दलित कौन हैं उनमें किस तरह की कमी होती है और आरक्षण से उसकी पूर्ति कैसे हो पाती है ?
अगर शब्दकोशीय अर्थ पर ध्यान दिया जाए तो जो मेडिकली फिट हैं तो दलित किस बात के ?फिर भी यदि माना जाए कि गरीब लोग दलित होते हैं तो जो संपन्न लोग हैं वो दलित किस बात के ! और यदि गरीबों को ही दलित कहते हैं तो हर गरीब दलित क्यों नहीं है कुछ जातियों के ही गरीब लोग क्यों दलित होते हैं जिन्हें सरकारें सारी सुविधाएँ देती हैं बाकी जातियों के गरीबों को भूख नहीं लगती है क्या ?या सरकार ने उनके लिए कोई अतिरिक्त अनुदान दे रखा है ?
जातियाँ जानने के लिए हमें प्राचीन ग्रंथों को पढ़ना पड़ेगा इसलिए उन्हें देखा वहाँ दलित नाम की किसी जाति का कोई वर्णन नहीं मिलता है फिर भी यदि गरीबी के कारण लोगों को दलित कहा जाने लगा तो ग़रीबी जाति देखकर तो आती नहीं है तो जाति के आधार पर किसी को दलित कैसे कहा जा सकता है किन्तु किसी भी जाति के गरीब इंसान के लिए इस महँगाई में जीवन यापन करना बहुत कठिन होता है घर से बाहर तक उसे जिस प्रकार से न केवल अपमानित होना पड़ता है अपितु धनी वर्ग का शोषण भी सहना पड़ता है ऐसी परिस्थिति में किसी भी जाति का कोई भी व्यक्ति दलित हो ही जाता है ।अपने को बड़े बड़े ब्राह्मण और पंडित मानने वाले लोग भी गरीबी की मार से परेशान होकर आज भी कई होटलों में जूठे बर्तन धो रहे हैं कई दुकानों आफिसों में पानी पिलाते हैं जूठे बर्तन उठाते और धोते हैं! अधिक क्या कहा जाए सबकुछ करते हैं पेट की भूख किसी भी व्यक्ति को कितना भी तोड़ देती है और ऐसा हर मानमर्दित व्यक्ति किसी भी जाति का क्यों न हो किन्तु परिस्थितियाँ उसे दलित बना ही देती हैं !
यद्यपि दलितशब्द का अर्थ कोई बहुत अच्छा नहीं है जो हर किसी को दलित बताने में हमें कोई सुख मिल रहा है ये तो एक अभिशाप है जिसकी पीड़ा केवल गरीब लोग ही समझ सकते हैं वे किसी भी जाति के क्यों न हों !शब्दकोशों में जब मैंने दलित शब्द का अर्थ देखा तो लगा कि कोई मनुष्य दलित कैसे हो सकता है फिर लगा कि गरीबत एक ऐसी चीज है जो किसी को कुछ भी बना देती है एक आदमी रिक्सा पर बैठा होता है दूसरा खींच रहा होता है ये जाति का अंतर नहीं अपितु पैसे का अंतर है !जिसके पास पैसा नहीं उसे कुछ भी कह लिया जाए ये अपनी अपनी समझदारी !मेरे पिता जी भी बचपन में नहीं रहे थे उस समय मेरी उम्र मात्र छै वर्ष की थी ,उसके बाद गरीबी के सारे स्वरूप हमें भी सहने पड़े इसलिए मुझे इस पीड़ा का एहसास है अतएव मैं निजी तौर पर हर गरीब को दलित मानता हूँ कि जब तक वो गरीब है तब तक दलित है उसमें जाति आधार इसलिए नहीं है क्योंकि सबको एक जैसे बाजार या महँगाई का सामना करना पड़ता है !
इस भ्रम के निवारण के लिए दो प्रमुख कारण हैं पहला यह कि पुराने जवाने में दलित नाम की कोई जाति थी ही नहीं !दूसरी बात शब्द कोशों में "दलित" शब्द के अर्थ टुकड़ा,भाग,खंड,आदि लिखे गए हैं, मेरा विनम्र निवेदन है कि मनुष्यों के किसी भी वर्ग के लिए ऐसे अशुभ सूचक शब्दों का प्रयोग क्यों किया जाए !हमारी तो ईश्वर से यही प्रार्थना है कि सभी लोग स्वस्थ हों, निरोग हों, सुखी हों, शिक्षित हों, संपन्न हों, प्रतिष्ठावान बनें विकास उत्तम से उत्तम करें किन्तु अपने को दलित न कहें !
शब्दकोशों में दलित शब्द के अर्थ टुकड़ा, भाग, खंड, आदि जिस प्रकार से लिखे गए हैं इसका सीधा सा अर्थ है अंग भंग विकलांग अपाहिज आदि या और भी तरह से शारीरिक दृष्टि से अशक्त लोगों के लिए दलित शब्द कहा गया होगा क्योंकि जो शारीरिक दृष्टि से अक्षम होते हैं वो किसी की बराबरी कैसे कर सकते हैं इसलिए उनके लिए आरक्षण का प्रावधान होना भी चाहिए ताकि उन्हें भी सम्मानित जीवन मिल सके !इसीप्रकार से किन्नरों के आरक्षण की बात चली तो भी उचित लगा क्योंकि उनके शरीरों में जो अधूरापन है वो पूरा नहीं किया जा सकता इसलिए उनके प्रति भी इस दुनियाँ या समाज का उदार दायित्व बनता ही है और उन्हें भी आरक्षण जैसा सहयोग दिया जाना चाहिए !
वस्तुतः दलित शब्द से अभिप्राय है खंडित या टुकड़ों में विभाजित जैसे गेहूँ जब दला जाता है तो उसके छोटे छोटे टुकड़े हो जाते हैं उन टुकड़ों को दलित या दलिया कहा जाता है ! तो भाई जिनके शरीर स्वस्थ हैं समय से खाते पीते सोते जागते हैं आहार बिहार करते हैं वे फिर भी दलित कहे जाते हैं आखिर क्यों ?जब वो मेडिकली फिट हैं तो दलित किस बात के ?यदि माना जाए कि गरीब लोग दलित होते हैं तो जो संपन्न लोग हैं वो दलित किस बात के ! और यदि गरीबों को दलित कहते हैं तो हर गरीब दलित क्यों नहीं है कुछ जातियों के गरीब लोग ही क्यों दलित बनकर सारी सरकारी सुविधाएँ ले रहे हैं बाकी जातियों के गरीब लोगों को भूख नहीं लगती है क्या ?इसलिए दलित का मतलब क्या है दलित शब्द का प्रयोग किसके लिए किस उद्देश्य से किया गया है कब तक के लिए किया गया है आदि आदि सारी बातें तर्कहीन एवं भ्रामक हैं !
मूल शब्द 'दल से 'दलित' बना है।मैं कह सकता हूँ कि टुकड़ा,भाग,खंड,आदि शब्दों का प्रयोग कोई किसी मनुष्य के लिए क्यों करेगा?इसके बाद दल का दूसरा अर्थ समूह भी होता है।जैसे कोई भी राजनैतिक या गैर राजनैतिक दल आदि ।इसी दल शब्द से ही दाल शब्द बना है।चना, अरहर आदि दानों के दो दल बना दिए जाते हैं जिन्हें दाल कहा जाता है और यदि बहुत टुकड़े कर दिए जाएँ तो दलिया या दलित कहा जाता है इस प्रकार दलित शब्द के टुकड़े,भाग,खंड,आदि और कितने भी अर्थ निकाले जाएँ किंतु दलित शब्द का अर्थ दरिद्र या गरीब तो नहीं ही हो सकता है।जब दलित शब्द का अर्थ गरीब नहीं होता है तो आरक्षण किस लिए ?वैसे भी किसी प्राणी के लिए ऐसे अशुभ सूचक शब्दों का प्रयोग ही क्यों करना ?ऐसे अशुभ सूचक नाम कहीं मनुष्यों के होने चाहिए क्या?आखिर क्या ऐसा दोष या दुर्गुण या कमजोरी दिखाई दी दलितों में ?क्या वो लाचार हैं, अपाहिज हैं, विकलांग हैं या वो परिश्रमी वर्ग परिश्रम पूर्वक कमाई करके अपने बच्चे नहीं पाल सकता है क्या ?आखिर वो दलित क्यों हैं ?
एक बात दलितों को नेताओं ने समझाई कि तुम्हारा शोषण सवर्णों ने किया है किन्तु ये कैसे माना जा सकता है वैसे भी सवर्ण कहे जाने वाले लोगों की अपेक्षा दलित कहे जाने वालों की संख्या हमेंशा अधिक रही है तो शोषण संभव ही कैसे था! दूसरी बात देश में लम्बे समय तक परतंत्रता का समय रहा तो कोई किसी का शोषण कर भी कैसे सकता था स्वतंत्रता मिलते ही आरक्षण की बातें हुईं आखिर शोषण हुआ कब और किया किसने फिर किया कैसे !दूसरी बात आजादी के बाद तो शोषण नहीं हुआ ऊपर से आरक्षण भी मिला तब क्यों नहीं हो सका दलितों का विकास !
फिर नेताओं ने समझाया कि दलितों का अपमान हुआ है किन्तु दलितों का यदि वास्तव में अपमान हुआ है तो सम्मान की बात की जाए !किसी के अपमान का बदला आरक्षण से लिया जाएगा क्या ?
इसके बाद बताया गया कि दलितों को वेद नहीं पढ़ने देने के कारण वे तथाकथित दलित रह गए तो सरकार को वेद पढ़ने की सुविधा मुहैया करानी चाहिए किन्तु आरक्षण क्यों ?आखिर वे भी कश्यप ऋषि की संतान हैं उन्हें वेद पढ़ना ही चाहिए।
फिर उन्हें बताया गया कि अछूत माने जाने के कारण वो तथाकथित दलित पीछे रह गए तो उन्हें अब सवर्णों को अछूत घोषित करके उनसे रोटी बेटी का सम्बन्ध बिलकुल रोक देना चाहिए। आखिर अछूत घोषित किए जाने जैसे अपमान को आरक्षण रूपी लालच में क्यों सहा जाना चाहिए ? वैसे भी इस अपमान का समाधान आरक्षण में तो है भी नहीं !इसलिए आरक्षण क्यों ?
इस युग में वो तपस्या भी कर सकते हैं अब तो कानून का राज है।अब उन्हें कौन रोक सकता है?किन्तु आरक्षण क्यों ?
अब तो ब्यापार भी कर सकते थे बनियों ने व्यापार करके अपने को आगे बढ़ाया यदि कोई और भी करना चाहता तो उस पर क्या रोक लगी थी ?किन्तु आरक्षण क्यों ?
लोकतंत्र को बचाए रखने के नाम पर सवर्ण आखिर कब तक सहें अपना राजनैतिक शोषण ?दलितों के शरीरों में ऐसी कमी क्या है कि उनके विकास के लिए आरक्षण ही एक मात्र विकल्प है ?क्या सवर्ण इस देश के नागरिक नहीं हैं! या धन धान्य से परिपूर्ण हैं! क्या संघर्ष पूर्वक वो अपना विकास नहीं करते हैं फिर दलित क्यों नहीं कर सकते ?और नेताओं को केवल दलितों की ही चिंता क्यों है ?आखिर बाक़ी लोग कहाँ जाएँ ?दलित यदि वास्तव में अपमानित किए ही गए हैं ऐसा उनको लगता है तो लड़ाई सम्मान की होनी चाहिए न कि आरक्षण की !दलितों के आत्मसम्मान की रक्षा आरक्षण से कैसे हो सकती है ?क्या गरीबों का सम्मान नहीं होता है ! दलितों का शोषण कब क्यों और किसने किया ?
चूँकि आरक्षण एक प्रकार की भिक्षा या सरकारी दया है जो दलितों को सवर्णों का हक़ छीनकर दी जाती है महिलाओं को पुरुषों का हक़ छीनकर एवं अल्प संख्यकों को बहु संख्यकों का हक़ छीन कर दी जाती है!इसलिए जिसका हक़ बलपूर्वक छीना जाता है वो लेने वाले को भिखारी ही समझा करता है इसलिए उसे सम्मान कभी नहीं देता है दूसरा उससे हमेंशा घृणा ही करता है बद दुआ दिया करता है।ऐसी परिस्थिति में आरक्षण लेने वाले अपमानित भी हुए और कुछ खास मिला भी नहीं जो मिला वो इतनी बद दुवाओं के साथ मिला कि उससे बरक्कत ही नहीं हुई !दूसरी ओर जिनको आरक्षण मिलना था उनका नाम आगे करने से बद दुवाएँ तो आरक्षण लेने वालों को मिलीं और हिस्सा मार ले गए नेता लोग !
आखिर
क्या कारण है कि सूखा हो या बाढ़ आवे भूकम्प हो या और कोई बड़े से बड़ा
उपद्रव फैले इतना सब कुछ होने पर भी नेताओं की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता
है ! ये तो आपदा राहत में भी कमा लेते हैं । गरीब से गरीब नेताओं की
संपत्ति भी सौ गुनी और हजार गुनी या जो भी गुनी संभव हो के हिसाब से बढ़ती
चली जाती है आखिर आती कहाँ से है ! इनको कोई काम या व्यापार करने का भी
समय नहीं होता है ये आम आदमी की
अपेक्षा खाते पहनते भी अच्छा हैं ऐश आराम के पूरे साधन भी जुटा लेते हैं
इनके बच्चे भी महँगी महँगी गाड़ियों पर सवार होकर घूमते हैं हवाई जहाजों पर
घूमना विदेशों में बच्चों को पढ़ाना महँगे अस्पतालों में इलाज करवाना इनके
लिए आम बात होती है इनकी सारी शौक करोड़ों अरबों की होती है जिसे ये पूरी भी
आसानी से कर लेते हैं आखिर ये सब आता कहाँ से है और इकठ्ठा कैसे होता है
?दूसरी ओर महिलाओं,अल्पसंख्यकों और दलितों आदि को आरक्षण भिखारियों के नाम
से प्रसिद्ध कर दिया गया ! इस प्रकार से आजादी के इतने वर्ष बीत गए खुद तो
कुछ दिया ही नहीं और एक ऐसा लेबल लगा दिया है कि विदेशों में भी कहीं काम न
मिले लोग सोचते हैं ये आरक्षण प्रेमी लोग कुछ करने लायक ही होते तो अपने
देश में ही बोझ बनकर क्यों जी रहे होते ! आरक्षण प्रेमी (अर्थात कम परिश्रम
में अच्छा लाभ लेने की ईच्छा रखने वाले)लोगों को कोई काम नहीं देना चाहता
इसीलिए अब निजी क्षेत्रों में भी आरक्षण की माँग उठने लगी है आखिर अपने बश
का कुछ नहीं हैं क्यों!भाई ऐसा जीवन क्यों बना दिया गया कि कोई खुश होकर
अपने साथ रखना ही नहीं चाहता है सरकारी चाबुक के बल पर कब तक बोझिल जीवन
जिया जाएगा !अपना कोई वजूद ही नहीं है क्यों ?
ऐसे आरक्षण के द्वारा डाक्टर बने लोगों से लोग इलाज या आपरेशन नहीं
करवाना चाहते हैं।प्राइवेट नौकरियों में लोग किसी ठीक जगह इसलिए नहीं रखना
चाहते हैं ये जिम्मेदारी पूर्वक काम नहीं कर सकते जब काम पड़ेगा तो भाग खड़े
होंगे अन्यथा इन्हें आरक्षण की जरूरत ही क्यों पड़ती जो गरीब लोग बिना
आरक्षण के भी ईमानदारी पूर्वक परिश्रम करके अपना विकास कर लेते हैं उनसे
प्रेरणा लेकर आरक्षणी वर्ग को क्या बिना किसी सहारे अपने पैरों पर नहीं खड़ा
होना चाहिए ये आरक्षण की बैशाखियाँ क्यों !आरक्षण के द्वारा प्राप्त अपमान
पूर्ण आरक्षणी रईसत की अपेक्षा सम्मान स्वाभिमान पूर्ण गरीबत सौ गुना
अच्छी होती है जिसने अपने जीवन को स्वयं ही बुना हो उसकी तरक्की को कोई
नहीं रोक सकता और उस तरक्की को कोई झुका भी नहीं सकता है ।आखिर इन्हें
क्यों लगता है कि हम आरक्षण के बिना अपने बल पर आगे नहीं बढ़ सकते! ये
लँगड़े, लूले, अंधे, काने आदि अपाहिज तो हैं नहीं फिर अपने बल का भरोसा
क्यों नहीं है उसमें भी ये कहना कि हमें सम्मान नहीं मिलता आखिर सम्मान
आरक्षण में तो मिलेगा नहीं परिश्रम पूर्वक जीने वाले स्वाभिमानी जीव को
मिलता है सम्मान !जब आरक्षण एक भिक्षा है तो भिक्षुक का सम्मान कहाँ होता
है -
सेवक सुख चह मान भिखारी।
ब्यसनी धन शुभ गति ब्यभिचारी॥
जब जब इन लोगों ने हिम्मत करके ईमानदारी पूर्वक कुछ करने का मन बनाया तब
तब इनके कटोरे में कुछ न कुछ डाल दिया गया बोले तुम्हें दो दो किलो चावल
मिलेगा! तीन किलो गेहूं मिलेगा !हमने फूड सिक्योरिटी बिल पास किया है इस
प्रकार से नेताओं ने आरक्षण की इच्छा रखने वालों को पेट की परेशानियों से
बाहर निकलने ही नहीं दिया मानों नेताओं की साजिश हो कि जिस दिन इनका पेट
भरने लगेगा उस दिन ये हमारी झूठी झूठी बातों पर विश्वास करना ही बंद कर
देंगे तो कैसे होगा भ्रष्टाचार कैसे चलेगा अपना व्यापार! इसीलिए ऐसे
विश्वास घाती नेताओं ने आरक्षण प्रेमियों के लिए जब कमाने का समय था तब
इन्हें आरक्षण माँगने के लिए भिक्षा का कटोरा पकड़ा दिया ! सरकार कुछ देगी
उसी से अपने सारे दुःख दूर करने के लालच में आरक्षण प्रेमी लोग बिचारे बड़े
बड़े नेताओं की रैलियों में भीड़ बढ़ाबढ़ा कर अपने जीवन का बहुमूल्य समय
बर्बाद करते रहे !ये नेता आरक्षण प्रेमियों का हिस्सा सरकार से तो पास करते
कराते रहे किन्तु खुद हड़प करते रहे और आरक्षण समर्थकों के क्रोध की तोप
का मुख सवर्णों की ओर घुमाए रहे !और आजादी के साठ पैंसठ वर्ष बिता दिए पता
ही नहीं चला कब बीत गए केवल नेताओं का विकास हुआ बाकी देश आज भी पीने के
पानी तक के लिए मोहताज है नेता लोग अभी तक आरक्षण में भोजन दे रहे थे लगता
है कि अब पानी देंगे कुल मिला कर लगता है कि अभी भी लोग यदि जागरूक नहीं
हुए तो ये लुटेरे नेता लोग आरक्षण प्रेमियों को खाने पीने तक ही सीमित
रखेंगे !ये रातोंरात लखपति करोड़पति अरब पति और फिर अरबों पति बन जाते हैं
नेता जी !ये देश में अमन चैन हो तो कमाते हैं और आपद राहत में भी कमाते हैं
और आरक्षण प्रेमियों के साथ रहकर हमेंशा कमाते रहते हैं नेता !
इसी बीच एक माया नेत्री जी आईं उन्होंने समझाया कि -
तिलक तराजू औ तलवार । इनके मारो जूते चार ॥
इस जोरदार नारे के सहारे उन्होंने भी बड़ी शानदार कमाई की ! दलित लोग देखते और सोचते ही रह गए कि ये तो हमारी गरीबत दूर करने को कह रही थीं किन्तु हम तो हम्हीं रह गए किन्तु वो तो वो हो गईं ! दलितों को हमेंशा ऐसे ही धोखा देकर राजनीति की गई !हमने भी सोचा कि माया जी कितना सच बोलती हैं इसलिए मैंने माया शब्द का अर्थ फिर शब्द कोश में देखा तो वहाँ लिखा मिला- झूठ, छल, प्रपंच, धोखा, शठता, चालबाज आदि ।खैर, वो तो शब्द कोशों की बात है हमें यहाँ उससे क्या लेना देना?
फिर भी यदि मान ही लिया जाय कि किसी व्यक्ति के स्वाभाव पर उसके नाम का भी कुछ न कुछ शब्दकोशीय अर्थ का असर तो होता ही होगा तो माया नाम से रखे गए नाम वाले लोग कितने विश्वसनीय रह जाएँगे? किन्तु नाम तो अपने माता पिता रखते हैं जरूर कुछ न कुछ गुण दोष सोच कर ही रखते होंगे ।कम से कम इसमें तो मनु का दोष नहीं ही है।बेचारे मनु इतनी ही बदनामी से बच गए ! शब्द कोशों के आधार पर कहा जा सकता है कि माया तो झूठी होती है-
वैसे ज्योतिष या धर्म शास्त्रों में स्पष्ट लिखा गया है कि नाम के अर्थ का जीवन पर असर पड़ता ही है इसलिए नाम शुभ शुभ ही रखने चाहिए।संसार में जो कुछ जहाँ तक जैसा दिखाई पड़ता है वहाँ वो वैसा नहीं होता है इसी का नाम माया है।इसीलिए माया को समझने में हमेंशा भ्रम बना रहता है चूँकि माया झूठी होती है।देखो माया कलेंडर वालों को!झूठ का ही बवाल है हर जगह झूठ और फरेब से भरी है माया।रामायण में लिखा है कि.....
गोगोचरजँहलगिमन जाई।सो सबमायाजानहुभाई ।।
इस संसार के सभी परिवारों तथा सरकारों आदि में जिसके भी साथ माया रहेगी उसे चैन से नहीं बैठने देगी। यह सब लोग जानते हैं कि माया मृग ने वहाँ भगवान श्रीराम को कितना तंग किया था?यहाँ की लीला तो कांशीराम जी ही जानें जो अब नहीं हैं !श्रीराम तो भगवान थे तब भी माया के चक्कर से मुश्किल में निकल पाए किन्तु बेचारे कांशीराम जी.....!और की क्या कहें! माया के चक्कर में पड़कर ही भाजपा अब उत्तर प्रदेश में किसी लायक नहीं बची है ये भाजपा वालों का मायामोह ही था!
बिना सँकोच जो मायामोह से दूर रही उस सपा ने उत्तर प्रदेश में सरकार बना ली। भाजपा मायामोह में फँसी तो फँसती ही चली गई ।इस प्रकार से माया जिससे जुड़ती तो बस उसके अंत की घोषणा हो जाती है।जो जितना जुड़ा उसका उतनी जल्दी अंत हुआ।जिसे अपना अंत चाहिए वो माया से जुड़ जाए। देखो माया कैलेंडर को इसके मुताबिक 21 दिसंबर 2012 में सारी धरती का अंत हो जाना था किन्तु नहीं हुआ अलग बात है क्योंकि माया शब्द के कारण ही माया कैलेंडर की भी बात झूठी ही होती चली गई और माया कैलेंडर के प्रभाव का अंत हो गया ।
इसलिए मूल विषय पर आते हैं जो यह कहा गया कि सवर्णों ने दलितों का शोषण किया फिर इसे ही सच कैसे मान लिया जाए !
आखिर गरीब सवर्ण भी तो अपनी मेहनत की कमाई से ही बच्चे पालते हैं ।सवर्णों में भी कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बहुत गरीब हैं जिनमे कुछ लोग संघर्ष करके भी सफल नहीं हो पाते हैं यदि उन्होंने शोषण किया होता तो उन्हें तो संपन्न होना ही चाहिए था किन्तु सवर्ण तो भाग्य को कोसते हैं भगवान को कोसते हैं किन्तु सरकार के सामने कटोरा लेकर आरक्षण के लिए तो कभी नहीं गिड़गिड़ाते हैं या यूँ कह लिया जाए कि उन्हें ऐसी आशा ही नहीं है ! माना कि तथाकथित दलितों की अपेक्षा कुछ प्रतिशत अधिक लोग सवर्णों में सम्पन्न होगें किन्तु इसका मतलब यह भी नहीं है कि सारे सवर्ण सम्पन्न ही हैं।ऐसा भी नहीं है कि सवर्णों का सम्पन्न वर्ग गरीब सवर्णों की कोई मासिक या अन्य प्रकार से कोई आर्थिक सहायता करता होगा ।
इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए दलितों को भी आत्म सम्मान से स्वाभिमान पूर्वक जीवन यापन करने के लिए आरक्षण का बहिष्कार करते हुए अपने पराक्रम के बलपर जीवन यापन करना चाहिए !
इसी विषय में पढ़ें हमारा यह लेख भी -
आरक्षण देश के विकास को रोकने वाला एवं भ्रष्टाचार को बढ़ाने वाला होता है !
आरक्षण के दुष्प्रभाव से बाहरी लोग अपने सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत को कहीं भिखारी भारत न कहने लगें !
आजकल आरक्षण के प्रति लोगों का लगाव जिस प्रकार से बढ़ रहा है लोग अपनी जाति बदल बदल कर आरक्षण का लाभ लेने के लिए सरकारों पर दबाव डाल रहे हैं यह स्थिति देखकर मुझे see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/05/dalit-plus.html
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें