! बनावटी साधू ,संतों ,शंकराचार्यों के शिर चढ़ कर बोला बनावटी भगवान साईं बाबा का प्रभाव !
जगद गुरु स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज जी सनातन धर्म के प्रमाणित शंकाराचार्य हैं इसलिए सनातन धर्म के सभी आयामों पर शास्त्रीय अनुशासन का पालन करना कराना उनका शास्त्रीय दायित्व है इसलिए उन्हें धार्मिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठानी ही पड़ेगी धर्म और साधुत्व के जो शास्त्रीय नियम हैं उनके अनुशार चलना और अपने समाज को चलाना उनका धर्म क्षेत्र है ऐसा वो समय समय पर किया भी करते हैं एवं उन्हें करना भी चाहिए इसमें वेदों पुराणों शास्त्रों को मानने वाले ईमानदार चरित्रवान साधुसमाज को उनसे कोई समस्या नहीं होती किन्तु अशास्त्रीय,कल्पित बाबा ,बैरागी एवं नकली जगद्गुरू टाइप के लोग उनसे अकारण खुंदक खाया करते हैं क्योंकि असली शंकाराचार्य जी नकलियों के सपने साकार होने देने में बाधक माने जाते होंगें इसलिए असली जगद्गुरु जी से वो लोग अपनी दुश्मनी मानने लगते हैं !और वो हमेंशा ऐसे मौके की तलाश में बने रहते हैं कि कोई मुद्दा मिले कि मैं अपनी भड़ास निकाल दूँ वही अक्सर टी. वी. चैनलों पर धर्म संसद के नाम पर हो रहा होता है क्योंकि असली उन्हें मिलते नहीं हैं और नकली धर्मगुरु उनकी चिरौरी कर रहे होते हैं उन्हीं की गफलिया टी. वी. चैनलों पर बैठाकर लगा ली जाती है तथाकथित धर्म संसद !ये स्वरूपतः शास्त्रज्ञ धर्मद्रोहियों के साथ मिलकर वेद पुराणों धर्मशास्त्रों एवं शास्त्रीय धर्माचार्यों का खूब उड़ाते हैं उपहास ! उसका प्रतिफल ये होता है लोगों की धर्म एवं धर्म शास्त्रों पर अनास्था होने लगती है ।
ये इस तरह के लोग होते हैं कि इनमें कोई न कोई दोष लगा होता है जिस कारण से ये शास्त्रीय समाज में सम्मान नहीं पा पाते हैं इसलिए ऐसे लोग जब शास्त्र की बात करेंगे तो अपने दोष वाली बात गोल कर जाएंगे ! जैसे कोई मांस मछली खाकर भी धर्म का ठेकेदार बना रहना चाहता है तो वो जब जब खान पान पर शास्त्रीय संयम की बात आएगी तो 'जीवो जीवस्य भोजनं' या 'आपत्काले मर्यादा नास्ति'और 'आत्मानं सततं रक्षेत" आदि जुमले दोहराकर और कर लेंगें मांस भोजन !इसी प्रकार से जो कामुकताबश कोई लड़की भगाकर उसके साथ रह रहे हैं वो अपने को राधा कृष्ण मान लेते हैं !जो शराब पिटे हैं वो भैरव बाबा की पूजा के उदहारण देने लगते हैं किन्तु धर्मशास्त्रीय दृष्टि से ये सब सही है क्या ? हमारे कहने का अभिप्राय मात्र इतना है कि मात्र इतना है की मान लीजिए किसी परिस्थिति बश हमारे अंदर कोई विकार आ ही गया है तो इसका मतलब ये नहीं कि उस दोष को पवित्र करने की कोशिश प्रारम्भ कर दी जाए !
उसे कोई दिक्कत भी नहीं होती है कई मुद्दों पर भले वो स्वरूपानन्द जी से बिलकुल सहमत न हो किन्तु ऐसी जगहों पर शास्त्रार्थ करके अपनी बात स्थापित करने का हर किसी को अधिकार होता है कल टी.वी.चैनलों पर भी उन्होंने ने कई बार इस बात को दोहराया भी कि मैं शास्त्रार्थ करने को तैयार हूँ किन्तु जो भी लाल पीले बूढ़े जवान मुख मुखौटे लगे लोग टी.वी.चैनलों पर साईं बाबा के भगवान होने के समर्थन में दलीलें दे रहे थे उनकी हिम्मत क्यों नहीं पड़ी शास्त्रार्थ की चुनौती स्वीकार करनी की अपनी ही दूध का दूध पानी का पानी हो जाता !
धार्मिक विषयों में जब जब मत भेद हो तो शास्त्रार्थ करने की परंपरा रही है उसमें शस्त्रीय सच सामने निकल आता है इसका यही एक मात्र रास्ता होता है जिसकी चुनौती स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज जी ने दे दी थी फिर उनकी गलती कहाँ थी !अरे यदि कोई किसी विषय में हाई कोर्ट के निर्णय से संतुष्ट न हो तो सुप्रीम कोर्ट का विकल्प उसकी सामने खुला है किन्तु जो सुप्रीमकोर्ट तो जावे नहीं और हाई कोर्ट केगेट पर बैठ के रोवै इससे समाधान निकल जाएगा क्या इसलिए वो डुप्लीकेट बाबा लोगों ने शास्त्रार्थ की चुनौती स्वीकार क्यों नहीं की इसके लिए पत्रकारों ने भी उन लोगों से जवाब ही नहीं माँगा !पत्रकार या तो उनसे डर रहे थे या फिर शास्त्रार्थ को समझ नहीं पाए थे !
किन्तु शास्त्रार्थ करे कौन जो पढ़ा लिखा हो किन्तु जिनकी शास्त्रों से कभी भेंट ही न हुई हो ऐसे लोग अपने पक्ष की शेरो शायरी सुना कर थोड़ी बहुत देर बोल बक कर चले गए उनका धर्म से क्या लेना देना !
क्या शास्त्रार्थ के तर्क थे उन धार्मिक डुप्लीकेटों के आप भी ध्यान दीजिए -एक महानुभाव कह रहे थे कि "गुरूर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु.…! इस नाते साईं बाबा को भगवान मान लेना चाहिए किन्तु साईं बाबा को जो गुरू मानता है वो उन्हें अपने मन में कुछ भी माने स्वतन्त्र है किन्तु वो उसे वही मानने की अपेक्षा दूसरों से कैसे कर सकता है !किसी बेटी का बाप बेटी की शादी करते समय अपने जमाई से कहे कि ये परोठे बहुत अच्छे बना लेती है इसलिए इसे तुम भी बेटी ही मनना !अरे अजीब बात है साइन बाबा चमत्कार बहुत कर लेते थे इसलिए उन्हें भगवान मानना ये कैसा तर्क है !
इसीप्रकार से दूसरे डुप्लीकेट महानुभाव कह रहे थे कि
" सीय राम मय सब जग जानी । करहुँ प्रणाम जोरि जग पानी ॥ " इस नाते साईं बाबा को भगवान मान लेना चाहिए !किन्तु यदि ऐसा है तो कौए, कुत्ते ,और गाय, गधी में भेद भाव फिर क्यों फिर गाय की जगह कुतिया का दूध क्यों नहीं पीते हैं ऐसे लोग !और यदि ये डुप्लीकेट वास्तव में ऐसी बातें ईमानदारी से बोल रहे थे तो वो साईं बाबा और स्वरूपानंद जी दोनों को ही सीय राम मय समझकर प्रणाम करके इस मुद्दे से अलग हट जाते तो उनका ये भाव भी बना रहता और शास्त्रीय बिना पढ़ा लिखापन भी छिप जाता !
किन्तु छिप क्यों
इसीप्रकार से तीसरे डुप्लीकेट महानुभाव कह रहे थे कि "कण कण में भगवान बसते हैं तो साईं बाबा में क्यों नहीं!" मैं तो कहता हूँ कि जरूर बसते हैं इसमें कहीं कोई संदेह नहीं संदेह तो उन्हें भगवान मानने में है फिर भी जो लोग इसी नियम से चाहते हैं कि उन्हें भगवान भी मान लिया जाना चाहिए तो वो लोग जब कण कण में भगवान के बॉस को मानते हैं तो उनके लिए क्या शुद्ध जल और क्या नाली का पानी !क्या वो लोग पीते हैं नाली का पानी ! और यदि नहीं तो सारे उपदेश केवल दूसरों के लिए ही क्यों ?
इसीप्रकार से चौथे डुप्लीकेट महानुभाव कह रहे थे कि साईं बाबा पर आस्था रखने वालों की भीड़ बहुत है इसका मतलब क्या वो भगवान हो गए !तमाम हीरो हीरोइन खिलाड़ी आदि होते हैं जिनके अनुयायी बहुत होते हैं किन्तु वो भगवान तो नहीं हो गए !
आदि । ने का के और शास्त्र धर्म के का साईं बाबा भगवान नहीं वाला बयान लगभग सभी चैनलों ने दिखाया
कुछ वो बाबा जो शास्त्र सम्मत नियमों से साधू नहीं बने हैं इस दोष के कारण उन बेचारों का अभी तक बहिष्कार होता रहा है किन्तु वो शेरो शायरी करने वाले धर्म एवं धर्म शास्त्रीय क्षेत्र में पहचान विहीन भीड़ का रुख देखकर बोलने वाले टेलीवीजनी बाबाओं ने साईं बाबा के मुद्दे पर स्वरूपानंद जी का विरोध किया है !इसी प्रकार से नकली शंकराचार्यों अर्थात साईं किन्तु दुर्भाग्य
कई लोगों ने साईं ट्रस्ट से जुड़े बेचारे श्रद्धाबली लोगों के इंटरव्यू भी दिखाए जिसमें कुछ लोग तो इतने नादान थे कि वो बेचारे साईं बाबा के विषय में कुछ बता तो नहीं पाए किन्तु लाखों लोगों की श्रद्धा की दुहाई बार बार जरूर देते रहे ! उनमें कोई एक तो इतना अधिक बुद्धिहीन था कि कह रहा था कि जगद्गुरू जी साईं भक्तों से माफी माँगें ! वह अपनी औकात भूलकर इतनी बड़ी बात बोल रहा था उसे यह पता ही नहीं है कि वो साईं बाबा का उपासक और जगद गुरू जी भगवान शंकर के उपासक हैं खैर ! ज्ञान हीं लोगों की बातों का ध्यान ही क्यों देना !
अभी तक हमारे सनातन धर्म के शास्त्रीय संतों की लापरवाही तो यहाँ तक रही कि यहाँ नकली शंकराचार्य बनते गए उन पर लगाम नहीं लगाई जा सकी आखिर क्यों ? जिस घर में सारे मालिक होते हैं या जहाँ केवल अपनी पूजा करवाने पर ही ध्यान रहता है वो धर्म ऐसे ही बर्बाद होता है जैसे सनातन धर्म हो रहा है हर कोई पंचायती राज चला रहा है और ऐसी ही जगहों पर पुजने लगते हैं साईं बाबा !अन्यथा हिम्मत हो तो किसी अन्य धर्म के साथ कोई ऐसा खिलवाड़ करके साथ देख ले ! आज अपने को श्री राम भक्त कहने वाले कई हिन्दू संगठन हैं जो अपने आकाओं का नाम लेते समय उनके नाम के आगे तो परम पूज्य लगाते हैं किन्तु श्री राम या श्री राम मंदिर कहते समय 'श्री' और 'जी' दोनों शब्द गायब हो जाते हैं यही स्थिति हमारे संतों की है अपने नाम के आगे तो "श्री श्री १००८" आदि लगा लेंगे किन्तु श्री राम या श्री राम मंदिर कहते समय 'श्री' और 'जी' दोनों शब्द गायब हो जाते हैं इसी प्रकार से अपने लिए तो सोने चाँदी के सिंहासन और श्री राम जी खुले आसमान में फिर भी न कोई जन जागरण न कोई जनांदोलन आखिर क्यों ?आश्रमों में बैठे ऐश हो रही है क्या इसी लिए वैराग्य धारण किया गया था आखिर तुम्हारे भगवानों के विषय में तुम नहीं सोचोगे तो कौन सोचेगा ?
जब शास्त्रीय धार्मिक समुदाय आलसी होगा तो धर्म
के नाम पर विधर्मी मलमल बाबा टाईप के झूठे मक्कार पापियों ने गोल गप्पे
पुजवा डाले तो साईं बाबा क्या बात हैं ! ऐसे ही दवा दारू के व्यापारियों ने
पैसे के बल पर अपने को न केवल योग गुरु कहलाना शुरू कर दिया अपितु लोगों
की आँखों में आरोग्यता की धूल झोंक कर अरबों रुपयों का फंड संचय कर लिया!अब
राजनीति में दलाली करते घूम रहे हैं !क्या आपने कभी सोचा कि विरक्त और
संन्यास लेने के बाद ब्यापार करना ,धन संग्रह करना या राजनैतिक दलाली करना
क्या शास्त्रीय भ्रष्टाचार नहीं है !इसी प्रकार से धर्म के नाम पर ही बड़े
बड़े बलात्कारियों ने सैकड़ों आश्रम नाम की प्रापर्टियाँ बना डालीं और करोड़ों
अनुयायी तैयार कर दिए! आखिर धर्म के नाम पर ही लाखों ज्योतिष व्यापारियों
ने हल्दी मिर्चे तेल मशाले कौवे कुत्तों आदि पूजने पुजाने के अशास्त्रीय
उपाय बता डाले, इस प्रकार से धर्म के नाम पर इतने सारे पाप होते रहे आखिर
तब कहाँ हम सोते रहे !
रामायण और भागवत की कथाएँ कहने के नाम पर नाचने गाने मुख मटकाने वाले
जिगोलो टाईप के कथा किन्नरों ने 'भागवत' जैसी परमहंसी संहिता को
'भोगवत'बना डाला आखिर तब कहाँ थे शंकाराचार्य जी ! कुल मिलाकर धर्म के साथ
इतना सब कुछ खिलवाड़ होता रहा किन्तु कोई भी शास्त्रीय धर्माचार्य धार्मिक
मसीहा बनकर दिग्भ्रमित होते समाज को दिशा दिखाने के लिए आगे नहीं आया आखिर
क्यों ?हैरान परेशान समाज को कहीं तो जाना ही था चाहें वो मलमल बाबा के
पास जाए या साईं बाबा के पास !
हे शंकराचार्य जी !जब किसी अभिनेता का मंदिर बनाया गया या जब किसी नेता की चालीसा लिखी गई या जब
किसी बाबा की आरती गाई गई या जब किसी धार्मिक संत के मंदिर बनाए जाने लगे तब आपको बुरा क्यों नहीं लगा !
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