शनिवार, 14 दिसंबर 2013

अटल जी की एक वोट से सरकार गिरी थी किन्तु सिद्धांत नहीं !

अरे!आम आदमी पार्टी के ईमानदारों !अटलजी  को याद करो जिन्होंने एक वोट से सरकार गिर जाने दी थी किन्तु सिद्धांतों से समझौता नहीं किया था 

      दिल्ली में सरकार बनाने के नाम पर यदि केवल अपने मुद्दे छोड़कर कांग्रेस के सामने घुटना ही टेकना था तो राय सुमारी का नाटक क्यों किया गया? यदि कुछ करना ही नहीं था तो सरकार बनाने की पोटली क्यों समेटे घूम रहे थे आप के "आप"! क्या यही था   केजरीवाल का तथाकथित ईमानदार वाद ?

    किसी का साथ न लेंगे न किसी को देंगे शर्तों का पिटारा खोल खोल रखेंगे  !न सरकार बनाएँगे न बनने देंगे वारे केजरीवाल ! 

       जैसे अटल जी ने भी तो अपने कुछ मुद्दे छोड़कर न केवल सरकार बनाई अपितु चलाई भी थी । उसमें भी कई बड़े फैसले भी लिए गए थे  एक बात तो ये है, दूसरी बात केजरीवाल केवल अपने को ही ईमानदार क्यों समझ रहे हैं अभी तक की राजनीति में सारे लोग भ्रष्ट ही नहीं हैं ।  उन्हें और भी अच्छे लोगों का संग्रह करके अपना राजनैतिक विस्तार करना चाहिए !इसमें एक और महत्वपूर्ण बात जो वो कहते हैं कि जो अच्छे लोग हैं वो मेरे साथ जुड़ जाएँ इसका मतलब क्या है कि जो अच्छे लोग हैं वो जुड़ जाएँ या जो जुड़ जाएँ वो अच्छे लोग हैं ?खैर यह भ्रामक एवं राजनैतिक चंचलता का वक्तव्य है! आम आदमी पार्टी की अभी तक की सभी बातें केवल बोली गई हैं अब समय आ गया है कि कुछ कर के भी दिखाया जाना चाहिए जिसने आपको वोट दिया है वो हिसाब भी तो माँगेगा 

     अरे शर्तों के पिटारो ! यदि आपका बहुमत नहीं जुटा तो इसमें उसका क्या दोष जिसने एक वोट देकर ही आपको अपना मुख्यमंत्री बना लिया था आप उसके लिए तो कुछ कीजिए  अन्यथा इसकी क्या गारंटी कि दूसरी बार आपको बहुमत मिल ही जाएगा यदि नहीं मिला तो ऐसे कब तक होते रहेंगे चुनाव ?यदि माताएं सोच लें कि जब घर में सारा सामन नहीं होगा तब तक हम भोजन नहीं पकाएंगे तब तो पूरा घर ही भूखा रह जाएगा !इससे अच्छा कुछ तो बनाओ जिससे लोगों की भूख मिटे और कुछ काम तो आगे बढ़े! केजरीवाल जी तुम तो दिल्ली सरकार को रोक कर खड़े हो गए हो न किसी काम के न काज के ,ये ठीक नहीं है!

         एक गरीब आदमी को पहली बार एक रोटी मिली वो उसे हाथ में लेकर बार बार केवल चूम रहा था किन्तु खा नहीं रहा था किसी ने कहा खा लो नहीं तो कोई छीन लेगा यह सुन कर वो  कहने लगा जब दूसरी और मिल जाएगी तब खाएँगे अन्यथा इससे पेट भी नहीं भरेगा  और फिर चूमेंगे किसको ?इसी बीच कोई कौआ आया रोटी छीन कर ले गया !

     क्या केजरी वाल ऐसे किसी कौवे की तलाश में तो नहीं हैं ?

वैसे भी केजरीवाल साहब अपना परिचय देने की अपेक्षा दूसरों की बुराइयां अधिक करते हैं ये भी स्वस्थ परम्परा नहीं कही जा सकती -

    

अटल जी की सरकार एक वोट से गिरी थी तब भी ख़रीदे जा सकते थे वोट ?

                                      यह आरोप गलत है

          अरविन्द केजरी वाल की बातें ... ! कोई राजनेता कैसे कर सकता है ?

     अभी अभी आगामी चुनावों की कन्वेसिंग जैसी करते हुए अरविन्द केजरीवाल को देखा गया इससे अच्छा अवसर अपनी ईमानदारी और दूसरों को बेईमान  प्रचारित करने का और कौन हो सकता है? सभी पार्टियों को इसी बहाने बिना कहे बेईमान सिद्ध कर दिया गया ये गलत बात है सारे विश्व ने अटल जी की अल्पमत सरकार को देखा था जब एक वोट से सरकार गिरी थी उस समय भी मंडी  में माल बहुत था किन्तु भाजपा चाहती तो एक सीट खरीदकर अपना प्रधान मंत्री बचा सकती थी किन्तु ऐसा नहीं किया गया इससे अधिक ज्वलंत उदाहरण और क्या हो सकता है ?अरविंद की भाषा में एक बहुत बड़ा दोष यह है कि वो दूसरे को बेईमान सिद्ध करके अपने को ईमानदार बताते हैं जबकि अपनी और अपने दल कि अच्छाइयां बताना जैसे आपका अधिकार है उसी प्रकार अन्य दलों के भी अपने अपने अधिकार हैं

        इसीप्रकार कोई दल किसी और के एजेंडे को सम्पूर्ण रूप से कैसे स्वीकार कर ले आखिर उसे इतना कमजोर सिद्ध करने का प्रयास क्यों किया जा रहा है ?दुबारा सम्भवित चुनावी खर्च के बोझ से दिल्ली की  जनता को बचाने के लिए बड़ी पार्टियों ने जो उदारता दिखाई है उसका दुरूपयोग कर रहे है अरविन्द !

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