मंगलवार, 5 नवंबर 2013

काँग्रेस हो या भाजपा दोनों ने किया है निराश !!!

    जब काँग्रेस से मिली निराशा ही निराशा तो भाजपा से ही क्या आशा ?
    लगता है कि काँग्रेस के पास देश के विकास की अब कोई योजना ही नहीं है !भाजपा की यह भावना ठीक नहीं है कि अभी तक काँग्रेस सत्ता में रही है इसलिए अबकी हमारी बारी है और केवल नमो नमो या नरेंद्र मोदी का नाम रटते रहने से भी कुछ नहीं होने जाने वाला है नेताओं एवं राजनैतिक दलों ने कई बार देश का विश्वर तोडा है भाजपा भी इसमें पीछे नहीं रही  है हाँ अटल जी कि सरकार  ने देश को सराहनीय अपनापन देने का प्रयास किया था किन्तु इनकी आपसी खींचतान इतनी अधिक है कि देश का निराश होना स्वाभाविक है जो अपने घर को बाँध कर नहीं रख सकता वह देश को क्या रख पाएगा ?अबकी बार ही अडवाणी जी की भावनाओं का देश में जाना,विजय गोयल की बातें मीडिया  कि सुर्खियाँ  बनना इससे भाजपा का इतना बड़ा नुकसान हो चूका है जिसकी भरपाई भाजपा इन चुनावों में नहीं ही कर सकेगी किन्तु इसका एहसास उन्हें चुनावों के बाद ही होगा तब उनके हाथ से सब कुछ निकल चुका होगा। वस्तुतः काँग्रेस से निराश देश विकल्प के रूप में भाजपा की ओर ही देख रहा था जब वो लोग आपस में ही लड़ने लगे तो परेशानी हुई काँग्रेस से निराश  लोग भाजपा से भी अकारण ही निराश होने लगे जब तक भाजपा के लोग अपना अपना मुख गंगाजल से धो कर पहुँचे कि हमारी आपस में कोई बुराई ही नहीं है हम लोग तो आपस में एकदम बड़े छोटे भाई ही हैं आदि आदि किन्तु तब तक देर हो चुकी थी। 
       
     दूसरी ओर शिक्षित संभ्रांत और गैर राजनैतिक राष्ट्रभक्त वर्ग काँग्रेस से बहुत पहले निराश हो चुका था क्योंकि काँग्रेस ने देश के लिए कभी कुछ किया ही नहीं!केवल आश्वासन ही दिए हैं वैसे भी इन्हें देश के लिए कभी कुछ करना ही होता तो ये लोग बहुत बार सत्ता में रह चुके हैं अब तक कभी का कर लेते!
    ये लोग आज भाजपा का दोष देते हैं जब भाजपा का जन्म भी नहीं हुआ था तब भी तो ये सत्ता में रहते रहे थे तब क्या कर लिया था  इन्होंने ?जब इरादा ही कुछ करने का नहीं है तो कुछ हो कैसे और करे कौन? कभी वे ऐसा कुछ नहीं कर पाए जिसके बल पर वोट माँग लेते!हर बार किन्हीं  दो वर्गों के बीच आपसी मतभेद पैदा करके चुनाव जीतने का प्रयास करते रहे हैं भले वह आरक्षण ही क्यों न हो!

       इनकी कुशासन शैली का दुष्प्रभाव ही है कि आज सरकारी डाक विभाग को कोरियर विभाग पीट रहा है  सरकारी स्कूलों को प्राइवेट स्कूल पीट रहे हैं सरकारी टेलीफोन विभाग को  प्राइवेट टेलीफोन विभाग पीट रहा  है। कितनी हालत खस्ता है देश की?यदि सच सच कहा जाए तो सरकार एवं सरकारी विभागों में फ्री में न केवल सैलरी दी जाती है अपितु समय से बढ़ा भी दी जाती है।सरकारी विभागों में काम या तो होता नहीं है यदि होता है तो बिलकुल न के बराबर होता है या यूँ कह लें कि जितना अच्छा जो काम प्राइवेट विभाग  दस रुपए में करा लेते हैं वही काम सरकारी विभाग हजार रुपए में भी न तो उतना करा पाते हैं और उतने अच्छे के विषय में तो सोचना ही क्यों? वैसे भी जिन सरकारी विभागों में प्राइवेट का विकल्प नहीं है वहाँ काम कहाँ होता है केवल दलाली ही होती है किसी के साथ कितना भी बड़ा दुष्कर्म हुआ हो किन्तु तब तक एफ.आई .आर. नहीं लिखी जाएगी जब तक उसके पास उन्हें देने के लिए पैसा या दिखाने के लिए प्रभाव न हो!सम्भव था कि यदि यहाँ भी प्राइवेट का विकल्प होता तो अन्य सरकारी विभागों की लापरवाही की  तरह ही पुलिस विभाग की लापरवाही भी कवर कर रहे होते प्राइवेट विभाग ! इससे हो सकती थी और अधिक चुस्त कानून व्यवस्था की स्थिति!

       यद्यपि सरकारी विभागों की इन लापरवाहियों के लिए केवल काँग्रेस ही दोषी नहीं है क्योंकि अन्य पार्टियों की भी सरकारें रही हैं किन्तु सबसे अधिक समय तक काँग्रेस पार्टी ही सत्ता में रही है साथ ही काँग्रेस पार्टी का मुखिया एक ही परिवार हमेंशा सत्ता का सञ्चालन करता रहा है इसलिए स्वाभाविक रूप से काँग्रेस पार्टी एवं काँग्रेस पार्टी का मुखिया परिवार दो के दोनों ही दोषी हैं बाकी  किसी काँग्रेसी व्यक्ति को मैं इसलिए दोषी नहीं मानता क्योंकि पार्टी के मुखिया परिवार का गुणगान करने के आलावा उन्होंने कभी कुछ सोचा ही नहीं है करना तो दूर की बात है!इसलिए उनसे कभी कोई गलती होने की सम्भावना ही नहीं रही है वही आज भी हो रहा है!!!

       अपने द्वेष पूर्ण अलाभकर कर्मों को छिपाने के लिए जाति गत आरक्षण आदि ऐसी हरकतें चुनाव जीतने के लिए ये लोग करते रहे हैं कि क्या कहा जाए !कभी रोटी बाँटते हैं कभी धोती बाँटते हैं इन लोगों को ये संकोच भी  नहीं लगता है कि साठ साल की सत्ता में रहने के बाद भी अभी तक तुमने रोटी धोती में ही फँसा रखा है आखिर विकास की तुमसे कोई आशा की भी जाए या नहीं या यूँ कह लें कि विकास क्या होता है तुम्हें पता भी है या नहीं ?
       आखिर आम आदमी किसी सरकारी विभाग में जाए तो उसका काम बिना घूस के समय से कब होगा ?कब सुनी जाएगी उसकी बात ?बाकी काम तो देश का परिश्रमी वर्ग स्वयं कर लेगा !
     ये तुम्हारे लोक लुभावने वायदे केवल चुनाव जीतने के लिए भले अच्छे हों किंतु जनता अब अविश्वास करने लगी है।अब समय आ गया है जब देश से इस ठग संस्कृति को बिदा कर देना चाहिए।
   ये बात सबको पता है मीडिया में ख़बरें आती हैं कि किसी के पीछे सी. बी. आई.क्यों छोड़ दी गई है किसके केस  क्यों वापस ले लिए गए हैं ?इसके बाद भी हम सबसे बड़े लोक तंत्र हैं इसका कारण आम जनता की सहन शीलता ही है अन्यथा राजनैतिक दलों ने नीचता करने में कोई कोर कसर छोड़ नहीं रखी है !
    छोटे छोटे राजनैतिक दल पहले साम्प्रदायिकता  के विरोध में ढिंढोरा पीट कर लामबंद होकर चुनाव  जीतते हैं फिर किसी बड़ी पार्टी के हाथ अपना जन समर्थन बेंच लेते हैं क्या इसे लोक तंत्र के नाम पर मजाक नहीं माना जाएगा? उसके बदले में उनके सब घपले घोटाले माफ कर दिए जाते हैं! उधर उस बड़ी पार्टी के मुखिया अपनी पार्टी में घोषणा करते  हैं कि जो जिस विषय में बिलकुल कुछ न जनता हो वह अपना अयोग्यता प्रमाण पत्र  जमा करे इस प्रकार से उसकी आयोग्यता के आधार पर ही उसे पद दिए जाते हैं ताकि मुखिया परिवार  अपना बर्चस्व बरक़रार बना रख सके। जैसे जिसने  प्रादेशिक स्तर पर राजनीति की हो राष्ट्र के विषय में सोचा ही न हो उसे राष्ट्रपति बना दिया जाए! इसी प्रकार जिसको  कभी किसी ने बोलते ही न सुना हो उसे लोक सभा स्पीकर बना दिया जाए! इसी प्रकार जिसने कभी किसी एक संसदीय क्षेत्र का समर्थन हासिल न किया हो हर समय आत्मबल बिहीन होकर  गिड़ गिड़ाता  रहता हो  ऐसे व्यक्ति को खोज कर प्रधानमंत्री बना दिया जाए जिस व्यक्ति में स्वप्न में भी कभी स्वाभिमान जगने की सम्भावना ही न हो! ऐसे आत्म बल बिहीन लोग कैसे चला सकते हैं सरकार और कैसे कर सकते हैं आम आदमी के साथ न्याय?क्यों माने कोई मंत्रालय या मंत्री इनकी बात? क्यों सुने कोई अधिकारी इनकी बात?ये लोग कैसे बचा सकते हैं अपने सैनिकों के शिर ? 
    इसी प्रकार अन्य पद भी दीन हीन अकिंचनों के हाथ ठेके पर उठा  दिए जाते हैं फिर शुरू होता है गम्भीर भ्रष्टाचार जिसका लाभ ले रहा होता है कोई और साइन कर रही होती हैं वो तत्पदों पर स्थापित निष्प्राण मूर्तियाँ  बाद में फाइलें गायब करने के अलावा और विकल्प ही क्या बचता  है !
      कोई कहीं सफाई देने को तैयार नहीं होता केवल कुछ लोग अपनी सफाई न देकर विरोधी पार्टियों के दोष दिखाने के लिए नियुक्त कर दिए जाते है जिन्हें शक्त हिदायद दी गई होती कि तुम हमारे एवं हमारी पार्टी के विषय एवं हमारी नीतियों के विषय में कुछ नहीं बोलोगे तुम केवल विरोधियों की ही बातें करोगे उन्हीं के दोष दिखाओगे उन्हीं की निंदा आलोचना करोगे ,और जब तुम्हें कुछ भी समझ में न आवे कि अब क्या बोलना है तब श्री जी पूर्वक केवल हमारी बंशावली पढ़ना और अपनी व्यस्तता बताकर वहाँ से उठ कर सीधे अपने घर चले आना !यह सब कुछ अब देश समझ चुका है अब इसके विरुद्ध आम जनता में कभी भी कोई बहुत बड़ा ज्वार उठ खड़ा हो सकता है इसलिए राजनैतिक दलों को समय रहते ही सावधान हो जाना चाहिए!

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