गुरुवार, 24 जुलाई 2014

शास्त्रीय नियम धर्म ढीले पड़ते ही कभी साईं घुस आए !तो कभी अन्य पाखंडी बाबा लोग !!

    पहले जब सब कुछ त्यागने का नाम संन्यास था तब साईं की हिम्मत नहीं पड़ी किन्तु जबसे सब कुछ  भोगने का भाव हाईटेक संन्यासियों का बनने लगा तब से साईं घुस आए ! 

    साईं संकट तैयार ही आखिर क्यों हुआ ? जब किसी ऐरे गैरे बाबा को पकड़कर सनातन धर्मियों का भगवान बनाने की कोशिश की गई हो इसके इतने वर्षों बाद भी हमारे धर्माचार्यों का एक बहुत बड़ा वर्ग इस दुर्घटना पर आज भी मौन है आखिर क्यों ?यह सनातन हिन्दू धर्मियों और धर्माचार्यों के लिए चिंता का विषय है। सनातन धर्मियों के लिए ये एक बड़ी दुर्घटना है !

      हमारे साधू संतों के विषय में भी समाज में बड़े सारे प्रश्न उठने लगे हैं आज लोग जानना चाहते हैं कि इतने संवेदनशील विषय को धर्माचार्यों का एक बहुत बड़ा वर्ग इतने हल्के  से आखिर क्यों ले रहा है?

     बंधुओं ! यदि किसी भी पद प्रतिष्ठा डिग्री डिप्लोमा अादि को प्राप्त करने के लिए यदि इसके मानक घटा दिए जाएँगे तो उन्हें प्राप्त करने वालों की भीड़ बहुत बढ़ जाएगी दूसरी ओर उस पद की गुणवत्ता  ( क्वालिटी ) में भी कमी आ जाएगी।जैसे-I.A.S.परीक्षाओं का स्लेबस इतना सरल कर दिया जाए कि कक्षा आठ पढ़े लिखे लोग भी I.A.S.परीक्षाओं में पास होने लगें तो कौन नहीं चाहेगा कलट्टर बन जाना ! इस प्रकार से कलट्टर तो बहुत लोग हो जाएँगे किन्तु उनकी गुणवत्ता में कमी आ जाएगी  यह भी सच है  ! 

    यही दशा आज संन्यास की हो रही है संन्यास के शास्त्रीय नियम संयमों के पालन में लोग अपनी अपनी सुविधाओं को ध्यान रखते हुए शास्त्रीय विधान को ताख पर रखकर अपने नियमानुशार आचार व्यवहार चला रहे हैं इसी ढिलाई के कारण आज बहुत लोग संन्यासी बन रहे हैं क्योंकि संन्यास के बराबर लोगों को कोई दूसरा धंधा आज सूट  ही नहीं कर रहा है !कई बाबा लोग तो पहले दो कौड़ी के आदमी नहीं थे किन्तु संन्यासियों के जैसा वेष क्या बनाया आज बड़े बड़े उद्योगपतियों को उन्होंने फेल कर रखा है राजनैतिक गलियारों में उनकी टूटी बोलती है, यह सब आधुनिक संन्यास का ही कमाल है । इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि आज बनावटी मण्डलेश्वर ,महामंडलेश्वर ,महंत श्री महंत आदि जबरदस्ती बन जाने पर लोग अमादा हैं, बहुत लोग तो जगद्गुरु तक बनने की फिराक में बैठे हैं घूस देने के लिए थोड़े पैसे हो जाएँ तो कौन रोक सकता है उन्हें जगद्गुरु बनने से ! पैसे के बल पर बहुत लोग  ऐसी बड़ी बड़ी पद प्रतिष्ठाएँ पहले भी पा चुके हैं !एक सिंहासन खरीद लाए जगद्गुरु बन गए। वैसे भी डिस्काउंट का सीजन चल रहा हो तो शॉपिंग कौन नहीं कर लेना चाहेगा !

       धीरे धीरे वास्तविक शास्त्रीय संन्यास के तो दर्शन भी दुर्लभ होते जा रहे हैं और जो महापुरुष अभी भी शास्त्रीय संन्यास की मर्यादाएँ सँभाले भी हुए हैं उनका सहारा कब तक का है? क्योंकि नई पीढ़ी के संन्यासियों का एक बड़ा भाग तो संन्यास को भोगने के लिए संन्यासी होना चाहता है क्या ये मानसिकता ठीक है क्या इसे समय और युग का प्रभाव मान लेना चाहिए ?क्या अब वो समय आ गया है जिसके विषय में मैंने कहीं पढ़ा था कि कलियुग में वास्तविक संन्यासियों के दर्शन दुर्लभ हो जाएँगे ,बाकी संन्यास के नाम पर केवल डालडा ही पुजेगा -कलियुग से प्रभावित लोग मन से संन्यास न लेकर अपितु केवल तन से संन्यासी होने लगेंगे !वो पहचान के नाम पर हाथ में गीता  की पुस्तक ले लेंगे, साथ में एक सेविका रख लेंगे, गले में लम्बी लम्बी मालाएँ  पहन लेंगे, मस्तक और छाती पर खूब चन्दन की लीपापोती कर लेंगे इस प्रकार से सभी जातियों के लोग वैरागी हो जाएँगे !वास्तविक शास्त्रीय संन्यास पद्धति का पालन करने वाले दिव्य पुरुषों  के दर्शन तो दुर्लभ हो ही जाएँगे साथ ही कलियुग में शास्त्रीय संन्यास पद्धति की चर्चा करने वाले भी नहीं मिलेंगे ! यथा -

   गीता पुस्तक हाथ साथ विधवा माला विशाला गले । 

  गोपी चन्दन चर्चितं सुललितं भाले च वक्षस्थले ॥ 

वैरागी पटवा कुम्हार नटवा कोरीधुन धीमरो । 

हा !संन्यास कुतो गतः कलियुगे वार्तापि न श्रूयते ॥

      यह कलियुग का ही प्रभाव है मैंने किसी से सुना है कि साईंयों की तरफ से भी संजय कसाई नाथ को शंकराचार्य बनाने की तैयारी चल रही है उसे इसी वेष भूषा में इसीप्रकार से रहते हुए ही साईंयों का शंकराचार्य घोषित कर दिया जाएगा जो टी.वी.चैनलों पर शास्त्रीय संतों को सबसे अधिक एवं सबसे भद्दी बातें बोल लेता है ये उसकी क्वालिटी है धर्माचार्य बनने की !रही बात उसे शंकराचार्य  मानेगा कौन ? मीडिया पैसे लेकर उसी को शंकराचार्य शंकराचार्य कहेगा तो उसे रोकेगा कौन ! आज समाज पर मीडिया का बहुत बड़ा प्रभाव है !एक टी.वी.चैनल पर कुचक्रपाणि कह रहा था कि सभी जातियों के बनने चाहिए शंकराचार्य ! कल कोई सभी सम्प्रदायों के बोलेगा परसों सभी देशों के लोगों को शंकराचार्य बनाने की माँग उठेगी आखिर कैसे रोका  जा सकेगा उन्हें !

    ऐसी परिस्थिति में क्या धर्म शास्त्रों को सामने रखकर सर्व सहमति से कोई स्थाई नियमों का विधान नहीं किया जाना चाहिए जिसे मानने के लिए सनातन धर्म के सभी धर्माचार्य एवं धर्मावलम्बी बाध्य हों !आज जैसी जैसी निकृष्ट बातें हमारे धर्माचार्यों को टी.वी.चैनलों पर बोल ली जाती हैं क्या किसी अन्य धर्म प्रमुखों की प्रतिष्ठा के साथ भी ऐसा खिलवाड़ किया जा सकता है !ये हमारी समझ में हमारे धर्म के लिए बहुत चिंतनीय संकेत हैं ! 

    किसी धर्म के आस्था महापुरुषों की पोशाक की नक़ल भी कोई कर ले तो अपराध और हमारा  कोई भगवान भी बन जाए तो हमें सह जाना चाहिए आखिर क्यों ?दूसरी बात क्या संतों एवं धर्माचार्यों का विश्वास भी अब शास्त्रों से उठता जा रहा है !यदि नहीं तो साईं के भगवान बनने के विरोध में क्यों नहीं उठी उस तरह की सामूहिक आवाज जिसकी अपेक्षा थी ! क्या संतों और धर्माचार्यों का इतना बड़ा वर्ग साईं का समर्थक है यदि नहीं तो कारण आखिर क्या है ? कुछ  तथाकथित धर्म पुरोधा तो टी.वी.चैनलों पर भी साईं की भगवानी मान्यता का समर्थन करते नजर आए !उनमें से कुछ लोग तो अक्सर धर्म एवं धर्मशास्त्रों का उपहास करने करवाने के लिए मीडिया के काम आया करते हैं !आखिर ऐसा सनातन धर्म में ही क्यों अलाउड है क्या हमारे सनातन धर्म का कोई ऐसा मानक मंच नहीं होना चाहिए जिसका आदेश मानने के लिए सभी धर्मावलम्बी बाध्य हों यदि किसी प्रयास से ऐसा हो पाता है तो उस मंच का सम्मान सरकार को भी करना पड़ेगा !

   आज अन्य धर्मों पर तो सरकारें सजग रहती हैं किन्तु जब बात हिन्दू धर्म की आती है तो वो लोग भी सोचते हैं कि इनकी चिंता अभी से क्यों करनी इनके दो चार धर्माचार्य मौके पर ही पकड़ कर कभी भी अपने पक्ष की  बात कहला ली जाएगी !इसलिए हमारे धर्म की ये ढुलमुलता समाप्त करने का प्रयास जिस किसी भी तरह संभव हो शीघ्र किया जाना  चाहिए,अन्यथा बहुत देर हो जाएगी !

    हमारे धर्म में पहले संन्यास का मतलब केवल वैराग्य हुआ करता था जो जितना विरक्त होता था वो उतना बड़ा संत माना  जाता था इसमें समस्त सांसारिक प्रपंचों से ऊपर उठकर संन्यास के शास्त्र विहित कर्म करने होते हैं इसमें भोगभावना पर पूरी तरह नियंत्रण पाना होता है ।

   दूसरी ओर गृहस्थ  जीवन में शारीरिक सुख सुविधाओं से जुड़े सारे आनंद प्राप्त  करने में कोई मनाही नहीं होती है किन्तु मनोवृत्तियाँ स्वच्छंद न हो जाएँ इतना ध्यान अवश्य रखना होता था इसके लिए गृहस्थ के भी धर्म होते हैं जिनका पालन करना होता है ।गृहस्थ के जीवन में धन दौलत का सुख ,व्यापार का सुख ,राजनीति का सुख,सांसारिक संबंधों का सुख, बड़े बड़े संपर्कों का सुख ,महँगी महँगी गाड़ियों एवं भवनों का सुख इस प्रकार के समस्त सांसारिक प्रपंच मर्यादित गृहस्थ जीवन में रहकर भी फैलाए जाते रहे हैं किन्तु न्यायार्जित धन के द्वारा !यदि धन की शुद्धि पर संदेह हो तो दान आदि के माध्यम से धन को शुद्ध कर लिया जाता था !

   आज आधुनिक साधुओं और गृहस्थों के आचार व्यवहार रहन में काफी समानताएँ आ जाने से संन्यास का सामाजिक गौरव गिरता चला जा रहा है।  आज आधुनिक संन्यासियों का वेष तो वैरागियों का सा है और बाक़ी सारी न केवल भावनाएँ गृहस्थों जैसी अपितु सारी सुख सुविधाओं के साधन भी गृहस्थों जैसे ही हैं और जो नहीं हैं उन्हें भी जुटाने के लिए दिन रात भूत पिशाचों की तरह वो दिन रात धन इकठ्ठा करते रहते हैं। 

     कुल मिलाकर आधुनिक विचार धारा से प्रभावित साधुओं का वेष तो साधुओं जैसा और मन एवं सुख भोग भावना गृहस्थों जैसी ये कैसा संन्यास ?बिलकुल आधुनिक शिक्षा की तरह जैसे हिंदी बोलते बोलते इंग्लिश में घुस जाना उससे न हिंदी रही न अंग्रेजी !उसी प्रकार से आधुनिक संन्यास है जहाँ गृहस्थ और विरक्त जीवन का रहन सहन लगभग एक जैसा होता चला जा रहा है। संन्यासियों के लौकिक जीवन की कठिनाइयों को सरल करने के प्रयास किए जा रहे हैं धीरे धीरे परिस्थिति ऐसी पैदा होने लगी है कि कुछ गृहस्थों ने  अपने को भी संन्यासियों जैसा समझना या मानना प्रारम्भ कर दिया है अर्थात उन्हें लगने लगा है कि जब संन्यास में भी सब कुछ गृहस्थों जैसा ही होना है तो हम भी संन्यासी हैं ।

      इसी आधुनिक संन्यास के साइड इफेक्ट हैं मलमल बाबा,सुकुमार स्वामी ,अराधे माँ, कुचक्रपाणि ,प्रज्ञाकुंद , प्रमोदतृष्णम् आदि आदि पद प्रतिष्ठार्थी कलियुगी साधू संतों की लम्बी लिस्ट है, शनैश्चरासुर टाईप के बड़े बड़े मल्ल वीर भी आजकल अपने को महामंडलेश्वर लिखने लगे हैं कोई शराबी शराब पीकर इतनी आसानी से गालियाँ नहीं दे सकता है जितनी आसानी से ऐसे लोग वेद वेदांगों  के  गूढ़ विषयों पर मनगढंत फैसले सुना जाते हैं!

     लगता है कि ऐसे लोगों ने मान लिया है कि संन्यास का मतलब शरीर का केवल कलर बदलना होता है बाक़ी सबकुछ वैसे  ही रहना होता है जैसे गृहस्थ रहते हैं इस हाईटेक संन्यास में बस एक नियम का बड़ी कड़ाई से पालन करना होता है वो है कि अर्थ संग्रह के लिए इन पाँच बिंदुओं को उछाल उछाल कर चंदा इकठ्ठा करना होता है-

  • गरीब कन्याओं के विवाह कराने के लिए भिक्षा माँगना ।

  • गरीब बच्चों के लिए विद्यालयों के लिए भिक्षा माँगना ।

  • गरीबों हेतु  अस्पताल बनाने के लिए भिक्षा माँगना ।

  • गरीबों के लिए भोजन बाँटने के लिए भिक्षा माँगना ।

  • गायों की सेवा  करने के लिए भिक्षा माँगना ।

    कहाँ से कहाँ पहुँच गए हाईटेक विरक्त लोग ! जिनके बाप दादों ने जिन सुख सुविधाओं को भोगने के सपने भी देखने की हिम्मत नहीं की होगी , जिन्हें अपनी विद्या बुद्धि और बल के आधार पर दाल रोटी जुटाना मुश्किल हो रहा था वो संन्यास लेकर अर्थात सबकुछ त्यागने की घोषणा करके सब  कुछ पा गए !संन्यास के नाम पर लाल कपड़े पहन लेने मात्र से चालाक लोगों बड़ी बड़ी योग पीठें बना लीं ,अरबों खरबों के व्यापार चल गए आज भगवान की दया से राजनीति में अच्छा खास दखल है ये सब संन्यास से ही संभव हो सका है।इसलिए सधुअई करने हेतु  आज बहुत लोग संन्यास लेने के लिए आतुर घूम रहे हैं कई लोग इस बात के लिए आतुर हैं कि पहले से पता नहीं था कि साईं का मुद्दा भी उठ सकता है अन्यथा साल छै महीने में अपने शरीर की आकृति तो हम भी साधुओं जैसी बना सकते थे आज साईं और सनातन धर्म की दलाली में करोड़ों का फंड जुटाया जा सकता था ! बहुत लोगों को इस बात का पश्चात्ताप है । आखिर उन्हें करना क्या था सबके साथ वो भी चले जाते शिरडी वाले साईं के घर और बोल देते साईं की पूजा करने में कोई दोष नहीं है !और पेमेंट लेते अपने घर चले आते !

   आजकल टी.वी.चैनलों पर साईं संप्रदाय के तेजी से उभरते अभिनव संत कसाई नाथ अर्थ प्रधान पत्रकारों की कृपा से धर्म शास्त्रों के विषय में न केवल चोंच लड़ाने में सफल हो रहे हैं अपितु शंकराचार्य जी जैसे सनातन धर्म के शीर्ष स्तंभ पर अमर्यादित हमला करते भी देखे गए !ज्ञान ,तपस्या ,चरित्र जैसे गम्भीर विन्दुओं पर उन्हें चुनौती देते भी देखे गए ! 

      अब समय आ गया है जब सनातन धर्मियों को एक बार फिर से अपने शास्त्रीय स्वरूप में लौटना पड़ेगा और सुधारनी पड़ेंगी अपनी सीमाएँ ।

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