केजरी वाल जी को बहुत बहुत बधाई !
इस लिए नहीं कि वे मुख्य मंत्री बन गए हैं अपितु इस लिए कि बिना मुख्य मंत्री वाली दिल्ली को किसी काल्पनिक मुख्यमंत्री की शरण मिली या यूँ कह लें कि छाया मिली ।बहुमत मिलेगा नहीं मिलेगा वो अलग बात है काँग्रेस ने समर्थन जिसे दिया है उसे हमेंशा अपनी बात ही मनवाई है वो लोग अपने को हमेंशा राजा समझते हैं इस बात का घमंड हमेंशा उनकी बातों में झलकता है।फिर भी केजरीवाल जी न जाने क्या सोचकर उनके समर्थन से मुख्यमंत्री केजरीवाल बने हैं ऐसी भी क्या जल्दी थी ?
काल्पनिक मुख्यमंत्री शब्द के प्रयोग के पीछे का रहस्य यह है कि केजरीवाल जी की पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला नहीं है चूँकि काँग्रेस और भाजपा को वो भ्रष्ट पार्टियाँ मानते हैं इसलिए इन पार्टियों का समर्थन लेना उनके जैसे स्वच्छ पवित्र नेता को दो कारणों से शोभा नहीं देता है पहला तो उन्होंने ऐसा कह रखा है इसलिए दूसरी बात कि उन्होंने ही जिन दलों को भ्रष्ट माना है उनसे आशा कैसी और क्यों ?
जनता से सलाह लेकर सरकार बनाने की बात एक मजाक से अधिक कुछ भी नहीं हैं अपनी बातों और सिद्धांतों पर कायम रहना आपको जनता नहीं सिखाएगी आपको अपने बनाए मानकों का पालन स्वयं करना चाहिए था ऐसे तो जनता की आड़ में छिप कर बड़ा से बड़ा पाप कोई भी करता रहेगा और कह देगा कि हमने तो जनता से राय ले ली थी । सच्चाई यह है कि यदि जनता सलाह देने की ही स्थिति में होती तो ये सारी दुर्दशा अब तक क्यों भोगती ?
सबसे महत्त्व पूर्ण बात यह है कि क्या ये सच नहीं है कि जो जनता काँग्रेस को गलत मानती थी उसने केजरी वाल को वोट दिया है और जो जनता केजरीवाल की बातों पर भरोसा नहीं करती थी उसने काँग्रेस को साथ दिया है तो परस्पर विरोधी विचारधारा के वोट से बने विधायकों के समर्थन से बनी सरकार को नैतिक कैसे कहा जा सकता है ?क्योंकि काँग्रेस को वोट देने वाले लोग जिन केजरीवाल जी को पसंद नहीं करते हैं तब तो उन्होंने काँग्रेस को वोट दिया है फिर यदि काँग्रेस समर्थन के बहाने उस वोट से केजरीवाल का समर्थन करती है जो वोट केजरीवाल को पसंद नहीं करता है या यूँ कह लें कि केजरीवाल की बातों पर भरोसा नहीं करता है। उस वोटर की ताकत काँग्रेस पार्टी केजरीवाल को कैसे दे सकती है और केजरीवाल को लेना ही क्यों चाहिए क्या काँग्रेस ने अपने उस वोटर से सलाह लेकर केजरी वाल का समर्थन किया है जिसने ऐसी मुशीबत में भी काँग्रेस के प्रति समर्पित होकर उसके आठ विधायक जितवाए हैं! आखिर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उन विधायकों एवं वोटरों को बंधुआ मजदूर तो नहीं माना जा सकता है इस समर्थन में उस वोटर की भावना का सम्मान होते नहीं दिख रहा है इस लिए काँग्रेस और केजरी वाल दोनों से लोकतांत्रिक भावना के पालन में चूक हुई है!
अरविन्द जी इसी लिए कहा गया है कि जिस चीज को खाना होता है उसके प्रति घृणा नहीं पैदा की जाती है। आप चाहते तो दूसरों को भ्रष्ट और बेईमान कहने के बजाए अपनी ईमानदारी आगे बढ़ा सकते थे हो सकता है कि उससे वोट इतनी जल्दी न मिलते और सरकार न बन पाती किन्तु आपकी ईमानदारी के सिद्धांत बचाए जा सकते थे जिनके लिए व्यक्ति सारे जीवन प्रयास करता है आखिर सरकार बनाने की इतनी भी क्या जल्दी थी ।
जिन्हें आपने भ्रष्ट कहा था आज उनके गले लगना ठीक नहीं लगा! फिर भी आपकी अभिलाषा पूरी हुई आप मुख्यमंत्री बन कर प्रसन्न हैं आपकी समाज साधना सफल हुई इसके लिए आपको पुनः बधाई !धन्यवाद !!!
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