कलियुगी संन्यास या संन्यास में मिलावट ! क्या इसे शुद्ध करने का भी है कोई उपाय ?
अपने को संन्यासी कहने वाला कोई व्यक्ति कहे कि मैं चाहता तो PM, CM कुछ भी बन जाता अरे भाई तो बन क्यों नहीं जाते !और नहीं बनना है तो कह क्यों रहे हैं ?जरूर लार टपक रही होगी …! जिन संन्यासियों के चरणों में बड़े बड़े सम्राट नतमस्तक होते हैं उसे अपने PM, CM बनने की इच्छा पर सफाई देनी पड़े !यही कलियुगी संन्यास या संन्यास में मिलावट है !क्या इसे शुद्ध करने का भी कोई उपाय है
किन्तु ये विश्वास कैसे लिया जाए कि ऐसी कोई चाह नहीं है क्योंकि कोई व्यक्ति अपनी किसी कला से धन कमाए या व्यापार करके न्याय पूर्वक धन कमाए ऐसे गृहस्थ के लिए भी धर्मशास्त्रों में बड़े सारे विधान एवं संयम बताए गए हैं जिससे वह सामान्य स्त्री पुरुष भी सांसारिक प्रपंचों में अधिक न फँसने पावे अर्थात अपना जीवन यापन करता हुआ ईश्वयीय आध्यात्मिक भावों के प्रति समर्पित होता चला जाए ताकि बुढ़ापे में वैराग्य बोझ न बनने पावे !किन्तु जो वैराग्य अर्थात संन्यास ले ले उसे तो व्यापार आदि सांसारिक प्रपंचों में फंसने से बिलकुल रोका गया है !यहाँ तक कि संन्यासियों को कथा प्रवचनों से भी दूर रहने को ही कहा गया है इसका एक मात्र कारण संन्यास जैसे कठोर संयम एवं सर्व सम्मानित गरिमामय सनातन धर्मियों के सबसे महान व्रत की परंपरा में कोई खरोंच न आ जाए !संन्यास की प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि -
' दंड ग्रहण मात्रेण नरो नारायणो भवेत् '
अर्थात संन्यास लेने मात्र से मनुष्य साक्षात ईश्वर के समान हो जाता है ।
ये संन्यास की पवित्र प्रशंसा है किन्तु जो लोग संन्यास के आचार व्यवहारों से भटक जाते हैं अर्थात सांसारिक प्रपंचों में फँस जाते हैं विवाह कर लेते हैं या उसी तरह का कुछ और करने लगते हैं । धन कमाने के लिए व्यापार करने लगते हैं या सामाजिक कार्य करने लगते हैं राजनीति करने लगते हैं हो सकता है कि इस रूप में वो बहुत अच्छा या बहुत जरूरी कार्य कर रहे हों किन्तु ये काम तो बिना संन्यास लिए भी किए जा सकते थे ! जब इन्हीं सारे प्रपंचों में फंसना ही था तो संन्यास का उपहास कराना आवश्यक था क्या ?
हम आखिर ऐसा क्यों सोचते हैं कि सारा समाज बिलकुल अज्ञानी है समाज को कुछ पता ही नहीं है जो हम या हमारे जैसे लोग समझाएँगे समाज वही समझेगा और कोई समाज को सही समझाएगा क्यों आखिर उसे भी तो वही करना है किन्तु ये हमारा भ्रम है यह पब्लिक है यह सब कुछ जानती है इसे पता है कि संन्यास व्रत ग्रहण कर लेने के बाद भी जो व्यक्ति परिवार या व्यापार बढ़ने या बढ़ाने का काम करता है वह अपने द्वारा किए गए बमन (वोमीटिंग ,उलटी ,कै) आदि को चाटने के समान होता है अर्थात सबकुछ छोड़कर संन्यास लेने की स्वयं प्रतिज्ञा करने वाला कोई भी व्यक्ति फिर वही सब कुछ करने लगे यही तो अपनी की हुई उलटी चाटना है! यही कारण है कि पहले के चरित्रवान शास्त्रीय संत इन सांसारिक प्रपंचों से दूर रहा करते थे आज भी जिन शास्त्रीय संतों का मन पूजन भजन चिंतन मनन स्वाध्याय साधना आदि में लगता है वो आज भी सांसारिक प्रपंचों से दूर रह रहे हैं !उनके संन्यास भाव के आगे विश्व की सबसे बड़ी सुंदरियाँ ,विश्व की सबसे बड़ी संपत्तियां एवं बड़े बड़े राजा महाराजा आदि सभी नत मस्तक हो जाते हैं किन्तु वो व्रती वीर साधक ऐसे सारे समर्पणों को तुच्छ समझने के कारण ही उधर बांयीं दृष्टि तक से देखते भी नहीं हैं क्योंकि व्रती संन्यासी इस संसार का सबसे बड़ा सम्राट होता है इस गरिमा को बिलकुल भूला नहींजानाचाहिए । जैसे किसी असंयमित व्यक्ति की अच्छे अच्छे व्यंजनों को देखकर उन्हें खाने की इच्छा हो जाए और खाने के लिए यदि लार टपकने लगे जिसे देखकर सबको लगने लगा हो कि अब इसकी चटोरी जीभ रोके नहीं रुक रही है किन्तु देखने वालों से वह बार बार कहता जा रहा हो कि यदि मैं चाहता तो खा लेता किन्तु मैं खाना ही नहीं चाहता !अब देखने वाले कही हुई बात पर विश्वास करें या टपकती हुई लार पर !
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नकली संन्यासी सरकारी सुरक्षा के भरोसे जीते हैं जबकि असली संन्यासियों की ईच्छा से सरकारें बनते बिगड़ती रहती हैं !
नकली संन्यासियों को भगवान पर भरोसा नहीं होता है इसलिए ये बड़े बड़े नगरों शहरों महलों रजवाड़ों में भी सरकारी सिक्योरिटी के भरोसे ही जिन्दा रहते हैं जबकि असली संन्यासी भगवान के भरोसे ही भयानक जीव जंतुओं के बीच बियावान जंगलों में तपस्या करते हुए आनंद करते रहते हैं ! ऐसे स्वाभिमानी लोगों के आशीर्वाद के बल पर बड़े बड़े राजप्रासादों में राजा लोग सुरक्षित रहते रहे हैं जिनके आशीर्वाद और शाप दोनों में बल हुआ करता था उन चरित्रवान तपोमय देव तुल्य संन्यासी महापुरुषों की प्रजाति ही समाप्त होने की कगार पर है ।
असली शास्त्रीय संन्यासियों के लक्षण
संन्यासियों या किसी भी प्रकार के महात्माओं को काम क्रोध लोभ मोह मद मात्सर्य आदि विकारों पर नियंत्रण तो रखना ही चाहिए यदि पूर्ण नियंत्रण न रख सके तब भी प्रयास तो
पूरा होना ही चाहिए।वैराग्य की दृढ़ता दिखाने के लिए कहा गया कि स्त्री यदि
लकड़ी की भी बनी हो तो भी वैराग्य व्रती उसका स्पर्श न करे.....! see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2013/06/blog-post_6671.html
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