आरक्षण के दुष्प्रभाव से बाहरी लोग अपने सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत को कहीं भिखारी भारत न कहने लगें !
आजकल आरक्षण के प्रति लोगों का लगाव जिस प्रकार से बढ़ रहा है लोग अपनी जाति बदल बदल कर आरक्षण का लाभ लेने के लिए सरकारों पर दबाव डाल रहे हैं यह स्थिति देखकर मुझे भय है कि लोग अपने सोने की चिड़िया भारत को ऐसे तो कहीं भिखारी भारत न कहने लगें और भारतीयों को कामचोर समझ कर विकसित राष्ट्र कहीं अपने देशों में प्रवेश पर पाबंदी न लगा दें! दूसरी बात जाति के आधार पर आरक्षण या अन्य सुविधाओं जैसी भीख जब तक बाटी जाएगी तब तक जातियों का समाप्त होना संभव ही नही है!
आरक्षण से जातियाँ समाप्त होनी होतीं तो अब तक हो जातीं और इससे किसी का विकास होना होता तो वह भी हो जाता !इसके लिए 60 वर्ष आखिर कम तो नहीं होते !
जाति गत आरक्षण के कारण भिखारीपन की भावना इतनी तेजी से बढ़ती जा रही है कि लोग आज अपनी जाति बदल बदल कर आरक्षण माँगने वालों की कतार में सम्मिलित होते जा रहे हैं उनके चेहरे से भिक्षार्थी होने की शर्म गायब है ये सबसे अधिक चिंता की बात है वैसे भी भिक्षा वृत्ति कभी किसी का अधिकार नहीं हो सकती ! अर्थात जिन जातियों को आरक्षण मिल रहा है लोग आज अपना सर्टीफिकेट बदलवाकर उन जातियों में सम्मिलित हो रहे हैं ! आखिर इस घूसश्रेष्ठ भारत में क्या नहीं हो सकता अर्थात सबकुछ हो सकता है इसलिए मुझे भय है कि आरक्षण अर्थात भीख भावना से यूँ ही लोगों का लगाव यदि बढ़ता गया तो कहीं सारा देश ही भिखारी न हो जाए !और लोग अपने सोने की चिड़िया भारत को कहीं भिखारी भारत न कहने लगें !
बंधुओं ! दलित किसी को कहा क्यों जाता है आखिर ऐसे क्या लक्षण देखे गए उनमें ! आप स्वयं देखिए कि दलित शब्द का अर्थ क्या है जैसे- अनाज के किसी एक दाने के जब दो बराबर टुकड़े कर दिए जाएँ तो उसे हिंदी में दाल एवं संस्कृत भाषा में द्विदल कहा जाता है किन्तु उसी अनाज के दाने के जब जब बहुत टुकड़े कर दिए जाएँ तो उसे दलिया या दलित कहते हैं बंधुवर ! हमारी आपत्ति भारतीयों के किसी भी वर्ग को दलित कहने पर भी है क्योंकि दलित नाम की कभी कोई जाति हुई ही नहीं दूसरी बात भारत वर्ष में लोग गरीब अमीर कुछ भी हो सकते हैं किन्तु प्रत्येक नागरिक का सम्मान सुरक्षित रखा जाना चाहिए ! उनका या उनकी जाति का नाम तो सम्मान पूर्वक लिया ही जाना चाहिए !
इसके अलावा देश का प्रत्येक नागरिक हमारा भाई है इस भारत वर्ष एवं इसके संसाधनों पर प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार एवं सम्मान समान है इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती है किन्तु सभी समान लोगों में से कुछ लोग जाति क्षेत्र धर्म संप्रदाय आदि के नाम पर यदि अचानक कहने लगें कि हम तो कमजोर हैं ये असह्य है और ये चीजें भेद भाव पैदा करती हैं अन्यथा कोई अपाहिज हो विकलांग हो उसे आरक्षण या उसकी आवश्यकता के अनुशार और भी जो सुविधा उचित हो सो दी जानी चाहिए जैसे अभी किन्नरों की बात आई तो उनके शरीरों में प्रकृति ने कुछ कमी छोड़ी है उस कारण वो उपेक्षा सह रहे हैं इसलिए उन्हें आरक्षण या उनकी आवश्यकतानुशार अन्य सुविधाएँ मिलनी चाहिए आखिर वो भी इसी देश के नागरिक हैं उन्हें भी अपने पन का एहसास दिया जाना चाहिए किन्तु जिनका शरीर स्वस्थ है मन स्वस्थ है वो भी यदि इतनी हीन भावना से ग्रस्त हैं कि वो भी आरक्षण रूपी सरकारी कृपा प्राप्त करने के लिए दीन हीन अकिंचनों अपाहिजों की तरह से हाथ जोड़कर सरकार के सामने गिड़गिड़ा रहे हैं ।
इस दैन्यता के कारण ऐसे लोगों को कभी सम्मान नहीं मिल पाता और सम्मान न मिलने के कारण स्वाभिमान नहीं बन पाता है पीढ़ी दर पीढ़ी भिक्षुकों की तरह बिताए जा रहे हैं और दोष दूसरी जातियों का दे रहे हैं कि इन्होंने हमारा शोषण किया है !
वस्तुतः अकारण शोषण कभी किसी का किसी ने नहीं किया है ! आज जो लोग आरक्षण या अन्य सुविधाओं के लिए सरकार के आधीन होते हैं पहले वही लोग समाज के सम्पन्न लोगों के सामने इसी प्रकार से दैन्यता दिखा कर उनकी आधीनता स्वीकार करते थे इसके बदले में वो लोग कुछ मदद करते भी होंगे नहीं भी करते होंगे कुछ जायज नाजायज काम भी करवाते होंगे आखिर पैसे का घमंड तब भी था और आज भी है आज कोई राम राज्य तो चल नहीं रहा है आज भी वही हो रहा है आज भी उस सामंतवाद में कोई विशेष अंतर नहीं आया है किन्तु ऐसे कामों में सम्पूर्ण आधार जातियाँ नहीं अपितु वो धन संपन्न लोग होते हैं वे किसी भी जाति के क्यों न हों वो पहले भी शोषण करते थे और आज भी करते हैं और यदि अपने पारिश्रमिक स्वाभिमान पूर्वक त्याग पूर्ण जीवन शैली नहीं बनाई गई तो आगे भी करते रहेंगे !
जो चाहता है कि हमारा शोषण भी न हो और हमारा तथा हमारे पत्नी बच्चों का सम्मान भी बना रहे और हम सपरिवार स्वाभिमान पूर्वक जीवन जी सकें उसे तीन बातें अपनानी ही पढ़ेंगी
1. किसी के द्वारा दी गई उस चीज का बहिष्कार करना सीखना होगा जो फ्री में मिल रही हो अथवा जिस विषय में अपनी योग्यता न हो वो मिलने लगे तो नहीं लेनी चाहिए जैसे बिहार में अभी अभी मुख्यमंत्री बनाए गए बहुत लोग उन्हें रबर स्टैम्प कहने लगे आखिर क्यों ! वहीं मायावती जी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं तब उन्हें किसी ने ऐसा क्यों नहीं कहा !
2. जाति क्षेत्र समुदाय संप्रदाय गत आरक्षण से प्राप्त किसी भी प्रकार की सहायता का बहिष्कार करना होगा !
3. त्याग ,परिश्रम पूर्वक नैतिक एवं स्वाभिमान पूर्वक जीवन जीना होगा कुछ दिन बाद सब कुछ स्वतः ठीक हो जाएगा सम्मान भी मिलेगा!स्वाभिमान भी बचेगा !क्या गरीब सवर्ण भी जो परिश्रम करते हैं वो अपने संघर्ष के बल पर अपनी तरक्की नहीं कर लेते हैं !इसलिए ऐसा हर कोई कर सकता है करे न करे उसकी इच्छा!मैं तो कहूँगा कि ऐसा हर किसी को करना चाहिए !
मैं अपाहिजों विकलांगों किन्नरों या मानसिक विक्षिप्त जैसे असहाय लोगों के सहयोग के पक्ष में हूँ भले ही उस सहयोग को आरक्षण ही क्यों न कहा जाए किन्तु शारीरिक रूप से स्वस्थ किसी भी व्यक्ति को आरक्षण का भिखारी बना कर रखना हमें निजी रूप से पसंद नहीं है क्योंकि आरक्षण एक प्रकार की भिक्षा है जो किसी एक का हक़ छीन कर किसी दूसरे को सरकार द्वारा कृपा पूर्वक दी जाती है !
चूँकि भिखारी को कहीं सम्मान नहीं मिलता है और बिना सम्मान के अर्थात ऐसे अपमानित व्यक्ति से लोग घृणा करने लगते हैं और घृणित व्यक्ति को लोग अछूत मानने लगते हैं !मैं चाहता हूँ कि देश का प्रत्येक व्यक्ति परिश्रमी हो स्वाभिमानी हो और अपने हाथों से कमाए हुए धन से ही आशा रखे और उसी पर गर्व करे न कि आरक्षण पर ! ताकि हर देश वासी सम्माननीय हो सके !
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