कलम के गुलाम ही हैं जैसा  हम लिखकर भेजेंगे वैसा ही केस चलेगा और हम वही लिखकर भेजेंगे जैसे हमें पैसे मिलेंगे! उसी के अनुशार केस चलेगा जज तुम्हारे शिर का घाव थोड़ा देखने आएगा!और देखे भी तो क्या कर लेगा जब हम लिखेंगे ही नहीं!वैसे भी घाव कब तक सॅभाल कर रखोगे? हमारे यहॉं जितने दिन मुकदमें चलते हैं उतने में समुद्र सूख जाते हैं घाव क्या चीज है!
    इसी प्रकार दूसरे पक्ष से भी क्या कुछ बात की गई पता नहीं अंत में दोनों पक्षों को थाने में बंद कर दिया गया।एक कोठरी में ही बंद होने के कारण दोनों पक्षों की आपस में बात होने लगी तो पता लगा कि दरोगा ने उन्हें भी इसी प्रकार धमकाया था कि इसमें कौन कौन सी दफाएँ  लग सकती हैं जिन्हें हटाने के लिए कितना कितना देना पड़ेगा!उन्होंने भी देने को मना कर दिया तो दोनों पक्ष बंद कर दिए गए!
    इसी प्रकार दिल्ली जैसी राजधानी में कागज, हेलमेट आदि की जॉंच के नाम पर किससे कितने पैसे लेकर छोड़ना है रेट खुले होते हैं!रोड के किनारे सब्जी बेचते रेड़ी वाले से पैसे लेकर बीट वाला उसे वहॉं खड़ा होने देता है।पार्कों में अश्लील हरकतें करने वाले जोड़ों को  भी पैसे के बल पर कुछ भी करने की छूट मिल जाती है। किसी भी खाली जगह पर खड़ी गाड़ी के बीट वाला कब पैसे मॉंगने लगेगा उसका मन!कानून के रखवाले इमान धरम के साथ साथ सब कुछ बेच रहे हैं खरीदने वाला चाहिए!देश  की राजधानी का जब यह हाल है तो देश  के अन्य शहरों के लोग क्या कुछ नहीं सह रहे होंगे!पचासों हजार सैलरी पाने वाले डाक्टर मास्टर  पोस्ट मास्टर फोन मोबाइल आदि सभी सरकारी विभागों को अपने अपने क्षेत्र के प्राइवेट विभागों से पिटते देख रहा हूँ फिर भी बेशर्मी का आलम यह है कि काम हो या न हो सरकारी कर्मचारियों की सैलरी समय से बढ़ा दी जाती है।इसका कारण कहीं यह तो नहीं है कि भ्रष्टाचार के द्वारा कमाकर सरकारी कर्मचारियों ने जो कुछ कमाकर सरकार को दिया होता है उसका कुछ अंश  सैलरी बढ़ाकर न दिया जाए तो पोल खुलने का भय होता है!
    ऐसे सभी प्रकार के अपराधों एवं अपराधियों के लिए सभी पार्टियों की सरकारें जिम्मेदार हैं जो दल जितने ज्यादा दिन सत्ता में रहा है वह उतना ही अधिक जिम्मेदार है जो दल सबसे अधिक सरकार में रहा उसने सभी प्रकार के अपराधों को सबसे अधिक पल्लवित किया है उसका कारण सरकारी निकम्मापन एवं अनुभवहीनता से लेकर आर्थिक भ्रष्टाचार आदि कुछ भी हो सकता है।
   अपराधियों का बोलबाला राजनीति में भी है हर अपराधी की सॉंठ गॉंठ लगभग हर दल में होती है क्योंकि वे इस सच्चाई को भली भॉंति जानते हैं कि अपराध करके बचना है तो अपना आका राजनीति में जरूर बनाकर रखना होगा या राजनीति में सीधे कूदना होगा और वो ऐसा कर रहे हैं, इसमें सभी दल उनकी मदद भी कर रहे हैं!यही कारण है कि  आजकल के अपराधी बाबा लोग भी अपनी संपत्ति की सुरक्षा आदि को लेकर घबडाए हुए हैं, उनके द्वारा किए जा रहे बलात्कार आदि गलत कार्यों में कहीं उनकी पोल न खुल जाए कहीं कानून का शिकंजा उन पर  न कसने लगे इसलिए जिताऊ कंडीडेट के समर्थन में चीखते चिल्लाते घूमने लगते हैं दिखाते हैं कि जैसे सबसे बड़े देश भक्त यही हैं।

     सरकारी प्राथमिक  स्कूलों को ही लें उनकी पचासों हजार सैलरी होती है किंतु वहाँ के सरकार दुलारे शिक्षक या तो स्कूल नहीं जाते हैं यदि गए  भी तो जब मन आया  या घर बालों की याद सताई तो  बच्चों की तरह स्कूल से भाग आते हैं पढ़ने पढ़ाने की चर्चा वहाँ  कहाँ और कौन  करता है और कोई करे भी तो क्यों? इनकी इसी लापरवाही से बच्चों के भोजन में  गंदगी  की ख़बरें तो हमेंशा से मिलती रहीं किन्तु इस बीच तो जहर तक  भोजन में निकला बच्चों की मौतें तक हुई हैं किंतु बच्चे तो आम जनता के थे कर्मचारी  अपने हैं इसलिए थोड़ा बहुतशोर शराबा मचाकर ये प्रकरण ही बंद कर दिया जाएगा ! आगे आ रही है दिवाली पर फिर बढ़ेगी सैलरी महँगाई भत्ता आदि आदि!

    अपने शिक्षकों को दो  चार दस हजार की  सैलरी देने वाले प्राइवेट स्कूल अपने बच्चों को शिक्षकों से अच्छे ढंग से पढ़वा  लेते हैं और लोग भी बहुत सारा धन देकर वहाँ अपने बच्चों का एडमीशन करवाने के लिए ललचा रहे होते हैं किंतु वही लोग फ्री में पढ़ाने वाले सरकारी स्कूलों को घृणा की नजर से देख रहे होते हैं! यदि सोच कर  देखा जाए तो लगता  है कि यदि प्राइवेट स्कूल न होते तो क्या होता? सरकारी शिक्षकों,स्कूलों के भरोसे कैसा होता देश की शिक्षा का हाल?

    सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों  के एक बड़े वर्ग ने जिस प्रकार से जनता के विश्वास को तोड़ा है वह किसी से छिपा  नहीं है आज लोग सरकारी अस्पतालों पर नहीं प्राइवेट नर्शिंग होमों पर भरोसा करते हैं,सरकारी डाक पर नहीं कोरियर पर भरोसा करते हैं,सरकारी फ़ोनों की जगह प्राइवेट कंपनियों ने विश्वास जमाया है! सरकार के हर विभाग का यही  हाल है! जनता का विश्वास  सरकारी कर्मचारी किसी क्षेत्र में नहीं जीत पा रहे हैं सच्चाई यह है कि सरकारी कर्मचारी जनता की परवाह किए बिना फैसले लेते हैं वो जनता का विश्वास जीतने की जरूरत ही नहीं समझते इसके दुष्परिणाम पुलिस के क्षेत्र में साफ दिखाई पड़ते हैं चूँकि पुलिस विभाग में प्राइवेट का विकल्प नहीं है इसलिए वहाँ उन्हीं से काम चलाना है चूँकि वहाँ काम प्रापर ढंग से चल नहीं पा रहा है जनता हर सरकारी विभाग की तरह ही पुलिस विभाग से भी असंतुष्ट है इसीलिए पुलिस और जनता के  बीच हिंसक झड़पें तक होने लगी हैं जो अत्यंत गंभीर चिंता का विषय है उससे  भी ज्यादा चिंता  का विषय यह है कि कोई अपराधी तो किसी वारदात के बाद भाग जाता है किन्तु वहाँ पहुँची पुलिस के साथ जनता अपराधियों जैसा वर्ताव करती है उसे यह विश्वास ही नहीं होता है कि पुलिस वाले हमारी सुरक्षा के लिए आए हैं !!! 

     इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए ही मैं सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों  के सामने एक प्रश्न छोड़ता हूँ कि जनता का विश्वास जीतने की जिम्मेदारी  आपकी आखिर  क्यों नहीं है?

     मेरा मानना है कि यदि पुलिस विभाग की तरह ही  अन्य क्षेत्रों में भी प्राइवेट का विकल्प न होता तो वहाँ भी हो रही होतीं हिंसक झड़पें!मुझे अंदेशा है कि आरक्षण लीला की राजनैतिक सच्चाई जिस दिन जनता समझेगी उस दिन सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों  के विरुद्ध जो जनाक्रोश जनता में जागेगा वह भारतीय समृद्ध लोकतंत्र के लिए भयावह सुनामी की तरह होगा! इसलिए अभी भी समय है कि सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों को  सारे छल कपट छोड़ कर जनता का विश्वास जीतने का प्रयास करना चाहिए !

      आज भ्रष्टाचार के आरोप हर विभाग पर लगाए जा रहे हैं इस देश की भोली भाली सीधी साधी जनता के साथ यह खुली गद्दारी है  जिसे छिपाने केलिए जनता को जाति संप्रदाय के नाम पर आरक्षण  की भीख बाँटते रहते हैं!वो भी लोगों के मस्तक पर केवल भिखारी होने का ठप्पा लगा देते हैं किसी को कुछ  देना ही होता तो आजादी के इतने दिन बीत गए लोगों की स्थिति अब तक सुधर गई होती और आरक्षण समाप्त भी हो गया होता, लोग आपस में भाईचारे से रहने भी  लगते किन्तु लाख टके का सवाल है कि फिर राजनीति कैसे होती ?अब तक आम जनता के हिस्से में केवल  आश्वासन  और उन्माद आते हैं!कि तुम्हारा शोषण किसने किया ! हिन्दू-मुश्लिमों को , आदमी-औरतों को ,  हरिजन -सवर्णों को अलग अलग ढंग से  भड़काकर  लड़ाने का काम नेताओं ने संभाल रखा है केवल भाषण अमन चैन के देते हैं इनके इरादों में ही खोट है कैसे होगी समाज में शांति?      वर्तमान समय में समाज  अपनी हर प्रकार की समस्याओं का समाधान राजनीति में ही खोजने लगा  है उसका अपना मन मरता चला जा रहा है ! यही कारण है कि राजनेताओं के मनोबल इतने अधिक बढ़ गए हैं कि  वो हमेशा कुछ कुछ देने की बातें करने लगे हैं भीख में वोट मँगाकर  जनसेवा का अधिकार पाने वाले राजनैतिक भिखारी आज जनता को भिखारी सिद्ध कर देने में लगे हैं! यह देश का दुर्भाग्य ही है!अब लोगों  स्वयं जाग  कर इन कुचालों का पर्दाफास करना होगा और जीतना होगा एक दूसरे का बहुमूल्य विश्वास!            

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