मंगलवार, 27 मई 2014

साधू संत तो शांत हैं किन्तु अब बाबाओं में हड़कम्प मचा है !

बाबाओं बबाइनों पर कानूनी शिकंजा कसते ही पाखंडियों में खलभली मची है !

 धनवान योगी,व्यापार करने वाला  साधू तथा संतानवाले  ब्रह्मचारी का कितना विश्वास !

    जहाँ  माया मोह छोड़ने की कसम खाने वाले बाबा हजारों करोड़ के मालिक हों फिर भी वो ये न मानते हों कि वो काले धन से धनी हैं साधू के पास अच्छा धन तो हो ही नहीं सकता क्योंकि साधू के लिए व्यापार वर्जित है और बिना व्यापार धन आएगा कहाँ से !वैसे भी साधुओं के लिए धन संग्रह का निषेध है फिर भी जो लोग इस  शास्त्रीय संविधान को नहीं मानते उन साधुओं का सारा धन  ही काला धन होता है और ऐसे काले धन से धनी बाबा लोग धन की धमक के बल पर जहाजों पर चढ़े  घूमते एवं बड़े बड़े  आयोजन करते हैं फिर भी कोई बाबा कहे कि मेरे पास पैसे नहीं हैं तो ये उतना ही बड़ा झूठ है जितना कई संतानों का पिता अपने को ब्रह्मचारी कहता हो`!

     आम आदमी और साधू में यही अंतर होता है कि आम आदमी गृहस्थ होता है और साधू विरक्त होता है दूसरी बात आम आदमी व्यापार आदि करके नैतिक अनैतिक आदि सभी प्रकार से धन जुटाता है फिर उसकी सुरक्षा के लिए नेताओं अफसरों के पीछे दुम हिलाता घूमता है किन्तु साधू इस प्रपंच से दूर रहता है इसीलिए ऐसे सारे प्रपंचों में फँसे हुए किसी साधू व्यक्ति को शास्त्र मानते हैं कि वो पतित हो गया है और कोई पतित व्यक्ति क्या देश एवं समाज को दिशा दे पाएगा ! यदि उसे कुछ देना ही होता तो संस्कार देता जिससे बलात्कार रुकते किन्तु संस्कारों की अपेक्षा भी उससे की जानी चाहिए जिसके  पास  स्वयं में संस्कार हों किन्तु उन भयभीत बाबाओं से क्या अपेक्षा जो अपनी भोग वृत्तियों के पोल खुलने के भय से स्वयं नेताओं के साथ लिपटे घूम रहे हों !

     जैसे बिना पढ़े लिखे लोग अपनी पहचान एक ज्योतिषी के रूप में बनाने के लिए टी.वी.चैनलों में ज्योतिष ज्योतिष करके कुछ न कुछ बोलने बकने लगते हैं ,इनमें से कुछ तो ज्योतिष पढ़ाने का नाटक करने लगते हैं इस प्रकार की कलाएँ करने से लोग समझेंगे कि ये यदि ज्योतिष पढ़े न होते तो ज्योतिष पढ़ाते कैसे आदि आदि ! इसी प्रकार से दूसरों को बेईमान बेईमान कहने से लोग सोचने लगते हैं की जरूर ये ईमानदार होंगें तब तो बेइमानों  के विरुद्ध आवाज उठा रहे हैं !

     कोई योगी या संत राजनीति के लिए इतना पागल कभी नहीं हो सकता कि वो लोगों को गालियाँ देता फिरै आखिर साधू संतों की कुछ तो मर्यादा होती ही है ! कलियुग का प्रभाव आजकल तो धर्म पर भी इतना अधिक दीखने लगा है कि राजनीति करने के लिए पहले स्वयं तो पाप पूर्वक धन एकत्रित करेंगे  और जब अपना कोटा फुल हो जाए तो दूसरों के धन को काला धन - काला धन कहकर शोर मचाने लगेंगे  ताकि लोग उन्हें  ईमानदार समझते रहें ! इसी प्रकार से कृत्रिम ईमानदारवाद की सीढ़ियों पर चढ़ कर राजनीति में दखल बनाया जा सके !क्योंकि राजनैतिक दखल के बिना देखो आशाराम जी को !

       आज आशाराम जी के पास भी कुछ अपने सांसद होते तो काहे को भोगते बिचारे ये दुर्दशा !ये बात सन 2014  के चुनावों में इस प्रकार से हावी रही कि "साधू संत तो शांति पूर्वक भजन करते रहे किन्तु बाबा बिचारे बौखलाते घूमते रहे " अपना अपना पाप छिपाने के लिए कुछ लोग तो राजनीति में खुद कूदने के लिए आतुर रहे कुछ अपने चेला चेलियों को चुनाव लड़वाने के लिए एड़ी छोटी का जोड़ लगाए रहे ताकि मौके बेमौके  कोई दबी ढकी पोल खुलने ही लगी तो सरकारों पर दबाव बनाने के लिए मौके पर काम तो आएँगे ! इसी भय से तो कुछ बाबाओं ने अपने चेला चेलियों को जिताऊ समझी जाने वाली पार्टियों  से टिकट खरीद खरीद कर दिए ! 

      हुआ ये कि दिल्ली के किसी  क्षेत्र में एक दिन एक चौक पर मैं खड़ा था तो कुछ लोग एक प्रत्याशी महोदय के विषय में  आपस में चर्चा करते हुए कह रहे थे कि यार अपने ये प्रत्याशी तो पहले कभी अपनी पार्टी में देखे सुने ही नहीं गए थे अभी 6 महीने पहले भी इनका कहीं अता  पता नहीं था आज ये अचानक टिकट लेकर आ गए कैसे मिली इन्हें टिकट ! पार्टी के बीसों वर्ष पुराने कार्यकर्ता बेचारे देखकर रह गए ! तो पता लगा कि ये श्री श्री 3005 स्वामी जी महाराज के चेला हैं इसलिए ये उन्हीं का टिकट है जो यहाँ से लड़ा जा रहा है सुना जा रहा है कि  इसका पेमेंट बाबा जी ने ही किया है वे ध्यान सिखा सिखा कर पैसे कमाते हैं और अपना ऐश करते हैं जोड़ें भी तो किसके लिए कोई आगे पीछे तो है नहीं ! सुना है कि आजकल बाबा जी बहुत घबराए हुए हैं ! कुछ लोग तो अपने चेला चेलियों को कितना भी पैसा खर्च करके मंत्री वंत्री भी बनवाने की फिराक में भी लगे हैं !

      धर्म और योग में इस प्रकार का पाखण्ड इतना अधिक घुलमिल गया है कि  धर्म और योग का वास्तविक स्वरूप विलुप्त सा होता जा रहा है धर्म का चोला ओड़कर घूमने वाले डुप्लीकेट धार्मिक लोग समाज को संस्कार देने के नाम पर कुछ कर नहीं पा रहे हैं जिसका दुष्प्रभाव है कि समाज में अपराध कुसंस्कार ब्यभिचार आदि बढ़ता चला जा  रहा है।  कठोर से कठोर कानून भी निष्प्रभावी होते जा रहे हैं, फाँसी जैसी कठोर सजा होने पर भी लोग संयम लेने को तैयार नहीं हैं, अपने मन पर लोगों का नियंत्रण  समाप्त हो चुका है मन दूषित हो चुके हैं जिन्हें निर्मल करने का एक मात्र रास्ता धर्म और अध्यात्म है किन्तु धर्म और अध्यात्म के संस्कार देने वाले महापुरुष विलुप्त से होते जा रहे हैं जो हैं भी उनकी बातों का उतना असर ही नहीं हो पा रहा है जितना होना चाहिए अन्यथा बलात्कारों को रोकने के लिए फाँसी जैसा कठोर कानून क्यों बनाना पड़ता ! संत लोग तो अपने सुदृढ़ संस्कारों के आधार पर ही समाज को सुसंस्कारित करते रहे हैं और सुसंस्कारित समाज में होने वाले नेता भी सुसंस्कारित ही होंगे ! और सुसंस्कारित नेता लोग देश भक्त होंगे तो वो अपने देश का धन विदेशों  में जमा ही क्यों करेंगे !

     समाज को सुधारने में कहाँ क्या और कैसे चूक हो रही है ये बेहतर ढंग से तो तपस्वी महापुरुष ही बता सकते हैं किन्तु बाबाओं के विषय में मेरा निजी मानना है कि वे स्वयं वैसा आचरण नहीं कर पा रहे हैं जिसकी समाज को आज आवश्यकता है या जो किसी योगी या संत को करने चाहिए इसीलिए बलात्कार के आरोपी एक बाबा जी अपने पुत्र के साथ जेल में हैं उन्होंने भी लम्बे समय तक दूसरे के दोष खोजने में ही अपना जीवन बर्बाद कर डाला और अपने दोष छिपाते रहे किन्तु यदि पाप हैं तो कभी न कभी तो सड़ांध मारेंगे ही आखिर कब तक छिपाए जा सकेंगे वही अब मार रहे हैं अब जनता पूछ रही है कि बाबा कहाँ गया आपका योग और सत्संग !

      आप स्वयं सोचिए कि जो योगी होगा वो योग का पालन स्वयं भी तो करेगा !बंदरों की तरह उछल कूद वाली शरारतें या कलाएँ या ऊट पटांग ढंग से हाथ पैर दे दे मारना योग है क्या !

योगश्चित्त वृत्ति निरोधः - 

योग  तो चित्त वृत्तियों का खेल है किन्तु अपने को योगी कहने वाला कोई भी बाबा राजनीति के लिए भूत बना हो, व्यापार करने में तत्पर हो, धन संग्रह में गिद्ध दृष्टि लगाए हो फिर भी दिनभर झूठ बोलता हो कि हमारे पास तो कोई पैसा ही नहीं है अरे ! ये कोई मानने वाली बात है ,क्या आम आदमी जहाजों से घूम सकता है इतनी बड़ी बड़ी भोग पीठें बना सकता है बहुत बड़े उद्योगपति के पास भोग विलास के जो संसाधन हों वो सारे जोड़कर कुंडली मारे बैठा हुआ कोई मजा मजाया झूठा प्रपंची ही अपने को योगी या संत आदि कह सकता है ऐसे लोगों का बात व्यवहार रहन सहन बड़े बड़े उद्योग पतियों जैसा है सारी  भोग सामग्रियों का संग्रह भी उसी प्रकार से किया गया है जिसे ये सारे भोग भोगने नहीं होंगे वो इनका संग्रह ही क्यों करेगा ?

      जहाँ तक बाबाओं के द्वारा राजनेताओं के द्वारा की जाने वाली मदद की बात है उस विषय में तो यह कह पाना बहुत कठिन है कि ऐसे योग प्रसिद्ध रोगियों की डील कब कहाँ और कैसे फिसल जाए और वो कब देने लगें  गालियाँ !

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