रविवार, 29 दिसंबर 2013

क्या अमेठी का चुनाव केवल एक जुआँ है जिसे खेलना चाह रहे हैं कुमार विश्वास?

 कुमार विश्वास को कितना  है अपनी गुडबिल का विश्वास?

     बड़े आदमी को अपना प्रतिद्वंद्वी बना लेने का अर्थ ही बड़ा आदमी बन जाना होता है इस दृष्टि से कुमार विश्वास का राहुल गाँधी जी के सामने चुनाव लड़ना बुरा भी नहीं है ।

      सुना है कि मोदी जी को अमेठी से चुनाव लड़ने के लिए आम आदमी पार्टी के नेता ने ललकारा है।मजे की बात तो यह है कि उस नेता ने ललकारा है जिसका अपना कोई वजूद ही नहीं है यह ललकार सुनकर तो लगता है कि चुनाव उसके लिए एक मजाक से अधिक कुछ भी नहीं हैं वह किसी विश्वविख्यात नरेंद्र मोदी जी जैसे नेता को कैसे ललकार सकता है।हाँ, यदि उसे राहुल गांधी हउआ दिखाई पड़ते हैं तो लगा के देख ले एक दाँव शायद सही ही बैठ जाए अन्यथा अपना जाएगा क्या ?किन्तु मोदी जी को सोच समझकर हर निर्णय लेना पड़ता है क्योंकि उनके पास बहुत कुछ है जिसे खोने का खतरा हमेंशा रहता है !

     बचपन से संघ जैसे राष्ट्र भक्त संगठन  में पले बढ़े एवं राजनीति में तरह तरह की जिम्मेदारियों का सफलता पूर्वक निर्वहन किया है कई चुनाव अपने सेवा बल पर जीते हैं उनके किए गए विकास कार्यों की खनक विदेशों तक में सुनाई पड़ती है इस प्रकार से उनका एक गौरव है देश की एक विश्वसनीय पार्टी ने उन्हें अपना प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनाया है श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी जैसे महापुरुष जिस पद को सुशोभित कर चुके हैं उसके वे दावेदार माने जा रहे हैं कुल मिलाकर मोदी जी का एक गौरव है और उनके पास प्राशासनिक क्षमता भी है अगर ओ जनता को कोई बचन देते हैं तो वो पूरा भी करेंगे ऐसी उनसे आशा की जा सकती है क्योंकि उनका अनुभव भी है कुल मिलाकर राजनीति में उनकी अपनी एक शाख भी है  दूसरी ओर बेचारे कुमार !

    यहाँ देखना यह पड़ेगा कि अमेठी से चुनाव लड़ने के लिए मोदी जी को ललकारने वाले व्यक्ति का अपना वजूद क्या है यही न कि समाज को झूठा  लालच  देकर  फँसाना ही तो है फँसा लेंगे और करना क्या है यदि जनता ने उस झूठ पर भरोसा कर लिया तो शेर अन्यथा अटैची उठाकर चले आएँगे ये कौन सी बहादुरी हुई ! 

     मैं तो कहूँगा कि यदि इतनी ही हिम्मत थी तो पहले उस संसदीय क्षेत्र में जाकर सेवा कार्य करने चाहिए थे जिनसे प्रभावित होकर जनता वोट देती जनता की सेवा करने से ही तो पता लगता कि चुनाव लड़ने के लिए आप गम्भीर भी हैं। ऐसे तो आज अमेठी में जाकर ललकारने लगे कल कोई ऐरा गैरा आकर कहीं और के लिए ललकारने लगे फिर बनारस में कोई ललकारे ऐसे तो हो गया क्या किसी को ललकारना ही राजनीति है जिसने राजनीति को सेवा भावना से स्वीकार ही नहीं किया है ऐसी आम आदमी पार्टी और उसके नेता क्या चुनावों को मजाक समझते हैं और कुछ भी हो किन्तु अरविन्द केजरीवाल जी विनम्र हैं उनकी भाषायी सभ्यता की सराहना की ही जानी  चाहिए।

  ये अमेठी से  चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाला उनकी पार्टी का कार्यकर्त्ता जनता के द्वारा चुने जाने को केवल जुआँ समझ कर खेलना चाह रहा है क्या ये ढंग ठीक है? आखिर अमेठी की जनता के साथ उन्होंने या उनकी पार्टी ने ऐसा कौन सा अच्छा काम  कर दिया है कि जिस सेवागौरव भाव पूर्वक वहाँ से चुनाव लड़ने के लिए किसी राष्ट्रीय नेता का आह्वान कर रहे हैं वो ! सच्चाई यह है कि जिसके पास खोने को अपना कुछ है नहीं जो कुछ मिलेगा वो मिल जाएगा अन्यथा अपना जाएगा क्या ?इस जुआँड़ी प्रवृत्ति  से चुनाव लड़ना तो चुनावी परंपरा का उपहास करना है जिससे बचा जाना चाहिए । 

     जहाँ तक दिल्ली चुनावों में आम आदमी पार्टी की जीत की बात है यहाँ अन्ना हजारे की प्रसिद्धि का प्रभाव रहा है किरण वेदी जी की कुशल प्राशासनिक क्षमता से प्राप्त की गई प्रसिद्धि का लाभ मिला है यदि कहा जाए कि इन लोगों ने चुनावों में बिलकुल साथ ही नहीं दिया है किन्तु विरोध भी तो नहीं किया है इसलिए जनता ने इसे मौन समर्थन माना है।अरविन्द जी की प्रसिद्धि इस आंदोलन से पहले बिलकुल न के बराबर थी किन्तु सरकारी नौकरी में बड़ी पोस्ट पर होने के बाद जिसे त्याग कर जन सेवा के लिए उतरे हैं उसे जानने के बाद जनता का विश्वास उनके प्रति बढ़ा है जो उचित भी है किन्तु ललकार वो लोग रहे हैं जिन्हें राजनैतिक रैम्प पर चलने में चक्कर आते हों!अरे यदि इतनी ही हिम्मत थी तो दिल्ली के चुनावों क्यों नहीं कूदे !आज इसलिए बड़ी बड़ी बातें करना क्योंकि सत्ता तक दिल्ली में पहुँच गए हैं,किन्तु यह भुलाया नहीं जाना चाहिए कि यहाँ भी भाजपा से आम आदमी पराजित हुई है अर्थात भाजपा से उसकी सीटें दिल्ली में भी कम ही हैं। 

      दिल्ली में 28 सीटें पाने वाली आम आदमी पार्टी अपने को ईमानदारी का मसीहा मान रही है तो 32 सीटें पाने वाली भाजपा क्या उन्हें बेईमान लगती है भाजपा कि तीन प्रदेशों में हुई विजय एवं दिल्ली में भी सभी पार्टियों से अधिक सीटें पाने वाली भाजपा अपने को क्या बेईमान माने?आखिर क्यों हो रहा है आम आदमी पार्टी के बड़बोले शेरों  का दिमाग ख़राब?

    आखिर आमआदमी पार्टी वाले यह कैसे सोचते हैं कि उन्हें जो वोट मिले हैं वो उनकी ईमानदारी के कारण मिले हैं किंतु भाजपा को जो वोट मिले हैं वो उसकी बेईमानी के लिए मिले हैं!भाजपा को वोट देनेवाले आम आदमी के प्रति उनकी इतनी घटिया सोच क्यों है? आखिर भाजपा शासित राज्यों की आम जनता के विषय में आम आदमी पार्टी के ऐसे राजनेताओं की इतनी घटिहा सोच क्यों है यदि ऐसा न होता तो उनमें किसी राष्ट्रीय स्तर के नेता को ललकारने का दुस्साहस ही न होता ! 

        केवल आम आदमी पार्टी के कहने से भाजपा को भ्रष्ट कैसे कह दिया जाए जबकि  ईमानदारी में भाजपा अरविन्द से कहीं पीछे तो है ही नहीं यह माना जा सकता है कि आज भाजपा के कुछ वर्त्तमान नेता लोग काँग्रेसी कुटिल मानसिकता के शिकार हो रहे हैं जिन्हें सुधरने की  आवश्यकता है।

         ईमानदारी में भाजपा अरविन्द से कहीं पीछे नहीं है अपितु चार कदम आगे है यदि ऐसा न होता तो एक वोट से अटल सरकार गिरी न होती और दूसरी बात दिल्ली को छोड़कर शेष तीन प्रदेशों की विजय भी भाजपा की ईमानदारी के ज्वलंत उदहारण हैं जिसमें राजस्थान और मध्यप्रदेश में भाजपा की बड़ी विजय हुई है !

  एक और बड़ी बात यह है कि भाजपा के मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भाजपा की सरकारें पहले से ही थीं किन्तु एंटी इन्कम्बेंसी को धता बताते हुए भाजपा की बड़ी विजय आम आदमी के विश्वास पर खरा उतरने के कारण ही हुई है जबकि दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने अभी तक केवल दूसरों के दोष ही दिखाए हैं उसके पास अपना दिखाने के लिए बातों के अलावा कुछ भी नहीं था यह दुर्भाग्य ही है !क्या बिना सरकार में आए कुछ किया ही नहीं जा सकता है इसका मतलब हर किसी को कुछ करने के लिए उसकी अपनी सरकार होनी जरूरी होगी!

    भाजपा न केवल ईमानदारी पर भरोसा करती है अपितु उसके द्वारा किए गए विकास कार्यों से जनता  संतुष्ट भी है उसे किसी आम आदमी से ईमानदारी की सर्टिफिकेट की आवश्यकता नहीं है!

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