गुरुवार, 29 मई 2014

मोदी जी ! भाई भतीजावाद यदि इतना बुरा है तो छोटी बहन स्मृति ईरानी प्रकरण पर आप मौन क्यों हैं ?

     स्मृति ईरानी जी के चुनाव हार जाने के बाद भी उन्हें मंत्री बनाया जाना ऊपर से उनका मानव संसाधन मंत्रीत्व ,उसके ऊपर से उनके डिग्रियों  में गड़बड़ी  ऊपर से उनका  पक्ष लेने को तैयार हुई उमा भारती जी  जिनकी अपनी शैक्षणिक योग्यता अत्यंत अल्प है समझ में नहीं आ रहा है कि उन्होंने सोनियाँ जी की शिक्षा पर जो प्रश्न उठाया है वो अपनी सफाई में है या स्मृति जी की खैर जो भी हो किन्तु इस विषय में भी जनता तक कोई विश्वसनीय मजबूत सन्देश दिया जाना चाहिए ताकि समाज भी तो  समझ सके कि वास्तविक स्थिति क्या है !

  मोदी जी ! आपने सुरक्षा ले रखी है अपनी पार्टी के सीनियर  लोगों को सुरक्षा दी गई है ,रहे बचे अपने दुलारे पिआरे बाबा रामदेव उन्हें भी सिक्योरिटी दे दी है बाकी  देशवासियों को क्या केवल भाषण ही देते रहेंगे या उन्हें भी कुछ सिक्योरिटी वगैरह देंगे ?आपकी दृष्टि में आम आदमी की जान की भी कोई कीमत है क्या ?            वैसे भी आपकी सुरक्षा सम्बन्धी इस चिंता को देखकर ये तो लगता है कि देश में सुरक्षा के सम्बन्ध में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है किन्तु सुरक्षा केवल अपनी और अपनों की !बाकियों की जिम्मेदारी किसकी है इस  भाई भतीजा वाद का विरोध करने वाले  लोगों ने  सुरक्षा ले ली और  अपने बाबा जी को दे दी बाकी देश वासी कहाँ जाएँ ! माननीय मोदी जी ! जब भाई भतीजे वाद से सरकार को दूर ही रहना था तो आप भी थोड़ा और बच लेते तो क्यों होती ये फजीहत आज!आज तो हर कोई पूछ रहा है कि रामदेव को खतरा आखिर क्या है क्यों दी गई उन्हें ऐसी सुरक्षा ?और आम लोगों को क्यों नहीं ?

   इसीप्रकार से आखिर अपनी छोटी बहन को न बनाते मंत्री और बनाना ही था तो मानव संसाधन मंत्री बनाने से बच लेते क्योंकि वहाँ तो शिक्षा की कसौटी ही होती है वैसे भी शिक्षा विभाग की बहुत दुर्दशा है यहाँ कोई अनुभवी व्यक्ति चाहिए था वो शायद ही कुछ कर पाता यद्यपि हमें तो उम्मीद बहुत कम ही बची है कि शिक्षा विभाग का कुछ हो पाएगा !

        मानव संसाधन मंत्री  की शैक्षिक योग्यता तो ठीक होनी ही चाहिए थी क्या इतने सांसदों में कोई पढ़ा लिखा विश्वसनीय  एवं कर्मठ व्यक्ति नहीं मिला आपको! स्मृति ईरानी जी मिलीं जिन्हें जनता के मतों से चुनावों में विश्वास भी नहीं प्राप्त हुआ है वो तो खैर कोई बात नहीं अरुण जेटली जी ,शाहनवाज हुसैन  जैसे अन्य जनता के फेल किए गए लोगों को भी आपने पास कर लिया है वो तो काँग्रेस में प्रधान मंत्री जी भी ऐसे ही पास कर लिए जाते थे ! किन्तु उस समय अपनी पार्टी के नेता लोग इस बात के लिए उनकी आलोचना किया करते थे इसलिए काँग्रेस से अलग हट कर  काम करने की आपसे तो अपेक्षा है किन्तु ये सब कुछ तो केजरी वाल की तरह होता दिख रहा है, स्मृति जी की शैक्षिक योग्यता पर विपक्ष भगदड़ मचा रहा है सत्ता पक्ष के बहुत बोलने वाले नेता भी आज मौन हैं न जाने कहाँ चला गया हुंकार फुंकार रैली करने वाला वह ज्वलंत जोश ?

     अपनी पराजय से परेशान काँग्रेस जो कई महीनों तक जनता की आँखों से आँखें मिलाने लायक भी  अपने को नहीं समझती थी वही काँग्रेस आज अचानक और बिना कोई प्रयास किए ही न केवल जीवित हो गई है अपितु नैतिकता की दुहाई देकर ललकारने भी लगी है अभी तो एक सप्ताह भी नहीं हुआ है पार्टी के कार्यकर्ता अभी तो जीत का जश्न भी सँभलकर नहीं मना पाए हैं लोग उनसे पूछने लगे हैं कि तुम्हारी शिक्षा मंत्री उच्च शिक्षित क्यों नहीं हैं , उन्होंने 2004 तथा 2014 के लोकसभा चुनाव के हलफनामों में शैक्षिक योग्यता की अलग-अलग जानकारी क्यों दी है आखिर कोई एक तो गलत होगी ही ! आखिर किसी से क्या कहें कार्यकर्ता ?

    यदि मंत्री पद पाने के लिए शैक्षणिक योग्यता आधार बनी तो अल्प शिक्षित उमा भारती जी को अपनी चिंता बढ़ रही होगी जो वे स्मृति जी का पक्ष लेने के नाम पर सोनियाँ गाँधी जी  की योग्यता पूछने लगीं ! आखिर क्यों यह प्रश्न तो जनता के मन में भी कौंध रहा है जवाब काँग्रेस को मिले न मिले किन्तु जनता को तो मिलना ही चाहिए जिसने आपको प्रचंड बहुमत दिया है किन्तु अभी तक नहीं आ पाया है कोई सार्थक एवं विश्वसनीय उत्तर !वहीं दूसरी तरफ योग्यता विवादों पर चुप्पी तोड़ते हुए स्मृति ईरानी ने कहा कि "संगठन और पार्टी ने मेरी योग्यता को परख कर ही मेरा चुनाव किया है। मेरी शिक्षा नहीं बल्कि मेरे काम को देख कर ही मुझे जज करें।"

      माननीय मोदी जी ! यह स्मृति जी ठीक कह रही हैं क्या कि संगठन और पार्टी ने उनकी योग्यता को परख कर ही उनका चुनाव किया है।मैं केवल इतना जानना चाहता हूँ कि स्मृति जी की योग्यता की जाँच परख में पार्टी से कहीं कोई चूक हुई है या पार्टी इस विवाद को बेकार एवं स्मृति जी को ठीक मानती है क्या जनता ऐसा करे तो उसे भी ऐसे प्रकरणों में छूट मिल पाएगी !

       दूसरी बात स्मृति जी ने कही है कि 'मेरी शिक्षा नहीं बल्कि मेरे काम को देख कर ही मुझे जज करें' क्या उनके इस तर्क से मोदी जी आप सहमत हैं ! यदि मंत्री  जी के विषय में  केवल  उनका काम ही प्रमाण माना जा सकता है तो ये पद्धति सरकारी प्राथमिक स्कूलों में भी लागू की जा सकती है क्योंकि छोटे बच्चों को तो सभी पढ़ा सकते हैं या जो पढ़ाना और परिश्रम करना चाहें उन्हें अवसर दिया जाना चाहिए इससे तो बहुत ग़रीबों का भला हो जाएगा साथ ही बच्चों की पढ़ाई भी अच्छी हो जाएगी अन्यथा सरकारी स्कूलों में शिक्षक प्रत्येक दिन पूरे समय तक होते ही  कहाँ हैं  होते हैं तो पढ़ाते नहीं हैं तो स्मृति जी वहाँ भी क्या काम के आधार पर शिक्षकों की नियुक्तियाँ हो सकेंगी क्या !

 

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