चुनावों के समय भटक जाने वाली पार्टी पर लोग कैसे करें विश्वास?
समाज मुद्दा
बदलुओं पर भरोसा नहीं करता है इसलिए भाजपा को भी अपने आदर्शों सिद्धांतों
पर आगे बढ़ना चाहिए कभी किसी बाबा का पल्लू पकड़ कर चलना कभी किसी बाबा का यह ठीक आदत नहीं है वैसे भी भाजपा को ये बाबा बबाइनें बैरागी आदि लोग फलते नहीं हैं!वो भाजपा के समर्थन में बड़ा जोर शोर मचाकर भाजपा को भी अपने साथ साथ डुबा लेते हैं।यह शार्टकट भाजपा के लिए ठीक नहीं है।यू.पी. में बाबा साहब की शिष्या को समर्थन देने के बाद वहाँ भाजपा कभी कड़ी नहीं हो पाई!
उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि सफेद कपड़े वाले आम लोगों में भी चरित्रवान ईमानदार सिद्धांत वादी देश के प्रति समर्पित असंख्य लोग प्राण प्रण से
भाजपा के लिए समर्पण पूर्वक काम कर रहे हैं उनमें से बहुत लोग ऐसे भी हैं
जो भाजपा के सदस्य भी नहीं हैं और उन्होंने भाजपा से कभी कुछ माँगा भी
नहीं है और भाजपा ने भी कभी उनके बारे में ऐसा कुछ न सोचा है और न ही किया है
किन्तु चाटुकारिता बिहीन वे ईमानदार लोग भाजपा से इसलिए चिपके हैं कि
हमारा कुछ हो न हो किन्तु देश का कुछ तो होना चाहिए।सीधी बात तो यह है कि वे अब काँग्रेस के कुशासन से देश को मुक्ति दिलाना चाहते हैं।
वैसे भाजपा से
शिक्षित स्वयंसेवी जीवितविचारों वाले गैर राजनैतिक लोगों को उम्मीद थी कि
भाजपा हमारे भी बौद्धिक योगदान पर अमल करेगी किन्तु ऐसा नहीं हो सका!और एक बहुत बड़ा वर्ग निराश हुआ है ।इसलिए भाजपा को अब चाहिए कि अपने बचनों और मुद्दों पर कायम रहे । जैसे श्री राम मंदिर मुद्दा कभी एजेंडे में रहता है कभी नहीं। यह सब क्या है देश सबकी चालाकी समझता है इसलिए अब बंद होनी चाहिए शार्टकट की तलाश!
जैसे रामकृष्ण यादव जी ही हैं आजकल भाजपा पर खासे मेहरबान हैं बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना !वो बाबा हैं तो भजन करें ,विरक्त हैं तो दुनियाँ के आडम्बर से क्या लेना देना! योगी हैं तो योग पंथ का प्रचार प्रसार करें, बैद्य हैं तो दवा बनाएँ, व्यापारी हैं तो खुलकर व्यापार करें और यदि नेता ही हैं बिरक्ति में मन न लगने के कारण भजन नहीं होता है तो कोई बात नहीं भजन करना कौन आसान है क्यों वहाँ समय बर्बाद करना?दाड़ा झोटा बढ़ाने की आखिर मज़बूरी क्या है जब भजन में मन नहीं लगता है वैसे भी भजन करते कब हैं जो जनता इन्हें संत माने! हाँ यदि देश की इतनी ही चिंता है तो खुल कर आवें न राजनीति में और करें देश की सेवा कौन रोक सकता है किसी को ! किन्तु अपनी पहचान स्पष्ट कर देने से विरक्त संतों की गरिमा तो बची रह जाएगी जिन बेचारों का दीन दुनियाँ से कुछ लेना देना ही नहीं है ऐसे बाबाओं की सजा वे भी भुगतते हैं इसलिए रामकृष्ण यादव जी को अपनी पहचान स्पष्ट कर देनी चाहिए तब भाजपा को इनका साथ लेने का लाभ मिल सकता है ।
अभी तक तो एक ही प्रश्न है कि वो हैं क्या?यदि उनका उद्देश्य अपना काला मन सम्हालने के लिए स्वामी बनना था तो रामदेव बने ठीक किया किन्तु क्या उनके विरक्त जीवन लक्ष्य पूरा हो गया?क्या ठीक हो गया उनका काला मन! और यदि अपना काला मन ठीक नहीं कर सके तो वही करते रहते मुद्दा क्यों बदल दिया आखिर क्यों बीच में उठा लिया काले तन अर्थात बीमार शरीरों को स्वस्थ करने का मुद्दा न केवल बड़ी बड़ी बातें करने अपितु रोगों कि लम्बी लम्बी लिस्टें पढने लगे टी. वी. चैनलों पर बड़े दिन पेट हिलाया क्या सब लोग स्वस्थ हो गए और यदि नहीं तो वही करते रहते अर्थात बीमारियाँ घटी नहीं तो मुद्दा क्यों बदल दिया ? आखिर क्यों बीच में उठा लिया काले धन को विदेशों से भारत लाने का मुद्दा ? कब तक टिकेंगे इस पर कह पाना कठिन है ।
अब सुना है कि आजकल मोदी जी के समर्थन में उतरे हैं किन्तु जिसके अपने समर्थक ही नहीं हैं वह किसी का समर्थन करके सहयोग क्या करेगा? यदि समर्थक होते तो उस दिन सरकारी मशीनरी के विरुद्ध कुछ न कुछ दिन तो धरना प्रदर्शन करते जब रात में रामदेव को खदेड़ा गया था। वो रामदेव मोदी जी की हिम्मत बँधा रहे हैं जिनकी अपनी हिम्मत इतनी आसानी से टूट जाती है यदि थोड़ा भी साहस होता तो बाबाओं के कपड़े छोड़ कर औरतों के कपड़ों में कभी न भागते !उसके बाद क्या अद्भुत रुदन था उन रामकृष्ण यादव जी और बाल कृष्ण जी का !जब रोते हुए मीडिया के चैनलों पर प्रकट हुए थे!
आज भाजपा का समर्थन कर रहे हैं वो भाजपा अभी इतनी कमजोर नहीं हुई है जो ऐसे कमजोर बाबाओं के बल पर चुनावों में जाए !ऐसे बड़बोले लोगों की बातों से भाजपा का नुकसान तो हो सकता है फायदा नहीं इसलिए भाजपा को अपने बल पर आगे बढ़ना चाहिए वैसे भी वैराग्य बिहीन बनावटी बाबाओं के बिरुद्ध समाज में आज आक्रोश है !समाज महात्मा को केवल विरक्त ही देखना चाहता है समाज का सीधा सा प्रश्न है कि जब सारा प्रपंच करना ही है तो बाबा किस बात के?वैसे भी बाबा वेष में धन कमाने के लिए किसने कहाँ कितना बड़ा पाप कर रखा है किसी को क्या पता ?भाजपा इनकी वकालत किस मुद्दे पर किस सीमा तक कर पाएगी यह भी सोचना चाहिए !
इसीलिए रामदेव की तरह ही मुद्दे बदलने वाले अरविन्द केजरीवाल भी समाज की दृष्टि में बिलकुल अविश्वसनीय हो चुके हैं
संभ्रांत वर्ग काँग्रेस से बहुत पहले ही निराश हो चुका था क्योंकि उन्हें कुछ करना ही होता तो बहुत बार सत्ता में रह चुके थे कर लेते! काँग्रेस के लोग अब तभी तक सत्ता में हैं जब तक कोई मजबूत विकल्प जनता को दिखाई नहीं देता है जिस दिन ऐसा हो पाया उसी दिन काँग्रेस से लोग हाथ जोड़ लेंगे !
अब देश समझ चुका है अब इसके विरुद्ध कभी भी कोई बहुत बड़ा ज्वार उठ खड़ा हो सकता हैभाजपा
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