भाजपा पर आज अधिक जिम्मेदारी है
भाजपा का हिलता हुआ हाईकमान कार्यकर्ता के मन में संशय पैदा करता है
भाजपा के लिए अब बिना समय गँवाए सोचने और करने का समय है उसे यह मान कर चलना चाहिए कि काँग्रेस के लोग अब तभी तक सत्ता में
हैं जब तक कोई मजबूत विकल्प जनता को दिखाई नहीं देता है जिस दिन ऐसा हो
पाया उसी दिन काँग्रेस से लोग हाथ जोड़ लेंगे !चूँकि भाजपा अभी तक मजबूत एवं विश्वसनीय विकल्प उपस्थित कर सकने में सफल नहीं हो सकी है ऐसी तैयारी के बलपर आगामी चुनावों में बहुत कुछ हाथ पल्ले लगते नहीं दिखता है !यदि यही स्थिति रही तो एकबार फिर एक आध वर्ष संयुक्त मोर्चा बना कर कुछ लोग कुछ दिन खेल कूद कर लेंगे और फिर सत्ता कांग्रेस को ही लौटा देंगे!
सच्चाई कुछ ऐसी दिखती है कि विपक्षी पार्टी भाजपा अभी तक सोच ही नहीं पाई है कि उसे करना क्या है कब करना है किसके सहयोग से करना है किन सिद्धांतों पर चलकर करना है किसके नेतृत्व में करना हैं,किन मुद्दों पर करना है आदि आदि ! चुनाव शिर पर हैं बड़ी आशा से देश भाजपा की ओर देख रहा है भाजपा उनकी ओर देख रही है जो भाजपा की ओर नहीं देख रहे हैं अपनी ओर देख रहे हैं कि अभी अपनी हनक बरक़रार है कि नहीं वो तो भाजपा को हुक्म देकर सो जाते हैं !
उनकी अपनी आज कितनी शाखाएँ लगती हैं कितने लोग आते हैं शाखाओं में क्यों घटती जा रही है दिनोंदिन शाखाओं एवं स्वयं सेवकों की संख्या? इसकी चिंता कौन करेगा !प्रचारकों के इस संगठन में विचारों कि आपूर्ति कहाँ से होगी। श्रद्धेय रज्जू भैय्या जी को जो एक बार मिल जाता था वो उनका हो जाता था आज संगठन में कार्यकर्ताओं को वो अपनापन क्यों नहीं मिल रहा है ?हर कोई वी.आई.पी. बना केवल आदेश देने पर भरोसा करता है आखिर काम कौन करेगा ?
आखिर भाजपा के नीति निर्धारकों में डुब्लिकेट काँग्रेसी होने की होड़ सी क्यों लगी रहती है?जो आपके कार्यकर्ता अपना सब कुछ छोड़ कर तुम पर न्योछावर हो जाते हैं तुम्हारी ओर देखते हैं जब उन्हें जरूरत पड़ती है तो क्यों मुख फेर लेते हैं आप !काँग्रेसी नेता तो ऐसा नहीं करते हैं भाजपा में भी बहुत लोग पार्टी के साथ साथ कार्यकर्ताओं के प्रति भी समर्पित हैं । आज भी बहुत जगह ऐसे समर्पित कार्यकर्ता हैं किन्तु उनकी संख्या कम है जब कोई कार्यकर्ता मुशीबत में पड़ने पर मदद के लिए अपने सीनियर के पास जाता है तो वो लोग उसे पुलिस की अपेक्षा अधिक डरवाते हैं उसी की कमियाँ उसे गिनाने लगते हैं निराश होकर वह कार्यकर्ता लौट आता है और फिर झेलता है समाज एवं अपने परिवार की जलालत ।ऐसे में कुछ सीनियर कार्यकर्ता यदि मदद को तैयार भी होते हैं तो वो तांत्रिकों की तरह इतने टटका टोना करने के बाद अपने पास बुलाते हैं जो न वो बेचारा हैरान परेशान कार्यकर्ता कर पाता है और न ही लौट कर उनके सामने आता है जब चुनाव के समय पार्टी के लोग उससे गले मिलने पहुँचते हैं तो वो भी रूचि नहीं ले पाता है।
दिल्ली भाजपा में एक बड़े कार्यकर्ता हैं जिनकी मधुर मुस्कान के कारण उन्हें केवल आलाकमान का आशीर्वाद प्राप्त रहता है इसीलिए वे कार्यकर्ताओं को कभी मुख ही नहीं लगाते हैं न किसी से अपनी पहचान स्वीकार करते हैं उनके काम करने की अद्भुत प्रक्रिया है अपनी पार्टी से जुड़े लोगों को परिचय देने पर भी तीन चार बार न पहचानने का नाटक करते हैं किन्तु जब अपना काम पड़ता है तब पता लगता है कि वे उसे सम्पूर्ण रूप से जानते हैं और बिना परिचय के भी एक बार उसका सब कुछ पहचान लेते हैं।
इस प्रकार से वे जब किसी का कभी कोई काम ही नहीं करेंगे तो साफ सुथरी छबि बनी ही रहती है पार्टी साफ सुथरी छबि को ही महत्त्व देती है किन्तु परिणाम तो जनता के हाथ में है देखो जनता क्या फैसला सुनती है। क्या ऐसे व्यवहार से कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता नहीं है ?
वैसे भी मोदी जी से भाजपा के कार्यकर्त्ता अपरिचित नहीं हैं वो विश्व के फलक पर प्रमाणित हो चुके हैं भाजपा उनका उतना प्रचार शायद न कर पाए जितना विरोधियों ने किया है केवल इंटरनेट पर नमोंकार मन्त्र जपने से बहुत कुछ होते हमें नहीं दिखता है इंटरनेट पर प्रचार तो बफे सिस्टम में खाना की आपूर्ति करने की व्यवस्था मात्र है वो खाना किसी को अच्छा लगे या न लगे इसकी परवाह किसको है ?इसी प्रकार से इंटर नेट पर चुनावी प्रचार होता है!
उसका कारण एक सच्चाई यह भी है कि जो वोटर इंटर नेट तक पहुँच चुका है वह कम कम से कम इतना समझदार तो हो ही चुका होता है कि उसे वोट किसे देना है यह निर्णय लेने में वह सक्षम है इसलिए उन्हें इंटर नेट के माध्यम से सुपरिचित बनाया जा रहा है ये तो समुद्र में होने वाली वारिश है आज आवश्यकता है भाजपा को अपने उस वोटर तक पहुँचने की जो सुदूर गांवों में जब रामायण या हनुमान चालीसा पढ़ता है तो लोग उससे जय श्री राम कहकर अभिवादन यह सोच कर करते हैं कि यह धार्मिक है इसलिए भाजपा का ही समर्थक होगा और वह भी रामायण का पाठ थोड़ी देर बीच में ही रोककर भाजपा के विषय में बताने लगता था और वह सदाचारी अपनी प्रतिष्ठा के साथ भाजपा की प्रतिष्ठा जोड़कर बात करता था जिसका समाज पर विशेष असर पड़ता था !
आज आडवाणी जी की आलोचना का प्रकरण हो या गडकरी जी को अचानक अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा हो या कि दिल्ली में गोयल साहब को देर से मना पाने की बात हो । बड़े नेताओं की परस्पर विरोधी बातों से मतदाता भ्रमित होता है कि आखिर वो भाजपा किसे माने परस्पर विरोध में बोल रहा हर आदमी भाजपा का बिल्ला लगाए होता है इस प्रकार से चुनावों के समय भाजपा का हिलता हुआ हाईकमान आत्म घाती सिद्ध होता है लोग सोचने लगते हैं कि जो पार्टी अपने सम्माननीय नेतृत्व के किस सदस्य को कब कहाँ क्यों और कैसे पटक देगी किसी को पता नहीं !उस पर आम वोटर भरोसा कैसे करे इसलिए यदि अपने हाईकमान को हिलाना आवश्यक ही था तो चुनावों से एक आध वर्ष पहले ही हिला लेना चाहिए था ताकि चुनावों के समय में भाजपाई वोटर के सामने साफ सुथरी स्थिति प्रस्तुत की जा सकती !
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