प्रधान
मंत्री जी की तुलना यदि वास्तव में ग्रामीण महिलाओं से की गई होगी तो इसमें ग्रामीण महिलाओं का ही अपमान है !
देश के प्रधान मंत्री जी की कार्य शैली से नाराज प्रमुख विपक्षी पार्टी
के नेता लोग आलोचना में प्रायः कुछ न कुछ बोल दिया करते हैं जिसमें
उन्हें धृतराष्ट्र भी कहा गया और भी बहुत कुछ खैर वर्त्तमान समय राजनीति
में इसके अलावा और है ही क्या?वैसे ऐसा सभी दलों में प्रचलन सा बन गया है|
जैसे फिल्मों में कौन कितने कपड़े उतारकर क्या क्या कर सकता है, इसी
प्रकार वर्त्तमान राजनीति में किसके लिए कैसे कैसे शब्द प्रयोग किए जा
सकते हैं इसके मानक क्या हैं ये वही लोग बता सकते हैं जो इस खेल में
सम्मिलित हैं जनता तो केवल सुन सकती है सह सकती है!
मोदी जी ! भारत
कृषि प्रधान देश होने के नाते सभी लोग किसी न किसी रूप में प्रायः गाँव
से जुड़े हैं कितना कठिन होता है ग्रामीण जीवन ! धन के आभाव में आवश्यक
आवश्यकताओं के संसाधन न जुटा पाने के कारण पुरुष तो असहाय लाचार होकर
पराजित भाव लिए शिर झुका कर बैठ जाता है उस समय भूख से बिलबिलाते बच्चे
अपनी मां से लिपट कर कहते हैं कि मुझे भूख लगी है उस समय बेचैन मां गर्मी
शर्दी वर्षा कि परवाह किए बिना निकल पड़ती है खेत खलिहानों की ओर कहीं से
कुछ दाने सब्जी फल फूल शाक पात लाकर सब कुछ एक में मिलाकर बना लेती है
रोटियाँ , और मिटा लेती हैं घरभर की भूख !
शहर की महिलाएँ फिर भी
सामान होने पर भी काम करने से कतराने लगती हैं सफाई झाड़ू पोछा वाली लगा
लेती हैं किन्तु गाँव की महिलाओं को ईधन से लेकर सारे साधन जुटाने पड़ते
हैं वास्तव में गाँव की महिलाओं का जीवन तपस्वियों से किसी भी प्रकार कम
नहीं होता है!
जहाँ तक प्रधान मंत्री जी के साथ उनकी तुलना की
बात है इसमें प्रधानमंत्री जी का अपमान कैसे हो गया यह तो उन महिलाओं का
अपमान है जो संसाधनों के अभाव में भी घर चला लेती हैं किन्तु प्रधान
मंत्री जी तो सारे संसाधनों के साथ भी देश नहीं चला पा रहे हैं | इस लिए
हमारे प्रधान मंत्री जी की तुलना यदि वास्तव में ग्रामीण महिलाओं से की
गई होगी (जिसकी मुझे जानकारी नहीं है) तो इसमें ग्रामीण महिलाओं का ही
अपमान है न कि प्रधान मंत्री जी का! क्योंकि वे न केवल कर्मठ होती हैं
अपितु स्वाभिमानी भी होती हैं| उनके यहाँ ईमानदारी पूर्वक अपने परिश्रम के
द्वारा जो कमाई हो पाती है उसी में स्वाभिमान पूर्वक संतोष कर लेती हैं
किसी कि कृपा के आश्रित नहीं होती हैं किन्तु यहाँ तो सब कुछ दूसरों कि
कृपा पर ही है इसीलिए लिए उनके यहाँ के बच्चों से भी हाँ जी हाँ जी करनी
पड़ती है !
वैसे भी कांग्रेस ने जिस पद के निर्वाह की भूमिका
उन्हें दी है वह अत्यंत पिछड़े क्षेत्रों की ग्रामीण गृहणी की ही है बात
अलग है कि उसे भी वे ठीक से निभा नहीं पा रहे हैं| ग्रामीण गृहणी का काम
घर चलाना होता है संसाधन जुटाना पुरुषों का काम होता है|यहाँ भी तो वोट
मांगने से लेकर अन्य पार्टियों का समर्थन जुटाना मंत्री पद बांटना सभी
प्रकार के निर्णय लेना बात बात में धौंस दिखाना ये सारी जिम्मेदारियां
तो परंपरागत ग्रामीण पुरुषों के आचरणों की तरह ही उनकी पार्टी का मुखिया
परिवार ही संभाल रहा है ग्रामीण गृहणी के रोटी बनाने की तरह ही प्रधान
मंत्री जी का काम तो जुटे जुटाए संसाधनों से सरकार चलाना भर है|ये बात तो
सबको पता है कि उनके मंत्री मंडल के द्वारा पास किए गए बिल न केवल बकवास
बता दिए जाते हैं अपितु फाड़ के फेंकने लायक बता दिए जाते हैं वह भी उसके
द्वारा जिसकी उम्र अनुभव ज्ञान आदि प्रधानमंत्री जी से आधा अधूरा ही होगा!
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