सैलरी उड़ाते है सरकारी शिक्षक और मेहनत करते हैं प्राइवेट शिक्षक!
पचासों हजार रुपए महीने की सैलरी पाने वाले सरकारी अनेकों शिक्षकों की अपेक्षा पाँच हजार रुपए महीना पाने वाला प्राइवेट स्कूल का एक शिक्षक इतना अधिक काम कर लेता है क्यों?
वह इतना अधिक विश्वसनीय भी होता है कि सरकारी कर्मचारी भी अपने बच्चे
सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाते हैं यहाँ तक कि सरकारी स्कूलों के शिक्षक भी अपने बच्चे प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ाते हैं।
इसका सीधा सा मतलब यह हुआ कम से कम सरकारी पाँच शिक्षकों के काम से अच्छा काम प्राइवेट स्कूल का एक शिक्षक कर लेता है।
अर्थात ढाई लाख रुपया रूपया महीना खर्च करके भी सरकार जो काम नहीं करवा पाती है वो काम गैर सरकारी शिक्षक पाँच हजार रुपए में उससे अधिक अच्छा कर
दिखाता है।
फिर भी सरकारी शिक्षक हड़ताल किया करते हैं और उनकी माँगें मान मान कर सरकारें उन्हें बार मनाती क्यों रहती है? उनकी छुट्टी करके प्राइवेट स्कूलों के शिक्षक रखकर उससे सस्ते में उससे अच्छा एवं उससे अधिक विश्वसनीय कार्य क्यों नहीं करवा लेती हैं?
कहीं सरकार और सरकारी कर्मचारियों ने आपस में एक दूसरे की कोई पोल तो नहीं
छिपा रखी होती है जिसके खुलने का भय हो जिससे देश की जनता कोई हंगामा खड़ा
कर दे! जैसे कि सुना जाता है कि सरकारी कर्मचारी जो घूस लेते हैं वो ऊपर तक भेजी जाती है !!!
जिसका कुछ अंश फिर महँगाई भत्ता या सैलरी बढ़ाने के नाम पर वापस लौटाकर उन शिक्षकों को प्रसन्न किया जाता है
सरकार और सरकारी शिक्षकों के बीच का यह तालमेल इसी प्रकार से शिक्षा
सिद्धांतों के साथ खिलवाड़ करता रहा तो क्या आम आदमी का कोई कर्तव्य नहीं
बनता है कि वह सरकार से ललकार कर कह सके कि शिक्षा पर खर्च होने वाला धन आप
सीधे हमें दें हम अपने विद्यालय स्वयं बना और चला लेंगे !इस प्रकार से अभिभावकों के हाथ में नियंत्रण पहुंचते ही कितना भी मक्कार शिक्षक क्यों न हो उसे पढ़ाना ही पढ़ेगा
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