रविवार, 13 अक्तूबर 2013

क्या होता है मीडिया पूजन ?

मीडिया इनका  नाम करे या बदनाम मीडिया का फायदा दोनों ही परिस्थितियों में होता है 

       हमारी मीडिया  और टी.वी.चैनलों  ने धर्म के क्षेत्र में बड़ा काम  किया है छोटे छोटे लोगों का बहुत बड़ा बड़ा नाम किया है  कृपाबाँटने वाले मलमल बाबा हों या कुछ लुटे पिटे फिल्मी लोगों की कृपा के बल पर  बीज मन्त्रों से उद्धार करने वाले सुकुमार स्वामी आदि इनके आलावा और भी जितने भी बाबा, तांत्रिक, ज्योतिषी, योगगुरु , वास्तुशास्त्री, आत्मज्ञानी ब्रह्म ज्ञानी आदि बिना पढे लिखे शास्त्रीय योग्यता बिहीन, सदाचरण बिहीन, तपस्या बिहीन, धार्मिक धर्म गुरु मीडिया के द्वारा तैयार किए गए हैं दुर्भाग्य वश उन पर विश्वास करने वालों को धोखा ही मिला है

  जिन लोगों को प्रचारित करके जिनके चार चार  करोड़ अनुयायी  बनाए जा चुके हों और उनमें से बहुत बड़ा वर्ग आज भी उनके प्रतिपूर्ण समर्पित हो वह यह मानने को तैयार ही न हो कि उनके  गुरु जी गलत हो सकते हैं उन्हें लगता हो कि वे फंसाए जा रहे हैं इसलिए हमें उनका साथ देना चाहिए और यदि इस भावना से भावित होकर उन चार  करोड़ अनुयायियों   में से  चार लाख अनुयायी  भी ऐसा करने पर तुल ही जाते हैं तो उन्हें कैसे समझाया जाएगा?आखिर मीडिया उन्हें अपने मातहत क्यों रखना चाहता है कि किसी के विषय में जब तक मीडिया कहे ठीक तो ठीक जिस दिन मीडिया कहे  गलत तो गलत मान लेना चाहिए आखिर ऐसा क्यों करें आम लोग? उन्हें भी आपनी बुद्धि से  जांचने परखने का  मौका क्यों न दिया जाए!रही बात किसी आरोपी के विषय में कानून अपना काम करता रहेगा जो फैसला आएगा उसे मानने के लिए है हर कोई बाध्य है क्योंकि कानूनी हर फैसले के आधारभूत जो तर्क निकलकर सामने आते हैं उसमें समाज को मानने के लिए पर्याप्त सामग्री होती है मीडिया कि तरह नहीं होता है कि जिसे टी.वी. चैनल पर दिखने  का मन हो वह आकर मीडिया के बनाए नियमों के अनुशार सम्बंधित व्यक्ति की निंदा करने लगे  तो मीडिया उसे  भी सम्बंधित व्यक्ति का राजदार सेवादार आदि बताने लगता है आखिर क्या प्रमाण होते हैं मीडिया के पास ?
      योगासन सिखाने वालों को योग गुरु कहकर  प्रचारित कर रहा है मीडिया!किसी भी विश्व विद्यालय से जिसने  तंत्र, ज्योतिष,वास्तु आदि की कोई डिग्री ही न ली हो ऐसे झोला छाप लोगों को इन  तंत्र, ज्योतिष,वास्तु आदि विषयों में बकवास करने का मौका ही नहीं देना चाहिए किन्तु मीडिया में  योग्यता पर ध्यान ही किसका होता है वहाँ तो सारा  ध्यान ही पैसे पर होता है जो पैसे देता है वही छपता है और वही टी.वी. पर भी दिखता भी है| 

       इसीप्रकार कामदेव को  योगगुरु कहने लगा मीडिया आखिर  योगगुरु कहने का क्या आधार था किस संत सम्मलेन में कामदेव को  किसने थी योगगुरु की उपाधि? वैसे भी जो योगासन सिखाता है वो योगी कैसे कहा जा सकता है!फर्जी एवं अयोग्य लोगों को धार्मिक आस्थावान लोग संत,जगद गुरु शंकराचार्य आदि झूठी पद पदवी धारण करने वाले फर्जी लोगों को केवल  पैसे के बल पर मन चाही पद पदवियों से संबोधित करता है मीडिया आखिर ऐसा खिलवाड़ सनातन  धर्म के साथ ही क्यों ?
     यह दोष मीडिया का है या उन लोगों का यह तो जाँच का विषय हो सकता है किन्तु एक बात तो प्रत्यक्ष प्रमाणित है ही कि ऐसे लोगों से हर हालत में फायदा मीडिया का ही होता है।मीडिया इनका  नाम करे या बदनाम मीडिया का फायदा दोनों ही परिस्थियों में होता है  अर्थात  अपने दन्द  फन्द का प्रचार करने के लिए भी  ये लोग मीडिया  और टी.वी.चैनलों  को ही  पैसे  देते हैं और बदनाम करने पर तो टी.आर. बनती ही है|फिर भी इन मीडिया  पुरुषों को इतनी भी समाई नहीं होती है कि क़ानूनी जाँच के परिणाम सामने आने तक  प्रतीक्षा  ही कर ली  जाए !ऐसे धार्मिक प्रकरण चूँकि जन भावना से जुड़े होते हैं इसलिए उनका भी आदर होना ही चाहिए जो नहीं हो पा रहा है!

         इससे भी गंभीर विषय यह है कि धर्म एवं धर्म शास्त्रों के नाम से पैसे के बल पर मीडिया  और टी.वी.चैनलों की कृपा से  प्रसिद्ध हो चुके किसी भी अच्छे बुरे  व्यक्ति की एकदम निचले स्तर के शब्दों से निंदा अचानक की जाने लगे  यह स्वस्थ पत्रकारिता नहीं है| मानवीय भूल की गुंजाइस तो हर जगह बनी ही रहती है कम से कम एक प्रतिशत गुंजाइस भी यदि किसी के निर्दोष निकलने की हो तो  भी उसकी प्रतीक्षा की जानी चाहिए इसीलिए किसी भी व्यक्ति के विषय में क़ानूनी जाँच के परिणाम आने से पूर्व  मीडिया के द्वारा सीधे सजा नहीं सुना देनी चाहिए| किसी आरोपी को सैतान कह देना कामी या बलात्कारी  कहने लगना या और भी अपमान जनक शब्दों का प्रयोग करने लगना आदि सोचकर कई बार लगता है कि आखिर मीडिया को इतनी जल्दी क्यों है!क्या उन्हें न्याय व्यवस्था पर विश्वास नहीं है फैसला आने तक प्रतीक्षा की जानी चाहिए थी जो संयम मीडिया में नहीं दिख रहा है |
    यह सब देखकर लगता है कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि मीडिया का कोई कमजोर विन्दु आरोपियों के पास होता हो जिस पोल को खुलने के भय से मीडिया इन्हें ऐसी नौबत आने से पूर्व ही समाज की निगाहों में अविश्वसनीय बना देना चाहता है ताकि ऐसे लोग यदि कोई सच बात भी बोलें तो भी उसका कोई भरोसा न करे !
     अपनी बात जन जन तक पहुँचाने के लिए मीडिया के आलावा किसी के पास और  कोई दूसरा विकल्प तो है नहीं !इसलिए क्या ऐसा माना जाए की किसी केस का फैसला आने से पूर्व होने वाली बेइज्जती से यदि  अपने को बचाना है तो मीडिया पूजन जरूरी है !

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