आखिर कैसी होती है बलात्कारियों की दुनियाँ और क्यों मचा है बलात्कारों से हाहाकार !क्या कर रही है सरकार ऐसे कैसे रहेगा समाज और बचेंगे परिवार !आज तो भली लड़कियों और महिलाओं का भी जीना मुश्किल हो रहा है !
जो जिसे चाहता है वो यदि उसे पाने में सफल हो जाए तो विवाह और यदि ऐसा न हो तो रेप, गैंग रेप, हत्या या आत्महत्या आदि कुछ भी … ! इसलिए प्यार की सार्वजनिक प्रक्रिया पर ही क्यों न लगाया जाए प्रतिबन्ध !
"बलात्कारों के पूर्वाभ्यास में एक दूसरे को पछाड़ देने की होड़ "
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| "बलात्कारों की रिहर्सल" में भाग लेते लड़के लड़कियों का छलकता उत्साह ! |
"आधुनिक प्यार नामक गुलाब के फूल में ही बलात्कार नाम का काँटा होता है "
एक संग नहीं होंहिं भुआलू ।
हँसब ठठाइ फुलाउब गालू ॥
हँसब ठठाइ फुलाउब गालू ॥
जैसे खूब जोर से ठहाका मारकर हँसना और गाल फुलाना दोनों काम एक साथ नहीं हो सकते ।
इसी प्रकार से बलात्कार को रोकने के लिए आधुनिक प्यार की गतिविधियों को रोकना ही चाहिए ! कोई भी बलात्कारी पहले किसी न किसी से प्यार जरूर कर चुका होता है चूँकि प्यार करने की शुरुआत में रूठने मनाने के झटके झेल चुका होता है काफी संघर्ष के बाद धीरे धीरे सौदा पट ही जाता है!इसी आशा में कि बाद में तो मामला पट ही जाएगा कोई भी कामी (प्रेमी) पटने पटाने में देरी या मना होने पर कर बैठता है बलात्कार हत्या या कुछ और !
लाल और मीठे तरबूज की चाहत में कई तरबूज काटने और छोड़ने पड़ते हैं तब जाकर कहीं कोई एक तरबूज अपने मन का अर्थात मीठा और लाल मिल पाता है उसी प्रकार से अपने लिए अच्छा प्रेमी या प्रेमिका की खोज करने में भी कई कई लड़के लड़कियों की जिंदगी बर्बाद करनी पड़ती है तब जाकर कहीं हो पाता है किसी का किसी से अपने मन मुताबिक प्यार ! इस पथ पर धोखा खाए हुए लोग घायल सिंह की तरह इतने अधिक हिंसक हो जाते हैं कि वो रेप करें या गैंगरेप तथा हत्या करें या आत्महत्या कहाँ होता है उनका उनके मन पर इतना नियंत्रण!वो तो यही सोचते हैं कि जब मेरे साथ बुरा हुआ है तो मैं बुरा करने से क्यों डरूँ !
इसलिए इस प्रकार के लगभग सभी अपराधों में सम्मिलित लोग प्यार नाम का खेल खेलते खेलते किसी न किसी की जिंदगी से खुला खिलवाड़ कर चुके होते हैं इसमें सम्मिलित भी दोनों पक्ष होते हैं इसके लाभ हानि भी दोनों को होते हैं और दोषी भी दोनों पक्ष होते हैं इसलिए सजा भी दोनों को समान रूप से होनी चाहिए !
यहाँ दोनों का कहने का मतलब यह कतई नहीं है कि जिसके साथ रेप या गैंग रेप हो वह दोषी है अपितु हमारा अभिप्राय उन लड़के लड़कियों से है जो इस प्रकार के खुला खिलवाड़ में अपनी इच्छा से सम्मिलित होते हैं !
अन्यथा जिसने इस पंथ में कभी कदम ही न रखा हो उसमें प्यार और बलात्कार करने की हिम्मत ही कहाँ होती है !इसलिए बलात्कार रोकने के लिए प्यार की गतिविधियों में सम्मिलित जोड़ों की हरकतें रोकने के लिए शक्त कानून न केवल बनना चाहिए अपितु कड़ाई से उसका पालन भी होना चाहिए !बलात्कार होने के और भी कई कारण हो सकते हैं जिनमें प्यार करने वालों की सार्वजनिक गतिविधियाँ भी प्रमुख कारण हैं !
अन्यकारणों में छोटी छोटी बच्चियों के साथ होने वाला अत्याचार या कई बार प्यार व्यार सम्बन्धी बातों से बिलकुल अनजान युवती लड़कियों के साथ होने वाला दुर्व्यवहार एवं अपने को बिलकुल सुरक्षित समझते हुए अभिभावकों के साथ कहीं जाने आने वाली लड़कियों के साथ भी बलात्कार जन्य दुर्व्यवहार होता है इसी प्रकार से सामूहिक बलात्कारों में ऐसी सभी प्रकार की आपराधिक गतिविधियों में सम्मिलित लोग विशुद्ध रूप से अपराधी होते हैं ये लोग जिस प्रकार से अन्य अपराध करते हैं उसी प्रकार से बलात्कार करते हैं क्योंकि इनके मन में नैतिकता या दया धर्म आदि नहीं होते हैं !ऐसे लोगों को रोकने का उपाय सभी प्रकार के अपराधों को रोकने के लिए कठोर बनाया जाना और फिर उसका कड़ाई से पालन हो जिससे अपराधियों के हौसले पस्त हों !
रेप पर राजनीति क्यों ?मिलजुल कर प्यार का खेल खेलने
वाले जोड़ों को क्यों नहीं मिलना चाहिए समान दंड !स्त्री पुरुष का भेदभाव क्यों?
जिन केसों में प्रेमी प्रेमिकाओं ने प्यार किया और दोनों व्यभिचार के लिए समान रूप से दोषी हों यदि इनमें आपसी बात बिगड़ जाए तो भी केवल प्रेमी ही दोषी क्यों?ये कैसा न्याय है ?
बलात्कार, गैंग रेप या किसी भी प्रकार से होने वाला महिलाओं का शील शोषण एवं सेक्स जैसी बातों से अनजान अबोध अविकसितांगी छोटी छोटी बच्चियों के साथ होने वाले असह्य अत्याचारों से आहत होकर विभिन्न क्षेत्रों से सम्बंधित लोगों से सम्पर्क करके मैंने इन विषयों पर अध्ययन करने का प्रयास किया है कि इसमें कौन कितना दोषी होता है इसमें लड़की और उसके घर वाले इसी प्रकार से लड़का और उसके घर वाले समाज प्रशासन फैशन के नाम पर हमारा खुला रहन सहन या सरकारी ढिलाई इन सबमें से कमजोरी किसकी है क्यों घटित होते हैं ये बलात्कार जैसे जघन्य अपराध !और इन्हें रोकने के लिए कितनी उचित है फाँसी जैसी सजा? ऐसे कठोर कानूनों के प्रभावों से कितनी सफलता मिलने की उम्मीद है ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने में ! मैंने अपनी विद्या बुद्धि के अनुशार प्रयास किया है इसे समझने का !जिसमें जो कुछ सामने आया उसका निवेदन इस प्रकार है !
ऐसे केसों में यदि महिला सुरक्षा के नाम पर किसी पुरुष को फाँसी की सजा दे भी दी जाए तो क्या इससे हो पाएगी महिला सुरक्षा ?फाँसी की सजा पाने वाले की बूढी माँ,जवान पत्नी,बहनें,पुत्रियाँ आदि क्या महिलाएँ नहीं हैं !क्या उनके लिए भी कुछ बिचार नहीं किया जाना चाहिए अन्यथा बलात्कारी को तो एक बार फाँसी लगती है और उसका जीवन समाप्त हो जाता है किन्तु उसके परिजनों को भोगनी पड़ती हैं कठोर सामाजिक और आर्थिक यातनाएँ !नाते रिश्तेदारी में उनका बहिष्कार कर दिया जाता है बहन बेटियों के काम काज होने मुश्किल हो जाते हैं क्या इन सब परिस्थितियों पर बिचार करने की हमारी कोई जिम्मेदारी होनी चाहिए ? आखिर उसके परिजनों का दोष क्या होता है जिसकी सजा भोगनी पड़ती है उन्हें ?
अब बलात्कार पीड़िता की असह्य पीड़ा को भी समझना बहुत आवश्यक है इसमें तीन प्रकार के केस होते हैं एक वो जिसमें लड़कियों या महिलाओं की किसी प्रकार से कोई गलती ही नहीं होती है दूसरी छोटी छोटी बच्चियाँ जिनकी गलती होने की कोई संभावना ही नहीं होती है ऐसी प्रकरणों में बलात्कारी सम्पूर्ण रूप से दोषी होता है उसमें उसके पारिवारिक संस्कार,उसकी शिक्षा ,एवं आध्यात्मिक वातावरण की कमजोरी फैशन के नाम पर परोसी जाने वाली अश्लीलता,तामसी खान पान का प्रभाव एवं कैरियर बनाने के चक्कर में विवाह जैसे अति आवश्यक विषय को अकारण टालते जाना है!जब आयुर्वेद मानता है कि भोजन निद्रा और मैथुन अर्थात सेक्स ये तीनो मनुष्य शरीर के उपस्तम्भ हैं इनके कम और अधिक होने से शरीर रोगी होता है तो ऐसी परिस्थिति में उनका यथा संभव शीघ्र विवाह किया जाना चाहिए अन्यथा बेचैनी बढ़ती ही है जिसकी शांति के लिए साहित्य में कहा गया है कि कुँए का पानी,बरगद की छाया,युवा स्त्री पुरुषों के शरीर एक दूसरे के लिए,और ईंटों का घर ये शर्दी में गर्म और गरमी में ठंढे रहते हैं । इसलिए इनका सेवन करने से बेचैनी घटती और सुख मिलता है । ये रही बात चिकित्सा और साहित्य शास्त्र की अब बात करते हैं कोक शास्त्र की जहाँ भड़काऊ रहन सहन वेश भूषा आदि देखते स्पर्श होते ही अनियंत्रित हो उठता है मन ।जैसे किसी भी सार्वजनिक जगह पर एक दूसरे को चूमते चाटते या ऐसा ही और कुछ करते देखकर देखने वाले पागल हो उठते हैं और वो करने लगते हैं बलात्कार जैसे अक्षम्य अपराध !ऐसे काण्ड बेशर्म जोड़ों के द्वारा पार्कों में ,मेट्रो स्टेशनों या रेस्टोरेंटों, पार्किंगों ,या बस आदि सवारियों ,आटो रिक्सों आदि पर अक्सर देखे जा सकते हैं यहाँ तक की मोटर साइकिलों पर बैठे जोड़ों की अश्लील हरकतें विशेष कर लालबत्तियों पर खड़ी गाड़ियों पर साफ साफ देखी जा सकती हैं । जिन्हें देखकर दर्शकों के मन पर जो दुष्प्रभाव पड़ता है उसके लिए देखने वाले कितने जिम्मेदार हैं क्या उन्हें ऐसी सार्वजनिक जगहों पर नहीं जाना चाहिए या आँखें बंद करके जाना चाहिए या नपुसंक होने की दवा खाकर ही घर से निकलना चाहिए क्योंकि इसके अलावा वर्तमान परिस्थिति में उनसे बहुत बड़े ब्रह्मचर्य की आशा कैसे की जा सकती है !
वैसे भी ब्वायफ्रेंड और गर्लफ्रेंडों के आपसी संबंधों में अक्सर विश्वास घात होते देखा जा रहा है कई बार वह उनके द्वारा किया जाता है कई बार उनके कारण होता है जैसे मेट्रो में खड़ा एक जोड़ा सबके सामने बड़ी बेशर्मी से आपस में अश्लील हरकतें करता और सहता रहा दोनों के दोनों पूरे के पूरे रंग में थे ! इन्हें देखने वाले देखते रहे वो नपुंसक रहे होंगे ऐसा सोचना ही क्यों !बाक़ी के लोग तो जहाँ के तहाँ चले गए किन्तु चार लड़के एक ही झुण्ड के थे वे भी ये हरकतें देखते रहे वो नहीं रोक सके अपना मन और उन लोगों ने प्रेमी जोड़े का पीछा किया जहाँ वे स्टेशन से उतरे वो भी उतर गए उनके पीछे लग लिए जहाँ कुछ एकांत मिला झपट पड़े और उस प्रेमी नाम के लड़के को पकड़ लिया वो अकेला था ये चार थे इसके बाद उन्होंने वो सब कुछ किया जो उन्हें ठीक लगा और वो दोनों सहते रहे करते भी क्या !इसके बाद वो पुलिस को कम्प्लेन करके प्रशासन को दोष दें यह कितना उचित है!आखिर ऐसे जोड़े किस प्रकार की सुरक्षा व्यवस्था चाहते हैं वो इनसे भी पूछा जाना चाहिए और यह भी पूछा जाना चाहिए कि क्या उनकी भी कुछ जिम्मेदारी है या कि सारी प्रशासन की ही है?
प्रेमी नाम के लड़कों के द्वारा की गई सार्वजानिक जगहों पर अश्लील
हरकतें सहमति पूर्वक क्यों सही जाती हैं ?आपने भी देखे होंगे ऐसे दृश्य !सहमति
से सेक्स या अश्लील हरकतें करने वाले जोड़े
खोजकर ऐसी जगह में ही बैठते हैं जो बिलकुल सुनसान हो,या कार पर सूने घरों
में बंद मकानों फैक्ट्रियों झाड़ियों भीड़भाड़ बिहीन बसों में बैठना उठना
चलना फिरना पसंद करते हैं ऐसे लोग जहाँ उनकी आपस में अश्लील हरकतें भी चला
करती हैं!आप स्वयं सोचिए कि जब वो चुन कर स्वयं एकांत स्थान में ही जाते
हैं क्योंकि उनकी आपसी हरकतें असामाजिक होती ही हैं इसलिए वहाँ पुलिस आदि
का तो छोड़िए आम आदमी का जाना आना ही नहीं होता होगा ऐसी जगहों पर वो लड़का
प्यार करे या बलात्कार या हत्या ही कर दे तो कौन है उसे देखने या रोकने
वाला ?तो ऐसी संदिग्ध जगहों पर लड़कियाँ उनके साथ जाती ही क्यों हैं ?कई
बार ऐसे एकांतिक स्थलों पर अक्सर ऐसी घटनाएँ होने के कारण ये जगहें ऐसे
कामों के लिए वेलनोन हो जाती हैं तो यहाँ इस तरह की हरकतें देखने के शौक़ीन
या अपराधी प्रवृत्ति के लोग भी नशे आदि के बहाने से बैठने उठने लगते हैं
उनसे वो प्रेमी नाम का अकेला जंतु भी चाहकर कैसे बचा लेगा उस लड़की को !
ऐसी हर जगह पर पुलिस का होना संभव ही नहीं होता है और यदि पुलिस हो तो ये जोड़े वहाँ जाएँगे ही क्यों ?ऐसी संदिग्ध जगहों पर लड़कियाँ उनके साथ जाती ही क्यों हैं ?फिर भी यदि किसी प्रकार से पुलिस इन्हें रोकने की कोशिश भी करे तो क्या करे सहमति से सेक्स को पुलिस रोके तो 'प्यार पर पहरा' और यदि न रोके और कोई दुर्घटना घट जाए तो 'बलात्कार या गैंगरेप' पुलिस आखिर करे तो क्या करे ?
ये तथाकथित प्यार के सम्बन्ध दोनों तरफ से झूठ
बोलकर ही बनाए गए होते हैं इसलिए दो में से किसी का झूठ जब खुलने लगता है
तो वो कुछ और दबाते दबाते कब गला ही दबा दे किसी का क्या भरोस ?अन्यथा यदि
सच बोलते तब तो प्यार नहीं होता या फिर सीधे विवाह ही होता तब तक वो
अपनी बहती सेक्स भावना को रोक कर रखते किन्तु सेक्स के लिए बिल बिलाते
घूमते जवान जोड़े आम समाज की परवाह किए बगैर ही राहों चौराहों गली मोहल्लों
पार्कों ,मेट्रोस्टेशनों आदि सार्वजनिक जगहों पर भी कुत्ते बिल्लियों की
तरह बेशर्मी पूर्वक वो सब किया करते हैं जो देखने वालों की दृष्टि से सभ्य
समाज को शोभा नहीं देता है किन्तु इन्हें समझावे या रोके कौन ?
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| स्वदेशी बेशर्मी से शर्मसार विदेशी जोड़े |

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