सोमवार, 26 मई 2014

हो गया चुनावी होली का त्यौहार खूब चला आरोपों प्रत्यारोपों का रंग गुलाल ! किन्तु गली गलौच का कीचड़ भी चला !

     हो गया चुनावी होली का त्यौहार खूब चला  आरोपों प्रत्यारोपों का रंग गुलाल सो  बहुत  मस्ती भरा रहा लोकतंत्र का यह त्यौहार सारे देश वासियों ने  बहुत धूम धाम से मनाया खूब आनंद लिया, किन्तु कुछ जो गाली गलौच आदि का कीचड़ चला इसे छोड़ कर बाकी सब कुछ बहुत अच्छा हुआ !गाली गलौच हमारी परंपरा नहीं है इससे यह सोच कर बचा जाना चाहिए था कि हो न हो जिसे हम गाली दे रहे हैं वही कल हमारे  देश का प्रधानमंत्री  बने   तो क्या सम्मान रह जाएगा हमारे प्रधानमंत्री और हमारे देश का !

     इन चुनावों में अबकी बार हुआ भी यही  जिसे पिछले दस वर्षों से अपशब्द कहे जा रहे हैं इन चुनावों के प्रचार में तो अपशब्द प्रयोगों की अति ही हो गई कैसी कैसी  गलियाँ नहीं दी गईं भाजपा के प्रधान मंत्री प्रत्याशी को ! पशुओं तक से तुलना की गई ! हत्यारा कहा गया  ! गधा ,कुत्ता आदि क्या क्या नहीं बोला गया ! कुछ पार्टियों ने तो अपने  यहाँ  गाली देने वाले ऐसे ऐसे स्पेस्लिस्ट   रखे थे  कि उनके मुख के सामने माइक लगाते  ही पता चल जाता  था कि ये अब गाली देंगे ऐसे लोग पता नहीं कितनी  गंध खा कर पैदा किए गए थे कि जिन्हें  होश ही नहीं रहता है कि वे इंसान की संतान हैं इसलिए भाषा तो अपनी बोलें ! क्या  प्रेरणा लेंगी  ऐसे लोगों से भावी पीढ़ियाँ !

      खैर ! प्रसन्नता की बात यह है कि अबकी बार जनता ने गाली गलौच करने वालों को मुख ही नहीं लगाया जिससे  संसद की  न केवल पवित्रता  बची अपितु समाज को एक  सबक भी मिला कि अब हमें जीवन मूल्यों को भी महत्त्व देना होगा !

कोई टिप्पणी नहीं: