शनिवार, 5 जुलाई 2014

साईं

मैं साईं को जानता नहीं पहचानता नहीं मानता नहीं क्योंकि मैंने उन्हें कभी नहीं देखा है जबकि भगवान को शास्त्र की दृष्टि से देखा है यहाँ साईं के विषय में जो लोग बता रहे हैं उनका भी कोई निजी ज्ञान या अनुभव नहीं है उनके विषय में कोई प्रमाणित इतिहास भी नहीं मिलता है कुछ लोगों ने जो लिखा है उसके विरुद्ध वो स्वयं आचरण कर रहे हैं ऐसे में विश्वास किस पर किया जाए सोचना इस बात को है ! वो लोग एक तरफ तो कहते हैं कि साईं फकीर थे उनके पास कुछ नहीं था आखिर क्यों नहीं था वो चमत्कारी थे तो सब कुछ कर सकते थे किन्तु यदि वैराग्य के कारण उन्होंने ऐसा नहीं किया तो आज उन पर चढ़ावा क्यों चढ़ाया जाता है सोने चाँदी से श्रृंगार क्यों किया जाता है । उनके वैराग्य को सुरक्षित क्यों नहीं रहने दिया गया ?
        इसी प्रकार से एक ओर तो साईं को संत और साधक बताया जाता है तो दूसरी ओर भगवान !आखिर सच क्या है वो साधक थे या भगवान ? ये तो उसी तरह की बात हुई कि एक नौकर किसी व्यापारी के यहाँ काम करता था धीरे धीरे प्रयास पूर्वक उस व्यापारी की हत्या कर दी और दूकान का मालिक बनकर उसी गद्दी पर खुद बैठने लगा !क्या साईं का यह आचरण उस तरह का नहीं दिखाई पड़ रहा है!
यदि साईं संत थे साधक थे विरोदही ध नहीं कर रहा हूँ 

बंधुओं ! आस्था अपनी अपनी मान्यताएँ अपनी अपनी

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