वे दलित बेटियाँ क्यों समूचे भारत की बेटियाँ हैं ?वो हमारी और आपकी बेटियाँ हैं !
उत्तर
प्रदेश के बदायूँ में दो बेटियों के साथ जो दारूण अत्याचार किया गया है
उससे सारी मानवता शर्मसार है देश की संस्कृति शर्मसार है देश का धर्म
शर्म सार है देश की शिक्षा पद्धति शर्मसार है सारा समाज शर्मसार है !
हमारी बनाई हुई लचर नीतियों के कारण इतना अत्याचार सह रही हैं बेटियाँ ! सच कहूँ तो बरेली में किए गए बेटियों पर अत्याचार और पेड़ों पर लटके हुए उन बेटियों के शरीर देख कर तो मरने का मन करता है आत्मा धिक्कारती है कि ऐसे समाज का अंग हैं हम !जहाँ संवेदन हीनता इस चर्म पर पहुँच चुकी है!
अब समय आ गया है जब केवल सरकारों को कोसना छोड़कर अपनी जिम्मेदारी स्वीकारने एवं उसके निर्वाह करने का समय आ पहुँचा है ! क्या लाभ हुआ आखिर हमारे आपके ज़िंदा रहने का और यदि समाज के किसी काम नहीं आ सके ! इनका जीवन बचाया तो नहीं जा सका क्या इनके प्रति हमारा कोई दायित्व नहीं था क्या ? ऐसा तो जंगली लोगों में भी कभी नहीं होता होगा पहले शारीरिक दारूण दुर्व्यवहार फिर ऐसे अनाथों की तरह पेड़ों पर लटका दिया जाना ! घोर दुःख है हमें ऐसे आत्मबिहीन समाज का अंग होने पर ! इस असह्य वेदना को व्यक्त करने में साथ छोड़ रहे हैं शब्द !
अब सरकारों से हमारी कोई माँग नहीं है आखिर उन्होंने महिलाओं की सुरक्षा के लिए जो कठोर कानून पास कर दिया है यही हम पर उनका बहुत बड़ा अहसान है !आखिर सरकारों से क्यों कुछ माँगा जाए क्या उनकी आँखें अंधी हैं उन्हें नहीं दिखाई पड़ते ये पेड़ों से लटकते हुए बेटियों के शरीर !क्या इसीलिए सरकारों में आए थे वे !
अब मैं जिम्मेदार अधिकारियों से पूछना चाहता हूँ कि ये बेटियाँ आपकी नहीं हैं क्या ! आखिर क्या कर रहे हैं आप ! जब आप कुछ कर ही नहीं सकते तो किस बात के अधिकारी ! अपराधी वर्ग के मन में कानून का भय आखिर क्यों नहीं है आखिर क्यों वो सोचते हैं कि धन जन एवं सोर्स बल से बड़े से बड़े अपराध को दबा दिया जाएगा!अपराधियों की ये भावना क्या अधिकारियों की कर्तव्य निष्ठा पर प्रश्नचिन्ह खड़े नहीं करती है ! चुनौती है तुम्हें आखिर कब तक देखते रहोगे पेड़ पर लटकती बेटियों के शरीर ! क्या तुम्हारी आत्मा इतनी मर चुकी है कि तुम्हें कभी नहीं धिक्कारेगी !
मैं भारत के प्रत्येक ग्राम एवं मोहल्ला समाज को पूछना चाहता हूँ आखिर आप इतने असहाय क्यों हैं आप अपनी आपसी एकता के द्वारा सात्विक समूहों की संरचना करके अपनी सुरक्षा स्वयं करने का प्रयास क्यों नहीं कर सकते पहले भी तो करते रहे हैं आप अपराधियों का सामाजिक बहिष्कार क्यों न किया जाए !
इस प्रकार के अपराध सरकारी शिक्षा की भी सौगात कहे जा सकते हैं जहाँ स्कूल समय से नहीं लगते अध्यापक प्रतिदिन स्कूल नहीं पहुँचते और यदि जाते भी हैं तो समय से नहीं जा पाते हैं गए भी तो कक्षाओं में नहीं जाते हैं गए भी तो पढ़ाते नहीं हैं स्कूल से जल्दी चले आते हैं ऐसे काम चोरों के चेले आखिर कहाँ से पावें संस्कार ! क्या सरकारी शिक्षकों की कोई जवाब देही नहीं होनी चाहिए !शिक्षकों को स्वयं समझ में नहीं आ जाना चाहिए कि आपकी करनी का फल भोग रहा है समाज !
श्री श्री 1000000008 बड़े बड़े भोग गुरुओं को समझ में नहीं आना चाहिए कि आखिर आप क्या यही सिखा रहे हैं समाज को !आपने आश्रमों को होटल बना लिया, अपने को उद्योगपति बना लिया, भजन को व्यापार बना लिया, बंदरों की तरह छड़कने मटकने को योग बना दिया आखिर धन के पीछे क्यों पागल हो रहे हैं आप ! बाबा जी ! यदि पेड़ पर लटकती लड़कियों के शरीर देखकर आपकी आत्मा भी धिक्कारे तो आप भी कुछ कीजिए समाज के लिए !
फिल्मी जगत से जुड़े लोगो! समाज में प्यार के ऊल जुलूल किस्से कहानियाँ दिखा दिखा कर चौपट कर दिया है समाज को !अगर आपके कानों तक भी पहुँची हो इन बेटियों की आवाज तो आप भी कुछ कीजिए! आप लोग धंधा बहुत कर चुके अब कुछ धर्म भी कीजिए अन्यथा समाज का ताना बाना समाप्त होने की कगार पर है हो सके तो मिलजुल कर बचा लीजिए यह समाज !
कुल मिलाकर समाज की जागरूकता ,स्कूलों में शिक्षा के संस्कार, साधुओं के धार्मिक संस्कार , अधिकारियों की अपराध विरोधी सोच एवं कर्तव्य, फिल्मी जगत से जुड़े लोगों तथा सरकारों का नैतिक अनुशासन इन सबके सामूहिक प्रयास से अभी भी संभव है सुधार !
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