आखिर क्या है इन समस्याओं का समाधान और क्या हो सकता है इनका उपाय ?
किन्हीं भी दो या दो से अधिक लोगों का नाम यदि एक अक्षर से ही प्रारंभ होता है-
जैसेः-राम-रावण, कृष्ण-कंस आदि
अशोक सिंघल जी यदि आशाराम जी की मदद करना चाहते हैं तो करें किन्तु उसके परिणाम आशा के अनुकूल नहीं होंगे ज्योतिषीय दृष्टि से मुझे लगता है कि होम करने से पूर्व हाथ बचाकर रखने की तैयारी पर अच्छे ढंग से चिंतन कर लिया जाना चाहिए !कोई और पहल करे तो ठीक है ।
इसीप्रकार आशाराम जी भी इसी ज्योतिषीय नाम प्रतिकूलता का दंड भोग रहे हैं -
आशाराम और अशोक गहलोत (मुख्यमंत्री राजस्थान)
आशारामऔरआनंदपुरोहित(सरकारीवकील)
आशाराम और अजय पाल लांबा(इंवेस्टीगेटिंगऑफीसर)
आशाराम औरअजय लांबा (डीसीपी )
आशाराम और आम आदमी पार्टी
आशाराम और आम आदमी पार्टी
आशाराम और आरक्षण बचाओ समिति
आशाराम और अशोक सिंघल जी
इसीप्रकार दो टी.वी.चैनल जिन्होंने आशाराम जी की गिरफ्तारी की खबर दिखाने में विशेष रूचि ली है -
आशाराम और आजतक ( टी.वी.चैनल ) आशारामऔरआनंदबाजारपत्रिका(टी.वी.चैनलA.B.P)
सच्चाई तो ईश्वर ही जाने जो न्याय प्रणाली के आधीन है कानून व्यवस्था पर सबको भरोसा रखना ही चाहिए! किंतु हम तो ज्योतिष शास्त्र का एक दृष्टिकोण समाज के सामने रखना चाह रहे हैं कि इन्हीं नामों का पहला अक्षर एक जैसा मिलने के ज्योतिषीय दोष के कारण आशाराम जी को इन लोगों का तीखा विरोध झेलना पड़ा -
ऐसे सभी लोगों के आपसी संबंध शुरू में तो अत्यंत मधुर होते हैं बाद में बहुत अधिक खराब हो जाते हैं, क्योंकि इनकी पद-प्रतिष्ठा-प्रसिद्धि-पत्नी-प्रेमिका आदि के विषय में पसंद एक जैसी रहती है, अर्थात जिस पद-प्रतिष्ठा-प्रसिद्धि आदि को इनमें से कोई एक प्राप्त करना चाहेगा उसी को पाने की ईच्छा दूसरा भी रखता है,उसी तरह की भी नहीं बल्कि वही चीज चाहिए होती है ऐसे लोगों को जो किसी दूसरे के पास होती है।चूँकि एक ही चीज एक समय पर किसी दो या दो से अधिक के पास कैसे रह सकती है! यही कारण है कि उसे पाने के लिए उस तरह के लोग एक दूसरे का नुकसान किसी भी स्तर तक गिरकर कर सकते हैं और उस पद-प्रतिष्ठा-और प्रसिद्धि को भी नष्ट कर देते हैं, अर्थात जो मुझे नहीं मिली वो किसी और को नहीं मिलने देंगे।
खैर, जो बीत गई सो बात गई अब आगे के बारे में सोचना है कि आशाराम जी का बचाव कैसे हो उसके लिए क्या किया जाना चाहिए?जहाँ तक आस्था की बात है मैं उनका अनुयायी नहीं हूँ और न ही हमें उनकी बातें कभी प्रभावित ही कर सकी हैं। यद्यपि मैं शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान का केवल समर्थक ही नहीं अपितु उसके प्रति समर्पित भी हूँ !
मैं केवल इतना चाहता हूँ कि आशाराम जी का निजी जीवन जैसा भी रहा हो वो तो केवल वो जानते होंगे या फिर ईश्वर को पता होगा किन्तु समाज का जो भी वर्ग उन्हें केवल धर्म एवं धार्मिकता की दृष्टि से देखता था उसे यह सब देख सुन कर गम्भीर ठेस लगी है वह आज भी आशाराम जी को किसी भी प्रकार से दोषी सुनने सहने और मानने को तैयार नहीं है। ये उसकी निजी भावना है और किसी कि आस्था के साथ खिलवाड़ करने का कम से कम हमें तो कोई अधिकार है ही नहीं!मैं केवल इतना सोचता हूँ कि आशाराम जी पर कानून को अपना काम करने दिया जाए उसमें सहयोग करने में ही भलाई है।
आशाराम जी धार्मिक व्यक्ति हैं इसलिए उनकी सुरक्षा एवं कारागार से मुक्ति के लिए धार्मिक उपाय किए जाने चाहिए।इसके दो लाभ होंगे पहलेतो यदि उनका कोई दोष ही नहीं होगा तो इसके प्रभाव से शीघ्र निर्दोष साबित होंगे और यदि मनुष्य होने के नाते जाने अनजाने में हुए किन्हीं पापों के परिणाम स्वरूप यदि आशाराम जी को यह दंड मिल रहा है जिसकी सम्भावना अधिक है क्योंकि ये मामला खिंचता ही चला जा रहा है ऐसे में इन धार्मिक उपायों से प्रायश्चित्त होकर शुद्धि होगी और देवी की कृपा के प्रभाव से शीघ्र मुक्ति मिल जाएगी इसलिए आवश्यक है कि देवी दुर्गा की आराधना की जाए जिसके लिए यदि सम्भव हो तो दुर्गा सप्तशती के एक लाख पाठ संस्कृत भाषा में किए जाएँ तो अत्यंत शीघ्र मुक्ति मिल सकती है,किन्तु इसके लिए संस्कृत का अभ्यास अच्छा होना चाहिए क्योंकि उच्चारण दोष बिलकुल ही न हो। एक और सरल रास्ता है कि यदि संस्कृत भाषा में पाठ कर पाना सम्भव न हो तो हिंदी में भी किया जा सकता है हिंदी में कई पुस्तकें प्रचलित हैं जिनमें कई प्रकार के दोष छूट गए हैं इसलिए उनका कोई लाभ नहीं है।राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान से प्रकाशित दुर्गा सप्तशती न केवल पूर्ण प्रमाणित और हिंदी भाषा में है अपितु दोहा चौपाइयों में होने के कारण बड़ी आसानी से सुन्दर काण्ड की तरह पढ़ी जा सकती है इसका पाठ भक्त लोग सामूहिक रूप से मिल जुल कर भी कर सकते हैं।यह सबसे सरल और प्रभावी विधि है और यह पाठ सभी लोग स्वयं कर भी सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें-
(Saral Durga Saptshati
By Dr.S.N. Vajpayee
http://snvajpayee.blogspot.in/2013/01/durga-saptshati-by-drsn-vajpayee.html)
आप सबको याद होगा दिल्ली के चर्चित बलात्कार काण्ड में आशाराम जी ने कहा था कि यदि उसने सारस्वत मन्त्र की दीक्षा ली होती तो उसका बचाव हो गया होता ! यह बात और है कि उनकी इस प्रकार की अप्रासंगिक बातों का उस समय के माहौल में पुरजोर विरोध हुआ था।इसका मतलब यह कतई नहीं है कि वो सारा गलत ही बोल रहे रहे थे मैं तो कहूंगा कि माता सरस्वती बुद्धि की स्वामिनी हैं वो किसी की भी बुद्धि बढ़ा या बदल सकती हैं किन्तु उन देश काल परिस्थितियों में उस बालिका पर माता सरस्वती की कितनी कृपा हो पाती ये तो माता सरस्वती ही जानें!जहाँ तक आशाराम जी की दूसरी बात हमसे दीक्षा ली होती तो ऐसा हो सकता था मैं इससे बिलकुल सहमत नहीं हूँ!जो उनकी तपो शक्ति को लेकर तब सोचते भी थे कि आशाराम जी में ऐसी साधना या सिद्धि आदि होगी उन्हें भी आज यह भरोसा हो गया होगा कि उनका वह दावा अत्यंत उतावलेपन में किया गया आत्मविज्ञापन मात्र था! संभवतः उनकी इसी प्रकार की आत्म विज्ञापनी अतिशयोक्ति पूर्ण बातों से और कुछ हुआ हो न हुआ हो किंतु ऐसी बातों ने आज की परिस्थितियों में उनका उपहास सबसे अधिक कराया है ।
यह भी सच है कि पढ़ा लिखा धार्मिक या शास्त्रीय समुदाय न तो आशाराम जी को कभी महात्मा मानता रहा और न ही धर्म गुरु और विद्वान् वो हैं भी नहीं, अभी भी उन्हें संस्कृत बोलने समझने में कठिनाई होती है गीता आदि के श्लोकों का हमेंशा वे अशुद्ध उच्चारण करते रहे यहाँ तक कि रामचरित मानस की चौपाइयाँ वे शुद्ध नहीं पढ़ पाते हैं ऐसी परिस्थिति में अपने सारे धर्म ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं उनका पढ़ पाना आशाराम जी के बश का भी नहीं था।वो अपने को आत्म ज्ञानी ब्रह्म ज्ञानी आदि जो कुछ भी बोलते थे वो सच्चाई से कोसों दूर अर्थात झूठ होता था!
इतना सब होने के बाद भी उनके ऊपर बलात्कार के आरोप लगने मात्र से धर्मक्षेत्र का बहुत बड़ा नुकसान हुआ है यह सच था कि पढ़ा लिखा धार्मिक या शास्त्रीय समुदाय न तो आशाराम जी को कभी महात्मा मानता रहा और न ही धर्म गुरु और विद्वान् वो हैं नहीं यह सब कुछ सही होने के बाद भी एक सच्चाई यह भी स्वीकार करनी होगी कि आम समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को अपनी गतिविधियों में सम्मिलित करने में वे सफल रहे जिनमें कई जनहित के कार्य भी उन्होंने किए हैं गुरुकुल आदि चलाए हैं किन्तु जो भी काम उन्होंने किए हैं उनमें धन तो दिखाई देता है किन्तु तपस्या साधना जैसी बातों का विस्तार कर पाने में वे असफल ही रहे, न केवल इतना अपितु अपने उन सेवकों को जो किसी लायक ही नहीं थे उन्हें साधक कह कर बुलाते रहे जो गलत था इससे साधना कि गरिमा घटती थी । जब वहाँ साधना की कोई रूप रेखा ही नहीं है तब कोई साधक कैसे हो सकता है ?और यदि साधना थी तो जब आशाराम जी गिरफ्तार हुए तबसे आज तक वो दिखाई पड़नी चाहिए थी किन्तु ऐसा कभी कोई चमत्कार हुआ ही नहीं । उनके भगत लोग केवल रोते गिड़गिड़ाते ही दिखाई देते रहे जब कि साधना संपन्न साधकों में इस प्रकार का दैन्य आना ही नहीं चाहिए था और कुछ तो चमत्कार होना ही चाहिए था जो नहीं हुआ!केवल यह कहना कि आशाराम जी को गलत फँसाया गया है इस बात में ताकत इसलिए नहीं है कि अपने यहाँ की कानून व्यवस्था ही ऐसी है कि किसी ने आरोप लगाए हैं उसकी जाँच होगी ही और जो भी कानूनी कार्यवाही बनती होगी सो होगी बाकी एक बात साफ थी कि आशाराम जी एवं उनके अनुयायियों में साधक साधना सिद्ध जैसा सारा वक्तव्य ही निराधार था ! दूसरों के साथ किया गया छल आज स्वयं उन पर ही भारी पड़ रहा है! तब जो मीडिया बिना किसी धार्मिक संस्था से प्रमाणित कराए ही आशाराम जी को धर्म गुरु कहने लगा।उसी मीडिया ने इसी प्रकार के अपने कुछ और प्रोडक्ट लांच किए हैं जिसमें किसी को योग गुरु,मलमल बाबा,क्षुधांशु गुरू,सुकुमार स्वामी शनैश्चरासुर, ज्योतिष गुरु,वास्तु गुरु और जाने कौन कौन से गुरु मीडिया ने पैसे ले लेकर तैयार किए हैं जिस दिन पैसा नहीं पहुँचेगा उस दिन मीडिया सबके कपड़े उतारेगा । अंधेर है कि मीडिया पर इतना अंकुश क्यों नहीं लगाया जाता है कि ज्योतिषादि जिस विषय का जो विज्ञापन देने आवे पहले उसकी डिग्रियाँ तो चेक की जानी चाहिए कि वह व्यक्ति उस विषय में अधिकृत वक्तव्य देने की योग्यता रखता भी है कि नहीं !
जैसे किसी गधे पर शेर की खाल डाल देने से वह शेर थोड़े ही हो जाएगा किन्तु धर्म के क्षेत्र में ऐसे बहुत सारे शेर मीडिया ने तैयार कर के छोड़ दिए हैं जब वो दहाड़ने के बजाए चीपों चीपों चिल्लाने लगते हैं तो जब लोग शोर मचाने लगते हैं तब मीडिया भी शोर मचाता है हर प्रकरण में यही हो रहा है किसी रँगे पोते व्यापारी का नाम मीडिया के लोगों ने योग गुरु रख दिया किन्तु अब वह काला नीला हरा गुलाबी आदि धन खोजता घूम रहा है कोई योग साधक ऐसा करता है क्या!उसे दुनियां के प्रपंच से क्या लेना देना ? और वो करेगा भी क्यों ऐसे और भी बहुत सारे उदाहरण हैं।
मजे की बात यह है कि आजकल धर्म के क्षेत्र में मीडिया जिससे पैसे लेता है उसका पहले नाम करता है और बात बिगड़ने पर मीडिया ही उन्हें बदनाम करता है इस नाम करने से बदनाम करने तक की मीडिया की सम्पूर्ण कार्यवाही में कोई शास्त्रीय शिक्षित साधक महापुरुष दूर दूर तक सम्मिलित नहीं होता है।पिछले साल एक भोगगुरु के सलवार पहनकर भागने का प्रकरण हो या इस साल का आशाराम प्रकरण किसी शास्त्रीय संत का कोई वक्तव्य नहीं आया!टी. वी. चैनलों पर महीनों से आशाराम के साथ साथ धर्म एवं संत परंपरा पर बड़ी बड़ी बहसें चलती रहीं किंतु मेरी समझ में ऐसी किसी भी बहस में कभी कोई शास्त्रीय संत सम्मिलित नहीं हुआ। एक आध मीडिया से जुड़े लुटे पिटे रँगे पोते पत्रकार थे जो मीडिया की सुविधा के लिए अभी हाल ही में बाबा बने थे।
इसी प्रकार एक आध राजनैतिक पार्टियों के पक्ष में माहौल बनाने के लिए बाबा बने रँगे पोते नेता लोग थे कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने सरकारी अनुदान जीमने के लिए कोई न कोई संस्था चला रखी है जिसके वे अध्यक्ष उपाध्यक्ष आदि हैं इसी प्रकार गौशाला चलाने वाले ग्वाले लोग आदि ऐसे ही कलियुगी संत लोग धर्म की छीछालेदर कराने को मीडिया के हाथ लगते हैं उन्हें धर्म एवं धर्म शास्त्रों के विषय में कुछ पता नहीं होता है इसलिए मीडिया के विरोधीपक्ष की भूमिका अदा करने के लिए वे ही टी. वी. चैनलों पर केवल बुंबुआया करते हैं!
केवल आशाराम जी ही नहीं अपितु और भी इस तरह के जितने भी टेलीवीजनी प्रोडक्ट बाबा ज्योतिषी वास्तु शास्त्री या अन्य यन्त्र तंत्र ताबीज बनाने बेचने वाले हैं उन सभी के अनुयायिओं के विषय में विश्वास से कहा जा सकता है क़ि वो लोग केवल भावना के बहाव में बह रहे हैं और उनकी भावनाओं के साथ खेला जा रहा है! क्योंकि उन्हें इन विषयों की कोई जानकारी ही नहीं है इस कारण उनके अनुयायियों को अक्सर इस तरह के फंसाव में फँसते देखा जा सकता है किन्तु कटघरे में आज केवल आशाराम जी हैं इसका एक मात्र उपाय है कि Saral Durga Saptshati का पाठ किया जाना चाहिए भगवती सब ठीक करेंगी ।
इसी प्रकार और लोगों के भी उदाहरण हैं -
दिल्ली में भाजपा के चार विजयों का एक समूह एवं पाँचवाँ नाम विजय शर्मा जी का है- विजय शर्मा जी
विजयेंद्रजी -विजयजोलीजी
विजयकुमारमल्होत्राजी - विजयगोयलजी
ज्योतिष के अनुशार ये पाँच वि एक साथ एक क्षेत्र में एक समय पर काम नहीं कर सकते या एक साथ रह नहीं सकते!जरूरी नहीं कि ऐसा राजनीति में ही हो!अन्य क्षेत्रों में भी जहाँ कहीं ऐसा संयोग बनता है|
इसलिए एक अक्षर से प्रारंभ नाम वाले दो या दो से अधिक लोग एक दूसरे को हमेंशा पीछे धकेला करते हैं ये लोग संगठित रूप से किसी एक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए काम कर पाएँगे इसकी संभावना बहुत कम होती है।इनके बीच कोई सामान्य मतभेद भी कब कहॉं कितना बड़ा या कभी न सुधरने वाला स्वरूप धारण कर ले या शत्रुता में बदल जाए कहा नहीं जा सकता है।इनमें आपसी तालमेल बेहतर बनाने के लिए किसी मजबूत व्यक्तित्व की व्यवस्था समय रहते कर लेना भाजपा के लिए उत्तम होगा।
यही वो मजबूत कारण है जिसका दंड दिल्ली भाजपा को सत्ता से दूर रह कर पिछले दसों वर्षों से झेलना पड़ रहा है।चूँकि साहब सिंह वर्मा जी के बाद दूसरा जनाधार वाला जो भी नेता दिल्ली भाजपा के शीर्ष पदों पर आया उसका नाम वि से प्रारंभ हुआ जो आपसी खींच तान में उलझ कर रह गया!इस अक्षर के अलावा आने वाला कोई और नाम यदि आया तो आम जनता में उसकी वैसी पकड़ नहीं बन सकी जैसी राजनैतिक सफलता के लिए आवश्यक होती है,इस लिए उसे वैसी सफलता भी नहीं मिल सकी जैसी उसके लिए जरूरी थी।परिणाम स्वरूप दिल्ली की सत्ता के शीर्ष पर काँग्रेस के सदस्य के रूप में शीला दीक्षित जी ही सुशोभित होती रहीं! बात और है कि काँग्रेस इसे अपनी उत्तम प्राशासनिक क्षमता का परिणाम मानती हो किंतु ज्योतिषी सच्चाई यही है कि विपक्षी पार्टी भाजपा जनाधार संपन्न, लोकप्रिय, एवं स्वदल में अधिकाधिक स्वीकार्य नेता दिल्ली की जनता के सामने उपस्थित कर पाने में अभी तक सफल नहीं हो सकी है ।पहले वाले दिल्ली के चुनावों में पराजित हो चुकी भाजपा अभी भी उसी काम चलातू तैयारी के सहारे ही आगे बढ़ रही है!जो दिल्ली भाजपा के आगामी चुनावी भविष्य के लिए चिंताप्रद है,साथ ही उसका यह तर्क कि इतने दिन तक लगातार काँग्रेस दिल्ली की सत्ता में रहने के कारण अलोकप्रिय हो चुकी है इसलिए जनता अबकी बार भाजपा को मौका देगी ही !मेरा विनम्र निवेदन है कि भाजपा के इस दावे या सोच में कोई दम नहीं है।इसलिए भाजपा को दिल्ली की चुनावी विजय के लिए चाहिए कि इन पाँचों विजयों की कार्य कुशलताओं का अन्य दूसरी तीसरी जगहों पर उपयोग करना चाहिए किन्तु दिल्ली के चुनावी मैदान में कोई एक विजय या किसी और नाम वाले व्यक्ति की व्यवस्था करनी चाहिए !अन्यथा आने वाले चुनावों में शीला दीक्षित जी की संभावित विजय को रोका नहीं जा सकेगा क्योंकि -
अरविन्द केजरीवाल का आम आदमी पार्टी
में कोई भविष्य नहीं है जब से यह पार्टी बनी है तब सेअरविन्द जी की लोकप्रियता घटी ही है बढ़ी तो है ही नहीं !आम आदमी पार्टीवातावरण बिगड़ता ही जा रहा है।स्थिति कुछ दिनों में और साफ हो जाएगी। इसलिए भाजपा को अभी और अधिक गंभीर मंथन करने की आवश्यकता है इसके लिए भाजपा अभी जिस रास्ते की ओर बढ़ रही है उसमें अपनी बढ़ी लोकप्रियता का भरोसा कम एवं वर्तमान सरकार की अलोकप्रियता का विश्वास अधिक है जो भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं कहे जा सकते।यह सोचशीला दीक्षित जी को ही फायदा पहुँचाएगी भाजपा को नहीं!
इसप्रकार केंद्र से प्रान्तों तक भाजपा नाम समस्या जन्य इस बड़ी बीमारी से लगातार जूझती रही है इस कारण सत्ता में रह रही काँग्रेस विपक्षी पार्टी भाजपा को लगातार कमजोर सिद्ध करती जा रही है दूसरी ओर भाजपा की ओर से भी समृद्ध एवं विश्वनीय संदेश जनता में नहीं पहुँचाया जा सका है इसलिए दिल्ली प्रदेश एवं संपूर्ण देश में जनता काँग्रेस के संवेदन हीन व्यवहार से दुखी तो है किंतु उस दुःख को घटाने में भाजपा कामयाब होगी इसका भी भरोसा भाजपा की ओर से समाज को नहीं मिल पा रहा है। इसलिए ज्योतिषीय संकेतों को समझते हुए आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए उसके परिणाम स्वरूप समाज भाजपा की भाषा पर भरोसा करेगा !
भाजपा की दिल्ली पराजय का कारण
विजय शर्मा जी
विजयेंद्रजी -विजयजोलीजी
विजयकुमारमल्होत्राजी - विजयगोयलजी
भाजपा की राष्ट्रीय समस्या का कारण
भाजपा-भारतवर्ष
-राजग टूटने का कारण-
नितीशकुमार-नितिनगडकरी-नरेंद्रमोदी
इन तीनों में किसी एक की प्रमुखता दूसरे को बर्दाश्त नहीं हो पाती इसलिए राजग टूटना ही था !
उत्तर प्रदेश में भाजपा
कलराजमिश्र-कल्याण सिंह
उमाभारती - उत्तर प्रदेश
जिन प्रदेशों में ऐसा नहीं है वहाँ भाजपा का जनता में ठीक ठीक विश्वास है !
इसी प्रकार
अन्ना हजारे का आन्दोलन पिटने का कारण
अन्नाहजारे-अरविंदकेजरीवाल-असीमत्रिवेदी- अग्निवेष- अरूण जेटली - अभिषेकमनुसिंघवी
सपा में फूट का कारण
अमरसिंह - आजमखान - अखिलेशयादव
अमरसिंह-अनिलअंबानी-अमिताभबच्चन
राम देव का आन्दोलन बिगड़ने का कारण
रामदेव हवाई अड्डे पर मंत्रियों का ब्यवहार ठीक था किन्तु रामलीला मैदान पहुँचकर बात बिगड़ी ऊपर से राहुल गाँधी का हस्त क्षेप !
रामदेव -रामलीला मैदान -राहुल गाँधी
रामदेव -राजीव गाँधी स्टेडियम-राहुल गाँधी
रामदेव -अम्बेडकर स्टेडियम -राहुल गाँधी
दूसरी बार भी वैसा ही होता किंतु ये मैदान छोड़कर निकल पड़े इन्हें जाना था राजीव गाँधी स्टेडियम तो भी वही होता किन्तु ये पहुँच गए अम्बेडकर स्टेडियम
इससे बचाव हो गया !
इसीप्रकार और भी उदाहरण हैं ----
लालकृष्णअडवानी-लालूप्रसाद
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