बुधवार, 28 मई 2014

चुनावों में मोदी जी के सामने कहाँ ठहरते थे नौसिखिया राहुल गाँधी और बड़बोले केजरीवाल !

काँग्रेस की हार पर आज तकरार क्यों ! आप क्या समझते थे कि नौसिखिया राहुल गाँधी जी मोदी जी को चुनाव हरा देंगे !

     ऐसी परिस्थिति में यदि मोदी जी प्रधानमंत्री बन गए तो आश्चर्य किस बात का ! काँग्रेस को इसके लिए पहले से तैयार रहना चाहिए था ।जो पार्टी ढंग का एक ठीक ठाक पी.एम.प्रत्याशी तक चुनाव मैदान में नहीं उतार  सकी उससे जनता आगे और क्या आशा और अपेक्षा  करती ! इसलिए मोदी जी के प्रधान मंत्री बन जाने से काँग्रेस के मित्रों को आज परेशान होने की आवश्यकता नहीं है! क्योंकि इसमें कुछ भी अप्रत्याशित नहीं हुआ है वैसे भी वो गलती तो तभी से हो रही थी जब योग्य अनुभववान  बयोवृद्ध सम्मान्नित कांग्रेसी पदाधिकारी गण राहुल जी! राहुल जी! कह कर पीछे पीछे दुम हिलाए जा रहे थे यहाँ तक कि जब राहुल ने बिल फाड़ने की बात की थी वो भी मीडिया के सामने, तब किसी का साहस विरोध करने का क्यों नहीं हुआ! बिल पास होता न होता बात वो नहीं थी बात मान सम्मान से जुड़ी थी सरकारी मंत्रियों की प्रतिष्ठा का प्रश्न था,यदि ऐसा भी करना था तो भी ये सब मीडिया के सामने होने से तो बचाया ही जा सकता था कम से कम मंत्रिमंडल के सामूहिक निर्णय का अपमान इस ढंग से नहीं होता तो अच्छा होता! इससे काँग्रेस का अपना एक बड़ा नुक्सान यह हुआ है कि जिसके पास अपनी पात्रता नहीं थी उसने औरों को भी वैसा ही सिद्ध कर दिया जो ठीक नहीं हुआ भले ही राहुल जी ने अच्छा काम किया हो किन्तु ढंग बिलकुल  ठीक नहीं था ।       

     कुल मिलाकर मोदी जी को चुनावी चुनौती देने वाला कोई प्रत्याशी इस बार चुनाव मैदान में था ही नहीं ! राहुल  और केजरीवाल  कोई चुनौती माने जा सकतें हैं क्या ! ये  मोदी जी के सामने कहीं नहीं ठहरते थे।  मोदी जी ने 15 वर्षों तक सफल शासन  चलाया है वैसे भी बचपन से उन्होंने जन साधना के अलावा और  किया ही क्या है ! एक ओर तो मोदी जी जैसा राजनैतिक  दिग्गज था तो दूसरी ओर सामान्य मंत्रालयों तक के अनुभवों से विहीन राहुल और  केजरीवाल थे ये अजब गजब मुकवला था इनकी तुलना क्या थी मोदी जी के साथ !  आखिर देश का प्रधान मंत्री पद कोई हँसी खेल तो नहीं होता है ।    

     मेरा निजी मत है कि इस हिसाब से यदि देखा जाए तो मोदी जी ये चुनाव जीते नहीं अपितु निर्विरोध  प्रधानमंत्री चुने गए हैं !वैसे भी ऐसे कहीं चुनाव होते हैं जहाँ कोई टक्कर देने वाला ही न हो !भला हो अमेठी और राय बरेली के मतदाताओं का जिन्होंने यशस्वी पूर्वजों का मुख देखकर इनसे सांसद कहलाने का हक़ नहीं जाने दिया अन्यथा तब क्या होता जब ये परिवार संसद से बाहर रहकर इस पराजय पर मातम मना रहा होता !

       सारांशतः काँग्रेस को अपना प्रत्याशी चयन करते समय मोदी जी की योग्यता के इन आवश्यक विन्दुओं  पर विचार क्यों नहीं करना चाहिए था !क्या ये  बातें  कुछ मायने ही नहीं रखती थीं !

    U.P.A. के अनुभव विहीन पी.एम.प्रत्याशी के निष्प्रभाव से मिला N.D.A. को प्रचंड बहुमत !क्योंकि U.P.A.के पी.एम.प्रत्याशी की  ओर से N.D.A. के पी.एम.प्रत्याशी के लिए कोई चुनौती ही नहीं थी ! 

     U.P.A. ने जिस गैर जिम्मेदारी से  एक नौसिखिया व्यक्ति को डायरेक्ट प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनाया उसका समर्थन जनता आखिर कैसे कर सकती थी !उधर प्रधानमंत्री जी ने चुनावों से पहले ही अपना सामान  बांधना प्रारम्भ कर दिया था आखिर इतनी भी जल्दी क्या थी इससे भी समाज में ठीक सन्देश नहीं गया !जिसने दस वर्ष शासन किया हो उसे जनता की आँखों में आँखें डालकर बात तो करनी ही चाहिए थी मुख छिपकर भागना क्यों ? जनता को सफाई तो देनी ही चाहिए थी कि आखिर उनसे चूक कहाँ हुई है किन्तु जो समय पूरे देश में घूम घूम कर चुनावी सभाओं के माध्यम से समाज के सामने सफाई प्रस्तुत करने का था उस समय वो अपने जाने की तैयारी कर रहे थे !इन सब आचरणों को देखकर तो ऐसा लग रहा था कि विरोधी पार्टियाँ तो काँग्रेस को मात्र प्रधान मंत्री पद से हटाना चाह रही थीं किन्तु काँग्रेस पार्टी स्वयं ही  प्रधानमंत्री पद छोड़कर भागने को तैयार थी ऐसे कहीं लड़े जाते हैं चुनाव !

        आप स्वयं देखिए - काँग्रेस ने अपने प्रति जनता के आक्रोश के कारण अपनी पराजय जानते हुए भी कल्पित पी.एम.प्रत्याशी के रूप में राहुल गांधी को प्रचारित कर रखा था ! किन्तु जनता का सोचना यह था कि यदि राहुल कुछ करने लायक ही होते तो अभी तक U.P.A. के कार्यकाल में वो बहुत कुछ करके दिखा सकते थे और जब वो तब कुछ नहीं कर पाए तो उन्हें अब वोट क्यों देना! 

      जो कभी मंत्री न रहा हो मुख्यमंत्री  भी न रहा हो  ऐसे अनुभव विहीन बिलकुल कोरे नौसिखिया व्यक्ति को U.P.A.डायरेक्ट प्रधानमंत्री बनाने के लिए तैयार कैसे हो गया ?ये तो जन भावनाओं एवं प्रधानमंत्री पद की गरिमा के साथ खिलवाड़ है !इस प्रकार से राहुल के प्रति जनता के मन में आक्रोश होना स्वाभाविक था !अपनी इसी जिद्द में जनता ने U.P.A. को बहुत बुरी तरह से हराया है  को और उसी अनुपात में N.D.A. को जीतना ही था इसलिए N.D.A. और भाजपा को मिला प्रचंड बहुमत !

    U.P. में भी जनता ने विरोध तो U.P.A. में सम्मिलित पार्टियों (सपा ,बसपा और काँग्रेस) का किया है किन्तु उससे फायदा भाजपा को हो गया, क्योंकि U.P.A.के विरुद्ध U.P.में भाजपा के अलावा और कोई पार्टी थी ही नहीं ! ऐसी  परिस्थिति में U.P.A.का विरोधी वोट जाता तो और कहाँ जाता !किसी को तो मिलना ही था सो वो भाजपा को मिला!

     इसलिए चुनाव घोषित होने के बाद मुझे तो कभी नहीं लगा कि   प्रधानमंत्री प्रत्याशी के रूप में मोदी जी के सामने कोई बहुत बड़ी चुनौती थी ! जिसे अपने बर्चस्व से फतह करके मोदी जी ने पाया है यह प्रचंड बहुमत ?

     किन्तु ऐसा तो था नहीं बल्कि कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री प्रत्याशी के रूप में मोदी जी के सामने उनके कद के हिसाब से बहुत बड़ी क्या अपितु कोई चुनौती ही नहीं थी ! क्योंकि सामने वालों का ऐसा कोई अनुभव या कद था ही नहीं !

      सन 2014 के चुनावी अखाड़े में प्रधान मंत्री प्रत्याशी के रूप में प्रचार पाने वाले जो तीन प्रमुख नाम थे उनमें मोदी जी  से  अन्य लोगों की तुलना ही क्या थी ! मोदी जी सफलता पूर्वक इतने वर्षों से न केवल सरकार चला रहे हैं अपितु उन्होंने गुजरात का विकास भी किया है । केजरी वाल ,राहुलगाँधी और मोदी जी में मोदी जी के सामने केजरी वाल और राहुलगाँधी दोनों की ही उम्र बहुत कम है अनुभव बिल्कुल नगण्य है लड़कपन इतना अधिक है कि एक ने बिल फाड़ने की बात की तो दूसरा अनशन के नाम पर अपनी सरकार को रजाई में लिपेटे रात भर रोड पर पड़ा रहा ये दुनियाँ ने देखा है ! ये भी कोई सरकार चलाने का ढंग है क्या ? आप ही बताइए कि जनता ऐसे लोगों को कैसे चुन लेती अपना प्रधान मंत्री ?

        इसलिए इन चुनावों में  मोदी जी ही एक मात्र प्रभावी प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी थे उनका किसी से कोई रंचमात्र भी कम्पटीशन  नहीं था राहुल या केजरीवाल जैसे कैंडीडेट मोदी जी के सामने सभी प्रकार से कमजोर थे ! लगता है कि एक प्रकार से इन चुनावों में मोदी जी लगभग निर्विरोध रूप से प्रधानमंत्री पद के रूप में चुने गए हैं जब विरोध में कोई दम ही नहीं था तो लड़ाई या कम्पटीशन किस बात का ? इस प्रकार से जब कोई सामने था ही नहीं तो क्या बहुमत क्या प्रचंड बहुमत जो कुछ था सो सब मोदी जी का ही था 

      वैसे भी  चुनावी मैदान में जो दो और प्रत्याशी थे भी वो बिलकुल नौसिखिया थे इसलिए जनता ने अनुभवी और बयोवृद्ध मोदी जी को चुना तो इसमें भाजपा की अपनी पहलवानी किस बात की है ये स्वयं जनता का विवेक है जिसका उसने प्रयोग किया !इस कारण  प्रचंड बहुमत मिलता दिखाई पड़  रहा है इसके लिए वर्तमान चुनावों की परिस्थितियाँ ही ऐसी थीं फिर श्रेय किसी को किस बात का ! see more...http://snvajpayee.blogspot.in/2014/05/blog-post_19.html


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