गुरुवार, 3 जुलाई 2014

लगता है  कि इन  तीनों  के ही चेला  चेली लोगों का  इनके चरित्र पर उतना विश्वास नहीं है जितना इनके चित्र पर है इसीलिए  इन तीनों के ही अनुयायी लोग इनके चित्र विस्तार के लिए निरंतर प्रयासरत  एवं समर्पित   देखे जाते हैं वो चित्र चाहे कैलेंडर रूप में हों या मूर्ति रूप में !
       कांशीराम  के घरवालों ने उनके चेला चेलियों पर जो आरोप लगाए वो चिन्तनीय थे और जो हो सो  हो ईश्वर जाने किन्तु वो भी बसपा को चलाने के लिए अपने चेला चेलियों के इतना आधीन हुए कि उनके अपने भी उनसे मिलने को तरसने लगे ! बसपा की सरकार बनती तो गरीबों की भलाई के लिए थी किन्तु जुट जाती थी कांशीराम की मूर्तियाँ पार्कों में लगाने में ! उन मूर्तिपूजकों ने गरीब जनता के धन के हिस्से से मूर्तियाँ बना बनाकर बसपा का बेड़ा ऐसा  गर्क किया कि अबकी लोकसभा चुनावों में खाता तक खुलना मुश्किल हो गया आज उसी बसपा की राष्ट्रीय  दाल होने की मान्यता  संदेह के घेरे में है !
        इसी प्रकार से आशाराम अपना पूजन भजन आरती चालीसा आदि सब कुछ अपने को खुश करने हेतु अपने चेला चेलियों से अपने लिए करवाते थे कुल मिलाकर उनके चेला चेलियों ने उन्हें  ऐसा भगवान बना दिया था कि घर घर दुकान दुकान में उनके चित्र लगाए पूजे  जाने लगे मानों भगवान हों यहाँ तक कि कई बार सिंहासन पर आशाराम का आसन ऊपर किन्तु राम जी को नीचे बैठाया गया ! अजीब अंधेर थी , चित्र पूजक उनके चेला चेलियों ने इतना अधिक  ऊधम काटा की अंत में उन्हीं में से एक ने उनकी सारी दुर्दशा करवा डाली ! जो वो बेचारे आज भी भोग रहे हैं ! सही क्या है आशाराम भगवान जानें या उनके चेला चेली भगवान जानें और सारी दुनियाँ के भगवान तो सब कुछ जानते  ही हैं !
      साईं राम की मूर्तियाँ मंदिर मंदिर में रखवाई जा रही हैं !इसके लिए तो इतनी मारा मारी मची है कि लोग मरने मारने पर अमादा हो रहे हैं !साईं बाबा के चेला चेलियों  ने भी यदि संयम से काम लिया होता तो आज शायद  बुड्ढे की इतनी लानत मलानत  न हो रही होती किन्तु प्रारम्भ में ही जिस गाली गलौच की भाषा का प्रयोग किया जाने लगा वो प्रयोग उल्टा पड़ा है हो न हो आशाराम जी की तरह ही साईं भक्त भी  साईं  की  प्रतिष्ठा को समाप्त करने का कारण बनें !क्योंकि उनमें संयम का नितांत  अभाव है !
            ये लोग इन लोगों के चित्र की उपासना की जगह चरित्र की उपासना और प्रचार प्रसार करते  तो शायद अधिक अच्छा होता !किन्तु साईं का केवल चित्र दिखाकर चरित्र के उपासक सनातनधर्मियों को भटकाने का सपना पूरा होना अत्यंत कठिन है !

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