क्या यही आत्म मंथन है ?
काँग्रेसी मित्रों को ये साधारण सी बात समझ में क्यों नहीं आ रही है कि मंथन से मक्खन निकलता है यह तो सच है किन्तु मंथन के लिए दही चाहिए और दही बिना दूध के बनता नहीं है और दूध दूध भाजपाई लोग पी गए हैं अब जब दूध ही नहीं बचा तो क्या बिना दही के ही मंथन करेगी काँग्रेस ?
ऐसे मंथन से देखने वालों को भले ही लग जाए कि काँग्रेसी लोग कुछ मथ रहे हैं किन्तु इससे मक्खन तो निकलेगा नहीं फिर ये चतुर लोग मंथन के नाम पर खाली मथानी बजाने के लिए ही उतावले क्यों हुए जा रहे हैं ?
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