शनिवार, 5 जुलाई 2014

'साईं एक समस्या अनेक ' 'ये हैं साईं के साइड इफेक्ट' संस्कारों के संकट से गुजर रहा है समाज !

 "साईं धर्म का सिद्धांत"केवल साईं पूजा कर लेने से मिल जाता है सबका  अपमान करने का लाइसेंस?

     'साईं पूजा के साइड इफेक्ट' हैं -  टूटते परिवार, बिखरता समाज और बर्बाद होते बच्चे !छिन्न भिन्न होतीं शास्त्रीय परम्पराएँ, विभाजित होता धार्मिक समाज,समाप्त होता छोटे बड़े का सम्मान,बढ़े बलात्कारों से चारों और त्राहि त्राहि !भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार !अब कोई क्यों पढ़ेगा वेद शास्त्र ?

  देवी पूजा में कन्याओं का पूजन होता है किन्तु साईं पूजा का प्रचलन बढ़ने से समाप्त हुआ कन्याओं के प्रति पूज्य भाव !साईं पूजा में कन्या पूजन का क्या काम !इसीलिए घट रही हैं कन्याओं और महिलाओं के विरुद्ध रोज दुर्घटनाएँ !

   आज घरों से  फेंकी गई  बच्चियाँ कचरे के डिब्बे में पड़ी मिल रही हैं कहाँ पहुँच रहे हैं हम !

      जब साईं पूजा नहीं थी और देवी पूजा का महत्त्व था तब कन्याओं की पूजा का भी महत्त्व था तब कभी सुने जाते थे इतने बलात्कार !आज जब हम देवी देवताओं की जगह साईं को फिट करने लगे तो समस्याएँ बढ़नी ही थीं ,आज पाँच पाँच वर्ष की कन्याओं के साथ दुराचार हो रहे हैं ! बच्चियों के साथ एक से एक जघन्यतम अत्याचार ,ये साईं बाबाओं को भगवान बना कर पूजने के दुष्परिणाम है! 

    देवी देवताओं की पूजा में कन्या पूजन भी होता है किन्तु साईं पूजा में केवल साईं ही साईं पूजे जाते हैं तभी तो आज मिल रहे हैं कचरे के डिब्बे से कन्याओं के भ्रूण !ये हैं "साईं के साइड इफेक्ट"लोगों के मन से आज कन्याओं के प्रति पाप पुण्य के भाव ही घटते जा रहे हैं !

   बंधुओ ! आपने पहले भी देखा होगा जब तक देवी देवताओं का महत्त्व था तब तक कन्याओं और महिलाओं का सम्मान था हर धार्मिक अनुष्ठानों में कन्याओं के पूजन एवं सुहागिनी स्त्रियों की भी देवी रूप में पूजा की जाती थी  ये शास्त्र का विधान मान कर लोग करते हैं ,सनातन धर्म में लोगों को सिखाया जाता है  कि कन्या पूजन से तुम्हारा कल्याण होगा तुम्हारी उन्नति होगी और कन्याओं का अपमान करने से अनिष्ट  हो जाएगा इसलिए अनिष्ट भय से ही सही लोग कन्याओं का सम्मान करते थे अगर धोखे से भी कन्याओं के किसी की लात लग जाती थी तो लोग उस कन्या के पैर छू लेते  हैं किन्तु जब से साईं को भगवान बनाया गया तो वहाँ देवी पूजन की बात ही कहाँ रही यहाँ तो सब कुछ साईंमय होता है इसके अलावा न कोई देवी देवता न कोई बड़ा बूढ़ा ! ये ऐसे लोग हैं कि इन्हें यदि देवी पूजा की अधिक आवश्यकता दिखी थो ये लोग दुर्गा जी को नहीं पूजेंगे अपितु इसी बुड्ढे को साड़ी  पहनाकर इसी के लगा देंगे लाली लिपस्टिक तथा  पहना देंगे नाक में नथ और हाथ जोड़कर खड़े हो जाएँगे और बोलने लगेंगे 'जय साईं माता'!

   वस्तुतः लगता है कि ये लोग मान चुके हैं कि साईं के अलावा इस दुनियाँ में कोई और दूसरा देवी देवता है ही नहीं !इसलिए केवल साईं का सम्मान करने से बाक़ी सबका अपमान करने का लाइसेंस मिल जाता है इन्हें ?      साईं पूजा जब नहीं थी तब बड़े बूढ़ों का सम्मान भी आज की अपेक्षा अधिक होता था क्योंकि लोग श्री राम को मानते थे और श्री राम बड़े बूढ़ों का सम्मान करते थे  किन्तु साईं को ऐसा कुछ करते कहीं देखा सुना नहीं गया तो सीखें कहाँ से साईं की संतानें ?इसीलिए तो अब माता पिता या अपने से बड़े बूढ़ों का अपमान हो रहा है ,बड़े बूढ़ों को वृद्धाश्रमों में भेजा जा रहा  है ये हैं 'साईं के साइड इफेक्ट'!

  भ्रष्टाचार -

    पहले के लोग मंदिरों में श्रद्धा से जाते थे अब सम्पति से जाते हैं अर्थात मंदिरों में जाकर अपनी गलतियों की माफी माँगते थे दुबारा गलती न करने का व्रत लेते थे उसका जीवन और समाज पर असर भी होता था ।

     अब साईं वालों  का हाल तो ये है कि जिसको जहाँ जैसे जितना लूटना है सो लूटो केवल साईं मंदिरों में चढ़ावा के नाम पर कमीशन जमा कराते जाओ !यही कारण है कि चोरी लूट और भ्रष्टाचार   आदि  दिनों दिन बढ़ता जा रहा है और साईं बाबा का चढ़ावा भी करोड़ों में पहुँचने लगा है आखिर कहाँ से आता है ये धन ?ईमानदारी पूर्वक कमाने वाले गरीब लोग इतना धन कभी नहीं चढ़ा सकते !इस बढ़ते भ्रष्टाचार और बढ़ती साईं की सपत्ति के बीच आखिर कोई सम्बन्ध तो होगा !ये हैं 'साईं के साइड इफेक्ट'!  

        संस्कृत विद्यालयों के छात्रों ने पढ़ने में रूचि कम कर दी है वो सोचने लगे हैं कि क्या करना है पढ़ लिख कर जब बिना पढ़े लिखे लोग  भी साईं को दिखाकर खूब   कमाई कर रहे हैं !

     सुना है कि साईं के समर्थन में लाबिंग करने करवाने के लिए बाबाओं और पंडितों को खरीदा जाएगा वो लोग साईं का पक्ष ले लेकर लड़ेंगे सनातन धर्मियों से !साईं वाले ये सारा खेल पैसे के बल पर कराएँगे और खुद दूर बैठकर देखेंगे और हँसेंगे !इसी उद्देश्य से अबकी गुरुपूर्णिमा के दिन चढ़ावे के नाम पर चंदा इकठ्ठा करके मोटा फंड जुटाया गया है !सुना जा रहा है कि ये सूचना बाबाओं एवं पंडितों के पास भी भेजी जा रही है कि वो शिर्डी आवें और साईं को सनातन धर्म का अंग बताते हुए साईं को भगवान मान कर पूजा करने की वकालत मीडिया के सामने करें !इसके बाद पेमेंट लें अपने घर जाएँ !सुना है कि कुछ लोग ऐसा करने के लिए वहाँ पहुँचने भी लगे हैं और उन्होंने पेमेंट लेकर ड्यूटी ज्वाइन भी कर ली है और साईं के समर्थन में काम करना प्रारम्भ भी कर दिया है ऐसे लोग अब दूसरों को भी साईं समर्थक बनाकर  वहाँ ले जाने के प्रयास कर रहे हैं । इसप्रकार से साधू संतों और बाबाओं में विभाजन होता दिख रहा है ये हैं  'साईं के साइड इफेक्ट'

   साईं के यहाँ विधि निषेध का विधान न होने से समाज में बढ़ रहा है अपराध !

   लव के लिए लबाते जवान लड़के लड़कियाँ , खुला नंगपन बेचने  वाले कुछ अभिनेता अभिनेत्रियाँ, मॉडलिंग  की दुनियाँ से जुड़े अधिकाँश लोग,इसी प्रकार से और भी ऐसे वैसे लोग साईं संप्रदाय से ही जुड़ना अधिक पसंद कर रहे हैं !क्योंकि साईं के यहाँ विधि निषेध करने वाला कोई शास्त्र न होने स्वेच्छाचारी लोगों को वहाँ सुविधा रहती है  क्योंकि वहाँ गलत काम करने वालों को रोका नहीं जाता है आखिर किस नियम का हवाला दिया जाएगा किसी को !

साईं संप्रदाय का उद्देश्य धर्म का व्यापारीकरण-

      साईं का सम्पूर्ण कारोबार धार्मिक लोगों के आधीन न होकर व्यापारियों के आधीन है वहाँ सारी ऊर्जा अधिक से अधिक धन इकठ्ठा करके सनातन धर्म में घुसपैठ करने पर लगाई जाती है। इसलिए वहाँ धर्म का कोई वातावरण ही नहीं है साईं संप्रदाय विशुद्ध रूप से धर्म के व्यापारीकरण पर टिका हुआ है ।

     आखिर साईं संप्रदाय के लोगों ने शंकराचार्य जी को टी.वी. चैनलों पर बैठकर गालियाँ क्यों दी हैं ?उनसे माफी माँगने के लिए क्यों कहा है !वो लोग ये कैसे भूल गए कि शंकराचार्य जी को सनातन धर्म में क्या गौरव हासिल है !सनातन धर्म के मंदिरों , मूर्तियों ,पूजा पद्धतियों को करप्ट करने वाले  साईं नाम के वायरस से सनातन धर्मियों को सावधान करना शंकराचार्य जी की शास्त्रीय जिम्मेदारी है वही वो कर रहे हैं ! वो कोई राजनीति नहीं कर रहे हैं । 

    साईं संप्रदाय वाले ऐसी अपेक्षा क्यों रखते हैं कि शंकराचार्य जी सनातन धर्मियों को शास्त्रपथ पर चलाने हेतु प्रेरित करने के लिए साईंयों से सलाह लें !जब साईं पूजा का सनातन धर्म शास्त्रों से कोई सम्बन्ध ही नहीं है, साईं की कोई चर्चा ही नहीं है,वैसे भी साईं का जिक्र सनातन धर्म शास्त्रों में है ही नहीं तो उनका सनातन धर्म से कोई लेना देना नहीं है फिर साईं की संतानें सनातन धर्म में घुसपैठ करने जैसी हरकतें कर क्यों रही हैं !शंकराचार्य जी ने इस घुसपैठ का विरोध क्या कर दिया साईंयों ने उन्हें गालियाँ देनी शुरू कर दीं , रैलियाँ निकालने लगे,केस करने लगे मीडिया को पैसे देकर साईं समर्थन में धर्म संसदें आयोजित कराने  लगे !कुल मिलाकर ये लोग तो एक दम पागल हो उठे ।

     साईं संतानें ये सब ड्रामा आखिर क्यों कर रहीं थीं वो भी किस बल पर !इन्हें अचानक किसी शास्त्र का ज्ञान हो गया था क्या ?यही न कि चंदा इकठ्ठा करके धन संग्रह  किया गया और उसे चढ़ावा का नाम दे दिया गया फिर उस धन का उपयोग सनातन धर्म की छीछालेदर करने के लिए किया जाने लगा !ये साईं के साइड इफेक्ट' हैं अन्यथा इनमें ये संस्कार तो होने ही चाहिए थे कि आखिर वो कर क्या रहे हैं अपने बाप दादा आदि के द्वारा सुपूजित सनातन धर्म को नष्ट भ्रष्ट करने के इतने बड़े षड्यंत्र में वो सम्मिलित आखिर क्यों हैं क्यों नहीं धिक्कारती है उनकी आत्मा !किसी और की नहीं तो अपने पूर्वजों की निष्ठा पर तो चलना ही चाहिए था उन्हें !  

     पहले लोगों में एक दूसरे का आदर था परस्पर सेवा भावना थी एक दूसरे से बात करने की शालीनता थी । छोटी छोटी बातों पर या साधारण सी बात पर किसी को गोली मार देना,सामान्य सी बात पर तलाक कर देना क्या हो रहा है आज समाज में ?ये सब साईं संप्रदाय के धार्मिक अतिक्रमण का दुष्प्रभाव ही है !

   

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