लोगों के कथनानुशार साईं शिष्यों और जगद गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी के विवाद में यदि कोई साजिश मान भी ली जाए तो धर्म सम्बन्धी थोड़ी थोड़ी बात पर पिनक उठने वाले हिन्दू संगठनों के मौन के पीछे आखिर है कौन ?
कल कुछ सुशिक्षित सनातनी लोगों के साथ सहज चर्चा में वैचारिक आदान प्रदान हुआ उसमें कुछ लोग बहुत योग्य एवं दलीय भावना से ऊपर उठकर चर्चा करने वाले थे !वह चर्चा वास्तव में स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष थी चर्चा थी काफी अनुभवी लोग थे ! वो बात और है कि आजकल हर विचारधारा के हर वृत्त को राजनैतिक बना लिया जाता है जैसे साईं और स्वरूपानंद जी वाले प्रकरण में भी बहुत लोग कहते सुने गए कि शंकराचार्य जी काँग्रेसी हैं मुझे पता नहीं हो सकता है कि हों भी आखिर आजादी की लड़ाई में उन्होंने भी अपना योगदान दिया है इसका सीधा सा मतलब है कि उन्होंने अपनी सामाजिकता भी बना कर राखी है अन्यथा कई विरक्त संतों की इन चीजों में रूचि नहीं देखी जाती है किन्तु आज है कि नहीं कहना कठिन है क्योंकि मेरा उनसे कोई सीधा संपर्क नहीं है जो मैं पूछ पाऊँ वाराणसी में कुछ प्रकरणों पर वैचारिक आदान प्रदान करने का सौभाग्य मिला तो बहुत अच्छा लगा वो वास्तव में विद्वान एवं सनातन धर्म के महान प्रहरी हैं वो धर्म एवं धर्म शास्त्रों पर समग्र चर्चा करते हैं और अच्छी बात को अच्छा कहने का उनमें साहस है उतने ही साहस से वो बुरी बात की बुराई भी करते की को ऐसी बट्टों है घुस जाती है में उन्होंने कहा कि
आखिर ये कैसे मान लिया जाए कि शंकराचार्य जी की कोई हैसियत ही नहीं होती है के
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