किसी को जेल भेजने का उद्देश्य आखिर क्या होता है?
कहा जा रहा है कि लालू प्रसाद यादव जी अभी तक जेल में थे! लालू जी जैसे लोकप्रिय भले नेताओं को जेल भेजने का उद्देश्य आखिर क्या होता है?
यद्यपि मुझे जेल के नियमों के विषय में पता नहीं है किन्तु इतना अवश्य पता है कि आम आदमी जब जेल चला जाता है तो उसका शरीर आधा रह जाता है, उसका मनोबल गिर जाता है, शर्म से उसकी आँखें झुक जाती हैं, उसके घर खानदान वालों का मनोबल गिर जाता है ऐसे लोगों को सामाजिक रूप से वर्षों तक हीन भावना ग्रस्त रहना पड़ता है, चेहरा मुरझा जाता है किन्तु जब लालू प्रसाद जी जेल से निकले तो मनोबल घटने की अपेक्षा बढ़ा हुआ दिखा,हीन भावना की जगह अद्भुत उत्साह दिखा,स्वास्थ्य गिरने की जगह ईश्वर की भरपूर कृपा दिखी , चेहरा मुरझाने की बात तो कौन कहे चेहरा चमकता हुआ दिखा !
वस्तुतः बड़े लोगों की जेलें भी अलग होती होंगी यदि ऐसा नहीं होगा तो उनकी व्यवस्था जरूर वी आई पी होती होगी ,उनकी सेवा व्यवस्था भी बहुत कुछ अलग किस्म होती होगी सम्भवतः ऐसे लोगों को महापुरुषों की तरह जेल नाम के भवन में रखा जाता होगा ! जेल कर्मचारियों पर कृपा करने ही जेल जाते होंगे ऐसे लोग !यदि यही सब होना है तो ऐसे कृपालु लोग भला क्यों भेजे जाते हैं जेल?
जेल से निकलने के बाद एक पुलिस अधिकारी का पैर धोना ,एक का चप्पल लेकर चलना, हजारों की भीड़ का स्वागत में उमड़ना ,उनके चारों ओर पत्रकारों का जमघट लग जाना आदि आदि आखिर ये सब क्या है इन महापुरुषों की लोकप्रियता ही तो है ?इन बातों का भी मूल्यांकन भी तो करना ही पड़ेगा और किया भी जाना चाहिए !
ऐसे लोगों का बार बार यह कहना कि हमें गलत तरीके से फँसाया गया है यह कहकर एक भूतपूर्व मंत्री जब देश की कानूनी प्रक्रिया को कटघरे में खड़ा कर रहा होता है तो आम आदमी ऐसी व्यवस्था पर क्यों भरोसा करे ?केवल इसलिए कि वो गरीब होता है और उसकी ऊँची पहुँच नहीं होती है या उसके पास पैसा नहीं होता है आदि आदि!
यदि गरीब आदमी आया होता जेल से लौटकर तो शारीरिक दुर्दशा के साथ साथ उसका मनोबल बहुत गिर गया होता और यही समाज उसको इतने ताने मार रहा होता उसके बच्चों का घर से निकलना मुश्किल हो जाता कठिन हो जाते उसके बच्चे बच्चियों के काम काज होना !कौन विवाह करता उनके साथ ?चूस लिया होता उन्हें जेल कर्मचारियों ने ! धन के अभाव में महीनों तक सारे घर वालों को भूखा रहना पड़ता ! जेल के नाम पर क्या क्या नहीं सहना पड़ता है उन गरीबों को! तब बैठता है उनके मन में जेल का भय !उस भय को याद करके ही वो दूसरी बार कोई अपराध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं ।
बड़े बड़े लोग ,नेता लोग या पेशेवर अपराधी लोगों के मन में जेल का भय न होने के कारण ही वो बार बार अपराध में प्रवृत्त होते रहते हैं इसलिए घोटाले पर घोटाले भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार होता रहता है। यदि जेल का भय किसी भी भ्रष्टाचारी या अपराधी के रहन सहन चेहरे चिंतन चर्चा में न दिखाई पड़े तो उसके लिए क्या मायने रखता है जेल , और क्यों वह छोड़ेगा अपराध और भ्रष्टाचार ?
यह सब देखकर तो ऐसा लगता है कि गरीब और छोटे आदमी सामान्य जीवन जिएँ वह जेल से कम नहीं होता और बड़े लोग जेल भी जाएँ तो वहाँ भी अफ्सर पैर धो रहे होते हैं जूते समेट रहे होते हैं हो सकता है कि उन्हें ऐसी सेवा जेल में भी मिलती हो किन्तु वहाँ कैमरे और पत्रकार नहीं होते हैं वो ख़बरें बाहर आतीं कैसे ?
ऐसे नेताओं के चेहरे की चमक, आचरण में उत्साह, भाषा में ओजस्विता, निडरता ,निरंकुशता आदि ऊर्जावती जीवन शैली सिद्ध कर रही होती है कि जेल के मायने इनके मन में क्या हैं ?जो जेल प्रशासन की शिथिलता एवं दिनों दिन बिगड़ती जा रही देश की कानून व्यवस्था का सहज अनुमान लगा लेने के पर्याप्त सबूत देता है !धन्यवाद !बधाई लालू जी को !!!
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